क्यों सबको दीक्षा नहीं मिल पाती? दीक्षा के पीछे कुछ गहरे रहस्य! भगवान शिव की दीक्षा!

क्यों सबको दीक्षा नहीं मिल पाती? दीक्षा के पीछे कुछ गहरे रहस्य! भगवान शिव की दीक्षा!

 

आपने कहा बाबा जी और सभी संतों ने कहा गीता का मुख्य मर्म भी यही है जैसा कर्म करेगा वैसा फल देगा भगवान इसकी व्याख्या अपने बखूबी कल करते जैसा पेपर देक आओगे वैसे मार्क्स मिल जाएंगे इसका अर्थ हम समझ गए लेकिन वह जो दूसरे अर्थ निकलते हैं संतों की वाणी से वह समझ में नहीं आते हैं वह जो दूसरे संत कहते हैं के परमात्मा की इच्छा के बिना पता नहीं लता और वह जो करता है ठीक करता है तुम्हारे भले के लिए करता है बाबा यह दोनों बातें विरोधी लगती हैं इनमें तालमेल कैसे बिठा होगे एक तो तू जैसा करेगा वैसे कर्म भोगे का और दूसरा तू कुछ नहीं करता मैं ही करता


हूं मेरी इच्छा के बिना कुछ भी नहीं होता यहीं हम उलझे खड़े हैं कृपा करके इस गांठ को खोलिए ब्या उससे पहले एक छोटा सा प्रश्न प्रथा घोशाल [प्रशंसा] कृपा करके बताएं दीक्षा लेने का क्या प्रोसेस है मुझे क्या करना होगा जो प्रोसेस आपको को बतलाया गया था वह यह था कि बाबा मुझे 20 अप्रैल को जहां तक मेरी स्मृति काम करती है यह वरदान दे गए थे शिव कि तुम जिसके मस्तक पर अंगूठा लगा दोगे उसको मुक्त करने की जिम्मेदारी मेरी होगी फिर तुम रहो ना रहो यह दीक्षा कैसे मिलेगी शुरू में हमने दीक्षा के लिए आवेदन किया लेकिन कम कि मैं तो अपने ही अंतस में


मस्त रहता हूं व्यवस्थाएं मेरे व्यवस्थापक ही संभालते हैं कोई आने जाने वालों को रिसीव करता है विदा करता है कोई मेरे द्वारा बोली गई वीडियोस को एडिट करता है आप तक पहुंचाता है मैं तो सिर्फ अपने कमरे में मस्त पड़ा रहता हूं मैंने ना कहीं जाना ना कहीं आना सब दौड़ खत्म है सब मांग खत्म है तो मैंने देखा जिस व्यक्ति ने प्रथम दिन अप्लाई किया था प्रथम दिन उसको दीक्षा आज तक नहीं मिले तो नंबर वाइज तो यहां होता नहीं मेरी दृष्टि में क्योंकि मैं अंगूठा सिर्फ उसी का लगा पाता हूं जिसको वह परम मालिक मुझे आज्ञा देते हैं बहुत से लोग हैं यहां आके बैठ जाते


हैं मैं तो आ गया मैं तो आ गई दीक्षा तो मैंने पूछता हूं अपने व्यवस्थापक से इन्होंने अप्लाई किया कोई रिकॉर्ड नहीं होता नहीं किया फिर दीक्षा नहीं मिलेगी लेकिन बाबा से पूछता हूं व कहते हैं दीक्षा दे दो अब दीक्षा तो बाबा ने दे मैं निमत हूं मैंने सिर्फ अंगूठा लगा देना मैं दीक्षा दे देता हूं कोई अप्लाई नहीं किया उन्होंने आकर बैठ गए बाहर धर्मशाला में ठहर गए बठिंडा मलोट ठहर गए हम आ गए हैं बाबा दीक्षा दे दो हां कोई नहीं आता तो पूछ के लेकिन यहां तक बिना पूछे आ जाते हैं तो जिसने दीक्षा देनी वह ग्र कह दे ठीक मैं जिम्मेवारी लेता


हूं मुझे अ लगाना पड़ता है माइक को प्रसारित करना पड़ता है जो बोलने वाला बोल रहा है वह रोक नहीं सकता इसलिए इसमें मेरा होना ना होना एक हिसाब से बराबर है मात्र निमित हूं मैं और दूसरा प्रश्न पूछा है जब बाबा आप च चले जाएंगे गौरव ने पूछा है यमुना नगर से जब आप चले जाएंगे बाबा फिर क्या ु की तरह आपकी सब विधियां बेकार हो जाएंगे नहीं विधिया बेकार नहीं होगी विधियां कभी बेकार नहीं होती विधिया तो ओशो की भी बकार नहीं ई य थोड़ा समझ लेना विधियां जो हमने दी मैंने तो बाबा से पूछ के दि यह क्रियायोग ध्यान में जाने की


व्यवस्था और जो मैं बोला वह मैं नहीं बोला इस यंत्र के द्वारा वह बोला इसमें मेरा कोई योगदान नहीं किसी भी चीज में मैं उस पर जाने में मेरा कोई योगदान है मैंने कि कुछ नहीं किया मैं सदा ही कहा करता हूं मैंने कोई ग्रंथ कोई धार्मिक पुस्तक कोई पन्ना नहीं पढ़ा सिर्फ बचपन में घरों में तुलसीदास की रामायण का अखंड पाठ होता था वहां मेरी आवाज अच्छी होने के कारण व मुझे बुला लेते थे मैं दो घंटे पढ़ लेता था वो भी क्या पढ़ता था पढने पढ़ पट देता था बस हसा मत करवा या जो दुर्गति मैंने तुलसीदास की की शायद ही किसी ने की


