केशव प्रसाद आप अक्सर अपने प्रवचनों में मर जिवडा जीवन मुक्त जीते जी मरने की बात किया करते हैं बाबा यह मर जी वड़ा है क्या जीवन मुक्ति का उल्लेख सभी शास्त्रों में आता है कृपया सरल शब्दों में समझाने का कष्ट करेंगे केशव प्रसाद बंगलोर से पिछले दिनों में मैंने इनर्टिया के ऊपर बात की है इनर्स बुद्ध समता की बात करते हैं बुद्ध कहते हैं मध्य में ठहर च और कृष्ण कहते हैं कि तू जीवन मुक्त हो जा स्थिति प्रज्ञ हो जा सम हो जा समता में ठहर जा आइए इसको समझाने का शुरुआत करता हूं आपने पेंडुलम तो देखा होगा पेंडुलम कभी इस छोर पर जाता
है कभी उस छोर पर जाता है फिर इस छोर पर जाता है लेकिन मध्य में कभी नहीं ठहरता अगर यह मध्य में ठहर जाए तो बुद्ध की बात बन जाए मध्य में ठहर जाए तो बुद्ध जो कहते हैं मध्य में सित्र हो जा कृष्ण जो कहते हैं नागार्जुन जो कहते हैं इनर्टिया निश यता जीवंत निष्क्रियता एक एक शब्द को बहुत ध्यान से सुनेंगे यह गहरे प्रवचन है इनको बड़े आराम से सुनना पड़ता है कृष्ण कहते हैं स्थिति प्रज्ञ हो जा नागार्जुन कहते हैं कि जीवंत निष्क्रियता में उतर जा इनर्स में आइए कृष्ण का पांचवे अध्याय का 19वां श्लोक लेते हैं जिसका मन सम दृष्टि में स्थित हो जाता है
वे इसी जीवन में जन्म और मरण के चक्कर से मुक्ति पा लेते हैं संक्षेप की व्याख्या बड़ी सुंदर व्याख्या जिसका मन सम दृष्टि में स्थित हो जाता है वह जीवन मुक्त हो जाता है सम दृष्टि क्या है तुम जब अंतस में जाओगे तो अंतिम छोर पर सम दृष्टि हो जाते हो प्रीत न जाको बैर ना जाको हर्ष ना जाको शोक ना जा ना प्रीत ना वैर ना शोक ना हर्ष ना जीत ना हार कुछ नहीं रहता जहां जाकर जहां जाकर सिर्फ मौजूदगी रह जाती है ओनली एक्जिस्टेंस इ देयर मौजूदगी अस्तित्व रह जाता है ना प्रीत रहती है ना देश रहता है ना हर्ष रहता है ना शोक
रहता है इसलिए कृष्ण ने कहा सब द्वै तों से पार हो जा दुई को छोड़ दे अद्वैत हो जा दुई में मत भटक दुई भटकाव है बाबा नानक ने कहा एक ओंकार एक में ठहर जा ओंकार क्या मुंह से नहीं जपना है हंकार ओंकार का जप करने वाले अभी समझे नहीं या शुरुआती दौर में है अभी कायदा पढ़ रहे हैं ए अनार आ आम अभी समझे नहीं यह ओंकार की धुन हमें क्या बताती [संगीत] है वहां चला [संगीत] जा जहां इस ओंकार की ध्वनि से वातावरण गुंजायमान है जहां बरस रहा है वह अमृत जहां आनंद की धारा प्रतिक्षण बरसती ही जाती है वहां चला जा अगर तू सम हो गया ना हर्ष में खुश हुआ
नाचा ना शोक में दुखी हुआ गमगीन हुआ ना हार गया तो विषाद आया ना जीत गया तो प्रसन्न हुआ गरीब हो गया तो निराश नहीं हुआ अमीर हो गया तो छाती चोड़ी नहीं हुई इसी को सम कहते हैं दो दुं के बीच में खड़े हो जाना ना इधर ना उधर तुम्हारे मन का पेंडुलम ना इस छोर जाए ना उस छोर जाए किसी अति पे ना जाए एक शब्द कहा था हमारे ऋषियों ने एक्सेस ऑफ एवरीथिंग इ बैट अति सर्वत्र वर्जे अति एक्सेस ऑफ एवरीथिंग इ वेट इसका यही मतलब था सम हो जाओ अगर तुम चलोगे तो एक तरफ की अति करोगे फिर वहां से तुम दूसरी तरफ की अति करोगे और तुम घूमते ही रहोगे इसी को संसार
चक्र कहते हैं घूमते ही रहने का नाम संसार ठहरने का नाम मोक्ष है जब ठहर गए तब पा जाओगे जब तक चलते रहे तब तक भटकते रहोगे इसलिए मैं अक्सर एक नारा देता हूं मुझे पूछ लेते हैं बाबा आप कहते हैं आराम करो राम मिल जा लोग कहते हैं राम राम जपो तो राम मिल जाएगा बिल्कुल उल्टा गणित है नहीं उल्टे वो हैं दौड़ा हैं आपको मैं तो ठहरा हूं मैं कहता हूं आराम बड़ी चीज है आराम करो आराम से राम मिलेगा जिसको भी मिला आराम से मिला भागने से नहीं मिला आराम से राम की ओर जहां सब कोशिश व्यर्थ लगती हैं जहां सभी परिश्रम व्यर्थ लगने लगे
ध्यान से समझना शब्दों को जहां सभी भोग व्यर्थ लगने लग जहां सभी परिश्रम कुछ पाने के व्यर्थ हो जाए हाथ कुछ ना आए भोगों को भोगने के बाद 29 वर्ष की आयु में गौतम बुद्ध होने के लिए घर से निकल पड़ते हैं महावीर वर्धमान महावीर होने के लिए घर से निकल पड़ते हैं अब यह दोनों राजा हैं और हमारा [संगीत] इतिहास आपको जानकर हैरानी होगी राजा फकीर हो गए इससे भरा पड़ा है यह क्या बताता है यह सांकेतिक भाषा किस तरफ इंगित करती है गरीब नहीं पहुंच सकता ध्यान से समझना बात को गरीब नहीं पहुच सकता फकीर पहुंच जाता है हैरान मत होना गरीब और फकीर में फर्क
