बाबा आपके जब हम आए आप बड़े कमजोर लग रहे थे कृपया अपनी सेहत का ख्याल रखा करें संत कौन होता है संत वो होता है जो अपना ख्याल खुद नहीं रखता जो बच्चे के समान हो गया है इनोसेंट जस्ट लाइक अ चाइल्ड जरा देखना बच्चा कभी अपना ख्याल रख पाता है बच्चे से कहे कि तुम अपना ख्याल रखा करो तो वह मुस्कुरा देगा स उसे समझ भी नहीं आएगा संत बच्चों के समान हो जाता है इसलिए ईसा ने कहा दोस विल बी इनोसेंट जस्ट लाइक चाइल्ड विल एंटर इन माय गॉड किंगडम मेरे परमात्मा के राज्य में वही प्रवेश कर पाएंगे जो बच्चों के समान मासूम होंगे जिसने अपने जीवन की बागडोर परमात्मा के हाथों सेती है वह संत जिसने परमात्मा को बिना देखे सौंपी वह समर्पित व्यक्ति और जिसने परमात्मा को देखकर समर्पण हुआ वह संत समर्पण दो तरह के होते हैं पहले वाला समर्पण पहली सीढ़ी है समर्पण बढ़ता जाएगा उसके होने की झलक आपको मिलती रहेंगे और आपका समर्पण बढ़ता रहेगा ऐसे सभी सीढ़ियों को तुम क्रॉस कर जाओगे और छत पर पहुंच जाओगे समर्पण है पहली सीढ़ी मान के समर्पित होना कोई अज्ञात सत्ता है यहां से शुरू कर दो जैसे ही तुमने समर्पण किया बिना देखे तुम्हारे जीवन में कुछ अज्ञात लके आएंगे जीवन में कुछ ऐसे इंसीडेंट्स होंगे जो तुम्हारी समझ से बाहर होंगे समर्पण दिन रात बढ़ेगा और एक दिन संपूर्ण समर्पण हो जाएगा तुम उसके पास पहुंच जाओगे जिसके प्रति समर्पण किया था तुम्हारा कमेंट लाजवाब है मोह को दर्शाता है ठीक भी है गुरु के प्रति इतनी देखभाल होती है यह लाजिम है लेकिन एक बात को ध्यान में रखना यह जो माटी का आकार प्रकार तुम्हें दिख रहा है यह तो एक दिन खो जाएगा सदा के लिए ना रहा ना रहेगा लेकिन मैं रहूंगा रहे ना रहे [संगीत] हम रहे ना रहे हम का करेंगे बन के कली बन के सब भागे वफा में रहे ना रहे हम महका करेंगे हम महकते रहेंगे बन के कली बन के सवा बागे वफा में रहे ना रहे हम जब देही समाप्त हो जाता है लगभग तो इस देह को छोड़ देता है काम कार पूरे किए रिटायरमेंट हुआ तो हम अपना बुरी विसरा उठा लेते हैं चलो अब आराम करेंगे और यह दिन सभी प्यात है फिर जिसे तुम मैं समझते हो वह कमजोर दिख रहा था ठीक कुछ बातें हैं तो मैं समझा दू मैंने आज ही के प्रवचन में यह बोला कि गंगा तुम्हारे पापों को उठती नहीं क्योंकि गंगा निर्जीव है गंगा को तो बेचारी को पता भी नहीं कि तुम पापी उसमें स्नान कर रहे हो वह तो बहता पानी है लेकिन कुछ खास तरंगों से युक्त है तुम्हारे आम पानी की तरह वो पानी नहीं है और किसी विशेष ग्रह स्थितियों में सारे ब्रह्मांड की करण उस जगह पे प्रक्षेपित होती हैं तो उसकी गुणवत्ता बदल जाती है लेकिन कुंभ का महत्व था वहां कुछ संत भी आते हैं परोपकार हेतु जैसे करुणा वश बुध बोलते हैं वैसे जीवंत भी आते हैं इसलिए उनको जो आखिरी [संगीत] चर्म छलांग लगाने के करीब थे लांग लगा नहीं पा रहे थे साहस नहीं आ रहा था उनके लिए एक प्रपोजल था कि तुम ऐसी जगह पर चले जाओ ऐसी गृह स्थिति में ब्रह्मांड की सारी किरणें इस स्थान पर पड़ेंगी और जल भी अवस्थित हो जाएगा और वहां कुछ संत भी आएंगे आपका कल्याण करने के लिए वह आपको धक्का देने में समर्थ होंगे और जो बात ना बन सके तुम्हारे खुद से व वह गुरु आने वाला बता देगा बना देगा आज जमाना बदल गया प्रथाएं वही हैं जमाना बदल गया संत कहां रह गए मैंने पहले के प्रवचन में भी बोला था चार संत आए थे इतना कूड़ा कबाड़ा देकर चले गए नहीं पाया कोई मुमुक शु बस पाप धोने वाले पाए इसलिए हैरानी मत मानना गुस्सा