उस तल पर कैसे पहुंचे जहां कोई लिप्त बिंदु शेष नहीं बचता! निर्लिप्तता में कैसे आयें

 


रोज-रोज बुध का जन्म लेना रोज-रोज मुश्किल होता जा रहा है क्योंकि गर्भ में रखने वाली माताएं गर्भ को क्षीण कर रही कैसे ठहर वह बहादुर योधा वो करुणा मान आत्मा है साहसी कृष्ण दृढ़ संकल्प मर्यादा पुरुषोत्तम राम जैसे व्यक्ति कैसे ठहर पाएंगे नहीं ठहर पाएंगे जो व्यक्ति झूठ बोलता है उसके घर कैसे युधिष्ठिर रा पाएंगे बस बिल्कुल ऐसे बस्ता है तो इस लिप्त बिंदु को देखकर कृष्ण ने सभी को मार दिया कृष्ण जानते हैं और मजे की बात यह है जो जानता है वह खुद लिप्त नहीं होता उसने लिप्त की सभी हदें पार कर दी और सभी चीजों से जो चिपका हट थी उसने तोड़ दी भंग कर दी मुक्त हो गया आजाद हो गया इसी को मुक्ति कहते हैं आत्म स्वरूप को जानने के बाद परमात्मा स्वरूप दो स्वरूप होते हैं पहले शरीर मन इस स्वरूप से परे जाओगे तो आत्म स्वरूप आत्म स्वरूप से थोड़ा गहरे तरोगे तो फिर विराट में लीन हो जाओगे यहां भेद करने की जरूरत नहीं सीधा सधा रास्ता है रोज गर्भ के क्षीण होने से चिंता बढ़ रही है मूर्ख जन पैदा हो गए दुष्ट जन पैदा हो गए जिन्हें हम अंध भक्त कहते हैं यह नहीं के बुद्धिमान है किसी के पीछे लग जाते हैं नहीं वो बुद्धि होती नहीं जिनके भीतर बुद्धि होती है कभी बुद्धि अंधी नहीं होती बुद्धि तो बड़ी विचार भीन होती है विचार वान की तरह आचरण करती है बुद्धि सोच समझ के फैसला लेती है अंध भक्त पिछ लग्गू मत कहना कभी तुम्हें पता ही नहीं बुद्धि होते ही नहीं इनम महाभारत में जो सर दर्द बन सकते थे और बने वो ज्यादा लोग नहीं थे और उनको कृष्ण ने अच्छी तरह से निपट लिया बाकी को तो अर्जुन बड़े आराम से निपट सकता था कुछ भाइयों को भीम ने निपट लिया कुछ को युधिष्ठिर ने निपट लिया नकल सहदेव ने निपट लिया लेकिन मुश्किल थी भीष्म पिता गुरु कर जयत ये बड़ी मुश्किल थी दुर्योधन और कृष्ण ने इन्हे कैसे मारा आज भेद खोल रहा हूं भीतर की बात लिप्त बिंदु प्रत्येक व्यक्ति का अगर दुश्मन को मारना हो उसका लिप्त बिंदु खोज लो यह बातें सामूहिक रूप से कहने योग्य नहीं होती लेकिन फिर भी अंध भक्त तो मेरी बातों को नहीं समझ सकेंगे और बुद्धिमान कहीं ना कहीं से खोज ही लंगे सबसे पहले आए भीष्म जो सरदर्द हो गए 10 दिन तक लगातार संघार करते रहे लगातार उनको निपटा बड़ा मुश्किल था उनका क्या था लपल क्या था उनका उनका लिप्त बिंदू क्या था प्रतिज्ञा भंग नहीं करते थे यह लिप्त बिंदु है कई बार प्रतिज्ञा भी पतन का कारण जाती इसलिए मैं कहता हूं प्रतिज्ञा मत लेना बंद जाओगे कोई भी प्रतिज्ञा मत लेना मैं प्रतिज्ञा करता हूं नहीं यह शब्द प्रयोग ही मत करना कर