सूक्ष्म शरीर/देही का निर्माण कैसे होता है?कारण शरीर क्या है?देही को बाहर ले जाने का द्वार



नंदिनी श्रीवास्तव आपने कहा बाबा आशुतोष महाराज सह सरार से निकल गए इसलिए वापस नहीं आ पाएंगे जब भी शरीर से बाहर जाना होता है वापस आने के लिए तो नाभी चक्र से जाना होता है बात कुछ समझ में आई नहीं बाबा इसको थोड़ा सा गहनता से समझाने का कष्ट करेंगे

बिल्कुल अध्यात्म की [संगीत] बातें शब्दों में आती नहीं प्रवचन से पहले ही मैं बोल बोल देता ताकि आप शब्दों को पकड़ ना पाए शब्दों के भीतर जो छिपा है रहस्य उसे पकड़ पाए सवाल अध्यात्म के ऐसे ही होते हैं सवाल बहुत ठीक पूछा है बेटे अन्यथा बारबार कहता हूं आगे आगे जमाना अंधकार पूनार कोई जवाब दे पाए ना दे पाए कोई इतनी गहराई तक जाए जाए ना जाए कौन जाने तो विस्तृत विवेचना करता हूं आज क्योंकि इस प्रसंग बड़ी गलतफहमी है मैं भी कोशिश करूंगा सरल करने की आप भी ध्यान से सुनसान जगह पर शोरगुल से बाहर एकांत में से सुनने का प्रयास करना तो शायद आपके गहरे उतर सकती है बात लो हम शुरू करते हैं विद्यार्थियों को आबासा भी सिखाना पड़ जाता है कभी-कभी दो चीजें होती हैं जब आप कोई विचार करते हो इच्छा रखते हो वासना उठती हैं क्रोध जन्मता है लोभ जन्मता है तो वह विचार जाते हैं देही में वासना जाती हैं देही में काम क्रोध यह विकार जाते हैं देही में यह इकट होता है देही में ध्यान से समझा बात को यहीं से समझ जाएगी हम जब वासना में जाते हैं तो देही बढ़ता है और जब हम ध्यान में जाते हैं तो कॉन्शसनेस बढ़ती है चेतना बढ़ती है अब इन दो चीजों को मूल रूप से ले लेना यह दो दिशाएं मैंने आपको दे दी वासनाओं में जाओगे दे ही बढ़ेगा ध्यान में जाओगे कॉन्शसनेस बढ़ेगी जागृति अवेयरनेस बढ़ेगी अगर यह बात समझ में गई तो आगे चलो विचार करते हो वाएं करते हो कामनाएं करते हो लालसा करते हो समृति में जाते हो या भविष्य की कल्पना में जाते हो देही का निर्माण होता है देही को समझने के लिए आप पिछले वीडियोस खंगाल सकते हैं जब आप ध्यान में जाते हो कुछ नहीं करते हो बस बैठे रहते हो तो तो आपका कॉन्शसनेस बढ़ता है चेतना का तल बढ़ता है अब आगे चले जब हमने देही को साथ लेकर जाना होता है कोई एस्ट्रल ट्रेवलिंग पर कोई बाहर जाना है कोई कैलाश जाना है कोई ज्ञानगंज जाना है सिद्ध आश्रम वगैरा वगैरह यहां या बाहर किसी प्लेनेट पर जाना है तो कैसे जाएंगे हम देही के साथ जाएंगे देही जाएगा हमारे साथ देही ही जाएगा और कहां से जाएगा नाभी चक्र से जाएगा मूलाधार से जाएगा एक एक शब्द को बड़े विस्तार से समझ लेना अगर ना समझाए तो मुझे बता देना मैं यहीं रुक के रिपीट कर दूंगा जब इस शरीर से बाहर जाना है स्थूल से बाहर जाना [संगीत] है देही जब बाहर जाता है नाभि चक्र से जाता है और आपने बात की दशम द्वार की सहस्रार के सहस्रार से बाहर जाती है सिर्फ चेतना पह योगी जो संपूर्ण हो गया जिसने इस देह में रहते-रहते अपने सब कर्म भोग भोग लिए जो ज्ञान गंगा में नहा लिया अपने आप जान लिया अपने विस्तार को जान लिया दो बातें बोली मैंने ध्यान रखना अपना आप जान लिया नो दय सेल्फ अपना विस्तार जान लिया हम अस्तित्व है कोने कोने में तम सर्वम यत जगत जगत पहले जानना होता है मैं यह शरीर नहीं शरीर से बड़े साक्षी पहले कदम है लेकिन यहां अगर यहां रुक जाओगे तो बुद्ध हो जाओगे फिर उससे आगे एक स्टेप होर है टू नो दय सेल्फ के बाद टू नो एक्चुअलिटी रियलिटी वास्तविकता क्या है वास्तविकता तुम अस्तव में फैले हुए कण कण में समाए हुए बिन नावे ना को ठाम कोई जगह ऐसी नहीं जहां तुम नहीं हो वह एक आप तुम्हारा दूसरा आप है एक आप तुम्हारा तुम साक्षी हो और एक दूसरा आप भी होता है होता है तुम सर्वज्ञ हो तुम सर्वव्यापक हो तुम सर्व शक्तिमान हो तुम इस अस्तित्व के कण कण में हो और बड़ा