पुराने जमाने की बात है दूर कहीं [संगीत] वीरान जंगल में एक छोटी सी कुटिया डाल के कोई संत रहने लगा है सारे दिन मगन बैठे रहते हैं भजन गाने लगते हैं प्रसन्न आनंद मुद्रा में मगन एक दिन वहां से राहगीर गुजरा सर्दी के लिए एक छोटी सी रस्सी बांधकर ऊपर चादर लटका दी गई थी और बाहर देखने के लिए एक छोटा सा दरवाजा रखा हुआ था रोशन दान की तरह वो संत सारे दिन मस्त रहता जैसे आनंद की साक्षात मूर्ति हो रोए रोए से आनंद जल रहा था उसका वह राहगीर पर्दा हटाया देखा एक विराट आनंद में मगन मूर्ति जैसे साक्षात परमात्मा शांति का
पुंज उसके रोम रोम से प्रकट हो रहा था उसने जाकर प्रणाम किया संत ने आंखें खोली शांत हो गए और राहगीर ने कहा प्रभु क्या मैं यहां आपके दर्शन के लिए रोज आ सकता हूं वह संत कुछ नहीं बोला राहगीर ने समझा कि संत स्वीकृति दे रहा है साइलेंस इस हाफ कंसेंट वह रोज जाने लगा उसको देखते हुए उस ग्राम के कुछ और लोग भी आते रहे साथ में आ जाते हैं और अद्भुत चमत्कार था क्योंकि उसकी कुटिया से दूर तरक जैसे ही उनका आना होता चुंबक की तरह वह खींचे जाते उसकी कुटिया के आसपास जैसे सुगंध से भरे हुए सागर महक रहे हो ठंडी हवाएं चल रही
हो दूर दूर से आनंद उसकी कुटिया के बाहर भी फैला रहता है संत की कुटिया के है परिधि में प्रवेश करते ही एक अज्ञात महक अज्ञात कशिश उनको घेर लेती और वह करीब करीब शुद्ध बुध खोते खोते संत की झोपड़ी तक पहुंच जाते जाकर प्रणाम करते हैं देखते देखते विशाल भीड़ लगनी शुरू हो गई कुटिया छोटी थी लोगों ने पूछा प्रभु आपके दर्शन के लिए लोग बहुत आ रहे [संगीत] हैं आपको कोई तकलीफ तो नहीं हो रही संत मौन मुद्रा में आनंद के रस से भिगा हुआ सुगंधिं से घिरा हुआ संत जैसे सारे दिन मुरली की बांग देता रहता मस्त रहता लोग साथ आते गए
और कारवा बनता गया छोटी सी कुटिया में लोग ना स पाते थे लोगों ने बाहर बैठना शुरू कर दिया दूर दूर तलक उनकी चर्चा होने लगी अद्भुत रसीला व्यक्ति है वह संत उसके दर्शन मात्र से जैसे सभी रोग कट जाते हैं कट भी जाते जैसे ही उस क्षेत्र में कोई प्रवेश करता दुख दर्द को भूल जाता उसका एक प्रभाव था जैसे उसकी परिधि में कोई भी आता अपने सारे चिंता तनाव कष्ट क्लेश दर्द सब भूल जाता एक अज्ञात सी कशिश उसे खींचती और उसे पता भी नहीं चलता वो कहां जा रहा है क्यों जा रहा है लोग बाग आते गए भीतर जो बैठे और भीतर बैठे कभी उठते
खाना खाते वापस आ जाते वहीं बैठ जाते वहां जिरा बड़ा लगता था प्रफुल मन से उसके पास ही बैठे रहते है आसपास ही सो जाते हैं कुटिया के आसपास घना जब मावड़ा होता गया कुटिया के आसपास कोई चमक थी कोई दमक थी कोई हम माफ करती आनंद ही आनंद सुगंध ही सुगंध ऐसा जलवा उस संत का कहां से आया कौन है ये इसका कोई पता ठिकाना कौन है कहां से आया है लेकिन किसी को पता नहीं था अचानक उस कुटिया में बैठे हुए एक व्यक्ति ने उसे निहारा था और बात दूर तरक फैल गई थी उसकी हवाएं जो भी उसके प्रवेश क्षेत्र में आता गर जाता अनायास ही वह अपनी सुध बुत खो देता
और उसे पता ही नहीं चलता कब उसके प्रवेश द्वार में उसके करीब आकर बैठ गया वक्त गुजरता गया जमावड़ा घना होता चला गया और लोग बाग बाहर ही बैठे रहते वहां से उठने का दिल ना करता बस दैनिक कर्तव्य पूरे किए और वहीं बैठ गए बहुत सालों तक यह सिलसिला चलता रहा लोग भूल ही गए जो नए आए लोग भूल ही गए कि हम किस लिए आए लोग जो भीतर बैठे आनंद का रस पीते रहते हंसते रहते गीत सुनते रहते उसके आनंद का लुत्फ उठाते रहते सुद्धि बुद्धि उनकी खो जाती है संत के आसपास के धारे में जो भी आया वही ही का होकर रह गया फिर भीड़ बढ़ती गई भीड़ बढ़ती गई और बढ़ती गई और वहां लोग
