Incredible facts about SHIVA! हम ईश्वर से कैसे जुड़े हुए हैं? | DIKSHA | INERTIA |

 

Incredible facts about SHIVA! हम ईश्वर से कैसे जुड़े हुए हैं? | DIKSHA | INERTIA |



बाबा जी को कोटि कोटि प्रणाम मेरे गांव के तीन तरफ तीन संत पुरुषों का स्थान है नंबर एक 10 किलोमीटर उत्तर दिशा में मोती गिरी बाबा नंबर दो 5 किलोमीटर पूर्व दिशा में स्वामी बाबा नंबर तीन दक्षिण दिशा में दो किलोमीटर जगन्नाथ बाबा इन तीनों में से कौन परम सिद्ध थे जिनकी समाधि पर जाकर बैठने से पूर्ण लाभ प्राप्त हो जाता है यह प्रश्न मैंने इसलिए उठाया यह प्रश्न इनर्टिया से संबंधित है और आजकल जो प्रसंग चल रहा है वह इनर्स का है अब ध्यान से सम समझना इस बात को जो व्यक्ति जितना गहरा होगा वह उस इनर्टिया के करीब होगा और उसकी रेंज ब्रॉडकास्टिंग रेंज


उतनी बढ़ जाएगी जो अपने भीतर जितना गहरा जाएगा ब्रॉडकास्टिंग रेंज उतनी बाहर बढ़ जाएगी जो बिल्कुल इनर्टिया के भीतर चला जाएगा स्थिति प्रज्ञ जिसे कह देते हैं स्थिति प्रज्ञता स्थिति प्रज्ञता जो ईश्वर के उस तल पर चला गया जिसने निर्माण किया सारी सृष्टि का फिर उसकी ब्रॉडकास्टिंग पावर समस्त विश्व में हो जाएगी वह संसार के कण कण में वजूद होगा उसका जहां भी पुकारोगे वहां वह आपकी बात सुनेगा अब समझना बहुत से प्रश्न बीच में कवर करूंगा एक प्रश्न है कि शिवबा आप कहते हैं कि शिव कैलाश में बैठे हैं क्या वो भी बुद्ध की


तरह करुणा वश कुछ वासनाओं को बचाकर शेष रखें कि लोगों का उद्धार हो सके या कोई और बात है नहीं कोई और बात है बुद्ध अपनी वासनाओं को बचाकर लोगों को उपलब्ध होते हैं और लोगों को सही मार्ग दिखाते हैं ये बुद्ध का काम है शिव अब समझना थोड़ा सा मुश्किल है इसलिए बुद्धि हों को सूक्ष्म कर लो जैसे एटॉमिक पावर प्लांट होता है वहां से कनेक्शन जाता है सीधा आजकल तो तारों के द्वारा जाता है वक्त आ जाएगा जल्दी क्योंकि परमात्मा की सर्जना में ऐसी व्यवस्था है कि जहां पर बिजली पैदा हो वहां से बिना रेंज के दूसरे स्थान पर बिजली शिफ्ट की जा सके यह वक्त आ जाएगा


जल्दी ही सांस इसे खोज लेग तारों की आवश्यकता ना पड़े जैसे आपने देखा होगा पहले जमाने में जिसके टेलीफोन लगता था उसके दो गोल ठप्प से लग जाते थे गोलाकार और उसमें से तार आ के फस जाती थी उसमें से कनेक्शन होता था तारों से लेकिन आज क्या हुआ आज इंटरनेट है कोई तार की आवश्यकता नहीं जहां से नंबर कमाओ उसी का मिलेगा ऐसे ही बिजली की विद्युत की पावर की व्यवस्था होने वाली है जल्दी ही साइंस खोज लेगी प्रोड्यूस करना पड़ेगा बिजली को वह एटॉमिक से हो वह कोयले से हो या किसी भी चीज से हो सीधी शिफ्ट हो जाएगी सेंटर सेंटर से


सेंटर सेंटर से सेंटर और अपने घरों में आ जाएगी आप इस अवस्था को समझ गए ना ऐसा ही परमात्मा की एक व्यवस्था है क्या नहीं है उसके संसार में क्या नहीं है विराट संसार और अगर तुम मार्कस जैसे लोग कहते हो कि वह है नहीं तो ठीक कहते हो क्योंकि जो चीज खोपड़ी से बाहर हो जाती है तुम कह देते हो वो है नहीं यह मनुष्य की प्रकृति है क्योंकि मनुष्य अपने आपको कभी अज्ञानी साबित नहीं करना चाहता जबकि मनुष्य से बड़ा ज्ञानी कोई है नहीं जो ज्ञान का भ्रम पालता है उससे बड़ा अज्ञानी कौन हो सकता है परमात्मा का कनेक्शन शिव के साथ है


अब मैं बहुत ज्यादा आपको समझाना सकूंगा शब्दों में इशारों से समझ लेना और वह परमात्मा सर्वव्यापी है और इस धरा का शिव एक है दूसरी धरयो के अलग-अलग शिव है उनके सबके अपने कनेक्शन है विराट के साथ अब यह थोड़ी गहरी व्यवस्था आ गई इसको एक बार समझ लेना शायद कभी इससे ज्यादा खुल के बात में कर सकूं परमात्मा से शक्ति लेके प्रत्येक ग्रह का शिव और ग्रह एक नहीं है ग्रह अनंत है अनंत का मतलब अगर खरबों भी कह दिए जाए तो उचित नहीं होगा ज्यादा है इससे चलो प्रत्येक ग्रह का अपना एक शिव है शिव तक जाता है परमात्मा का कनेक्शन और शिव आगे ट्रांसफॉर्म करता है


ट्रांसमिट करता है ब्रॉडकास्ट करता है शायद समझ में आ गई होगी बात परमात्मा फेंकता है अपनी शक्ति को शिव के पास ज्ञान को प्रत्येक ग्रह का अपना शिव है इस ग्रह का अपना शिव है पृथ्वी का और शिव बांटते हैं आगे अब यहां तक आपकी समझ में आ गई होगी आपने देखा नहीं इसलिए सिर्फ मान लेना कि यह व्यवस्था क्या है आपने कहा ये तीन संत है एक दो किलोमीटर पा किलोमीटर 10 किलोमीटर कौन सा संत सही है किसकी समाधि पर जाकर बैठा जाए प्रश्न तो ठीक है लेकिन कोई भी व्यक्ति यह जान नहीं सकता कि कौन कितना गहरा जस कौन कितना गहरा इनर्स में प्रवेश किया


था जो जितना गहरा अपने भीतर की इनर्स में प्रवेश कर जाएगा उसकी ब्रॉडकास्टिंग पावर उतनी ही हो जाएगी थोड़े से डिफिकल्ट शब्द है अगर एक बार में समझना है तो दो तीन बार सुन लीजिए जितना गहरा व्यक्ति चला गया अपने भीतर इनर्स के करीब उस सेंटर को आज मैं इनर्स कह रहा हूं जिसे मैं सदैव केंद्र कहता हूं आज मैं उसको इनर्टिया कह रहा हूं उस इनर्टिया के करीब व्यक्ति जितना गहरा हो गया करीब हो गया उतना ही ज्यादा प्रगाढ़ ब्रॉडकास्टिंग स बन गया इंस्ट्रूमेंट तो कौन कहां था यह मुझसे मत पूछिए इसका जवाब मैं नहीं दे पाऊंगा लेकिन थोड़ा और समझा दूं


