कल के प्रवचन से आगे आप का नटी से समझ जाते हो प्रसंग चल रहा हो तो भूमि तैयार होती है बीज बोया जा सकता है इसलिए अक्सर में तथ्यों को वक्त का इंतजार करता हूं कब खोलू इस रहस्य को अब वक्त आ गया है तुलसीदास का एक शब्द है श्रद्धा विश्वास रूपण या ब्याम बिना न पसंते श्रद्धा श्रद्धा व्यक्ति को अंतर्मुखी बनाती है लोभ व्यक्ति को बहर मुखी बनाता है अब इन दो शब्दों को गौर से समझ लेना श्रद्धा व्यक्ति को अंतर्मुखी बनाती है लोभ व्यक्ति को बहर मुखी बनाता है लोभ से तुम बाहर की चीजें इकट्ठी करते हो श्रद्धा तुम्हें भीतर ले जाने में सक्षम है पहली बात श्रद्धा दूसरी बात यह जो चार स्थान हैं जहां कुंभ पर्व मनाया जाता है नासिक उज्जैन हरिद्वार प्रयागराज यहां ऐसी ही घटनाएं घटी थी मैं पहले भी बता चुका हूं कोई ऐसा संत जो पी गया हो अगस्ति की तरह समुद्र को यह अगस्त्य का समुद्र को पीना यही कहता है तुम्हें अन्यथा व्यक्ति समुद्र को पी नहीं सकता गागर में सागर समा नहीं सकता लेकिन अगर कहीं गागर में सागर समा जाता है वह अनहोनी घटना है जहां जहां चार स्थानों पर यह अनहोनी घटना घटी वो जो पी गए थे उस अमृत को किसी अमृत वेला में अमृत काल में ल भरे पड़े थे उन्होंने शरीर का त्याग किया यहां इन चार स्थानों पर हरकी पोड़ी त्रिवेणी संगम उज्जैन नासिक इन चार स्थानों पर क्योंकि एकएक बूंद मैं कल भी बता चुका हूं वो एक बूंद जो अंतिम विलीन होती है सागर में जिसे तुम कारण शरीर कह देते हो मैं उसे चेतना की बूंद कहता हूं जब बिल्कुल आखिर में देही को छोड़कर वह चेतना की बूंद समुद्र में समा जाती है उसे ही कबीर ने कहा बूंद समानी समध में तो इन चार स्थानों पर इन चार स्थानों पर पे चार प्रबुद्ध व्यक्तियों ने अपनी वो बूंद कारण शरीर विसर्जित किया होगा किसी काल में लाखों वर्षों पहले और मैंने कल भी कहा कि जब कोई व्यक्ति प्रबुद्ध व्यक्ति जो कभी किसी काल में विराट के उन तरंगों को समाहित कर लिए था जब शरीर छोड़ेगा तो एक विस्फोट होगा महा शक्ति पैदा होगी जैसे प्रमाणों के विस्फोट से होती है व चह और फैल जाएगी और चह और धरती पानी वायु आकाश अग सभी में समा जाएगी वहां दूर तरक बड़ी आसान भाषा में बोल रहा हूं समझने के लिए प्रयास नहीं करना होगा आपको समझ में आ जाएगा वो व्यक्ति जिन्होंने किसी काल में उस अमृत का पान कर लि वह जब विसर्जित होगा और उसकी वो कारण शरीर की अमृत बूंद चैतन्य की वो बूंद वहां पर समुद्र में उतर जाएगी तो एक विस्फोट होगा महा विस्फोट जिसको हमारे शास्त्रों में लिखा है सृष्टि का आगाज और वैज्ञानिक कहते हैं महा विस्फोट हमारा धर्म कहता है परमात्मा ने संकल्प किया एक अहम बहु श्याम इस्लाम कहता है हो जा संकल्प किया और सृष्टि हो गई कहने के ढंग हैं घटना एक ही है एक्सप्लोजन कह लो एक को अहम बहु श्यामी कह लो हो जा कह लो घटना एक ही है करोड़ों वर्ष पहले यह घटना घटी थी और आज भी वहां पर वो तरंगे विद्यमान है पी गई धरती पीगा आसमान