अर्जुन कामोह 11 में अध्याय से पहले समाप्त हो गयाजब मोह समाप्त होगया तो अर्जुन ने तत्क्षण अपना धनुष्यक्यों नहींउठाया 11 में अध्याय का पहलाश्लोक हेकेशव आपने मुझ पर कृपाकरके मेरे लिए जो परमगोपनीय आध्यात्मिक विषय कावचनकहे उससे मेरा मोह नष्ट होगया मोह नष्ट हो गया बिल्कुल ठीक हैतुम्हारीबात नो दयसेल्फ उसने खुद को जानलिया दूसरे अर्थों में अगर कहेकि उसने खुद को मानलिया कि मैं शरीर नहींहूं यहां तक जानना नहींहुआ मैंने पहले भी बहुत बारकहा दर्शन केबिना जाननाकैसा सो जान हो जिस देहुजनाई दर्शन के बिना जानना नहीं होता वोमानना होताहै और अर्जुन ठीक कहते हैं कि आपने जोबातोंसे मुझे बहुत अति गोपनीय आध्यात्मिकजानकारीदी उससे मेरा मोह नष्ट होगया लेकिन जानकारी से मोह नष्ट हुआ दर्शनसेनहुआ इसलिए उसने धनुष्य बान जो फेंकदिया थाबउठाया तो किस तलाश मेंहै दर्शन की तलाशमें हेवासुदेव यह जो आप कह रहे हैंहे कमलनायन ये जो आप अपने आप को कह रहेहैं सारी धरती पर सिर्फ एक कृष्ण[संगीत]है जो मैं शब्द का इस्तेमाल अस्तित्व केलिए करतेहैं अक्सर मैं शब्द काइस्तेमाल अहंकार व्यक्ति करताहै धरती पर अकेले कृष्णहै जो मैं शब्द काइस्तेमाल एसिस्टेंसियाएक मैं का तल खुद का होनाअस्तित्व दो तलों पर वह मैं कह सकताहै अज्ञानीव्यक्ति शरीर के तल सेबोलेगा मैंकहेगा ज्ञानी व्यक्ति दोनों तोलो से बोलसकता है क्योंकि वह कभी शरीर था आज शरीरमेंहै तो वह शरीर को भी मैं कह सकताहै उसने अस्तित्व को देखलिया वह अस्तित्व को मैं कह सकताहै और कृष्ण अस्तित्व के लिए मैं काइस्तेमाल करतेहैं हे कमल नय आप जो कहते हैं मैं ऐसा हूंमैं ऐसा हूं मैं ऐसा हूंबड़े समझदार हैं अर्जुन जैसाशिष्यमिलना दुर्लभ नहीं असंभवहै ऐसी विनम्र भाषा में अर्जुन सवाल पूछलेताहै जिसकी आप कल्पना भी नहीं करसकते और पूरी सर्जरी कर देता है कृष्ण कीकहता हे कमलनयन यह जो आप कहते हैं कि मैं यह हूं मैंवोहूं मैं वो हूं मैं वोहूं इसे मैं देखना चाहताहूं संदेहमिटाने और अगरअर्जुन आत्मा दर्शन करकेसिर्फ शब्दों के द्वारा आत्म दर्शन करकेधनुष को उठालेते वो कच्चा कच्चाथा तीरों में वह जान ना होती वह बल नाहोता और अर्जुन जीतनापाता अर्जुन कानों का कच्चा रहजाता दर्शन ने उसे पक्का बना दियाहे कमल नयन जो तुम कहते हो मैं ये हूं मैंवो हूं मैं उसको देखना चाहता हूंप्रभु गुरु की प्रीक्षा का अंतिमछोर कृष्ण के लिए यह घड़ी निर्णायक भी हैअंतिम भी हैऔर सबूत पेश करने के भीहै यही कलयुग मेंघटा नरेंद्र दत्त ने सबसेपूछा परमात्मा हैदेखा दिखा सकतेहो कोई भी इन कसौट हों पर खरा नहीं उतरापहले दो सवालों के ज जवाबथे ईश्वरहै