सोम प्रकाश बाबा आप रोज वक्तव्य बदल लेते हैं किस वक्तव्य पर ठहरे किसे सच माने समझ नहीं आता इतनी लंबी लंबी वीडियोस और आपका वक्तव्य बदल लेना बड़ी मुश्किल पैदा करता है ऐसा क्यों होता है बाबा कल तक आप कह रहे थे के विकार उठे काम क्रोध लोभ मोह अहंकार तुम्हारी शक्ति से विकार गतिमान होते हैं अपनी शक्ति को खींच लो ना होगी शक्ति ना उठेंगे विकार इसको ठीक माना आज आपसे न नई ही बात कह द विकार साक्षी को तोड़ लो कम साक्षी को तो विकार नहीं उठेंगे आप आनंद के सागर में चले जाओगे विकारों में उसी की तलाश थी आनंद मिल गया विकार खत्म हो
जाएंगे किसको ठीक माने आप रोज वक्तव्य बदलते हो क्या आप झूठ बोलते हो सोम प्रकाश हां मैं झूठ बोलता हूं झूठ बोलता हूं क्योंकि तुम्हें स्टेप बाय स्टेप समझाना पड़ता है और तुम उन बातों के साथ चिपक जाते हो जैसे हमने ऊपर जाना है या धरती के नीचे जाना है धरती में से पीने का पानी निकालना है ताकि आते जाते राहगीरों की प्यास बुझ ऊपर छत पर जाना है और पड़िया चढ़ना है तो मैं आज कहूंगा मैं पहली पौड़ी पर हूं कल कहूंगा दूसरे पर हूं फिर तीसरी चौथी फिर मैं कहूंगा छत पर हूं पौड़ियां है ही नहीं पौड़ियां छूट गई जहां भी आप अटक
गए वहां आप उलज गए व मैंने झूठ बोला था कि मैं पहली पड़ी पर हूं मैं दूसरी पर हूं मैं तीसरे पर हूं या उसे स्टेप बाय स्टेप समझो कि मैं लाइव कमेंट्री कर रहा था ऐसा ही धरती में से पानी निकालना है आज धरती एक फुट खोद ली आज दो फुट खोद ली तीन चार पांच बढ़ती जाएगी आज रेत आ गया आज कंकड़ पत्थर आज काली मिट्टी आ गई आज गंदला पानी आ गया और आज साफ पानी आ गया फिर और गहरा जाऊंगा बिल्कुल साफ पानी आ गया आप इनको बदलना कहोगे आप वक्तव्य को रोज बदल लेते हो क्या करूं बदलना पड़ता है एकदम से तुम्हें कहूं कि धरती को खोद लो पानी निकल आएगा तुम समझ नहीं
पाते एकदम से तुम्हें कहूं कि पड़ियो पर चढ़ जाओ छत आ जाएगी तुम समझ नहीं पाते तुम निशानियां ढूंढते हो अभी रोज मेरे पास प्रश्न आते हैं पलाधि ठान प मणिपुर प अनाहत पे विशुद्धि पे आज्ञा पे क्या-क्या निशानियां होती हैं कौन-कौन रंग दिखते हैं कौन-कौन आवाज आती है तुम तो इतनी क्लेरिफिकेशन मांगते हो तुम इतनी सीधी और सरल बात अगर जान सकते तो जानने वालों को इतनी मगज कपाई ना करनी पड़ती तुम जानते नहीं हो और दूसरी बात तुम चिपक जाते हो आज जो बात मैं कह रहा हूं कल वो झूठी होने वाली है और तु तुम्हे अड़चन आएगी लेकिन ध्यान से समझो अड़चन तब आएगी जब तुम
मेरे एक वक्त से चिपक जाओगे जैसे जैसे मैं तल बदलूं वैसे वैसे तुम चिपका हट को छोड़ देना मेरे संग संग चलना मैंने कितनी बार तुम्हें कहा है मेरे संग संग चलते आओ ल बदलेंगे हमने आसमान को छूना या हमने धरती में से प्यास बजने वाला पानी निकालना तल तो रोज बदलेंगे और तलों के साथ वक्तव्य भी बदलेंगे इहे आप कह सकते हो कि मैं झूठ बोलता हूं लेकिन बात तो यह है कि तल बदले जाते हैं रोज क्योंकि हमने छ पानी को लगी है प्यास माटी नहीं बुजा सकेगी प्यास बजेगी पानी से पानी निकलेगा गहरा कहीं 10 20 फुट पर निकल सकता है कहीं हजार फुट पर निकल सकता
है बहुत से लोग मुझे कह देते हैं बाबा अभी तक नहीं मिला नाद शुरू नहीं हुआ फना के तो हो गया कहता हूं भूमि भूमि का फर्क होता है किसी की भूमि बिल्कुल उपजाऊ है हमारे यहां सात फुट प वानी है पंजाब में सात फुट पे और मरुभूमि में र स्थान में 700 फुट पर भी नहीं आता फिर क्या करेंगे अगर तुम्हारी अनत नाद शुरू नहीं हुआ तो तुम्हारी भूमि मरुभूमि है मरुस्थल में हो तुम अगर मेरे बोलने से पहले ही शुरू हो गया तो बड़ी उपजाऊ जमीन है लोग कह देते हैं हमें तो 10 साल हो गए यह नाद चल रहा है हम तो इलाज कराते फिर रहे हैं तो यह अज्ञानता है अज्ञानता का तो
मैं डॉक्टर भी कह देते हैं य तो नेटस है अब तुम उल जाते हो चाहिए था इसका आनंद लेना और अज्ञान हों ने आपको उलझा दिया वोह भी नहीं जानते डॉक्टर्स भी मेरे पास आ जाते हैं हमने दवाई खाई ठीक नहीं हुए मैं उनसे बोलता हूं ये एक धागा है इनके जरिए तुम उस सहसरा में चढ़ सकते हो यह कोई कानों की बीमारी टेंस नहीं है इसलिए तुम्हारी दवा से ठीक नहीं होता हर रोग की दवा डॉक्टर के पास नहीं होती और अनत नाद रोग नहीं है अनत ना तो एक वरदान है परमात्मा का वरदान जिसको वह बुला लेता है पुकारता है उसे नाद शुरू होता है मैं वक्तव्य नहीं बदलता तर बदलता हूं
तुम्हारे लिए बदलता हूं मुझे कोई आवश्यकता नहीं तुम्हें समझाना होता है तो मेरी कल की बातें आज झूठ होने वाली हैं आज की बातें कल झूठ हो जाएंगी फिर तुम क्या करो मेरे शब्दों को मत पकड़ो आज जो इतने झगड़े हो रहे हैं यह जो कमेंट्स आते हैं गाली गलोज होते हो मेरे से इसका कारण क्या है मैंने ो के बारे में बोला कितने कमेंट्स आ है कारण क्या है तुम ओशो से चिपटेक थोड़ी प्रशंसा कर दूंगा तो मैं तुम्हारा साथ थी अगर थोड़ी सी गलती निकाल दूंगा मैं तुम्हारा दुश्मन हू जैसे कि तुम ओशो ही हो गए हो यही गलती है ऐसे ही कबीर पंथी हैं ऐसे
ही नानक पंथी हैं ऐसे ही ईसा पंथी हैं ऐसे ही इस्लाम पंथी हैं सभी के अपने-अपने पंथ हैं और सभी उन पंथ से चिपके हुए हैं सत्य की जानकारी किसी को भी नहीं है यही दुविधा है तुम्हारी जो सत्य को जानता है वह मौन हो जाता है उसकी सभी चिपका हट समाप्त हो जाती हैं मैं फिर कुछ बोलता नहीं उसमें इतनी भी तमन्ना नहीं रहती कि मैं बोलू और प्रसिद्धि कमाऊ बडा दाता तेलना तमा है वह दाता सबका दाता सबना जिया का एक दाता वड्डा दाता तिर न त माए उसमें लालच का एक तल भर भी नहीं है इसलिए वह बोलता नहीं मुक रहता है तुम छोटा सा काम कर लेते हो बोलते
