शक्तिपात के लिए कौन-कौन योग्य है? स्थितप्रज्ञ का अर्थ क्या है? विराट में कैसे समायें?

 


सुशीला बाबा जी आपने मुझे दीक्षा के लिए वक्त दिया 18 तारीख का मैं कुंभ स्नान करके आपसे दीक्षा लेने आऊंगी ए वत प 4 बजे के बाद पहुंच जाऊंगी अपनी कृपा बनाए रखें सुशीला मत आना बेटी मत आना जिस काम के लिए मैंने बोलना शुरू किया यह दोगला पंथी उससे तो मुक्त हुए नहीं जब कुंभ स्नान करके तुमने सारे पाप ो दिए तो तुम मुक्त हो गई मेरे पास क्या लेने आओगे कुंभ स्नान प्रयागराज में त्रिवेणी संगम पर स्नान करके तु मुक्त हो गई समझ लो तो यहां मेरे पास मुक्ति के लिए अंगूठा लगवाने की आवश्यकता क्या है कोई कारण रह जाता है बाद में शेष बात क्या है असल में असल में बात यह है मैं बहुत पहले बता चुका हूं दुविधा से मुक्त हो जाओ अगर दुविधा में रहोगे दुविधा में दोनों गए माया मिली ना राम अगर इतना ही विश्वास था कुंभ पे तो फिर मेरे पास क्यों आ रहे हो दीक्षा लेने के लिए बाबा गुरु बनाने के लिए आ रहे हैं गुरु की आवश्यकता मुक्ति के बाद कहां रह जाती है हर हर गंगे किया त्रिवेणी संगम में स्नान किया तो मुक्त हो गए मोक्ष मिल गया उसके बाद ना गुरु की आवश्यकता ना मोक्ष की आवश्यकता ना मोक्ष तक जाने की किसी विधि की आवश्यकता इसलिए पुत्री मत आना इस दोगला पंथी को नष्ट करने के लिए मैंने य चैनल शुरू किया था ध्यान से सुनना असल में तुमने देखा कुछ नहीं तुम लोगों की बताने कहने पर आ जाते हो लिख देते हो रजिस्टर करवा देते हो मुक्त हो जाएंगे और सवाल बड़ा है सवाल बड़ा है कि एक बाबा के अंगूठा लगाने से तुम मुक्त कैसे हो जाओगे सवाल जायज है बात आस्था की है बात श्रद्धा की है और अब तुम मेरी बात को ध्यान से समझ लेना जब तलक आस्था एक ईश्वर पर ना हो जाए तुम्हारी आस्था बाई फरके है बाई फरके नहीं मल्टी फरके है वहां भी आस्था वहां भी आस्था जंड के आगे भी झुक गए खेत्रपाल के आगे भी झुक गए लाला वाले के आगे भी झुक ग गंगा स्नान भी करा है मक्का मदीना भी कराए सब कराए इसी को कहते हैं मल्टी डाइमेंशनल होना मेरा प्रयास कोई काम ना आएगा क्योंकि मैं देख रहा हूं ढाई हजार वीडियोस बोलने के बाद भी तुम जस के तस हो 7 प्रतित लोग मुझे खुशी है इस बात की 70 प्र लोग कहते हैं बाबा आपने जीना सिखा दिया क्योंकि यह मान्यताओं के जो बोझ थे आपने हटा दिया और यही दुख का कारण था समझ आया कि इनका अर्थ कोई नहीं मैं तो यहां भी कहता हूं कि देखिए महंगाई का जमाना है मांगता मैं किसी से नहीं किसी से मांगा हो तो शिकायत कर देना ना कभी मांगूंगा तुम कुछ दे जाओ वहां मेरे लिए धर्म संकट पैदा होता है नहीं रखता तो तुम्हारी भावनाओ को टेस पती बाबा ने स्वीकार नहीं किया तो रख लेता हूं क्योंकि तुमने खुशी से दिया डाका तुम्हारा चोरी तो नहीं तुम्हारी जेब तो काटी नहीं तुमने खुशी से दिए वहां रखना ही बनता है ठुकराना ही बनता क्योंकि प्रेम के लम्हो में अर्पित किए गए यह फूल ये तुम्हारा हृदय है ठुकरा दूंगा तो लाथ हदय प लगेगी हृदय टूट जाएगा इसलिए ठुकराने की हिम्मत जुटा नहीं पाता प्रेम से स्वीकार कर लेता ह बहुत से लोग कहते हैं बाबा आप तो मजेदार गद्दे के ऊपर बैठे हो आप बैठ जाओ हमने तो पुराने में जाना है है वहां जाएंगे यहां आप बैठ जाना