पीगा जल और अग्न वायु चह और वो तरंगे फैली है पहला मैंने बताया श्रद्धा यह सूत्र है दूसरा मैंने बताया कि उस स्थान पर महा विस्फोट हुआ हो किसी ऐसे प्राणी ने देह विसर्जित किया हो कारण शरीर विसर्जित किया हो दूसरी घटना यह पहली घटना श्रद्धा दूसरी घटना उस स्थान पर यह चार स्थान जो मैंने बताए वहां देही में कारण शरीर समुद्र में समा गया यह घटना घटी थी और आज लाखों साल बाद भी वैसे ही लगातार उत्सर्जित हो रही है ना परमात्मा कभी चुकता है और ना ही यह तरंगे कभी चुक गी क्योंकि उस काल में उसने परमात्मा को पी लिया था वह विराट हो गया था पीकर और तीसरी आकाशीय ग्रह स्थिति उस वक्त आकाश में कौन सा ग्रह कौन से स्थान पर था यह तीनों चीजों के मिलान से होता है त्रिवेणी ना कि तीन नदियों के मिलान से तुम हर चीज को बाहर घट लेते हो भीतर की प्रक्रिया का तुम्हें पता नहीं यह तीन चीजों का संगम जब हो जाए जिस व्यक्ति ने शरीर को विसर्जित किया वह स्थान तो वही रहेगा जिसे आप संगम कहते हैं दूसरा श्रद्धा अब एक बात ध्यान से समझ लेना हमारे पूर्वज ऋषि बड़े समझदार थ वह जानते थे समूह जहां जिस भाव से इकट्ठा होगा वह समूह गुणित होता चला जाएगा वह भाव आपने देखा भीड़ जब इकट्ठी होती है और भीड़ क्रोध में होती है तो पता नहीं लगता किसकी आग जल गई दुकान मकान परिवार क्या हो गया कुछ पता नहीं भीड़ के क्रोध का आवेग तुम्हें अपने भाव में बहा ले जाता है इसलिए भीड़ सदा ही बुरी होती है इस मामले में अगर क्रोध और नफरत से युक्त हो तो संत यह जानते थे एक व्यक्ति इतना क्रोध नहीं कर सकता जितना भीड़ कर सकती है एक व्यक्ति नफरत नहीं फैला सकता जितनी भीड़ फैला सकती है नफरत की भीड़ कुछ भी कर सकती है जला सकती है खाक कर सकती है और आपने उदाहरण देखे होंगे इतिहास में बहुत से उदाहरण मिलते हैं इसी तरह श्रद्धा की अगर भीड़ हो तो श्रद्धा गुणित हो जाती है आपने मामूली घटनाओं में देखा होगा मामूली सत्संग में जब भीड़ होती है तो आप श्रद्धा के भाव में बह जाते हैं प्रेम और करुणा के भाव में बह जाते हैं इसलिए राजनीतिज्ञ भीड़ चाहते हैं भी का तूफान हो तो वहां ऐसा वातावरण बन जाएगा भावों का कि उस नेता को खुद ही भीतर से लगेगा कि मैं जीत जाऊंगा मैं पावरफुल हूं इतने लोग मेरे साथ हैं श्रद्धा का एकीकरण जितने ज्यादा लोग होंगे उतनी ही श्रद्धा गुणित हो जाएगी इसलिए े मेला लगाया गया उस कालखंड में जब बृहस्पति सूर्य और चंद्र यह तीनों एक विशेष स्थिति में होते हैं और उन विशेष स्थितियों में ही उन संतों ने उस चेतना की बूंद को वहां छोड़ा था समुद्र में फिर से समझ लो उस आकाशीय खगोलीय घटना में किसी संत पुरुष ने जो पी गया था समुद्र को इस समुद्र को ओशन को अस्तित्व के समुद्र को उसने अपने प्राण उत्सर्जित किए थे यहां वह चेतना की एक बूंद जिसकी मैं जिक्र करता हूं देही के साथ रहती है वह वहां छोड़ी थी तो उसी वक्त जाओ यहां बीच में थोड़ी सी और बात बता दूं जहां उस व्यक्ति ने