हो यह मैंने किया यह मैंने किया टंडोरा पकड़ते हो और उसने सब बना दिया व जरा भी नहीं बोलता सांस भी नहीं भरता पर मौन बैठा है शांति में अवस्थित जरा भी नहीं कहता मैंने बनाया तुम गालियां भी निकालते हो तुम कहते हो वह है नहीं तुम कहते हो वह है नाक रगड़ हो लेकिन उसे कोई फर्क नहीं पड़ता तुम नास्तिक हो तुम आस्तिक हो तुम कुछ भी नहीं हो दोनों में से लेकिन उसे जरा भी फर्क नहीं पड़ता वह मस्त है क्योंकि वह मस्ती है वह अपनी सहजता में परम मोन में सदा बैठा रहता है तो मैं कुछ भी नहीं कहता जर्रे जर्रे में उसका निवास है
कोई स्थान ऐसा है जहां व नहीं हो ऐसा कोई स्थान नहीं जाने जानने वालों ने यही बात कही बिन नावे नाही को था ता किता तेता नाम इवास मदम सर्वम यत किंच जगत आम जगत ईश्वर इस जगत के कण कण में मान है नाम के बिना कोई स्थान नहीं बिन नावे ना ही को ठाव लेकिन तुम शब्दों में क्योंकि चिपक जाते हो इसलिए शब्दों में उले जाते हो तुने पूछा हम क्या करें बाबा शब्दों से चिपकना बंद कर दो शब्द चाहे किसी के भी हो वो कृष्ण के हो वो राम के हो वो नानक के हो कबीर के हो ु के हो किसी के हो शब्दों को पकड़ना बंद कर दो जो शब्दों से चिपका वह उलझा और जो
चिपका वह ठहरा तुम्हें पता है जो चीज चिपक जाती है वह ठहर जाती है तुम दीवार पर कोई पोस्टर लगा देते हो बस वह चिपक गया वह चल नहीं सकता वो ठहर गया ऐसा ही तुम्हारा वजूद है तुम जिस गुरु के साथ चिपके वहां ठहरे और वहां तुम असहन शल हो जाते हो तुम्हारी सहन शक्ति समाप्त हो जाती है तुम अगर हिंदू हो तो मुसलमान की बात में गले नहीं उतरेगी अगर मुसलमान हो तो हिंदू ईसाई यहूदी उनके बात गले नहीं उतरे क्योंकि चिपक गए ठोस हो जाते हो पत्थर हो जाते हो तुम तरल नहीं होते तुम वाष्प नहीं बनते तरल होना सीखो वाष्प बनना सीखो मैं तो ऐसा ही करता
रहूंगा रोज नए प्रश्न आएंगे रोज पुरानी बातों को छोड़ दूंगा रोज नई बातों को बताऊंगा और तुम रोज पूछोगे कल तो बाबा आपने यह कहा था आज आपने यह कहा कल तो कहा था मैं दूसरी पड़ी पर हूं आज तुमने कह दिया मैं छत पर हूं पौड़ियां है ही नहीं तो छत पर जाके सभी पड़िया समाप्त ही तो हो जाती हैं तो ठीक बोला मैंने छत पर जाकर अगर मैं कहूं कि पड़िया नहीं है तो इसमें कोई गलती नहीं और अगर पड़ियो पर खड़ा होकर नीचे धरती पर मैं कहूं छत नहीं है तो यह भी ठीक है जो मैं जानता नहीं उसको न कांगा इसलिए मार्कस ने नकारा परमात्मा नहीं
है और आज यह फैशन बन गया जो व्यक्ति जानता नहीं बड़ा सरल तरीका है कह दो वो होता ही नहीं आचार्य कहते हैं इनलाइटनमेंट नहीं होता बुद्ध कहते हैं संसार दुख है तुम चिपक गए तो क्या सुख होता नहीं होता है लेकिन आप ठीक से समझते नहीं बुद्ध कहते हैं संसार दुख है यानी चिपका हट दुख है तुम चिपको ग तो दुखी रहोगे तुम चिपका हट को तोड़ दोगे तो सुखी हो जाओगे लेकिन शब्दों को सत्य की भाति मत ले लेना तुम शब्दों को सत्य ले सत्य की भाति देखते हो यहीं चूक हो जाती है रोज एकएक करके में स्टेप बाय स्टेप तुम्हे तुम्हारी मान्यताओं को तोड़ता
हूं अब इस शब्द को ठीक से समझना एक एक करके मान्यताओं को तोडूंगा मान्यता रोज टूटें रोज बदलेंगे मेरे वक्तव्य रोज जमाने तुम्हारी टूटें रोज मैं अगले पड़ाव पर हो जाऊंगा लेकिन जिस दिन छत के ऊपर आ गया उस दिन मैं वक्तव्य नहीं बदलूंगा इसलिए कबीर ने कहा सब स्याने एक मत वहां जाकर वक्तव्य बदला नहीं जा सकता वहां जाकर मत एक ही होता है कबीर भी वही कहेंगे नानक और कृष्ण भी वही कहेंगे जब छत प पहुंच जाता है व्यक्ति तो वक्तव्य बदले नहीं जा सकते जब तक नीचे रहोगे एक एक पौड़ी पड़ाव सीढ़ी चढ़ते जाओगे रोज वक्तव्य बदलेंगे
ऐसे ही जब धरती में से पानी निकालो प्यास लगी है रोज वक्तव्य बदलेंगे आज एक फुट दो फुट 50 फुट आज रेत आ गया चिकनी मिट्टी आ गई काली मिट्टी आ गई गंदला पानी आ गया साफ पानी आ गया और फिर जब साफ पानी बहुत गहरा आ जाएगा तो तुम रुक जाओगे तुम कहोगे बस प्यास बुझने वाला पानी आ गया यह मान्यताओं का टूट जाना एकएक करके टूट जाना और तुम इसे टूटने देना तुम आड़े आते हो क्योंकि तुम कहीं ना कहीं चिपके हुए हो और वह जो बोल गए वह बस अंतिम है तुम्हारा यह समझना तुम्हें अटका दे देता है तुम आगे नहीं जा पाते इसलिए मैं कहता हूं अक्सर अनुकरण करने वाले मूर्ख होते
हैं अगर आगे चलने वाला ठहर गया तो अनुकरण करने वाले भी ठहर जाएंगे तुम भी रुक जाओगे जहां मैं ठहर वहां समझना पड़ाव आ जाएगा बड्डा दाता तेरा ना तवा है उसमें इतनी भी तमा नहीं इतना भी लालच नहीं कि वह बोल के कह दे कि मैं तुम सबको तुम्हारे सबके लिए इतना कुछ बनाया तुम सबको मैं खाने पीने को ऑक्सीजन महिया कराता हूं सांस लेने को यह सब मेरा दिया है वह नहीं कहता कहां बोलता है व यह पर मस्त है उसका बांटना उसके आनंद का दतक है कितना आनंदित है वह बांट के कितनी मस्ती में झूमता है वह बांट के और तुम थोड़ा सा काम कर लेते हो एक