आते गए फिर लोगों ने सोचा इतने लोग आते हैं इनके लिए कुछ खाने का बंदोबस्त किया जाए लंगर लगा दिए ग यही खा लो यह संत बड़ा प्यारा है यहां से उठने को दिल नहीं करता घर मत जाया करो वक्त आया कि लोगों ने घर वही बना लिया फिर तो नगरी बस गई शहर बस गए और एक दिन लोग भूल गए जो नए आते थे वह संत की कुटिया में प्रवेश ना करते क्योंकि जो भीतर चला गया सुध बुध खो गया बाहर आकर बता ना पाता और बस्तियां इतनी दूर तलक फैल गई नगर के नगर बस गए फर जो नए आते वोह तो नगर में बस जाते लेकिन उस संत का ख्याल भूल गया जिस पहले व्यक्ति ने उस संत की खुशबू
की रसधार को पिया था आनंद के सागर में झूमा था उसके सानिध्य में आकर और वह कशिश उसे खींच के ले गई थी कुटिया के दरवाजे का वोह पर्दा हटाया था और जैसे उसके चरणों में लोटपोट हो गया था ऐसी खुमारी चढ़ी जैसे उसे लगा कि मुझे मेरी मंजिल मिल गई इससे पहले सिर्फ वह जीवन के दिन गुजार रहा था लेकिन जैसे ही इस अद्भुत सुगंध ने गरा और वह खींचता ही चला गया संत के चरणों में बिछ गया उसे जीने का आनंद आने लगा जीने की महक उसके भीतर उठने लगी जीने का लुत्फ उसके भीतर आने लगा और फिर वह लोगों को बताने लगा और आज ऐसी दशा हो गई कि नगर बस
गए उस संत की झोपड़ी के आसपास नगर बस गए लोगों ने लंगर चलाए कपड़े बांटे बारिश में छां का इंतजाम किया फिर पक्के शड बना लिए और एक दिन ऐसा आया के वहीं लोगों ने छोटे मोटे व्यापार धंधे करने शुरू कर दिए अब जो नए आते वह भूल गए कि संत के दर्शन करने पहला व्यक्ति उसकी कशिश में खींचा खींचा उसके चरणों में चला गया था व हर वक्त उसके पास बैठा रहता लेकिन उसके बाद वह खबर फैल चली गई लोगों ने अपने पड़ाव डाली पक्के कोई मर जाता तो वही फूक देते कहीं कोई बीमार हो जाता वहीं उसका इलाज हो जाता अस्पताल खुल गए दुकाने खुल गई लोग
व्यापार करने लगे प्रचार होने लगा योग का प्रचार होने लगा वह जो भीतर बैठा था कौन है कहां से आया किसी को मालूम तो है नहीं उसके बारे में बातें चलने लगी फिर लोगों ने ग्रंथ लिखने शुरू कर दिए वह तो भीतर अब भी बैठा था लेकिन लोगों ने उसके बारे में ग्रंथ लिखने शुरू कर दिए एक बात थी कि उसकी महक अी आ रही थी झोपड़ी के बाहर भी जो लोग होते उन्हें भी उनकी खुशबू आती जीवन का आनंद वो भी उठा रहे थे लेकिन जो दूर तलक बैठ गए दूर तलक बैठ गए उन्होंने तो कभी संत का दर्शन ने किया था फिर इतनी दूर दूर तरक शहर बस गए दुकाने खुल गई व्यापार होने लगे
उसकी चर्चाएं होने लगी संत कैसा कहां से आया बहस बाजी होने लगी जिसने नहीं देखा था वह बहस बाजी करने लगा ऐसा कैसे हो सकता है जवाब तलबी होने लगी शास्त्रार्थ होने लगे नव आगु तक संत के दर्शन करना भूल गए बाकी सब कुछ करना सीख गए व्यापार चलने लगे खाने पीने की चीजें बिकने लगी जरूरत की चीजें नई-नई खोजें और वह तो परिपूर्ण साम्राज्य बन गया लोग धंधे कारोबार चलाने लगे और उस भीतर बैठे हुए संत के आनंद की महिमा लोग गाने लगे झूमने लगे मस्त होने लगे कुछ लोगों ने उसका प्रचार करना शुरू कर दिया जिन्होंने देखा नहीं था उन्होंने उसकी मूर्ति बनानी शुरू कर
