Powerful words of Krishna | श्रद्धा को बढ़ाओ, तर्क नहीं! भगवान शंकर विभूति क्यों लगाते हैं?

 


महर्षि नाम बगुर गराम एकम अक्षरमनामलाई जप यज्ञ आस्मा स्वरा नाम हिमालय महर्षि हों में मैं भृगु हूं और शब्दों में अक्षरों में मैं एक अक्षर हूं प्रणव ओंकार यज्ञ नाम जप यज्ञ आस्मा जपों में मैं जप यज्ञ हूं जपा नाम यज्ञ नाम जप यज्ञो अस्मा सावरा नाम जो स्थित हैं अटल हैं अचल है हिलते नहीं अकंपदम आइए इसके विस्तार में चले महर्षि में मैं भृगु ब्रह्मा पुत्र भृगु छोटी सी कहानी देवताओं में श्रेष्ठ कौन है ये झगड़ा हो गया कोई कहे ब्रह्मा कोई कहे विष्णु कोई कहे शिव तीन ही मुख्य देवता है ट्रिनिटी ईसाइयों में भी मानी जाती है सभी देवताओं ने स्वर्ग में निश्चय किया कि यह कठिन प्रश्न किसके जिम में लगाया जाए कौन करेगा हल से सभी ने एक स्वर में कहा भृगु ब्रह्मा पुत्र भृगु अब बड़े मजे की बात है किसने यह सवाल नहीं उठाया कि ब्रह्मा के पुत्र वृगु ब्रह्मा के पक्ष में बात करेंगे यही तो होता है न्याय न्याय कारी को अगर अपने पिता को अपने पुत्र को भी दंड देना पड़े वोह देते हैं वो सच्चा न्याय कारी है अन्यथा रिश्वतखोर है महर्ष नाम प्रगर अहम मैं भृगु हूं और भृगु पहले ब्रह्मा जी के पास गए ब्रह्मा के पुत्र थे जाकर कुछ टेढ़ी मढ हरकत कर दी अब देवताओं का तो हिसाब यह होता है थोड़ी सी टेढ़ मढ़ हरकत की और ब्रह्मा जी उसके पीछे भागे कोई िप भी चढ़ा दी होगी कि मुंह बचका लिया होगा ब्रह्मा अपने चारों सिरों को लेकर भागे का राम कोर तेरे को बताता हूं कोई परिक्रमा नहीं की कोई दंडवत नहीं किया पुत्र है भाग गया वहां से शंकर के पास गया शंकर बैठे शांत बा हड़बड़ाहट शुरू कर दी शोर फैलाना शुरू कर दिया शंकर ने आंख खोली देखा वहां भी कुछ गड़बड़ी करती शंकर भी पीछे भागे त्र सूल चला दिया बभु थोड़े साइड में होलिए समझदार फिर गए विष्णु के पास क्षीर सागर में शयन कर रहे वह विष्णु योग निद्रा में जिस योग निद्रा की मैं बात करता हूं और लक्ष्मी उनके पांव दबा रही भृगु ने आप देखा ना ताप उसकी छाती पर पाम जमा दिया उसकी छाती पर प्रहार किया पैर से और इतना गहरा प्रहार किया बहुत बड़ी आवाज आई जैसे कोई चीज टूटी हो इतना खटका योग निद्रा खुली विष्णु के विष्णु ने देखा प्रभु है उठे और उसके पांव पकड़ लिए हे ब्रह्मदेव मेरी छाती वजर सी कठोर है और ब्रह्मदेव आपके पांव कमल से कोमल कहीं चोट तो नहीं आई प्रभु नतमस्तक हो गए चरणों में पड़कर खूब रोया लेकिन वहां बैठी लक्ष्मी बर्दाश्त ना कर सके लक्ष्मी कुपित हो गई क्रोधित हो गई आंखें लाल कर ली बोली प्रभु तुमने मेरे सामने मेरे पति का अपमान करके ठीक नहीं किया अतः तुम्हे श्राप देती हूं कि मैं