आप ही तो बैठोगे ऐसे दोगले बाजी इसको तुम जिंदगी कहते हो जिंदगी का रस बड़ा प्यारा है व नकते हुए घुंघरू की आवाज उस सरा बोर मस्ती में उठते हुए संगीत तुम्हें लुभा जाते हैं और यही जिंदगी है बड़े मजे की बात है पर अफसोस भी है ईश्वर ने एक एक कण अपने हाथों से बनाया इतना प्यार डाला इसमें कि खुद ही इसमें गया इससे ज्यादा व कर भी क सकता था परमात्मा ने इतना प्यार उंडेला कण कण में अपनी बनाई हुई सृष्टि के खुद ही समाहित हो गया इसमें इससे ज्यादा प्यार वो आपको क्या दे सकता है सन्मान वो आपको क्या दे सकता है और तुम इसके आनंद का का जर्र भी कभी स्वाद नहीं चखे हो तुम मान्यताओं के आधार पर जिए जाते हो जो कि जीना नहीं होता सच पूछो तो मरने से बदतर होता है मुझे सुनते को चार साल हो गए चार वर्ष में एक बीज वट वृक्ष बन जाता है तुम वहां की वहां ठहरी हो मत आना जो मुक्त हो ही गया उसे आना भी नहीं चाहिए क्यों [संगीत] कराना बात मुक्ति की है मेरे पास पाच चार दिन पहले एक संदेश आया बाबा आपने बुलाया 18 तारख को 18 तारीख को आप नाम दन दो गए मैंने कहा नाम दान लेना है आपने नाम दान लेना है तो मत आना वो तो चोंकी नाम दान लेना है तो मत आना और अगर इन बेड़ियों से मुक्त होना है इन जंजीरों से इन झाड़ झड़ हों से इन कांटों से इन चोभ से मुक्त होना तो फिर आ जाना स्वागतम बुलाया है आप लेकिन अगर नाम दन लेना है बाबा नाम तो दिया नहीं तो फिर पहले से ही बता देता हूं कोई नाम होगा वह छीन तो लूंगा मैं नाम दूंगा नहीं तो और बहुत है और भी गम है जमाने में मोहब्बत के सिवा बहुत लोग इंतजार में बैठे हैं नाम दान लेना तो वहां चले जाना दूसरा प्रश्न बाबा आप हमेशा एक शब्द उच्चारित करते हैं भगवान कृष्ण अर्जुन से कहते हैं हे अर्जुन तू स्थिति प्रज्ञ हो जा यह प्रज्ञा हम तो बुद्धिमानी को कहते हैं यह कौन सी प्रज्ञा है कृपा करके इसका अर्थ विस्तार से समझाने का कष्ट करें अनूप बुद्धि वयक्तिक समझ है एक व्यक्ति की सम है बुद्धि और अस्तित्व की समझ है प्रज्ञा तुम्हारी बुद्धि बुद्धि तुम्हारी बुद्धि बुद्धिमानी और अस्तित्व की बुद्धि प्रज्ञा बड़े सरल शब्दों में समझाने का उपाय कर रहा हूं तुम्हारी बुद्धि बहुत छोटी है नेगलिजिबल नगण्य उसकी कोई बहुत ज्यादा क्षमता नहीं लेकिन जिस प्रज्ञा की बात भगवान कृष्ण करते हैं वह प्रज्ञा अस्तित्व की प्रज्ञा है अस्तित्व की बुद्धि है सारे अस्तित्व की बुद्धि सारे अस्तित्व की बुद्धि उसे प्रज्ञा कते तो कृष्ण कहते हैं इस संकीर्णता को छोड़ते अपनी संकीर्ण बुद्धि को छोड़कर अस्तित्व की विराट प्रज्ञा में स्थित हो जा एक स्थान से उठना है और दूसरे स्थान पर जाना है बस इतना सा फासला है इतनी सी यात्रा है अपनी बुद्धि को छोड़ना है यह बड़ी नेगलिजिबल है नगण्य है छोटी है शुद्र है संकीर्ण और विराट की बुद्धि में जाना अस्तित्व की बुद्धि में जाना वह प्रज्ञा है यह सफर बड़ा प्यारा है पहले तो इस बात को ध्यान से समझना अगर तुमने जहां बैठे हो वहां से कहीं और जाना है तो क्या करोगे सबसे पहला कदम जहां बैठे हो इस स्थान को छोड़ना पड़ेगा फिर यात्रा करनी होगी फिर वहां जाना होगा जो तुम्हारा गंतव्य स्थल है तो बुद्धि से प्रज्ञा की तरफ बुद्धि वैयक्तिक है और प्रज्ञा सामूहिक है बुद्धि