आपसे आप जब यहां आते हो दीक्षा लेने के लिए तो मैं जब दीक्षा देता हूं आपको कनेक्शन दे देता हूं अपने साथ मेरा कनेक्शन आप तक जाता है वायरलेस कोई तार नहीं होती यह धागे बड़े पक्के हैं अदृश्य है प्रेम के धागे कभी देखे हैं वो दिखता नहीं प्रेम लेकिन धागे बड़े पक्के होते हैं सच्चा प्रेम कोई तार नहीं जाएगी वहां तक लेकिन तागे बड़े पक्के होंगे प्रेमी प्रेमिका से मिलने के लिए प्रेमिका प्रेमी से मिलने के लिए सभी हदें क्रॉस कर देते हैं सोनी कच्चे घड़े में तूफानी रात में कच्चे घड़ पर सवार हो जाती है किसी भी आशिक की बातें


देखो प्रेम से बंधा हुआ वह अपनी जिंदगानी की फिक्र नहीं करता क्यों उसे कुछ विराट दिख गया अपने अस्तित्व से पार उसे कुछ दिख गया जो बड़ा प्यारा है जो बड़ा मैग्नेटिक है जो खींचता है अपनी तरफ एक दूसरे में वह नजर आने लगा यह बंधन नहीं है यह मैग्नेटिक पावर है लेकिन ऐसा बांधती है जैसे धरती धरती का गुरुत्वाकर्षण बल ग्रेविटेशनल फोर्स किसी को दिखाई दिया नहीं दिखाई देता लेकिन महसूस किया जाता है जब आप चीज को ऊपर उछलते हो तो नीचे आ जाती है ऊपर से गिराते हो नीचे आ जाती है इट इज ग्रेविटेशनल फोर्स बस इसका आभास हो सकता है ऐसे ही


परमात्मा दिखाई नहीं पड़ता बहुत से मूर्ख कह देते हैं अगर परमात्मा है तो दिखाओ मैंने कहा गुरुत्वाकर्षण बल है तो दिखाओ कहते नहीं वो तो अनुभव की बात है तो यह भी अनुभव की बात है जब उसकी बनाई हुई चीज अनुभव की बात है तो वह इतना विराट जिसने यह अदृश्य शक्ति पैदा कर दी वह कैसे दिखेगी तुम्हें जैसे गुरुत्वाकर्षण बल देखा नहीं जाता वैसे गुरुत्वाकर्षण बल को बनाने वाला भी देखा नहीं जा सकता तुम मजे से कह सकते हो नास्तिक हो सकते हो तुम मजे से कह सकते हो कि वह नहीं है लेकिन बात सुनो अगर तुम कहोगे वह नहीं है दसवी मंजिल से छलांग लगाओगे हाठ बाव


टूट जाएंगे मर भी जाओगे वोह है जरा कूद के जो देखते हैं उन्हें पता लगता है संत उन्हें देखते हैं संत अनुभव करता है किसी एक विशेष स्थल पर जाकर और अनुभव करके जब स्पष्ट अपनी नगन आंखों से देखता है अनुभव करता है कि वह सिर्फ है [संगीत] नहीं सब जगह वही है इस शब्द को फिर सुन लो तुम पूछते हो क्या परमात्मा है संत कहता है परमात्मा के सिवा कुछ और है बिन नावे ना ही कोठा वही तो है सब जगह वही है तू ही त तू ही त जता किता तेता नाव जितना पसारा सारा विराट वो वही है नाम का मतलब परमात्मा और आज नाम के ऊपर इतने झगड़े होते हैं कोई कहता है अल्लाह है कोई कहता


है सतनाम गु कोई पांच नाम नाता कोई चार नाम नाता कोई राधे राधे कर इस पागलपन में तुमने जिंदगी के व अनमोल लमहे खो दिए जिसमें तुम आनंद में नाच सकते थे जिसमें आनंद में तुम नहा सकते थे उस भीतर के तीर्थ में स्नान कर सकते थे वोह अनमोल लमहे तुमने गमा दिए ये तो सिर्फ राजनीतिक लोगों की स्वार्थ राज करने की भावना और यह भी राज ना कर सकेंगे राज करेंगे हुकम चलेगा इनका लेकिन तुम्हें पता है ये नकली हाकम है एक असली हाकम भी है जो सदा मौज में रहता है जिसकी खुशहाली कम नहीं होती छीने नहीं जाती और यह नकली हाकम है यह असल की रीस


करना चाहते हैं इसलिए दुखी है ऐसा म सोच लेना मैं अक्सर कहा करता हूं कि पीएम सीएम बनने की कभी इच्छा मत बालना बहुत दुखी हो जाओगे परमात्मा बनने की इच्छा तो तुम्हें घोर नर्क में ले जाएगी कुंभी पाक नर्क जो बनाया पंडितों ने वह कम पड़ जाएगा हाकम बनने की इच्छा ं नरक में ले जाती है और विडंबना यह है कि तुम हाकम बनना चाहते हो सबको तुम हुक्म को मानना नहीं चाहते हुक्म करना चाहते हो हुक्म करना अहंकार का स्वभाव है परमात्मा हुकम नहीं करता परमात्मा इनर्टिया है आज व्याख्या हो रही है नशिया की तो तुम जब यहां आते हो मैं तुम्हें


कनेक्शन दे देता हूं मेरा कनेक्शन सीधा शिव से आता है और जब तक यह पंच भौतिक शरीर है तो शिव से कनेक्शन लेके उसकी आज्ञा लेकर आपको कनेक्शन दे देता हूं आपको कह देता हूं जाओ घर जाओ सुबह उठक क्रियायोग करो ध्यान करो कुछ न करो उसका मतलब है ध्यान करो और अपने भीतर चलते जाओ अपने भीतर उतरते जाओ एक दिन तुम उस इनर्टिया को पा जाओगे इनर्स मतलब पैसिविटी जीवंत पैसी बटी जीवंत निष्क्रियता मर जी वड़ा बहुत बार समझाता हूं एक एक चीज को ताकि आपको साफ हो जाए मैं हाकम तो है लेकिन हुक्म करता नहीं है यह बड़े मजे की बात है हुकम उसके भीतर से आता है उसका


होना हुकम है उसका होना हाकम है हुक्म है अंदर सबको बाहर हुक्म ना कोई नानक हुक्म बझे तो हो में कहे ना कोई और परमात्मा कभी नहीं कहता कि मैं मैं हूं कभी नहीं कहता जबकि वही है सब जगह उसे कहने की आवश्यकता भी कोई नहीं तो तुम जहां आ जाते हो मैं तुम्हें कनेक्शन दे देता हूं मेरी तरफ से बात खत्म हो गए फिर तुम मेरी तरफ भागते हो क्यों भागते हो मैं अच्छी तरह जानता हूं वो उस घड़ी का इनर्टिया का आनंद तुम्हें यहां खींच देता है लेकिन मैंने तुम्हें अपने भीतर जाने का सूत्र दे दिया तुम्हारा मन तुम्हें बाहर घ सड़ता है चलो बाबा के पास चले वहां बड़ा चैन


मिलेगा तो फिर तुमने दीक्षा लेने का कोई लाभ नहीं उठाया कनेक्शन तो यहां से ले गए लेकिन मैंने तुम्हें अपने भीतर जाने को कहा यह कनेक्शन जो दिया यह आपको अपने भीतर उतरने में सहायता करेगा मैं बचना चाहता हूं आपकी तकलीफों से आप आप दुखी मत हो आने जाने में आपको कनेक्शन दे दिया अपने घर में बिजली जलाओ मोटर चलाओ हीटर चलाओ एसी चलाओ लेकिन फिर आप यहां भागते हो वही पुराना रिवाज वही पुराने मन के संस्कार हमारे यहां करीब के अंदर एक चेला होता था सिर मारता था मैंने उससे पूछा कि तो ठीक है चलो यह तो मैं समझ गया लेकिन आप जिनको कुछ बता


