ध्यान में होने वाली बड़ी गलतियां, कुण्डलिनी शक्ति नहीं चेतना हैं! चेतना का पूरा विज्ञान।

 


बाबा जी प्रणाम बहुत से संतो को भी सुना आपको भी सुना लेकिन एक बात मेरे आज तक समझ में नहीं आई किसी को सुन के भी नहीं आई क्या आप समझाने का कष्ट करेंगे हमारे गुरु ने तीसरा नित्र जगाने के लिए तीसरे नेत्र पर ध्यान एकाग्र करने की विधि बताई है कंसंट्रेशन और हम एकाग्र करते भी हैं लेकिन उसके बाद सिर का दर्द शुरू हो जाता है कुछ लोग मैंने पागल हुए भी देखे कुछ लोगों की नाड़ियों भी फटती हैं देखिए यह दुर्घटना है या इस विधि का गलत इस्तेमाल या यह विधि ही गलत है क्या हमें कंसंट्रेशन करना चाहिए या नहीं करना चाहिए असल में संत की एक बहुत भारी मुसीबत होती है जो चीज समझाई नहीं जा सकती व्याख्या नहीं की जा सकती लिपि में आती नहीं उसे लिपियों में कंडेंस कर देना मूर्खता पूर्ण है लेकिन जी हम करते हैं इसे समझना तीसरे नेत्र पर या किसी भी स्थान पर ध्यान को एकत्रित करना उससे वह चक्र जागृत हो जाता है सरासर गलत बात है अब मैं आपको उदाहरण देकर समझाऊं सीधा-सीधा समझाने का कोई उपाय नहीं है यह उत्तर लेंस है आप सभी ने देखे होंगे ये मैंने क्यों मंगवाया वृद्धावस्था के कारण आंखें कमजोर हो गई कुछ बारीक शब्दों को पढ़ने के लिए इनका इस्तेमाल करता हूं दिख जाती है चीज लेकिन एक बात बताइए अगर इस कॉन्वेक्स लेंस को मैं जिस पेपर से पढ़ रहा हूं सूरज के सामने कर दिया जाए और उसकी रेंज को कंडेंस कर दिया [संगीत] जाए तो क्या होगा जिस चीज को मैं पढ़ना चाहता हूं जिस पेपर से उसके ऊपर अगर सूरज की रोशनाई को कंडेंस कर दिया जाए तो क्या होगा पेपर जल जाएगा आपने भी देखा हो बस आप यही कुछ कर रहे हो फिर अगर पागल नहीं होगे तो और क्या होगा मैंने बहुत बार कहा है मत करो यहां के एक टीचर थे कोई साधना करते थे होशो से सस्त हो होकर आए थे मैंने कहा आप मास्टर जी यह साधना मत किया करो यह गलत कर रहे हो आप कहते हो ने समझाया मैंने कहा नहीं ो इतना मूर्ख नहीं है समझाया कुछ और हो गया समझा आप कुछ और गए हो ग ो इसे कभी नहीं समझा सकते अगर समझाया है तो फिर गलती कर रहे मैंने आपको समझा दिया कि यह पढ़ने के लिए बारीक चीज नहीं पड़ी जाती तो इसका सहारा ले लेता हूं लेकिन धूप में अगर यही चीज कंडेंस कर दी जाए तो जल जाएगी अगर आप अपनी शक्ति को कंडेंस कर दोगे तो यह जल जाएगा विकृति पैदा होगी ममरेज भी हो सकता है वेन फ्रैक्चर भी हो सकता है व वह ऐसे ही मरा टीचर बन फट गई नाक में से लहू निकलने लगा और वह मर गया देखिए इस तरह के तजुर्बे मत करिए तीसरा नित्र जागृत करना तो मैंने बिल्कुल सीधी पद्धति आपको बताई है सहज समाधि भली र साधु कबीर सब जगह मास्टर है कबीर के यह शब्द अंतहीन व्याख्या करते हैं कुछ न करो कुछ ना करो कुछ न करने में क्या होगा आपकी चेतना ध्यान रखना यहां फर्क पड़ जाएगा बहुत ब यहां उलझते हो आप मैं समझ गया आपकी चेतना भीतर उतरेगी सारी कंसंट्रेट होगी और मैंने पहले भी बताया नाभी के पास जब चेतना जाए तो वहां पड़ी हुई कुंडलिनी को जागृत करेगी और कुंडलिनी जागृत होकर जो कि कॉन्शियस निस का अब यहां तुम बात समझ लेना कॉन्शियस निस इज नॉट एनर्जी अब इस चैप्टर को आप ध्यान से समझ लेना क्योंकि बहुत लोगों को गलतफहमी हुई है वह कॉन्शसनेस को एनर्जी समझे बैठे यहां गलती जब आप कुछ नहीं करोगे तो सहज रूप से आपकी कॉन्शियस जो कि पत्थर से बढ़कर भगवान हो जाती है ऐसा समझो आप उस कॉन्शसनेस के लेवल को पथ से भगवान तक लेकर आना है वह एनलाइन हो जाता है वह कृष्ण हो जाता है जब आप कुछ नहीं करोगे आराम करोगे महज तो आपका कॉन्शसनेस भीतर उतरेगा वह कॉन्शसनेस जो आपने बाहर फैला दिया स्कैटर कर दिया धन में लगा दिया पदवी में लगा दिया दुश्मनी में लगा दिया दोस्ती में लगा दिया रिश्तों नातों में लगा दिया यह आपकी कॉन्शसनेस आपने फैला रखी है यह सब जगह से एकत्रित होगी और य भीतर उतरेगी अपने आप जैसे आप गं ले पानी को कांच के गिलास में रखकर ठहरा दो और कुछ नहीं करो छेड़ो मत उसको तो माटी नीचे बैठने शुरू हो जाएगी और सुबह तक माटी अलग और पानी अलग हो जाएगा समझ ना आए तो प्रश्न कर देना देखो आपने प्रश्न नहीं पूछा लेकिन प्रश्न निकल आया आप कॉन्शसनेस चेतना और एनर्जी ऊर्जा इसको एक ही चीज समझते हो पर्याय समझते हो यह प्र नहीं है एक ही चीज नहीं है य कॉन्शसनेस शक्ति होती है कॉन्शसनेस चेतना होती है एनर्जी शक्ति होती है अब समझो आप रात को