तुम्हारी है प्रज्ञा विराट की है तो तुम्हारी बुद्धि से चलना है विराट की बुद्धि तक पहुंचना है सीधी सी यात्रा है बड़ी सरल है तुम्हारी बुद्धि में भेद भरे [संगीत] हैं नफरत भरी है लड़ाई झगड़े फसाद कानून दावे झूठ कफर [संगीत] तूफान राजनीति सभी प्रकार की झूठी मोठी व्यवस्थाएं समाज की हो या सिद्धांतों की हो ये तुम्हारी बुद्धि में है यहां से उठना है क्योंकि तुमने यात्रा करनी विराट की बुद्धि तक की यात्रा करना वैयक्तिक बुद्धि से विराट की बुद्धि तक जाना प्रज्ञा तक जाना प्रज्ञा इसे ही कहते हैं तो अपनी बुधि के स्थान को छोड़ना होगा इसलिए जन फकीरों ने कहा कि हमारे पास आने से पहले जहां जूते उतारते हो वहां बुद्धि को भी उतार देना बुद्धि के ऊपर अपनी जूतियां को रख लेना या जूतियां के ऊपर बुद्धि रख लेना कोई फर्क नहीं पड़ता तो फिर हमारे पास आना जतु प्रेम मिलन कीचा जे तुम प्रेम मिलन कीचा शीष तली धर घर मेरे आओ घर मेरे आऊ ये तु प्रेम मिलन कीचा शीष को तली पर रखना होगा इस बुद्धि को जतियो के ऊपर रख और फकीर कहते हैं मेरे पास आ जाओ यही कहते हैं कृष्ण सर्व धर्मा प्रत माम कम शरणम यह धर्म जतियो की जगह निका केना भाई तुम कुछ भी हो तुम्हारी व्यक्तिगत प्रज्ञा को तुम जिसे व्यक्तिगत बुद्धि कहते हो व्यक्तिगत प्रज्ञा को जतियो की जगह निकाल आना और फिर यात्रा करना विराट की प्रज्ञा की तरफ लेकिन तुम ऐसा कर नहीं पाते कबीर के भी सिर्फ वचन हैं संतों के सिर्फ वचन हैं तुम सुन लेते हो दोहरा देते हो कर कहां पाते हो भला अपना शीश अपना अहंकार काट के अपनी तली पर रख देना कोई आसान बात है बहुत मुश्किल है मुश्किल से मुश्किल कठिन से कठिन तम काम है इससे कठिन तम काम कुछ भी नहीं बलिदान देना हो तो अपने अहंकार का दे देना बकरों का मत देना उन मासूमों ने तुम्हारा कुछ नहीं बिगाड़ा सती प्रज्ञ हो जा अर्जुन विराट की प्रज्ञा में चला जा अपनी संकीर्ण बुद्धि को छोड़ दे तुम्हारी संकीर्ण बुद्धि में मृत्यु का भय कूटकूट कर भरा हुआ है इसलिए अर्जुन कंप रहा है बुरी तरह रोम रोम उसका कंपन में है थरा रहा है देख देख देखकर इन समूहों को बली से बली लोग हैं भीषण दिखते हैं द्रोण दिखते हैं जिनसे धनुर विद्या सीखी और पांडवों के पास कौरवों से कम है सेना पांडवों के पास सात अक्षण सेना है कौरवों के पास 11 है अक्षण सेना चार अक्षण सेना का फर्क बहुत है दर असल अर्जुन इतनी विराट सेना को और इतने दुर बलशाली व्यक्तियों को देखकर घबराता है दूसरे शब्दों में कहूं तो मृत्यु से घबराता है वृत से तुम डरते हो उसका मूल का कारण मैं बहुत बार बता चुका हूं क्योंकि जो मरेगा उसे तुम अपना होना समझते हो यही मूल कारण है और तुम्हें लाख समझाए आदमी संत बोल बोल कर चले गए बेचारे किसी को सलीब नसीब हुई किसी का शरीर काट दिया गया किसी का सिर धड़ से अलग कर दिया गया किसी को जहर दे दिया गया सिर्फ उन लोगों के द्वारा जिनका निहित स्वार्थ सिर्फ जीना था या राज करना था ये दो निहित स्वार्थ होते हैं जीने की इच्छा और जोर जबर करने की इच्छा राज करने की इा यह दो इच्छा व्यक्ति को पाप करने पर मजबूर कर देती हैं और महावीर कहते हैं कि इन दोनों इच्छाओं को त्याग दो जी वेषण को त्यागो जीने की इच्छा को त्याग शब्द बड़े हल्के हैं शब्द जब