चित्रकार चित्र बना लेता है और फूले नहीं समझता यह चित्र मैंने बनाया मूर्ति बना लेता है मूर्तिकार यह मूर्ति मैंने बनाई कोई कारीगर घर बना लेता है य घर में नहीं बनाया तुम लेवल लगा देते हो हालांकि उसमें तुम्हारा कुछ भी नहीं सभी समग्री बाहर से ली तुमने सिर्फ डिजाइन किया लेकिन परमात्मा तो सभी सामग्री भी अपने पास से बनाता है परमात्मा तो सब कुछ बनाता है स्पेस भी बनाता है स्पेस के भीतर सामग्री भी फिट करता है बस यही तुम चूक जाते हो समझ में नहीं आता तुम्हारी छोटी सी खोपड़ी के और देखिए समझ कभी आएगा भी नहीं यह
बिल्कुल इस तरह है जैसे मैंने कहानी सुनाई छोटी प्याली में समुद्र नहीं आता ग अगर में सागर नहीं समा आता वैसे ही तुम्हारी खोपड़ में कभी नहीं आएगा मार्कस एक नहीं मार्कस रोज पैदा होते हैं चार बाक रोज पैदा होते रहेंगे रोज आचार्य पैदा होते रहेंगे और बोलते रहेंगे एनलाइन मेंट नहीं होता क्यों जाना नहीं जिसने जान लिया वह बताने की चेष्टा करेगा वोह तुम्हें समझाना चाहेगा कोशिश करेगा बुध जानते हैं कृष्ण जानते हैं तुम समझ नहीं पाओगे कृष्ण जानते हैं कि अर्जुन नहीं समझ पाएगा लेकिन फिर भी बोलते हैं और जानते हैं कि मुझे अपनी शक्ति
पात गिराना पड़ेगा इसके अंतस में फिर समझेगा य बावजूद इसके बोलते हैं और आखिर में वही करना पड़ता है शक्ति पात ही तो करना पड़ता है आखिर में गुरु अच्छी तरह से जानता है वह बोला नहीं जाता फिर भी बोलता है बस बोलता है तुम्हें दुख संकट दरिद्रता क्लेश चिंता ग्रस्त आग में जलते हुए जब देखता है तो बोलता है तुम दरिद्र नहीं हो तुम शहंशाह हो यह जो जल रहा है यह तुम नहीं हो तुम कुछ और हो तुम वो हो जो जलता नहीं ये जो कट रहा है तुम नहीं हो तुम वो हो जो कटता नहीं रोज बोलता है उसे करुणा आती है तरस आता है तुम्हारी दशा
प के अज्ञानता के कारण ये दुखी हैं वास्तव में ये दुखी नहीं तो तुमने कहा क्या तुम झूठ बोलते हो बिल्कुल झूठ बोलता हूं आगे भी शब्द सुन लो जो बोला जा सकता है वह सत्य होता ही नहीं सत्य कभी बोला नहीं जा सकता सत्य अगर कभी शब्दों में आ जाए तो समझ लेना वो झूठ है जो बोला जाएगा व झूठ होगा और मैं भी इस चीज को जानता हूं झूठ है इसलिए तुरंत स्वीकार कर लिया मैंने हां मैं झूठ बोलता हूं बखूबी जानता हूं मैं मैं उसको कभी नहीं बोल पाऊंगा वहां तक पहुंच सकता हूं उस प्रज्ञा में ठहर सकता हूं वहां तक जाने के रास्ते बता सकता
हूं उसका स्वाद बता सकता हूं वह आनंद है वह मस्ती है वह खिलता हुआ सागर है वह सुगंधी की बरमर है तुम क्यों दुखी हो तुम्हारा अंत से बड़ा सुखी है तुम वहां चले क्यों नहीं जाते सब बोलूंगा बोलता ही चला जाऊंगा लेकिन जब तुम सवाल करोगे वह पैदा कैसे हुआ उसको किसने बनाया तो मैं मौन हो जाऊंगा यह खोपड़ी के सवाल मुझसे हल नहीं होंगे मैं यहां लाचार हूं मैं हैय बीवश हूं मैं बेबस हूं का जवाब नहीं दूंगा दे नहीं सकता सिर्फ इतना ही कहूंगा कि यह तो मैं नहीं जानता बस इतना सा बोलता हूं कि तुम दुखी हो तुम्हारे चेहरे लटके हुए दुखों से भरे हुए लंबे-लंबे
चेहरे तुम इससे निजात पा सकते हो इन दुखों से इस जलन से निजात पा सकते हो ढंग है कहो तो बता देता हूं बस मैं यह जानता हूं कि उस मैं को पीकर तुम भूल जाओगे सब कुछ जो आज याद आता है उस मैं को पीकर तुम भूल जाओगे जिन्ह हम भूल ना चाहे व अक्सर याद आते हैं जिन्हें हम भूल ना चाहे वो अक्सर याद आते हैं बुरा हो इस मोहब्बत का बुरा हो इस मोहब्बत का वो क्यों कर याद आते हैं जिन्हें हम भूल ना चाहे वो अक्सर याद आते हैं भूलना चाहते हो यह दर्द यह [संगीत] बरहा यह तनाव यह कमजोरिया विवशता है दरिद्रता है यह कर्ज यह फर्ज य मर्ज बोलना चाहते हो
तोम लेकिन अक्सर याद आते हैं बुरा हो इस मोहब्बत का वो क्यों कर याद आते हैं तो संत कहता है कि हमारे पास दवा है तुम इतने उदास मत हो तुम इतने लाचार मत दिखो तुम बेबस और विवस मत हो तुम चलो मेरे संग मैं तुम्हें पिलाऊंगी थोड़ी सी और तुम भूल जाओगे सब कुछ अभी तुम भूलना चाहते हो और भूल नहीं पाते और अक्सर याद आते हैं वो लेकिन जब तुम वो थोड़ी सी पी लोगे तो धीरे-धीरे भूलने लगोगे [संगीत] फिर तुम सब कुछ भूलना चाहोगे फिर तुम पैग आगे करोगे फिर तुम पुकारोगे और जरा सी दे दे साकी और जरा सी और और जरा सी दे दे साकी और जरा सी और
कैसे रहूं चुप के मैंने पी ही क्या है होश अभी तक है बाकी और जरा सी दे दे साकी और जरा सी और संत तुम्हें एक बूंद पिला देता है संत के पास बैठना आचार्य उपासना तुम्हें लगता जैसे तुम सब भूल गए तुम कुछ पूछने आते हो संत के पास और पाते हो कि भूल गए क्या पूछने आए थे क्या है संत के पास एक नशा है संत के पास एक कुमार है 24 घंटे दिन भर रात आठों पहर उसके भीतर से वो मदरा छलकती रहती है लहर बन के और संत तुम्हें छोटी सी बूंद पिला देता है उसके और बूंद तुम क्या पीते हो तुम भूल ही जाते हो जो तुम्हें भूले से भूलता नहीं
था वो तुम्हें याद करने से याद नहीं आता पहले भुलाई भूलता नहीं था अब याद करना चाहते हो तो याद नहीं आता ऐसा हुआ रामकृष्ण परमहंस के शिष्य नरेंद्रनाथ पिता मर गए थे घर में बड़े थे जिम्मेदारी उनके ऊपर पड़ी पिता के रहे तो कोई फिकर ना था बड़े वकील थे अब तो घर का खर्चा दाना पानी चलाना मुश्किल हो गया कर्ज तले डूब गए आमदनी का कोई साधन नहीं था ऐसी दशा आ गई कि किसी किसी दिन फाका भी रहना पड़ता भोजन ना मिलता बहुत बार मन में आया कि गुरुदेव से कह दू लेकिन संकोच कर जाता इनी सी बात भी क्या कहना है एक दिन बड़ी अति आ