देना जो करते हो और प्रतिज्ञा तब लेना जब अति अति अति अति अनवार हो जाए लास्ट स्टेप तब प्रतिज्ञा और प्रतिज्ञा का मतलब घोर संकल्प महत संकल्प भीतर से आता है उस तल से जिस तल की बात कृष्ण करते हैं स्थिति प्रज्ञा हो जा प्रतिज्ञा भीतर से आती है खोपड़ी से लेनी नहीं पड़ती भीष्म ऐसे थे जो प्रतिज्ञा को तोड़ते नहीं थे सत्यापति के लिए प्रतिज्ञा ली शांतन प्यार करता था सत्यापति से और शांतन के लिए प्रतिज्ञा ली कि मैं आजीवन शादी करू बच्चे नहीं पैदा करूंगा और दृढ़ है फिर प्रतिज्ञा ली कि मैं हस्तिनापुर की रक्षा के लिए प्रतिबद हूं इसके ऊपर जो आक्रमण करेगा उसको पहले मेरे से टकराना होगा फिर आगे आएगा तो कृष्ण जानते थे इस बात को मरने से एक दिन पहले भीष्म के आगे सभी वाण विद्या बेकार चल भी नहीं सकती थी परशुराम का वह शिष्य बड़ा वीर था हर हिसाब से बाहुबल बुद्धि और प्रज्ञा कुछ प्रज्ञा वान लोगों में से जो पहुंच चुके थे अपने उस पर उनमें से एक विषम भी था लेकिन प्रतिज्ञा के साथ चिपट जाते हैं तो वचन ले लिया कल कल मैं सभी पांडवों का वध कर दूंगा द्रो धन ने उकसाया के पितामह यह कोई बात हुई तुम जैसा योद्धा वीर योधा उसके सामने अर्जुन 10 दिन तक टिका रहे समय से परे की बात है जोश दिला दिया कई बार जोश में होश खो जाता है विषम बोले कल मैं सभी पांडवों का वध कर दूंगा और सभी उसकी शक्ति से परिचित थे हाक मच गया पांडवों के पांडाल में हाहा कर मच गया बस युद्ध खत्म जब प्रतिज्ञा लेली के मैं नाश कर दूंगा सभी पांडवों का और था कौन लड़ने वाला पांडव ही तो थे तो द्रौपदी कृष्ण के पास आई कृष्ण बोले कृष्णा कैसे आपको पता है प्रभु भीष्म पितामह ने विषम प्रतिज्ञा ली है आज फिर कल मेरे पांचों पति मर जाएंगे मार देगा कोई बात नहीं चिंता मत कर चल मेरे साथ चल सुबह के बजे पता था उठा करते थे ब्रह्म मुहूर्त में 3 40 मिनट पर ब्रह्म मुहूर्त होता है इनके हिसाब से वैसे ब्रह्म मूर्त सदा ही होता है तो ब्रह्म मूर्त में जगह प्रभु का स्मरण किया आहट हुई पता लगा दीपक जला भीष्म जग गए धीरे से कृष्ण ने कहा द्रौपदी को तू जा चरण छूले जाके चरणों में माथा रख ले और तुम्हें आशीर्वाद दे देंगे तेरे पांचों पति बच द्रोपदी ने वैसे ही किया अभी संभल भी ना पाया था पाव नीचे ही थे धरती पर जाके चरणों में सर रख दिया देखा यह सुबह सुबह एक सुहागन औरत कौन हैय लेकिन झुक ही गया है चरणों में एक बात बताऊ कोई कितना भी दुश्मन हो उसके भीतर का आशीष लेना हो उसके चरणों में झुक जाना मुख से चाहे आशीर्वाद ना दे उसका अंतस्थ में आशीर्वाद दे देगा अंतस के आशीर्वाद को रोक नहीं सकता लेकिन दोगले नहीं थे भीष्म भीष्म के भीतर से जो आया मुखारविंद से प्रकट