देखा है दिखा सकते होनहीं अकेले राम कृष्ण ने कहाहा है देखा है देखना चाहते हो हां देखनाचाहता हूं तोदेखो सर पर हाथ रख दिया और पहली दफानरेंद्रनाथ हार गयाचीखा चिलाया जब उस तल पर गयाक्योंकि नियम तो नियमहै एक मरेगा झूठा दूसरा जन्मे कासच्चा झूठे को मरना होगा उसी से तुम डरतेहो जन्म जन्मांतर से तुम इस झूठ को मानेहुए हो साथ ढो ए हुए हो और यही बोझ हैतुम्हारे ऊपरवहां जाकर चिल्लाया जब मौत सामने खड़ी थीमरना तोपड़ेगा मैं तुम्हारी दुविधा को बखूबीसमझताहूं डरा तो मैं भी कम नाथा सूखे पत्थे की तरह कंपन होता हैवहां जब मिथ्या टूटता है सत्य सामने आताहै तो कंपन होताहै सभी डरतेहैं नरेंद्र नाथ भीकंप और चलाए स्वामी जी मेरे मां-बाप भीहैंराम कृष्ण समझ गए ठीक फिर बाहर आजाओ तुमने ही कहा देखना चाहताहूं फिर बाहर आजाओ अर्जुन कहते हैं आपने यह जो कहा स्वयप्रशंसा में अपना मुंह मिया मिठू बननाहमारे कहावतहै ये तो तुमने बड़ा कहाभगवान लेकिन मैं उस सब को देखना चाहता हूंअंतिम परीक्षा अंतिमकड़ी हेवासुदेव कमलने मुझे वोह अपना विराट वह स्वरूप दिखानेकी कृपाकरें कृष्ण बोले हे पार्थ तैयार हो जाओअर्जुन बड़े प्यारे हैं अर्जुन कहते हैंयोगेश्वर अगर आप समझते हैंउचित मेरे द्वारा वह रूप देखा जा सकता हैएम एबल टू सीदैट अगर मेरे द्वारा उस रूप का अवलोकन होसकता है तो कृपा कर दीजिएमुझे अपना वह स्वरूपदिखाइए क्योंकि हे कमलनायन अब तक आपकी उत्पत्ति करने वाला भीमैंहूं विनाश करने वाला भी मैं हूं मैंने यहसब आपके मुख से सुनाहै खुद देखानहीं बड़े समझदार हैअर्जुन तो अर्जुन कहअगर कृष्ण अर्जुन की परीक्षा ले रहाहै तो अर्जुन भी कमतरनहीं अर्जुन कहे कि अब तक आप कहते होमैंने उत्पत्ति की और मैंने विनाश कियामैं हीहूं तो आपके ही मुख से सुनाहै तो कृपा करके अपना वह मन मोहक रूपमुझे दिखादीजिए कृष्ण कहते हैंठीकलेकिन मेरा वरूप तुम इन चर्म चक्षु से निहार नापाओगे फिरसंदेह कृष्ण कहते हैं हेपार्थ मेरा वह रूप तुम इन चरम चक्षु सेनिहार नापाओगे अर्जुन के मन में फिर अविश्वास आजाता है कहीं बहाने बाजी तो नहीं कर रहेकृष्ण हे भरत वंशउद्भवअर्जुन 12 आदित्य को आठ वसु को 11 रुद्रको दो अश्विनी कुमारों को और 49 मर्द गणोंकोदेख दिखाते कुछ भी नहींहो अभी सिर्फ बातचीतहै और अर्जुन बड़ा पक्काहै अर्जुन कहता है प्रभु आपने जो कहा अबतक वासांसी चरणान यथा विहाय नवानी नरोपराण तथा श्री रानीविहाय जिना ननी सती नवानीदेही जैसे पुराने वस्त्रों को उतार कर हमन वस्त्र ग्रहण कर लेते हैं वैसे हीआत्मा पुराने शरीरों को त्याग कर न शरीरग्रहण कर लेती है और बहुत कुछकहा पत्र पुष्पम फलम यम पत्र