कर्म में तब्दील होता है तो तुम थर्र हो वही अर्जुन है जो कह रहा था हे केशव मेरे रथ को दोनों सेनाओं के मध्य में ले जाओ मैं देखूं तो मुझसे लड़ाई करने के लिए कौन-कौन रंदर आया है और जब अर्जुन चला गया कृष्ण ले गए दोनों सेनाओं के मध्य में ले गए और उसने अवलोकन किया अपनी सेना का तो उसे पता ही था सेना तो विपक्ष की देखना होती है कि कौन-कौन मेरे विरुद्ध मेरे साथ युद्ध करने पर मेरी बलि लेने पर उतारो देखा महारथी विश्व पितामह गुरु द्र कृपाचार्य जत दुर्योधन और विशाल फोज तो कंप गया बाकी तो तो बहानेबाजी थी सही तो मौत का डर था थर आने लगा और किसी तरह वक्त पास करने लगा यह टाइम पास था गीता टाइम पास में बन गई सब बचने के बहाने थे और बचने के बहाने में व्यक्ति देरी करता है पूछ लू ये भी पूछ लूं वो भी पूछ लूं ध्यान उधर ले जाऊं ध्यान इधर ले जाऊं बचने के प्रयास होते हैं सारे व्यक्ति मरने से डरता है युद्ध के क्षण में भला कोई व्यक्ति बात करे संख्य की बात करें योग की बात करें हठ योग की कोई इनम तारतम में बैठता है नहीं बैठता युद्ध के क्षण में युद्ध की बातें होनी चाहिए युद्ध के मैदान में खड़े हैं यह तो शंखनाद हो चुका है गीता बड़ी लंबी है 700 श्लोक है तुमने कहा बाबा आप कहते हैं स्थिति प्रज्ञ हो जा यह कृष्ण ने कहा अर्जुन को हां बिल्कुल सरल सी बात आपकी समझ में आ भी जाएगी व्यक्तिगत प्रज्ञा से विराट की प्रज्ञा में उतर जा और यह खोपड़ी तुम्हारे यहां है और विराट की प्रज्ञा तुम्हारे अंतस में धर उतरो ये जो अनहद नाद यहां से आ रहा है यह ध्वनि जहां से उद्गम स्थल है इसका जिसे डॉक्टर लोग टस कहते हैं और उनके खुद भी है दवाइयों से ठीक नहीं हो वहां पहुंचा उद्गम सथल से बेचारे डॉक्टर क्या जाने के ऋषि उस स्थल पर पहुंच गया जहां से यह आवाज का आगाज होता है वह तो सिर्फ कानों में आती हुई इस जनकार को सुनता और कहता रोग तरह तरह की बातें मैं क्या जवाब दू उनके सवाल का देखने के बाद सारे प्रश्न समाप्त हो जाते हैं जब देख लिया उद्गम स्थल कहां से आता है यह ओंकार का नाथ जो बाहर आते आते तक थोड़ा बद अनद नाद का स्वर पकड़ लेता है उसमें तब्दील हो जाता है कृष्ण कहते हैं अपनी वयक्तिक प्रज्ञा को छोड़कर जिसे हम बुद्धि कहते हैं विराट की प्रज्ञा में चला जा यानी विराट की बुद्धि में चला जा तो क्या होगा तुम शुद्र बुद्धि विराट बुद्धि में परिवर्तित हो जाएगी और तुम्हारी शुद्र बुद्धि में जो मैंने पहले बताई ईर्ष है त्वेष है आग है बदले की भावना है किसी ने कभी बेइज्जत किया था किसी के आगे कभी झुके थे उसकी जलन है कैसे बदला ले उसे यही उधेड़ बुन में तुम्हारा दिन भी गुजर जाता है रात भी गुजर जाती है वैयक्तिक प्रज्ञा में यही सब कुछ कूड़ा कबाड़ा है भीत सभी विकार है सभी विचार है ऐसा ना हो जाए वैसा ना हो जाए इरादे बांधता हूं सोचता हूं छोड़ देता हूं इरादे बांधता हूं सोचता हूं छोड़ देता हूं कहीं ऐसा ना हो जाए कहीं ऐसा ना हो जाए शंका उत्पन्न होती है तुम दृढ़ संकल्प नहीं हो पाते उस देवी की तरह सुशीला ने प्रश्न पूछा मैं कुंभ स्नान करके आपके पास आऊ दीक्षा लेने के लिए फिर दीक्षा की जरूरत क्या रह जाती है बेटिया घर बैठो आराम करो मुक्त हो गए गंगा ने तुम्हारे पाप धो दिए ना वो तो त्रिवेणी