सोते हो कुछ घंटे आपको पता नहीं होता आप कहां गए क्या हुआ कॉन्शसनेस भीतर उतर गई एनर्जी तो है सारे शरीर में एनर्जी घूम रही है हार्ट भी पंप कर रहा है फेफड़े भी शवास ले रहे हैं भोजन भी पच रहा है टिशू भी बन रहे हैं रिपेयर भी हो रही है सारे शरीर की न्यूरॉन की भी रिपेयर हो रही है सारी बॉडी अच्छे से रिपेयर हो रही है लेकिन पता क्यों नहीं चल रहा आपको यह पता होने का नाम कॉन्शसनेस है अब देखिए आपको मैंने पहले कहा जो चीज शब्दों में नहीं बांधी जा सकती उसको हम शब्दों में बांधने की चेष्टा करते हैं इशारों से कहने की बात है अगर तुम्हारी समझ में आ जाए तो अब कोमा व्यक्ति जाता है चेतना कहां जाती है एनर्जी तो होती है उसम क्योंकि वह जीवित है वह जीवित है तो एनर्जी तो है इसमें उर्जा तो है दिल भी धड़कता है फेफड़े भी चलते हैं सब होता है आप खाना भी खिलाते हो कोमा गए हो लेकिन चेतना कहां गई कॉन्शसनेस कहां गई वह कॉन्शसनेस चेतना ऊर्जा से कुछ अलग है वह क्या है अगर कुछ करोगे तो वह तुम ऊर्जा को यहां लगाओगे कॉन्शसनेस को नहीं ध्यान रखना मेरी बात को यहां तुम सभी चकमा खा जाते हो यहां जब आप ध्यान को केंद्रित करते हो तो यहां कॉन्शसनेस इकट्ठी नहीं होती यहां ऊर्जा इकट्ठी होती है जो समझ गए वह भाग्यशाली जो नहीं समझे वह अ भाग्य यहां आप शक्ति को संग्रहित करते हो ना के चेतना को चेतना तो आपने फैला रखी है सब तरफ और चेतना को जब भीतर लेकर जाओगे आप भीतर कैसे लेकर जाओगे कुछ ना करो कुछ ना करने में हह चेतना अपने भीतर उतरेगी कंडेंस होगी नाभि के भाषा के कंडेंस हो की वह जगाग आपकी कुंडलिनी को इसमें किसी तरह का कोई खतरा नहीं तोहे डराया जाता है इन बातों से जिस बात से डरना चाहिए उससे डराया ही नहीं जाता तुम भीतर उतरो विदाउट एनी रिस्क वह कॉन्शसनेस ऊर्जा नहीं कॉन्शियस चेतना कुंडलिनी भी एक चेतना है वह भी शक्ति नहीं है कुंडलिनी इज कॉन्शसनेस नट एनर्जी पावर कंडेंसेशन नहीं है वह एनर्जी का वह चेतना का समूह है और चेतना का समूह जब जग जाता है कैसे जगेगा जो सब तरफ से फैला रखी है आपने कॉन्शियस नेस उसको खींच लेना भीतर उतर जाना जैसे रात को सोए हुए आप उतरे थे आपकी चेतना भीतर उतरेगी उस तल पर जाएगी जहां कुंडलिनी है नाभी के आसपास है मूल आधार के पास वह उस शक्ति को जगाए गी जिसे तुम शक्ति कहते हो मैं चेतना पुंज कहता हूं वह चेतना पुंज का जाग दे जाना ही संभ की तरफ जाना है यह चेतना का पुंज है कुंडलिनी फिर अच्छी तरह से समझ लो क्योंकि यह समझने की बात है नहीं लेकिन मेरे इशारे शायद बहुत लोगों के समझा जाते हैं चेतना का पुंज है कुंडली आपको बताया गया है कि वह एनर्जी का पुंज है वह एनर्जी का पुंज है आपको बताया गया है वोह चेतना कंश सनेस का पुंज तो जब आप भीतर उतरो तो एनर्जी नहीं भीतर उतरेगी कॉन्शसनेस भीतर उतरेगी चेतना भीतर उतरेगी चेतना जाके चेतना को जगाए गी जो कुंडलिनी में संग्रहित है य बहुत बारीक मस फिर बार-बार समझना इस बात को वह चेतना जाकर चेतना पुंज को हिलोरे देगी तो कुंडलिनी के भीतर भरी हुई चेतना जग जाएगी और जगक वह सुसुम के द्वारा आपके सहसरा में प्रवेश कर जाएगा मेरुदंड से आएगी जिसे आप रीढ़ की हड्डी कहते हो मेरु दंड से आएगी यह तीन मुख्य नाड़ियों होती हैं वैसे कुल 72000 बताई गई है तीन इड़ा पिंगला शश मना सुसुम बीच में होती है इड़ा पकला आसपास होती है दोनों के बीच में चलती है सुसुम जब आप कुछ नहीं करोगे तो आप की कॉन्शसनेस भीतर उतरेगी भीतर उतरकर उस चेतना पुंज को छेड़े गी और चेतना पुंज जागेगा उसको कुंडलिनी जागरना कहते हैं बोलने वाले कुछ बोले जाए बताने वाले कुछ बताए जाए वह चेतना पुंज जागेगा और यह एक रास्ता है मेरु दंड में से इस तीसरी सुमना नाड़ी के द्वारा ब्रमर कह लो सरार कहलो उसमें प्रवेश कर जाएगी रीड की हड्डी पीछे से उसमें से निकलेगी और सहसरा में प्रवेश कर जाए सहसरा में प्रवेश कर जाएगी सहस्त्र दल कमल हजार पंखियो वाला खिल जाएगा वहां कोई हजार पंखुड़ियां नहीं है वहां आप खिल जाओगे फूल की तरह इसका यह मतलब था जैसे हजारों पंख यां खिलती हैं ऐसे खुशी होगी तुम्हें वह कॉन्शसनेस का बढ़ जाना या उर्द गामी होना वह आपको खिला देगा हजार पंकड़ा वहां कोई हजार पंख नहीं है लोगों ने तो उनका नाम रखे हुए हैं पंखियो खैर तो सहस्र दल कमल को खेल जाना बहुत आनंद मिलेगा उसको ही खुशी कहते हैं वह व्याख्या इत नहीं हो सकता मैं रोज बोलता हूं और जो इड़ा पिंगला है थोड़ी थोड़ी