देते हो व तकनीक भी मुझे पता है जैसे आप बताते हो जिसकी भैंस काली है वह खड़ा हो जाए आठ 10 खड़े हो जाते हैं नहीं नहीं जिसकी पूंछ भूरी है तो ऐसे तकनीक से ये एक व्यक्ति रह जाता है आखिर में कई बार तो फेल भी हो जाता है आईडिया है तो मैंने कहा यह तो चलो ठीक लेकिन आप यह चौकी भरने को क्यों कहते हो कि सात चौकियां भर दो पांच चौकियां भर दो 11 चौकियां भर दो इसका क्या अर्थ हुआ मैंने कहा देखो अपनी ठगी को पूरा समझा देना मुझे कहता देखो बाबा आपसे क्या छुपा है अगर हम बुलाएंगे सात बार बार पांच बार तो जितनी बार वह आएगा कुछ देके


जाएगा इसलिए बुलाते हैं मैंने कहा हां बस समझा गया ठीक हो गई बात लेकिन भक्तों मैं तो आपको चौकी भरने को कहता नहीं मैं तो आपसे कहता हूं दीक्षा ले गए घर बैठो क्यों तोड़ते हो अभी 20 दिन पहले एक मित्र का फोन आया पुराना मित्र बाबा मैं पहाड़ों वाली के दर्शन करने चला हूं अच्छा मैंने कहा हिल स्टेशन देखने चले हो क घरवाली से तंग होता घरवाली उसकी थोड़ी सी नरम स्वभाव की है वैसे लड़ाई करती रहती है वैसे थोड़ी सी धार्मिक है यह धार्मिक लोग अक्सर लड़ाइयां में रुचि बहुत लेते हैं उसको उससे लड़ा दो उसको उससे लड़ा दो धार्मिक है लेकिन झगड़ा लगड़ा करती


रहती है तो मैंने कहा फिर तंग हो गए तो फिर जब वो तंग हो जाता वो कहता मैं तो पहाड़ों वाली के दर्शन कर रहा हूं असल में वह उससे तंग आ जाता था फिर पांच सात 10 दिन लगाता था माता के नाम का बहाना करके घूम लेता खूब हिल स्टेशन को और कहता माता के दर्शन करे वहां जाता ही नहीं मैंने कहा ये तुम्हारा हिसाब ठीक है और उ को भी बताऊंगा जो बेचारे तंग आ जाते हैं उनको भी बताऊंगा लेकिन अब के दाब उल्टा पड़ गया कहता बाबा मैं चला हूं पहाड़ों वाली के दर्शन करने के लिए म जाओ फिर तंग करने लग गई हां चल जाओ लेकिन अबके धूत ज्यादा थ


रास्ते में कोई टक्कर मार गया राम राम सत है हो गया तो मैं इन चीजों से बचता हूं मेरे पास क्यों चौकी भरने आते हो जब मैं बुलाता नहीं आपको मैंने अपना काम कर दिया ऑनेस्टली ईमानदारी से अब घर बैठो जब आप पहुंचो ग तो पाओगे कि मैं अपने भीतर चला गया जो मिलेगा तुम्हें अपने भीतर से मिलेगा मेरे से मिलेगा राह मेरे से मिलेगा सिर्फ दर्शन किस चीज का कि जब यह व्यक्ति आनंद में बैठ सकता है तो मैं भी बैठ सक कोई कमी नहीं है मेरे में ये शिक्षा लेकर जाना यह पाठ पढ़ के जाना यहां से जब मैं एक स्थान पर बैठ सकता हूं कहीं जाने की इच्छा


नहीं कुछ खाने की इच्छा नहीं बस आनंद में हूं यहां से यही पाठ लेकर जाना कि जब यह व्यक्ति आनंद में बैठ सकता है 2400 घंटे इतने इतने वर्षों तक तो मैं क्यों नहीं बैठ सकता तुम्हारे भीतर भी वही आनंद का खजाना है तुम्हारे भीतर भी परमात्मा कटकट के भरा हुआ है लेकिन तुम बदनसीब हो मैं कोई कोर कसर नहीं छोड़ता तुम्हें तारने की कोई कसर नहीं छोड़ता हर तरफ से तुम्हें टता हूं लेकिन फिर भी तुम यहां भागने की तैयारी करते हो आ जाओ लेकिन उस वक्त आ जाओ जब बिल्कुल लगे कि हम भटक गए हैं फिर आकर देख लो मैं तो वहीं बैठा हूं उसी तरह बैठा हूं


वही है चाल मस्तानी जो पहले थी वह अब भी है उसी खुशी से बैठा हूं उसी आनंद से बैठा हूं उसी इनर्स में बैठा हूं इनर्स हमारे भीतर का वो केंद्र का तत्व मैं परमात्मा कहता हूं वह तुम्हारे अपने तत्व से पार है थोड़ा तुम जहां स्वयं का बोध करते हो जहां समाधि होते हो वहां से आगे निकलना होता है उस साक्षी का भी एक साक्षी है और उस साक्षी का भी एक साक्षी व परमात्मा है तुम चा तो साक्षी पर सकते हो तुम्हारी सारी दुनिया की शरीर की दहिक दैविक भौतिक तापा राम राज नहीं का हो व्याप सब खत्म हो जाएंगे जब तुम सस्त हो जाओगे तुमने अपने आप को जाना तुम्हारे सभी


ताप खत्म हो गए तुम चाहो तो यहां रुक सकते हो बुद्ध यहां रुक गए लेकिन एक बात तोहे आज साफ कर दूं बुद्धि यहां रुक गए हैं सिर्फ इसलिए नहीं रुके इसलिए वासनाओं को नहीं रखा कि मेरी जरूरत पड़ेगी थोड़ी सी वासना बचा लू यह कारण तो है लेकिन दूसरा भी एक कारण है इसे अब समझ लेना ठीक से क्योंकि य आज तक मैंने कभी बताया नहीं तो आप ठीक कहते हो बाबा आप रोज तल बदल लेते हो वक्तव्य रोज बदलते हो ठीक मैं सीढ़ियां बदलता हूं सीढ़ियां बदलना वक्तव्य बदलना होता है जैसे सीढ़ी बदली वक्तव्य बदल गया इसलिए मुझे आप सदा झूठा पाओगे जो मैंने पहली पूड़ी पर कहा


वो छवी सीढ़ी पर मैं नहीं कहूंगा 12वी पर नहीं कहूंगा 18वीं पर नहीं कहूंगा बदलता जाऊंगा रोज इसलिए मुझसे मुझसे बड़ा झूठा कोई है नहीं और मैं जानता हूं कि यह जो बोलता हूं यह आज यह झूठ बोलता हूं यह बिल्कुल उस मास्टर की तरह हूं मैं जो पहली कक्षा में बच्चों को पढ़ाता है बच्चों होता है बच्चे कहते हैं अनार होता है बच्चों सिर्फ अनार का ही होता है हा मास्टर जी ए सिर्फ अनार का ही होता है और मास्टर अच्छी तरह से जानता है कि ए सिर्फ अनार का नहीं होता वही मास्टर जब जाकर पीएचडी को पढ़ाए मास्ट डिग्री को पढ़ाए का तो वह