है सरस्वती यमुना गंगा त्रिवेणी संगम मैंने आपको कहा था मेरे जीजा जी रेलवे में थे उन्होंने सारे तीर्थ किए पंडितों के हिसाब से सारे पाप नष्ट हो जाने चाहिए जीभ का कैंसर हो गया सड़ के मरे मैं शास्त्रों की लिखी बात नहीं बोलता आंखों देखी बात बोलता कर्मों को कैसे मिटाओगे लेकिन मनुष्य ठग है इस शब्द को लिख लेना मनुष्य ठग है और ठग खुद है और दूसर की ठगी में आ जाता है आसान तरीके ढूंढता है और मुक्ति का इससे ज्यादा सरल तरीका और क्या होगा एक बार मैं गंगा चला गया किसी काम से गया था तो मेरे साथ के मित्र कहने लगे थोड़ा गोता लगा ले मैंने कहा लगा लो आप भी लगा लो मैंने कहा मैं भी लगा लेता हूं क्या है मैंने गोता लगा आपको सच बताऊं मुझे होटल में आकर दूसरी बार नहाना पड़ा क्योंकि मेरे सारे शरीर में ार होने ल कोड़ी वहां जाते हैं कोड़ मिटाने के लिए क्योंकि हमारे धर्मों ने फैला दिया कि पाप कर्मों के कारण ही को होता है और उसी पानी में तुम गोता लगाओ और कोड़ी तो थोड़ी सी ज्यादा देर रुकेगा और उसके सारे मवाद पानी में बह जाएगी और उसी पानी में तुम गौता लगाओगे एक स्त्री मुझे पूछने लगी मुझे पीरियड आए मैं क्या करू मैंने कहा मत जाओ कहती जाना तो है वैसे ही चली गई अब क्या होगा इसका उस पानी को तुम पियोगे जो तुम्हारे रोम को शुद्ध करेगा अशुद्ध करेगा बुद्धि है तुम में साफ सुथरा आदमी वहां जाता ना रब तीर्थ ना रब मक्के ना तीर्थों में है न मको में बोले शह कहते हैं रबता तेरे अंदर बस दाते न नजर ना आवे दस की किता जावे प्रत्येक प्रकार के पाप कर्म करने वाले जब उनको पापों का फल मिलता है गंगा की तरफ दौड़ लेते हैं गंगा धो देगी पाप पाप तो तुम करो दोय गंगा यह कहां की फॉर्मूलेशन तुम लेकर आए किसी मैथमेटिशियन से पूछो वो कहेगा नहीं इट्स नॉट पॉसिबल जो करेगा वह भरेगा और गीता का तो ज्ञान ही यही है जैसा कर्म कर वैसा फल देगा भगवान यह है गीता का ज्ञान नहीं तो भगवान कृष्ण कह देते हैं वह क्यों कहते मेरी शरण में आजा वोह क्यों कहे शूद्र प्रज्ञा को छोड़कर विराट प्रज्ञा में आ जा वोह भी कह देते गंगा स्नान कर लेकिन तुम मल्टी डायमेंशन हो बहु आयामी हो तुम और वहां जाने के लिए एक आयामी होना पड़ता है जहां सारे भेद खत्म हो गए और कोई आयाम ना बचा और फिर एक भी हो गया शून्य ही बचा इसी को नागार्जुन शून्यवाद कहते हैं अवत दो नहीं है एक है और एक भी मिट जाए व शून्यवाद नागार्जुन का शून्यवाद जो मैंने कहा इनर शिया कोड़ी वहां जाते रोगी वहां जाते हैं यह तो थोड़ा कम बुद्धि रखने वाला भी समझ जाएगा जो पाप कर करेगा व पाप धोने के लिए जाएगा और जो पाप धोने के लिए जाएगा और बारबार गोत लगाएगा उसने ज्यादा पाप किया अभी एक खबर में पढ़ रहा था एक राजनेता ने 10 डुबकी लगाई एक राजनेता ने बस एक ही डुबकी लगाई मैंने कहा द वाले पाप ज्यादा किए होंगे भाई नहीं संतुष्टि हो गई उस द ही लगानी पड़े एक वाले ने कम किए होंगे सीधा सा गणित है गंदे मंदे मैले कुचले तुम किसी तरह जीवन को ढो रहे हो तुम्हारी जिंदगी में कोई स्वाद नहीं कोई मजा नहीं तुम्हारी जिंदगी का ढूंढते फिरते हो मजा और गलत दिशाओं में पदार्थ में ढूंढते हो पदवी में ढूंढते हो मान सन्मान में ढूंढते हो भोजन में ढूंढते हो अंतरंग क्षणों में