चढ़ा दोपुष्प चढ़ा दो फल चढ़ा दो फूल चढ़ादो श्रद्धा पूर्वक जो भक्तमुझे जो भी अर्पित कर लेते हैं भक्ति भावसे मैं स्वीकार कर लेताहूं और भी बहुत कुछकहा जो देवताओं को सुरते हैं देवताओं केपास भूतों को सुरते भूतों के पास पित्रोंको सुमिरत पित्रों केपास जो जिसका स्मरण करता है उसके पासपहुंच जाता है और मैं उसी में उसी कीश्रद्धा को बढ़ा देताहूं अर्जुन कहते हैं आपने बातें तोबहुत 10 अध्याय भीचुके दूसरे अध्याय से शुरू किया था कृष्णने बोलना11वां अध्याय आ गया सब सुनया[संगीत]अर्जुन अब अर्जुन के पूछने की बारी थीप्रभु मैंने सबसुना मेरा यह मोह तो नष्ट हुआ शाब्दिकमोह शाब्दिक मोह तो नष्ट हुआलेकिन देखा मैंने कुछ नहीं अबतक ऐसे शानदार मुमुक्षु हैंअर्जुन सारी मानवता को मुक्त करने मेंसमर्थ शिष्य अगर कोई आज तक हुआ तो अर्जुनहुआ उन्होंने सवालों के बाल की खाल उदर दीकृष्ण कहते हैं ये 49 मरुदगण 11 है रुद्र दो अश्वनी कुमार आठ वु सबदेख लेकिन अभी दिखाया कुछनहीं और फर कृष्ण बोलतेहैं हे अर्जुनऔर भी जो तू देखना चाहता हैदेख तुमने पूछा कि अर्जुन ने जब मोह नष्टहो गया दसव अध्याय में और 11वें अध्याय केशुरुआत में अर्जुन कहता है मेरा मोह भंगहुआ लेकिनशाब्दिक अब दर्शन भी करवा दोतुम कहते मैं यह हूं मैं वोहूं बिल्कुल मूल चोट कीहै लेकिन हेअर्जुन जो दर्शन तू करना चाहता है मेरेविराटके अब प्रैक्टिकल केऊपर कृष्ण आ जातेहैं क्योंकि देखना चाहता हैअर्जुन तो कह कि इन चर्म चक्षु से इनचमड़ी की आंखों से तुम ना देखपाओ योग्यता है तुम दिव्य चक्षु को लेनेकी इसलिए हेअर्जुन मैं मेरा स्वरूप दिखाने के लिएतुम्हें दिव्य चक्षु पहले प्रदान करताहूं जैसे हम कहदे इतनी दूर तक तुम नगन आंखों से तो नादिख सकोगेलेकिन यह लो हर्बल टेलिस्कोपवहां तक भी नहीं तो यह लो जेम्स वेवटेलिस्कोप इससे देख पाओगे तु ब्रह्मांड केपार बस बिल्कुल ऐसा ही शब्द बोलते हैंकृष्ण कि नगन आंखों से ना देखसकोगे इसलिए हेअर्जुन तेरे दर्शन की अभिलाषा जगी यहांबड़ा प्यारा शब्दबला मुमुक्षु को समझ लेनाचाहिए अगर अर्जुन मुमुक्षुहै और कृष्ण को पता चल जाता है कि म मु हैमुक्त होना चाहतेहैं दर्शनार्थ आएहैं तो फिर कोई दुविधा नहीं होती देखनेपता तो तब चलता है जब शिष्य गण यहां आकमस्तक निवाते हैं बात परमात्मा की पूछतेहैं लेकिन धीरे-धीरे कहते हैं यह तो थोड़ाही मांगाथा हम तो अच्छे गायक बन जाए यह मांगाथा हम तो दुनिया के सर्वश्रेष्ठ धनी बनजाए यह मांगा था अपूर्वसौंदर्य और लावण्य छा जाए यह मांगाथा उच्च पदा सन हो जाए यह मांगा था यहथोड़ा ही मांगाथा पता तब चलता है यहां बड़ा कसतेहैं 10 अध्याय तक