भी मत करना वह जो स्नान करने गए थे उनके भीतर पाप की भावना रही होगी पापी लोग ही गंगा स्नान करते हैं शुभ मुहूर्तो में शुद्ध निर्मल आत्मा कहां जाता है को पाप का भीतर से भान हो रहा है कि मैंने पाप किया है फिर वह पाप को आसान उपायों से धोने का उपाय करता है बह जाता है कुंभ में मुमुक्षा के लिए नहीं जाता उसके भीतर कोई आग लगी नहीं लगी रहा के मीरा की तरह लेकिन वहां जो लोग आते हैं जिन्हें हम परम संत कहते हैं वह करुणा बसते हैं और उन्हें चाहिए ऐसे मुमुक्षु जिनके भीतर विरहा की आग लगी हो बस उनकी थोड़ी सी कृपा तुम उस परम स्थल पर चले जाओगे यह उन लोगों के लिए थी जिनका कोई जीवंत गुरु नहीं था ध्यान रखना अब मैं जो बात सही बोल रहा हूं जिनका जीवंत गुरु नहीं होता जो खुद से ही साधना करते हैं वो वहां जाए बिरहा की अग्नि जल रही जैसे मैं मारा मारा फिरता था मैं गया हरिद्वार क्यों क्योंकि एक घटना ऐसी घट गई थी भीतर सब उथल-पुथल हो गए हाहाकार मच गया कौन है य एक तार्किक मन कुछ ऐसा घटा उस अज्ञात शक्ति के प्रति खोज शुरू हो गई ऐसा व्यक्ति वहां जा सकता है आग लगी हो बिरहा की लेकिन अभी प्रथम पड़ाव पर थी य आग सत्र की ये घटना और 73 में मैंने घर छोड़ दिया कच्चा था अभी विरहा उफान पर नहीं था तो मुझे हनुमान जी ने मोड़ दिया मेरे बायोग्राफी आपने पढ़ी होगी सभी घर जाओ सब घर बैठे मिलेगा अब वो तो जानते हैं जिसे ढूंढने आया व हरिद्वार ऋषि केश नहीं इसके भीतर ही है मैं नहीं जानता था मैंने सिर्फ वह घटना देखी थी मैं चमत्कृत हुआ था बस उससे थोड़ी आग लगी थी खोज की यहां से शुरू होती है कहा और जीवंत गुरु कोई नहीं था आज कहां है गुरु आज कहां है शिष्य कहां है मीरा जैसी ब्रगन बैरागन सब खो गया अतीत की बात हो गई ना मुमुक्षु बचा है ना संत बचे जो झूमा करते थे जिनका जीव तो गुरु है उनको कुंभ स्नान पर जाने की कोई आवश्यकता नहीं उनका कुंभ घर बैठा है अगर तुम उसे वनों में खोजो पहाड़ों में खोजो तीर्थों पर खोजो मक्का मदीना हजज में खोजो ग तो यही तो संत कहते हैं वो तो ना मिलेगा और तुम्हारी इस मनो स्थिति में तो बिल्कुल नहीं मिलेगा क्योंकि कोई बरहा की अग्नि जली नहीं आग लगी नहीं बैरागन बनी रही आज हो ना आए बालमा [संगीत] सावन भीता जा आज ह ना आज ह ना आज बालमा सावन वेता जा [संगीत] सावन बीता जा ऐसी बरा की आग लगी हो अज हो ना आए बालमा सावन बीता जाए यह जीवन बीतता जाता है बलम आए नहीं और प्राण प्यारा आया नहीं उसकी कहीं झलक नहीं ऐसा व्यक्ति वहां जाए जिसकी शुधा शांत करने वाला कोई जीवंत ना हो लेकिन जिसका जीवंत गुरु है उसको वहां जाने की जरूरत नहीं लेकिन आज जो हो रहा है उसको मैं सही ठहरता हूं क्यों क्योंकि ना तो तुम्हारे भीतर विरहा की आग कहां तड़पे तुम प्रभु के बिन और ना आग बजाने वाला व संत मैं फिर दोहरा दूं चार आए थे तुम्हारे लटके हुए चेहरे देख के चले गए मुमुक्षा नहीं है और मुमुक्षा नहीं है तो वह डिक्टेटर होगी तुम्हे मुक्ति दिलाना फिर मुक्ति भी तुम्हारे लिए क बझा हो जाएगा तुम कहोगे नहीं हमें तो संसार अच्छा लगता है मेरे पास लोग आ जाते हैं मैं पूछता हूं क्या चाहिए संसार चाहिए परमात्मा चाहिए वह कहते नहीं परमात्मा नहीं चाहिए अभी तो संसार को भोगना है बड़े प्यारे लोग हैं ईमानदार है तुम्हें चाहिए संसार वर्णन करते हो कि परमात्मा चाहिए तुम खुद ही दुविधा में हो और दुविधा में तो दोनों गए माया मिली नाराम दूसरा ये आकार प्रकार जो तुम देख रहे हो एक दिन आएगा यह नहीं होगा लेकिन यह मत