दी जिन्होंने देखा नहीं था उन्होंने उसके गुणगान करने शुरू कर दिए शब्दों का लेनदेन प्रवाह चला कुछ लोग थे जो आनंद से सरा बोर उसके पास से उठकर आए थे वो जब बाहर आए तो देखा नजारा कुछ और था कोई व्यापार कर रहा है कोई पुण्य दान कर रहा है लेकिन उस भीतर बैठे संत के ऊपर कोई प्रभाव ना पड़ता वह दिन भर रात मस्त रहता उसके बारे में किसी को कुछ पता ना चला लोग अंदाजे लगा रहे थे लोगों ने शास्त्र लिखने शुरू कर दिए योग केंद्र खुल गए धारणाएं शुरू हो गई मान्यताएं शुरू हो गई जब किसी ने कुछ प्रत्यक्ष आंखों से नहीं देखा होता तो बुद्धि अपने मापदंड बना लेती है
उन्हें ही मान्यताएं कहते हैं संत कोई ज्यादा दूर ना था दूर दूर तक गांव बस गए थे नगर बस गए थे फिर भी कोई ज्यादा दूर ना था अगर मिलना चाहते तो जब आके चाहे मिल लेते संत तो वही उसने कुटिया नहीं छग लोगों ने धंधे शुरू कर दिए योग केंद्र खुल गए लोग परमात्मा से मिलने की तरकीब बताते चले गए लोगों ने योगों के बारे में बोलना शुरू कर दिया और फिर वक्त ऐसा आया योग सिखाने वाले लोग जींस बेचने लगे ऐसे धंधे शुरू हो गए ऐसे धंधे शुरू हो गए परोपकार का रिवाज चल पड़ा भूल गए लोग कोई बीमारों की सेवा कर रहा है कोई धन पतियों की जेब काट रहा है कोई
गरीबों का लहू चूस रहा है सब अपने अपने काम में मगन लेकिन उस संत की गरिमा और महिमा के करीब ना जा पाते जो उनके पास बैठा व निहाल हो गया और जिन्होंने सिर्फ मात्र सोचा था सुना था उन्होंने नगर बसा लिए आविष्कार होने लगे भर गया सारा क्षेत्र संत तो आज भी वहां बैठा है और आज भी कभी कभार कोई एक व्यक्ति उस भीड़ में से निकल के संत की उसकी कुटिया में प्रवेश कर लेता है उसके दर्शनों से निहाल हो जाता है सुगंधिं को पी लेता है उस रस को भी के झूमता है आज भी उस संत के आसपास वही परिदृश्य है वही आनंद का रस का झरना वही सुगंधिं के बाग लबा लब भरे पड़े
हैं आज भी झरने झरते हैं वहां जहां बैठा है वह संत और वह कभी लता नहीं वो कभी कहीं जाता नहीं लोग ही उसे खिलाने पिलाने लगे भोग लगाने लगे मान्यताएं फैल गई भ्रांतियां फैल गई दूर बैठे लोग उसे भोग लगाते मूर्तियां तैयार हो गई मंदिर बन गया धर्म क्षेत्र बन गया फिर उन्होंने उसका एक नाम रख लिया धीरे-धीरे दूसरे लोगों ने उसका दूसरा नाम रख लिया लोग भाग बढ़ते गए तीसरे लोगों ने तीसरा नाम रख लिया फिर तो नाम गुण गाने लगे उसको तो भूल ही गए कहां उसकी सुगंधी जो मदहोश कर देती थी आज शब्दों के जंजाल में उलझ के रह ग ना वहां जाते हैं लोग नगर बसे हुए हैं
आसपास भीड़ बड़ी इकट्ठी है मंदिर बहुत बना लिए लंगर बड़े चल रहे हैं कोई योग के नाम पर जेब काटने लगा कोई नाम के नाम पर जेब काटने लगा लोगों ने उस संत के नाम के ऊपर धंधे चला लिए लोगों ने अपनी दुकानों के नाम उस संत के नाम पर रख लिए नाम कोई जानता नहीं उन्हीं के बनाए हुए नाम संत का तो कोई नाम नहीं संत का तो कोई नाम किसी को पता भी नहीं वह तो एक सुगंधी की भरपूर आनंद की [संगीत] भरपूर खुमारी की बेसुधी का आलम है उसका कोई नाम नहीं लेकिन लोगों ने भ्रांतियां खड़ी कर ले अब उसको तो भूल गए सुगंध को भूल गए आनंद को भूल गए खुमारी को
भूल गए उस रस को भूल गए बागवा को भूल गए बाग को भूल गए नामों पर चर्चा होने लगी बहस बाजियां चलती रही लोगों ने उसके नाम पर धंधे करने शुरू कर दिया उसके नाम पर राज करने शुरू कर दिए उसके नाम पर सियासत चलने लगी लेकिन सुगंध ख गई सब उपज गया फैलाव घना हो गया रस खो गया सुगंध खो गई वो खुमारी व बेसुधी का आलम आज ना जाने कहां है जिस तरफ देखो शोर है जिस तरफ देखो भीड़ है जिस तरफ देखो कोलाहल है लोग तो भूल गए उस कुटिया के भी की चुपी उसका शीतल शीतल एहसास उसकी भीनी भीनी बनसरी बजती हुई और हल्की हल्की सुगंध उठती हुई नासा