कसतेहैं ऐसे ही गुरु आपको चर्म चक्षु से दिव्यचक्षु में नहीं लेके आताऐसा ही मैं कहता हूं मैं कहता हूं तुमदीक्षा लेजाओ एक बीज बो दूं तुम्हारेभीतर जिन आसानी तरंगों की तुमने कभी खुशबूनहीं देखीथी और तुम्हारे भीतर छोड़ दूं एक बीज बोलूधीरे धीरे पनपतारहेगा एक दिन तुम उस सीमा पर आजाओगे जहां तुम्हे दिव्य चक्षु कीआवश्यकतापड़े तो फिर तुम्हें दिव्य चक्षु दे दूंगामैं कहीं नहीं जाता मैंयही जाएगा शरीरजाएगा लेकिन वो दीक्षा देने वाला कभी कहींनहींजाता व यहीरहेगा वह संभालेगातुम्हें एक अर्थ में मैं ही संभालू तुम्हेऐसा समझलो तो अगरकृष्ण खींचते हैं प्रश्नों को रबड़ कीतरह तो अर्जुन भी कम नहींहै अर्जुन भी प्रश्न से प्रश्न दागे चलेजातेहैं अब बात आ गई सिर्फदर्शन अब अंतिम छोर आ गयाअब जो कहातुमने हे कमलनाय मैं ये हूं मैं वो हूं मरुद गण हूंमनी कमारहू यह सब देखना चाहता हूं मैं आपके मुख सेबड़े प्यारे लगतेहैं अब दिखातो कृष्ण कहते हैंहां ये सब दिखाऊंगा और भी वो दिखाऊंगा जोतुम देखना चाहते हो और अभी तक देखेनहीं लेकिन इन चर्म चक्षु सेनहीं मैं तुम्हें दिव्य चक्षु देता हूंयहां तक आते आते इतनीशक्ति फेंक दी गईथी किअर्जुन दिव्य चक्षु को ग्रहण करने मेंसमर्थ हो गयाथा 10 अध्याय तक लगातार बारिश करतेरहना वह व्यक्ति दिव्य चक्षु के योग्य होजाता है इसलिए मैं तुम्हें रोज कहता हूंसंत जनों को सुनतेरहना सुनते सुनते सुनते सुनते उनकी अल्फाथीटा रेसआपको पेनिट्रेट करेंगी मुमुक्षा कोजगाए और एक दिन तुम योग्य हो जाओगे अभीनहीं अभी तो तुम चारबाक और मार्कस हीरहोगे कहते चाहे कुछ भीरहो तो सिर्फ एक बीज बोना है मेरा अंगूठारखना तुम कहीं फिरते रहोबस यह तीन चीजों को मत छोड़ो जितना हो सकेक्रियायोग करलो ऑक्सीजन केडबॉडी प्रवचन सुन लो तार नाटूटेगी लगातार तुम्हें प्रेरणा मिलतीरहेगी तुमने किधर जाना है बुरा मत करनाहो सके तो अच्छाकरना बुरा मतकरनाऔरध्यान ना कुछ करना बस उसमें बैठ जाना जैसेरात्रिको नींदमें छ घंटे 8 घंटे पाच घंटेगए उसी तरह बिल्कुलशिथल होकर बैठजाना जो कुछ होता है होने देना डरनामत अब कृष्ण कहते हैं हे अर्जुन बिल्कुलसही चल रहे हैंअर्जुन लेकिन अर्जुन के मन में अभी शंकाहै लेकिन कृष्ण बिल्कुल सही चल रहे हैंकृष्ण जानते हैं किस तल पर आकरये क्या प्रश्नपूछेगा और पूछ लिया वो गवेअध्याय शुरुआत में हेप्रभु मेरा भ्रम तो टूटगया जो आवण ओढ़े थेमैंने जो भी ठीक गलत तो माना था मैंनेलेकिन प्रभु देखा कुछ नहीं बड़े ईमानदारहैं अर्जुन और बेईमान व्यक्ति यहां पहुंचभी नहीं सकता ध्यानरखना ईमानदार ही पहुंच सकता है सत्य हीपहुंच सकता है झूठ बोलने वाला यहां