सोच लेना कि मैं कहीं चला जाऊंगा शारदा थाली लेकर गई है रामकृष्ण के पास रामकृष्ण ने थाली की तरफ देखा भोजन के साथ बंधे थे बड़े सुस्वादु भोजन खाया करते थे बंद गए थे अपने जीवन की जी वेषण भोजन के साथ बांध लेथ और एक दिन तंग आ गए अब भी कैसे ज्ञान देते हो लोगों को ब्रह्म चर्चा करते करते अन चर्चा में आ जाते हो रसोई घर में शारदा जल्दी से बताना क्या बनाया सुगंधी तो बड़ी आ रही है तो राम कृष्ण बोले शारद जिस दिन तुम थाली लेकर आई और मेरा नाक मट गया मैंने मुंह फेर लिया बस मेरे 72 घंटे हो गए उसके बाद जीवन मैं विदा हो जाऊंगा बस इसी चीज से बंधा हूं करुणा वश बंधा हूं दो तरह के व्यक्ति होते हैं एक के पास गहरे अनुभव होते हैं वाक शैली नहीं होती अनुभव बड़े गहरे होते हैं और राम कृष्ण परमहंस जैसे लोग होते हैं और भी बहुत लोग होते हैं जो बिना बताए चले गए कुछ कर गए उनकी भनक भी ना पड़ेगी इसके कानों में अनुभव गहन से गहन तम तुम्हारे सभी प्रश्नों का जवाब व जानते हैं लेकिन बता नहीं सकते उनके पास व कबरी नहीं है शब्द कोश उनके पास नहीं है एक दूसरे भी होते हैं जिनके पास अनुभव तो कम है लेकिन वाक शैली बड़ी च वाक्य शैली इतनी कि फिलोसोफी की पी फिलोस फी के में लेकिन अनुभव इतना नहीं है राम कृष्ण जितना एक तीसरे भी तरह के लोग है जिनके पास वाक शरी तो बहुत है बहुत है अनुभव के नाम पर शून्य है तीन तरह के लोग होते हैं पहली तरह के राम कृष्ण दूसरी तरह के उ मुझे कोई संकोच नहीं होता और तीसरी तरह के ये लफंडर जो आज बिना कुछ जाने बिना कुछ देखे कुछ भी बोल दे जो आज रावण है नहीं उससे फोन बनाने लग जाते हैं कोई क्या कहे निपुण ने पूछा कि हम अब के आए बाबा तुम बड़े कमजोर लग रहे थे अपने स्वास्थ्य का ख्याल रखा करो जवाब तुम्हें दे दिया है पुत्र बच्चा अपना ख्याल नहीं रख सकता और संत भी अपना ख्याल नहीं रख सकता क्योंकि बच्चे के समान हो जाता है प्राकृतिक घटनाएं भूख लगेगी खा लेगा जो अच्छा लगता खा लेगा नहीं खाएगा नहीं खाएगा लेकिन मस्ती में जीवन बीत जाएगा भटके का नहीं इन लक्षणों से तुम पहचानते रहा करना रहे ना रहे [संगीत] हम महका [संगीत] करे बन के कली बन के सब बागे वफा में रहे ना रहे हम महका करेंगे बन के कली बन के स बाग वफा में हमने बेवफाई कभी नहीं की हम रहे या ना रहे यह मेरे पर निर्भर नहीं करता जिस दिन से बच्चा हुआ मैं स्वयं बच्चा हुआ उस दिन से खुद की प्रवाह छोड़ द होती है और मस्ती चारों ओर से तूफान की तरह घेर लेते हैं और दिन भर रात यहीं बैठा रहता बस यह यह कमरा यह मेरा जीवन है यही तरंग दिन भर रात आनंद के और एक और बात बता द कमजोर होना स्वाभाविक है मनोवैज्ञानिक रूप से तुम अपने पाप छोड़ आते हो गंगा में लेकिन मनोवैज्ञानिक रूप से सच में तो तुमने भुगतना ही पड़ेगा भुगते हो जरा देखना गौर से जागकर देखना कुंभ स्नान करने के बाद भी तुम्हें पाप पुण्य भोगने पड़ेंगे देखना अब तुम कुं कर आ हो बहुत से लोगों को कह रहा हूं जो कुंभ करके आए हैं सब होगा तो फिर कुंभ नान का अर्थ क्या हुआ क्यों गया मैं कहता हूं यह प्रथा है रिवाज बन के रह गया एक मेला बन के रह गया मैं तुम्हारी आजादी को नहीं छीनना चाहता तुम जहां चाहते हो जा सकते हो लेकिन तथ्य को मैं प्रकट कर सक यह मेरा अधिकार है और त ही प्रकट कर रहा हूं लेकिन जिसको बाबा चुन लेते हैं मेरे द्वारा गंगा नहीं उठाती तुम्हारे पाप मैं उठा लेता हूं तुम्हारे पाप एक कमजोरी का दूसरा कारण है अन्यथा इतने हष पृष्ट बलशाली शरीर थोड़ी सी भक्त