प्यारा दृश्य होता है उसकी कल्पना से हु योगी कृत कृत हो जाता है योग इसे ही कहते हैं जिसने अपने आप को मिला दिया योग का अर्थ प्लस जिसने अपने आप को मिला दिया किसमें बूंद समानी समं में बूंद जब समुद्र में समाती है तो समुद्र से योग करती है समुद्र में प्लस हो गए समुद्र से निकली थी समुद्र में समा गई इसे योग कहते हैं अपना आप जान लिया आप जानने के बाद भी बुद्ध 30 वर्ष तक जीते हैं महावीर भी जीते हैं आप जानने के बाद कर्म भोग तो भुगते नहीं पड़ेंगे जो भी आपने किए पिछले जन्मों में किए भोगे किए भोगे नए किए भोगे पुराने माइनस प्लस माइनस प्लस जो बच गए शेष स्वय को जानने के बाद जो बच गए तुम्हें भोगने पड़ेंगे और वह तुम भोगते हो बुद्ध भी भोगते हैं कृष्ण भी भोगते हैं राम भी भोगते हैं महावीर भी भोगते हैं कबीर भी भोगते हैं नानक भी भोगते हैं वह भोगने ही पड़ेंगे लेकिन अगर इसमें शरीर में रहते रहते बुध भोग लेते हैं लेकिन लसत शीष रख गए करुणा के कारण भोग सकते थे उनके पास शरीर था लेकिन शेष रह गया वो शेष रह गया अति करुणा के कारण परम करुणा के कारण क्या होगा जैसे बाप दादा अपनी संतानों के लिए सोचता है कि हम अपनी पुश्तो को क्या देकर जाएंगे ऐसे ही बुद्ध ने सोचा आने वाला वक्त अंधकार है तो फिर मैं बना ही रहूं एक बार घने अंधकार के युग में फिर प्रकट हो जाऊ यह उनकी करुणा की कहानी ही कहता है और बुद्ध फिर आएंगे आएंगे तो कृष्ण भी फिर लेकिन दोनों बातें यक सा होती हुई भी अलग-अलग है वो आएंगे किसी और रूप में पहचान तो तुम बुद्ध को भी नहीं सकोगे कृष्ण को भी नहीं राम को भी नहीं सकोगे अगर वह आएंगे तो लेकिन आएंगे नहीं राम भी कबीर भी नानक भी कभी नहीं आएगा वो भोग गए सब भोग गए वह योगी जो सारे कर्म भोग लेता हैसे देह में बैठे बैठे उसका देह ही नष्ट हो जाता है समझे ना बात को क्योंकि देही के भीतर जो कुछ जमा है कूड़ा कचरा वही तो भोगना होता है और अगर तुम विषय वासनाओं में अभी भी पड़े रहे तो देह ही बढ़ता जाएगा और अगर तुम कॉन्शियस निस में उतरते चले गए तो चेतना बढ़ती जाएगी और जब तुमने जान लिया कि हु एम आय उसके बाद तुम्हारे भोग शुरू हो जाते हैं नए कर्म बनने बंद हो जाते हैं देही रोज घटता है रोज घटता है सूक्ष्म शरीर कहता हूं देही जो लोग ना समझे हो वह देही को सूक्ष्म शरीर की तरह ले ले सूक्ष्म शरीर रोज घटता है घटता है घटता है एक दिन शून्य हो जाता है अब उस अवस्था में जबक देही ही ना बचा देही शून्य हो गया तो क्या रह गया चेतना रह गई शुद्ध स्वरूप रह गया यह स्थूल शरीर और देही सूक्ष्म शरीर और उसके भीतर एक कारण शरीर जो समुद्र का एक हिस्सा [संगीत] बूंद उसका जिक्र मैंने इसलिए नहीं किया प्रासंगिक था जब प्रसंग आएगा तो मैं बताऊंगा अब यहां आवश्यक हो गया सूक्ष्म शरीर के पीछे कारण शरीर कारण शरीर है बूंद जो समुद्र से बिछड़ गई थी उसने मिलना है समुद्र में अपने उदगम स्थल से मिलना है उसे शुद्ध चेतन वह संग संग यात्रा करती है देहि और अब आखिरी समय में जब देही समाप्त हो गया उसकी अंतिम कदम उठाना है उसने अपनी यात्रा का समुद्र में मिलना है बूंद ने यह उसका अंतिम काम है समा जाना समुद्र में वह चाहे तो नाभी से निकल सकता है चाहे तो नासिका से निकल सकता है चाहे तो कानों से निकल सकता है नव दवार में से कहीं से भी निकल सकता है और दशम द्वार से वही निकल सकता है क्योंकि उसने वापस नहीं आना और अगर कोई व्यक्ति मूर्खता करेगा आशुतोष देही समाप्त नहीं हुआ और निकल गया दशम द्वार से तो गड़बड़ हो जाएगी यह मुड़ता कभी-कभी होती हैं ऐसी ही मुड़ता अशु तोषण की और कोई भी व्यक्ति तो साधना करते करते ऐसी मुड़ता करेगा देखिए मेरे पास बहुत सी शंकाएं रही है अगर ध्यान करते करते हम सहस्रार में से निकल गए तो क्या होगा नहीं निकल सकोगे तुम बड़ा मुश्किल है