उस संत ने कारण शरीर को छोड़ा अपनी चेतना को छोड़ा वहां किसी भी वक्त जाकर आप लाभ ले सकते हो साधना का सर्वोत्तम सथल है वो इसलिए वाराणसी के घाट में हरिद्वार प्रयाग उज्जैन नासिक इनकी जगह पर अगर कोई स्थान आपको ना मिले तो उस स्थान के करीब जहां उस संत ने उत्सर्जन किया था चेतना का वहां बैठकर तो आपको स्थान से सदा ही उपलब्ध है हम बात कर रहे थे कुंभ पर कुंभ में आकाशीय खगोलीय सारे नक्षत्र ग्रह वही होते हैं जिसमें उन्होंने प्राणों को उत्सर्जित किया था श्रद्धा का समूह होता है सुमू होने से श्रद्धा अनंत गुणित हो जाती है और मैंने तुम्हें पहले कहा श्रद्धा आपको अंतर्मुखी करती है जितना समूह ज्यादा होगा उतने भाव में आप बह जाओगे और अंतर्मुखी हो जाओगे इसलिए बहुत से लोग मेरे पिताजी कहा करते कुंभ में जाके आए थे बड़ा आनंद आता है वहां तब तो मैं नहीं समझता था लेकिन अब समझ में आया कि श्रद्धा का यह समूह जो घटना घटी उस वक्त और श्रद्धा का यह जो समूह उमड़ा उसकी याद मेमरी के भीतर रह गई तो तुम्हें ऐसा लगेगा बहुत अच्छा है चलो फिर से दर्शन करें उस तीर्थ के लेकिन तब जो घटित हुआ था 12 वर्षों के बाद घटित होगा फिर तीन चीज मैंने बताई श्रद्धा जितनी गुणित होगी और वह स्थान जहां कारण शरीर विलीन हुआ समुद्र में और तीसरा खगोलीय घटना बृहस्पति चंद्रमा और सूर्य य किस स्थिति में थे तीनों चीजों का संगम त्रिवेणी संगम कहलाता है और यह किसी भी जगह होता है अवश्य नहीं के प्रयागराज में हो य चारों स्थानों पर जहां संतों ने प्राणों को उत्सर्जित किया वहां यह संगम है इसलिए आप किसी कुंभ में भी चले जाए यही कुछ मिलेगा आपको महासंगम है महाकुंभ है ये तो राजनीतिक बातें हैं अब क्या होता है कहां यहां जाके श्रद्धा की उस भीड़ में आपने अंतर्मुखी होना था और श्रद्धा की उस भीड़ के भाव में तूफान होता है श्रद्धा का तो संतों का यह प्रयास था कि उस तूफान में जो छोटा बहुत अटका हुआ आदमी रह गया जिसने काफी घ घर बैठ के साधना कर ली बस उसको एक धक्का लग जाएगा अपने भीतर गहरे उतर जाएगा और इसी धक्के की जरूरत होती है यही ध का गुरु देता है आपको यह तीर्थ प लग जाता है लेकिन उससे पहले आप घर बैठे ध्यान की गहराइयों में उतर चुके हो साहस नहीं होता अकेलो में जब बिल्कुल उस पॉइंट पर खड़े हो जहां तुमने विलीन होना है और साहस नहीं जुटा पाते गुरु कोई है नहीं तो क्या करो यह तीर्थ सदा ही रहेंगे इन तीर्थों पर जाओ घर बैठ के तीन वर्ष के बाद करीब चार स्थान है तीन-तीन वर्षों के बाद आ जाते हैं तीन वर्ष आप घर पर अपना साधना करो अपने अंतर्मुखी हो फिर आप प्रत्येक कुं में जाओ मैं जाने से नहीं रुकता लेकिन उसका विज्ञान समझा रहा हूं आपको कि वोह भीड़ का उन्माद श्रद्धा का आपको धक्का मारेगा आप उतरने को राजी हो जाना पकड़े मत रहना खुद को अगर पकड़े रह जाओगे फिर तो वही ढाक के तीन पात फिर तो सुने सुने वापस आ जाओगे बस एक मेले में गए थे हिल स्टेशन देख के आ गए ठंडे