कॉन्शसनेस उसमें से भी जाएगी और वह जगाए कीी तीसरे नेत्र को इड़ा पिंगला दू यहां भूह के ऊपर यहां समाप्त हो जाएंगे यह प्रभावित करेंगे नासिका इनको एक गर्म स्वर एक ठंडा स्वर एक को आप चंद्र नाड़ी कहोगे एक को आप सूर्य नाड़ी कहोगे आपको समझ आई सूक्ष्म वाले कह रहे हैं समझा ग आप बताओ आपको समझ आई कि नहीं आई जब आप कुछ नहीं करोगे करने से तो कुछ नहीं होगा मैंने आपको पहले भी बताया जब आप कुछ नहीं करोगे तो जैसे रात को आपकी चेतना भीतर उतरती है और आपको पता नहीं चलता शक्ति तो होती है शक्ति तो सिर्फ मुर्दे में नहीं होती सोए हुए व्यक्ति में भी होती है कोमा में गए हुए व्यक्ति में भी होती है लेकिन सोए हुए व्यक्ति और कोमा में गए हुए व्यक्ति की चेतना बिल्कुल उसी स्थान पर पहुंच जाती है जहां पर वह साक्षी के भीतर अवस्थित हो जाती है लेकिन मूर्छित रूप से स्वपन में भी तुम मूर्छित होती है तुम्हारी चेतना और कोमा की अवस्था में भी मूर्छित होती है चेतना लेकिन होती है एक ही जगह पर इससे ज्यादा अगर व्याख्या हो पाया कभी तो करूंगा लेकिन इससे ज्यादा व्याख्या हो नहीं सकता पहली बात तो इस ब्रम को तोड़ दो एनर्जी इज कॉन्शसनेस एनर्जी कॉन्शसनेस नहीं जिस व्यक्ति की एनर्जी उस स्थान पर चली गई सारे शरीर पर वह गतिमान हो जाएगा एनर्जी का काम गतिमान करना और चेतना का काम गतिमान करना नहीं होता चेतना का काम है अवेयरनेस होश में देखना जागना जागने में काम करेगी अवेयरनेस और दौड़ने में काम करेगी शक्ति देखिए मैं अलग-अलग इशारों से आपको समझा रहा हूं अगर सिर्फ चेतना है आपके भीतर जैसे संत जब समाधि हो जाता है तो चेतना होती है होती शक्ति भी है लेकिन चेतना अपनी गहन ऊंचाइयों प हो इतना मस्त हो जाता है कि दौड़ नहीं पाता शक्ति होती है दौड़ने की दौड़ नहीं पाता इच्छा भी नहीं होती दौड़ने की लेकिन एक धावक है उसमें आम जो चेतना होती है उतनी ही चेतना है एनर्जी बहुत है शक्ति बहुत है वह दौड़ सकता है लेकिन वह समाधि नहीं हो सकता ध्यान में रखना धावक समाधि स्त नहीं हो सकता उसमें वह आनंद नहीं होगा शक्ति होगी शक्ति आती है काम करने के योग तना आती है जागने के योग्य अब अगर अब भी नहीं समझे तो फिर कैसे समझोगे और समझा देता हूं थोड़ी सी तरफ से शक्ति काम करने की हम व्यायाम करते हैं शक्ति की जरूरत होती है लेकिन जो उस व्यायाम करती हुई हाथों पाव को निहारता है वह है चेतना किसी को पता भी तो चलता है कि तुम व्यायाम कर रहे हो या तुम सोए पड़े हो या तुम स्वपन देख रहे हो वह जानने की क्षमता दैट इज कॉल्ड कॉशसनेस हां सूक्ष्म वाले कहते संतुष्ट हो गए आप बताओ अगर कोई प्रश्न हो तो फिर मुझे कर देना अगर यहां आप एकत्रित करोगे तो कॉन्शसनेस को नहीं करोगे शक्ति को करोगे यहां और शक्ति जब एकत्रित होती है तो वह फट जाएगी इसलिए बहुत सी दुर्घटनाएं घटी मेरे सामने घटी कुछ एक को मैंने रोका कि यहां मत करो संग्रहित यह फट जाएगा लेकिन फिर भी वोले हमारे गुरु ने कहा है ठीक है भाई गुरु ने कहा तो करो तो आज आप इस बात को समझ के जाना आज के चैप्टर में शक्ति और चेतना दो अलग-अलग हैं चेतना देखने की क्षमता है साक्षी होने की कैपेसिटी जब व्यक्ति 100% साक्षी हो जाता है वह भगवान हो जाता है और जब व्यक्ति एनर्जी पूर्ण हो जाता है तो वह पहलवान हो जाता है उसके मसल पूरा काम करते हैं लेकिन यह दोनों चीजें भिन्न है इतनी बात पहले समझना एनर्जी से काम करने की क्षमता बढ़ेगी कॉन्शसनेस से देखने की क्षमता बढ़ेगी साक्षी तोव की क्षमता को बढ़ाना कॉन्शसनेस शरीर के शक्ति को काम करने की वजन उठाने की दौड़ने की भागने की इसकी शक्ति को बढ़ाना एनर्जी ऊर्जा यह दोनों चीज आप एक ही चीज समझे बैठे हो इसलिए देखिए अगर आपको आपके गुरु समझाते हैं तो समझाते रहे मैंने अपना अनुभव बताना है वह अपना अनुभव बताते रहे हम उनको रोकते नहीं लेकिन अगर उनका अनुभव गलत है तो हम जरूर कह यह गलत है बस यह कोई निंदा नहीं है यह सिर्फ हमारे दोनों के अनुभवों का फर्क है उसका अनुभव कुछ और है राधे राधे कहने से हो जाएगा हम कहते नहीं होगा क्योंकि राधे राधे कहने से कॉन्शियस निस बढ़ती नहीं हमने चेतना को बढ़ाना है राधे खुद चेतना है यह बिल्कुल ठीक है लेकिन राधे राधे की रेपुटेशन करने से चेतना नहीं बढ़ती राम खुद चेतना है लेकिन राम राम की रेपुटेशन या जाप करने से चेतना नहीं बढ़ती चेतना और एनर्जी में फर्क आज मैंने बड़ी बारीकी से समझाया जब आप रात को सो जाते हो शक्ति