में कैसे कमजोर हो गया जब अंगूठा लगा तुम्हारे पाप मैंने खींच लिया तुम्हारे पुण्य भी मैंने खींच लिए तुम्हारे पाप भी मैंने खींच लिए तुम मुक्त हुए उसी ड़ी ओनली प्रोसेसिंग रिमस प्रोसेसिंग बाकी रह गई सिर्फ तुम मुक्त हुए पक्का मेरे पास एक शिष्य आई जब मैंने दीक्षा दी भावना मुझसे पूछा बाबा पक्का मुक्त हो जाऊंगी मैंने कहा अ भी शंका रह गए तुम नहीं शंका नहीं रहनी चाहिए तुम फिर आना नहीं शंक होकर जाना अभी थोड़ी शंका बाकी है जो प्रश्न पूछे लिया संतुष्टि का भाव मैं बिल्कुल साफसाफ देखा अंगूठा रखते ही आंखों में श्रु धारा बहती है बस भीतर उतर गई ये भावना अहम तोम सर्व पापे मोक्ष शमी मा सच कृष्ण ने तुम्हारे सभी पाप हर लिए गंगा नहीं हर पाएगी जाओ ना जाओ ये तुम्हारी मोच तुम स्वतंत्र हो लेकिन पाप गंगा नहीं छीन सकती यह पक्का पाप छीनेगा संत और जब वो मेरे बीच में से गुजरते हैं तो निश्चित ही जिस स्थान से गंदा नाला बहता है वो गंदा नाला चाहे गुजर जाए लेकिन वह स्थान भी तो विकृत हो जाता है मेरी बात को गहरे से समझने की कोशिश करना जिस स्थान से गटर बहता है वह गटर सूख भी जाए लेकिन वह स्थान गंदा हो जाता है वह स्थान में से दुर्गंध आनी शुरू हो जाती है तो कमजोरी का एक दूसरा कारण य भी है तुम्हारे किए हुए पाप मेरे भीतर से क्रॉस करके जाते हैं और पता नहीं तुमने क्या कुछ किया है यह ठीक मुक्त करेंगे बाबा लेकिन गुजरे तो मेरे बीच में से माध्यम तो मुझे ही बनाया तो उस स्थान का दूषित होना स्वाभाविक है तो इस देह की इतनी फिक्र मत किया करो संत रदास ने कहा है माटी का [संगीत] उतरा कैसो नचत है माटी का उतरा कैसो नचत है कैसो नचत है रियो फिरत [संगीत] है कैसो नचत है डरियो फिरत है माटी का पुत [संगीत] कैसा नचत ये माटी का पुत्रा नाचता है उससे चेतना के कारण जिसे तुम राधा कहते हो राधा कारण है इस देह को नचाने में अगर राधा ना हो तो यह देह नाचे नहीं राधा प्राण और ध्यान रखना राधा कभी गुस्सा नहीं करते कभी पावर गुस्सा करती है पावर तो सिर्फ जगमग करती है तुम्हें ठंडी ठंडी हवा देती है गर्मी में और तुम्हें गर्म गम गर्म हवा देती है सरद तुम्हारे सुख के लिए सदा मौजूद है अब जो बात मैं तुम्हें कहूंगा उससे तुम्हारा मूर्ति पूजा करने का सारा विज्ञान खुल जाएगा तुम्हें हमने संतों को दफन करने की प्रथा इजाद की बहुत बड़ी क्रांति थी क्योंकि हमने खोज लिया था कि एनलाइन मेंट की घटना के भीतर इतनी मात्रा में उन तरंगों को सीच लिया जाता है जो लाखों साल तक बनी रहती हैं भरती रहती हैं सुफु होती रहती हैं प्रसारित होती रहती हैं इसलिए हमने एक स्थान में उनको दफन किया और ऊपर उनकी समाधि बना दी हमारे यहां भी सिद्ध बाबा गंगाराम जी की समाधि बनी हुई है उसके ऊपर उनकी प्रतिमा स्थापित कर दी जाती है अब सिद्ध स्थान है अब आज मैं ये रहस्य को खोलूंगा वक्त आने पर सभी रहस्य खोल देने चाहिए वक्त आने पर क्यों क्योंकि उससे पहले तुम समझ नहीं सकोगे आज तुम्हें समझना आसान हो जाएगा हमारे बाबा गंगाराम जी यहां दफन है समाधि और ऊपर समाधि बने हुए उनकी मूर्ति है अब इसका विज्ञान तुम्हें समझाता हूं तुमने तो नकली फूल खिला दिए य जो है नहीं यह शीरा वाली यह काली पीली यह है नहीं य तुमने बना दिया तुम्हारे मन की खोज है कल्पना है लेकिन इनम प्राण नहीं डाला जा सकता यद्यपि तुम्हारे पुजारी डालते हैं प्राण किसमें डाला जा सकता है प्राण डालने का कुछ वक्त होता है अब आज इस मूर्ति विज्ञान को अच्छी तरह से इसके गहरे रहस्यों