है गरीब के पास धन का अभाव है लेकिन चाहता है कि मैं धनी हो जाऊं फकीर के पास धन का अभाव है लेकिन वह चाहता नहीं कि मैं अमीर हो जाऊ फकीर चाहता है कि ये तो बड़ी मौज हो गई मैंने क भी एक शब्द कहा था कमली सड़ी फकीर दी हस्या ताड़ी मार चंगा य भी ले गया मो तो पार फकीर की कमली थी वो जल गई और जोर जोर से लगा कहता चलो यह भी अच्छा हुआ यह भी कांधे पर भार था उतर गया कबीर भी कहते हैं गिर गई माला भलो भयो हरि वि सरो सर से टली भला तुम कहते हो राम राम करो कबीर कहते हैं अच्छा हुआ हरि विसर गया ये एक बला थी सर के ऊपर तुम जिसे जाप कहते
हो करते ही रहो और तेजी से दौड़ो यह दौड़ना तुम्हें कहीं नहीं ले जाएगा भटका जाएगा रोज प्रेरित करते हो रोज गुनाह करते हो उसकी कचहरी रोज कहते हो जोर से दौड़ो दौड़ना कभी किसी को पहुंचा नहीं पाया ठहरना जो भी ठहर गया और वही सूत्र में कहा गया है जो सम हो गया जो समता को उपलब्ध हो गया वह पहुंच गया जो दौड़ा उसने खो दिया तुम्हारे गुरु तुम्हे दौड़ा उनके पास जाना उनका उपयोग कर लेना खूब दौड़ना जितना वो कहे उससे भी तेज दौड़ना और आखिर में अनुभव पाओगे धे मुंह गिरोगे थक जाओगे हार जाओगे एनर्जी लेसनेस में राम तो तो नहीं
मिलेगा आराम मिल जाएगा राम को पाना है आराम के जरिए तो पाया जाता है लेकिन आराम को भोग कर पाया जाता है आराम मतलब ठहरना राम मतलब आनंद ठहरने से आनंद मिलता है दौड़ने से दुख मिलता है यह दौड़ते हुए लोग हैं जो रशाल है जो एक दूसरे को गाली देते हैं लड़ाई झगड़े करते हैं यह दौड़ते हुए लोग हैं राजनीति में तुम सब धावक पाओगे जो तेज दौड़ा वो पहले पहुंच गया जो कछुए की चाल चला बड़ी देरी से पहुंचेगा जो सम हो गया सम का अर्थ ठहर गया जो ठहर गया वह पा गया जो दौड़ा उसने खो दिया तो मैं सदा कहता आराम से राम की ओर मेरा सूत्र
काम हाड तोड़ के काम करो और आराम करो इतने गहरे से आराम करो कि तुम्हें राम मिल जाए अब समझो कि मैं कहता क्यों हूं कहता क्या आराम तो तुम भी करते हो लेकिन जिसको तुम आराम कहते हो मेरी दृष्टि में वह आराम नहीं है तुम आराम करते हो बाहरी भारी तल प शरीर आराम कर लेता है टिशू रिपेयर हो जाते हैं लेकिन मन दौड़ता रहता है तुम बाहरी तल पर आराम करते हो शरीर को ठहरा लेते हो तुम इसी को आराम कहते हो और बा मुश्किल कभी-कभी बहुत से लोग मेरे पास आ जाते हैं बाबा नींद नहीं आती नींद से मन का आराम मिलता है अगर तुम कोई दवा बावा खाके आराम दे
देते हो मन को तो वह बहुत गहरे से आराम नहीं होता वह नेचुरली आराम नहीं होता आराम होता है जो बच्चा करता है रात को सोते हुए बच्चे को देखना कभी वह पूर्ण विश्राम में है इसलिए कबीर ने कहा अनहद में विश्राम वह जहां अनद हो रहा है विश्राम तो वहां मिलता है तुम बाहर के विश्राम को विश्राम समझते हो बाहर से सो जाते हो तुम्हारा शरीर आराम कर लेता है तुम्हारे टूटे हुए तंतु रिपर हो जाते हैं तुम्हारे मस्तिष्क के तंतु रपर हो जाते हैं लेकिन भीतरी आराम तुमने कभी जाना ही नहीं किया तो बहुत दूर यह जो कृष्ण कहते हैं अर्जुन को हे
अर्जुन स्थिति प्रज्ञ हो जा ये कहते हैं अपनी प्रज्ञा में आराम कर ले और तुम जन्मों जन्मों से आराम नहीं किया तुम दौड़ ही रहे हो कहां से दौड़ने चले थे यह दौड़ बहुत पुरानी है कहां से चले थे दौड़ और दौड़ते दौड़ते दौड़ते आज तक द रहे हो क्या कहते हैं कृष्ण कृष्ण कहते हैं कि जैसे तू दौड़ता है और जैसे तू आराम करता है वैसे तू जीवन मुक्त नहीं हो पाएगा तू ठहर और अनहद में विश्राम कर और विश्राम इतना कर गहरे में जाके कि तू अपनी प्रज्ञा में स्थित हो जा अंतस से विश्राम करना ही सच्चा विश्राम है तो बाहर बाहर से विश्राम करता है जैसे
तुम बाहर बाहर से पंच स्नान नहीं कर लो वह स्नान पूर्ण नहीं है कहां तुम बहती हुई धारा में घंटों सुबह से शाम आकंठ डूबे रहो बार-बार गोता लगाते रहो गंगा में और मल मल के नहाते रहो कहां तो व नहाना कहां पंच स्नान करना पंच नानी कोई नान नहीं होता वह तो उस वक्त की बात है जब पानी की कमी थी तो संतों ने पानी को बचा जाने के लिए पंच सेनानी चुन ली चलो ऐसा कर लो रोम खुल जाएंगे रोम क्षेत्रों को ही तो खोलना होता है लेकिन आज पानी प्रचुर मात्रा में है और जहां प्रचुर मात्रा में है वहां तुम भी स्नान नहीं करते वहां भी तुम पंच स्नान