फूटों को सहला है हृदय की धड़कने रुक जाती है ये सब कुछ भूल गए फिर भी कुछ पुराने लोग जीवित थे उन्होंने अपने बच्चों को समझाया कि तुम जब भी कभी तनाव में आ जाओ जब भी कभी उदास हो जाओ तो उस संत की कुटिया में चले जाना वहां तुम्हें बड़ा सुकून मिलेगा कोई दुख हो कोई चिंता हो कोई समस्या हो कोई तनाव हो कोई पीड़ा हो कोई कष्ट हो कोई क्लेश हो कोई झगड़ा हो और तुम्हारी रातों की नींदे हराम हो जाए दिन की भूख खत्म हो जाए दिन का चैन खो जाए रात की नींदें खो जाए तो उस कुटिया में चले जाना धीरे से पर्दा हटाना सामने ही वह
बैठा है बस उसके पास जाकर बैठ जाना और कुछ ना करना बस बैठ जाना और बैठने मात्र से तुम्हारे दुख संताप कष्ट क्लेश पीड़ाई रोग द्वंद सब नष्ट हो जाएंगे व ऐसी शय है और उसका जादू ऐसा विलक्षण है कि बच्चा जब भी तुझे तनाव हो यह संसार बड़ा भयंकर आपदाओं से विधाओं से भरा पड़ा है लेकिन यह सारा व्यापार है लोग एक दूसरे को चकमा रहे हैं एक दूसरे को मूर्ख बना रहे हैं और बच्चे कोई किसी को मूर्ख बना नहीं सकता यह भ्रांति में है कि दूसरों को हम मूर्ख बना रहे हैं लेकिन एक बात याद रखना ये खुद को ही छल रहे हैं यह कपट किसी गैर के साथ नहीं कर रहे
अपने साथ ही कर रहे हैं धोखा किसी गैर को नहीं दे रहे अपने को ही दे रहे हैं बस भूल गए हैं उसे जो शक्ति और आनंद का पूंजा है आज बड़े शास्त्र लिख लिए गए शास्त्रों से भरी पड़ी है सारी लोग उसको भूल गए जो जीवंत स्रोत कुटिया के भीतर बैठा है जहां जाने से शांत हो जाता है चित सम सम ना इधर ना उधर एक परम ठहराव को सम कहते हैं वह सदा ही मौजूद है लेकिन तुम भूल गए हो इस भरी भीड़ के भीतर इस कोलाहल भरे संसार के भीतर एक संत कुटिया में आज भी बैठा है और तुम आओगे चले जाओगे बहुत से आए चले गए और आएंगे वोह भी चले जाएंगे लेकिन वह जो कुटिया के भीतर संत
बैठा है वह विलक्षण प्रतिभा और प्रभा का मालिक वह दिव्य अनुभूतियों का सागर वह परम रस से भरा हुआ आनंद और हल्की हल्की जहां मुरलिया बज रही हैं उसके पास जाकर बैठना वहां जाना सौभाग्य है जो वहां चला गया वह भाग्यशाली हो गया नगर बसे हुए हैं कारोबार चल रहे हैं सब व्यवस्थाएं कर ली गई जो मर गया उसके लिए कब्रस्तान बना दिए गए शब्दों की लड़ाई है आज जो लोग उसके दर्शन के लिए आए थे उन्होंने आज पक्के मकान डाल दि उसकी कुटिया के आसपास और अजूबा है यह उसकी कुटिया के आसपास पक्के महल बनाकर रह रहे हैं कुटिया के बिल्कुल पास बगल में ही
उसकी कुटिया है तुम्हारे नगर के आसपास और तुम कभी वहां से निकलकर उसकी कुटिया में प्रवेश नहीं पाए और ध्यान रखना जब तक तुम अपने महल के बगीचों से निकलकर महल के शानदार लबो लिबास से निकलकर उस कुटिया में ना जाओगे तुम्हें वो सुकून की वि साधना मिलेगी जब थक जाओ हार जाओ तो तुम उस कुटिया में चले जाना यह तुम्हारी जरूरत है थक जाएगा
बाबाजी का गीत
जब राहो में बाहों का सिरह ना दूंगी बाहों का सिरह ना [संगीत] दूंगी तेरे सुने सुने जीवन में मैं प्यार का रंग भर दूंगी मैं प्यार का रंग भर दूंगी मैं बनूंगी पिया मैं बनूंगी पिया रे पथ कादि या बनूंगी दिया तेरे पथ का दिया दिया पथ पे जलाने दे साथी ना समझ कोई बात नहीं मुझे सातो आने [संगीत] दे जिस पथ पर चला जिस पथ पे चला उस पथ पे मुझे आ चल तो बिछाने [संगीत] दे साथी ना समझ कोई बात नहीं मुझे सा तो आने दे साथी ना समझ कोई बात नहीं मुझे साथ तो आने दे जिस पथ पे चला