वो निकना क्योंकि वह द्वार ही नहीं है यह तो ऐसा है जैसे एक छोटे से द्वार से हाथी निकलने की कोशिश करें क्या होगा दरवाजा टूट जाएगा दशम द्वार है निकलने के लिए कारण शरीर के निकलने के लिए द्वार है सूक्ष्म शरीर के निकलने का द्वार नहीं है इसको बहुत बारीकी से समझना ठीक किया तुमने बेटी प्रश्न पूछ के अगर देही को कारण शरीर के साथ लेकर जाना है तो तुम्हें नाभि केंद्र से ही निकलना होगा और अगर कहीं गलती से गलती से देखिए प्रयास करना पड़ता है ऐसे ही नहीं है कि तुम ध्यान करते करते अपने से निकल जाओगे ऐसा इतना आसान मसला नहीं है जी यह स्वभाव त्या नहीं होता यह गलती से भी नहीं होता इसलिए जो लोग ध्यान में जा रहे हैं वह निश्चिंत रहे मैं जिम्मेवार हूं इस चीज का वह अपने से नहीं निकल सकेंगे उन्हें बड़ा प्रयास करना पड़ेगा तुम्हारा क्या ख्याल है छोटे से दरवाजे से तुम्हारे दरवाजे से हाथी गुजर सकता है नहीं बड़ा प्रयास करना पड़ेगा जिन लोगों ने ऐसी शंकाएं जाहिर की डर भय जाहिर कि हैं कहीं ऐसा तो नहीं होगा हम शरीर से बाहर निकल जाते हैं तो देखिए शरीर से बाहर निकला जा सकता है ध्यान में निकला जा सकता है लेकिन जब भी तुम शरीर से बाहर निकलोगे वह निकलेगा देही कारण शरीर नहीं जाएगा यह बात समझना शब्दों में सारी चीज को अभि व्यक्त करने की पहले ही मैं क्षमा याचना कर चुका हूं कोई व्यक्ति प्रश्न ना करे यह इतना साधारण मसला नहीं कि आगे तुम्हारे प्रश्नों के मैं जवाब दे दूं बस यहीं तक बोल सकता हूं अपनी पूर्ण इंटेलेक्चुअलिटी का इस्तेमाल करके मैं जो बोल रहा हूं वो अंतिम है उससे आगे मैं बोल सता शब्द भी बेकार और मेरा प्रयास भी बेकार तुम ध्यान करते करते जब बाहर हो जाते हो तो एक बात समझ लेना कारण शरीर नहीं जाता है देह ही बाहर जाता है यानी सूक्ष्म बाहर जाता है स्थूल यहां पड़ा रह जाता है और स्थूल के भीतर कारण शरीर भी पड़ा रह जाता है कारण शरीर एक ऐसा फ्यूज है जो तुम्हारे घर को सप्लाई करता है देखिए थर्मल प्लांट में बिजली बनी वहां से तुम्हारे पावर स्टेशन में आई यहां जितने भी तुम्हारे वोल्टेज के होते हैं 11000 होते हैं जो भी होते हैं वहां से तुम्हारे घर तक आई लाइट और तुम्हारे घर तक भी आने में लाइट उसको भी फ्यूज का सहारा लेना पड़ता है वहां भी तुम फ्यूज लगाते हो वह है कारण शरीर उस फ्यूज से वह थर्मल प्लांट की विद्युत पावर तुम्हारे घर को रोशन कर देते है अगर वह फ्यूज नहीं होगा तो भी तुम्हारा घर रोशन नहीं हो सके अब इस सारी व्यवस्था को ठीक से समझ लेना अगर समझ ना आए तो उसको बार-बार सुन लेना रिपीट करके सुन लेना अहम बिंदुओं को मैं बार-बार बोलता हूं एटॉमिक पावर प्लांट या कोई भी पावर प्लांट वहां से सप्लाई आती है सारे संसार को वो आती है तुम्हारे ग्राम या शहर के विद्युत स्टेशन तक पावर हाउस जिसे कह देते हैं पावर हाउस से तारे बिछा के तुम्हारे घर से बाहर के जो खंभे हैं वहां तक जाते वहां से तुम्हारे घर तक जाती है लेकिन फिर भी तुम्हारा घर जगमग नहीं होता एक कमी रह जाती है फिर भी क्या कमी रह जाती है वह फ्यूज सारे कनेक्शन ओके हैं लेकिन जब तुम फ्यूज लगाओगे तो वह बिजली तुम्हारे घर को रोशन करेगी फिर सब कुछ चलेगा भी चलेगा एसी भी चलेगा हीटर भी चलेगा बल्ब भी जगेगा ट्यूब भी चलेगी पानी की मोटर भी चलेगी लेकिन अगर तुम ने फ्यूज नहीं लगाया तो कुछ नहीं चलेगा यह फ्यूज कारण शरीर है क्योंकि इसका जिक्र कहीं आता नहीं इसलिए पहले मैंने तुम्हें उलझाना ठीक नहीं समझा वक्त आने पर इसका छोटा सा रोल है तो मैं बता दूंगा आज वो वक्त गया आज वो प्रश्न गया तो तुम्हारे खंभे से तुम्हारे घर तक कनेक्शन गया और तुम्हारे घर के भीतर जो कनेक्शन जाएगा वह लेकर जाएगा कारण शरीर तो क्या होता है जब तुम संबोधि से युक्त होते हो तुम्हारा देही ही गल गया