नहीं करते हो क्योंकि तुम प्रत्येक चीज की गहराई में नहीं जाते कि यह व्यवस्थाएं बनी क्यों थी तुम जब स्नान करो तो ऐसे स्नान करो जैसे तीर्थ में गंगा के बीच में खड़े होकर तुम पूरे के पूरे आकंठ नहीं सारे शरीर को डुबो लेते हो और जैसे तुम डुबकी लगाते हो यह डुबकी नहीं होती यह तो पंच नानी ही है डुबकी लगाओ तो मलमल के ना हो हो घंटों ना हो ये दो चार डुबकियां से बात नहीं बनेगी सुबह से शाम सारा दिन रात भी चाहे सदा दिवाली सात की और आठों पहर आनंद तुम उस आनंद की गंगा में स्नान कर रहे हो जितना स्नान करोगे उतना पीने का मन करेगा ज्यादा यह वह
शराब है इसकी एक मूंद अगर गटक लिए तो प्यास बढ़ेगी पानी को पीने से प्यास बुझती है मैं को पीने से प्यास बजेगी बढ़ेगी फिर कहोगे और मांगोगे और दे दो और जरा सी दे दे साकी और जरा सी [संगीत] और कैसे रहूं चुप के मैंने पी ही क्या है होश अभी तक है बाकी और जरा सी दे दे साकी और जरा सी कैसे रहूं चुपके मैंने पी ही क्या है होश अभी तक है बाकी और जरा सी दे दे साकी और जरा सी पानी पीने से प्यास पूछती है मैं पीने से प्यास बढ़ती है इसलिए मैं तुमसे कहता हूं बेखोफ कहता हूं कि तुमने सुख तो बहुत जाना आनंद की तुमने एक बूंद कभी पी नहीं वह ऐसी मैं
है लगती नहीं छूटती नहीं है काफिर मुंह को लगी हुई एक बार जैसे तुम प्रेम की श्रब पी लेते हो जिसको कभी जीवन में प्रेम हुआ हो वह मेरी बातों को बखूबी जानेंगे भीतर से जानेंगे मैं क्या बोल रहा हूं जिसको जीवन में कभी प्रेम हुआ साधारण प्रेम आदमी को स्त्री से स्त्री को आदमी से वासना नहीं प्रेम वासना तो तुम सभी को होती है जिसको जीवन में कभी प्रेम उतरा हो तुम देखोगे वह प्रेम पीने का मन करता है सदा एक बार प्रेम की प्यास लग गई बढ़ते ही जाती है बढ़ती ही जाती है और खत्म नहीं होती वो इनफा हो जाती है असीम हो जाती
है बुझती है वह प्रेम की लगी आग बुझती है परमात्मा को पीकर इन शब्दों को आप अपनी झोली में गांठ बांध लेना प्रेम की आग बुझती है परमात्मा को पीकर तो हमारी भूखे तो खाना खाने से शांत हो जाती है प्रेम की भूख शांत होती है परमात्मा को खाने से परमात्मा को ही खाना पड़ेगा पूरा का पूरा तो तुम्हारी भूख मिटेगी तो तुम्हारी प्यास बुझेगी अन्यथा नहीं बुझेगी तुम तड़पते ही फिरो ग कैसे मजनू रातों रातों रोता है काली कलूटी लैला के वास्ते कैसे राज क्या कुछ नहीं करता है हीर के वास्ते प्रेमी प्रेमिका के लिए और प्रेमिका प्रेमी के लिए सोहनी महिवाल
सोहनी कच्चे घड़े के ऊपर तूफानी रात में बैठ जाती है तुम उसे मूर्खता कहोगे प्रेम में बुद्धि नहीं होती प्रेम बुद्धि को हटा देता है प्रेम कहते परे हो जाता तो मुझे मेरा काम करने दे [संगीत] तूफान तूफान कभी दियों को देखता है कि उसकी लोए मेरे चलने से हिलती है या नहीं वो तो निर्बाध चलता है और तेज गति से चलता है जिसको प्रेम हुआ वह परमात्मा को पिए बिना शांत नहीं होता और इसी को भक्ति कहते हैं तुमने भक्ति के रूप बड़े अलग ले दिए लोग मुझे पूछ लेते हैं बाबा भक्ति क्या है मैंने कहा पहले प्रेम का स्वाद जानो तो प्रेम का स्वाद जानोगे तो भूख
लगेगी प्यास लगेगी और वह भूख प्यास बुझेगी परमात्मा को पीने से तुम शरीर की भूख तो मिटा लेते हो खाना खाने से मिटा लेते हो पानी पीने से मिटा लेते हो काम वासना से शांत कर लेते हो इंद्रियों की भूख है यह इंद्रियों की भूख तो तुम शांत करना जानते हो दक्ष हो और सारे दिन तुम जो क्रियाकलाप करते हो सब इंद्रियों की भूख को शांत करने के लिए करते हो भीतर की भूख का तुम्हें कोई पता ही नहीं इसलिए तुम्हारे सारे स्नान बाहर के स्नान है भीतरी स्नान तुमने कभी जाना ही नहीं भीतर का वो रस तुमने कभी पिया ही नहीं वो रस है प्रेम का