तुम्हारे वंशजों के पास ठहर की नहीं मेरा निवास नहीं होगा तुम्हारे वंशजों के पास आऊंगी चली जाऊंगी बस तो ब्रग बोले लक्ष्मी से माते तुम्हारा अभिशाप सिर माथे लेकिन गुमान मत करना मैं ऐसे ग्रंथ का निर्माण करूंगा मैया कि उस ग्रंथ का अगर एक पन्ना भी किसी के पास होगा या उस ग्रंथ की एक शब्दावली भी उसके पास होगी जहन में तो उसके पाव चूमेगी तू ठहरने की बात करती है तो उसके पांव में पड़ी रहेगी वो तुम झटके और इसमें तुम अपमान नहीं मानेगी तो उसके पांव को पकड़े रहेगी मैं ऐसे ग्रंथ का निर्माण करूंगा और उसने लिखा भृगु संगिता खैर शास्त्र की बातें हैं इनमें कुछ गहरी रस है वक्त इतना होता नहीं जितने से आप समझ जाओ उतना ही काफी बस उतना ही बोलना उचित होता है विष्णु का कैसा रिएक्शन हे ब्रह्मदेव मेरी छाती वजर कठोर आपके पाव कमल से कोमल अवश्य ही चोट आई होगी बताइए दबा दू मुझे लोग कह देते हैं आप नाम अक्षरों का जाप करने वालों को बड़े प्रताड़ित करते हैं मैंने कहा नहीं आप समझने में गलती कर देते हो नाम जाप करने वालों को मैं प्रताड़ित नहीं करता तुम समझते गलत हो तुम कहते हो अच्छा बसड़ी डाली इसके नहीं ऐसा मैंने मेरी मंशा नहीं होती कारण तो समझ नहीं पाते जरा एक बात का जवाब देना अगर एमए को पढ़ाने वाला एमए के छात्रों को पढ़ाने वाला व्यक्ति प्रथम कक्षा को पढ़ाने वाले टीचर की बेज्जती करेगा पीएचडी को पढ़ाने वाला प्रोफेसर [संगीत] लेक्चरर क्या प्रथम श्रेणी के छात्रों को पढ़ाने वाले शिक्षक की बेइज्जती करेगा तुम्हारे दिमाग में उत्तर जरूर गया होगा नहीं करेगा वह उसे प्रणाम करेगा इसलिए जो मैं सबसे पहले प्रणाम करता हूं और उन लोगों को करता हूं जिनकी भावनाएं क्षीण हो जाएंगी टूट जाएंगी भावनाएं उनकी लेकिन मेरी दृष्टि में वह इतने मूर्ख नहीं है कुछ तो समझ होती है उनमें भी प्रथम श्रेणी का शिक्षक अगर बच्चे को सिखाएगा नहीं अनार होता है तो दशम कक्षा का शिक्षक यह कैसे बता पाएगा कि सिर्फ अनार का नहीं होता सभी चीजों का होता है जिनकी शुरुआत ऐसे होती है मेरे कहने का तात्पर्य आप नहीं समझते और फिर अगर उनकी भावनाओ को चोट लगती है तो सबसे पहले मैं आपसे क्षमा याचना करता हूं मैं पहले सिर नवा लेता हूं देखिए बोल रहा हूं बोलने से बहुत कुछ गलत भी होगा मैं उन जीवों को भी प्रणाम करता हूं जो मेरी जीवा की तली आके कुचले जाएंगे बड़े सूक्ष्म बैक्टीरिया है और मैं अच्छी तरह से जानता हूं मेरे बोलने से मेरी जीवा की उलट पलट उनके ऊपर ऐसा आघात करेगी जैसे सुमेरू पर्वत गिर गया हो और उनसे प्रथम ही क्षमा याचना कर लेता हूं यह अस्तित्व से क्षमा का भाव है बड़े मजे की बात है तुलसी असुरों को भी प्रणाम करते हैं अगर वो बाध डालेंगे