होगी रात्रि की ड्यूटी मेरी लगा देते और सुबह तक मैं मौत से सोता गद्दी के जब मुझे पता होता कि वो आएंगे मेरी आंख खुल जाती और मैं पने पलट देता चल अयोध्या कांड पर खत्म किया था लंका कांड आ जाता यह तपस्या की है मैंने है तप के नाम पर मैंने कुछ नहीं किया संबोधि के मुक्ति के नाम पर मैंने कुछ नहीं किया सच पूछो तो मैंने कुछ नहीं किया य सब तामझाम उसका पहुंचाया उसने बुलवाया उसने बताया उसने यह सब गोरख धंधा उसका मेरा इसमें कुछ नहीं तो बाबा कैसे दीक्षा मिलेगी दीक्षा जिन्होंने अप्लाई कर दिया जब बुलाया जाएगा व आ जाए अगर कोई आ जाता


है बाबा कहेंगे मैं तो सेवक हूं मैं अंगूठा लगा दूंगा आगे काम मालिक का उन्होंने भगवान कृष्ण की तरह वायदा किया है यदा जदा ही धर्म सगला निर् भवती भारत जैसे ही पाप की वृद्धि होगी मैं दुष्टों का हनन करने के लिए साधुओं की रक्षा के लिए वक्त वक्त में अवतार लेता रहूंगा फिर वह जाने उनका काम जाने मेरे जाने के बाद ना तो विधियां बेकार होंगी क्योंकि विधियां मेरी नहीं मैंने बहुत ही स्पष्ट ढंग से बताया कि मैं शंकर मंदिर में बैठा जब मुझे क्रिया योग बताया गया और मैंने कुछ नहीं किया जब ट्रेन का य डेंट हुआ आ रहा था सिर्फ रोजमर्रा की


तरह यह हुआ कि किसी ने उठा के पटक दिया तो दीक्षा की बात य है कि जहां भी तुम हो वहां टिके रहो पहली बात तो मैं आपसे कहूंगा मेरे पास रोज ऐसे फोन आते हैं तो मैं कहता हूं जहां भी आप हो रो अगर आप कहते हो हमने तो अंगूठा लगवाना ही है तो यह मेरे बश में नहीं जिसे वह कहता है मैं लगा देता हूं और वो जिम्मेवारी उसकी मेरे जाने के बाद भी जिम्मेवारी उसके हां इतना मैं सर्टन हूं कि यू विल बी लिबरे एट ल तुम्हें वह सब मिल जाएगा जिसके लिए तुम यहां आए हो इस सृष्टि में क्योंकि मुझे वह सब मिला जो मैंने मांगा नहीं था मैंने कभी मांग नहीं की वो मुझे मिल


गया इसलिए बैठा हूं मोद से बैठा हूं आनंद में बैठा हूं खुमारी में बैठा हूं दिन भर रात मस्ती के आलम में छाया हुआ मीठी ठंडी हवाएं चल रही हैं आनंद के जरोखे हैं गीत गुनगुनाता हूं नाचता हूं गाता हूं किया मैंने कुछ नहीं और अगर तुम पूछते हो प्रथा गोसाल थोड़ा सा नाम लिख दिया करो एड्रेस लिख दिया करो तो अच्छा रहेगा कुछ लोग तो इतने कंजूस होते हैं या डरपोक होते हैं ऊपर लिख देंगे पी बस के प्रश्न पूछ लेते हैं कौन है कहां से हैं कोई पता नहीं इतने कायर मत बनो मेरे पास आके थोड़ा सा साहस बटोर सीखो अगर ऐसे ही तुम बने


रहे तो उस भ्रांति को कैसे छोड़ पाओगे जिस भ्रांति को छोड़ने में तुम त्राहि माम त्राहि माम करने लगोगे और भ्रांति जन्मों जन्मों से तुम्हारे साथ चिपकी पर अगर इतने कमजोर बने रहे नाम भी ना ठीक से लिखा एड्रेस भी ठीक से ना लिखा के लिख दिया पी लिख दिया क्या मतलब हुआ उसका अब लिखो कहां से हो और यहां साहसी व्यक्तियों का काम है कायरों का काम नहीं उन व्यक्तियों का काम है जो शीष तली पर रख सकते हैं और अंतिम आपको यही करना होगा नकली शीश आपको रखना होगा असली तो कभी मिटता ही नहीं असली पर दांव कभी लगाया नहीं जाता नकली ही मिटता है और नकली ही रखना


होता है हथेली भी नकली सर भी नकली वह भी तुम नहीं रख सकते तो प्रेम गली में ना आओ पूछा है प्रथा गौल ने व्यवस्था तो यही है कि अप्लाई करो उसके बाद आपका नंबर आएगा आपको बुलाया जाएगा और बुलाया जाता है लेकिन आपको यह एक्सेप्शन भी मैंने बताई है कुछ साधक आके बैठ जाते हैं यहां बठिंडा आ गया कुछ को मैं पूछता हूं व कहते हैं लौटा दो मैं लुटा देता हूं वापस जाओ कुछ को बाबा कहते हैं बुला लो लगा दो अंगूठा अब जब मालिक कह रहा है लगा दो अंगूठा तो मैं का कैसे कर सकता हूं क्योंकि उसने ही आपको अंतरिम छोर पर पहुंचाना है मैं सिर्फ उसके हाथों की कठपुतली हूं