रस मीरा पी लेती है इस रस को और बिरहा में भटकती है तड़पती है जैसे मछली लोग कहते हैं इसको क्या रोग लग गया है दिखता तो कोई है नहीं महारानी है सब है इसके पास लेकिन फिर क्यों तड़पती है तुम्हारी बुद्धि में कभी यह बातें समझ नहीं आए क्यों बुद्ध निकल गए भरे राज दरबार को हिरे ज्वारा तो को तख्तो ताज को छोड़ के पुत्र पत्नी को छोड़ के क्यों निकल गए बुत तुम्हें समझ नहीं आएगा तुम्हें समझ नहीं आएगा के महारानी मीरा जो सब है वो किसके बराह में रो रही है किसके बराह में तड़प रही है घल की गति घायल [संगीत] जाने यल की गति
घल जाने या जिन घायल हो री मैं तो प्रेम दीवानी मेरो दर्द ना जान को री मैं तो प्रेम दीवानी मेरो दर्द ना जाने को घायल की गति घायल जाने या जिन घायल होए तुम भक्ति को पूछते हो खोपड़ी से और भक्ति वोह जहां खोपड़ी को परे रख देना होता है खोपड़ी को परे रखना अनिवार्य शर्त है फिर भक्ति की शुरुआत होती है प्रथम चरण तुम समझना चाहते हो खोपड़ी से इसलिए संत कहते हैं क्षमा करो य खोपड़ी से समझने की चीज नहीं खोपड़ी को उतार के यहां आ जाओ तो भक्ति समझ में आ जाए जो शीश तली पे धर ना सके वह प्रेम गली में आए क्यों तुम प्रथम अनवार क्वालिफिकेशन
ही नहीं पूरी कर पाते और ढूंढते हो चर्म परम अखंड विशाल विराट अनिवार्य शर्त पूरी नहीं करते अनिवार्य शर्त क्या है बुद्धि को हटा देना बुद्धि गणितज्ञ है गणितज्ञ कभी नहीं पहुंच सकता अगर अल्बर्ट आइंस्टीन कहे कि मैं परमात्मा को पहुंचा जाऊं तो मुश्किल नहीं इंपॉसिबल है असंभव मैथमेटिशियन अगर कहे कि मैं पहुंच जाऊं परमात्मा नहीं पहुंचेगा क्योंकि परमात्मा तो ऐसा कि बुद्धि को कमा दे बुद्धि से पार हो जाए परमात्मा तो ऐसा जैसा उपनिषद कहता है कि 100 में से 100 को निकाल लो स ही बाकी बच जाए लेकिन तुम्हारा मैथमेटिशियन कहेगा
रंग इट्स र 100 में से 100 निकाल दो पूर्णस पूर्ण मादा पूर्ण मेवा बिष्य तो शून्य बचता है लेकिन ऋषि कहेगा नहीं स ही बच जाएगा भक्ति अंतत इशिया में ले जाती है इनर्स में तुम जीवंत तो होते हो लेकिन परम ठहराव होता है उसे ही जीवन मुक्त कहते हैं तुम जीते हो मुर्दा नहीं होते परम ठहरा तो मुर्दे में भी होता है और परम ठहराव इनर्स में भक्त में भी होता है दोनों में फिर फर्क क्या है भक्त जीवंत होता है और मुर्दा मृत होता है यह फर्क है जो जीते जी आनंद से भर जाए शरीर उसका मृत और आत्मा उसकी जागृत शरीर मृत आत्मा जागृत मैंने तुम्हें कहा कि तुम विश्राम
नहीं कर पाते तुम विश्राम करते हो सिर्फ शरीर का विश्राम करते हो या ज्यादा से ज्यादा मन का विश्राम कर लेते हो वो भी थोड़ा सा लेकिन असली विश्राम तुम कर नहीं सके कभी अगर विश्राम की कला तुमने सीख ली होती तो इन भटकाने वाले भगवाने वाले दौड़ लगवाने वाले गुरुओं के पास कभी ना जाते तुम मैं इतनी बुद्धि अभिशेष नहीं कि तुम समझ जाओ कि भागने से परमात्मा नहीं मिलता मैंने कितनी बार कहा संतों ने कितनी बार बोला के दौड़ने से नहीं मिलता वो ठहरने से मिलता है इनर्स परम ठहराव का नाम है लेकिन मुर्दा नहीं जीवंत परम ठहराव यह बातें थोड़ी सी
उर्ट लगेगी लेकिन मैं कहता हूं यह गणित से परे हैं इसलिए उलट लगेंगी गणितज्ञ को उलट लगेगी 100 में से 100 निकाल दो तो 100 कैसे बच सकते हैं वह सारी उम्र मगज कपाई करता रहेगा और आखिर में उस किताब को फेंक देगा य गलत है इट्स रंग ही इ ऑन मिस्टेक वह गलती में है नहीं यह गणित गलती में वो आयाम कुछ दूसरा है परमात्मा का आयाम दूसरा है परमात्मा का आयाम तुम्हारी सॉलिडिटी को भंग करके विराट हो जाता है संसार का आयाम तुम्हें सॉलिडिटी में कंजेस कर लेता है इसलिए तुमने मूर्तियां बनाई मूर्ति कंस्ट है पक्का है वहीं बैठी रहेगी जरा भी इधर उधर नहीं
करेगी तुम लाख उसको ये लोग फिरते हैं चुनियो में बच्चे से को लपेट लेते हैं लड्डू गोपाल को व ना तो कुछ बोलता है बेचारा उसको प्यार करो या चाटा मारो कुछ भी नहीं बोलेगा एक लड्डू गोपाल की भक्त नहीं मेरे पास आ गए कहती बाबा मैं रोज नह लाती हूं मैं ठीक है एयर कंडीशन में सुलाते हूं ठीक इसका बिछोना भी बना रखा है ठीक इसका झूलना भी है ठीक है इसको जल भी देती हूं खाना भी देती हूं बिल्कुल ठीक है मैं इतनी सेवा करती हूं लड्डू को पाल के मैंने कहा वो तो ठीक है लेकिन एक बात बताओ देवी क्या बाबा यह मल मूत्र कहां से त्याग