तो यह कथा संपूर्ण ना हो सकेगी इसलिए आप कृपा बनाए रखें आप बाधा मत डाल बड़ी कक्षाओं को बढ़ाने वाला शिक्षक छोटी कक्षाओं को सर्वप्रथम प्रणाम करेगा अगर यह शिक्षक ना होते तो आज मैं पढ़ा ना पाता अनार होता है यह सीखना आवश्यक तभी तो आज कह पाऊंगा अनार का नहीं होता सिर्फ लेकिन टीचर अच्छी तरह जानता है कि अगर यह पढ़ेंगे नहीं कि अनार होता है तो मैं कंडम कैसे कर पाऊंगा लेकिन आप एक पक्ष को उठा लेते हैं ये आपकी भी मुश्किल है क्योंकि आपकी बुद्धि दोनों चीजों को समाहित नहीं कर पाती कसा इन लोगों को प्रथम प्रणाम करता हूं क्योंकि अगर यह जप की नीव ना डालते हैं तो मैं कैसे आगे कह पाता आगे की बात कहनी असंभव हो जाती है महर्ष नाम भृगु अह महर्षि हों में मैं भृगु उन्होंने कोई पार्शल नहीं की कि कह दिया हो कि ब्रह्मा जी सर्वश्रेष्ठ हैं क्योंकि मेरे पिता भृगु जी ब्रह्मा के मनुष पुत्र थे कृष्ण कहते हैं शब्दों में मैं एक अक्षर हूं अक्षरों में मैं एक अक्षर हूं एक अक्षर प्रणव ओंकार यज्ञ नाम जब यज्ञ यज्ञ नाम देखे उन्होंने यह नहीं कहा कि जपों में मैं राधे राधे हूं नहीं कहा उन्होंने कहा यज्ञों में जप यज्ञ आस्मा यज्ञ का मतलब होता है यज्ञ का अर्थ है आहूत हो जाना मिटा देना समर्पित हो जाना टू सरेंडर यज्ञ नाम जप यज्ञ असमा अब यहां बहुत से प्रश्न आए मेरे पास मैंने कहा वक्त आने दो वक्त के अनुसार ही के भेद खोलेंगे आज वक्त गया और कृष्ण के इसी शब्द का उदाहरण देते थे यज्ञ नाम जप यज्ञ उन्होंने यज्ञों में मैं जप यज्ञ हूं अगर भसम होना है राख होना है विभूति बनना है विभूतियों का जिक्र कर रहे हैं कृष्ण विभूति का अर्थ आप समझते हो यह प्रतीक चिन्ह जो हमारे बीच में छोड़ दिए गए उनका अर्थ हम समझ नहीं सके विभूति का अर्थ है वह भसम वह राख जो बच जाती है अग्नि के बीच में से गुजर के भी अग्नि उसको जला नहीं सकती लकड़ी को जला देती है सभी पदार्थों को सुगंधित द्रव्य जो आप डालते हो हवन सामग्री कपूर वगैरह घी वगैरह सबको जला देती है लेकिन फिर भी शेष बच जाता है क्या विभूत उसे नहीं जला पाते तो सनातन ने एक बहु बहुत सुंदर ऐसा प्रतीक चिन्ह उभारा उरा शिव के सभी अंगों के ऊपर विभूति लगी है जिसे आप राख कहते हो जलते हुए धुने के पास बैठे हैं जो शैव है वो जलते हुए धुने के पास फते लकड़ी का धुने जलता रहता है हर वक्त गर्मी हो सर्दी हो वैष्णव भी त्रिपुंड लगाते हैं किसका लगाते हैं विभूति का विभूति जाने राख इसका अर्थ था नहीं समझ पाए हम जब हम शब्दों को ठीक से नहीं समझ पाते तो सिंबॉलिक रिप्रेजेंटेशन को कहां समझ पाएंगे जब हम पानी को जल की तरह नहीं समझ पाते तो h2o की तरह कैसे समझ पाएंगे जब हम नमक को नमक की तरह स्वाद चक के