कामवासना से कैसे निपटा जाए ।
आज के इस सत्संग में बात करेंगे ऐसी समस्या की जिससे सारा संसार दुखी है, मैं बात कर रहा हूं कामवासना की।100 रानियां के साथ रहते रहते सम्राट अपने जीवन से परेशान हो चुका था उसे अपनी युवावस्था के वह दिन याद हो आए जब उसके मां में स्त्रियों के प्रति कोई आकर्षण नहीं था जब उसे कम शक्ति और कामवासना के बड़े में पता तक नहीं था उसे समय को याद करके राजा की आंखों में आंसू ए गए कितना ऊर्जावान कितना जोशीला और कितना ताजगी से भारत हुआ रहा करता था और आज वो सम्राट बुध हो चुका था
लेकिन बुध होने के बाद भी वो अपनी कामवासना से छुटकारा नहीं का सका था यूं तो उसने हजारों युद्ध जीते थे लेकिन अपने मां पर वह आज तक विजय प्राप्त नहीं कर पाया था अपनी कामवासना के सामने उसने अपने घुटने टेक दिए थे अब तो सम्राट को चिंता होने लगी थी क्योंकि वह बुध हो चुका था और किसी भी वक्त उसकी मृत्यु हो शक्ति थी लेकिन मृत्यु को अपने सामने देखकर जहां पर लोग मोक्ष और मुक्ति की बातें सोचते हैं वहीं पर वो सम्राट कामवासना के विचारों से गिरा राहत था एक सो रनिया थी उसकी एक से बढ़कर एक हसीन और हर रानी के साथ उसने बच्चे भी पैदा किया थे इतना कम भोग भोगनी के बाद भी उसका मां चटपटा तक क्यों है क्यों उसमें अब भी अश्लील विचार आते रहते हैं सम्राट सोच में पद गया की क्या करने के बाद भी यह कामवासना का बोझ में अपने साथ लेकर यहां से जाऊंगा
सम्राट आत्मा के सिद्धांत को माने वाला था इसीलिए उसने सोचा की अगर मैंने अपनी कामवासना से अभी छुटकारा नहीं पाया तो मेरी आत्मा ना जान कब तक यूं ही भटकती रहेगी मुझे अपनी आत्मा को मुक्त करने के लिए इन कामवासना के विचारों को यही पर छोड़ देना होगा सम्राट दिन रात जैसी चिंता में डूबा राहत था की किस प्रकार मैं अपनी कामवासना से छुटकारा का सकता हूं और इसीलिए एक दिन उसने अपने राज महल में सभी विद्वानों की एक सभा बलाई स्वाभाविक रूप से सभा में चर्चा का विषय कामवासना ही रखा गया था सम्राट ने अपने मंत्री से पूरे नगर में घोषणा करवा दी थी की जो भी विद्वान राजा के मां को संतुष्ट कर पाएगा वो पूरे जीवन कल के लिए राजा का सलाहकार बनकर रहेगा इसीलिए नगर के सारे विद्वानों में एक होड ग गई थी मंत्रिमंडल के द्वारा ते किया गए दिन नगर के सारे विद्वान राजमहल में पहुंच गए
कोई अपने हाथ में वेद लिए हुए था तो किसी के हाथ में उपनिषद थे ज्यादातर विद्वान राजा को वेद और उपनिषदों के मध्य से संतुष्ट करना चाहते थे सभा में तारक वितरक शुरू हुए सम्राट ने सबसे पहले सवाल पूछा की ब्रह्मचर्य का असली मतलब क्या होता है कुछ विद्वानों ने जवाब दिया की जी इंसान ने अपने जीवन में कभी भोग नहीं किया होता वही असली ब्रह्मचारी होता है दूसरे विद्वानों ने इस बात का विरोध करते हुए बताया की हो सकता है किसी इंसान ने भोग किया हो लेकिन वर्तमान में अगर वो भोग का त्याग कर चुका है