तुमने सभी भोग भोग लिया जब तुमने सारे भोग भोग लिए तो तुम्हारा देही शून्य हो गया जीरो कुछ और भोगना बंदना रहा सभी वही खाते बराबर कर दिए गए कोई लेना देना बाकी नहीं अब क्या है अब तुम्हारी मर्जी है अगर शरीर चलता है तो चलने दो अगर तुम चाहते हो तो चलने दो नहीं चाहते तो निकल जाओ और फिर तुम्हारे लिए तुम स्वतंत्र हो इसे ही स्वतंत्रता कहते हैं यहां भी परतंत्र नहीं है व्यक्ति तुम चाहो किसी भी द्वार से निकल सकते हो लेकिन उसी अवस्था में यह सह सरार काम करता है सह सरार से निकलना होता है तो योगी सहसरा से निकलता है क्योंकि सही सही बिंदु सही सही निकासी सथल कारण शरीर का शब्द समझ लेना अब मैं देही नहीं बोल रहा हूं कारण शरीर का उस बूंद का समुद्र में मिलने का सही सही निकासी द्वार है हमारा सहसरा लेकिन एक बात को ध्यान में रखना उस कारण शरीर के साथ देही नहीं जाएगा तो जो अपने देही को समाप्त कर चुका है वह निकलेगा दशम द्वार से जैसे हर चीज की निकासी के परमात्मा ने द्वार बना रखे हैं पसीने का द्वार चमड़ी है मल मूत्र का द्वार अलग है बाकी द्वारों के अपने अपने काम ऐसे ही इसका द्वार का एक बार इस्तेमाल होता है सहसरा द्वार का एक बार इस्तेमाल होता है कब अंतिम समय में जब बुद्ध पुरुष सब भोग लेता है और उसका देह ही समाप्त हो जाता है एक बात तुमसे कहूं इस द्वार से बुध भी नहीं निकलते हैं निकल सकते हैं निकलते नहीं बुध भी जब जाते हैं नाभि केंद्र से जाते हैं कोई भी व्यक्ति जो कॉन्शसनेस लेवल को बढ़ा रहा है ध्यान में जा रहा है इस द्वार से एक बार ही निकला जाता है दूसरी बार नहीं निकला जाता और अंतिम वेला में बुध यहां से निकल सकते हैं लेकिन बुद्ध निकले नहीं यहां से महावीर यहां से निकल गए बुध नहीं निकले सभी चीजों के निकासी द्वार निर्धारित है अगर निकासी द्वार गलत निकासी से निकलोगे आप तो कोई ना कोई गड़बड़ी होगी देखिए पसीने को निकलने की जगह है हमारे रोमे मूत्र के निकलने की जगह है वीर्य के निकलने की जगह है हमारी गुप्त मल के निकलने की जगह है आंखों को देखने की जगह है आंखें कानों से नहीं सुन सकती सुनने की जगह है आंखें सुन नहीं सकती कान देख नहीं सकते सभी के द्वार अपने अपने हैं सुचारु रूप से काम कर रहे हैं गड़बड़ी कब पैदा होती है जब तुम किसी द्वार को गलत ढंग से इस्तेमाल करते हो नाभि द्वार है देही के साथ शरीर का निकल जाना तुम एस्टल ट्रेवलिंग करना चाहते हो करो मुझ से करो तुम चाहे तो हेल स्टेशन जा सकते हो गाड़ी में बैठ सकते हो कार में बैठ सकते हो बस में बैठ सकते हो यह तुम्हारी ऑप्शन है लेकिन वो सही ढंग है हिल स्टेशन पर जाने के लेकिन कार के द्वारा तुम दूसरे ग्रह पर नहीं जा सकते वहां जाने के लिए तो देही को साथ लेकर जाना पड़ेगा और फिर यहां मैं साफ कर दूं बात कल फिर उलज सकती है आज तो प्रसंग आया है जब तुम एस्ट्रल ट्रेवलिंग पर जाते हो तो देही जाता है सूक्ष्म शरीर साथ चेतना तो सब जगह फैली हुई है लेकिन कारण शरीर नहीं जाता कारण शरीर यही रहता है क्योंकि कारण शरीर जिससे निकल गया उसन तुम्हारे भीतर कुछ नहीं कारण शरीर के निकलने का कौन सा स्थान है जैसे पसीने के निकलने का द्वार है कारण शरीर के निकलने का एक ही द्वार है सह सरार यह द्वार बना ही कारण शरीर के लिए है देही के लिए नहीं है देही के लिए नाभी केंद्र है वहां से जाओ आओ कारण शरीर के लिए एक ही स्थान है निकासी द्वार है वो है सह सरार दशम और कारण शरीर ऐसे निकला भी नहीं करता कारण शरीर बिल्कुल अंत में निकला करता है अभी तुम्हा पूरी भोग भोगे नहीं अभी तुम्हारा देही बरकरार है तुम देही को साथ लेकर अगर बाहर निकलते हो कारण शरीर को साथ लेकर देही के संग उस द्वार से निकलते हो जो सिर्फ कारण शरीर के लिए है तो तुम्हें मैंने कहा कि वह एक बार वहां से निकला हुआ कारण