गई घर पर किसी को खाना नहीं मिला तो सोचा आज बता ही दूंगा गुरु के पास आए चरण स्पर्श किए गुरुदेव घर में अन धन का अभाव है पिताजी के स्वर्गवास के बाद कई कई दिन भूखे रहना पड़ता है उनकी एक बहन ने भूख के कारण सुसाइड कर दिया आत्म हत्या गरीबी भी बुरी बला है पिघल गया उसका हृदय ऐसा भी क्या कि खाने को अन भी ना मिले तो राम कृष्ण ने कहा पगले तूने पहले ना बताया तू ऐसा कर मां आएगी मेरे पास और मैं माता को बोल के आऊंगा उससे मांग लेना खूब सारा धन मान मांग लेना खूब सारा द्रव्य मांग लेना पदार्थ मांग लेना अन्न धन का अभाव ना
हो आ जाएगी जब आएगी मां तो मैं उसको नमन करके पूजा अर्चना करके मैं बाहर आ जाऊंगा कह के आऊंगा मां तुमसे मिलना चाहते हैं नरेंद्रनाथ तुम चले जाना और तुम मांग लेना उसके पास कोई कमी नहीं सबना जी का एक दाता सो में विसर ना जाई वह किसी को भूलता नहीं तुम जाओ उसके पास तुम मांग लो ठीक विवेकानंद चले गए नरेंद्रनाथ था उनका ना राम कृष्ण बाहर आ गए बैठ गए आंखों में झरझर आंसू सामने मां है भूल गया वह जो नशीली तरंगे आती हैं भीतर से व तुम्हें बहा के ले जाती हैं तूफान की तरह तुम आपे में नहीं रहते सच पूछो तो तुम ही नहीं रहते तुम ही
गिर जाते हो तुम ही उठ जाते हो तो मां सामने बैठी मां ने कहा पुत्र तुम कुछ मांगने आए थे हां मां शक्ति दो मुझे भक्ति दो चरणों की अगाध वर्दी शक्ति ठीक है बेटा तो हो गया शक्ति हो गई भक्ति हो गई मुक्ति हो गई और बस मा और क्या चाहिए होता है मुक्ति तो अंत है शक्ति हो गई भक्ति हो गई मुक्ति हो गई ठीक है पुत्र जाओ बाहर आ गए राम कृष्ण ने पूछा मांग लिया व गुरुदेव मैं तो भूल गया भूल ही जाते हैं वहां जाकर भूल जाते हो जो भूले से भूलता नहीं था उसकी एक बूंद या उसकी करीबी आते ही तुम भूल जाते हो मस्त हो जाते हो खो जाता है तुम्हारा
आप इसलिए कृष्ण कहते हैं कि गाहे बगाहे आचार्य के समीप बैठ जाना आचार्य उपासना तुम्हारी सभी द विधाएं समाप्त हो जाएंगी आचार्य के पास से निकलती हुई तरंगे तुम्हें सहज कर जाएंगे और उस सहजता में आनंद है और आनंद ही तुम्हारी जरूरत है भीतर की अंतस की प्राणों की कोई बात नहीं कल फिर आएगी मत कल मांग लेना आज नहीं मांगा तो ठीक दूसरे दिन भेज दिया जाओ आज चूक मत जाना कल तो चूक गए थे आज मत चूक जाना रामकृष्ण ने पूजा अर्चना की और बाहर चले आए जाओ विवेकानंद मां आ गई है आज मांग लो चले गए विवेकानंद मां को प्रणाम किया कल्याण मस्तु
पुत्र कहो किस लिए आया मां मुझे शक्ति दो ठीक विवेकानंद बड़े ईमानदार है यहां समझने वाली बात है भक्ति के लिए शक्ति मांगी पहले मुफ्त में नहीं कोई चीज मांगते हैं भक्ति करने के लिए शक्ति दो और भक्ति से मुक्ति मिल जाएगी मां शक्ति दो भक्ति दो और मुक्ति दो विवेकानंद बड़े ईमानदार विवेकानंद मुफ्त में नहीं चाहते मुक्ति तुम मुफ्त में चाहते हो तुम चाहते हो बिना कुछ दिए मुक्ति मिल जाए तुम इन चपका हट को छोड़ना नहीं चाहते गुरु तुमसे कूड़ा मांगता है गुरु कहता है ये कूड़ा मुझे दे दो ये चिपका हट मुझे दे दो तुम नॉन क्लिंग नेस में आ
जाओ लेकिन तुम तुम्हारी तो जान है जो चुप काटे तुम अगर अपने गुरु को नीचा नहीं कहला देना सकते तो इसका अर्थ यह नहीं कि तुम गुरु की बढाई चाहते हो भूल जाना इस बात को तुम खुद को ऊंचा दिखाना चाहते हो मेरा गुरु ऊंचा इसका अर्थ यह नहीं कि तुम्हारा गुरु ऊंचा इसका अर्थ यह कि तुम ऊंचे तुम्हारा अहंकार ऊचा गुरु के कांधे पर रखकर बंदूक चलाते हो तुम अपने गुरु की तौहीन सुन नहीं सकते क्योंकि तुम अपनी तौहीन नहीं सुन सकते तुम्हारा लगाव है गुरु के साथ इसलिए जो जिस किस के साथ भी चिपका हुआ है कोई कबीर कोई नानक कोई इस्लाम
से कोई सनातन से कोई बुद्ध से उसका बुरा नहीं सुन सकता क्यों क्योंकि उसका अहंकार दबता है अगर सनातन बुरा है तो मैं सनातन को मा मानने वाला हूं मैं भी बुरा हो गया सनातन छोटा है तो मैं भी छोटा हो गया इस्लाम छोटा तो मैं भी छोटा हो गया कुल कारण इतना है तुम अपने आप को बड़ा समझते हो और बाबा कहते हैं वड्डा दाता तेलना तमा है उसमें लोभ नहीं होता इतना भी नहीं होता कोई मुझे कहे कि तुमने सारी सृजना बनाई एक जर्रा तुम बना नहीं सकते और तुम उम्मीद करते हो कि सारा जहान तुम्हारी आरती करे पूजा करे समर्थ्य तुम्हारे में एक जर्रा और एक
बूंद पानी की बनाने को नहीं चाहतें तुम्हारी है सारा संसार तुम्हारी अर्चना पूजा की थाली सजाए लेकिन वोह बडा दाता लन तमाया वह परम दयालु वह बड़ा दाता वह सर्जन हारा इतना कुछ बनाने वाला सटीक मैं तुमसे कुछ नहीं चाहता उसकी कोई कोई तमन्ना नहीं तुम अरदास कर देते हो तुम प्रणाम कर देते हो तुम बढ़ाई कर देते हो लेकिन वो बढ़ाई मांगता नहीं तुम्हारी बढाई करना सिफत शलाका करना बेकार हो जाता है वो सुनता नहीं तुम्हारी शलाका को क्यों क्योंकि उसकी इच्छा नहीं कि तुम मेरी सलागा करो अगर सलागा करने की इच्छा हुई तो यह भी तमा हो गई
और वह तो तल ना तमा है उसमें तो जरा भी तमा नहीं तो विवेकानंद बड़े मानता है विवेकानंद कहते हैं मां शक्ति दो जिससे भक्ति कर सक और भक्ति का परिणाम जब मैं खो जाऊंगा तो मुक्त हो जाऊंगा कुछ दाव पर लगाकर मुक्त होना चाहते हैं मुफ्त में मुक्त नहीं होना चाहते लेकिन मूर्ख चाहते हैं कुछ दाव पर भी ना लगाना पड़े और वह भी मिल जाए नहीं होगा ये तुम्हारे अहंकार की सदा यही तमन्ना रहती है कि मेरा भी कुछ ना बिगड़े टूट फूट ना हो जरा भी और मैं विराट भी हो जाऊ मैंने बहुत बार कहा जरा जीर्ण है यह हवेली तुम चाहते हो यह भी बची रहे और नई