नहींपहुंच सकता मुझे लोग कह देतेहैं हमारे इतने उच्च पदा सन झूठ बोलते हैंमैंने कहा आप क्या कह लेते हैंगीता को मानतेहो जैसा कर्म करेगा वैसा फल देगा भगवानबोलनेदो फल भी तो वही भुगदेगा तुम क्यों जलतेहो तुम मौजकरो तुम्हारे लिए तो राजा कोई भी हो जाएतुम्हें तो करना खानापड़ेगा तुम इससे मुक्त नहीं हो सकोगेतो फिर कोई भी राज करे तुम्हें क्या फर्कपड़ताहै अच्छा करेगा अच्छाभोगे बुरा करेगा बुरा भोगे तुमको नाजायजबीच में अड़ंगा ड आतेहो तो अर्जुन कहते हैं हेकृष्ण तुम्हारी सब बातें सुनी तो मैंनेऔर उस सुनने से जो मेरा माननाथा व सारा टूट गया जो सिर्फ माना था मैंनेजाना नहींथा अर्जुन कहते हैंठीक य शब्दों की खेल तो बहुत होगए बात रहगी दर्शनकी हंसापाया मानसरोवर हंसापाया मानसरोवरताल तलैया क्योंडोले हंसापाया मानसरोवर तालतलैया की कडोले हंसापाया मानसरोवर ताललैया क्योंडोले जब हंस ने मानसरोवर पालिया तो ताल तलैया क्योंढोले तालाबों की चक्कर क्योंलगाए यही लक्षण बताते हैंकृष्ण जब तुम जानगए मैं सर्वव्यापक[संगीत]हूं तो संकीर्ण बुद्धि समाप्त हो जातीहै और कृष्ण कहते हैं मैं विराटहूं और अर्जुन अभी संकीर्ण भुद्धि हैअर्जुन कहते हैं हे प्रभु आपकी बातें तोसमझाई सारे थोपे हुए आवरण अनावरणहुए टूट गएलेकिन सत्य तो अभी भी नहींदिखा बिल्कुल जायजप्रश्न तब कृष्ण कहते हैं कृष्ण जानते हैं10 अध्याय तक आते-आते यहबीज टूट गया पानी मिला खादमिली कुं फलेउगी सूरज की रोशनीपड़ी बढ़ना शुरूहुआ अपना मुख बाहर निकाला धरतीके बस अब ये योग्य हुआ वृक्ष बननेका जदिया अ वृक्ष बन जाएगा फल भी लगेंगे फूलभीलगेंगे कृष्ण कहते हैं कि मैं तुझे चर्मचक्षु की बजाय वो चक्षु देता हूं जिससेमेरा तू स्वरूप देखसके बिल्कुल एक्यूरेट जा रहे हैं स्पष्टदिशा में ऐसा ही तुम्हें भी करनाहोगा गुरु ने भीमिले तो तुम भी जब उतरोग तो दर्शन के तल पर जाकर ही समझा आएगीदर्शन के तल से पहले तो सिर्फ मान्यताएंहोंगी झूठी मानी हुई थोपी हुई और उनसेभर्म नाश नहीं होतातुम्हारे आचरण में कोई फर्क नहींपड़ेगा लक्षणों में कोई फर्क नहीं होगालक्षण वहीरहेंगे कृष्ण कहते हैं मैं तुझे दिव्यचक्षु देता हूं तू तैयार होजा अर्जुन ने कहाजी दिव्य चक्षुदीजिए और कृष्ण ने अर्जुन को दिव्य चक्षुदे शुरू करदि अर्जुन पक्का खिलाड़ीहै यहां हार जीत की बात नहींहै यहां मरने मारने की बातहै यह बात प्रणो पराईहै शब्दों से कृष्ण लुभा नापाएंगे तो अवश्य ही कुछ ऐसा दिखाना पड़ेगाजो हम जैसा चमत्कार कह देते हैं को कोईचमत्कार तुम्हारे जीवन में किसी संत केआने से कोई चमत्कार घटितहुआ तुम जैसे ही े ख्याल करोगे तुम्हेंसमझाना