शरीर वह निकासी द्वार है कारण शरीर के और कारण शरीर बिल्कुल अंत में निकलता है कब जब उस बूंद ने समुद्र में समाना होता है जहां कबीर कहते हैं बूंद समानी समुद में यह द्वार सिर्फ कारण शरीर के लिए है लेकिन कोई व्यक्ति जो विशुद्धि चक्कर से ऊपर चला गया है वह निकल सकता है यहां से देखिए एक वैन है जो विशुद्धि से नीचे है वह तो यहां से निकल ही नहीं सकते उसकी तो बात छोड़ दो जो विशुद्धि पर गए हैं वो यहां से निकल सकते हैं लेकिन निकलना मूर्खता होगा फिर अगर वह यहां से निकलेंगे तो यह सोच के निकले कि वापस नहीं आएंगे क्योंकि इस ब्रह्म रंद्र से निकला हुआ फिर वापस नहीं आता कारण शरीर जिसे तुम जीव भी कह देते हो जीव का अर्थ जो जिंदा है जीव का अर्थ जो चेतन है यह उसका निकासी द्वारा है सहसरा तो क्या हुआ शु तोष के साथ क्या हुआ इस इस चक्र से बाहर हो गए थे विशुद्धि चक्र से बाहर और मैंने पहले भी प्रवचन के अंदर साफ किया विशुद्धि चक्र में जैसे ही आप प्रवेश कर गए बस आप योग्य हो गए किसके मुक्ति के फिर देर अर तुम पहुंच जाओगे और देर अर का यह मतलब नहीं कि प्रकृति के हिसाब से लाखों जन्म नहीं लगे नहीं नहीं लाखों नहीं लगेंगे फिर तुम जल्दी ही पहुंच जाओगे बस एक या दो अगर तुम विशुद्धि किसी ना किसी तरह इसलिए मैं रोज तुम्हें कहता हूं किसी ना किसी तरह से तुम विशुद्धि पर पहुंच जाओ और जब मैं यहां दीक्षा देता हूं अब मैं थोड़ा साफ कर दू बा तो तुम किसी भी तल पर हो किसी भी तल पर हो किसी भी चक्कर पर हो चाहे लाधार पर हो चाहे अना हो स्वाधिष्ठान पर हो मैं तुम्हें अनाहत पर ले आता बस मेरी दीक्षा का यही मतलब है इसलिए मैं तुम्हें कंफर्मली कह सकता हूं कि यू विल बी लि बरेटेड क्योंकि मैं बखूबी इन नियमों को जानता हूं जो प्रवेश कर गया वि शुद्धि चक्र में वह सर्टन हो गया वह पहुंच जाएगा गुरु का यह काम बड़ा अनोखा और अद्भुत होता है जो व्यक्ति अभी से योग्य नहीं हुए होते कि उन पर शक्ति पात करके उन्हें अपना आप दिखा दिया जाए तो फिर एक ही रास्ता है उन्हें इतने सेव कर दो विशुद्धि पले जाओ तो कम से कम उनकी लिबरेशन का मार्ग पक्का हो जाएगा यह एक नियम है विशुद्धि के भीतर जो प्रवेश कर गया लेकिन इस नियम को इतना हल्के में मत लेलेना के मार काट शुरू कर दो झूठ बोलना शुरू कर दो राजनीति नीति में प्रवेश कर जाओ ऐसा कुछ मत करना मैं अपने शिष्यों को समझा देता हूं के ऊट पटांग सुर मत कर देना बस तीन काम शुरू रखना सुबह उठक क्रियायोग करना ध्यान में बैठना नथिंग टू डू यह दूसरा और तीसरा आपको लगातार प्रेरणा मिलती रहे इंस्पिरेशन मिलती रहे वीडियोस को सुनते रहना इन तीनों कामों को मत छोड़ना कमती बत्ती हो सकते हैं नहीं तुम्हारा शरीर इजाजत देता क्रियायोग मत करो बाहर सरकमस्टेंसस बड़े ठंडे हैं मुझे पूछ लेते हैं यहां बाबा माइनस 20 है क्या करें मैं कहता हूं घर में टर लगा लो थोड़ा सा कमरे को रूम टेंपरेचर पर ले आओ वहां पे कर लो और अगर नहीं कर सकते हो तो कोई बात नहीं यह दिन गुजार लो किसी ना किसी तरह क्रियायोग छोड़ दो एक बार कोई शरीर की तकलीफ होती है तो छोड़ दो क्रिया जोग एक चीज को छोड़ सकते हो अगर ध्यान में नहीं बैठा जा सकता किसी कारण वश तो ध्यान को छोड़ दो एक बार अगर कोई तकलीफ हो गई है वीडियो नहीं सुन सकते तो एक बार छोड़ दो इनको यह पाबंदी नहीं है लेकिन यह आवश्यकता है इन तीनों को करते रहना प्रेरणा मिलती रहेगी वीडियो से क्रिया योग से तुम्हारे भीतर साफ सफाई होती रहेगी ऑक्सीजन हो रहेगा और ध्यान से तुम कॉन्शियस लेवल को बढ़ाते जाओगे रोज गहरे गहरे गहरे गहरे रोज यह तीनों चीजों को लगातार करते रहना अगर मैंने तुम्हें स्थापित कर दिया विशुद्धि चक्र में तो यह मत सोच लेना कि विशुद्धि हम अगर बुरे कर्म भी करेंगे तो विशुद्धि पर टके रहेंगे नहीं नहीं