करता है अरे बाबा ऐसी बातें मत करो क्यों जब खाता है तो मल नहीं जागेगा जब पीता है तो मत्र नहीं त्यागे बताओ कहां से त्यागा उसकी आपने क्या व्यवस्था की कोई टॉयलेट वगैरह वो तो ये करता ही नहीं बाबा फिर मैं खाता भी नहीं तुम भ्रांति में हो तुम भ्रांति में हो कहीं छूक है तुम्हारे बताने वालों में तो मूर्ख मत बनो ऐसे मेटल के बाल गपाल मृत होते हैं यह तुम्हें जीवन मुक्ति की तरफ नहीं ले जाएंगे यह तुम्हें जड़ बना देंगे पूर्ण मृत बना देंगे यह तुम्हें कब्रों में दफन करने योग्य बना देंगे यह जीवंतता पैदा नहीं करेंगे भगवान कृष्ण का यह
सूत्र जो समता को उपलब्ध हो गया इस शव तैर जित सर्गो ये शम साम स्थित मनम निर्दोष ही समम ब्रह्म तस्मा ब्रह्मनी तेता ब्रह्म में स्थित हो जाता है वह व्यक्ति ब्रह्म में स्थित हो जाता है वह व्यक्ति जो समता में स्थित हो जाता है समता का मतलब क्या है ना इधर ना उधर बीच में ठहर जाना ठहर जाने का मतलब सम एक सूत्र है बड़ा गहरा सूत्र है इनर्टिया की बात भी इसमें आ गई बुद्ध की समता की बात भी इसमें आ गई और समता की बात कृष्ण के बीच में आ गई और परम ठहराव की बात जो बाबा करते हैं वह भी आ गए इसमें सारे विज्ञान भैरव तंत्र के सूत्र भी आ गए क्योंकि कोई सूत्र
112 के 112 सूत्र आखिर में दौड़ने पर नहीं होता मेरी बात को फिर ठीक से समझ लेना विज्ञान भैरव तंत्र का कोई भी सूत्र 112 में से 112 दौड़ पे खत्म नहीं होते ठहराव पर खत्म होते हैं शुरू कहीं से हो खत्म होते हैं ठहर और खत्म होते हैं ठराव पे तभी यह मंत्र हैं तभी यह तंत्र हैं अगर वह दौड़ पर ही समाप्त हो जाए तो फिर वह तंत्र नहीं व तुम्हें विश्राम में ले जाएगा सच्चे विश्राम में ले जाएगा सच्चा विश्राम बाहर से अकेला बाहर से नहीं तुम रात को सो जाते हो शरीर सो जाता है मन भी सो जाता है लेकिन तुम वहां नहीं पहुंचे जो उस सोते हुए को जाग कर देखता
है वह है इनर्स वह दोनों एक साथ है व ठहरा भी हुआ है कहीं जाता भी नहीं और जीवंत भी है जिसका मन सम दृष्टि में स्थित हो जाता है वे इसी जीवन में जन्म और मरण के चक्कर से मुक्ति पा लेते हैं मुक्ति तुम सभी चाहते हो बंधन कोई भी नहीं चाहता सभी स्वतंत्रता चाहते हैं बिड़िया कोई भी नहीं चाहता और कृष्ण उसका सूत्र बताते हैं जो समता को हो गया वह जीवन मुक्त हो गया वह इनर्स में पहुंच गया इनर्टिया क्या है जो दिन भर रात जगता है एक हमारे भीतर तत्व है जो कभी सोता नहीं तुम सो जाते हो तुम थक जाते हो व कभी थकता नहीं तुम्हें आराम की जरूरत पड़ती है उसे
आराम की जरूरत नहीं पड़ती वह सदा ही जगता रहता है वह कौन वह साक्षी है साक्षी कभी सोता नहीं और अगर साक्षी खो जाए साक्षी सो जाए तो सब सो जाएगा फिर कुछ नहीं बचेगा य दुनिया जागती है दुनिया चलती है चांद तारे घूमते हैं ग्रह नक्षत्र अपनी राह बदलते हैं वक्री मार्गी उदय अस्त होते हैं अंश बदलते हैं यह सारी सृष्टि बखूबी नियंत्रित रूप से घूमती है किसके कारण इसका एक बेस है साक्षी साक्षी जिसे मैंने कल गुरुवाणी के जपजी साहब का कहा वह करता भी है और साक्षी भी है देखता भी है अगर वह साक्षी अपना साक्षी स्व छोड़ दे तो चांद तारे घूमना बंद हो
जाएंगे पृथ्वी मंगल से टकरा जाएगी मंगल नेप्चून से टकरा जाएगा ग्रह एक दूसरे से टकरा जाएंगे और विनाश हो जाएगा एक तत्व के कारण यह सारी सृष्टि खड़ी है अवलंबित है वो तत्व है सक्ष जब तक साक्षी है तब तक जीवन है जब साक्षी मिट गया तो जीवन भी चला जाएगा भाग दौड़ भी साक्षी के कारण है और ठहरा भी साक्षी के कारण है यह बातें उल्टी हैं लेकिन तुम क्योंकि खोपड़ी से सुनते हो इसलिए तुम्हें समझ नहीं आएगा समझ में तो कुछ नहीं आता मुझे लोग पूछ लेते हैं बाबा अध्यात्म का [संगीत] सार दो शब्दों में अध्यात्म का सार यह कि हमने जो बोला
झूठ बोला सत्य कभी बोला नहीं जाता उस झूठ से तुम्हें सत्य की तरफ इशारा किया जैसे मैं कहता हूं बुरा है चंद्रमा यह झूठ है क्योंकि चंद्रमा मून इज नॉट ऑन द टॉप ऑफ दिस फिंगर यहां पर नहीं है यह झूठ है जो मैं कहता हूं को बो रहा चंद्रमा चंद्रमा इसकी टॉप पर नहीं है यह झूठ बोलता हूं मैं तो कहां है चंद्रमा सत्य भी बोलता हूं लेकिन इशारा मेरा सत्य है इशारा ये है कि अगर तुम इसकी स्ट्रेट लाइन में ऊपर देखो लोगे तो चंद्रमा दिख भी जाएगा बोला जो वह झूठ जो देखा जाता है वह सत्य इसलिए बाबा कहते हैं उतर [संगीत] गयो मेरे मन का संसार