हो गया अखंड सौभाग्यवती भवा द्रौपदी ने गट उठा दिया पुत्री तुम हां पिता समझ गया सारी बात तो फिर वह छलिया कहां जो तुझे लेकर आया द्रोपदी मुस्कुराई बाहर खड़े तो चल मैं भी चलता हूं ब्रह्म मुहूर्त में प्रभु के दर्शन करर गए चरण स्पर्श किया कृष्ण का समझ गए हे नारायण वासुदेव तुम्हारे बिना कौन जाने मेरे एक वचन को दूसरे वचन से कैसे काटा जाता है मेरी एक प्रतिज्ञा को दूस प्रतिज्ञा से कैसे भंग किया जाता है तुम्हारे सिवा कोई नहीं जानता था मैं फौरन समझ गया अगर द्रौपदी गई तो कृष्ण भी यही कहीं होगा प्रतिज्ञा के साथ लिप्त था विषम अब दूसरा द्रोण सभी का गुरु सभी शस्त्र विद्याओ में णा उसको मारना बड़ा मुश्किल उसने फिर तूफान मचा दिया बड़े लोग मार ऐसे ही 40 लाख लोग नहीं मारे गए ये तो मनुष्य थे पशु हाथी घोड़े रथ तोड़े इतने शस्त्र इतना कुछ संघार हुआ और इतना भीषण संघार भारत के अंदर इसलिए महाभारत और देखिए इतना कमजोर हो गया भारत 5000 साल के बाद कोई युद्ध नहीं हुआ भारत में एक युद्ध ने सब खड़ी निकाल दी पता चल गया युद्ध से क्या होता है विनाश गुरु द्रोण अब कोई नहीं जानता था लेकिन वो वो जानता था लिप्त क्या था लित बिंदु उसका उसका लिप्त बिंदु था उसका पुत्र उसको खुद को मार दो कोई बात नहीं लेकिन वो पुत्र से बड़ा मोह करता था अश्वत्था और कृष्ण जानते थे लेकिन वध कैसे किया जाए कृष्ण यह भी जानते थे कि गुरु द्रोण ने अपने इकलौते बेटे को अमर होने का वरदान दिया है चरण जीवी भव मर तो नहीं सकता लेकिन क्या करें अब बुद्धि को हरण करें जब विद्या उसे आती थी तभी कहते हैं युद्ध कृष्ण ने लड़ा युद्ध सभी योद्धाओं ने नहीं लड़ा कृष्ण के सिवा युद्ध कोई लड़ भी नहीं सकता था और जब अंत में पूछा गया बवरी से जिसे आज श्याम बाबा के नाम से पूछा जाता है बस तू तब तक जिंदा रहेगा जब तक महाभारत चलेगा तोत सब देखेगा असलियत को देखेगा सत्य में क्या घटित हुआ और बाहर क्या दिखा और बाद में पूछा गया बप से तुम बताओ क्या देखा तुमने कहता हे वासुदेव कृष्ण का सुदर्शन और द्रोपदी का खबर तीसरी कोई चीज नहीं कोई नहीं लड़ा सत्य तो यह है द्रौपदी का खप्पर भरा और कृष्ण का सुदर्शन ला बाकी सब प्रत्यक्ष तो मैं देखा हुआ नहीं मैंने देखा जो सत्य हुआ तो हाथी का नाम रखा अश्वत उसको भीम ने मार दिया गदा मार मार के भीम बड़े बल सा दे थे हाथी मर गया टंडोरा पीट दिया जैसे आजकल का मीडिया ब्रेकिंग न्यूज ब्रेकिंग न्यूज देखि कैसे चिलाते हैं अब मैं क्या बताऊ चलो नहीं कहता कुछ तो चलाने लगे हतो अश्वथामा हतो अश्वथामा अश्वथामा मारा गया अश्मा मारा गया ढोल नगाड़े खूब शोर शराबा शराब पी ली और नाचने लगे क्या हुआ गुरु द्रोण ने कहा कृष्ण बोले