तो वो भी ब्रह्मचारी ही कहलाता है और वास्तविकता में वही ब्रह्मचारी होता है जो भोग करने के बाद उसका त्याग कर देता है वही ब्रह्मचारी कहलाता है सम्राट को किसी विद्वान के उत्तर से संतुष्टि नहीं हो रही थी और इधर विद्वान आपस में तारक वितरक करने पर लगे हुए थे कुछ ही डर में वहां पर एक बहुत ही अनूठा विद्वान पहुंच वह अपने साथ बेहद खूबसूरत दो युवतियों के लिए हुए था उसे विद्वान ने वहां पहुंच से ही पहले तो डेरी से आने के लिए सम्राट से छम मांगी उसको देखकर बाकी के सब विद्वान हंसने लगे एक विद्वान ने सभा में खड़े होकर कहा की जो इंसान खुद कामवासना से ग्रस्त हो वो दूसरे को कामवासना से छुटकारा कैसे दिल सकता है इस पर इस विद्वान ने मुस्कुराते हुए उससे पूछा की तुम्हें ऐसा क्यों लगता है की मैं कामवासना से ग्रस्त हूं उसे विद्वान ने कहा की तुम हमें अंधा समझते हो क्या हमें बेवकूफ समझते हो तुम यहां राजमहल में दो युवतियों के साथ प्रवेश कर रहे हो इसका मतलब क्या होता है इसका अर्थ तो सीधा सीधा यही है की तुम एक कामवासना से ग्रस्त आदमी हो क्या मैं गलत का रहा हूं उसे विद्वान ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया की महाशय जिन यूतियों की तुम बात कर रहे हो दोनों मेरी बहाने हैं और वह भी मेरी ही तरह कामवासना की गहरी समझ रखती हैं इस विद्वान ने सम्राट को संबोधित करते हुए कहा की है राजन असली ब्रह्मचारी वही होता है जिसकी नजरों में एक पुरुष और एक महिला का अंतर है गया हो जब किसी इंसान की कामवासना खत्म हो जाति है जो पूर्ण रूप से ब्रह्मचारी हो जाता है उसके लिए सभी का शरीर एक इंसान का शरीर होता है उसके अंदर किसी महिला को देखकर कामवासना के विचार उठाना तो दूर हो तो भेद भी नहीं कर पाएगा की यह एक महिला है उसे ब्रह्मचारी के लिए हर एक जीव आत्मा एक प्रकार की होती है शारीरिक रूप से वो उनमें कभी भी भेद नहीं करेगा उसे विद्वान ने आगे बताया की जो भी विद्वान यहां सभा में उपस्थित हैं उन सभी को मेरे साथ यह दो युवाकियां दिखाई तो यह तो स्पष्ट हो गया की यहां पर कोई भी असली ब्रह्मचारी का मतलब या अर्थ नहीं समझना है सम्राट को यह विद्वान बड़ा ही अनूठा लगा उसने ना तो कोई वेद पढ़े ना कोई उपनिषद का ज्ञान दिया वह तो वही बता रहा था जो स्वाभाविक रूप से आदमी की समझ में आता है इसीलिए सम्राट ने प्रभावित होकर अगला सवाल पूछा की आखिर एक इंसान को ब्रह्मचर्य का पालनपुर करने की क्या जरूर है जब वह भोग करके जीवन का आनंद उठा सकता है तो वो क्यों ब्रह्मचर्य का पालनपुर करें इस पर उसे विद्वान ने सम्राट से एक सवाल किया उसने पूछा की सम्राट मुझे एक बात बताओ की एक पेड़ ज्यादा ताकतवर होता है या फिर एक बी सम्राट ने उत्तर दिया की एक पेड़ एक बी से ही तो जन्म लेट है तो इस प्रकार तो एक बी एक पेड़ से ज्यादा ताकतवर हुआ विद्वान ने सम्राट से कहा, "सम्राट, इस तरह हमारे शरीर में भी शक्ति