ढूंढते हो औलाद में ढूंढते हो खुद में कभी नहीं ढूंढते खुद से बाहर ढूंढते हो तो कृष्ण कहते हैं कि खुद में ढूंढो यह भीतर की यात्रा है वैयक्तिक बुद्धि से विराट की बुद्धि तक की यात्रा वयक्तिक प्रज्ञा से राट की प्रज्ञा तक की यात्रा साधारण शब्दों में बोला मैंने व कैसे करनी मैंने पिछले वीडियोस में यही तो कुछ बोला है जो समझाया जा सकता था बार-बार भी कहता हूं तुम्हे वह समझाया जाता नहीं वह शब्दों में आता नहीं वह इशारों में भी नहीं आता तुम शब्दों को पकड़ लेते हो बहस करते हो करते हो वह इशारों में भी नहीं आता क्योंकि इशारों के टॉप को तुम पकड़ लेते हो मैं कहता हूं वो रहा चंद्रमा तुम इसको पकड़ लियो कहां है यहां तो है नहीं वह समझ में नहीं आता लेकिन समझाने का एक प्रयास जरूर करते हैं संत जिसने स्वाद चख लिया वह कुछ बोलेगा नहीं तो नाचेगा जरूर नाचने से तुम्हें पता चले ना चले जो गूंगा गुड़ खाए के कहे कौन मुख स्वात जीवा तो नहीं है मुख में बोल तो नहीं सकता लेकिन गुड़ खा लिया है क्या करें मीरा नाच के प्रकट करती है नानक गा के प्रकट करते हैं कबीर सुरति में उतरकर प्रकट करते हैं बुद्ध शीलावती हैं महावीर भी शीलावती हैं चैतन्य झूमते हैं यह प्रकट करना है उस आनंद का जो तुमने पिया और तुम्हारे आज के [संगीत] संत मेकअप करते हैं काला पीला माथा कर लेते हैं और दाढ़ी को लगा लेते हैं यह निर्जीव बाल किस मूर्ख ने बताया लेकिन मेकअप तो मेकअप ही होता है मेकअप करके तुम्हें लुभाने की चेष्टा करते हैं और फिर इनसे कुछ कह दो तो यह रोने लग जाते हैं सारी दुनिया इनके रोने पर भावुक हो जाती है और इनके संग हो जाती है हर कोई मूर्ख रोने लगे तो तुम उसके संग हो लोगे ऐसा ही तुम करते हो क्योंकि तुम भी मूर्ख हो मूर्ख मूर्खों के सरदार के दुख नहीं दिख सकता वो गलत रोए वो ठीक रोए लेकिन तुम्हारी सहानुभूति उसके साथ सति प्र हो जा अपनी शुद्र बुद्धि को छोड़ थोड़ा भीतर खिसक धीरे-धीरे गुरु चलेगा जरा होले होले चलो मेरे [संगीत] साजना हम भी पीछे हैं तुम्हारे जरा होले होले चलो मेरे साजना हम भी पीछ तिहार गुरु और शिष्य दोनों चलेंगे संग संग शुद्र बुद्धि को छोड़ दो विराट बुद्धि में जाओ बस यही मतलब है स्थिति प्रज्ञ होने का और यहां मिलेगी आग बदले की भावना शतरंज बसा हुए मस्तिष्क कैसे यहां राज करना है अब यह तो जीत लिया अब अगला कैसे जीतना जिनको यह पता नहीं कि अगले क्षण जीवित रहेंगे हमारे यहां शहर में एक वृद्ध हुआ करता था धीर फैमिली में उससे कोई भी व्यक्ति चला जाता मैं उस वक्त आडत का काम करता था कमीशन एजेंट का किसी मित्र के साथ तो कोई जमीदार ले गया पैसे तो उसके ऊपर गवाही डरवा नहीं है तो उसके पास जो भी कोई चला जाता उसे कहता धीर साहब यहां साइन कर दो हा कर देता हूं मैं और वृद्ध मरने के करीब एक बार हमारे साथ भी ऐसा हो गया परनोट भरा और उसका गवाही डलवा दिया सामने तो व था नहीं सब झूठ चलता है पैसे वो ले गया था लेकिन उसके सामने दस्तखत कौन करे ये भ नहीं दस्तखत करने देता लेकिन वह कहता हां मैं गवाही दे दूंगा चिंता मत करो मेरे सामने लिए हैं चाहे नहीं लिए मैं गवाही दे दूंगा कि हां हां मेरे सामने लिए मैंने देखा ये आदमी तो काप रहा है मैंने कहा ये जीवित भी रहे तब तक क्योंकि आजकल