को समझ लेना जब इस देह को मैं छोड़ दू तो इस देह ने जो 28 अक्टूबर 1985 को जो निकल गया था सारे ब्रह्मांड में और फैल गया था सारे ब्रह्मांड में सारे ब्रह्मांड की तरंगे फैलती रहेंगी क्योंकि आविष हो गया है यह शरीर आविष हो गया है इसका रोआ रोआ लाखों सालों तक बिखरता रहेगा पहले भी मैंने यह बात बताई आपको लेकिन आज वक्त है बताने का क्योंकि आपने सवाल पूछा दफन करना दफन करके मूर्ति सापित कर देना अब तुम चोको गए सारी उम्र जिस मूर्ति की मैं खंडन करता रहा और जिस मूर्ति को स्वामी दयानंद ने झोटे के साथ बांध के और काली रगड़ चली गई पीछे और काली ने कुछ नहीं कहा क्योंकि काली तुम्हारी कल्पना है दुर्गा तुम्हारी कल्पना है चंडी तुम्हारी कल्पना यह जो कल्पना के भीतर तुमने देवी देवता खड़े कर लिए इनमें प्राण नहीं डाला जा सकता प्राण किसमें डाला जा सकता है प्राण डाला तो जा ही नहीं सकता प्राणों का आवाहन हो सकता है अब देखिए अब सारी चीज को तुम समझ जाओगे जब मैं इस स्थूल देह को छोड़ दू स्थूल दे को दफन करना यह पहला काम उसके ऊपर मूर्ति को स्थापित कर देना यही शक्ल जैसे यहां हमने बाबा गंगाराम की अब आती है प्राण प्रतिष्ठा प्राण प्रतिष्ठा में सिर्फ वह लोग जो प्रिय हैं मेरे जो अंतर भावना से पुकार सकते हैं वह चुंबक बनेगे खींचने का और तुम उस विराट से प्रार्थना करोगे इस चैतन्य की बूंद को इसके भीतर उतार दो चैतन्य की इस बूंद को वैसे भी मैंने सागर में विलीन हो ही जाना है और सागर सब जगह है बूंद जिस सागर में समागी वो किसी एक जगह बनी इशा वसमम सर्वम जत किंच जगत याम जगत सब जगह विद्यमान है जहां चाहे वहां उस बूंद को खपा सकता हूं स्वतंत्र हूं इसी को तो स्वतंत्रता कहते हैं इसी को मुक्ति और लिबरेशन कहते हैं वह जो देही गल गया और जो मैंने बताया कारण शरीर एक थोड़ी सी छोटी सी चेतना की वो कण कह ले बूंद कह ले कुछ कहलो वो उतरेगी सागर में और सागर सब जगह है मैं नावे नाही कोठा नाम के बिना को कोई स्थान नहीं सब जगह मौजूद है वो उसको याद करना होता है कि सब जगह मौजूद है बस इतना याद करना होता है नाम नहीं लेना होता क्योंकि नाम उसका है नहीं कोई वह अनामी है वह अलख है देखा नहीं जाता तो वो जो प्रेमी जन चुंबक का काम करेंगे प्रार्थना करेंगे विराट से जिसका कोई और शोर नहीं जो ना समझ में आया ना समझ में आएगा उसका स्वाद तुम चक सकते हो संत उसका स्वाद चकते हैं अगर संत यह कहे कि मैं जानता हूं परमात्मा ने यह सर्जना की कैसे तो वह मूर्ख है वह संत नहीं है संत वो जो हार मान जाए जो कहे है तो सब जगह यह तो मैंने देख लिया लेकिन तेरा और छोर तू कहां से आया कहां से इतनी सामग्री लेकर आया कहां से इतने विभिन्न प्रकार की धातुएं एलिमेंट्स ये कहां से लेकर आए ये हमें नहीं पता जो हथियार गर देता है गरा देता है कि नहीं मैं ना खोज पाया ना खोज पाऊंगा मैं असमर्थ हूं असमर्थता के उस आलम में यह सत्य है उसको कभी कोई जान ना सकेगा यह मटेरियल कहां से लेकर आए राट कहां से स्पेस का निर्माण किया कहां से यह सारे तत्व इकट्ठे किए कहां से लेकर आए ऑक्सीजन नाइट्रोजन हीलियम ओजोन यह तुम्हें कभी पता ना चलेगा और बनाने की तो बात बहुत दूर रह गई क्रिएशन की तो बात बहुत दूर तुम यह भी ना जान सकोगे यह सारा मसाला यह सारा कंटेंट य सारा पदार्थ यह लेके वो कहां से आया कहां रखा था उसने यहां आकर संत हार मान लेता है यहां के संत कहता है नति नति नेति नेति नहीं इतना नहीं है नहीं समझ में आएगा नेति नेति न इति न इति इतना नहीं इतना