जैसा वह नचाए वैसा नाचता हूं मस्त हूं आनंदित हूं ये आपके प्रश्नों के जवाब मेरे जाने के बाद ना तो मेरी विधियां हैं यह विधियां सब शिव की हैं जो आपको बतलाई गई है क्रियायोग करो जितना होता है करो ध्यान में जाओ कुछ न करने में उतरो और वीडियो सुनो इससे आपको प्रेरणा मिलेगी जैसा सुनोगे जैसा देखोगे जैसा विचार करोगे वैसे ही हो जाओगे संत वचन सुनोगे तो सत्संग की जिज्ञासा जगे गी बुरी बातें सुनो हो बुरे की जिज्ञासा जगी इसलिए सतसंगत का इतना महत्व था अब हम गीता के मूल श्लोक पर आ जाए कृष्ण कहते हैं यह सब मेरे मारे हुए लोग


हैं ठ इनका वध कर दे और भीष्म है द्रोण है व जय दृत है व कर्ण है वो दुर्योधन मैंने मार चुका हूं तोत निमत मात्र हो जा इनको मार के राज पाठ भोग हालांकि कृष्ण अच्छी तरह से जानते हैं के राज पाठ में कितना सुख होता है और अगर कृष्ण नहीं जानते तो और कौन जानता है यह दुनिया एक खेला है कंगाल मत सोचे कि मैं दुखी हूं और बड़े से बड़ा अमीर और बड़ी से बड़ी पदवी के ऊपर बैठा हुआ व्यक्ति यह ना सोचे कि मैं खुश हूं खुशी मिलती है तृप्ति में और सर्वोच्च पदवी के ऊपर बैठे हुए लोग भी मुझे अतृप्त लगते हैं और सर्वोच्च धनी लोग भी मुझे अतृप्त


लगते हैं ना मुझे तृप्ति रीगन में दिखी ना मुझे तृप्ति बिल गेट्स में दिखे अतृप्त ही चले गए उनकी जगह किसी और ने ले ली धनाढ्य व्यक्ति में तृप्ति नहीं है सर्वोच्च पदा सन व्यक्ति में तृप्ति नहीं है स्वस्थ व्यक्ति में तृप्ति नहीं है बड़ी सी जमीन का मालिक जमीदार वो जमीन उसकी तृप्ति का कारण है छाती चोड़ी कर सकता है मेरे पास इतनी जमीन लेकिन छाती चोड़ी करना अहंकार को बढ़ाएगा और अहंकार का बढ़ना ज्यादा दुखी करेगा तो फिर तृप्ति कैसे मिलेग कबीर कहते हैं तृप्ति मिलेगी सबूरी मिलेगी उसकी रजा में चलने से जब तक तुम अपनी रजा में चल रहे


हो तब तक तृप्ति नहीं मिलेगी यही नानक कहते हैं यही पलटू कहते है सबर जब तक नहीं होता तब तक दौड़ नहीं खत्म होती तुम भागते जाओगे बैठ नहीं सकोगे एक जगह पर आनंद को पी नहीं सकोगे और देखिए आपको चाय भी पीनी होती है ना तो आप दौड़े दौड़े चले चले चाय नहीं पी सकते बैठना होता है आराम से खाना खाना हो चाहे चाय पीनी हो बैठ के ही पीनी होती है इसी तरह तृप्ति भी बैठ के ही पीनी होती है तृप्ति का रस बागे बागे नहीं मिलता तो कबीर कहते हैं फकीरी में मेरा मन लग गया लागो मेरो रा फकीरी में फकीरी में मन लागयो मेरो [संगीत] राम जो सुख


पा राम भजन में जो सुख राम के पास बैठने में आता जो सुख पाए राम भजन [संगीत] में अमानत दमित हिंसा शांति राज जवम आचार्य [संगीत] उपासनगर ग्रह जो सुख [संगीत] पा राम भजन में हो सुख [संगीत] नाही अमीरी मैं मनड़ो लागयो मेरो राम फकीर में फकीरी में मन लाग मेरो राम जो सुख पायो राम भजन में बहुत से लोग मुझे कह देते हैं देखिए कबीर कहते हैं राम को बजो अब बताइए तुम कहते हो राम राम मत करो जो सुख पायो राम वचन में राम के पास बैठने में आनंद है फूल के पास बैठने से सुगंध मिलती है राम के पास बैठने से आनंद आता है सुख आता


है राम राम जपना रपटन है राम बजना रेप नहीं पास बैठना है और पास बैठने में और भजने में बड़ा फर्क है रेप में और करीबी में बहुत फर्क है यही मूर्ख तुम्हे सिखाते हैं कैसे मिलेगा सुख राम के करीब हो जाओ राम कहां है मूर्ति के पास बैठ जाए नहीं यह मूर्तियां तो पत्थर की नकली है चित्र है य राम तुम्हारे भीतर है जिस राम को तुम बाहर खोज रहे हो मंदिरों में मस्जिदों में नहीं है राम तुम्हारे भीतर है उसके पास जाकर बैठ जाओ बड़ा सुख आएगा बड़ा आनंद मिलेगा बस तुम गए नहीं इसलिए चूके चूके फिर रहे हो भला भोला फिरे जगत में कैसा नाता