न्यायिक व्यवस्था ऐसी ही कुछ है दो दो सालों की तारीखें डल जाती मैंने ऐसे केस भी देखे दो दोस्तों में जिसने पैसे लिए उसने उल्टा केस कर दिया कि नहीं मैं नहीं लेनी और वो हार गया खैर जी हार गया न्याय प्रियता का सबूत है जस साहब ईमानदार थे बस एक न्याय प्रणाली के ऊपर यकीन बाकी है राजनीतिज्ञों पर से विश्वास उठ चुका है रोज देखते हैं सामूहिक सर्वश्रेष्ठ गद्दी नशीन जनता का आगे बोलता है कि यह पार्टी ने गपला किया इतने हजार करोड़ रुपए का और चक्की पीसिंग पीसिंग लेकिन चक्की तो नहीं पीस अगले दिन वित्त मंत्री बने मुझे कहते बाबा आप बोलते हो अरे भाई बोलता हूं अगर गलत हो तो बताओ सिंघ के नहीं ले लड़े सिंघ के नहीं ले लड़े हंसों की नहीं पात लालों की नहीं बोरियां संत ना चले जमात सिंघ का समय नहीं होता शेर अकेला होता है और हंसों की पांच पंक्तिया नहीं हो संत संतों की जमात नहीं होती एक संत मिल जाए बहुत लालो की नहीं बोरिया लाल तो एक आद बहुत होता है बेशकीमती होता है संत ना चले जमात जिस दिन जमात होने लगेगी संतों की उस दिन दुनिया में इतना दुख नहीं होगा दुनिया शांत हो जाएगी वैर भाव से मुक्त हो जाएगी बह से मुक्त हो जाएगा इच्छा द्वेष से मुक्त हो जाएगी बदला लेने की भावना समाप्त हो संत और सिंह अकेला ही रहता है मूर्खों की टोलियां होती है मूर्ख कटोरी बना के खुश है चाच को भी ले लू ता को भी लेल रिश्तेदारों को भी ले लू जमाता को भी ले लू जीजा को भी ले लू सबको दुनिया को भी संग ले लू अच्छे कर्म करोगे तो सारे संग आ जाएंगे बुरे कर्म करोगे तो अपने भी साथ छोड़ जाएंगे बस अपने साथ वही रहेंगे जो चिपके हुए लोग हैं चिपके हुए लोगों के साथ तो बेटा कत्ल करके भी चला जाए तो मां छाती से लगा लेती है कोई बात नहीं बेटा ये मोह है लेकिन संतों में मोह नहीं होता संत अकेला होता है और ध्यान रखना अब यह सूत्र आपको बता दूं जीवन का अकेले हुए बिना सं तत्व नहीं मिलता यू हैव टू बी अलोन भीतर से तुम अकेले ही हो बस वहां जहां जाना है वो एक ही है और जो डुबकी लगा के आए उस तीर्थ में उन्होंने बाहर आक बाबा नानक ने कहा एक ओंकार वो एक है उसका फैलाव बहुत है अनादि है अनंत है लेकिन है एक कोई भेद नहीं कोई ेड नहीं कोई लकीर नहीं कोई उसमें अलगाव तो तुमने इस भेद बुद्धि से चलना है अभेद बुद्धि तक जाना है बहुत से शब्द इस्तेमाल कर [संगीत] ताकि आपको समझ पड़ जाए जो समझ में नहीं आता इशारे कर रहा जिसके इशारे होते हैं बोल रहा हूं जो लिपियों में समाधा नहीं उसको बोल रहा और वहां जाकर तुम अकेले हो जाते हो बस यही सूत्र था जब तक तुम भीड़ में हो मैंने बाबा से पूछा आपने मुझसे कहा कम्यून मत बना लेना मतलब उस स्थान पर जाना है जहां कोई कम्यून नहीं होता वहां तो सारा ही कम्यून एक है वहां जाना है तुम खंड खंड को जोड़कर कम्यून बनाओगे एक एक आदमी को जोड़कर कम्यून बनाओगे और वो कम्यून होगा भी नहीं वो तो भीड़ होगी तुम उस कम्यून में उतर जाओ जो ऑलरेडी कम्यून है जो विराट है वो कम्यून है वो जर्रे जर्रे से बना हर जर्रे पर उसकी मोहर है हर जर्रे में खुद आप है उसकी मोहर लगी है स्टेंप है पूछा स्थिति प्रज्ञ हो जाओ यह प्रज्ञा है हम तो बुद्धि को समझते हैं बुद्धि भी प्रज्ञा है लेकिन वयक्तिक प्रज्ञा है तुम्हारी अकेले