भी उसर जाए यह दोनों बातें कैसे संभव हो सकती हैं जरा जीर्ण है हवेली तो गिरेगी गिरानी पड़ेगी नीम से खोद पड़ेगी उठानी पड़ेगी फिर नई का उसर होगा लेकिन तुम प्राणी को गरने नहीं देते तुम्हारी ये टिप्पणियां बताती हैं कि तुम कितने चिपटेक काहट को तुम छोड़ना नहीं चाहते और नए को तुम पाना चाहते हो विराट को शुद्र को तुम छोड़ना नहीं चाहते बस यही मुसीबत है इसलिए तुम दुखी हो एक एक कर के घराते जाओ अपनी मान्यताओं को क्योंकि मान्यताएं सिर्फ मान्यताएं हैं तुम्हारे अनुभव नहीं अनुभव से जो मान्यताएं आएंगी वो गिराने नहीं
पड़ेंगे वो सच है लेकिन सुनी सुनाई शास्त्रों में पड़ी गुरु मुख से सुनी वो मान्यताएं है वो अनुभव नहीं है वो घराने पड़ेंगे आज नहीं कल और तुमने तो जगत ही सारा मान्यताओं के ऊपर खड़ा किया है तुम्हारे सारे महल मान्यताओं के ऊपर खड़े हैं व गिराने पड़ेंगे यही नागार्जुन कहते हैं एक एक मान्यता को घराते जाओ एक एक मान्यता को घराते जाओ गुरु के समीप बैठ जाओ गुरु तुम्हारी मान्यताओं को तोड़ेगा पर वो टूटती जाएंगी टूटती जाएंगी यह खंड हर हवेली सारी टूट जाएगी एक दिन राख भी ना बचेगी एक दिन समतल भूमि हो जाएगी ये जरजर हवेली कहीं नहीं दिखे
शून्यवाद का पहला अर्थ य है सारी मान्यताएं टूट जाए क्योंकि वह नकली है तुम्हारे अनुभव से नहीं आई वह असली नहीं जैसे तुमने आग में हाथ ना डाला हो और तुम यह कहते हो कि आग में हाथ डालने से जल जाता है तुम्हारी मान्यता है चाहे सत्य ही क्यों ना हो लेकिन तुमने जलने का स्वाद लिया नहीं नागार्जुन कहते हैं सभी मान्यताओं को एक-एक करके राओ कुछ ना बचेगा क्या बचेगा शून्य बचेगा सब गिरा दो शून्यता में आ जाओ क्या होगा शून्यता में आने के बाद फिर उसरे गी नई जमीन और जितनी आसानी से मैंने कह दिया कि मान्यताओं को एकएक करके गरा
दो उतनी ही मुश्किल है एक एक करके गराना के तुम चिपक जाते हो अपनी मान्यताओं के साथ यह मान्यताएं तुम्हारा जीवन हो गई इन मान्यताओं को तुम कहते हो कि मेरी भावनाओं को भंग कर दिया दो मेरे को 500 500 करोड़ रुपए का हर जान मेरी भावनाओं को आहत कर दिया तुमने भावनाएं गलत है एक बात कहू भावना कोई भी सत्य नहीं होते क्योंकि भावना तुमसे दूर है जहां तुम हो वहां से बहुत दूर भावना स्फीयर के ऊपर है विचार भी स्फीयर पर है कर्म भी स् फियर पर होते हैं परिणाम भी स् फियर प और तुम बैठे हो केंद्र पर भावनाएं तुमसे बहुत दूर है अगर वह आहत भी हो
जाए तो तुम्हारा कुछ नहीं बिगड़ता भावनाओं के टूट जाने से केंद्र का कुछ नहीं बिगड़ता केंद्र बिल्कुल सेफ बैठा है अपनी मस्ति में मस्त एक बात समझ लेना जो केंद्र पर पहुंच गया व कभी नहीं कहेगा मेरी भावनाओं को आहत कर दिया क्योंकि वह भली भाती जानेगा कि भावनाए उससे बहुत दूर है परिधि प है भावनाए और फिर भावनाए तुम बनाते ही क्यों तुम भावनाओं के बिना विचारों के बिना मान्यताओं के बिना बहुत अच्छी तरह से जीवित रह सकते हो जिस तरह से तुम जीवित हो अब भारे भारे से दुखी दुखी से विचारों से ग्रस्त यह मान्यताओं का परिणाम
है तुम्हारी सभी मान्यताएं धीरे-धीरे गराए गे नागार्जुन और फिर आखिर में वह मान्यताएं वह मान्यता जो जड़ में है तुम्हारे आखरी मान्यता वह क्या है एक शब्द आता है इनर्टिया तुमने कभी सुना इनर्स इसका अर्थ क्या होता है इनर्टिया का अर्थ होता है जी वंत निष्क्रियता फिर सुन लो बड़ा महत्त्वपूर्ण शब्द है और उतना ही महत्त्वपूर्ण इसका अर्थ है इनर्स जीवंत निष्क्रियता बड़े कमाल की बात है निष्क्रियता का मतलब तो मृत होता है और तुम कहते हो जीवंत यह विरोधी शब्द दोनों इकट्ठे हां यही है नागार्जुन वाद शून्यवाद निक्र तो मुर्दा भी हो जाता
है लेकिन जीवंत निष्क्रियता जिसे हमारी पंजाबी में मर जिवड़ाया है तो जीवंत लेकिन जीते जी मर गया यह दूसरी भाषा में मर जी बड़ा नागार्जुन की भाषा में इनर शिया जीवंत निष्क्रिया अब कमाल की बात है यह क्या है जीवंत निष्क्रियता के पास जाना है पहले सभी मान्यताओं को तोड़ दो यह मान्यताएं तुम्हारी बनाई हुई हैं कोई कहीं से इकट्ठी कर ली कहीं का ईंट कहीं का रोड़ा बानुमति ने कुनबा जोड़ा यह सारा कुनबा तुम्हारा इधर उधर से आया हुआ है कोई शास्त्रों से कोई मार्ग दर्शकों से कोई तुम्हारी अपनी ही सोच से कोई संतों से कोई
तुम्हारे जिनको तुम मानते हो सब उनके हैं तुम्हारी और तुमने सबको इकट्ठा कर लि और इसको जीने का एक ढंग बना लिया लेकिन मूल चीज को तुम भूल गए नागार्जुन तुम्हारी मूल चीज पर प्र प्रहार करते हैं नागार्जुन कहते हैं एक एक मान्यता को तोड़ते जाओ जो तुमने माना तोड़ो उनको कुछ भी माना तुमने तोड़ दो और इनर्स में पहुंच जाओ व नशिया क्या है जीवंत निष्क्रियता अब तक हम ऊपर से आ रहे थे अब हम केंद्र से चलेंगे तो तुम्हें समझाएगा ये जीवंत निष्क्रियता क्या है केंद्र है जीवंता केंद्र है चेतना चेतना से ऊपर उठोगे परिधि की तरफ जाओगे
तो सकता आनी शुरू हो जाएगी केंद्र पर पूर्ण निष्क्रियता है निष्क्रियता को दूसरे शब्दों में निर्लिप्त भी कह देते हैं नॉन अटैचमेंट इसे गुरु तेग बहादुर कहते हैं सर्वव्यापी सदा अलेपा तोहे संग समाय काहे रे बन ढूंढ जाए सत्य को शब्दों में प्रकट करने जा रहा हूं यह मत बोलना असंभव को संभव करने की चेष्टा में संलग्न हूं यह मत भूलना केंद्र से केंद्र के ऊपर परम जीवंतता है तुम परम जीवंत हो तुम पर परम एनर्जेटिक हो सारा संसार तुमसे एनर्जी लेके चलता है सारा पदार्थ तुमसे शक्ति लेकर चलता है शक्ति के तुम मूलभूत स्वामी हो