पानी में स्नान करके आ गए और कुछ ना घटा एक शब्द मेरा यह बांध लेना पोटली में श्रद्धा अंतर्मुखी करती है लेकिन क्या हुआ अब जिन्होंने बुलाया उन्होंने तो ठीक बुलाया कि उस वक्त पर श्रद्धा का उन्माद जितना गहरा होगा जितना भाव तूफान आ जाएगा वह तूफान कईयों को मुक्त कर देगा लेकिन मुक्ति तो मिली लेकिन किसी और ढंग की मिले लोग मर गए डबल कुचल कर मर गए और तुम्हारे तथाकथित संत कहते हैं उनको मोक्ष मिल गया जो मोक्ष की व्याख्या नहीं जानता अंतर प्रणाली नहीं जानता वह कहता है कि मोक्ष मिल गया इनको जो मर गए नहीं मोक्ष तो मिलता है लेकिन वो जानते नहीं कैसे मिलता है आज मौका आया तो मैंने आपको समझा दिया वो व्यक्ति तो मात्र मरे हैं मुक्त नहीं हुए मोक्ष नहीं मिला वह तो एक दुर्घटना का एक्सीडेंट का शिकार हुए कुचले गए अशक्त थे वृद्ध थे बच्चे थे महिलाएं थी इसे हम कु व्यवस्था भी नहीं कह सकते क्योंकि इतनी बड़ी संख्या में लोगों का हूम इकट्ठा होना उनको संभालने के लिए भी व्यक्तियों की आवश्यकता होती है चूक रह जाती है अक्सर तो किस चीज ने किया यह काम अब आपको जानकर हैरान होगी जिस चीज ने यह काम किया जो चीज जिम्मेवार है आप लोगों को जिम्मेदार ठहरा दोगे मैंने एक शब्द पहले कहा था श्रद्धा आपको अंतर्मुखी करती है और लोभ आपको बहर मुखी करता है लोभ के कारण तुम मारे गए लोभ था किस खगोलीय घटना में 140 वर्ष के बाद या एक जितने वर्षों के बाद भी आई यह आप जाने मुझे नहीं पता मैं हिसाब किताब से दूर रहता हूं सदा मैं हिसाब किताब से रहता हूं सदा मैं जो वास्तव में हूं व जो बुद्धि हिसाब किताब रखती है उससे बहुत दूर समझने वाले समझ जाएंगे मैं क्या बोल रहा हूं कहां से बोल रहा हूं तो जितने सालों के बाद भी यह आया था लोभ मरवा गया हम जल्दी से हम स्नान कर ले इस लोभ के कारण हड़ दब मची हम पहले स्नान कर ले हम पहले स्नान कर ले मुक्ति हो जाएगी नहीं ऐसे नहीं मुक्ति हो सिर्फ स्नान करने से मुक्ति नहीं मिलती मुक्ति का सारा संयोजन है वहां बस तुम में श्रद्धा टूटकर लोभ में बदल गई यह तीसरा जो स्तंभ था वो टूट गया जगह आज भी है चार्ज है पूरी और श्रद्धा का उन्माद होख गया है लोफ आ गया है श्रद्धा लोभ में बदल गई हम पहले मुक्त हो जाए बा मुश्किल इतने सालों के बाद यह वक्त आया है यह मुहूर्त आया है तो दो घटनाएं तो मौजूद है खगोलीय घटना भी है और वह स्थान भी है तीसरी घटना श्रद्धा ना बची श्रद्धा बदल गई लोभ में और लोभ बहर मुखी करता है शायद समझ गए होंगे सारी बात को तीसरा स्तंभ टूट गया लोभ आ गया तुम बहर मुखी हो गए तुमने जल्दी स्नान करने की कोशिश की और हड़ दब मच गई यहां हुई गड़बड़ आप कुछ भी खुलासे करते रहना वह आपके मस्तिष्क का काम कुछ व्यवस्थाओं में कमी रही होगी इसमें कोई शंका नहीं की जा सकती लेकिन व्यवस्थाओं में कमी कितनी भी हो अगर हम श्रद्धा मान रहे यानी स रहे शांत रहे धीरे-धीरे नंबर आने पर हम स्नान कर ले लोभ ना आए तो आराम से नहाया जा सकता