के रूप में बहुत सारे बीज होते हैं, जिनमें ऊर्जा समाई होती है जो हमें आनंद का स्रोत प्रदान करती है। लेकिन जब हम कामवासना में फंसकर अपने इन बीजों को नष्ट करते रहते हैं, तो हमारी शारीरिक और मानसिक शक्ति कमजोर हो जाती है। यह नष्ट होने से व्यक्ति थका हुआ, आलसी और ऊर्जा से भरपूर महसूस नहीं करता। याद रखिए, हमारे भजन से रक्त बनता है, रक्त से मांस और हड्डियां, और अंत में वही बीज जो हमारी शक्ति का स्रोत होते हैं। अगर ये बीज नष्ट हो जाते हैं, तो हमारा शरीर कमजोर और थका हुआ हो जाता है।"
विद्वान ने आगे समझाया, "इसलिए कामवासना के विचारों को नष्ट करना एक गलत तरीका है। ब्रह्मचर्य का पालन करने से इन बीजों की शक्ति हमारे भीतर समाहित हो जाती है, जो हमारे चेहरे पर तेज़ और शरीर को रोगों से बचाता है। यही ऊर्जा जब ध्यान के माध्यम से सही तरीके से प्रवाहित होती है, तो यह आनंद का स्रोत बन जाती है।"
सम्राट ने फिर पूछा, "कामवासना से छुटकारा कैसे पाया जाए?" विद्वान ने उत्तर दिया, "सम्राट, जो बुद्धिमान होता है, वह यह जानता है कि कामवासना रूपी 'केन का पानी' जितना ज्यादा पिएगा, उसकी प्यास उतनी ही बढ़ेगी। उसकी प्यास कभी नहीं बुझेगी। इसलिए या तो वह इस पानी को पीता ही नहीं, या अगर कभी मजबूरी में पीना पड़ता है, तो वह केवल थोड़ी मात्रा में ही पीता है।"
विद्वान ने सम्राट से कहा, "राजन, आपने कई रानियों से विवाह किया, लेकिन आपने महसूस किया होगा कि जिनकी प्यास सच में बुझनी होती है, उनकी प्यास एक ही जगह पर शांत होती है। लेकिन जिनकी प्यास अधूरी होती है, वह चाहे कितनी भी स्त्रियों के साथ भोग कर लें, फिर भी उनका मन शांत नहीं होता।"
विद्वान ने आगे कहा, "अगर आपके जीवन का लक्ष्य स्पष्ट नहीं है, तो आप भोग की वस्तुओं में फंस सकते हैं। लेकिन अगर आपका लक्ष्य स्पष्ट है, तो आप अपना ध्यान उसे पूरा करने में लगाएंगे, न कि भोग करने में। सम्राट, आपने सुना होगा कि 'खाली दिमाग शैतान का घर होता है', इसीलिए किसी व्यक्ति को अपने जीवन का लक्ष्य स्पष्ट रूप से दिखना चाहिए।"
"शुरुआत में, कामवासना हमारे विचारों से उत्पन्न होती है। अगर हम अपने विचारों को उस दिशा में लगाते हैं, जिससे हमारा लक्ष्य पूरा हो सके, तो हमारे मस्तिष्क में कामवासना के विचारों के लिए कोई स्थान नहीं रहेगा।" विद्वान ने सम्राट को चेतावनी देते हुए कहा, "सम्राट, याद रखें, भोग करने से ज्यादा खतरनाक कामवासना के विचार होते हैं। ये हमारे मानसिक संतुलन को बिगाड़ देते हैं और हमारी दृष्टि को भ्रमित कर देते हैं।"
फिर विद्वान ने सभा में एक कहानी सुनाई:
"एक बार दो सन्यासी भिक्षा मांगकर अपने आश्रम लौट रहे थे। उनके आश्रम का रास्ता नदी के किनारे से होकर जाता था। एक दिन, जब वे भिक्षा मांगकर वापस आ रहे थे, उन्होंने नदी के किनारे एक महिला को बैठा देखा। महिला ने उनसे पूछा, 'क्या आप मुझे नदी के पार करा सकते हैं?'"