रे फूला फूला फिरे जगत में कैसा ना [संगीत] भूला भूला फिरे जगत में फूला फूला फिरे जगत में कैसा नाता रे भूला भला फिरे जगत में कैसा नाथा ार जब तक उससे नाता नहीं बनाते भूले भूले फिर रहे हो धन और जमीनों के मालिक फूले फूले फिर रहे हो उससे नाता जोड़ लो जब तक नाता ना जोड़ो ग तब तक सुखी नहीं होगे तो राम भजन में राम के करीब बैठ जाओ तुम अमीरी के करीब बैठे हो धन के करीब बैठे हो इसलिए सुखी नहीं होता तो ये कंफ्लेक्स कहते हैं जैसा कर्म करेगा वैसा मैं फल दूंगा और फिर कहते हैं कि मेरी इच्छा के बिना एक पत्ता भी नहीं


झूलता अब तालमेल बैठाई इसमें हम उलझे खड़े पहली बात कुछ करनी जरूरी है प्रासंगिक हू या प्रासंगिक हू क्योंकि जो बात जब बोल जाऊं तब भी शुभ इस जिंदगी का कोई भरोसा नहीं होता किसी को भी सिर्फ मुझे नहीं किसी को कोई भरोसा नहीं है इसलिए कहते हैं कर ले सो काम बजले सो राम उसके करीब बैठ जाओ आनंद जो काम करना हो तो मुक्त हुई काम करके तो कुछ बातें मैं बोलना चाहूंगा इसको हृदय में बसा लेना यह आवश्यक है यह थीम है मेरी बायोग्राफी का मेरे अनुभवों का पहली बात पूछा है दीक्षा कैसे मिलेगी दीक्षा शायद यहां तो नहीं मिल जहां तक मैं समझता


हूं क्योंकि इतना धीमी गति पकड़ गया है दीक्षा का मसला कि किसी किसी को कहते हैं बाबा बुलाने के लिए यह चाल मुझे लगती है कि शायद ज्यादा लोग ना बुलाए जाए इसलिए मैं तुमसे यह आग्रह करता हूं कि किसी अन्य गुरु को खोज लो या जहां पर चल रहे हो बहुत से लोग मुझे प्रश्न कर लेते हैं बाबा तुम दीक्षा दे दोगे आ जाए मैंने कहा पहले पहले पले तो हमने गुरु बना रखा है तो फिर टके रहो ना टके र वहां भीड़ को खपाने की जगह है यहां भीड़ के लिए जगह नहीं तो टके रहो क्यों भागने की जल्दी करते हो और भागने से वो मिला भी नहीं करता वह ठहरने से मिलता है तो जहां हो वहां


ठहरो और अगर नए हो खोज में हो तो मेरी इस बात को ध्यान में रखलो मैं तुम्हें तीन बातें कहूंगा पहली बात मार्कस जैसे लोगों के पास मत जाना जो कहते हैं परमात्मा नहीं हैह जो कहते हैं नियम ही काफी हैं वह गलत है मेरी दृष्टि में क्योंकि मैंने नियमों से पार नियमों को बनाने वाला देखा है और यह मैं अपने अनुभव के आधार पर कहता हूं अपनी दृष्टि और दर्शन के आधार पर कहता हूं किसी किताब के शास्त्र के आधार पर नहीं कहता वह है इसलिए किसी मार्कस के पीछे म मतलब मार्कस ने खोजा था नहीं और नहीं पाया था इसलिए उसने जो बोला सत्य बोला क्योंकि


ना खोजा ना पाया तो उसके हिसाब से नहीं था तो वह ठीक है उसने सत्य बोला लेकिन उसका सत्य सत्य नहीं है उसका सत्य सिर्फ एक अंदाजा था मेरा सत्य सिर्फ अंदाजा नहीं मेरा सत्य अनुभव है अनुभव की परा काष्टा प मैंने अच्छी तरह से कस लिया है देख लिया है एक बार नहीं लाखों बार देख लिया है रोज जाता हूं सैकड़ों बार उसके आगोश में समा के आ जाता हूं वह है पहली बात किसी मार्कस के पास मत चले जाना दूसरा किसी नाम देने वाले व्यक्ति के पास मत पहुंचना जो पहुंचे वो पहुंचे वो टिके रहे और कुछ नहीं तो अनुभव हो जाएगा कि रेप से मिलता इतना अनुभव भी काफी


है अगले जन्म में काम आएगा संस्कार बनके सागा नाम दान देने वाले के पास मत पहु जाना ये मैं बोल रहा हूं गौशा से अगर तुम नए हो तो मार्कस के पास मत पहुंच जाना मार्कस गलत है मार्कस को गलत करने के लिए मैं बैठ हूं मैंने अपनी नगन आंखों से उस सत्ता को देखा है जिसको बुद्ध कहते हैं नियम ही काफी है क्यों कहा यह बुद्ध जानते हैं और किसी चार वाक के पास मत पहुंचाना चार बाक कहते कोई लेना देना नहीं होता बसम भूत देहस पुनर आगमनम कुतः या जीवेत सुखी जीवेत ऋणम कृत्वा गतम पत बसम भूत स्य देहस पुनर आगमनम कुतः यहां कोई ले लेना देना नहीं पड़ता ऋण


उठाओ और घी पी लो घी पी लो या दारू पी लो मैं यह कहता हूं यह भी झूठा है मार्कस झूठा चार वाक झूठा यह भी बुद्धि के किसी तल से बोल रहा है इसने भी बाहर की व्यवस्थाएं देखी हैं सिर्फ कोई खा के मुकर गया मुकर गया किसी ने किसी से उधारी दी नहीं दी बाहर की व्यवस्थाएं देखते हैं किसने बच्चों को जन्म दे दिया ठीक से बंटवारा नहीं किया एक को तड़पाया एक को गले लगाया वो भी गलत है बहुत सी बातें हैं कहने वाली लेकिन वक्त बड़ा कम होता है हमेशा हमेशा ही वक्त कम होता है क्या करू बोलने को बहुत कुछ है शब्द सदा ही वही दिन में 24 घंटे होते