तो होती है चेतना भी होती है शक्ति से शरीर चलता है टिशू रिपेयर होते हैं जो दिन में काम धाम करते हुए न्यूरॉन टूटे आपके टिशू टूटे वो रिपेयर होते हैं वहां एनर्जी का काम है कॉन्शसनेस का नहीं और कॉन्शियस एक जगह पर केंद्रित हो जाती है वह देखती है आपको सोए हुए को स्वास आ रहा है जा रहा है दिल धड़क रहा है टिशूज रिपेयर हो रहे हैं जब परिपूर्ण साक्षी हो जाओगे आप तो आप अपने टिशूज को रिपेयर होते देखोगे मस्तिष्क के टिशूज को न्यूरोस को रिपेयर होते हुए देखोगे आप जानोगे कि यह जो सोया हुआ है यह दूसरा है मैं नहीं लेकिन होगा कब पूर्ण जागृति में होगा पूर्ण कॉन्शसनेस में होगा जैसे जैसे कॉन्शसनेस का लेवल बढ़ता जाएगा तैसे तैसे आप साक्षी गहरे होते जाओगे बढ़ते जाओगे इसको कहते हैं चेतना को बढ़ाना और चेतना का बढ़ जाना ही महारास है मधुवन में राधिका नाचे रे मधुवन [संगीत] राधिका [संगीत] नाचे गिरधर की मुरलिया बाजरे गिरधर की मुरलिया बाजे रे मधुवन में राधिका नाचे राधिका चेतना नाचने लग जाती है वह मधुवन जहां मधुशाला है उस मस्ती में चेतना नाचती है इसे कहते हैं निधि वन तुम यहां के वृंदावन के निधि वन में कृष्ण और राधा को नाचते हुए देखना चाहते हो नहीं मिलेगा हमारी कॉन्शसनेस जिस लेवल पर जाकर नाचती है कहां नाचती है परिपूर्ण होकर नाचती है वह चाता है मीरा को नाचती है मीरा मस्त होती है प्रफुल्लित होती है सह सरार खिल जाता है वह खिलना आनंद का प्रतीक परम मस्ती की सीमा वो खुमारी जहां पुरुष चेतना से भरा हुआ पुरुष कृष्ण और राधा नाचते हैं दोनों चेतना की परिपूर्णता में ही नाचा जा सकता है रात को आप नाच नहीं सकते रात को आप सोए हुए हो आपकी चेतना सित्र हो गई लेकिन कृष्ण रात को भी नाचते हैं तुम्हें पता नहीं चलता कृष्ण सोए पड़े हो तो भी नाचते हैं वह मस्त हैं वह आनंदित है व कुमारी में है वह मैं को पए हुए चेतना संग है और चेतना परिपूर्ण रूप से पूर्ण रूप से बढ़ चुकी है और चेतना का बढ़ जा नाच को पैदा करता है मस्ती का बढ़ जाना खुमारी का बढ़ जाना नृत्य को पैदा करता है यह नृत्य लकन देता है मीरा के भीतर मीरा छलकती है नाचती है और पुरुष स्त्री नाचती है पुरुष मस्त हो जाता है जिस पुरुष के भीतर थोड़ा अण भाव होता है वह भी नाचता है शंकर नाचते हैं और आनंदित भी होते हैं मस्त भी होते हैं इसलिए उन्हें अर्धनारीश्वर कहा गया शंकर नृत्य भी करते हैं और शंकर मस्त भी होते हैं समाधि भी होते हैं वह चेतना और कृष्ण पुरुष और चेतना का अनूठा संगम है शिव नृत्य भी करते हैं और समाधि में भी लीन हो जाते हैं दोनों चीजें घटनाएं उनमें घटती हैं यहां भी दोनों घटनाएं घटती है कृष्ण मस्त है मस्ती में और राधा चेतना से नाचती है परिपूर्ण ई खिल जाता है पूरा रोम रोम और वह ब्रह्मांड तक फैल जाता है तो जहां यह घटना घटती है अद्वितीय घटना मिलन की राधा और कृष्ण का अनूठा संगम वहां नृत्य फली भूत होता है और त के साथ साथ समाधि फलीभूत होती है वहां मस्ती भी होती है आनंद की और नृत्य का लकन भी होता है वहां नाच भी होता है सतता भी होती है परिपूर्ण स्थिरता और परिपूर्ण नृत्य मीरा को नाचते हुए आपने देखा नहीं आजकल तो कला बाजयो से नाचने वाली हैं लेकिन भीतर से वो नाच नहीं आता मीरा के भीतर से नाच आता है और तुम उसके नाच को देखकर भाव विभोर हो जाते हो तुम खुद नाचने लग जाते हो और किसी तरह का कोई वाद यंत्र नहीं है वह बस नाचती है क्यों क्योंकि भीतर जो घटना घटी है चेतना की प्रगाढ़ता की यहां शक्ति का कोई सवाल नहीं शक्ति सिर्फ नाचने में जो काम आती है वह शक्ति है लेकिन जिस कारण से नाचा जाता है वह चेतना आती है समझ आती है जिस कारण से नाचा जाता है मीरा के द्वारा वो चेतना और जिस नाचने में काम आती वो शक्ति है एनर्जी है अगर एनर्जी नहीं होगी चेतना इतनी प्रगड़ हो जाएगी तो तुम बुद्ध की तरह बैठ जाओगे अगर सिर्फ शक्ति होगी और चेतना नहीं होगी तो तुम दडकन जाओगे अगर दोनों चीजें होंगी तो फिर मिलन होगा कृष्ण और राधा का व निधिवन बन जाएगा वहां नाचेगी राधा और कृष्ण बांसुरी बजाएंगे अनूठा मिलन होगा बिना वाद्य यंत्रों के वाद यंत्र तो खुद ही बज रहे हैं हमारे भीतर बस आपने पहचाना नहीं बाजे नाद अनेक असंख्या केते बावन हारे केते राग परि स क केते गावन हारे बड़े राग बजर हैं अतर बड़े सुंदर सुंदर मस्त करने वाले और वो राग बाहर मेरा के घुंघरु की नका बनकर कदमों की आहट देते हैं और तुम्हें आनंदित कर जाते हैं निधि