शुरूहोएगा जैसे फूल के करीब जाने से सुगंधआती और गंदे नाले के करीब जाने से दुर्गंधआती हैतुम्हारी इंद्रियां उसे अनुभूतकरेंगे दिव्य चक्षु दे देतेहैं और सब दिखाते हैं आगे प्रसंग चलताहै चलता है प्रसंग चलता है कृष्ण बोलतेचले जाते हैं अर्जुन पूछते चले जाते हैंयह क्या है यह क्या है राने लग जाते हैंये देख मेरा काल रूपऔर एक तलपर कृष्ण कहते हैं अर्जुन मैं इन्हें मारचुका तू सिर्फ उठ और मारने का श्रेय लेले तो यह सहरा सजा ले अपने सर के ऊपरमैंने मारचुका यहां से यह कहावत उठती है ल द इवेंटप्रडिटर जिसने इस तल सेदेखा व यह बातकहेगा योलो स्टाई इस तल से बोलेगा ल दइवेंट आ प्रीडिटर कमिंग इवेंट्स कास्ट देर शैडोबफर और प्रसंग चलता है चलता है चलताधीरे-धीरे मोह तो नष्ट हो गया दिखलातीरहते हैं अपना विराट विराट देखता रहताहै बड़ा कंपन भी होता है देखिए जैसे जैसेमानताटूटेंगे कंपन आना स्वाभाविकहै जैसे जैसे तुम्हारी मान्यताएं जो तुमनेदेखी नहीं थी मानलेवो टूटेगी तुम कंपहोगे अब मैं बोलता हूं तो बहुत से लोगमुझे कहते हैं बाबा हमें तो बड़ा डर लगताहै तोहे सुनतेसुनते मैंने कहा भी ऐसा होता है मान्यताएंटूटें तो तुम कंप होगे क्योंकि तुममान्यताओं को अपना होना समझे बैठेहो ये इल्यूजन तुम्हारा जीवन बन गतो इल्यूजन टूटेंगे तो तुम्हारा जीवन भीटूटा लगेगा टूटेगानहीं तो तुम ठहरेरहना अगर उस परमसुशोभित तत्व के पास जाना चाहतेहो अर्जुन डटे रहते हैं कंपतेलुगूआखिरमें 18 मेंअध्याय 73 में श्लोकमें पूर्ण रूप से मोह नष्ट हो जाता हैसंतुष्ट हो जाते हैं तृप्ति आ जातीहै तब अर्जुन कहते हैं तृप्तहुए नष्ट मोहा समृत लब तत् प्रसादा आपकीकृपा सेप्रसादा नमआत आपकी कृपा से हेअच्युत हे ना कपने वाले कृष्ण मेरा मोहनष्ट होगया अवे अध्याय के 73 में श्लोक कहां सेचलीगीता तुम भी जब तक मोख नष्ट ना हो जाएतबतक मुझे पता है तुम्हें मानना भी नहींचाहिए और सच में तुम मानोगे भी नहींबार-बार खोपड़ी में मान लोगे और खोपड़ी काक्या है खोपड़ी तो यही धर रहजाएगी अगर लिबरे होगेतुम वहलिबरेशन तुम्हारे देही शरीर को भुख देगेदेही को फूकनाहै देही से तादात में हट जाए देही जल जाएबीज नाश होजाए औरबूंद समुद्र में समा जाए यह तुम्हारालक्ष्य तब तक चलते हीरहना जब तक सच में मोह नष्ट ना हो जाए औरयाद ना आ जाए नष्ट मोहा समृत धावत प्रसादमैंअचत हेअचत तेरी कृपा से मेरा मुह नष्टहुआ तो पूछाहै कि मोह तो नष्ट हो गया दवी में नष्ट होगया लेकिन धनुष्य क्यों नहीं उठाया धनुष्यसेलिए ने उठाया के शाब्दिक मोह नष्ट हुआथा दर्शन नहीं हुए थे और दर्शन केबिना मोह नष्ट हुआ नष्ट होतानहीं शब्दों को