नहीं समझ पाते तो एएल की तरह कब समझ पाएंगे लेकिन यह बचाने के लिए थी सब मिट जाएगा सिंबल नहीं मिटेंगे सिंपल देर तलक टिके रहते हैं लेकिन आज मूर्ख है महाकालेश्वर मंदिर के बाहर भिखारी बैठे हैं उनके अस्थि पिंजरे निकले हुए हैं खाने को रोटी नहीं उन्हे और सुगंधित द्रव्य और घी दुग्ध दही बिखेरा जा रहा है पत्थर के ऊपर इसे कहते हैं महाकालेश्वर मंदिर तुम्हारे दिमाग का बेजा सड़ गया है तुम अपने आप को सनातनी कहते हो इन सुगंधित द्रव्यों को ऐसे नष्ट करना चाहिए अगर ईश्वर ने प्रदान कर दिए आपको जो इनका काम उनसे बो लीजिए कोई हव में फूंक रहा है वृक्षों को काट रहा है जीवन को काट रहा है और यज्ञ कर रहा है शाबाश बहुत बढ़िया यज्ञ की प्रणाली है तुम्हारी वातावरण प्रदूषित होता रहे हम तो यज्ञ करेंगे करो परिणाम भी भगतो फिर 50 60 डिग्री का अगर टेंपरेचर होता है तो उसे सेहन करना सीखो और किसी दिन आग भी लग जाएगी किसी दिन यह ग्लेशियर बिगल जाएंगे क्योंकि 60 70 डिग्री के ऊपर ग्लेशियर बने नहीं रह सकते सब पिगल जाएंगे और तुम देख लेना यह ग्लेशियर ऐसा पिघले गे सिर्फ तुम्हारी मूर्ता के कारण तुमने जीवित पेड़ों को काटा और काटा उसका कागज बना लिया उसको जला दिया भसम बना दिया खाने को रोटी नहीं मिलती और तुम घी को पत्थर के ऊपर लुकाए जाते हो और ऐसी शांति होती है इन लोगों के चेहरों पर हृदय सड़े होते हैं चेहरे पर बड़ा पुण्य का भाव होता है इससे बड़ा पाप कोई नहीं हो सकता जो चीज जिस चीज के लिए बनी उसी जगह के ऊपर उसका इस्तेमाल करना ही ठीक है यह परमात्मा ने तुम्हारे लिए बनाया तुमने नहीं बनाया तुमने तो सिर्फ फूंका फूंक तो ठीक ढंग से देते किसी गरीब को खिला देते यह अस्थि पिंजर से जकड़े हुए लोग तुम्हारे मंदिरों के बाहर बैठे तुम्हें तरस नहीं आता तो तुम्हारी सब शरार तों का परिणाम है और ध्यान रखना यह तो भुगत रहे हैं तुम भुगतो मैं आविष में नहीं हू मैं आवेग में भी नहीं हूं मैं सिर्फ सत्य वचन बोल रहा और सत्य वचन बड़ा कटुआ होता है कड़वे लेकिन शांति प्रदायक भीतर उनके शांति छुपी होती है होते हैं कड़वे तुम्हें लगेंगे कड़वे बाहर से लेकिन भीतर इनके परिणाम बड़े शुभ होंगे फिर तुम कहते हो हाय 60 डिग्री हो जाएगा हा हाय 70 हो जाएगा हो जाएगा भाई बिल्कुल हो जाएगा और यह सभी तुम्हारे जिनके ऊपर तुम सम्मान करते हो गंगा गंगा माता एक दिन विलीन होने वाली है एक दिन तुम्हारी यह सभी माताएं विलीन हो जाएंगी वाष्प बन जाएंगी हवा में उठ जाएंगी अगर ऐसे ही पागल बने रहे तो ऐसा ही कुछ हर होने को है वक्त रहते चेत जाओ लेकिन अब तो मेरी दृष्टि में वक्त इतना बचा भी नहीं अभी ही चेतना होगा बहुत भटक लिए पागलपन से बहुत उछल कूद लिए अब बाज जाओ सही रास्ते जाओ लेकिन नहीं ये चले जाएंगे मेरी आवाज इन तक पहुंचेगी नहीं मैं जानता हूं क्योंकि मेरे पास मीडिया नहीं मीडिया तो गलत बातों को मिनट में सेकंड में प्रचारित कर देता है और सही बातें वर्षों वर्षों तक माटी के नीचे दफन रह जाती हैं पता नहीं मेरी बात इन मूर्खों तक पहुंचेगी नहीं पहुंचेगी संभावना ज्यादा है कि नहीं पहुंचेगी मैंने तो बोल दिया मैं कहता हूं यह मूर्खता मत करो या सिद्ध करो कुछ तो करो साइंटिस्ट कोई बात कहता है फिर उसे सिद्ध करता है कि ये ऐसा है तुम सिद्ध भी नहीं कर पाते कैसे घी डालने से कैसे चंदन युक्त घी डालने से कैसे सुगंधित पदार्थों को पत्थर के ऊपर डाल देने से तुम मुक्त हो जाओगे तुम्हें पुण्य लगेगा यह तो बहुत बड़ा अनर्थ है यह तो बहुत बड़ा पाप है मैं इन जोड़ने वाले तथा कथित अमीर लोगों से कहूंगा तुम्हें तब तक चैन नहीं मिलेगा जब तक कोई भी भूखा भूख से मर जाता है तुम सोओगे तुम्हें पता भी नहीं होगा कि जो द्रव्य तुमने छीन के अपने ट्रंक भर लिए हैं उनसे जो मरेंगे उनका दोष और पाप आपके सिर के ऊपर जाएगा तुम्हें पता ही नहीं क्योंकि तुम्हारे में इतनी बुद्धि नहीं इतना विवेक नहीं तो जोड़ते चले जाओ कोई इंकार नहीं बस मैं तो एक बात कहता हूं परिणाम भुगतने को तैयार रहो फिर मत कहना मेरे पास बहुत लोग आते हैं इस जन्म में तो बाबा जहां तक मेरी स्मृति काम करती है मैंने कोई पाप नहीं किया मैंने कहा तुमने कोई पाप नहीं किया तो फिर परमात्मा पागल हो गया है वह तो नयरी है वह दंड क्यों दे रहा है वह सच में दंड दे रहा है वह मूर्ख नहीं है इतनी सृष्टि का उत्पादन करने वाला सर्जन हारा ना मूर्ख है ना पागल है वह न्याय कारी है अगर तुम्हें दंड मिला है तो इस जन्म में नहीं इस घर में नहीं किसी और घर में करके गए हो गे शहर बदल लिया होगा घर बदल लिया होगा देश बदल लिया होगा और कुछ लोग तो ग्रह बदल लेते हैं लेकिन किया तुमने है देही के साथ चिपक जाता है उसका विधान बड़ा सूक्ष्म है और कल तक तो विज्ञान नहीं मानता था लेकिन आज तो मान शुरू हो गया जब से इलेक्ट्रॉन प्रोटोन न्यूट्रॉन की खोज हुई तब से सूक्ष्मता की महता जानने लगा विज्ञान भी उससे पहले इतनी नहीं जानता था और विज्ञान भी हतप्रभ है विज्ञान मारा मारा फिरता है जब से क्वांटम सिद्धांत का निर्माण हुआ है एक ही चीज कण की तरह और लहर की तरह व्यवहार करती है एज पार्टिकल एंड एज वेव एक ही चीज एक ही बार में क्या करोगे इसका कैसे सुलझाओ हैरान है भेजा खराब हो गया इनका और अभी तो कुछ भी नहीं खोजा राहतें और भी है वसल की राहत के सिवा और भी दुख हैं जमाने में मोहब्बत के सिवा अभी खोजा ही क्या बस सीना फैलाया है सिर्फ छोटी छोटी खोजें करके अल्बर्ट