हैं किसी मार्कस के पास मत जाना किसी चारवा के पास मत जाना क्योंकि चारवा कहते हैं ऋणम कृत गत भसम भूत देह से पुनर आगमनम कुता शराब पी लो जुआ खेल लो घी पी लो कोई बात नहीं यहां वापस नहीं मोड़ना पड़ता बिल्कुल वापस मोड़ना पड़ता है यही तो कृष्ण कहते हैं जैसा कर्म करेगा वैसा फल देगा भगवान तो इन दो व्यक्तियों के पास मत चले जाना ना मार्कस ना चारक यह दोनों गलत हैं अनुभवी नहीं है इन्होंने क्यों कहा वो ये इनसे पूछो इन्होने क्यों कहा इसके शिष्य बैठे हैं बता देंगे तुम तीसरा मैंने कहा जो नाम बांटता है शब्दों का नाम बांटता है राधे राधे करो


राम राम करो श्याम श्याम करो कृष्ण कृष्ण करो देखिए कृष्ण गोविंद तो मेरा भी करती है लेकिन रेपुटेशन नहीं करते भीतर से गवारा ह भीतर से आनंद का उफान आता है प्रस फुटन आता है वो तो मेरे भीतर भी आता है मैं रोज गाता हूं कृष्ण गोविंद अरे मुरारी नहीं ता भीतर से आता है यह रेपुटेशन है हालांकि रोज गाता हूं लेकिन जरूरी नहीं है कि गम भीतर से आएगा ऊा नहीं आता नहीं गाता रोज ढंग अलग रंग अलग मस्ती अलग लकन अलग शराब वही प्याला बदल जाता है ब्रांड बदल जाता है तो इन नाम बांटने वालों के पास मत चले जाना धोखेबाज है लोभी है इनका कोई स्वार्थ


होगा वह क्या स्वार्थ है इन्हें पता है जो निर लो भी हो जो अनुभवी हो उसकी बातों में सत्य की खुशबू आएगी रिफ्लेक्शन आएगी लकन आएगी और छलक तुम्हें मदहोश कर जाएग सब तो राजनीतिक व्यक्ति के पास भी बहुत होता है और तुम रोज सुनते हो क्या तुम उनको सुनकर अपने उस तल पर चले जाते हो नहीं जिसके वचन से तुम अपने अंतस के तल को छू लो वह अनुभवी है तो मैं एक पहचान बता देता हूं जिसके वचनों से तुम भी अपने अंतस के तल को छू लो जो तल उसने छुआ वह जब बोलेगा तो उस तल से बोलेगा इसलिए मैं सत कहता हूं कि इन आचार्यों से गीता मत सुना


करो क्योंकि गीता कृष्ण ने जिस तर से कही या तो कृष्ण बोले या जो व्यक्ति उस कृष्ण के तल पर चला गया वह बोले ही इ ऑथेंटिक टू से वह प्रमाणिक व्यक्ति है कहने के लिए इनको पपड़ी धारी आचार्यों से मत सुना करो वक्त की बर्बादी है और बातों को पूछ लिया करो शादी करें ना करें प्रेम करें ना करें लीवन में रहे ना रहे यह बातें संसार की इनसे पूछ लिया करो या बताएंगे कुं पर जाना है कि नहीं जाना ये सभी बातों का जवाब देंगे और सुंदर ढंग से देंगे बखूबी देंगे यह प्रशंसनीय है इस मसले में लेकिन संसार के मसले में परमात्मा के मसले में अगर तुम इनकी बात


मानोगे तो मुंह बल गिरोगे दांत तुड़वा बैठोगे गलती मत कर लेना स प्रथी गोसाल मेरी यह बातें तीन बातें याद रखना इन तीनों के पास में चले जाना बैरंग वापस आओ ग कोई मिठास ना आएगी कोई खुशबू देखने को नहीं मिलेगी कोई आनंद की लकन नहीं आएगी कोई जीरा नहीं झूमेगा कोई सुध बुध नहीं गुम होगी मूर्छित हो सकते हो सुद्ध बुध तो उसमें भी गुम हो जाती है लेकिन जब राम राम करते राधे राधे करते शक्तिहीन हो जाओगे तो मूर्छित हो जाओगे मूर्छित तो भर मुर्दा भी होता है शक्ति हीनता होना अलग बात है आनंद की पलकन से शुद्ध बुध खो देना अलग


बात है यह दोनों अवस्थाएं अलग है बिल्कुल विपरीत भी हैं ओ [संगीत] काला एक बांसुरी [प्रशंसा] वाला सुद विसरा गयो मोरी रे सुद विसरा गयो मो रे [संगीत] माखन चोर वो नंद किशोर [संगीत] जो कर गयो मन की चोरी रे [संगीत] सुद विसरा गयो मो रे हो [संगीत] काला हो [संगीत] काला एक भासुरी वाला जिसके पास जाकर शुद्ध बुत विसर जाए कृष्ण के पास जाकर सध बुध प सर जाती है बाबा मुझे एक प्रसंग सुनाया करते हैं शिव तुम्हें भी सुना दूं मजा आएगा पार्वती ने मुझे पाने के लिए बड़ा तप किया मैंने पूछा था प्रश्न कि बाबा अंगूठा लगाने से क्या होता है तो