वन में ती सयो वर्षों तक तुम ध्यान केंद्रित करते हो तीस वस्त्र वर्ष तक तुम सुरति और शब्द का मिलान करते हो लेकिन फल नहीं आता क्यों नहीं आता ज तो रास्ता गलत है या तो पथ गलत है या साधना गलत है तुम चलते ठीक नहीं तुम उस रास्ते पर चलने के बजाय उस रास्ते से विपरीत चलते हो उल्टे चलते हो दो ही कारण है जो तुम पहुंचते नहीं तो तुम्हारे भीतर वह नाच नहीं भरता व शांति नहीं आती तो फिर दो ही कारण है या तो साधना पथ की कमी है या साधना की कमी या तो पथ गलत चुन लिया तुमने और या अगर पथ ठीक है तो तुम पथ पर सीधे नहीं जा रहे उल्टे चल रहे हो पीछे पीछे चल रहे हो दोनों में से कोई बात है अगर तुम पहुंचे नहीं तुम्हारे चेहरे की दुखद सिल बटे आनंद में ना होना न नाचना मरे मरे से पिले पिले से तुम सारे दिन रहते हो कारण यही कारण है बुध छ वर्ष में खिल जाते हैं महावीर 12 वर्ष में खिल जाते हैं और बाबा नानक के 70 वर्ष में गल जाते हैं तुम तो 40 40 साल तक लेकिन दर्द बढ़ता ही क्या जू ज दबा के तुम रोज दुखी होते जाते हो मिलता कुछ नहीं जपे जाओ तुम जब गुरु को कहते हो कुछ नहीं हुआ तो वो कहते हैं फिर थोड़ी सी और तेजी से दौड़ो और तेजी से दौड़ो यह दौड़ाने वाले लोग तुम्हें कहीं पहुंचा नहीं सकते यह पहुंचाने वाले लोग नहीं है यह दौड़ाने वाले लोग है फिर दौड़ तो चाहे संसार की हो पैसे की हो पदवी की हो मान की हो सम्मान की हो या परमात्मा की हो दौड़ तो दौड़ ही होती है कोई भी दौड़ तुम्हें कहीं नहीं पहुंचाती पहुंचाता है तो ठहराव पहु जाता है तुम ठहर जाओ कुछ ना करो अगर यहां ध्यान केंद्रित करोगे तो वह कॉन्शसनेस का समूह नहीं होगा वह एनर्जी का समूह होगा जो तुम यहां पर एकत्रित करते हो एनर्जी को तुम एकत्र करोगे वह कोई ना कोई गलत गोल खिलाएगी किसीका तीसरा नेत्र जागृत होते देखा तुम सहज जागृत होगा सहज कैसे कुछ नहीं करने से तुम्हारी चेतना अपने भीतर जाएगी उतरेगी धीरे-धीरे भीतर उतरेगी जैसे गंदे पानी में माटी नीचे बैठती है एक उदाहरण दे रहा हूं आपको चेतना नीचे उतरती उतरती उस चेतना के पुंज कुंडलिनी को छेड़े गी हिलाए गी और वह चेतना पुंज कुंडलिनी फन उठा लेगी जागेगी जागेगी तो वह चेतना पुंज चेतना पुंज बोल ऊर्जा पुंज नहीं वह चेतना पुंज जाग के कहां से जाएगा यह रास्ता जो मैंने बताया सुमना के जरिए ब्रम रंद्र में जाएगी सुमना के जरिए सस में जाएगी और उसके साथ साथ इड़ा पिंगला और दोनों बहु के बीच में ठहर जाएंगे और सुसुम के भीतर वह सहस्र दल कमल खिल जाएगा और थोड़ी सी चेतना की बूंद यह तीसरे नेत्र को जगा देगी अब मेरे ख्याल में ठीक से समझ गए होगे [संगीत] तुम वह थोड़ी सी चेतना पुंज इसको जगा देगी जिसे तीसरा नेत्र कते जैसे जैसे कुंडलिनी सुषुम्ना नाड़ी के बीच में से प्रवाहित होगी जैसे पानी चलता है और सभी बांधों को तोड़ देता है बांध बड़े हल्के हैं पानी के भाव के आगे बाढ़ के आगे बांध बहुत हल्के हैं टूट जाते हैं बह जाते हैं बाध को भाग के ले जाता है यह बाढ़ वैसे ही तुम्हारी सारे चक्र खुल जाते हैं इस चेतना पुंज केप उने सब जागेंगे मूलाधार से शुरू होगा स्वाधिष्ठान मणिपुर कानात विशुद्धि और तीसरा नेत्र और सभी खुल जाएंगे लेकिन ऐसे नहीं खुलेंगे यह तुम्हारा रास्ता गलत है मैंने पहले भी इसके ऊपर प्रवचन किया था आज फिर आपको बता रहा हूं ऐसे खुलेगी आपकी यह सारी चक्रों की बांध ऐसे जगेगा हजार पंखुड़ियों वाला सहसरा और ऐसे तीसरा नेत्र खुलेगा ये सारी एक ही चेतना पुंज का काम है शक्ति से नहीं खुलेगा भाई शक्ति से तुम्हारा शरीर बलट हो सकता है शक्ति डिफरेंट चीज है शक्ति चेतना समझ रहे हो आप यहां गलती खा गए अगर शक्ति चेतना होती तो व्यक्ति को जाता और व्यक्ति नींद में भीना जाता कुमा में भी शक्ति होती है नींद में भी शक्ति होती है लेकिन होता क्या है नींद में भी आपकी चेतना भीतर मुड़ती है कुमा में भी आपकी चेतना भीतर मुड़ती है और तीसरी समाधि में भी आपकी चेतना भीतर मुड़ती है नींद और कोमा इन दो अवस्थाओं में जो चेतना भीतर मुड़ती है वह कभी बाहर लौट आती है कोमा में कभी नहीं भी लुटती है हो सकता है कभी नींद में भी ना लौटे लेकिन बड़े रियर चांस लेख समाधि में गई हुई चेतना नहीं लौटती वह तो समाधि हो गया वह तो टूट गए सारे बांध बांध टूट गए तो आप प्रबुद्ध हुए आपने अपने आप को जाना यह है सारी प्रोसेस आज एक बाध टूट गया चेतना और शक्ति को आप एक ही समझ रहे थे एक नहीं चेतना अलग चीज है शक्ति अलग चीज