ये राह थकाने वाली क्योंकि गलत है गलत राही थकात और इस बात को एक मापदंड बना लेना जो तुम्हें थका वह मार्ग गलत है जो तुम्हें थका वह मार्ग गलत जो तुम्हें ऊर्जा से भरते है वह मार्ग सही जो तुम्हें ऊर्जा विहीन कर दे वह सही मार्ग है बस इसे आप एक मापदंड की तरह ले
लेना देखना अपने जीवन में उतर के आज के लिए यह सूत्र आपको अपने जीवन में उतर देखना क्या करने से तुम थक जाते हो क्या करने से तुम ऊर्जा विहीन हो जाते हो क्या करने से तुम्हारा रोआ रोआ पीड़ा से भर जाता है उसको त्याग देना और जो करने से तुम ऊर्जा से लबल भर जाते हो ऊर्जा का उनता हुआ सागर हो जाता हो और लहरें उठती हैं आनंद की खुमारी की और वह लहरें आनंद की लहरें हैं शक्ति के वो लहरों का दूसरा नाम आनंद है एनर्जी की उस लहरों का दूसरा नाम सुरती है खुमारी है कहीं और मत ढूंढना जहां तुमने नगर बसा लिया बस उस नगर से थोड़ी दूर बाहर निकालो
कदम सामने है वह कुटिया है जरा देखो तो तुम मंदिर जाते हो मंदिर के प्रवेश द्वार से ही तुम्हें मूर्ति दिखती है फिर तो तुम्हारे पास ऑप्शन है तुम मंदिर में गए टल बजाया मूर्ति सामने है जाकर लिपट सकते हो चरणों में बैठ सकते हो चरणों को चूम सकते हो और चाहो तो साथ में परिक्रमा भी है तुम उस परिक्रमा में भी उलज सकते हो और जा परिक्रमा कभी खत्म नहीं होती परिक्रमा तो चक्र को कहते हैं एक परिक्रमा पूरी हो दूसरी शुरू कर दो दूसरी शुरू हो गई शुरू करते ही चले जाओ परिक्रमा का मतलब जो कभी खत्म नहीं होते चक्र का मतलब जिसका कहीं अंत नहीं
जिसकी कहीं आदि मूर्ति के आसपास यह चक्र है परिक्रमा का और तुम प्रकृत मा के चक्कर लगाते लगाते हैं इसे ही जीवन समझे थक जाते हो प्रकृति तुम्हें ले जाती है विश्राम में मैंने कहा जो ऊर्जा देता है जो तुम्हें शक्ति से भर देता है आनंद के रस से सरा बोर कर देता है भीनी भीनी स्वर लहरियां वीणा के तारों की तरह मुरली के साजों की तरह तुम्हारे प्राणों में गूंजने लगते हैं और तुम्हें ऊर्जा से भर देते हैं वह मार्ग सही है जो तुम्हारी ऊर्जा को खपा तुम्हें ऊर्जा विहीन बनाए एनर्जी लेसनेस करें वोह राह गलत है आज के लिए यही
सबक नगर बसा लिए आज आज पहलू यह है कि तुम महलों के अंदर मौज से बैठे हो भूल गए कि कहां बनाए थे तुमने यह महल क्यों बनाए थे इसलिए बनाए थे करीब ही बैठ जाएं जब मन करे तब उठे और जाकर दर्शन कर ले बैठे थे अस्थाई रूप से बैठे थे अब स्थाई तुमने महल डाल लिया अस्थाई बैठे थे वो ठीक था यहां तुम स्थाई हो भी नहीं यहां तुम्हारा कुछ भी स्थिर नहीं है सब कुछ अस्थिर है सब कुछ अस्थाई है लेकिन तुमने स्थाई बना लिया है उस कुटिया के करीब महल डालिए उस कुटिया के करीब मात्र बैठना था जब भी उदास हो जाओ थक जाएगा जब राहों [संगीत]
में बाहों का सिरना दूंगी बाहों का सिर ना [संगीत] दू जब थक जाओ तो पास ही कुटिया के द्वार को पर्दा उठाना सामने उसको बैठे पाओ ग जहां से आनंद का उद्गम होता है शक्ति का उद्गम होता है जहां से उठती हैं तरंग बने बने बांसुरी के ये नाद उठते हैं जहां से जहां जाकर जिया ठहर जाता जहां से तुम वापस आने का मन नहीं करता है बैठे थे इसलिए उसके सानिध में लेकिन भूल गए और तुमने पक्के महल बना और फिर धीरे-धीरे महलों का सुख स्वाद यहां के नरम चर्म गद्दे तुम्हें बुला ही दिए कि तुम यहां करीब बैठे थे किसलिए जब उदास हो जब संसार की तप्त