उसका जवाब दे रहे थे तो पार्वती ने बड़ा तप किया और मैंने जब उसकी मांग में सिंदूर भरने गया कवाई शुरू की तो मैंने दोनों भ के बीच में जहां बिंदियां लगाते हैं वहां से शुरू कि यहां पर रखा हाथ और फिर ऊपर तक ले गया ये सिंदूर की परंपरा वहां से शुरू हुई और बाबा कहते हैं जैसे तीसरे नेत्र पर हाथ गया अंगूठा गया तो पार्वती नाचने लगे बड़ा मजा आया इस प्रसंग को सुनके एक बात दो गांठें खुल गई एक तो यह कि अंगूठा रखने से क्या होता है तुम्हारी शक्ति प्रवाहित हो जाती है तीसरे नेत्र को में रिसेप्टिव पावर बहुत होती है यही एक पॉइंट है जो कि मोस्ट सेंसिटिव


रिसेट सेंटर है और दूसरा सिंदूर लगाने की परंपरा कैसे शुरू है तुम भी सिंदूर लगाते हो पंडित जी के कहने से लेकिन तुम्हें अंगूठा पता ही नहीं कहां लगाना है तुम तो सोने की अंगूठी में सिंदूर रख लेते हो और मांग भर देते हो बस परंपराएं निभाई जाती है आजकल मतलब किसी को पता नहीं ल से कहता है जो करता है परमात्मा करता है कृष्ण भी कहते हैं मेरी इच्छा के बिना पत्ता नहीं मिलता तो इन दोनों बातों को कैसे मिलाओ ग बाबा संत कहता है जो करता है परमात्मा करता है कृष्ण कहते हैं जो करता हूं मैं करता हूं मेरी इच्छा के बिना पत्ता नहीं


हिलता बात एक ही है तुम कहते हो जो करते हो तुम उसका फल तुम भोगते हो दोनों को कैसे मिलाओ के दोनों बात दो है ही नहीं एक ही बात है संत कहता है कि वह जो करता है ठीक करता है वह जो करवाता है वह भी ठीक करवाता है थोड़ा समझना बात को लेकिन संत कहते हैं तुम इस बात को मान मत लेना मैंने जाना तो मैंने माना तुम जब जानोगे ताजमहल है तभी मानना की ताजमहल है जब ताजमहल के सामने जाकर खड़े हो गए तब मानना ही पड़ेगा कि ताजमहल है संत सिर्फ बताते हैं अपना तुम्हें मानने को बाद नहीं करते कभी संतों ने तुम पर जोर दिया कि तुम मानो संत कहते हैं मैं कहता आंखन


देखे तुम कहते कागज की लेखे मैंने जो देखा व मैंने बता दिया तुम मानो ना मानो नहीं मानो तो ठीक क्योंकि चिपक जाओ मानने से और चिपक जाओगे तो बदलाव से बच जाओगे संत कहता है तुम कुछ नहीं करते उसकी इच्छा के बिना पत्ता नहीं हिलता वह पत्ता बनाया भी उसी ने है जिस हवा से हिलता है वह भी उसने बनाई जो ग्रेविटेशन फोर्स खींचता है वह भी उसने [संगीत] बनाया तुम्हारा इसमें क्या है तुम्हारी इसमें सिर्फ दावा है तुम दावा ठोक देते हो कि मेरा है बस यही है तुम्हारा और कुछ नहीं जब मैं अपने भीतर जाने लगा मुझे परमात्मा के आदेश आने शुरू


हुए माना मैंने कभी नहीं ना मैंने इंकार किया बिना जाने ना मैंने माना ना मैंने थोपा ना मैंने इंकार किया जब मैं अपने भीतर जाना शुरू हुआ तो मुझे परमात्मा के आदेश आने शुरू हुए ऐसा कर लो ऐसा करर और मैंने पाया मैं उस व्याख्यान के अतिरिक्त अगर कुछ करने की चेष्टा की तो हो नहीं सका फिर मैं समझ पाया इन बातों के अर्थ के वह ही करता है कठ पुतली अगर चाहे कि मैंने ऐसे नहीं नाचना जैसे नचाते हैं यह धागे तो नाचना ही पड़ेगा सोचते रहो जिस उंगली से बंदी है कठपुतली धागे से वह उंगली ऊपर उठेगी तो कठपुतली को ऊपर उठना पड़ेगा वह उंगली नीचे


जाएगी तो कठपुतली को नीचे जाना पड़ेगा जड़िया पिंगा चढ़ना समान उ ठ जो पींगे होती है पींगे झूला झूला झूलते हैं य श्रावण में झूलती है स्त्रिया तो पंजाबी कहावत है जड़िया पिंगा चढ़ना आसमान जो आसमान में चढ़ते हैं उन्ना हेठा होना वो नीचे आते हैं य विधान है परमात्मा का यह बात कहने की नहीं है तो संत कहते हैं लिखा लिखी के है नहीं देखा देखी बात संत जो देखता है वह बोलता है तुम लिखी हुई पढ़ लेते हो और उसको बोलकर कह देते हो ये है यह उल्टा मसला है सूफी फकीर बायजीद का पुत्र मर गया था बहुत रोया उसके गले लग के रोया माथा चूमा गले