है आप जो कंसंट्रेट कर रहे हो वह शक्ति है यह जो सूर्य की किरण कंसंट्रेट होकर कागज को जला देती हैं यह चेतना नहीं जलाती है यह शक्ति जलाती है एनर्जी सूरज के भीतर की एनर्जी जलाती है एनर्जी चेतना नहीं है सूरज एनर्जी को फैलाता है चेतना को नहीं नहीं तो फिर बढ़िया काम था फिर तो सूरज की रोशनाई में बैठे रहते और चेतना बढ़ जाती कुछ करने की जरूरत नहीं थी फर नहीं नहीं यह गलत रास्ता जोना ने सूरज तुम्हारी चेतना को नहीं बढ़ा सकता क्योंकि सूरज के भीतर है शक्ति चेतना नहीं है सूर्य चेतन थोड़ी है सूर्य जड़ है लेकिन शक्ति का पुंज है चेतना का पुंज नहीं है चेतना का पुंज कहां है अब ठीक से समझ लो मोरल के ऊपर आ गया वक्त भी हुआ जाता है तीसरा नेत्र खुलेगा शक्ति के द्वारा नहीं आप कंसंट्रेट कर रहे हो शक्ति को तीसरा नेत्र खुलेगा चेतना के संग्रहण से चेतना जगे कीी सूरज में बैठने से नहीं चेतना जगे गी गंगा स्नान करने से नहीं चेतना जगे कीी कुंडलिनी जागरण करने से जो की चेतना पुंज है और वह चेतना पुंज महासागर से जुड़ा हुआ है उसमें कोई कमी नहीं होती एक बार जब खुल गई कुंडलिनी का बांध टूट गया वह चेतना का पुंज है वह सीधा समुद्र से मिलता है कैसे खुलेगी जगे गी कैसे मूर्खों ने गलत पथ भ्रष्ट को ने आपको भ्रष्ट कर दिया उन्हें पता नहीं देखिए उनका कोई स्व लोभ होगा निहत स्वार्थ होगा इसीलिए वो उल्टे पल्टे ज्ञान दे देते हैं कुछ भी बोल देते हैं जो ठीक लगे क्योंकि उनको पता है कि भीड़ का अपना सोचन सामर्थ्य नहीं है जो चाहो उधर मर जाएंगे फुटबॉल जो है फुटबॉल उसका कोई अपना सोचन समर्थ होता है इधर से इसने किक मार दी उधर चला गया उधर से उसने कि मार दि उधर चला ऐसे ही [संगीत] तुम तुम ठहरते नहीं क्योंकि तुम में स्वय की कोई भी शक्ति या चेतना नहीं है तुम दूसरों के डों से इधर उधर जाते हो कुंडलिनी को जगाना है जगाने के तीन रास्ते मैंने बताए क्रियायोग को करोगे कुंडलिनी जो चेतना पुंज है वह जगे गी उसके ऊपर प्रहार होगा जो नहीं कर सकते हैं ना करो कोई बात नहीं असल चीज जो जगाए गी वह ध्यान है ध्यान यानी कुछ ना करना कुछ नहीं करने में जो आपका शक्ति पुंज भीतर जाएगा क्षमा करना जो आपका चेतना पुंज भीतर जाएगा व चेतना पुंज जाकर कुंडलिनी को छड़ेगा कुंडलिनी जगे गी जैसे सोई सांप को हम जगाते वह फन उठाएगा जागृत हो जाएगी और वह जागृत होकर उसमें अथाह चेतना निकलेगी शक्ति नहीं चेतना अब मैंने बिल्कुल सही शब्द प्रयोग किए य सूक्ष्म से प्रश्न कहते हैं कि आप अपने वक्तव्य को बदल लेते हैं बिल्कुल बदल लेता ह बदलना पड़ता है क्या करू जब मैं पहली पूड़ी पर होता हूं तब मैं कहता हूं बहुत बढ़िया पड़ी है नहीं तो आप चढ़ होगे नहीं पहली पौड़ी पर शुरू ही नहीं करोगे फिर मैं पहली पौड़ी को छोड़ देता हूं दूस आ जाता दूसरी सीढ़ी पर जैसे ही आया मैं कहता हूं इसको पहली को छोड़ दो फिर दूसरी को भी छोड़ दो ऐसे एक एक सीढ़ी छोड़ते जाओ तो छत आ जाएगी तो मेरे वक्तव्य में विरोधाभास होना स्वाभाविक है मैं कहूंगा अनार होता है यह बच्चों के लिए है और फिर जब आप बड़े हो जाओगे तो मैं कहूंगा सिर्फ अनार का नहीं होता है यह वक्तव्य का बिल्कुल विरोध हो गया और आप कह सकते हो कि आपके वक्तव्य खुद के वक्तव्य विरोधी हो जाते हैं दूसरे संतो को छोड़ो बिल्कुल होंगे क्योंकि जब मैं कहूंगा अना का होता है तो तुमने बैठा लिया तुम चिपक गए फिर मैं कहूंगा ऐ सिर्फ अनार का नहीं होता है अ बहुतों का होता है अपयश का भी होता है अनर्थ का भी होता है अ बहुत चीजों का होता है तो आप कहोगे जी कल तो आपने ये कहा था आपने विरोधी वक्तव्य दे दिया अब कौन सा माने दोनों मानो भाई कौन सी सीढ़ी चढ़े दोनों चढो भाई पहली सीढ़ी फिर छोड़ो पहली सीढ़ी फिर दूसरी दूसरी भी छोड़ो फिर तीसरी सब छोड़ते चले जाओ फिर आखिरी छत सो मेरे विरोधी वक्तव्य से घबरा मत जाना विरोधी वक्तव्य आपके हितार्थ है मैं आपके हित के लिए बोल रहा हूं स्वय के प्रयोजन के लिए नहीं बोल रहा मैं कोई सरकारी टीचर नहीं हूं य हस रहे हैं जो कि तंखा लूंगा और पेंशन लूंगा उसके पास और कई लोग तो नकली सर्टिफिकेट देक लग जाते हैं पकड़े भी जाते हैं चेतना शक्ति अलग अलग है अनार है लेकिन आप छोटे बच्चों को समझाने के लिए अनार है व नहीं समझेगा इसके बिना और अनार का ही नहीं होता है यह भी ठीक है यह बड़ी उम्र के बच्चों को समझाना होगा क्योंकि तुम आगे बढ़ कैसे पाओगे तुमने ड डॉक्टरेट करना है मास्टर