भी नहीं है इतना भी नहीं है उस मूर्ति के भीतर उतारना है उस छोटी सी कारण शरीर की बूंद को जो चेतना है जो राधा है कृष्ण कहलो राधा कहलो अर्धनारीश्वर कह लो यह ढंग है समझाने के तुम्हारी बुद्धि को समझाने के ढंग हैं इशारे लेकिन इशारा कभी परिपूर्ण नहीं नहीं होता यह भी समझ लेना इशारे किसी छोर पर जाकर थम जाते हैं मैं कहूं वो रहा सूरज लेकिन इशारा रुक गया यहां थम गया इस यहां सूरज नहीं है कोई भाग्यशाली घड़ी आ सकती है जब इसकी छोर में स्ट्रेट लाइन में तुम देख लो आकाश में सूरज चमक रहा है तो इशारे काम करते हैं लेकिन इशारों से समझाया नहीं जाता इशारों से तुम समझ सकते हो अगर कोई भाग्यशाली क्षण तुम्हारे जीवन में आ गया वो जो पिया शरद पूर्णिमा की रात वह बिखरे का लाखों सालों तक और उसके इर्दगिर्द सभी शुद्ध आत्माएं मंडराएंगी अभी हमारे यहां बाबा गंगाराम जी हैं तुम उतारते हो इमेजिनरी शक्तियों में जिन्ह तुम मानते हो सिर्फ देखी नहीं किसीने जानी नहीं कि और इनमें प्राण प्रतिष्ठा भी झूठी और तुम्हारी मूर्ति झूठी और उन्हीं को गलत कहते हैं स्वामी दयानंद झूठे के साथ बांध देते हैं पर व मूर्ति घटती जाती है लोग कहने लगे ये जो काली की मूर्ति सांड के साथ चपकाई थी उसका श्राप ले बैठा दयानंद को 58 साल की उम्र में एक वैशा ने जगन्नाथ को पिसा हुआ कांच दूध में मिलाकर दे दिया स्वामी दयानंद को पिला दिया और उन्हें प्राण त्यागना पड़ा इस देह को मिटाने के बड़े तरीके हैं लेकिन ध्यान रखना जिसने ये कुकृत्य किया उसका हशर क्या होगा जब भोगे गी तब थर आएगी व स्वामी दयानंद मूर्ति पूजक थे शिवरात्रि की रात्रि को एक चूहा जो प्रसाद चढ़ाया था व भगवान शंकर की पिंडी के ऊपर चढ़कर प्रसाद खा रहे थे वहां से उनकी धारणा टूट गई और मूर्ति भंजक हो गए पूजक ना रहे कहानी लंबी है नन्ही नाम की एक वैशा उनकी मृत्यु का कारण बनी जब जोधपुर उनको बुलाया राजा जसवंत ने तो नन्नी ने जो रसोइया था जगन्नाथ कलिया उसको कंच पिसा हुआ दे दिया के दूध में मिला के दे दे स्वामी दयानंद दूध बहुत पी लेते थे पांच पांच सात सात 101 किलो दूध पी लेते थे वो तो मैं जानकर बड़ी हैरानी हो एक बार में और रात को पी के सो जाते और रात को उठकर पेशाब करने नहीं उठते वो इतना शानदार स्वस्थ धाम का लेकिन ननी नामक वैशा राजा जसवंत सिंह के साथ इतनी प्रगाढ़ मित्रता और श्रद्धा देखकर उससे खफा रहने लगी मारने का निश्चय कर लिया और मार भी दिया कंच मिला दूध जगन्नाथ के साथ मिलक उसको पिला दिया भीतर छलनी हो गया सब योगिक क्रियाओं के द्वारा उन्होंने वो जहर निकालने की चेष्टा तो की लेकिन खून आने लग बचन ना पाए और दीपावली की रात को भगवान महावीर भी दीपावली की रात को ही प्राण छोड़े थे जैन धर्म के 24 में तीर्थंकर और दीपावली को ही स्वामी दयानंद ने प्राण मूर्ति पूजा का आंतरिक रहस्य है वो जो शरीर की एक बूंद बूंद समानी समुंद्र में समुद्र कहां है कोई एक मानसरोवर नामक जगह में समुद्र नहीं समुद्र तो सब जगह है बिन नावे ना को ठा सब जगह मौजूद है कहीं भी हम अपनी बूंद को उतार देंगे क्योंकि चेतन है जब देही समाप्त हो गया तो देही को शक्ति देने वाली वह चेतना की एक हल्की सी बूंद उसको सागर में विलीन होना होता है उसे ही कहते हैं मोक्ष तो इस मूर्ति के भीतर प्रेमी जनों की पुकार से वह बनेगी चुंबक उनकी पुकार बनेगी चुंबक जब व आर्त स्वर से आर्त पुकार करेंगे द्रवित हृदय से तो उस बूंद को उतरना होगा उस माटी की तस्वीर में चित्र में जो आपने मूर्ति बनाई यह