केंद्र वहां से जाती हैं सारी शक्ति की तरंगे और सक्रिय करती हैं संसार को इसका एक शब्द समझना है इशारे तुम समझ जाओ तो भाग्यशाली और मैं भी अपने आप को भाग्यशाली मानूंगा क्योंकि यह अंतिम पड़ाव है नागार्जुन मैंने कहा था अंत में आएंगे नागार्जुन से पहले सब जाएगा नागार्जुन से पहले सब समा जाएंगे और अंत में रह जाएंगे नागज शून्यवाद सर्वव्यापी सदा अलेपा सर्वव्यापी सदा अलेपा तोहे संग समा तोहे संग समाय काहे रे बन ढूढ जाए वह निर्लेप है वह कौन जीवंत निष्क्रियता बहुत सहज सहज मैं समझा रहा हूं क्योंकि समझाने का आखिरी दौर आ
गया नागार्जुन आखरी इसके बाद कुछ नहीं बचता नागार्जुन शून्यवाद यहां शून्य आ गया शून्य केंद्र नागार्जुन कहते हैं केंद्र शून्य है और केंद्र निर्लिप्त है और बड़े मजे की बात है केंद्र निर्लिप्त होते हुए भी सजीव है एनर्जेटिक है शक्तिमान है और निष्क्रिय है अब इसको समझो आप निष्क्रियता उसको पाने का ढंग है अब देखिए अगर आप यह बात चूक गए तो स्वयं के तत्व को भी चूक जाओगे और नागार्जुन को समझ नहीं सकोगे नागार्जुन सभी कुछ फेंक देते हैं नागार्जुन अपने पास कुछ नहीं रखते केंद्र के पास कुछ नहीं रहता केंद्र के पास सिर्फ अस्तित्व होता
है केंद्र सिर्फ होता है केंद्र के पास कुछ नहीं होता केंद्र सिर्फ एसिस्टेंसिया केंद्र सिर्फ होना है जब मैं कहता हूं जीवंत निष्क्रियता ये दो शब्द और इसको खोल दूं तो तुम्हें समझ आएगा सारा मुझे लोग पूछ लेते हैं बाबा जब आपके मुकाम पर आते हैं तो घर में प्रवेश करते ही एक अजीब तरह की मस्ती भी आ जाती है और अजीब तरह की शीतलता भी आती है पैसिविटी यह क्या है य दोहरी चीजें क्यों है पैसिविटी भी आती है निष्क्रियता घेर लेती है और आनंद भी आ जाता है सुरूर भी आता है मस्ती भी आती है पता नहीं चलता द्वार से लेक आपके कमरे तक कब पहुंचे
पहुचे यह क्या है बस इसे ही मैं कहता हूं इनर्स इनर्टिया का प्रभाव दूर दूर तक होता है जहां कोई स्वयं को जानने वाला स्वयं में केंद्रित हुआ व्यक्ति बैठा है वहां से तरंगे निकलने शुरू होते हैं अब देखिए अगर इसको बहुत बारीकी से समझोगे तो थोड़ा-थोड़ा समझ में आएगा अन्यथा सिर के ऊपर से गुजर जाएगा मैं निष्क्रिय हूं इसलिए बैठा हूं कहीं जाता नहीं निष्क्रियता का परम चर्म स्थान मैं ह और जीवंतता का परम स्थान मैं हूं परम शक्ति रूप मैं हूं और परम निष्क्रियता भी मैं हूं समझदार लोग तो कहेंगे यह तो नहीं समझ में आया नहीं आएगा समझ
में आएगा तो अनुभव में जब तुम उस केंद्र के पास पहुंचो तो फिर अनुभव में आएगा उससे पहले तुम बुद्धि से समझने की चेष्टा करोगे तो हल्का इशारा मिल सकता है हल्का इशारा मैंने क्यों कहा कि आपको मस्ती आनी शुरू हो आप खुद कहते हैं और हम हाथ पाव सन होने शुरू हो जाते हैं निष्क्रिय होना शुरू हो जाते हैं जैसे जान ना हो इ इसलिए अक्सर शिकायत करते हैं लोग बाबा गायत्री मंत्र तो रह गया और जो प्रश्न पूछना था वोह तो भूल गए ऐसा क्यों हुआ ऐसा ही होना स्वाभाविक था ऐसा ही होना चाहिए जहां इनर्टिया है जहां जीवंत निष्क्रियता
है जहां एनर्जी भी है और इन एक्टिव भी है पैसिविटी भी है और शक्ति भी है वहां ऐसा ही होता है यह दुविधा तुम्हारी बुद्धि में नहीं समझाए गी ये मैं जानता हूं लेकिन इशारों में अगर आ जाए तो भी तुम धन्य बाकी हो और मेरा भी प्रयास सफल मानूंगा मैं अगर तुम इशारा भी पकड़ लो तुम इनर्टिया में आ जाओ तो तुम नागार्जुन के शून्यवाद को समझ गए उस केंद्र से लहरें उठती हैं और बड़ी मीठी होती हैं जिस केंद्र की बात करते हैं बाबा तेग बहादुर निर्लिप्त है वो लिप्त नहीं होता चिपकता नहीं सर्वव्यापी सब जगह व्याप्त है तो इनर्स से उठती हैं
लहरें मीठी एनर्जी की और वह जब आपको टच करते हैं तो आप निष्क्रिय हो जाते हो आपके औजार बुद्धि सारे हाथ पाम सन होने लगते हैं बुद्धि छूटी इसलिए भूल जाते हो हमने क्या पूछना था यहां आ जाते हो दीक्षा ले लेते हो बठ आते हो लेकिन प्रश्न नहीं कर पाते अधूरे अधूरे चले जाते हो बाद में याद आता है जब इस ग्रफ से बाहर चले जाते हो तो याद आता है गायत्री रह गया यह प्रश्न पूछना था पास जा के नहीं पूछ पाए क्या हुआ तुम भी उस केंद्र के करीब आ गए क्योंकि तुम्हारे भीतर भी वो केंद्र है सर्वव्यापी सबके भीतर है वो केंद्र सिर्फ संत के भीतर नहीं होता संत
को तो पता चल जाता है संत तो वहां पहुंच जाता है है तो तुम्हारे भीतर भी उतना और यही संत प्रयास करता है कि तुम भी किसी ना किसी तरह उस इनर्चिंग जाओ बड़ा प्यारा है बड़ा मीठा है यह जो अनहद की आवाज आती है यह उसी से उठती है जहां तुम विराजमान हो इनर्स से आती हैं ये लहरें और तुम्हें और बात बता दूं एक छोटी से क्योंकि मैं स्वयं के अनुभव से कहता हूं जो कुछ कहता हूं जब मैंने प्रथम बार अनाहत नाथ के बाद बारे में बोला उसके बाद अनाहत नाथ की पूछार लग ग मैं नहीं जानता इनके भीतर अनाहत शुरू हुआ कि नहीं हुआ लेकिन मैं बिल्कुल कह सकता हूं