आइंस्टीन भी शायद कहते होंगे कि मैंने इक्वल टू एमसी स्क्वा ठीक बहुत बढ़िया सिद्धांत दिया लेकिन कोई तीर नहीं मार दिया अभी आज क्वांटम जैसे क्वांटम का पता लगा है सब सिस्ट धराशाई हो गए और अभी तो कुछ भी नहीं खोजा है नेगलिजिबल कहता हूं कुछ भी का मतलब नेगलिजिबल कुछ भी नहीं अभी बहुत खोजें पड़ी मैंने पिछले प्रवचनों में कहा था कि जैसे आज हम घर बैठे बिना तार के हमारे पास फोन आता है मोबाइल फोन ऐसे ही मोबाइल इलेक्ट्रिसिटी होगी ध्यान रखना मेरी बात को और आज मेरे चैनल कंट्रोल ने बताया कि आजय खोज हो चुकी है आज बिजली को सिर्फ ट्रांसमिट करके आपके घर में भेजा जा सकता है और कोई वक्त आएगा जब आप सह शरीर बिना दिखे दृश्य हो जाएंगे और किसी अन्य जगह पर प्रकट हो जाएंगे यह सब संभावनाएं अस्तित्व के भीतर परमात्मा की देन है तुमने खोजी नहीं बात अलग है वक्त आएगा जब शरीर क्या कहता हूं ध्यान से सुन लेना अगर मेरे शब्द तब तक सुरक्षित पड़े रहे तो वह लोग हैरान होंगे कि कैसे किसी व्यक्ति ने ऐसा कह दिया किसी दिन ऐसा वक्त आएगा जब व्यक्ति से शरीर गायब हो जाएगा और किसी और जगह पर प्रकट हो जाएगा तुम्हें पता ही नहीं अन्य ग्रहों से आती हुई रूह शरीर आती हैं पृथ्वी पर आती हैं अन्य ग्रहों पर जाती हैं मैंने तो यह कमाल अपनी आंखों से देखा है किसी दिन पृथ्वी के ऊपर भी कोई वैज्ञानिक इसे खोज लेगा और तब न्याय करना मुश्किल हो जाएगा एक जगह पर हुई और वह किसी और जगह पर फिर रहा है क्या करो जुडिशरी सारी फेल हो जाएगी वह कहेगा मैं तो यहां पर हूं देखो वहां कैसे गया एक ही चीज एक ही समय में दो प्रकार का व्यवहार कर रही है जस्ट एज पार्टिकल जस्ट एज पार्टिकल एज वेल एज एज वेव तो एक पदार्थ एक ही समय में दो स्थानों पर दृश्य क्यों नहीं हो सकता सब हो जाएगा वक्त आने दीजिए अभी तो सोचा ही क्या है तुमने अभी तो खोजा ही क्या है तुमने अभी तुमने कुछ नहीं खोजा तुम जिन्हें वैज्ञानिकों के गुण गाते रहते हो पश्चिम में अभी मुझे आज सुबह एक मैसेज आया क्या आप कहते हो कि इन्होंने हमारी सभ्यता को बर्बाद कर दिया सच तो यह है कि आपने हमारी पश्चिमी सभ्यता को बर्बाद कर दिया मैंने कहा नहीं आप गलत कहते हो पश्चिमी सभ्यता सभ्यता थी ही नहीं सभ्यता के नाम पर एक मूर्खता और कलंक था खोजा तो ऋषियों ने खोजा तुम सेंटिस्ट कह देते हो वैज्ञानिक कह देते हो हमने ऋषि कह देते हैं और हमारे खिताब है ऋषि हैं मह ऋषि हैं बड़े ऋषि देव ऋषि हैं देवताओं के ऋषि हमारे तो यहां खिताब है तुम्हारे डिग्री है तुम नोबेल दे देते हो तुम्हारी सभ्यता थी ही कहां चोरों की सभ्यता थी टैरिफ लगाने वालों की सभ्यता थी और क्या था भय दिखला वालों की सभ्यता थी फरंगी हों ने क्या