अश्वथामा मारा गया तुम्हारा पुत्र कृष्ण झूठ बोलने में गुरेज नहीं करते कमाल की बात है कृष्ण कहते हैं तुम्हारा पुत्र अश्वथामा मर गया मार दिया भीम ने भीम से पूछा तुमने मारा हां मैंने मारा वो तो मोटे दिमाग का था ही कहता हां मैंने गदा से मार दिया द्रोण कहते मैं तुम किसी केप के नहीं करता और देखो भूल गए उस वक्त नियति इसे कहते हैं भूल गया कि मैंने उसे अमरता का वरदान दिया है वह कैसे मर सकता है यह बात भूल गया भूल नहीं गया भुला दिया गया उसकी माया का प्रभाव नहीं मैं तुम सब पर यकीन नहीं करता और किस पर यकीन करोगे चलो दिखा देते हैं नहीं दिखाना तो क्या है तब तक थोड़ा कमजोर हो गया था धनुष हाथ से छूटने लगा था कृष्ण अगर युधिष्ठिर कहते के अश्वत थामा मारा गया सिर्फ मैं उसकी बात सारे समूह में सिर्फ युधिष्ठिर की बात पर यकीन करता हूं वह झूठ नहीं बोल सकता मेरा पढ़ाया हुआ है मेरा छात्र रहा है वह झूठ नहीं बोलेगा किसी कीमत के उसने कहा कह देते हैं बुलाओ दटर को बुलाओ दिस्ट भी गया समझा के लेके आए थे उसको अब संस्कृत में हतो अश्वथामा यह शब्द बोलकर नरोवा कुंजर पता नहीं कौन नर था या हाथी था यह बता बोल तो दिया झूठ नहीं बोलते यह तो सत्य हो गया लेकिन झूठ बोल गया क्योंकि बेईमानी मन में गई तो झूठ बोल दिया और उसका फल भुगतना भी पड़ा अश्व महतो नरो रो नरोवा कुंजर जब बोला धीमे से बोला और एक तो धीमे से बोला एक नगाड़े ढोल बजा दिए गए नाचने लगे शराब भी थे हो हो कर दिए वो सुना नहीं उसे अश्व थामा हतो यह सुन गया शस्त्र छूट गए हाथ से बे रोन की गई फेंक दिए क्या करना है अब लड़के नीचे उतरा आया धरती पर बैठ गया चौकड़ी मारकर दुर्दशा थी उसकी प्राण हार गए थे बुद्धि अपना संतुलन खो चुकी थी आंखें बंद करके बैठ गया और द्रोपदी के भाई ने मोका नहीं चूका दृष्ट दमन द्रोपदी का भाई कमांडर था वो चीफ कमांडर उसने लंबी नंगी तलबार से बैठे हुए द्रोणाचार्य का सीश काट दिया भीष्म गए द्रोण गए कर्ण को कृष्ण ने कहा यह तुम्हारे भाई हैं ये कुंती पुत्र है कबरी के पैदा हुआ तो इनका भाई उसका मनोबल क्षीण हो गया और दूसरा शल्य शल उसको लगातार डिप्रेसो जहां कृष्ण है उसको कैसे जीता जा सकता है यह सबके लिप्त बिंदु थे लिप्त बिंदु जो जान के लिए खतरा जो तुम्हारी होद के लिए जो तुम्हारी एसिस्टेंसिया जाए तो तुम गए और बड़े मजे की बात कृष्ण जो उस तल पर पहुंच गया कृष्ण जब मैं बोलता हूं समझना जो उस तल पर पहुंच गया स्थिति प्रज्ञा कृष्ण का कोई लिप्त बिंदु नहीं होता कुछ करो थोड़ा सा बच्चा बीमार हो जाता है दूर से लोग रोते हैं मेरा बच्चा हॉस्पिटल दाखिल है अपेंडिक्स फट गया है कृपा करो मेरे खुद का बच्चा मेरे घर में उसकी लाश सात