की आपकी और एक प्रज्ञा सामूहिक होती है व्यक्तिक प्रज्ञा को छोड़कर सामूहिक प्रज्ञा में प्रवेश करना है इसे ही अंतर यात्रा कहते हैं बस इतना सा काम है जिसे कहते हैं बुल्ले शाह रबदा की बान उधर पटना तेर तुम्हारी वैयक्तिक प्रज्ञा से पट लो इसे उखाड़ लो और विराट प्रज्ञा में सित्र हो जाओ बस यही उपदेश भगवान कृष्ण देते हैं भगवान कृष्ण भी अलग अलग शब्दों का इस्तेमाल करते हैं अलग-अलग डायमेंशन से बोलते हैं क्यों शायद शायद कोई शब्द कोई इशारा कारगर हो जाए उनकी भी इच्छा यही है तो अगर कारगर हो गया तो इसका भ्रम टूट जाएगा भ्रम टूट जाएगा तो कांपना बंद कर देगा लेकिन ऐसा हुआ नहीं शब्दों से थोड़ा सा बदलाव होता लगा हुआ नहीं लेकिन तैयार हो गया शब्द एक काम कर देते हैं हम क्यों बोलते हैं बोलने से पहुंच सकते हो लेकिन वो कोई बरला एक आथ करोड़ों में एक कोटिन में कोई एक लेकिन बोलने से तुम तैयार जरूर हो जाओगे सुनते सुनते सुनते सुनते सुनिए दुख पाप का ना सुनते सुनते तुम तैयार हो जाओगे तुम्हारी भूमि तैयार हो जाएगी फिर हम आसानी से बीज बो सकेंगे उसमें तुम जो हम शक्ति बात करेंगे उसको सहने के योग्य हो जाओगे इसलिए दो साल तीन साल चार साल हम इंतजार करवाते हैं हम देखते हैं आप वीडियो सुनते हो सुनते हो क्रियायोग करते हो ध्यान में जाते हो कुछ नहीं करने में जाते हो या राधे राधे करते रहते हो देखकर परख कर फिर बुलाते हैं हमारी पंजाबी में कहावत है गदड़ा दी काल नाल बर नहीं पकते होते तुम जल्दबाजी करोगे मुझे पता है लेकिन संत को कोई जल्दी नहीं संत की सिर्फ एक ही आंतरिक इच्छा है कि तुम कैसे इन बेड़ियों से मुक्त हो जाओ जो है नहीं कैसे आंखें खुल जाए आंखें हैं लेकिन तुम नीचे बैठे हो तुम स्वपन देख रहे हो संत की चाहत है भगवान कृष्ण कहते हैं व्यक्तिक प्रज्ञा से विराट की प्रज्ञा तक पहुंचे जा यह है इसका सार इसे सार शब्द कह लो आखिर में क्या पाओगे यही पाओगे सो हम वो मैं ही हूं तत्व मसी श्वेत केतु तुम ही हो श्वेत केत तुम ही हो परमात्मा तेरे जहा मेनू और ना कोई मैं जेहे लख तेन जे मेरे विच ऐ ब ना होंदे तू बक्षदा [संगीत] केन जी मेरे विच ना होंदे तू बख दत [संगीत] केन तेरे जैसे मुझे बस त ही है और मेरे जैसे तुझे लाखों तेरे जहा मेन और ना कोई मैं जहे लख तेनू जे मेरे विच ऐब ना होंदे तू बिंदा कनू तुझे बखनर कौन कहता अगर मेरे में गुनाह ना होते तो तू भक्षण हार कैसे कहलाता तू बखत कसे तुम बक्षदा केन रखी चरना दे को तुम बक्षदा के नूर की चरना दे कोल मेरा वालिया वालिया मेरा वालिया [संगीत] साइया मेरा वालिया साइया रखे चर देखो मेरा [संगीत] वालेया श्री कृष्ण गोविंद हरे [संगीत] मुरारी हे नाथ नारायण वासुदेवा श्री कृष्ण गोविंद हरे मुरारी हे नाथ नारायण वासुदेव श्री कृष्ण गोविंद हरे मुरारी हे नाथ नारायण वासुदेव हे नाथ नारायण वासुदेव श्री कृष्ण गोविंद हरे मुरा हे नाथ नारायण [संगीत] वासुदेव पितु मात स्वामी सखा हमारे पितु मात स्वामी सखा हमारे हे नाथ ना रायण वासुदेवा हे नाथ [संगीत] नारायण वासु [संगीत] देवा श्री कृष्ण गोविंद हरे [संगीत] मुरारी हे नाथ नारायण वासुदेवा श्री कृष्ण गोविंद हरे मुरारी हे नाथ नारायण वासुदेवा ओ

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