कहेगा ए सिर्फ अनार का नहीं होता बहुत सी चीजों का होता है तो कहेंगे बिल्कुल ठीक है तो जब वो पहली कक्षा को पढ़ा रहा था तो जान रहा था कि मैं झूठ बोल रहा हूं इससे आगे भी पढ़ाव है और भी राहतें हैं वसल की राहत के सेवा लेकिन क्या करूं आज उन बच्चों को बढ़ाना है और दिमाग में जचा देना है एक बार यह जच जाए फिर आगे की बात छोटे बच्चों को हम डराते हैं बेटा बाहर मत जाना मामू है आबू है और जानते हैं कि झूठ बोल रहे हैं बस ऐसी ही मेरी बात है बुद्ध के भीतर सिर्फ यह वासना नहीं है कि मैं लोगों के काम हूं यह तो है एक दूसरी वासना भी है बुद्ध ने अभी पूर्ण


तत्व को पाया नहीं जो महावीर ने पा लिया वो बुद्ध ने नहीं पाया महावीर अंत तक पहुंचते हैं कृष्ण अंत तक पहुंचते हैं बुध अभी और जन्म लेंगे बुद्ध बुद्धत्व से आगे जाएंगे परमात्मा हो जाएंगे एक दिन तब नहीं कह सकेंगे परमात्मा नहीं है आज कहते हैं और वह जानते हैं कि मैं जो कह रहा हूं ठीक नहीं कह रहा हूं और भी पड़ा आगे बखूबी जानते हैं क्योंकि समाधि के तल से साफसाफ पारदर्शी नजर आता है कि आगे कुछ है बुद्ध करना बान है बुध एक एक सीढ़ी चढ़ते हैं बुध कहते हैं कि दुनिया तो यहां भी नहीं है अगर यहां तक आ जाए दुनिया तो सारी


दुनिया संतोष के आनंद में लिप्त उस रस में नहाई हुई खुशि माने यहां तक भी अगर दुनिया आ जाए तो बुद्ध ठहर जाते हैं बुद्ध अपना ही फिलॉसफी वक्तव्य बनाते हैं वो तुम्हें समझाते हैं कि नहीं है परमात्मा छोड़ दो लेकिन उनका यह कहना कि नहीं है परमात्मा मार्क्स के कहने जैसा नहीं होता मार्क्स ने तो बिल्कुल बार तो चले ही नहीं बेचारे वह अपने ढंग से कहते हैं वह भी करुणा वान है व वितरण प्रणाली को लेकर करवान है वह कहते हैं एक व्यक्ति के पास सारा धन हो इसका कोई अर्थ भी नहीं बनता सिर्फ अहंकार का बढ़ावा है क्या करेगा एक व्यक्ति सारी संसार की


संपदा को इकट्ठा करके बाकी भूखे मर जाए यह मानवता नहीं है तो मार्क्स अपने हिसाब से करुणा वान है लेकिन वह सही है बुद्ध अपने हिसाब से करुणान है लेकिन वह सही बुध तो तुम्हारे सारे दुखड़े खींच लेंगे क्योंकि बुद्ध कम से कम उस अंतरिम तल के छोर पर आ जाएंगे जहां जाकर आपके सारे दुख दर्द तकलीफ इल्यूजन भंग हो जाएंगे बस वो एक चीज खुद भी जानते हैं वहां जाना है बाकी और वह है लेकिन वह कहते हैं परमात्मा नहीं है और बखूबी जानते हैं कि परमात्मा है कौन मूर्ख होगा जो उस तल पर खड़ा होकर ट्रांसपेरेंसी से देख नहीं पाएगा कि आगे


है बिल्कुल स्पष्ट दिखता है साफ शीशे के भीतर से उसी उसकी गतिविधियां नजर आती है उसकी प्रेजेंस महसूस होती है कह सकता है लेकिन आपको कह सकता है उस टीचर की तरह जैसे कहता है अनार का होता है बेटा इसलिए बुध फिर आएंगे मैत्री के रूप में आएंगे और बुध आपको बताएंगे कि इससे आगे भी एक पड़ाव है ईज साल बीत गए जब भी आएंगे तो वह परमात्मा का संदेश देने आएंगे फिर वो यह नहीं कहेंगे कि परमात्मा नहीं है फिर वो ये कहेंगे परमात्मा है और फिर वो यह कहेंगे मैं परमात्मा हूं अहम ब्रह्मस फिर कृष्ण की भाषा बोलेंगे लेकिन आज उनके लिए यही कहना शुभ


है जब आग लगी हो तो सारे संकट भूल जाने होते हैं आग बजानी होती है फिर दुकान पर गाहक आया उसको सामान देना है किसी से उधारी लेनी है यह सब भूल जाता है व्यक्ति आग हो जाता है सबसे पहले आपके घर को आग लगी है आप जानते नहीं यह दर्द है किसको आप भ्रम पाले हो कि दर्द मेरे को है इस भ्रम को तोड़ना अनिवार्य है क्योंकि यह व्यर्थ है और बुद्ध जान गए हैं कि यह व्यर्थ है यह व्यक्ति भ्रम में है मृत्यु होती नहीं लेकिन यह व्यक्ति कहता है कि मृत्यु होती है यह शरीर है नहीं लेकिन फिर भी मानता है कि मैं शरीर हूं बुध भी कभी मानते थे कि मैं शरीर हूं इसलिए झटका लगता


है जब चेतक उसे कहता है यह व्यक्ति मर गया है यह व्यक्ति रोगी हो गया है यह व्यक्ति वृद्ध हो गया है इस व्यक्ति को निमोनिया है इसको ट्यूबरकुलोसिस है बुध कहते क्या मैं भी मरूंगा तब तक बुद्ध जानते हैं अपने आप शरीर चत कहता राजकुमार तुम भी मरोगे और एक दिन मरे बस उसी दिन बुध मर गए फिर तो वो बाट जोने लगे अकेले थे पता था कब जाने देंगे मुझे मुझे जाने नहीं देंगे मैं अकेला वारिस हूं लेकिन किसी तरह रात को छुपते छुपाते 12 बजे घोर अंधकार में अर्ध रात्रि को निकल जाते हैं घर से छटपटाहट इतनी है कि फिर यहां अगर मृत्यु


है विनाश शल है सारा संसार तो फिर देखूं तो जो यह संतों ने कहा कि कुछ ऐसा भी है जो नहीं मरता क्या वह है और व खोज लेते हैं खुद को अब हम इनर्टिया प आ जाए जब व्यक्ति उस इनर्टिया के गनत तल पर पहुंचता है पूछते हो दो किलोमीटर पा किलोमीटर 10 किलोमीटर सब दूरी समाप्त हो जाती है उपनिषद कहते हैं वह पास से पास है और वह दूर से दूर है तो क्या दूरी करोगे फिर कौन पहुंचा जगन्नाथ पहुंचा था कि श्रीचंद पहुंचा था कि कौन पहुंचा था कोई पहुंचा था कोई नहीं पहुंचा था इससे आपने क्या लेना है आपने खुद खुशहाल होना है आपने खुद आनंदित होना


है खुद वो रस भीना है जिसके बछोड़ में आप तड़प रहे हो जिसके बछोड़ में आप दर्द में हो तकलीफ में हो आपने वह जानना है कैसे जानोगे किसी संत पुरुष की जीवनी को देखो उसके शरीर को बोलचाल उसका व्यवहार खाना पीना सब देखो वहां से तुम्हें थोड़ा सा हल्का सा जलक मिलेगा कि यह यहां क्यों बैठा है क्या मिला इसे जो जब बैठ गया करोना काल से पहले मुझे लोग कहते बाबा क्यों बैठे थोड़ा सा घूम फिर आया करो ऐसे तो जोड़ जुड़ जाएंगे मैंने कहा कोई बात नहीं जोड़ जाने दो एक दिन तो जोड़ मरेंगे भी आग भी लगेगी आप बैठे कैसे हो जा बाहर जाया करो घूम लिया करो कितनी