डिग्री करनी है तुम अगर उससे चिपके रहोगे तो आगे कैसे पढ़ोगे पहली पढ से चिपक गए तो दूसरी तीसरी चौथी कैसे करोगे आप तो मेरा विरोधी बोलना लाजिम है मैं विरोध बोलूंगा तो एक को छूंगा और ऊंची चेतना के पड़ाव के ऊपर ले जाऊंगा फिर मैं इसको भी कहूंगा छोड़ दो इसको आप घबराना मत मेरे विरोधी वक्तव्य से घबराना मत और मेरे शब्दों को मेरे ही शब्दों से तोलने की कोशिश मत करना ध्यान रखना मेरे शब्दों को मेरे शब्दों से तोलने की चेष्टा मत करना तो क्या करना आप करना अपने आनंद से मेजरमेंट से लेखा जोखा करना आनंद बढ़ा कि नहीं बढ़ा बस यह है कसोटी मैंने शब्द बदले या नहीं बदले या वही पर रहा मैं तो सीढ़ियां बदलता जाऊंगा मजबूरी है ढंग भी है अगर यह ढंग इस्तेमाल ना करूंगा तो पहली सीढ़ी से छतक नहीं आा तो कभी कहूंगा पहली सीढ़ी फिर कहूंगा छोड़ दू फिर कहूंगा पांचवी सीढ़ी फिर कहूंगा छोड़ दो लेकिन मेरे विरोधी वक्तव्य को आप दिल को मत लगा लेना यह अच्छा गुरु हुआ यह तो कह देता है कभी कुछ कह देता है कभी कुछ अड़ंग बड़ंग हो जाता है नहीं कुछ अड़ंग बड़ंग नहीं आप मेरे शब्दों को सुनते जाओ भीतर उतरते जाएंगे आनंद बढ़ता जाएगा जो आपकी समस्या है क्या दुख दुख टूटे आनंद घना हो रोज तो फिर शब्दों का फिक्र मत करना फिर वक्तव्य का फिक्र मत करना अगर आपकी गांठें खुली जली गांठ तो फिर कोई और फिक्र मत करना बस इस मेजरमेंट को आप ध्यान में रखना यही आपकी जरूरत है यही आपकी मंजिल है यहीं तक पहुंचना है यही आपके भीतर की पुकार है आनंद को ही पुकार रहे हो अनंत तक ही जाने के रास्ते में बताता हूं तो शब्दों के वक्तव्य का ख्याल मत करना बस इन्हें सुन लेना क्योंकि मैं बोल रहा हूं इनका उपयोग कर रहा हूं शब्द भी समझना आएंगे तो मैं इशारे करूंगा इशारे भी छोड़ दूंगा क्योंकि इशारे भी पूर्ण नहीं है शब्द भी पूर्ण नहीं है अब किसी भी चीज को मत पकड़ना वो दिन सौभाग्यशाली होगा जिस दिन शब्द तुम्हें शब्दों से पार ले जाए इशारे तुम्हें इशारों से पार ले जाए वो दिन भाग्यशाली होगा क्योंकि मैंने पहले कहा ना तो शब्द ना ही इशारे वहां तक नहीं जाते हैं वहां तक जाते हैं तो ढंग होता है आपको बताने का लेकिन ना शब्द पहुंचते हैं ना इशारे पहुंचते हैं पहुंचती है आपकी प्रज्ञा कोई दिन भाग्यशाली आएगा नदी मोक्ष दवार कर्मी आवे कपड़ा मनुष्य का शरीर मिल जाता है उसकी रहमत से कर्मी आवे कपड़ा आगे नदर मोख द्वार आपकी जंजीरें कब कटगी तुम्हारी मेहनत से नहीं कटेंगे उसकी नदर होगी राधे राधे राम राम कृष्ण कृष्ण कहने से नहीं कट उसकी नदर उसकी नदर कैसे होगी उसकी नदर होगी कि आप सब प्रपंच को छोड़ दो बाहर के प्रपंच को छोड़ दो छोड़ दो अपनी चेतना जहां जहां आपने वितरित की है इन्वेस्ट कर रखी है उस चेतना को मोड़ो मोड़ो एकत्रित करके कछुए की भाति उसचे इतना के भीतर ले जाओ उसको पुंज बना के उतरते जाओ उतरते जाओ इसी को ध्यान कहते हैं भीतर उतरते जाओ तो आपने कोई प्रयास नहीं करना है आप उतरो आप जरा ठहर के देखो ठहर के देखो जो चीज ठहर जाती है वह उतर जाती है अने कभी देखा जो हम रॉकेट छोड़ते हैं वह रॉकेट अगर ठहर जाए थोड़ा सा एग्जांपल दे रहा हूं यह रॉकेट है फर्ज करो यह रॉकेट है यह जा रहा है ऊपर ऊपर ऊपर ऊपर अगर तो जा रहा है तो पृथ्वी का ग्रेविटेशन इसको नीचे लेकर आएगा हालांकि काम करता है ग्रेविटेशन अगर ये राकेट ऊपर ऊपर जाता है ऊपर जाता है तो जाता है अपनी शक्ति से लेकिन अगर यह ठहर गया तो क्या होगा गया नीचे गया यही चेतना का हिसाब है चेतना अगर बाहर बिखरी रही बिखरी रही बिखरी रही और तुम बिखरते चले जाओगे बिखरते चले जाओगे फिर धन को बढ़ाते जाओगे मान यश को बढ़ाते जाओगे डिक्टेटर हो जाओगे राजका गद्दिया पर बैठ जाओगे लेकिन तमन्ना नहीं भरेगी तमन्ना क्यों नहीं भरेगी क्योंकि तृप्ति नहीं आएगी गद्दिया के ऊपर ऊपर बैठ जाना मान सम्मान रुतबा धन इनके ऊपर ऊपर गति कर जाना उससे चेतना नहीं बढ़ती है चेतना को भीतर गिराना है कहां उस कुंडली के पास कैसे गिरेगी यह चेतना जाती हुई इसको रोको जब रोकोगे जब कोई चीज ठहरी तोब नीचे गिर ठहरना है मूल मंत्र रुक जाओ स्टॉप जब ठहरो ग तो आपको नीचे उतरना नहीं पड़ेगा इसको गिरना थोड़ी पड़ा इसका गिरना नहीं पड़ा सिर्फ इसने ऊपर जाना छोड़ दिया ऊपर जाना छोड़ दिया तो क्या हुआ यह ग नीचे ऐसे ही तुम्हारी चेतना भीतर जाएगी आपने कुछ नहीं करना है चेतना को भीतर इकट्ठे करने के लिए कोई प्रयास नहीं ध्यान अयास का दूसरा नाम