था मूर्ति पूजा का रहस्य ऐसे किसी भी मंदिर में किसी भी तरह की पूजा करके और उसकी पूजा कर लेना बना के उसमें प्राण प्रतिष्ठा हो ही नहीं सकती प्राण प्रतिष्ठा जो कभी जीवित था और अभी जीवित था बस इसको इस देह में से देही में से इन शब्दों को थोड़ा गहरे हैं समझना देही के साथ जो मैंने पुराने प्रव वचनों में जिक्र किया एक छोटी सी बूंद चेतना की होती है उसे कारण शरीर कहते हैं वह चेतना उतरती है समुद्र में और समुद्र हर जगह है तो यह जो तुम मूर्ति बनाओगे इस मूर्ति के भीतर व चेतना उतर जाएगी जिसे हम राधा भी कह देते हैं कृष्णा भी कह देते हैं राम भी कह देते हैं वो चेतना का नाम है हमारा रखा वह पदार्थ जीवंत हो गया उस समाधि के नीचे मृत शरीर पड़ा है जिसमें से निरंतर वेव निकल रही है निरंतर लाखों सालों तक यह वाष्प भूत होती रहेंगे इतना पिया इतना पिया कभी चूके नहीं ब्रह्मांड कभी चुकता है और पूरा ब्रहमांड उतर जाता है उस वक्त यही तो कृपा है वह व्यक्ति उतर जाता है ब्रह्मांड में और ब्रह्मांड उतर जाता है उस व्यक्ति में यह अजूबी घटना है लेकिन समझ नहीं आएगी सिर्फ देखने से ही इसका अनुभव किया जा सकता है एक बात मैंने कही कोई भी व्यक्ति कभी भी कोई भी संत अगर यह कहे कि मैं जानता हूं परमात्मा ने यह सारा तत्व कहां रखा था कहां से निकाल के लेकर आया तो वह झूठ बोलेगा और मैं इस संसार को एक झूठ सौप के नहीं जाना चाहता कोई नहीं जान सके ना कोई जान पाया है वह जाना जा ही नहीं सकता यह बात कि कहां से लेकर आया वो कहां छिपा रखा था कौन थत कौन बार कब उसने सृष्टि की सर्जना शुरू की लेकिन तुम्हारे पंडित सब बता देंगे सब व सब झूठ है किसी को कुछ पता नहीं उसके बारे में वह अज्ञात है और यहां तक कि वह अज्ञे भी है अननो एबल तो उसकी तो बात ही मत करो यहां आकर तो तुम हार जाओ संत हार जाता है और संत नीति नीति कहता हुआ उसके भीतर उतर जाता है प्रवेश कर जाता है यह था मूर्ति का आंतरिक विज्ञान क्रोनोलॉजी के मूर्ति पूजा क्यों मूर्ति पूजा सिर्फ ऐसे तुम्हारे बनाए हुए चूहे बांदर रहे तुम्हारे बनाए हुए मोर तोते नहीं यह वास्तव में जब कभी किसी शरीर में वह उतरा और उसी के भीतर उसके कारण शरीर की बूंद उतारो तुम उतारो वो थी प्राण प्रतिष्ठा तो उस मूर्ति बनाकर समाधि के ऊपर मूर्ति बनाकर द्रवित हृदय से पुकार की जाए कि हे चेतना की बूंद इस पदार्थ में उतर जाओ हम प्रार्थना करते हैं आपकी प्रार्थना करने से द्रवित हृदय की प्रार्थना करने से वह चेतना जिसे कारण शरीर भी कहते हैं वह उतर जाएगी और प्राण प्रतिष्ठा हो जाएगी इसे कहते हैं प्राण प्रतिष्ठा आज सब नकली नकली हो गया है और नकली के बारे में ज्यादा शक्ति गवाना भी बेकार है ज्यादा विस्तार करना भी बेकार है साफसाफ कंडेंस रूप से बड़े थोड़े से शब्दों में मैंने आपको समझा दिया पिछले प्रवचन में देख लेना वह कारण शरीर की बूंद क्या है खैर यह प्राण प्रतिष्ठा हो गई तो निपुण ने पूछा कि बाबा कमजोर लग रहे थे जिसे आप मैं समझते हो वास्तव में मैं नहीं हूं वह मेरा घर है मेरा ठिकाना है मेरा निवास है मैं तो उसके भीतर विद्यमान लेकिन क्या करूं इशारों ही इशारों में बतलाया बहुत बार आज भी बतला रहा हूं समझ जाओ ना तुम यह शरीर हो ना मैं यह शरीर ह ये लड़ाइयां शरीरों की हैं ये कलह कलेश शरीरों के हैं यह कलह कलेश मन के हैं मन और शरीर के पार जो है उसमें कोई क्लेश नहीं अकले देव अच्छे देव अशु इसे ही भगवान कृष्ण ने कहा नमंति शस्त्राणि नैनम दहती पाव का नम कंता पन शति