सुंदर सृष्टि है कुछ लोग कह देते बाबा मौज ही तुम्हारी है कुछ करना नहीं कुछ धरना नहीं आराम से बैठे हो कोई काम नहीं कोई दाम नहीं उन्हें यह नहीं पता था कि मैं खाना नहीं खाता मौज ही तुम्हारी है टे रहते हो यहां बड़े मजे से हां करोना आया लॉक लगा अब पुलिस वाले बाहर निकलने नहीं देते और उनका मन कहता है चलो बाहर चलो घूमा आओ बाहर घूमने निकल गए पुलिस वालों ने पिछवाड़ा सुझा दिया लड्डू बेड करवाई वापस आकर कहते बाबा चौथा दिन था आज बैठा नहीं गया आप कैसे बैठे हो इतने सालों से मैंने कहा मजे में बैठा हूं और क बैठा हूं कुछ करना नहीं


कुछ धरना नहीं अरे नहीं बाबा यह तो बड़ा मुश्किल है आप अपने वक्तव्य बदल लेते हो आपको असलियत का पता नहीं होता इसलिए मैं कहता हूं बस एक बार जब मुझे देख लो कि यह यहां बैठा क्यों है उसके बाद वैसे ही तड़प पैदा हो जानी चाहिए कि मैं भी ऐसे ही बैठ जाऊं करना धरना यहां क्या होता है कुछ नहीं करना होता अगर यह लोग कहते हैं तीन बच्चे पैदा करो तो इनका स्वार्थ है क्योंकि तीन बच्चे तुम पैदा करोगे तो इनकी फौज में जमा कर लेंगे फिर इन्होंने जो करवाना है आप जानते ही हो इसलिए कहते हैं तीन बच्चे पैदा करो तुम्हारे फायदे के लिए नहीं कहते हैं


पालना तुम्हे पड़ेगा जन्म देने का दर्द प्रसव पीड़ा तुम्हें सहनी होगी बाप सुबह निकलेगा शाम को काला पीला होक लौटेगा घर इन बच्चों के पेट पालन करने हैं पढ़ाई लिखाई यह कोई काम नहीं करेंगे ना पढ़ाएंगे ना खाएंगे ना विश्वविद्यालय खोलेंगे बीमार हो जाए तो ना चिकित्शा खोलेंगे यह कुछ नहीं करेंगे यह तो बस कहेंगे तीन बच्चे चार बच्चे पैदा कर दो और इनकी जिंदगी की तरफ देखना सब मंडे मिलेंगे किसी ने बच्चे नहीं पैदा किए पता है बच्चे बच्चे बाहर होते हैं बच्चे जन्म देना अपना लिया बिगाड़ लेती है स्त्री उसके बाद पालन पूषण मल मूत्र करना


उसका फिर बड़ा होकर उसको स्टैंड करना हम कह देते हैं मां बाप को आपने क्या किया करते तो बहुत है वो लेकिन मैं कहता हूं तुम पैदा ही ना करो वैसे भी जनसंख्या बहुत हो गई है एक बर्गी अब हिंदुस्तान तो कम से कम यह मांगता है कि और बच्चे पैदा ना करो इस व्यक्ति की बात मन मत मानो तीन बच्चे का एक भी ना पैदा करो शादी करनी है करो नहीं तो लिवन में रहो आनंद भी तो लो जिंदगी की इंडिपेंडेंस का स्वतंत्रता का आनंद क्या होता है अब तक तुम्हें पता ही नहीं कुछ पीढ़ियां अनंत भाव में तो गुजार द अकेले इंडिपेंडेंट स्वतंत्र इन मलो का कुछ नहीं बिगड़ता यह


कह यह तो पाच कह देंगे तो 10 कह देंगे इनका कुछ नहीं बिगड़ता इनकी खुद की जिंदगी की तरफ देखो य कोई बच्चा पैदा नहीं करते इनको पता है अच्छी तरह से बच्चा पैदा किया तो हजार तकलीफें हैं वह बात दूसरी है कि घुमा के ले जाएंगे हमने देश के लिए त्याग किया कहने का सलीका है भाई ी दूसरे कौन सा बर्बाद कर रहे हैं जिन्होंने बच्चे पैदा किए उन्हें आज आप कह रहे हो कि तीन करो तो उन्होंने कोई बुरा कर दिया इनर्स आपके भीतर चले जाओ और यह दो किलोमीटर 5 किलोमीटर 10 किलोमीटर ऐसा कोई मसला नहीं होता संत के करीब एक बार जैसे कुएं के भीतर


बाल्टी गई भर के आएगी पूरी तरह से भर लो फिर उसको ले जाओ फिर उसको धीरे-धीरे प्यास लगने प पियो जब तक तुम्हें अपने भीतर का कुआ ना दिख जाए तब तक यदा कदा जब लगे कि प्यास है पानी नहीं तो गुरु दर्शन कर लो वैसे आपकी नॉलेज के लिए आपको बता दूं आमतौर पर जो व्यक्ति इनर्स में उतर जाता है उसके तो कोई सीमा नहीं होती लेकिन एक व्यक्ति जो इनर्स के ऊपर के तल पर होता है जिसे मैं जंक्चर पॉइंट कहता हूं अब यह जंक्चर पॉइंट का नाम आपने शायद किसी शास्त्र में सुना नहीं होगा पढ़ा भी नहीं होगा इस जंक्चर पॉइंट पर जो व्यक्ति पहुंच


जाता है उसकी जो आभा मंडल होती है वह करीब दो किलोमीटर तक होती है अगर कोई व्यक्ति इस जंक्चर पॉइंट को छूकर भी प्राण त्याग गया तो दो किलोमीटर तक उसकी रेंज जाएगी और जो हृदय स्थल पर पहुंच गया जिसे हम अनाहत चक्र कह देते हैं वह करीब एक फर्लांग एक फर्लांग यानी आठ फर्लांग में एक मील होता है यह सब बाबा की बताई बातें हैं इनको यह मेरा अनुभव नहीं है लेकिन बताया है उस महायोगी ने जो व हृदय स्थल पर पहुंच जाता है एक फर्लांग की दूरी तक उसकी रेंज काम करती है और जो उससे ऊपर जाता है विशुद्धि पर पहुंच जाता है वह ऐसा समझ


लो कि करीब दो तीन किलोमीटर तक उसका काम होता है रेंज बढ़ती जाती है जैसे जैसे तुम्हारी चक्र ऊपर जाएंगे तुम इनर्टिया के भीतर जाओगे वैसे-वैसे तुम्हारी ब्रॉडकास्टिंग पावर बढ़ती जाएगी अब यह हिसाब गणित की बात है लेकिन एक्यूरेट नहीं है कुछ थोड़ा बहुत फर्क हो सकता है मेरा कहने का मतलब सिर्फ इतना है संत के दर्शन कर लो वह ऐसे बैठा क्यों है क्या मिल गया उसे वट ही हैज अचीव्ड उसने पा के लिया क्यों ठहर गया वो क्यों नहीं दौड़ता वह दुनिया के साथ क्यों नहीं इसकी कोई उमंग क्यों नहीं इसके भीतर कोई तरंग लेकिन तुम संत को देखकर उससे यह सबक नहीं सीख


सकते प्रत्यक्ष को प्रमाण की तरह तुम लेते नहीं तुम कुछ और और सोच लेते हो यह तो मोज कर रहा है कुछ करना नहीं पड़ता कोई रना नहीं पड़ता नहीं ऐसा नहीं इनर्स में पहुंचे हुए व्यक्ति की पहचान वह ठहर जाएगा उसकी अपनी कोई कामना नहीं बचेगी क्यों अगर कोई कामना होगी व त तक्षण पूरी हो जाएगी लेकिन उसकी कामना होगी नहीं कोई अगर वह करुणा के अधीन होकर कोई कामना करेगा दूसरों के हेतु वह जंक्चर पॉइंट और इनर्टिया के बीच का पॉइंट है जहां जाकर वह है जो कह देगा वह पूरा हो जाएगा जह विराट उसे मान लेगा जिसे आप ब्रह्म कहते हो यह जंक्चर पॉइंट और इनर्स के भीतर का