ईमानदारी से कह सकता हूं 100% सत्यता से कह सकता हूं कि मुझको ट्रेन दुर्घटना के बाद घटना कहूंगा दुर्घटना नहीं ना अच्छी घटना थी ना बुरी घटना थी सत्य में तो बहुत आश्चर्यजनक घटना थी उसके बाद कुछ ही दिनों में मुझे नाद शुरू हो गया था तो इस नाद का मैं जितना चखा हूं वो आपसे कह नहीं सकता इसका रोवा रोवा मैं जानता हूं यह क्या है कहां से उठता है क्या कुछ होता है इससे जिसके नाद शुरू हो गया वह थोड़ा सा भीतर जाकर जो सोचेगा वो हो जाएगा अगर कोई दरिद्र है अगर कोई कंगाल हो गया और उसके नाद शुरू है तो व थोड़ा अपने भीतर जाए बाहर ना
भटके अपने भीतर जाके यह सोच भर ले कि मैं कंगाली से मुक्त हो जाऊ दरिद्र हीन हो जाऊ दरिद्र हीन हो जाऊ दरिद्रता ना रहे मैं खुश हाल हो जाऊं मैं अमीर हो जाऊं तो तुम हो जाओगे यह बात नई है तुम्हारे लिए आज लेकिन बहुत से व्यक्ति आ जाते हैं परेशानी है बाबा ध्यान में नहीं जा सकते क्या करें वक्त नहीं बचता क्रिया योग के दिया वक्त नहीं बचता ध्यान में जाने के य छोटी मोटी बीमारी है किसी को कोई तकलीफ है किसी को कोई तकलीफ रोज मेरे मैसेज आते हैं तुम जो मुझे कहते हो बाबा मैं बीमार हूं मेरी धर्मपत्नी बीमार है बेटा बेटी
बीमार है या मेरा रिलेटिव बीमार है या इस समस्या से जूझ रहा है तो जो मैं करता हूं वो तुम ही कर लो आसान बता देता हूं क्योंकि आज मैं हूं सदा तो मैं नहीं रहूंगा य ध्यान रखना लेकिन मेरा बताया हुआ फार्मूला सदा रहेगा यह तुम आगे की आगे फॉरवर्ड करते रहना कंजूस मत बनना तुम्हारा कुछ नहीं जाता यह ऐसा फार्मूला है जिससे तुम्हारा कुछ नहीं परोपकार की बातें बताने से कबीर कहते हैं चिड़ी चोंच भर ले गई नदी ना घट नीर दान दिए धन ना घटे कह ग भक्त कबीर यह दान इस तरह के दान तुम्हारा कुछ नहीं कटता अगर यह फॉर्मूलेशन तुम आगे बता दोगे
फॉरवर्ड कर दोगे तुम्हारा कुछ नहीं कटेगा और मैं बोलता हूं य के ऊपर पड़ा रहेगा लेकिन कोई पता नहीं कल को य भी भ्रष्ट हो जाए कोई पता लगता है कुछ पता नहीं क्या होगा अतीत कालिमा से ग्रस्त है और भविष्य भी कालिमा से ग्रस्त है भविष्य में क्या होगा कोई नहीं जानता आने पर पता चलता है कि यह होना था तो तुम मुझे कहते हो मैं क्या करता हूं मैं उस तल पर जाकर जिसे तुम फरियाद कहते हो महावीर उसे संकल्प कहते हैं वहां जाकर मैं संकल्प करता हूं इस व्यक्ति का कष्ट यह खत्म हो जाए नष्ट हो जाए अब यहां बात समझ लेना अगर तो तुम्हारे कर्मों का परिणाम
है फिर तो वह नहीं खत्म होगा मेरी फरयाद बेकार हो जाएगी मेरा संकल्प कोई काम नहीं करेगा थोड़ा सा काम करेगा कितना 10 प्र सिर्फ और 10 प्रतिशत आराम का तुम्हें पता भी नहीं चलता इसलिए मैं कहता हूं कोई काम नहीं करेगा 10 प्रत काम तो करेगा संकल्प कहीं ना कहीं तो काम करता है इतना का आराम तो तुम्हें मिलेगा लेकिन पता नहीं चलेगा तुम्ह अगर यह तुम्हारे कर्मों का प्रतिफल आया है तो और अगर कर्मों के बिना और भी बहुत सी चीजें हैं कुछ किया कराया कोई गलत रूह तुम्हारे में से निकल गई यह पापी रूह फिरती हैं हिटलर कहां जाएगा यही फिरता
है वह सड़ती हुई बदबू से भ हुई सूक्ष्म शरीर है जिसे तुम देही कह लो बदबू आती है वो तुम्हारे बीच में से गुजर गया तुम्हें पता भी नहीं चलता व इतनी सूक्ष्म है लेकिन तुम्हें वो रूपांतरित कर जाएगी तुमने कभी देखा अचानक सा तुम बहुत खुश मूल में होते हो अचानक सा तुम मरने की सोचने लगते हो कैसे तो मर जाए तो अच्छा है क्या हुआ तुम्हें नहीं पता कि कोई हिटलर जैसी रूह तुम्हारे बीच भीतर से निकल गई और वह अपनी बदबू छोड़ गई वह बदबू तुम्हारे विचारों को बदल देगी बड़ी गहरी बातें हैं लेकिन ये होती हैं इसलिए मैं कहता हूं और तुम्हारे डॉक्टर्स तुम्हारे ओझा
इनके पास कोई हल नहीं है इन चीजों का बहुत गहराई की बातें हैं मैं बता सकता हूं इसलिए तुम्हें बताता हूं अचानक से तुम दुखी बैठे हो तुम सुखी हो जाते हो प्रसन्न हो जाते हो क्या हुआ कोई तब्दीली तो हुई नहीं कोई अच्छे रूप कोई सुगंधित रूह जिसने पुण्य ही पुण्य किया है कोई ऐसी रूह कोई ऐसा देही जिसने अपने को जान लिया वह बीच में से निकल गई इसलिए हम आवाहन करते हैं देवताओं का इसलिए हम राक्षस को प्रणाम करते हैं कि तुम तो भाई दूर ही रहना तुलसीदास ने कहा है कि ये जो दुर्जन है इनसे तो मैं क्षमा चाहता हूं तुम तो दूर ही रहो और जो सज्जन है उनको मैं
बुलाता हूं एक बार आवाहन करता हूं तुम आ जाओ वो इस बात को समझ गए थे कहीं ना कहीं यह देवता जब भीतर से निकल जाएंगे ये बड़े सूक्ष्म है पारदर्शी होते हैं शीशे के भीतर से भी गुजर सकते हैं लेकिन इनकी सुगंधी तुम्हारे भीतर हो जाएगी तो देवताओं का आहवान करने का यही मतलब था और कोई मतलब नहीं था देवता जब तुम्हारे भीतर से गुजर जाएगा तो वह अपनी सुगंधी की छाप छोड़ जाएगा और दुष्ट राक्षस जब तुम्हारे भीतर से गुजर जाएगा और तुम्हा भीतर व विषाद छोड़ जाएगा तुम दुखी हो जाओगे बिना कारण के दुखी हो जाओगे ऐसा होता है मैं क्या करता
हूं जब तुम मैं पढ़ता हूं तुम्हारे मैसेजेस को इसलिए मैं तुमसे कहता हूं कि जो तुम लिखते हो ना बाबा जी सुबह की राम राम शाम की राम राम यह पकोड़ा खा लो यह समोसा खा लो य चाय पी लो या व्यर्थ की बकवास यह मत लिखा करो जरूरतमंदों के प्रश्न रह जाते हैं जरूरतमंदों की आफत रह जाती हैं तुम्हारी राम राम से मैं खुश नहीं होता लेकिन जरूरतमंदों के कमेंट पढ़ने से वंचित हो जाता हूं सीमत वक्त है मेरे पास बस इसलिए तुम कृपा किया करो लेकिन तुम हटते नहीं क्या करूं फिर वही राम राम शुरू हो जाती है फिर वही परिणाम शुरू हो जाते हैं और देखो