"पहले सन्यासी ने मना कर दिया, क्योंकि उसने सोचा कि 'मैंने ब्रह्मचर्य का व्रत लिया है, मैं किसी स्त्री को कंधे पर नहीं उठा सकता।' लेकिन दूसरे सन्यासी ने मुस्कुराते हुए महिला को कंधे पर बिठाया और उसे नदी के पार करवा दिया।"
यह घटना दूसरे सन्यासी को खटक गई, और वह विचार करने लगा कि एक ब्रह्मचारी को ऐसा करना नहीं चाहिए था।कंधे पर महिला को बिठाकर उसे नदी के किनारे तक ले जाने के बाद, जब वह दूसरे सन्यासी के पास लौटे, तो उस सन्यासी ने कहा, "तुमने गलत किया। तुम्हें उस महिला को कंधे पर नहीं उठाना चाहिए था और उसे नदी के पार कराना एक बड़ी गलती थी। मैं इस बात की शिकायत गुरु जी से करूंगा।" उस पर विद्वान हंसते हुए बोले, "मैं तो उसे कंधे से उतार चुका हूं, लेकिन शायद तुम अभी तक उसे अपने मन से नहीं उतार पाए हो।"
सभा में बैठे सभी लोग ध्यान से यह कथा सुन रहे थे। फिर विद्वान ने सम्राट से कहा, "सम्राट, इसी तरह हम भी अपने मन में अनगिनत बोझ लेकर चलते रहते हैं। कामुक विचार हमारे मन को गंदा करते हैं। जैसे एक गंदा नाला पूरी नदी को गंदा कर देता है, वैसे ही हमारे मन में गंदे विचारों से जीवन भी अपवित्र हो जाता है। अगर तुम जीवन में आनंद और ऊर्जा का अनुभव करना चाहते हो, तो अपने मन में पवित्र विचारों का रास्ता अपनाओ।"
विद्वान ने आगे कहा, "अगर जीवन में किसी वस्तु का भोग पूरी जागरूकता से किया जाए, तो मनुष्य उसे उसकी नित्यता के रूप में समझ पाता है। ऐसे में वह समझ जाता है कि यह वस्तु उसे हमेशा के लिए आनंद नहीं दे सकती और परमानंद के लिए कोई और रास्ता अपनाना होगा। जब मनुष्य यह समझने लगता है, तो कामवासना के विचार स्वाभाविक रूप से खत्म होने लगते हैं। इसलिए, होशपूर्वक भोग करना सीखो, ताकि तुम उसकी नित्यता समझ सको।"
सम्राट ने पूछा, "होशपूर्वक भोगने से आपका क्या मतलब है?" इस पर विद्वान ने कहा, "जब एक व्यक्ति अपने कर्म को पूरी जागरूकता से करता है, तो वह उसे सही तरीके से करता है और उसका मन उस कर्म में पूरी तरह से लगा होता है। इसके विपरीत, जब किसी व्यक्ति का चित विचलित होता है, तो वह कर्म अधूरा रहता है। जैसे जब कोई व्यक्ति दान देता है, लेकिन उसकी पूरी श्रद्धा उसमें नहीं होती, तो वह दान का सही फल नहीं पा सकता। अगर कोई भगवान से प्रार्थना करता है, लेकिन उसमें पूर्ण भक्ति नहीं होती, तो वह प्रार्थना पूरी नहीं होती।"
विद्वान ने आगे समझाया, "जब तुम जाग्रत अवस्था में रहते हो और अपने कर्म को पूरी तरह से करते हो, तो तुम्हारा ध्यान उस कर्म पर होता है। जागरूकता के साथ किया गया कर्म कभी पछतावा नहीं लाता। पश्चाताप तभी होता है जब हम सोते-सोते किसी कर्म को करते हैं।"
"कामवासना से छुटकारा पाने के बजाय," उन्होंने कहा, "यह सोचो कि तुम उसे होशपूर्वक जागते हुए कैसे भोग सकते हो। एक बार जब तुम इसे पूरी जागरूकता से अनुभव करोगे, तो तुम समझ पाओगे कि वह कर्म तुम्हारे भीतर क्या बदलाव ला रहा है। अगर वह तुम्हारे लिए सही होगा, तो तुम उसे जारी रखोगे, अगर वह गलत लगेगा तो तुम उसे छोड़ दोगे। इस प्रक्रिया में तुम्हें संकल्प लेने की जरूरत नहीं पड़ेगी, क्योंकि जागरूकता खुद ही तुम्हारे निर्णय को सही दिशा में मार्गदर्शन करेगी।"
विद्वान ने अपनी बातों को और गहराई से समझाते हुए कहा, "सोया हुआ इंसान रास्ते पर पड़े सांप को भी नहीं देख पाता, और जब वह उस सांप के ऊपर से चलता है तो उसे तब एहसास होता है। उसी तरह जब मनुष्य अपने विचारों और योजनाओं में उलझा रहता है, तो उसका ध्यान अपने कार्य पर नहीं होता।"
"लेकिन जब वह समझ जाता है कि वह कितनी गहरी नींद में है, तो ध्यान का उदय होता है। जागरूकता तभी आती है जब वह यह महसूस करता है कि वह सोया हुआ है। जाग्रत अवस्था में, उसे अपने कर्म की नित्यता समझ में आने लगती है।" विद्वान ने कहा।
सम्राट इस विद्वान की बातों से बहुत प्रभावित हुआ और उसने इस विद्वान को अपने जीवन का सलाहकार बना लिया।
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