घंटे पड़ी मित्र आते गए जाते गए और हैरानी मंतर उने सोचा यह पागल हो गया मेरे एक शिष्य की पत्नी मेरे गले लग खूब रोई उन्होंने सुना था कि अगर इतना बड़ा सदमा लगने के बाद व्यक्ति ना रोए पागल हो जाएगा लेकिन उसे पता नहीं था तथ का बहुत रोई उसने बड़ा रुलाने की कोशिश की कि मेरी आंखों से एक बंद तो जाए पुत्र की लाश घर में पड़ी लेकिन स्थिति प्र व्यक्ति रोता कहां है वो जानता है मैं ना मरू मरे संसार यही लक्षण है जो पहचानने चाहिए मैं तुम्हें रोज बताता हूं और यही लक्षण तुम पहचानते हो तुम नाव नुमा टोपी देख लेते हो तुम सुंदर मुखड़े देख लेते हो मोरनी और मोर आंसू पीक मोरनी गर्भवती होती है कहां सुनने जाते हो तुम चेहरा देखने जाते हो अच्छी लगती है बोलती तुम्हारे भीतर का लुप होल मैं जानता लोप और कृष्ण का कुछ नहीं होता कृष्ण के सामने उसका सारा कबीला सारा कुल आपस में लड़के सांप की वजह से जामवंती का पुत्र सा छेड़ देता है दरवाज को आग तो था श्रप दे देता है दुर्वासा और आपस में लड़ लड़ के मर जाते हैं शराप पी के सामने मर जाते हैं ढेर हो जाते हैं जरा भी शिकन नहीं आती चेहरे पर आंसू आने का तो मतलब नहीं तो जब श्राप दिया गांधारी ने हे वासुदेव जैसे मैंने मेरे कुल का नाश होते देखा ऐसे तुम ही अपने कुल का नाश होते देख सोचा होगा गंधारी ने शायद बड़ा रोएगा मेरे मरे हैं इसके इसके तो लाखों है लेकिन एक अश की बंद नहीं आई जो सत्य को जान गया यही होते हैं लक्षण मैं तुम्हें बारबार कहता लक्षण देखो वह ठहर गया कुछ पाने के लिए भागता तो नहीं उसकी कोई खाने की पीने की सैर की सपाटी की इच्छा बाकी तो नहीं रही वह कहीं डोलता तो नहीं यह सब चीजें देखने के बाद गुरु [संगीत] बनाना थोड़ी सी बात से हल जाए एक रप का नोट गुम हो जाए और वो खंगाल दे सब कुछ संत नहीं संत वो जो सारी घर को आग लग जाए लेकिन कोई फर्क ना पड़े कबीर तो कहते हैं तुम खुद ही आग लगा के जाओ जो घर बार आपनो चले हमारे साथ कबीर तो कहते हैं तुम मरोगे एक दिन तो क्यों ना अपनी गर्दन को सिर के ऊपर रख के हथेली मेरे पास लि जय तो प्रेम मिलन की जा शीश तली दर घर में जे तो प्रेम मिलन की चा जे तुम प्रेम मिलन कीचा [संगीत] तली धर शीश तली धर शीश तली इधर घर मेरे आओ जय तो प्रेम मिलन कीचा यह शब्द पूर्व के जो मुमुक्षु करते आए है वैसा ही तू भी कर अर्जुन क्या करते यही कुछ करते कृष्ण का परिवार खत्म जरा विषक करना मैं अपने एक मात्र पुत्र की परात में नहीं गया मैं अपने एक पुत्र के भोज में नहीं गया आखरी जो फरियाद होती है पता नहीं लोगों ने क्या क्या सोचा होगा संस्कार में नहीं गया छोटे पुत्र ने अगनी दी फिर जो अंतिम रस्म क्रिया हुई उस मैं नहीं गया घर बैठ लोगों