सताए क्योंकि संसार त पाता है संसार का अर्थ ही यह है कि तुम्हें ऊर्जा विहीन करते संसार की प्रत्येक क्रिया तुम्हें ऊर्जा विहीन करती है और तुम उन क्रियाओं में ही तुम रोज रोज ऊर्जा को खोते हो कभी काम में खोते हो कभी नाम में खोते हो लेकिन खोते हो और मैंने तुम्हें आज एक संदेश दिया जिस काम से तुम्हारी ऊर्जा हो जाए तुम निस्तेज हो जाओ वह गलत है और जिसके करने से तुम प्रफुल्ल हो जाओ भर जाओ तुम्हारा पत्र ऊपर तक उफना शुरू हो जाए पूरा पत्र भर जाए उस आनंद के ओज से उस सुगंधी के उस उस भीनी भीनी स्वर लहरियों से तुम
मस्त हो जाओ तुम खो जाओ और तुम्हारे भीतर एक अद्भुत संगीत का अद्भुत उस उद्गम स्रोत के पास बैठना तुम्हारा मकसद है जहां तुम्हें निश्ता मिलती है उन छोड़ उन कामों को छोड़ दो चाहे काम चाहे राम जो तुम्हारी ऊर्जा को भंग करे उसे छोड़ दो वह त्याज है आज के लिए यह सब काके है जो तुम्हें ऊर्जा से भरते तेरे सुने सुने जीवन [संगीत] में मैं प्या प का रंग भर [संगीत] दूंगी मैं प्यार का रंग भर [संगीत] दू मुझे तेरे कदम मुझे तेरे कदम नहीं बिंदिया से कम माथे पे सजाने दे साथी ना समझ कोई बात नहीं मुझे साथ तो आने दे जिस पथ पे
चला उसके संग संग चलो उसके संग संग चलो उसकी हवाओं में नाचो उसके आनंद को पियो उसके रस का पान करो उसके मधुर संगीत को सुनो उसकी खुशबुओं को सखो मस्त हो जाओ वह प्रेम प्याला है ही मस्त करने के लिए तुमने पक्के महल बना लिए महल है तो करीब लेकिन तुमने द्वार दरवाजे बंद कर लिए उस उद्यान से उठती हुई खुशबू की महक ये तुम्हारे दरवाजे पक्के रोक लेते हैं येय उस महक को भीतर नहीं आने देते तुम तुम्हारे महलों में सुने सुने से पड़े रहते हो काश तुमने महलों को के दरवाजों को खोल दिया होता उस महक को भीतर आने का रास्ता दिया
होता तो तुम्हें महलों में भी बैठे-बैठे व सुगंधी छेड़ सकती थी तुम्हारी तरंगों के ऊपर तुम्हारे साज को बैठा सकती थी गीत गा सकती थी तुम झूम सकते थे उसे सुनकर सब है तुम्हारे आसपास कहीं कुछ खोया नहीं कहीं कुछ खोता नहीं कहीं कुछ खोएगा नहीं तुम्हारे जागने भर की देर है खोल दो दरवाजे महलों में हो तो महलों के खोल दो झोपड़ी में हो तो झोपड़ी के खोल दो कच्चे मकानों में में हो तो कच्चे मकानों के खोल दो और खुले आसमान में बैठे हो तो आंखों को खोल लो देखो सामने कौन है
ये पर्दे हटा दो रुख से जरा नकाब हटा दो [संगीत] मेरे हजूर रुख से जरा नकाब हटा दो मेरे हजूर ये नकाब जोड़ रखा है तुने य थोड़ा घूंघट उठाओ ये नकाब उठा तो खूंट के पट खोल रे तो है पिया मिलेंगे घूंघट के पट खोल रे तो है पिया मिलेंगे पिया मिलन तुम्हारी जरूरत है वह कंत है तुम्हारा तुम प्रेमिका हो उसकी मैं गोरी तू कंत हमारा मैं गोरी तू कंत हमारा प्रेम [संगीत] देवता इन चरणन की दास [संगीत] मैं मन की [संगीत] प्यास बुझाने [संगीत] आए मन की प्यास बुझा ने [संगीत] आ अंतर घट तक प्यासी हूं [संगीत] मैं तू है मेरा प्रेम देवता तू है मेरा प्रेम देवता चरणन की दासी हूं मैं मन की प्यास बुझाने आई मन की प्यास बुझाने आई अंतर घट तक प्यासी हू मैं तू है मेरा प्रेम देवता तू है मेरा प्रेम देवता मैं गोरी तू कंत [संगीत] हमारा मैं गोरी तू कं हमारा मैं न दिया तू मेरा किनारा मैं गोरी तू कंत हमारा मैं नदिया तू मेरा किनारा अंग लगाओ प्यास बुझाओ अंग लगाओ प्यास बुझाओ नदिया हो कर प्यासी हूं मन की प्यास बुझाने आए मन की प्यास बुझाने आई अंतर घट तक प्यासी हूं मैं तू है मेरा प्रेम देवता तू है मेरा प्रेम देवता इन चरणन की दासी ह में तू है मेरा प्रेम दे [संगीत] देवता इन चरणन की दासी हूं मैं मन की प्यास बजने आई अंग लगा लो प्यास बुझा दो नदिया होकर प्यासी हो भूल गए हो तु