से लगाया बार-बार विदा करने को नहीं आता था ऐसा लाभ तो आम गृहस्ती व्यक्ति भी नहीं करता वह संत था सूफी फकीर बड़ा बर लाभ किया आसपास खड़े लोग भी रोने लगे बहुत से फॉलोवर्स थे उसके ज दफन कराए अंतिम संस्कार हो गया तो उसकी धर्म पत्नी पूछने लगी भाई जी जितना तुम रोए मैं स्वपन में भी नहीं सोच सकती थी कि तुम इतना रो तुम तो बहुत रोए गले लग लग कर उसको विदा करने में नहीं आते थे घंटों लगा दिया तुमने मुझे शक हुआ बाई जीत तुम्हारी फकीरी बाजत कहते अगर वह रुलाएगा तो मैं रोंगा मेरी क्या जरूरत मैं ना र अगर वो ना रुलाता


तो मैं नहीं रोता लेकिन उसने मुझे इतना रुलाया तो मैं रोया जरूरत मेरी कोई नहीं ना रोने की ना ना रोने की जितना रुलाया उतना मैं रोया उसकी धर्मपत्नी अश्वस्त ये बायजीद अपने लिए नहीं नहीं कहते बाजत समस्त संसार के लिए कहते हैं अगर समस्त संसार आज इतना दुखी है तो इसी कारण से दुखी है उसके वाणी में रह नहीं पाता संत यह नहीं कहता अगर तुम्हारा कोई प्यारा चला गया तुम रोगे नहीं यह पहचान है नहीं यह कोई पहचान नहीं पहचान यह है कि वो अगर एगा तो तुम रोगे और जरूरी नहीं कि तुम रो वो नहीं रा जाएगा तो तुम नहीं रोगे बस तुम करोगे वही जो व करवाता है


मेरी यह तो य मेरी तो यही अर्जी कर वही जो तेरी मर्जी पलट सभी संतों ने एक ही बात उलट पुलट ढंग से कहे लेकिन एक बात में समानता जरूर थी कि कता तुम नहीं हो कत वह अज्ञात विराट है तुम में तो इतनी भी शक्ति नहीं तुम में तो इतनी भी लकत नहीं कि तुम एक जर्रे को पैदा कर सको और जरा हवा कहो पानी क हो या माटी का हो तुमहे इतनी भी काबिलियत नहीं तुम इतने भी शक्ति संपन्न नहीं हो एक जर्र भी किसी चीज का बना दो लेकिन दावा ठोक सकते हो यह महल मेरा यह अटारी मेरी यह कुर्सी मेरी ये मेरा नहीं यहां दावे किसी के नहीं रहते एक दिन टूट जाते


हैं शीशा हो या दिल [संगीत] हो आखिर टूट जाता है टूट जाता है टूट जाता है टूट जाता [संगीत] है शीशा हो या दिल हो आखिर टूट जाता है तुम चले ही जाते हो एक दिन दावेदारी धरी रह जाती है मैंने बड़े लोग देखे जिन्होंने दावा किया था अदालतों में दावे चलते रह गए और वह कब्रों में दफन हो गए व घाटा की ज्वाला में खो गए राख बन गए चिताओं में भसम हो गए मैंने ऐसे बहुत से लोग देखें दावा करते थे किताबें खोलकर लुकमान जैसे कि मैं टाल दूंगा सब कुछ मैं हूं नथिंग इज इंपॉसिबल बोनापार्ट नेपोलियन अक्सर य बात कहा करता नथिंग इ इबल


इंपॉसिबल वर्ल्ड इज नॉट फाउंड इन माय डिक्शनरी मेरे शब्द कोश में असंभव शब्द नाम की कोई शेष नहीं करते थे दावे किताबें खुलकर यह दवा हरगिज ना खाली जाएगी लेकिन एक दिन उनकी दवा तो खाली चली ही जाती है दावा करने वा वाले खुद भी चले जाते हैं दावा करने वाले खुद भी दफन हो जाते हैं दहन हो जाते हैं बस यह बात अगर व्यक्ति के जीते जी समझ में आ जाए अब अंतिम शब्दों को ठीक से समझ लेना उसको ही मरजी वड़ा कहते हैं जीते जीज बात समझ में आ जाए ये घड़ी हरगिज ना टाली जाएग मौत आएगी लुकमान कहता है यह दवा हरगिज ना खाली जाएगी और मृत्यु कहती है यह घड़ी हरगिज ना


टाली जाएगी इन दोनों का झगड़ा है जीत जाती है मौत जीत जाता है परमात्मा तुम खाली हाथ तुम्हें जाना पड़ता है छाती पीटो या ना पीटो कोई फर्क नहीं पड़ता होता है वही जो मंजूरे खुदा होता है मुद लाख बुरा चाहे भी तो क्या होता है तो इन दो बातों को कैसे मला ऐसे मिलाए भीतर उतर के देखो कौन करता है उसके फरमान आते हैं और वही होता है उसके फरमान आते हैं और वही होता है बड़े मजे की बात है तुम उसको टाल नहीं सकते और ये आचार्य कहेंगे यह तो भाग्यवादी व्यक्ति तो फिर कर्मवाच्य मेरे पास कंगाल भी आए राजा भी आए मैं खुद भी राजा रहा उस बात को छोड़ दो वह तो मत