तकलीफें इनके ऊपर भी आती है राम रम करने वाले ऐसा नहीं है कि इनके ऊपर तकलीफें नहीं आती आती फिर यह चाहते हैं कि हमारी तकलीफों को भी बाबास सुने अब मुझे उलझा तो लिया तुमने कहीं हाथ जोड़ रखे हैं दंडवत प्रणाम हो रहे हो कहीं चाय समोसा खिला रहे हो तुम कैसे सोच सकते हो मैं इतने व्यक्तियों का कमेंट सभी पढ़ लूंगा इसलिए मैं कहता हूं कि तुम जाने अनजाने पाप करते हो लोग तुम्हें कहेंगे कमेंट करो मैं तुम्हें कहता हूं ना करो यह व को भरना तुम पाप करते हो क्योंकि यह है दिन दुखियों के लिए दुखी व्यक्ति यहां अपने दुख लगेगा तकलीफ
लगेगा और तुम राम राम लिख रहे हो तुम कहीं हाथ जोड़ रहे हो तुम कहीं लेटे हुए दिख रहे हो क्या फर्क पड़ता है उससे कोई फर्क नहीं पड़ता बहुत बार कहा है लेकिन तुम रुकते नहीं मैं क्या करूं इससे किसी जरूरतमंद कि बेचारे का जो मैं फरियाद कर सकता था शायद उसकी तकलीफ कम हो जाती और हो सकता है नष्ट ही हो जाती मुझे ऐसे भी मैसेजेस आ जाते हैं बाबा आप तक तकलीफ पहुंची हम ठीक हो गए तो मन को एक सुख मिलता है और आपके परिणाम को देखकर मन में तकलीफ होती है मैं सच बताता हूं तुम्हें दूसरे बड़ आई समझते होंगे दूसरे कहते होंगे हमें लिखा करो मैं नहीं
कहता क्योंकि मेरे भीतर की करुणा यह इजाजत नहीं देती कि तुम मुझे राम राम करो मैं तो रोटी भी नहीं खाता तुम समोसा खिलाओ मुझे य वक्त को खराब करने जैसी बातें हैं तो जब तुम अपना दर्द दुख मुझे बताते हो तो मैं उस तल पर जाकर संकल्प करता हूं जिससे तुम फरियाद भी कह सकते हो फरियाद जैसे तुम करते हो वैसे नहीं होती तुम तो कोरी लफा करते हो उसमें जीवन नहीं होता उसमें जान नहीं होती कोरी लफा होती है सही पूछो तो फरियाद सिर्फ संत ही कर सकता है क्योंकि उसके भीतर संकल्प है वह उस तल पर जाकर संकल्प करेगा जहां मैं रोज कहता
हूं उस जंक्चर पॉइंट में जाकर जो मर्जी मांग लो तो वहां जाकर तुम्हारे दुखों का नाश भी मांगा जा सकता है तो क्यों वक्त खराब करते हो मुझे आशा है इतने सख्त अल्फाज बरतने के बाद तुम आज के बाद ऐसा कुकृत्य नहीं करोगे बाबा जी राम राम चरण स्पर्श कोई आदमी खड़ा दिखा दिया उसके पैर पकड़ते दिखा दिए लेटते हुए दिखा दिए यह गलत है ऐसा मैं अपेक्षा भी नहीं करता और इन चीजों को मैं बुरा मानता हूं कोई बेचारा असहाय जिसकी मैं सहायता करना चाहता लेकिन वक्त तो वही 24 घंटे हैं ना उसी के अंदर ही मुझे चलना होगा तो तुम कृपा कर दो तो ज्यादा बढ़िया
रहेगा लेकिन तुम मानने वाले हो नहीं मैं करूं क्या आशा है तुम्हें समझा आएगी मैं उस तल पर जाकर संकल्प करता हूं उसे नाम तुम फरियाद दे दो उसे नाम तुम कुछ भी दे सकते हो प्रार्थना भी क सकते हो और अगर वह उस तल पर जाकर फरयाद हो जाती है तो निश्चित ही तुम मुक्त हो जाओगे इन दुखों से एक शर्त मैंने पहले बता दिया तुम्हारे प्रारब्ध के कर्मों का फल नहीं होना चाहिए राहत उनसे भी मिलेगी लेकिन मिलेगी 10 प्रतित और 10 प्रतिशत काउंट नहीं होती तो उस तल पर तुम खुद ही जाकर जाना सीख लो एक तो तुम्हारी यह जो मान्यताएं हैं यह
टूट जाएंगे और नहीं जाने तुम किसी भाग्यशाली क्षण में भीतर छलांग ले लो और तुम्हें पता ही चल जाए मैं हूं कौन यह आखिरी मान्यता है तुम्हारी यही कहते हैं नागार्जुन तुम शून्य हो जाओ आखिरी मान्यता तुमने तोड़नी है क्या मैं हूं कौन तुम्हारी सभी दुख दर्द तकलीफें क्लेश कष्ट चिंताएं चिंतना आग सब समाप्त हो जाएग जब तुम जान लोगे तुम हो कौन वास्तव में तुम कौन हो मान क्या रहे हो तुम्हारी मान्यता तो गलत है तुम्हारे दुख बताते हैं कि तुम्हारी मान्यता गलत है और काश तुम भीतर छलांग लगा लो यह जान लो कि तुम हो कौन यह होगा मान्यताओं के समाप्त होने
पर और नागार्जुन कहते हैं शून्य हो जाओ शून्य बात तो उस इनर्स से लहरें उठती है अगर सभी व्यक्ति से रशिया में जाना शुरू हो जाए तो यह धरती एक पल में स्वर्ग हो जाएगी लेकिन तुम तो बाहर झंडे उठाकर फिर रहे हो फलानी पार्टी जिंदाबाद फलानी पार्टी मुर्दाबाद तुम्हें इस इन बातों से निजात नहीं मिलती वक्त नहीं मिलता तुम संत की बातों पर या तो यकीन नहीं करते या तुम अभी चाहते नहीं वहां जाना दोनों में से कोई एक बात है या तो तुम जानते नहीं कि परमात्मा है या तुम मानना चाहते नहीं कि वह है दोनों में से कोई बात है अब मार्कस ऐसा
नहीं कि वह जानते हैं कि परमात्मा नहीं है नहीं वो जानते नहीं लेकिन वह परमात्मा तक जाना चाहते नहीं यह अलग बात है तुम स्वतंत्र हो तुम नहीं जाना चाहते तो मत जाओ यह तुम्हारी अपनी स्वतंत्र इच्छा है इनर्टिया अब बात पूरी समाप्त नहीं होगी क्योंकि फिर डेढ़ घंटे की पीडियो हो गई फिर अगला पड़ाव हमें छूना होगा इनर्स में बहुत कुछ बताना बाकी है अभी यह भी बताना बाकी है कि मुझे कहा गया कि कम्यून मत बनाना लेकिन महावीर बुद्ध 5 हज लोगों का कम्यून साथ लेकर क्यों चलता है बहुत से प्रश्न बाकी रह गए अभी नागार्जुन का शून्यवाद ऐसे समाप्त
नहीं हो जाएगा हल्के में बहुत कुछ तुम्हें देके जाएगा यह अंतरिम है और इसके जानने से सब जान लिया जाएगा वक्त इजात नहीं देता इससे ज्यादा तुम देख भी नहीं पाओगे कल तक के लिए फिर छोड़े इसको फिर शून्यवाद कल यहीं से शुरू कर देंगे श्री कृष्ण गोविंद हरे मुरारी हे नाथ नारायण वासुदेवा
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