जिसके पास तुमने सानिध्य में बैठने की सोच कर आए थे वहां पक्के महल डाल लिया और बखूबी जानते हो ना यह महल जाएंगे साथ ना लबो लवास इन महलों के ना तुम्हारा इकट्ठा किया हुआ सारा पदार्थ तुम्हारे संग जाने को नहीं लेकिन भूल गया और भूलना कोई पाप नहीं होता तुम अपने आप को पापी मत समझो भूलना सहज प्रक्रिया है व्यक्ति की मनिस्टर भूलना कि गलती है पाप नहीं भूल गए हो कोई बात नहीं तुम आओ मैं बेताब हूं तुम्हें आगोश में लेने के लिए तुम आ जाओ मैं पुकार रहा हूं कब
से अंग लगाओ प्यास बुझा दो अंग लगा दो प्यास बुझा दो नदिया होकर प्यासी [संगीत] हू नदिया तो हो लेकिन प्यासे हो क्या है नदिया कभी प्यास नहीं होती नदिया तो प्यास बजाया करती है फिर नदिया प्यासी क्यों कहीं भूल है ये पाप नहीं है नदिया तो पाप नाशिनी हुआ करती है गंगा और गंगा खुद प्यासी हो जाए तो माजरा क्या होता है गंगा भूल गई अपने गंगत को बस इतनी सी बात है तुम तुम्हारे गंगत को भूल गए हो हो तो तुम गंगा तुम्हारे तुम तुम्हारे तीर्थ को भूल गए हो हो तो तुम तीर्थ हो तो तुम हज खुद काबा मक्का मदीना तुम खुद हो तुम भूल गए
हो तुम खुद ही हो मक्का तुम खुद ही हो मदीना तुम कहां उली गए हो और ध्यान रखना यह तुमने पाप नहीं किया भूलना कोई पाप नहीं होता यह स्वभाव है व्यक्ति का हूम टू एरर गलती कर देता है वह और भूलना एक गलती है तुम भूल गए हो और गलती को ठीक किया जा सकता है तुम इसे ठीक करो भूल गए हो तो याद करो हो तो तुम गंगा है हो तो तुम मक्का ही हो तो तुम मदीना ही तुम अपने मक्का को भूल गए हो तुम अपने मदीना को भूल गए तुम तुम्हारे स्वय को भूल गए हो तुम ही हो परवरदिगार तुम ही हो रहमो करीम तुम्हारी रहमत से धड़कते हैं चांद और तारे तुम्हारी रहमत से चलती है यह दुनिया
तुम कहां खो गए जागो होश में आ अपने आप को ख्वार मत करो तुम ना जाने किस जहां में खो गए हम भरी दुनिया में तनहा हो गए तुम ना जाने किस जहां में खो गए हम भरी दुनिया में तनहा हो गए तुम ना जाने तुम खो गए हो लेकिन खत्म नहीं हुए हो जो गुम हो गया वो ढूंढा जा सकता है जो खत्म हो गया वह नहीं ढूंढा जा सकता और तुम खत्म नहीं हुए हो तुम तो वो हो जो खत्म कभी होते नहीं तुम तो मुस्तकिल तुम वह शय नहीं जो खत्म हो जाओ तुम व शय हो जो कटते नहीं जो टूटते नहीं जो पिटते नहीं जो सूखते नहीं जो गलते नहीं जो जलते नहीं तुम वो पहचानो अपना
स्वय जानो ये बंद आंखों से देखे हुए सपने बंद करो आंखें खोलो और आंखें खुलने पर तुम पाओगे कि भूल हो गई थी भूल होना स्वाभाविक है तुम करीब ही बैठे हो तुम्हारे महल जहां वह बैठा है उससे दूर नहीं बिल्कुल करीब हो उपनिषद कहते हैं कि तुम उसके करीब वह तुम्हारे पास है और दूर से दूर भी है तुम चाहो तो दूर हो सकते हो भरतो की [संगीत] आग ये देश और ईर्षा की आग जैसे तुम किसी के साथ पीठ के साथ पीठ लगा केर खड़े हो गए तुम बहुत करीब हो तुम्हारी पीठ उसकी पीठ से लगी है तुम्हें उसका एहसास है लेकिन फिर भी बहुत दूर हो बस तुम परमात्मा के साथ पीठ किए खड़े