एक बीच का एक पॉइंट है वहां जब व्यक्ति जाता है संत पहुंचता है तो वहां जो बोल देगा जो सोच लेगा वह मिल जाएगा इसलिए हमने संतों के पास अपनी तकलीफों को कहना जारी रखा क्यों राजा जाते हैं संतों के पास जो बाहर एकांत कुटिया में बैठते हैं क्या मतलब था क्योंकि राजा जानता है प्रत्येक राजा का एक धार्मिक गुरु होता है और प्रत्येक व्यक्ति का राजा का एक सिंहासन के पास बैठा हुआ धार्मिक व्यक्ति होता है जब वह अति तकलीफ में होता है तो बाहर जाता है एकांत वाले के पास बताता है कि राज्य में यह संकट हो गया मेरे पर यह संकट आ गया बताओ इसका क्या


हल है वह व्यक्ति एक्यूरेट समाधान दे देगा आपको और अगर समाधान नहीं होने वाली चीज होगी तो व परम से फरयाद कर देगा विराट से इसका यह काम ठीक कर दो राजा योग्य होता है इसके क्योंकि राजा निष्कलंक होता है और निर्लिप्त होता है निर्लोज्जो प लेकिन सुन लेना शायद कभी इस मुकाम पर कई बार अचानक भी व्यक्ति आ जाता है अक्ष मात भी आ जाता है तो आपको कुछ शायद आपने सुना होगा तो समझ आ जाएगी बात जो अपने उस तत्व पर पहुंच गया वह उसकी सारी अंका शाएं वासना तो छोड़ दो वास तो बहुत पहले समाप्त हो जाती हैं अंका समाप्त हो जाती है वह कुछ बनना नहीं


चाहता उससे कुछ छीना नहीं जा सकता उसे कुछ दिया नहीं जा सकता अब इन तीनों चीजों का आप अच्छी तरह से समझ लेना संत को तुम कुछ नहीं दे सकते क्योंकि संत सर्व व्यापक है क्या दोगे उसको सर्वज्ञ है और सर्वशक्तिमान है ना उससे कुछ छीन सकते हो सर्वज्ञ से सर्वशक्तिमान से तुम क्या छीन कुछ नहीं छीन सकते जो छीन होगे वह वह है नहीं शरीर छीन सकते हो ईसा का और क्या करोगे मंसूर का शरीर छीन लोगे जो कहेगा अहम ब्रह्मस में संत का कुछ ना तो छीना जाता है ना कुछ उसको दिया जाता है संत जीवित है तो अपने कारण नहीं वह अकारण जीवित


है वह उसकी इच्छा से जीवित है जब तक वह चाहता है जीता है जब वह चाहता है कि ना जिए तो नहीं जीता मरना तो सभी को होता है तुम इच्छा करोगे मैं हजार साल जिऊ नहीं जी पाओगे हालांकि सभी की इच्छा होती है कि मैं मरू ना अमर हो जाऊ लेकिन इससे बड़ी मूर्खता कोई है ही नहीं इनर्टिया बीच में एक प्रश्न और आ गया अगर आप कहते हैं कि बाबा ने आपसे कहा और जो सिद्ध आए थे उन्होंने कहा कि कम्यून मत बनाना लेकिन महावीर और बुद्ध तो अपने साथ करीब 5 हज भिक्षु का कम्यून साथ लेकर चलते हैं 5 हज और हमारे पास तो इतने बड़े कम्यून है भी


नहीं बुध उस जमाने में ाज साल पहले 100 हज भिक्षुओं 5 हज भिक्षुओं 3 हज भिक्षुओं की फोज हर वक्त रखते और तुम कहते हो कम्यून मत बनाना इसका कारण समझ लो कोई व्यक्ति परमानेंट रूप से बुध के साथ नहीं रहता कुछ लोगों को छोड़कर यही 10 20 50 लोग परमानेंट उसके साथ थे बाकी जिस गांव में जाते थे वहां के गांव साथ जुड़ जाते थे पीछे के लोग साथ आगे ऐसे 5 हज हो गए 30 हज हो गए 20 हज हो गए फिर अपने अपने गांव में जाते गए नए जुड़ते गए पुराने अपने घरों में लौटते गए परमानेंट तो उसके साथ यही 20 30 50 लोक जाते थे पक्के पक्के उसके पास लोग नहीं थे


आपको यह पता नहीं है इन बातों का पक्के पक्के लोग तो आनंद जैसे लोग ऐसे उसके पास थोड़े थे और उससे कोई कम नहीं बनता वह तो एक छोटी सी जमात होती है और वह भी जब ध्यान करते हैं तो बुद्ध का आदेश है कि 25 गज की दूरी से क्षमा करना 25 फीट की दूरी पर बैठना एक सन्यासी दूसरे सन्यासी से कम से कम 25 फीट की दूरी पर बैठे जब सन्यासी चले तो 6 फुट की दूरी तक देखे उसके अपने नियम है बुध के जब वो ध्यान करे तो 25 फीट की दूरी तक बैठे बुद्ध जानते हैं इनकी मार इतनी दूर तक है उससे आगे ये विगण नहीं डाल सकेंगे दूसरे के इतने से लोग होते हैं 20 30


50 उनको वह बिखेर के बैठा देते हैं उसके साथ सिर्फ आनंद रहते हैं जो यह वचन लेकर बना था कि मैं आपका भिक्षुक बन जाऊंगा लेकिन सदा आपके संग्रह होगा फिर अगर 5 हजार लोग उसके पास आते हैं तो वह इसीलिए आते हैं कि बैठो इस इनर्टिया का रेंज पियो जब वह सामूहिक रूप से बोलते हैं तो भीतर से आई हुई तरंगों को पिलाते हैं सबके ऊपर और फिर जब पूरी तरह से बिखेर देते हैं फिर उन्हें कहते हैं कि अब आप घर जाओ पिछले गांव के वापस चले जाते हैं अगले गा के साथ जुड़ते जाते हैं ऐसा होता था पक्के पक्के नहीं होते थे उनके पास कम्यून नहीं बनाते थे बुद्ध नहीं


बनाते थे कम्यून बुध के पास बस थोड़े से शिष्य थे व पक्के थे अगला प्रश्न भी आ गया गुरु नानक देव तीर्थ किसे कहते कहते हैं इसी इनर्टिया को वो तीर्थ कहते हैं तीर्थ नामा जे तिस पाव बिन पानी की नाई करी बिना उसकी इच्छा के उस तीर्थ में नहाया नहीं जाता बाबा हर चीज उसकी मर्जी पे गरा देते हैं और बाबा गिराते हैं ऐसी बात नहीं है सभी संत गिराते हैं आखिर में जो तत्व निकलता है वह यही निकलता है वह करता है सारी सर्जना का वह करता है सब वही करता है उसके अलावा और कुछ नहीं करते तुम अगर तुम अगर यह कहते हो कि मैं करता हूं तो यह तुम्हारी मड़ता है लज भी यही