इतनी कृपा नहीं तुम पर की है अभी ध्यान रखना कि तुम कुछ भी अच्छा बुरा करते रहो तुम नीचे भी सकते हो इसलिए इस स्टेज को बरकर रखे रहना आवश्यक है दीक्षा लेने के बाद मैंने कहा तुम सात दिन तक बैठो अगर तुम्हारा माहौल इजाजत देता है तो अवश्य बैठना चाहिए सात दिन तक तुम ध्यान में बैठो थोड़ा सा और गहरा हो जाएगा तुम्हारा कॉन्शियस नेस लेवल थोड़ा सा और ऊंचा उठ जाएगा तुम्हें आनंद की वह खुशबू आने लगेगी और वह आना जरूरी है खुशबू अगर तुम्हारे नासा फूटों को छू ले तो बार-बार तुम्हारा मन करेगा वहीं जाने को बस इसे ही संस्कार कहते हैं तो यह मत सोचना कि तुम यहां से दीक्षा लेकर गए हो तो जो चाहे करते रहो जो चाहे मन उत्पात करता रहे नहीं फिर तुम विशुद्धि चक्र से नीचे भी जाओ अनाहत पर भी जाओगे अगर तुम इसको सिथ रखना चाहते हो तो यहां से जाओ सात दिन बैठो नहीं भी बैठ सकते तो कम से कम ऐसा मत करो कि समाज में उत्पाद करना शुरू कर दो स्वतंत्र तुम हो स्वच्छंद नहीं हो मन में जो आए वो करो ऐसा नहीं चलेगा कॉन्शसनेस लेवल पे सब फीड होता है ध्यान रखना तुम जो करो तत्क्षण फड़ हो जाएगा तत्क्षण यहां कोई चंद्रगुप्त वगैरह नहीं बैठे चंद्रगुप्त वगैरह को तो रिश्वत दी जा सकती है सब बिकाऊ माल होते हैं चंद्रगुप्त हुआ यमराज हुआ यमदूत हुए सब बिकाऊ होते हैं हसा मत करो कोई चंद्र गुप्त नहीं बैठा है ये तुम्हारे स्वामियों की खोज है ठगी मारने के लिए लेकिन इनको अब तक मूर्खों को यह भी नहीं पता लगा कि जो ठगी मारकर कमाओगे साथ नहीं लेकर जाओगे तु क्या समझाएंगे तेरे वही पुराने घिसे पटे रिकॉर्ड काले रंग केचम भी के अरे बस भी करो कुछ खुद का देखा भी बोल दो वही गरुड़ प्राण लगा दो आग इसको जब तुम दीक्षा लेते हो तो गुरु तुम्हें उस केंद्र पर स्थापित कर देता है जहां से बड़ा आसान हो जाता है आसान में किस लिए कहता हूं तो मेरी वीडियो आप अवश्य सुने जिसने नहीं सुनी है व्ट इज अनाहत नाथ साउंड ऑफ सायरल अस्तित्व की आवाज क्या ये अवश्य सुनो आप बाकी कोई सुनो ना सुनो कोई बात नहीं क्योंकि इसने पाट टपा देना है तुम्ह अनद नाद एक दिन शुरू हो ही जाएगा और बड़े काम आएगा तुम्हारा भटका भटका समन अनद नाथ के ऊपर ध्यान जमा लो किसी बिंदु की आवश्यकता नहीं किसी स्वास प्रवास पर ध्यान लगाने की जरूरत नहीं वह तुम्हारा बनाया हुआ है यह आनद नाद स्वयं से आया हुआ परमात्मा के द्वार के उद्गम स्थल से प्रकट हुआ हुआ अपने आप ध्यान इधर खींच जाएगा इतना रसीला और सुरीला होता है तो यह एक बूंग है परमात्मा का नाद शुरू हो जाए फिर सहारा मिल गया तुम्हें समझो मार्ग मिल गया तुम्हें क्योंकि यह धुर जाता है उदगम सत वहीं से आया है इसके संग संग होलो बड़ा सान दवार मैंने तुम्ह बताया जजे नाद अनेक अंखा केते भावन हारे केते राग परीस किते हारे और अगर जन नहीं हुआ है तो कोई बात नहीं धैर्य रखें अगर हो गया तो बहुत बढ़िया है नहीं हुआ तो और भी रास्ते और भी राहत हैं वसल की राहत के सिवा और भी गम है जमाने में मोहब्बत केवा अकेला यही नहीं है रास्ता राहते और भी है अकेला यही रास्ता नहीं है कि चुक गया रास्ता नहीं नहीं उसके विराट रस्ते हैं अनेकों द्वारों से तुम जा सकते हो अनेक रास्ते हैं जितने व्यक्ति हैं उतने ही रास्ते हैं तो चिंता मत करना किसी और रास्ते से हो लेना केंद्र तक ही तो जाना है और स्फीयर से बड़े रास्ते जाते हैं केंद्र की तरफ तो मैंने कहा हर चीज का निकासी द्वार है कारण शरीर का भी निकासी द्वार है कारण शरीर का निकासी द्वार है सहसरा सच्च खंड जि ब्रह्म रं जिसे कह देते हैं बस कारण शरीर का सही सही निकासी द्वार है वह अगर कोई देही निकलेगा कारण शरीर को लेके तो वह निकल सकता है कोई व्यवधान नहीं है बशर्ते के वो विशुद्धि चक्र के ऊपर पहुंच गया इसलिए जो व्यक्ति यहां से दीक्षा लेकर जाते