मारुता मैं तो कमजोर होता ही रहू और एक दिन इतना अशक्त हो जाऊंगा तुम कहोगे बोल बाबा और बाबा ऊंट फरका जितनी भी शक्ति नहीं होगी उसम आदमी अकड़ करता है अभिमान करता है उड जान प्रा तेरे फिर क्यों नहीं [संगीत] बोलदा उड जान प्राण तेरे फिर क्यों नहीं बोलदा हो में वाली कुंजियां तू फिर क्यों नहीं खोलगा हो में वाली कुंजिया त फिर क्यों नहीं खोल दो किथे तेरी आकड़ा ते किथे [संगीत] अभिमान फलदा परसा कोई ना ऐसी तेरी जान [संगीत] मिट्टी दया [संगीत] पंया मिट्टी दया बनया तू कादा करे मान फलदा भरोसा कोई ना ऐसी तेरी जान मिट्टी [संगीत] बंद प्रश्न कीमती है उत्तर तुम्हें दे दिया यह है सारी मूर्ति पूजा के भीतर की कहानी प्रतिष्ठा नहीं हो वह जो व्यक्ति कभी जिसके भीतर परमात्मा उतरा था वह विराट उसमें समाया था और वह विराट में समाया था बिना इस घटना के घटित हुए व्यक्ति में प्राण प्रतिष्ठा नहीं की जा सकती वह तो फिर जन्म पुनः लेता रहेगा आता रहेगा जाता रहेगा कृष्ण कभी नहीं आएंगे क इस रूप में आए वो तो गए वो तो बूंद समुद्र में मिल गई राम भी भूत समुद्र में समा गए मीरा गई दादू गए नानक गए कबीर गए सब गए वो समुद्र में चले जाना होता है आखिर में कोई इसका भेद नहीं पा सका ये यह भेद कभी खुलेगा भी नहीं इसलिए बेहतर है कि इसके आगे नतमस्तक हो जाओ झुका लो शी सपना इसे ही समर्पण कहते हैं जितने झुके उतना समर्पण जितने झुके समझना इस बात को परसेंटेज के हिसाब से रिलेटिवली जितना झुके उतना समर्पण और जिसन पूरे झुक गए व संपूर्ण समर्पण तुम्हारे भीतर का अहम खो गया तुम्हारा देह देही बस में भूत हो गया कुछ ना बचा वही बचा जो सदा से है था और रहेगा फिर ऐसे व्यक्ति के भीतर बस एक कारण शरीर की वह चेतना की बूंद बाकी रह जाती है ऐसे व्यक्ति की चेतना को पदार्थ में उतार देना प्राण प्रतिष्ठा कहलाता है वह चेतना की रोशनाई की बूंद कभी मरते नहीं फानूस बनकर जिसकी हिफाजत हवा करे फानूस बनकर जिसकी हिफाजत हवा करे व शमा क्या बुझे जिसे रोशन खुदा करे वही जिसकी हिफाजत करना शुरू करते फानूस बनकर जिसकी हिफाजत हवा करे व सम क्या बुझ है ज रोशन खुदा करे वह सपम है व खुद अपने ही प्रकाश से प्रकाशित है वह कभी अंधकार में नहीं जा सकता व कभी मरता नहीं उसको ऐसे प्राण प्रतिष्ठित कर देना उसको कहते हैं जीवित समाधि ऐसी समाधि के आसपास लाखों वर्षों तक तरंगे उभरती रहेंगी निकलती रहेंगे ब्रॉडकास्ट हो हो रहेगी और उसके करीब पहुंच करर बैठने से तुम आनंद से मगन हो जाओगे ध्यान में जाओगे अपने गहरे में उस तत्व को पा जाओगे जिसे कहते हैं तत्व मसी शत के तो तत्व मसी शत केतो खा हमारे पितु म स्वामी सखा हमारे हे नाथ नारायण वासु देवा श्री कृष्ण गोविंद हरे मुरारी हे नाथ नाराय यन वासुदेवा श्री कृष्ण गोविंद हरे मुरारी हे नाथ नारायण वासुदेवा [संगीत] पितु मात स्वामी सखा हमारे पितु मात स्वामी सखा हमारे हे नाथ नारायण वासुदेवा [संगीत] गंगा जी का तट हो यमुना का वंशीवट हो श्री गंगा जी का तट हो यमुना का वंशीवट हो मेरा सा वरा निकट [संगीत] हो मेरा सांवरा निकट [संगीत] हो जब [संगीत] प्राण तन से निकले इतना तो करना स्वामी जब प्राण तन से निकले [संगीत] गोविंद नाम लेकर तब प्राण तन से निकले श्री कृष्ण गोविंद हरे मुरारी हे नाथ नारायण वासुदेवा पितु मात स्वामी सखा हमार पितु मात स्वामी सखा हमारे हे नाथ नारायन वासुदेवा श्री कृष्ण गोविंद हरे मुरारी हे नाथ नारायण वासु देवा ओ धन्यवाद
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