शब्दों से काटना होता हैतर्कों को तर्कों से काटना होता है लेकिनतुमने तो तका तीत होना है जो तर्कों सेपार जाताहै जहां वो विराजमान हैजिसके बारे में कृष्ण कहते हैं कि तीरनहीं कटता जल नहीं गला आता वायु नहींसुकती आग नहीं जलाती वहां पहुंचनाहै और वह तर्कों से परेहै तर्क बुद्धि की देन तर्कवितर्क बुद्धि कीदेन लेकिन तर्कों से पार तुम खुदहो तुम खुदहो औरअर्जुन खुद को शब्दों से जानलिए दर्शन से नहीं जाने दर्शन से अब जानेजब सब दिखाया उसको मैं यह भी हूं मैं यहभी हूं यह भी मैं यह भीमैं दर्शन से नष्ट होताहै मोह इल्यूजन सच मेंअन्यथा शब्दों से मोह को नष्ट हुआ जानो तोवो नष्ट हुआ नहीं वो तुम्हारी कल्पनाहै[संगीत]ठाकुर तुम सरनाईआयोठाकुर तुमशरणाई[संगीत]आ उतरगयो मेरे मनका[संगीत]संस उतरगयो मन का[संगीत]संसार जब तेरा दर्शनपायोठाकुर तुम[संगीत]सरनाईआयोठाकुर तूसरनाई[संगीत]आ उतरगयोमेरे मन कासंस उतर गयोमेरे मन का[संगीत]ससा जब तेरा दर्शनपायो जब तेरा दर्शन पायो बस यहां के बातखत्म हो जाती है दर्शन के बिना संशय नहींमिटता नष्ट मोहत लत प्रसादनम तेरे दर्शन के बिना मोह नष्ट नहीं होताथा अब दर्शन हुआ तो मोह नष्ट होगया सत्य देखा क्या है सत्य को देखेबिना झूठ खत्म हुआ मान मत लेना यह भी इसीको भी एक मान्यता मत बनालेना सत्य को देखना नगन आंखों से देखना औरतुम खिल जाओगे फूल की तरह इसे ही सहस्र दलकमल का खिलना कहते हैं हजारों पकड़िया खुलजाएंगीतुम्हा कली अपना मुख खोल लेगी सुगंधबिखरने शुरू हो जाएंगी नाद च शुरू होजाएंगे जिथे वाजे नाद अनेक अनशंखा हजारों असंख्य नाद बजतेहैं वहां पहुंचजाओ दर्शन होगा देखोगे नाद सुनोगे जहां सेउद्गमसतलू बिना ब्रम नहींमिटेगा शस्त्र को प से गुरु को सुननेसे कल्पनाओं से कल्पनाएंटूटें तर्कों से तर्कों का बड़न होगा जैसेएक तीर से दूसरा तीर कट जाताहै लेकिन एक तीर से दूसरा तीर कट जाता हैयुद्ध नहीं जीताजाता युद्ध जीता जाता है जब दुश्मन डेर होजाता हैदुश्मन कौन तुम्हारासंशय और संशय नष्ट हुआ दर्शनसे उतर गयो मेरा मन कासंशय जब तेरा दर्शनपायो ठाकुर तुम शरणाई आ हो तेरी शरणमें श्रीकृष्ण गोविंदहरे[संगीत]मुरारी हे नाथ[संगीत]नारायण[संगीत]वासुदेव श्री कृष्णगोविंदहरेमुरारी हे नाथनारायण वासु[संगीत]श्री कृष्णगोविंद हरेमुरारी हे नाथनारायणवासुदेव पित मातस्वामी सखाहमारे पितु मात स्वामीसखाहमारे हे नाथ[संगीत]नारायणवासुदेवा श्री कृष्णगोविंद हरेमुरारी हेनाथनारायण वासुदेवाश्री कृष्ण गोविंद हरेबरी हे नाथनारायणवासुदेवा श्री कृष्णगोविंद हरेमुरारी हे नाथनारायणवासुदेवा ओदे
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