हैं वह प्रयास ना करें वह विशुद्धि पर गए हैं लेकिन मूर्ख ना बने देही को साथ लेके यह सटीक मार्ग नहीं है निकलने का कारण शरीर के निकलने का देही के संग सहसरा सटीक मार्ग नहीं है हर चीज के सटीक मार्ग होते हैं देही के निकलने का सटीक मार्ग नाभी चक्र है लेकिन वहां से कारण शरीर नहीं जाता अब इसको आप बहुत विस्तार से मैं आपको डिफरेंशिएबल ट्रेवलिंग पर जाओगे बाहर जाओगे घूमो फिरो और ग्रह तारे नक्षत्रों को देखोगे यह जो ऋषियों ने इतनी इन्वेंशन की जो आज वैज्ञानिक खोज रहे हैं यह कैसे की यह देही को साथ ले जाकर की लेकिन कारण शरीर साथ नहीं कारण शरीर तो एक बार ही जाता है और कारण शरीर जाता है जब एक बार जाता है तो सह सरार से जाता है और फिर जब कारण शरीर के साथ देही निकल गया तो अंतिम वेला में कोई भी द्वार प्रयोग कर सकता है यह समझले बात लेकिन वो वापस आने के दि नहीं होता बैन नहीं है कोई कारण शरीर को किसी द्वार से निकल जाने का बैन नहीं है कोई बस बैन एक ही है कि वापस नहीं पाएगा अब इसको बड़ी सूक्ष्म चीज है गौर से समझ लेना कारण शरीर का एक्चुअल निकासी मार्ग है सहसरा लेकिन अगर तुम देही के साथ सूक्ष्म शरीर तुम्हारा विद्यमान है अभी तुमने पूरे भोग नहीं भोगे हैं तुमने स्वयं को भी जान लिया है चाहे और तुम कारण शरीर को साथ लेकर देही समेत यहां से निकल गए हो तो वापस नहीं आओगे यह पक्का है शंकराचार्य चीज को अच्छी तरह जानते हैं और शंकराचार्य महीने के लिए शरीर से बाहर रहते हैं निकलते कहां से उन्हें पता है वापस आना है वे मास्टर ऑफ मास्टर्स है तो नाभी से जाते हैं और नाभी से ही वापस जाते लेकिन एक बात फिर मैं बता दूं शंकराचार्य जब जाते हैं देही जाता है सिर्फ कारण नहीं जाता जब कारण यहां से गया एक बार तो फिर वापस नहीं आता भाई कारण जब भी जाएगा देही के बिना जाएगा तो समुद्र में जाएगा वह बूंद है चेतना की जो देही के संग संग रहती है समझ में ना आए तो मेरा कसूर ना समझना शब्दों का कसूर समझना इशारों से समझ जाना अगर कोई समझे तो वह कण कण में विद्यमान है लेकिन देही के साथ उसकी एक बूंद रहती है समझना मुश्किल हो जाएगा इस जहान में बहुत सी चीजें हैं जो तुम्हारी समझ में आएंगी नहीं इसलिए संत बली माती जानता है और पहले ही हाथ जोड़ लेता है देखो बोल तो ना पाऊंगा तुम्हारे में प्यास है तो बोलने की चेष्टा कर दूंगा समझा आए तो भला ना आए तो भी भला मैं सब चीजों को खोल रहा हूं आपके सामने तुम देही को कारण से साथ लेकर निकल सकते हो अगर तुम विशुद्धि पर पहुंच गए तो तो यह निकासी द्वार हो सकता है लेकिन ध्यान रखना वापस ना सकोगे जैसी गति हुई आशुतोष की मैंने दो साल पहले भी विल नॉट रिटर्न एट ऑल और उसके बाद तो कहते हैं कि साधिका भी बेचारी बली हो गई मैं जाने कितने लोग बली चढ़ इन मुड़ता के वो जाने उनका प्रतिष्ठान जाने हम बातों को समझा सकते हैं क्योंकि समझा सकते हैं जिसको पता नहीं वह तो समझा भी ना पाएगा मानना ना मानना सबकी स्वतंत्र चेतना है यह जरूरी नहीं है तुम चाहो तो मान सकते हो तुम चाहो तो नहीं मान सकते हो दो साल हो गए कहां माने तुम तो फिर वहां सिर्फ एक ही बात समझाते यहां संस्थान को चलाने वालों में कोई लोभ होगा और वह तो गया जाने वाला यहां कोई लोभ अवश्य है जो संस्थान को चला रहे हैं अन्यथा एक तरफा कर देते लोग अपने गुरुओं को कौन सा नहीं ठिकाने लगाते और दफन करने योग्य दफन कर देते हैं जलाने योग्य जला देते हैं अपने अपने हिसाब से लेकिन गुरुओं को उसका अंतरिम छोड़ तो दे देते हैं ना लेकिन ये गुरु के साथ अन्याय है शिष्यों का अत्याचार है अब वह चला गया वह नहीं कुछ कह सकता लेकिन यह झूठ जाट बातें हैं जो लोग कहते हैं कि हमें स्वपन में आके कह गए वह कह गए यह कह गए प्रकट हो जाऊंगा वह हो जाऊंगा कुछ नहीं होगा भाई मेरी खुद उससे बात हुई