सेसे कृष्ण कहते हैं संश आत्मा विनश्यति बाबा कहते हैं वह संशय उतर गया खत्म हो गया उतर गयो मेरे मन का [संगीत] संसार जब तेरा दर्शन पा देखने से संशय मिटेगा मानने से नहीं मि यह जो कहते हैं लोग मानो मानने से संशय मिट जाएगा नहीं मानना एक फायदा कर सकता है मानना तुम्हें उस दिशा में चलने को बाद कर सकता है बस मानने का एक यह लाभ है मानने से मिलता नहीं है मिलता तो है मानकर तुम चलो मंजिल की तरफ चलो पहुंच जाओगे उतर [संगीत] गयो उतर गयो उतर गयो उतर गयो उतर गयो मेरे मन का संस मन का [संगीत] सं जब तेरो दर्शन पायो ठाकुर तुम
सरनाई आयो ठाकुर तुमम सरनाई [संगीत] आ तुम सरना आ आयो आयो आयो [संगीत] आयो ठाकुर तुम सरनाई आयो उतर गयो मेरा मन का संसार जब तेरा दर्शन पायो मानने से नहीं मिलेगा मानना सहायक हो सकता है चलने में चलने से मिलेगा देखने से मिलेगा चलकर भी अगर तुम देखने से चूक गए तो भी ना मिलेगा मानना होगा चलना होगा देखना होगा जब तेरा दर्शन पायो दर्शन से संशय खत्म होते हैं अर्जुन ने नहीं माना जब तक दर्शन नहीं किया अर्जुन विराट देख लिए फिर कपने लगे सारा शरीर कप रहा है मैं काल भी हूं मैं काल बनकर भक्षण करता हूं मैंने इन सबको खा लिया
है मेरे द्वारा मारे गए इन लोगों को भीष्म जैसे जय दथ दुधन द्रोण मारे हुए इन लोगों को तू उठ और मार दे यह मेरे द्वारा मार दिए गए हैं त तो सिर्फ श्रे ही ले और तम शंका मत कर तू जीतेगा क्योंकि मैंने ये मार दिए हैं तू सिर्फ श्रेय ले ले इसलिए हे अर्जुन उठ जो गाड़ी धनुष फेंक दिया उसको उठा ले उसकी प्रतिंजा को कस ले बांड चढ़ा दे और उनकी छातियों में भेद य मैंने मार रखे हैं ऑलरेडी डेट बाय मी त तो सिर्फ तूने तो श्रेय लेना है सेरा बांधना है तेरा तो नाम हो जाएगा करता तो वही है तुम्हें तो सिर्फ देता है तुम सरे ले
लो मेरा आपकी कृपा से सब काम हो रहा है मेरा आप की कृपा से सब काम हो रहा है करते हो तुम कन्हैया करते हो तुम कन्हैया मेरा नाम हो रहा है मेरा आपकी कृपा से सब काम हो रहा उठ खड़ा हो प्रत्यंचा कस और नों को इनकी छाति के आपार करते नों की सया पे सुला तू श्रेय ले सिर्फ अर्जुन मानता नहीं अर्जुन ऐसा पात्र है जो देखे बिना नहीं मानेगा और तुम भी ऐसे ही बनो मेरे शब्दों पर गौर करना है तुम भी ऐसे ही बनो मानने में सुख है उथला उथला जानने में आनंद है गहरा गहरा सिर्फ मानने पर रुक मत जाना शुरुआत अच्छी है अंजाम तक पहुंचाना आगाज पे सिर्फ सुख लेके खुशी मत
हो जाना कभी कुंभ के मेले में जाओ और खुश हो जाओ नहीं अच्छी तरह से तीर्थ में स्नान कर लेना वो कुंभ का तीर्थ नहीं अपने भीतर के तीर्थ में डुबकिया लगा के मलमल के नहाना और शुद्ध हो जाना निर्मल हो जाना निर्मल मन जन सोई मोही पावा मोहे कपट छल छिद्र ना भावा कपट छल छिद्र करने वालों का हशर मैं उनका विनाश कर ही देता हूं संश आत्मा विन तो अर्जुन बड़ा खिलाड़ी अर्जुन कहता जब तक ना देखू अपनी नैनी तब तक ना मानू गुरु की कनी तो कृष्ण माप लेते हैं यह पक्का खिलाड़ी है इसे अंत स्थल तक ले जाना होगा फिर वह विराट प्रकट करते हैं
अपना सही स्वरूप दिखाते हैं उस विराट फैलाव को एक क्षण भर के लिए वो देखता है जब कृष्ण कहते हैं यह काल भी मैं हूं देख इनको मेरे मुख में जाते हुए मैं कैसे भक्षण कर रहा हूं और उसने देखा भीष्म द्रोण कहते कहते बली योद्धा सब भगवान के मुख में चले जा रहे हैं मैं काल रूप से भक्षण कर रहा हूं उनका तू देख और मैं ब्रह्म रूप से इनको जन्म भी दे रहा हूं तू देख अनंत अनंत मुख देखे अर्जुन अनंत अनंत मुख से अनंत अनंत प्रकटीकरण हो रहे थे सबसे विकराल दृश्य था मृत्यु का मृत्यु का घोर तांडव उसने अपनी आंखों से देखा सभी स गए काल का ग्रास बन के वो