ने सोचा अवश्य ही पागल हो गया है शौक लगा है संस्कार में ना जाना किस बात का प्रतीक है और आखिरी अरदास में जाना किस बात का प्रतीक है धर्मपत्नी तो गई तो लिपटने लगी और फिर एक पुत्र की शादी हुई मैं बारात में नहीं गया छोटे भाई को बुला लिया तुम्हे फेरे करवा देना मैं क्या करूंगा उस दिन मेरे भाई को समझाई मैं उसकी बारात में भी नहीं गया था कहता भाई मुझे आज समझा मेरी बारात में क्यों नहीं गया था मैं आज तक तुमसे नाराज था इस बात में लेकिन आज मुझे समझाई कि जो अपने पुत्र की शादी में नहीं जाता मेरी शादी में नहीं गया तो अवश्य कोई बात है जानता तो नहीं मैं तुम्हें क्या मिल गया लेकिन एक बात जानता हूं के ठहरा मिल गया तुम अपने हिसाब से सोचते हो बातो को कई बार वह वैसी नहीं होती जो तुम सोचते हो कई बार बिल्कुल जुदा होती हैं विपरीत होते यही कहते हैं कृष्ण जो अतीत में मुमुक्षु जैसा कर्म करते रहे हैं हे अर्जुन जवा कृतम कर्मम पूर्वे मुमुक्षु कर्मे तस्म तम पूर्वम पूर्व तरम कृतम पूर्व काल के मुमुक्षु जिस प्रकार जानकर जो कर्म किए हैं भी उसी प्रकार जानकर उन ही मुमुक्षु की भाति जानकर अपने पूर्वजों का सम्मान कर और तम भी बिल्कुल वही तरह चल जैसे चले अभी मुमुक्षु है अर्जुन पहुंचा नहीं अभी पहुंचना बाकी है इसलिए यह शब्द बोलते हैं कृष्ण केलिए और ये अनिवार्य है एक मुमुक्षु जो कर्म करेगा दूसरा मुमुक्षु भी वैसे ही कर्म करेगा बाहर से तुम्हें फर्क दिखाई पड़ सकता है भीतर से कर्म समान होगा क्या समान होगा अब तुम्हें समझा दूं आखिरी बिंदु मुमुक्षु कोई भी मुमुक्षु हो पूर्व के मुमुक्षु और तुम भी वैसा ही कर्म कर कृष्ण क्या कहना चाहते हैं क्या है समान चीज दोनों में क्या समझाना चाहते हैं तुमको कृष्ण कहते हैं कि वह भी निर्लिप्त भाव से काम किया निर्लिप्त भाव से जिए और भी निरल स्वभाव से जि बस यह निर्लिप्त का एक सूत्र है बाहर से तो कर्म बड़े आपको विभिन्न दिखाई पड़ेंगे कृष्ण चदरिया बनते नजर आए माफ करना कबीर चदरिया बनते नजर आए बुध सिंहासन को छोड़ते नजर आएंगे नानक खेती नजर आे खेती कर रहे हैं महावीर राज दरबार को छोड़कर पहाड़ों पर जा रहे लेकिन एक शब्द बीच में जो कृष्ण कहना चाहते हैं समझ लो कहते हैं निर्लिप्त बना रहे चल चाहे कबीर की तरह नानक की तरह बुद्ध की तरह कृष्ण की तरह की तरह लेकिन भीतर से निर्लेप तो बना रहे अगर तू निर्लिप्त ता सीख गया क्योंकि यही तेरी कमजोरी है इसी कमजोरी को ढूंढकर कृष्ण ने सभी योद्धा का बद कर दिया और जो निर्लिप्त होना सीख गया वो झट से उस तल पर पहुंचा जो खुद निर्लिप्त है सर्व व्यापी सदा अलेपा तोहे संग समाय सब जगह मौजूद भी है और अलेप भी है बड़े उल्टे शब्द है