है इतने लोग नहा के आए हैं नहाएंगे और भी नहाएंगे सदा से नहाते रहेंगे नहाते रहे हैं लेकिन दुर्घटनाएं भी सदा होती रही हैं और वह जब भी हुई लोभ के कारण आपकी श्रद्धा लोभ में परिवर्तित हो गई अब आए तो हैं इतनी दूर डुबकी पहले हम ही लगा ले देखिए ध्यान रखना अभी तो कुंभ चल रहा है ना कहीं स्थान जाएगा खगोलीय घटनाए बदल जाएंगी आपकी श्रद्धा अगर साथ रहे तो आप आगे पीछे कभी भी जा सकते हैं व स्थान उपयुक्त है मुझसे लोग पूछ लेते हैं बाबा यहां कोई मजार बता दीजिए अगर कोई मजार ना मिले अगर मिल जाए तो सर्वश्रेष्ठ अगर ना मिले तो चार स्थान है जहां पर कुंभ लगता है वहां दूर तलक कहीं भी बैठ जाओ उन्हें इसलिए हम तीर्थ कहते हैं वहां दूर तलक हवाएं श्रद्धा वित हैं वहां की माटी ने श्रद्धा को पी लिया है जितने लोग यहां से श्रद्धा से भरे भरे आए माटी उनको खींच गई आसमान उनको खा गया सारा वातावरण वहां चार्ज है आप जाकर वहां आनंद ले सकते हो लाभ ले सकते हो यह है सारा विज्ञान कुंभ का मेरे पास बहुत से प्रश्न थे इस तरह के कि आप जवाब दीजिए यह क्यों हुआ कारण क्या है इसकी आंतरिक व्यवस्था क्या है एंटा क्रोनोलॉजी क्या है इसके तो मैंने विस्तार से आपको सारी बात समझाई अगर श्रद्धा से आप अपने घर पर भी बैठ जाओगे कमरा चार्ज होता है मेरे पास यहां लोग आ जाते हैं कहते बाबा जाने को जी नहीं करता मैंने कहा बेटा मैं क्या करूं य स्थान बहुत छोटा है और तुम सभी यहां रहना चाहते हो लेकिन मेरी मजबूरी है थोड़ी देर के लिए बैठ जाओ दीक्षा ले लो और फिर तुम्हें जाना ही होगा क्योंकि और भी इंतजार कर रहे हैं तुम अकेले नहीं हो वहां से आने को दिल नहीं करता श्रद्धा के उस सैलाब में खो जाने को दिल करता है फना हो जाए राख हो जाए खाक हो जाए वहां कयामत हो जाए जिसको आप कयामत कहते हो इस्लाम क्यामत कहता है वह कयामत है वहां अगर श्रद्धा के उस सैलाब में तुम बह गए और तुम्हारा वह अहंकार खो गया वाष्प बनकर उठ गया और आपको समझ आ गया कि आप कौन बस उसके बाद आप घर पलटा घटना घट गई आपको पता चल गया आप कौन इस तूफान की जरूरत थी जो तुम्हारी ईगो को उड़ा के ले जाए और श्रद्धा का सैलाब आपकी गगो को उड़ा के ले जाता है य कभी-कभी आता है तीन-तीन साल के बाद चार स्थानों पर आता है जो चूक गए व अगले तीन सालों का इंतजार करो अगर ध्यान ही करना है अपने भीतर तो वहां जाकर भी बैठ सकते हो यह था आंतरिक विज्ञान इसका तो मैंने कल समझाया कि मेरे जाने के बाद जब बूंद बिखर जाएगी उतरेगी तो उस मूर्ति में समा जाएगी उसे कहते हैं प्राण प्रतिष्ठा और प्राण प्रतिष्ठा में मैं स्वयं विराजमान होंग यही कृष्ण कहते हैं बस तू छोड़ दे सब कुछ आप छोड़ दे सिर्फ मेरे में समा जा मुझे समर्पित हो जा अनन्या शत तो माम ये जना परस्ते तू मेरे करीब आकर बैठ जा उपासना उपसन करीब आक बैठ जाना अनन चिंतन तो माम य जन प्र वास्ते तेशाम नित्या भक्ता नाम योगक्षेम
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