कहते हैं गुरु नानक भी ही कहते हैं कबीर भी यही कहते हैं सभी संत यही कहते हैं कृष्ण भी यही कहते हैं तू कुछ नहीं करता जब यह कहता कि मैं करता तब यह गर्भ योनि में पड़ता तू करता तो कुछ है नहीं तू कर सकता कुछ है नहीं मेरी इच्छा के बिना एक पता भी नहीं लता करता तो मैं हूं तुम इतना नहीं सोच सकते जिसने इतनी सर्जना बनाई एक एक जर्र बनाया उसके तुम करता कैसे हो जाओगे जिसने बनाया सर्जना का एक एक अंग तुम बुरी से बुरी चीज का एक अंश नहीं पैदा कर सकते इवन वन पार्टिकल एक एटम भी आप पैदा कर सकते इतनी समर्थ नहीं तुम फिर तुम कता कैसे बन


गए निर्माता ही करता होता है सिर्जन हारा ही चलाता है कर्ता पुर्ख है जा दाता जा करता सृष्ठी को साज अप जाने सोई वह इस सृष्टि का निर्माण करता है और वही सृष्टि को बनाता है वही चलाता है मुझे लोग कह देते हैं अक्सर के बाबा आप जैसे लोग दुनिया को अकर्मण्य ता में धकेल रहे हो कुछ न करने की तरफ अग्रसर कर रहे हो लेजनेवा रहे हो परमात्मा के नाम पर उसे कर्ता बनाक नहीं तुम समझने में गलती कर गए तुम यह बताओ क्या सूरज घूमता नहीं है क्या चंद्रमा अपनी कलाई नहीं बदलता हवा चलती नहीं है क्या बीज उग करर वृक्ष नहीं बनता है


क्या फल नहीं लगते फूल नहीं लगते क्या फूल में सुगंध नहीं आता तो सारे कर्मों को कौन करता है सूरज घूमता है घूमता तो है ना लेजनेवा एक घंटे में 1000 किलोमीटर कितनी तेज दौड़ती है काम तो करती है ना लेकिन आप कहोगे पृथ्वी करती है नहीं जा करता सृष्ठी को सज जिसने बनाई वही चलाता है तुम्हारा भ्रम है पृथ्वी को भी भ्रम हो सकता है कि मैं घूमती हूं हो सकता है कोई बड़ी बात नहीं तुम पृथ्वी के ऊपर र हरने वाले पृथ्वी वासी लोग जब भ्रम खा जाते हो कि हम करते हैं तो किसी दिन पृथ्वी के भीतर भी यह भ्रम जाग सकता है कि मैं घूमते हू जाग


सकता है कोई अनहोनी बात नहीं है और अगर वह कहेगी सत्य को जान लेगी कि मैं तो नहीं घूमती मुझे कोई घुमाने वाला है तो क्या वह लेजी नेस होगी घूमती तो व रहेगी जो कहता है कि परमात्मा करता है जो करता है क्या वो कोई काम नहीं करता मैं अगर कहता हूं कि परमात्मा करता है तो क्या मैं कुछ नहीं करता मैं बोलता भी हूं संतों के वचन भी तुम्हें सुनाता हूं गीता के श्लोक भी तुम्हें सुनाता हूं तुम आते हो तुम्हें दीक्षा भी देता हूं तुम्हे सही रास्ता जो मैं जानता हूं जो मैंने देखा मैं तुम्हें बताता हूं कि पड़ा ही रहता हूं सारे दिन नहीं


ऐसा नहीं प्रत्येक व्यक्ति कुछ ना कुछ करता है तुम सिर्फ काम इसी को कहते हो कि इंडस्ट्री चलाओ वही काम है कोई मैन्युफैक्चरिंग कर या एक नंबर के अमीर हो जाओ वो काम ज मंगल पर जाने की सोचो वो काम तुम्हारी बुद्धि से यह काम होता होगा लेकिन संत जब देख लेता है उन अदृश्य हाथों को तो वह जानता है कि मैं करता तो हूं मुझसे होता है कराता व है कर्म करता हूं मैं करता नहीं हूं एक्शन हैपन लेकिन मैं करता नहीं हूं करता वो है कराता वो है कभी संत ऐसे तो फिर जो संत हैं बाबा नानक के चलकर जाते हैं मक्का मदीना वह पड़े रहते हैं कि घर में


नहीं सभी कुछ ना कुछ काम करते हैं कबीर चदरिया बनते हैं काम करते हैं छोटा मोटा काम सभी करते हैं खेती करते हैं नानक सभी संत कुछ ना कुछ छोटा मोटा काम करते हैं व लेजी नहीं है लेकिन तुम्हें तकलीफ होती है तुम काम उसे समझते हो के बैंकों में पैसा जमा हो खूब घनी सी जमीन जादा बड़ी सी बिल्डिंग हो अच्छी सी कारें हो तुम इसे काम कहते हो नहीं उनकी तृष्णा मर गई उनकी अपेक्षाएं उनकी वासना एं खत्म हो गए क्या पहनना है क्या खाना है कहां जाना है कहां घूमना है सब व्यर्थ होने लगा उन्होंने जो मंजर देखा आनंद का वहां जाकर कहीं से भी आनंद पाने की


कामना समाप्त हो गई इस शब्द को फिर सुन लेना वह जब उस तल पर उतरे वह मंजर देखा वहां जाकर उन्होने तो उसको देखने के बाद जो खुशी उन्हें मिली वह आज तक कभी जमाने में किसी भी वस्तु में पदार्थ में काम में पाई नहीं थी तब से वह करते तो हैं लेकिन कराता परमात्मा है अगर तुम खुद करते हो और तुम करते रहो तुम्हें कौन रोकता है संत तुम्हें ये नहीं कहता संत तुम्हें एक सत्य बताता है संत तुम्हें सत्य से परिचित करवाता है कि सत्य तो है ये कर्ता पुरख एक ओंकार सतनाम कर्ता पुरख कर्ता पुरख तो वह है लेकिन अगर तुम कर्ता बने रहना चाहते हो तो मजे से बने


रहो तुम कर सकते हो आखरी शब्द मोरल रूप में कह दूं जो व्यक्ति अपने भीतर इनर्टिया के जितना करीब होता है उसकी संकल्प की शक्ति उतनी बढ़ती जाती है और इनर्स के भीतर उस तत्व के भीतर उस केंद्र के भीतर प्रवेश करने से वह सर्व शक्तिमान सर्व संकल्प न हो जाता है तो बुद्धि से नीचे आकर हृदय स्थल और हृदय स्थल से नीचे आकर जैसे जैसे आप गहरे जाओगे तैसे तैसे आपकी संकल्प की शक्ति बढ़ती जाएगी संकल्प बुद्धि से कभी लिया नहीं जा सकता और बुद्धि के संकल्प सदा फेल होते हैं संकल्प हमेशा तुम्हारी सत्ता से आते हैं तुम अपने भीतर जैसे जैसे उतरो वैसे ही


ज्यादा संकल्प करने के योग्य हो जाओगे वह संकल्प जिसमें तुम करोगे कुछ नहीं सिर्फ संकल्प करोगे और काम हो जाएगा इसको व्याख्या किया हमारे पुराने संतों ने कल्प वृक्ष की तरह कल्प वृक्ष क्या है कल्प वष के नीचे बैठकर आप जो सोचोगे व तत्क्षण आ जाएगा जो खाना पीना करना जो कुछ तुम चाहोगे व आ जाएगा यह अवधारणा वहां से उठाई गई इनर्स से तो शास्त्रों में संतों ने वचन तो लिखे लेकिन उन वचनों के अर्थ तुम्हें आज समझ नहीं आते क्योंकि बीच का संपर्क सूत्र हो गया लेकिन ऐसा नहीं है कि वह संपर्क सूत्र कभी आएगा नहीं कभी-कभी संपर्क सूत्र