भीष्म हो वो दुर्योधन व द्रोण हो व दो शासन सभी खप गए और अर्जुन कपा कंप तो पहले ही रहा था तेज से कंपा बहुत कंपा अर्जुन ने कहा भगवान मुझसे यह दृश्य देखा नहीं जाता मैं संशय मुक्त हुआ अब ये अपना विराट रूप समेट मुझे डर लग रहा है बहलो से सिर्फ मैं भ भीत था अब तो मैं डर की मूर्ति ही बन गया हूं सब मुझसे नहीं देखा जाता भगवान इस विराट को हटाओ समृति लब्ध हो समृति मिल गई मुझे नष्ट मोह मेरा मोह नष्ट हुआ अब और मत कमाओ विराट को समेट मैं समझ गया समझ गया जो आप कहोगे मैं करूंगा मैं तुम्हारी शरण में हूं इस विराट कंपन को देखकर कृष्ण ने अपना
स्वरूप समेटा वह विराट दृश्य आपके भीतर है तुम भी ऐसे ही कंप होगे जहां मैं सदा ही कहता हूं तुम्हें गुरु की आवश्यकता पड़ेगी वहां यह विराट ही तुम्हारे सामने आएगा तुम जब अपना स्वरूप देखोगे उससे बिल्कुल आगे विराट भी देखोगे उसका स्वरूप भी देखोगे यहीं से जाता है वह रास्ता जो विराट तक पहुंचता है पहले तुम्हें तुम्हारा अपनत्व दिखाएगा स्वत्व दिखाएगा तुम कौन फिर तुम तुम्हें विराटत्तिकुप्पम एक पड़ाव पहले तुम अपना आप देखते हो नो दाय सेल्फ हु एम आई और बस अगले पड़ाव पर तुम्हें पता चलता है यह सब क्या है वह क्या है बस दो ही
पड़ा तो भगवान कृष्ण ने अपना विराट समेटा पल भर के विराटत्तूम नकली तृप्ति को पैदा करना राम राम करके राधे राधे करके तुम चूक जाओगे तुम्हारी मंजिल जो ईश्वर ने इतनी विराट सृष्टि का निर्माण किया तुम्हारे लिए व्यर्थ हो जाएगा तुम फिर अगले जन्म की इंतजार में लाइनों में लगो गए जब तक पूरा अपनी आंखों से उसे देखना लो तब तक तृप्ति मिलती भी नहीं और तुम नकली संतोष कर भी मत लेना यह अंतिम पड़ाव की मैं बात करता हूं तुमसे वहां जाकर तुम्हें समत्व उपलब्ध हो जाता है जो इस गीता के पांचवें अध्याय के 19 समय श्लोक में बताया गया
है यही इनर्स है यह जागता रहता है यह जीवंत है और यह निष्क्रिय है यह करता भी कुछ नहीं जैसे कटलाइट एजेंट उसके बिना भी काम नहीं होता और उसके होने से काम हो जाता है लेकिन वो पार्टिसिपेट नहीं करता लेकिन यह चीज तुम्हें समझ नहीं आएंगी य जिन्होंने केमिस्ट्री पढ़ी वह समझ जाएंगे क्या होता है यह जिसकी मैंने बात की तुम नहीं समझोगे कैटालिटिक एजेंट व्ट इ कैटिक एजेंट ऐसे ही तुम यह नहीं समझोगे एक साथ ये कैसा हो सकता है कि कैटालिटिक एजेंट के बिना भी केमिकल रिएक्शन नहीं होता और उसका कोई योगदान भी नहीं होता तुम्हारी बुद्धि कहेगी इट इ इंपॉसिबल
इसलिए मैं कहता हूं यह शंका पैदा करने वाली संशय पैदा करने वाली बुद्धि को बाहर हटा के रख हर हर कदम पे ये शक उठाएगी और तुम्हें रोक लगी इसलिए तुम रुके पड़े हो इसका मुख्य कारण है तुम्हारी बुद्धि बुद्धि को एक तरफ रख दो पहला काम दूसरा विश्राम पूर्ण करना सीखो शरीर का विश्राम तुम रोज करते हो मन का विश्राम तुम रोज करते हो नींद में चले जाते हो लेकिन मन का पूर्ण विश्राम तुम नहीं करते हैं मन छुप जाता है मन विलीन नहीं होता नींद में अप प्रकट हो जाता है लेकिन विलीन नहीं होता मन को विलीन कर दो किसमें विराट में मन तू जोत स्वरूप है अपना मूल
पछा अपने मूल के भीतर तू विलीन हो जा तू अपक ना हो तू छुप ना सिर्फ नींद में मन छुप जाता है किसी एक कोने में पड़ा रहता है लेकिन योग में आखिरी पड़ाव में मन अपने विराट तत्व में विलीन हो जाता है और मन विराट हो जाता है मन मरता नहीं मन विराट हो जाता है मन तू ज्योत स्वरूप है वह भी ज्योति स्वरूप है वह एक छोटा सा किनका जो ही के साथ चलता है सदा उसे ही मन कहता है यह संत उसे ही मन कहता है जो देही के साथ एक चेतना का छोटा सा टुकड़ा मैंने कहा जो ब्रह्म रंद्र में से आखिरी वक्त निकलता है मुक्त होने की स्थिति में जब वह बूंद समुद्र में खोती
है वह मन का ही रूप होता है उसको पहचान पहला दूसरा मैंने कहा तुम विश्राम करना सीखो तुम्हारा मन अर्ध विश्राम करता है यानी वोह छुप जाता है विलीन नहीं होता तुम मन को विलीन कर दो इसलिए दूसरा मैंने उपाय बताया जो भी काम करो देखो राम राम करो राधे राधे भी करो कोई बात नहीं लेकिन इतनी तलन होता से करो कि कर्ता समाप्त हो जाए तुम कर्ता बने रहते हो इसलिए तो हिसाब लगाते हो चार माला हो गई छह माला हो गई बैंक बना देते हो बैंक में जमा कर देते हो पूंजी जमा हो गई कोई पूंजी पूंजी जमा नहीं होती ये बैंक में जमा कराने वालो वक्त ना खराब