मौजूद भी है सब जगह और निर्लिप्त भी है सब जगह तोहे संग समाए तेरे साथी समाया हुआ है तेरे बीच में समाया हुआ बाहर समाया हुआ तसे दूर भी तेरे पास भी उल्टे शब्द है लेकिन क्या करें भाषा की अपनी तकलीफ है यह तकलीफ भाषा की है व्यक्ति की नहीं अनुभव की नहीं अनुभव तो समान सभी का इसलिए हे अर्जुन जो पूर्वोत्तर मुमुक्षु ने जो कर्म किया बिल्कुल वैसा ही कर्म तोत भी कर क्योंकि तू भी मुमुक्षु है और कृष्ण जानते हैं कि उन मुमुक्षु ने बिल्कुल ठीक किया जो किया बस एक ही चीज साधनी होती है और उसी चीज का जिक्र कर रहे हैं कृष्ण निर्लिप्त हो जा नन क्लिंग चिपका हट को छोड़ दे चिपक मत आइडेंटिफिकेशन मत कर क्यों कृष्ण जानते हैं तुम दुखी ही एक चीज के कारण हो दूसरा कोई रोग ही नहीं है तुम्हें ना तुम्हें कैंसर है ना तुम्हें कैंसर हो सकता है ना तुम्हें दर्द है ना तुम्हें दर्द हो सकता है ना तुम्हें मृत्यु आती है ना तुम्हे मृत्यु सकती है ना तुम्हें शस्त्र काटता है ना तुम्हें शस्त्र काट सकता है ना पानी गला सकता है ना वायु सुखा सकती है तुम वो हो तुम निर्लिप्त हो अमर हो अजर हो अकाट्य हो अशो हो कृष्ण तुम्हें धीरे धीरे उसी तल की ओर खिसका चाहते हैं धीरे धीरे काश काश तुम सीख जाओ काश तुम सीख जाओ उस निर्लिप्त की तरफ खिसकना और धीरे-धीरे जैसे जैसे तुम निर्लिप्त के करीब आए एक लक्षण बता दूं तुम्हें आखरी लक्षण क्या है तुम्हारा आनंद बढ़ता जाएगा मदहोश होते जाओगे तुम तुम्हारे आसपास की कुमारी बढ़ती जाएगी तुम्हारे साथ से जो हवाएं टकराएंगे उनकी खुशबू बदल जाएगी उनको सलाम करने का जीवक रहेगा तेरे दामन से जो आए उन हवा को सरा चूम लू मैं उस जुबा को जिस पे आए तेरा नाम सबसे अच्छी सुबहा तेरी सबसे रंगी तेरी शान तुझ पे दिल कुर्ब [संगीत] रे प्यारे वतन मेरे बिछड़े चमन तुझ पे दिल [संगीत] कुर्बान तू ही मेरी [संगीत] आरजू तू ही मेरी [संगीत] आबरू तू ही मेरी शान [संगीत] मेरे पूरा कर मां का दिल बनके कभी सीने से लग जाता है तू मां का दिल बनके कभी सीने से लग जाता है तोत और कभी ननी सी बेटी बनके या दता है तो जितना याद आता है मुझको उतना तड़पाता है तू तुझ पे दिल [संगीत] कुर्बान तूही मेरी [संगीत] आरजू तू ही मेरे आरू तू ही मेरी [संगीत] शान मेरे श्री कृष्ण [संगीत] गोविंद हरे [संगीत] मुरारी हे नाथ नारायण वासु देवा श्री कृष्ण गोविंद हरे मुरारी हे नाथ नारायण वासुदेवा पित मात स्वामी सखा [संगीत] हमार पितु माथ स्वामी सखा हमारे सखा [संगीत] हमार पितु मात स्वामी सखा हमा हे नाथ नारायण वासुदेव देव श्री कृष्ण गोविंद हरे मुरारी हे नाथ नारायण वासु [संगीत] देवा धन्यवाद

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