आते हैं और तुम्हें इनके मतलब समझाते हैं आगे पीछे तो यह मूर्ख बनाने वाले लोग ही तुम्हें मूर्ख बनाते रहते हैं जैसे जैसे भीतर जाओगे वैसे वैसे तुम जो सोचोगे वही हो जाएगा बहुत से प्रश्न आते हैं मुझे लेकिन उनमें से 999 प्र तो कबाड़ा होता है फिर बाबा आप सोच लो कि चीन खत्म हो जाए फिर चीन में कोई बैठा व्यक्ति ये भी सोच सकता है कि हम खत्म हो जाए ऐसी बातें क्यों सोचते हो मूर्खा आनंद ही ऐसी बातें सोचा करते हैं यह सब तुम्हारी बुद्धि के तर्क हैं इनमें सत्य जरा भी नहीं है ऐसी मूर्खता भरे प्रश्न मेरे पास बहुत आते हैं मैं छोड़


देता हूं व मैं उठाता नहीं व जवाब देने के योग्य नहीं होते वह सिर्फ बुद्धि से आते हैं और बुद्धि कुछ भी नहीं जानते बुद्धि से बड़ी मूर्ख और कोई वस्तु नहीं है धरती पर इसलिए जब तुम मंदिर में जाते हो तो अपनी जूती उतार के जाते हो तो साथ में बुद्धि को भी रख जाया करो वहां बुद्धि के साथ नहीं जाया जाता बुद्धि को रख जाया करो जूतियां के पास और जब वापस आओ मंदिर से यही होना चाहिए लेकिन ऐसा तुम करते नहीं हो तुम बुद्धि को साथ लेकर जाते हो जब बाहर जाओ संसार में तो जूतियां डालने के साथ साथ बुद्धि को भी साथ सिर पर रख


लिया करो कि चलो भाई तुम भी अब काम तुम्हारा शुरू हुआ प्रश्न पूछा था कहां बैठूं कहीं मत बैठो किसको ढूंढते फिरो ग व्यक्ति की बाहर की तमन्ना सदा रहती है बस बैठूं और मिल जाए तुम्हें तुम्हारे भीतर से मिलेगा बाहर से इमदाद मिल सकती है तो सिर्फ जीवंत गुरु को खोजो उसका सानिध्य प्राप्त करो यही भगवान कृष्ण ने कहा आचार्य उपासना आचार्य के संपर्क में थोड़ी देर पल दो पल थोड़ी देर बैठो उसके दायरे में बैठो और फिर वापस घर आ जाओ यह इनर्स बड़ा संक्रामक है संक्रामक समझते हो तो तेजी से फैलता है एक बार तुम संत के पास चले


गए जैसे रोग फैलता है तेजी से वैसे ही ध्यान फैले तेजी से फैले का संक्रामक रोग की तरह जैसे कोरोना फैलता था सिर्फ टच कर दो करोना हो जागा आज तो उदाहरण आनी शुरू हो गई हमारे पास पहले बीमारियां थी प्लसी थी ट्यूबरकुलोसिस थी हैजा था ऐसे संक्रामक रो वैसे ही यह संक्रामक होता है इनर्स संक्रामक है दूर दूर तक किसका फैलाव होता है तुम्हें पता नहीं चलता तो इन मजारों को मत ढूंढो कोई पता नहीं कौन क्या था कौन क्या नहीं था मगज कपाई मत करो संत के करीब बैठ जाओ करीब का मतलब यह नहीं कि उसके पास ही जाकर बैठ जाओ नहीं उसके दायरे में बैठ


जाओ अगर उसके पास स्थान है तो उसके दायरे में बैठ जाओ अब आने को तो सभी शिष्य तैयार हैं लेकिन तुम भी जानते हो मजबूरी है हमारे पास स्थान कुछ लोगों का है दो चार लोग यहां पर रह सकते हैं ज्यादा लोग नहीं रह सकते और हम लोगों से ऐसा काम नहीं लेते कि तुम यहां आओ प्याज काटो चटनी बनाओ रोटियां बनाओ संतों को खिलाओ भक्तों को खिलाओ यह काम नहीं करते हम लोगों से काम नहीं लेते जो यहां आते हैं उनको सिर्फ दीक्षा देकर भेज देते हैं संपर्क देकर भेज देते हैं कि जाओ अपने घर अब तुम जाकर वहां पर अभ्यास करो यहां लंगर पकाने की कोई जरूरत नहीं


है लेकिन कुछ जगह पर ऐसा होता है क्या करें भीड़ ज्यादा है खिलाना पिलाना भी पड़ेगा तो स्वयं सेवक बन जाते हैं उनको जचा दिया जाता है कि यह पुण्य है पुण्य पुण्य कुछ नहीं होता यह धर्म पार्टियों की तरह है जैसे पार्टियों में स्वयंसेवक पार्टियों को चलाते हैं वैसे ही इन धर्मों को स्वयं सेवक कोई प्याज चिरेटा रेगा कोई चटनी बनाएगा कोई छूक लगाएगा कोई रोटी बेले कोई पेड़ा बनाएगा ये स्वयं सेवक है ये पार्टी बाजी में चलता है संतों के घर ऐसा कुछ नहीं होता संत आपको शक्ति देता है मार्गदर्शन देता है और आपको कहता है कि आपको भीतर से


मिलेगा बार-बार बनो मत मेरे साथ मैं आपको मुक्त रखना चाहता है मुक्त करना चाहता है अपने घर जाओ जिसको मिला जिसको भी मिला कोई व्यक्ति गिना दो जिसको भीतर से ना मिला हो बाहर से मिला हो कोई गिना दो एक व्यक्ति नहीं मिला बाहर से किसी को नहीं मिला जिसको मिला अपने भीतर से मिला और जिसको मिलेगा उसको अपने भीतर से मिलेगा मेरी यह बात याद रखना यहां आना यहां आकर दीक्षा लेकर चले जाना इसलिए मैं कहता हूं सात दिन अकेले कमरे में बैठ जाना बहुत बार काहा है क्योंकि उस वक्त उस शक्ति का प्रवाह बड़ा तेज होता है जितनी पी लोगे वह आपके भीतर अभिना अंग बन


जाएगा और उसके बाद थोड़ा-थोड़ा संसार में भी काम करो संसार में भी बने रहो और अपने भीतर भी जाते रहो ये दोहरी यात्रा है संसार में कर्तव्य निर्वहन करते रहो और अपने भीतर अपना लक्ष्य निर्धारण करते रहो यह दोनों काम बराबर चलेंगे यह आलस की कोई बात नहीं है संत कभी आलस्य नहीं सिखाता लेजनेवा भर दो सात चौकिया भर दो ऐसा कुछ नहीं होता क्योंकि लोभ नहीं है अलो ही है कोई वासना नहीं है कोई इसकी इच्छा नहीं है उसकी जिंदगी से तुम अच्छी तरह से सबक ले सकते हो अभी इनर्स की बहुत बातें बाकी रह गई श्री कृष्ण कृष्ण गोविंद हरे


मुरारी हे नाथ नारायण वासुदेवा श्री कृष्ण गोविंद हरे मुरारी हे नाथ नारायण वासुदेवा पितु मा स्वामी सखा हमारे पितु मात स्वामी सखा हमारे हे नाथ नारायण [संगीत] वासुदेवा हे नाथ नारायण वासुदेवा श्री कृष्ण गोविंद हरे मुरारी हे नाथ नारायण वासुदेवा श्री कृष्ण गोविंद हरे मुरारी हे नाथ नारायण वासु सुदेवा श्री कृष्ण गोविंद हरे मुरारी हे नाथ [संगीत] नारायण वासु [संगीत] देवा धन्यवाद


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