मानू क्योंकि वह मैंने जाना अपने पिछले जन्मों में जाना मैं राजा था मैंने सब भोगा लेकिन कुछ नहीं मिला लेकिन वह बात तुम मत मानो तुम इसी जन्म की बातों को मानो मैंने सब भोगा भोगा और पाया भोग में सुख नहीं भोग में दुख यह सृष्टि बनाई तो मैंने लेकिन यह सृष्टि सुख नहीं देते बस यह परीक्षा की एक पाठशाला है तुम देखो तो भोग के देखो सुख मिलता है एक बार की लगेगा सुख मिलता है लेकिन अंतत लग का नहीं मिलता बिल्कुल यह उस दवा की तरह जो पहले मीठी लगेगी कई दवाई तुम्हें ऐसी मिलेंगी जो पहले मीठी लगेगी लेकिन बाद में जीवा के


टेस्ट बड सब कड़वे हो जाते हैं जिसको जीते जी पता चल गया मरना ही सत्य है और तुम यह शब्द बोलते हो मर जाने के बाद और बुद्ध समझदार है बुद्ध को पता चल जाता है जीते जी यह घड़ी हरगिज ना टाली जाए भीतर जाओगे तो उसके फरमान पाओगे और वैसा ही होते पाओगे तो पता चलेगा कि उसकी इच्छा के बिना पता भी नहीं ता यह अनुभव की बात है शब्द तर्क विश्लेषण एनालास से य सिद्ध नहीं किया जा सकता कुछ ऐसा नहीं कुछ उदाहरण नहीं अनुभव की बातें उदाहरणों से सिद्ध नहीं की जा सकती अनुभव की बातें देखने से ही सिद्ध होती हैं लाख उदाहरण दूं मैं कि सूरज है अंधे को अंधे को समझ नहीं


आएगा क्यों आंखें नहीं है और आंखें हो तो मुझे कहने की जरूरत नहीं है कि सूरज है फिर वह कहेगा मैं अंधा हूं क्या मुझे दिखता तो है अंधे व्यक्ति को हुई उदाहरणों की आवश्यकता पड़ती है जिसके आंखें हैं उसको उदाहरणों की जरूरत नहीं होती कि हरा ऐसा पीला ऐसा गरवा ऐसा लाल ऐसा पीला ऐसा उदाहरण की जरूरत नहीं पड़ती उसे और अंधों को तुम कुछ भी उदाहरण दे लो वो नहीं समझ पाएंगे क्योंकि बुनियादी चीज नहीं है क्या आंखें नहीं तो तुम्हें कोई उदाहरण तो नहीं काम आएगी संतों ने कोशिशें की लेकिन कोशिशें सब बकार निकली क्योंकि तुम्हारे प्रश्न यथावत बने हुए


हैं और संतों ने नगन आंखों से देखा जो करता है वही करता है तुम कहोगे नहीं फिर हम क्यों तुम उसके कारण हो उसने तुम्हें बनाया तुम कहोगे हमें नहीं पता हमने बनाया यह मकान बनाया यह कार बनाई ये गाड़ी बनाई यह सब हमने बनाया यह धन बनाया य सब हमने बनाया बस यही फर्क पड़ जाता है यह अनुभव की बात है जो करता है वही करता है अत्यंत सत्य है लिखा लिखी की है नहीं देखा देखी बात देखकर ही जान पाओगे उदाहरण काम नहीं आएंगी सत्य में तो तुम भीतर से तब समझ पाते हो जब अपनी आंखों से देख लेते हो जब तक आग में हाथ ना डालो तब तक किसी एक तल पर यह भाव बना ही रहेगा


शंका की नहीं जाने इसका ही जल गया हो य तुम्हें पता नहीं 99 प्रत अब तुम मान लोगे एक प्रतिशत कहीं ना कहीं यह अंदेशा बना रहेगा भीतरी मन के किसी कोने पर कि शायद मेरा हाथ ना जले इसका जल गया अनुभव की बातें हैं उदाहरणों से नहीं बताई जांगी यह सत्य है सिर्फ संत जानता है और संत कहता है मेरी बातों को मानना मत वही संत है जो कहता है मेरी बातों को मानना और मानते ही चले जाना बस करते ही चले जाना राधे राधे बेड़ा पार हो जाएगा डूब जाओगे तुम देख लेना धन्यवाद श्री कृष्ण [संगीत] गोविंद हरे [संगीत] मुरारी हे नाथ नारायण


वासुदेवा श्री कृष्ण गोविंद हरे मुरारी हे नाथ नारायण वासुदेवा पितु मात स्वामी सखा हमारे पितु मात स्वामी सखा हमार हे नाथ नारायण वासु देवा श्री कृष्ण गोविंद हरे मुरारी हे नाथ नारायण वासुदेवा पितु मात स्वामी सखा हमारे पितु मात स्वामी सखा हमारे हे नाथ नाराय [संगीत] वासुदेवा अत्र पुष्पम फलम [संगीत] यम य मा भक्तो [संगीत] प्रति हे नाथ नारायण वासुदेवा हे नाथ नारायण न वासुदेवा श्री कृष्ण गोविंद हरे मुरारी हे नाथ नारायण वासुदेवा पत्र पुष्पम फलम तोय ये महा भक्ता [संगीत] प्रति तद अहम त [संगीत] प्रतम श में प्रत


मन श्री कृष्ण गोविंद हरे मुरारी [संगीत] हे नाथ नारायण वासुदेवा श्री कृष्ण गोविंद हरे मुरारी हे नाथ नारायण वासुदेवा पितु मात स्वामी सखा हमार पितु मात स्वामी सखा हमारे हे नाथ नारायण वासुदेवा हे नाथ नारायण वासुदेवा श्री कृष्ण गोविंद हरे मुरारी हे नाथ नारायण वासुदेव [संगीत] ओ धन्यवाद


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