हो तुम्हारी पीठ उसके साथ लगती है य ईर्ष य द्वेष य नफरत की भावना मजहब नहीं सिखाता धर्म इसे नहीं सिखाता जो तुम्हें सिखाए नफरत करना समझो वह अधर्म है समझो वो खुद बहक गया है उसने खुद राह भूल गया है मैं किसी और मंतव्य से बोलता होगा उसका निहित स्वार्थ और प्रयोजन कुछ और होगा तुम तो बहुत करीब हो इतने करीब तुम्हारी पीठ उसकी पीठ से लगती है लेकिन क्या करें तुम्हारे मुख जुदा है विपरीत दिशाओं में तुम्हारे मुख है पीठ के साथ पीठ लग रही है जरा घूम के उसके सामने आ जाओ और सामने आओगे तो वह छलिया सामने ही देखेगा भूला हुआ घर वापस आ
जाए भूला नहीं होता ऐसे ही तुम भूल गए हो तुम देखो आंखें को उसके सानिध्य को पहचानो उसके रस को पियो उसके आनंद के सागर में गोते लगाओ नहाओ अच्छी तरह से मलमल के नहाओ अपनी सारी मैल उतार दो निर्मल हो जाओ उसके भीतर नहाने से सब रोग कट जाते हैं सब दुविधा मट जाती है चिंताओं की ज्वाला समाप्त हो जाती हैं उसका यह स्वभाव है जरा पीठ से पीठ को हटा लो सामने तो आओ छलिए छुप छुप चलने में क्या राज है छुप ना सकेगा परमा आत्मा मेरी आत्मा की ये आवाज है जरा सामने तो आओ चलिए सामने ही है बस पीठ को पीठ से हटाना है और मुख को मुख के सामने ले आना है यही
बुल्लेशाह कहते हैं बुलिया रबदा की पना उधर पटना ते दर लाना पीठ से हटाओ पीठ को यह नफरतों की आंख बजाओ इन आगों से तुम्हें दूरियां पैदा होंगे दूरियां जलन पैदा करती हैं और जलन आग होती है और आग बड़ा सताती है यह फफोले तुम्हें दिन भर रात जीने नहीं देते जीने का तरीका सीख लो
पीठ से पीठ हटा लो मुख के सामने मुख ले आओ और उसके गले से लग जाओ चूम लू मैं उस जुबा को जिस पे आए तेरा नाम चूम लू मैं उस जुवा को जिस पे आए तेरा नाम सबसे अच्छी तेरी शुब हो सबसे रंगे तेरी श्याम तुझ पे दिल कुर्बान ऐ मेरे प्यारे वतन ऐ मेरे बिछड़े चमन तुझ पे दिल कुर्बान ही मेरे आरजू तू ही मेरी [संगीत] आबरू तू ही मेरी [संगीत] शाम मेरे मां का दिल बन के कभी सीने से लग जाता है तू मां का दिल बनके कभी सीने से लग जाता है तो और कभी नन्हे सी बेटी बनके या दाता है [प्रशंसा] तू जितना याद आता है मुझको उतना तड़पाता है तू तुझ पर दिल कुर्वा तू ही मे [संगीत] आरजू तू ही मेरी आरू तू ही मेरी [संगीत] शान मेरे प्यारे वतन ऐ मेरे बिछड़े चमन तुझ पे दिल कुर्बान ऐ मेरे व तुम्हें पुकार रहा है तुम्हारा वतन तुम्हारा चमन तुम्हारी इंतजार में बाहे फैलाए तुम्हें चूमने को तैयार
[संगीत] है तुम्हें बुला रहा है तुम जाते क्यों नहीं तेरे दामन से जो आए उन हवाओं को सलाम चूम ल मैं उस जुबा को जिस पे आए तेरा नाम सबसे अच्छी तेरी शुब हो सबसे रंगी तेरी श्याम तुझ पे दिल कुर्बान ऐ मेरे प्यारे वतन है मेरे बिछड़े [संगीत] चमन तुझ प दिल कुर्बान
समाप्ति
श्री कृष्ण गोविंद हरे मुरारी हे नाथ नारायण वासु श्री कृष्ण गोविंद हरे मुरारी हे नाथ नारायन वासुदेवा श्री कृष्ण गोविंद हरे मुरारी हे नाथ नारायण वासु देवा श्री कृष्ण गोविंद हरे मुरारी हे नाथ नारायण वासुदेवा पितु मात [संगीत] स्वामी सखा हमारे पितु मात
स्वामी सखा हमारे हे नाथ नारायण वासुदेवा श्री कृष्ण गोविंद हरे मुरारी मुरारी मुरारी मुरा मुरा [संगीत] मुरारे श्री कृष्ण गोविंद हरे मुरारी नाथ नारायण वासुदेवा श्री कृष्ण गोविंद हरे मुरारी पित मात स्वामी सखा हमारे पितु मात स्वामी सखा हमारे हे नाथ नारायण वासुदेवा श्री कृष्ण गोविंद हरे मुरारी हे नाथ नारायण वासुदेवा [संगीत] धन्यवाद
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