है ध्यान में कुछ नहीं करना होता ध्यान में बस आप सीथल होकर बैठ जाओ बैठ जाओ सिर्फ ध्यान अपने आप भीतर मुड़े भीतर जाएगा जाएगा जाएगा वक्त लग सकता है क्योंकि तुम्हारी संस्कार तुम्हें उखाड़ ग पहले तो तुम्हारे विचार तुम्हारे बैरी बनेंगे फिर तुम्हारी भावनाएं बैरी बनेगी ये लोभ लालच कहेगा क्या करते हो कहां उलझ गए दुकान पर बैठ जाओ चार पीसे कमा लोगे कोई झंडा उठा लो कहीं पहुंच जाओगे कोई रुतबा मिल जाएगा कोई छोटे मोटे करता धरता बन जाओ किसी पार्टी के चलते चलते चलते कुछ ना कुछ पा जाओगे हां क्या कर रहे हो इन मूलों के साथ क्या है कुछ नहीं मिलेगा मन तुम्हें भटकाने की बड़ी कोशिश करेगा अगर भटक गए तो भाई भटक जाओगे अगर नहीं भटके आपने अपने भीतर उतरना शुरू कर दिया दिनचर्या के काम का करते रहो पेट भरने के परिवार भरने के परिवार के कर्तव्यों को निर्वहन करने के उपाय करते रहो जो भी आपके पास है लेकिन जैसे ही आपको वक्त मिले वैसे ही ठहरना ठहर जाना जैसे ही ठहरे आप ठहर नहीं सकते समझ लेना बात को एक ही तल पे कोई कुछ नहीं ठहर सकता पृथ्वी भी अगर आज ठहर जाए घूमना बंद कर दे तो गिर जाएगी ठहरी हुई चीज गिर जाती है बाहर से खींचना ठहरा लेना आप ठहर जाना वह चेतना का जो एकत्रित रूप है जो आपने बिखेरा था बाहर अलग-अलग चीजों में वह भीतर उतरेगा अपने आप उतरेगा भीतर उतरता जाएगा उतरता जाएगा फिर आप पहुंचो उस जगह जहां कुंडलिनी है मूलाधार के पास है वह उस कुंडली शक्ति से जाकर सारी चेतना टकराए गी और कुंडली जागेगी चेतना पुंज खुलेगा सुषुम्ना नाड़ी के जरिए सभी चक्रों को क्रॉस करेगा सभी चक्कर खुल जाएंगे किसी भी चक्कर पर ध्यान नहीं करना यह रास्ता ही नहीं है गलत रास्ता है इसके दुष्परिणाम हो सकते हैं बहुत से लोग मेरे पास आते हैं बाबा रीढ़ की हड्डी में बड़ा दर्द हो रहा है कहीं कोई गिरे थे कोई एक्सीडेंट हुआ था नहीं कुछ नहीं बस यह साधना चक्रों की करता हूं इसे छोड़ दो यह साधना तुम्हें कहीं नहीं पहुंचाएगा इसका सहज मार्ग आपको मैंने बताया साधु सहज समाधि भली सहज समाधान हो जाए वह भला है आप असहज समाधान करते हो सीधा उस चक्र पर ध्यान कर दिया सीधा उस चक्र प ध्यान कर लिया सीधा सहसरा प सचखंड पर ध्यान कर लिया ये गलत है रास्ते जो मार्ग मैंने बताया बाहर से सारी चेतना पुंज को इकट्ठा करो कछुए की तरह सारे अंगों को समेट लो भीतर उतरते जाओ उतरते जाओ ठहरो ग तो उतरो ग ठहरो ग तो उतरो ग इसको आप मूल मंत्र की तरह ले लेना ठहरो तो उतरो व उतरना अपने आप हो जाएगा क्योंकि भीतर एक चुंबक बैठा है आपकी शक्ति को खींचेगा जहां से ये अनत नाद का उद्गम स्थल है आप ठहरे तो आपकी चेतना भीतर लौटी लौटते लौटते आप उस स्थान को टच करोगे जहां कुंडलिनी का कॉन्शियस नेस पुंज चेतना पुंज विद्यमान है उससे टकराएगा वह जगे गी जगे गी और जगक सुसुम नाड़ी के बीच में से प्रवाहित होकर सभी चक्रों को वेदन करके सहसरा में उतरे और तीसरा नेत्र भी खोल यह है साफसाफ प्रोसेस और अगर किसी को यहां पर ध्यान करने से मिल गया हो तो मुझे बता दे पागल हुए बहुत देखे मैं संत हुआ कोई नहीं देखा कोई है तो आ जाओ भाई मेरा ओपन बलावा है अगर कोई किसी स्थान पर ध्यान करके उस चक्र को जगा पाया है आज तक धरती पर तो आ जाए खुला खुला बुलावा है मेरा ऐसा व्यक्ति चैलेंज करे क्या आप गलत बोल रहे नहीं होता ऐसा क्योंकि जिसने ताजमहल देख लिया है वह सभी प्रकार के दावे करेगा जो कहते हैं नहीं है वह आ जाए मेरे पास मैं दिखा दूंगा उसे जिसने देख लिया ताज महल उसने देख लिया देखने से सारी शंकाएं मट जाती उतर गयो मेरे मन का संचय जब तेरा दर्शन पायो [संगीत] ठाकुर ठाकुर तुम शरणाई [संगीत] आयो [संगीत] ठाकुर तुम शरणाई आयो उतर गयो मेरे मन का [संगीत] संस उतर [संगीत] गयो मेरे मन का [संगीत] संस जब ते दर्शन [संगीत] पायो ठाकुर तुम सरनाई आयो ठाकुर तुम सरनाई [संगीत] आ दुख ना ठ सुख सहज समाए दुख ना ठ सुख सहज समा दुख ना [संगीत] ठ सुख सहज [संगीत] समा [संगीत] दुख दुख नाट सुख सहज समाय अनद अनद गुण [संगीत] गायो ठाकुर तुम शरणाई आयो ठाकुर तुम शरणा [संगीत] आ बाह कडली ने [संगीत] अपन बा पकड़ कडली ने [संगीत] अपनी लीने अपनी ग्रह अंध कोपते माया ठाकुर तुम सरनाई आया ठाकुर तुम सरनाई [संगीत] आ तुम सरनाई आयो ठाकुर तुम सरनाई आयो तुम शरणाई आयो ठाकुर तुम सरना आयो ठाकुर तुम शरणाई आयो ठाकुर तुम सरनाई [संगीत] आयो धन्यवाद


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