करो शक्ति ना खराब करो उसी शक्ति को अपने भीतर के तीर्थ को खोजने में लगा दो मिल जाएगा वह सच्चा है इस विराट सृष्टि में यह लुटेरे और झूठे लोग बहुत बैठे हैं भटकाने वाले कई बार इन्हें खुद ही पता नहीं होता कि हम भटका रहे हैं और कई बार ये जानबूझकर भटका हैं अब इनकी तो यही जाने लेकिन मैं आपको सत्य की बात बताता हूं कि राम राम भी करो लेकिन राम रम जाए ऐसा करो राधे राधे भी करो लेकिन राधे चैतन्य में हो जाए ऐसा करो अगर ऐसा नहीं करोगे तो फिर तुम भटक जाओगे फिर तुम्हें नहीं मिलेगा कोई भी कर्म करो पूरे तल्लीन हो जाओ मन को तल्लीन कर दो
उसमें मन को विलीन कर दो उसमें यानी मन ना बचे मन खो जाए फिर चाहे तुम राम राम करो फिर चाहे तुम राधे राधे करो फिर चाहे तुम टर टर करो पहुंच जाओगे पक्का नाम उसका कोई है ही नहीं जब राधा नहीं थी तब भी जब राम नहीं थे तब भी और कोई तो वेला थी जब राधा नहीं थी और जब राम नहीं था तब भी मन विलीन होता था मन को विलीन करना है मन को विश्राम देना है परम विश्राम देना है उसी विश्राम को मैं सच्चा विश्राम कहता हूं आराम से राम की ओर मेरा आराम मन को विलीन करने का नाम है मेरा आराम मन ना बचे मन पूर्ण तहा विलीन हो जाए जैसे
परवाना क्षमा में राख हो जाता है उसकी राख तो बच जाती है मन की राख भी ना बचे मन विलीन हो जाए खा हो जाए कोई भी काम करो कर्म विशेष में तुम्हें मैं रोकता नहीं कोई बाधा नहीं लगाता कोई भी काम करो पूर्णता से करो मुक्त हो जाओगे इसी सूत्र से सदना कसाई मुक्त हो मैं एक राज की बात बता दूं लीनता के सूत्र से सदना कसाई भी पार हो गए और तुम दान करके भी पार नहीं हो सकते तुम्हारा मन मरने की बजाय और प्रगड़ हो जाता है सदना कसाई कत्ल करके भी पहुंचे जाता है तुम सती सावित्री बनकर भी मुक्त नहीं हो सकता और अणि का गणिका वैशा होती हुई मुक्त
हो जाती हैं कारण क्या है पीछे का रहस्य क्या है रहस्य है विलीन होना गणिका अनिका और सदना जो करते हैं उसमें अपने मन को पूरा झूक देते हैं अगर तुम किसी भी काम में राम राम करो लेकिन पूरे विलीन होने दो मन को और जिस घड़ी विलीन होने का तुम्हें फार्मूला आ गया बल आ गया सलीका आ गया उस घड़ी तुम पाओगे मुक्ति दूर नहीं है यह एक अड़चन थी थोड़ी सी जो आंख में कणक पड़ गया था कणक बहुत छोटा होता है आंखों का बहुत दूर तक फैला होता है और इस छोटे से कण ने तुम्हारी आंख ने आंख को देखने से वंचित कर दिया इस छोटे से कण के को हटा
दो तुम बचे रह जाते हो बचना बंद करो पूर्ण विलीन कर दो कैसे करोगे सरल शब्दों में समझा दूं तुम्हें कोई भी काम करो कोई भी काम करो अच्छे बुरे की मैं कोई संज्ञा नहीं देता इसमें लेकिन करो पूरे लीनता से तुम तुरंत मुक्त हो जाओगे यह फार्मूला है करता ना बचे तुम नाचो नृत बचे नर्तक ना बचे नाचने वाला खत्म हो जाए नृत्य बचे नाच बचे लिखने वाला समाप्त लेख बचे महंगा कवि समाप्त कविता बचे हसा मत कर कभी कभी देखो थ य मसला थोड़ा गंभीर होता है थोड़ा सा आपको हंसाना जरूरी हो जाता है कविता बचे लेख बचे नृत्य बचे नर्तक खो जाए कवि खो जाए
लेखक खो जाए अगर तुम ऐसा कर्म कर सकोगे इसको ही कर्मों की कुशलता कहा भगवान कृष्ण ने कर्मेश कौशल योग कर्मेश कौशलम कर्मों में कुशलता का नाम ही योग है इसका सरल अर्थ तुम्हें बतला रहा हूं जो करो पूरी लीनता से करो कर्म बचे करता ना बचे फिर बता रहा हूं बार-बार कर्म बचे करता ना बचे कभी खो जाए कविता बजे लेखक खो जाए लेख बजे गीतकार खो जाए गीत बचे सुद विसरा गयो मोरी रे सुध विसरा गयो मोरी व काला [संगीत] एक बांसुरी वाला सुद विसरा गयो मोरी रे सुद विसरा गयो [संगीत] मोर मां खन चोर वो नंद किशोर जो माखन चोर हो नंद किशोर
[संगीत] जो कर गयो मन की चोरी रे कर गयो मन की चोरी वो काला एक बांसुरी [प्रशंसा] वाला शद विसरा गयो मोरी [संगीत] रे सुद विसरा गयो मो री हो काला एक बांसुरी वाला छुप गयो फिर एक तान सुना के कहां गयो एक बान चला [संगीत] के कहां गयो एक बान चलाक गोकल ढूंढा [संगीत] मैंने गोकुल ढूंढा [संगीत] मैंने मथुरा ढूंढ कोई नगरिया ना छोड़ी रे [संगीत] कोई नगरिया ना छोड़ी रे सुध विसरा गयो मो री हो काला हो काला [प्रशंसा] एक बांसुरी [संगीत] वाला धन्यवाद
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