है मैं तो बेचारा बेचारा हो गया अब छोड़ो इन बातों को हम मूल मुद्दे पर जाए इससे भक्तों की भावनाए भड़कती है मैं क्या करूं मजबूर में भी हूं सत्य बोलने के लिए और भावनाए तुम्हारी भड़के ना भड़के इससे कोई लेना देना नहीं मेरा मेरा लेना देना है मैं परवाह करता हूं सत्य की मैं तुम्हारी फिक्र नहीं करता मैं फिक्र करता हूं सत्य की मैं तुम्हारी फिक्र कता ही नहीं करता और जिस दिन मैंने तुम्हारी फिक्र करनी शुरू कर दी जो दुनिया की फिक्र करना शुरू कर देता है वह सत्य की फिक्र से चुक जाता है मेरे इन शब्दों को गोल्डन शब्दों में लिख लेना जो दुनिया की फिक्र करना शुरू कर देता है वह सत्य की फिक्र करना बंद कर देता है इसलिए मैं तुमसे कहता हूं कुछ तो लोग कहेंगे हसा मत करो लोगों का काम है कहना छोड़ो बकार की बातें कहीं बीत ना जाए रेना आओ हम तो रात को सुनहरी कर तो इन्होंने तो अपनी रात सुनहरी कर ली अब बारी है तुम्हारी चूक ना जाओ इन मूता को इतना फैलाया गया जो जानते नहीं थे उन्होंने भी कुछ ना कुछ कहा बड़ी गलत बात है जब तुम जानते नहीं यू शुड बी क्विट तुम्हें चुप हो जाना चाहिए मानवता की इसमें भलाई है तुम्हारा बोलना अगर मानवता के लिए अभी बन जाए भटकाव का कारण बन जाए तो तुम पापी हो मैंने बहुत बार कहा और लोग बोले ही चले जाते हैं किसी के मन में राज्य सभा की टिकट पाने की इच्छा है उन्हें लगता है राज्यसभा की टिकट में वह आनंद मिल जाएगा भाई नहीं मिलेगा जो तुम्हें टिकट देगा ना पीएम ना सीएम किसी को नहीं मिलेगा मिलेगा से मिलेगा उसे मोह [संगीत] भू गए [संगीत] सावरिया भूल गए सांवरिया [संगीत] आवन कह गए अजह ना आए आवन कह गए अज ना आए लीना मो री खबरिया मोहे भूल गए [संगीत] सांवरिया भूल गए सावरिया इस भजन के बीच में थोड़ा सा सूक्ष्म रूहों के लिए और आने वा पीढ़ियों के लिए मैं बता दूं अगर कहीं ऐसी गलती घट जाए तो ज्ञानगंज में तीन रूहे बैठी हैं एक तो स्वामी उदंडा जी महाराज तृप्ता नंद जी गिरी और तीसरी सुनंदा कात्या स्त्री तीन रूह बैठी हैं ध्यान रखना शरीर के बाहर निकलने के बाद कोई पुरुष या स्त्री नहीं रहता बस वह सिर्फ विद्युत की तरंगे मात्र रह जाता है यह तीन लोग बैठे हैं उनसे दिशा निर्देश ले सकते हैं और वह आने वाले करीब एक लाख वर्ष तक लिए वही बैठेंगे कोई उल जाए व्यक्ति कोई गलती कर बैठे तो उनसे परामर्श ले सकते हैं वह इस वक्त के ध्रुव हैं हमारी आध्यात्मिक फील्ड में जो मैं ऐसा जा [संगीत] प्रीत किए दुख हो नगर ढंडोरा [संगीत] पीटती प्रीत ना करियो को प्रीत ना करियो को मोहे भूल गए सांवरिया भूल गए सांवरिया आवन कह गए अज हो ना आए आमन कह गए अज हु ना आए लेना मोरी खबरी मोहे भूल गए सावरिया बोल गए [संगीत] सांवरिया नैन कहे रो रो के सजना देख चुके हम प्यार का [संगीत] सपना नैन कहे रो रो के सजना देख चुके हम प्यार का [संगीत] सपन प्रीत है झूठी प्रीतम झूठा प्रीत है झूठी प्रीतम झूठा झूठी है सारी नगरिया मोहे भूल गए [संगीत] सांवरिया भूल गए [संगीत] सावरिया दिल को दिए क्यों दुख विरहा के दिल को दिए क्यों दुख विरहा के तोड़ दिया क्यों महल बना के तोड़ दिया क्यों महल बना [संगीत] आस दिला के बेदरदी आस दिला के बेदर्दी फेर लिखा हे [संगीत] नजरिया लिखा है नजरिया मोहे भूल गए [संगीत] सांवरिया भूल गए [संगीत] सावरिया आवन कह गए हज होना [संगीत] आवन कह गए अज होना आए लीना मोरी खबरिया [संगीत] मोहे भूल गए सांवरिया भूल गए सांवरिया श्री कृष्ण गोविंद हरे मुरारी हे नाथ नारायण वासुदेवा श्री कृष्ण गोविंद हरे मुरारी हे नाथ नारायण वासुदेवा पितु मात स्वामी सखा हमारे पितु मात स्वामी सखा [संगीत] हमारे हे नाथ नारायण वासुदेवा श्री कृष्ण गोविंद हरे मुरारी हे नाथ नारायण वासुदेवा [संगीत]  


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