नहीं किया यह तो एक सूरमा निकला हमारे सुनाम में से और उसने जनरल डायर को जाकर सरेआम गोली मार दी ऐसे हेमती लोग हैं हमारे भारत में तुम्हारे यहां नहीं तुम्हारे का लोग है तुम्हारी सभ्यता को हम क्या खराब करेंगे वैश्या को हम खराब कर सतीत्व को तो खराब किया जा सकता है वैश्या को क्या खराब किया जाता है तोम मूर्ख मत बनो मूर्ख बनाने की चेष्टा मत करो बए तो पहले से ही पतित होती हैं तुम तो पहले से ही पतित हो वीर की संरक्षण के बारे में बोला उसके कमेंट में जवाब आया कि तुमने हमारी सभ्यता को खराब कर दिया तुम मौज किए जाओ भाई और फिर तुमने सुना ही क्यों मुझे किसने कहा था मुझे सुनने के लिए मैं अपने लोगों के लिए बोल रहा हूं जो उस तत्व तक जाने की परम अं कक्षा रख ते हैं मैं उनके लिए बोल रहा हूं तुम्हारे लिए मैंने बोला ही नहीं तुम्हें प्रतिकार करने की आवश्यकता भी तो नहीं थी और मैं काले हमारी गुरुकुल पद्धति को ले गया और आज वो पुनः स्थापित नहीं हो सकता एक बार जो चेन टूट जाती है तो बिखर जाती है फिर उसको इकट्ठा करना मुश्किल हो जाता है मैं काले की यह सोच जरा बताना यह सच्ची सोच यह दुर्भाग्य पूर्ण विकृत सोच थी विकृत मानसिकता का सबूत तोड़ो और राज करो बांटो राज करो इनसे इनकी विशेषता छीन लो इनकी विशेषता है गुरुकुल कोई जला देता है हमारी नालंदा यूनिवर्सिटी को कोई विकृत कर देता है कोई प्रणाली ही हटा देता है हम मौज कर रहे थे हमारे ऋषि दिन भर रात आनंद में और आज देखो हमारे हिंदुस्तान का हाल देखो मुक्ति के लिए तरस रहे हैं मर जाते हैं मुक्ति नहीं मिलती हाल देखो हिंदुस्तान का आज यह सब तुम्हारी इजाद है तुमने खत्म कर दी हमारे ऋषियों ने जो व्यवस्था खोजी थी जो लागू की थी हजारों सालों से हम बड़े प्रेम से रह रहे थे तुमने सब विकृत कर दिया तुम्हारी मानसिक दूषा हमारे विद्वंस में कारगर सिद्ध हुई तुमने हमें गुलाम भी बनाया तुमने हमारे मानसिकता को भी छीना इतने शेर बहादुर यहां पैदा होते थे आज गुलाम पैदा होते हैं आज वह वक्त हो गया है दो दोस्त अगर आपस में मैंने ऐसा सबूत एक देखा है कुदरती मेरी निगाह में गया एक दोस्त दूसरे दोस्त को सहायता कर रहा है और वह गलत काम कर रहा है कभी जेल में फस जाता है कभी कुछ हो गया कोई कभी कुछ हो गया कभी जमा मानत के लिए उसे पैसा चाहिए वह बेचारा गरीब व्यक्ति पैसा देता है उसे और जब मांगता है तो वह कहता है मैंने तुमसे लेने इतना ही नहीं फिर उसे वह पुलिस स्टेशन गजता है वहां बाहुबल के जोर के ऊपर दबाने की कोशिश करता है और नहीं दबता जब वो तो फिर उसको कचहरी में ले जाता है कोर्ट में यह बात अलग है कि हमारी न्याय प्रणाली आज जनता है हार जाता है डेमे का केस आज भी चल रहा है और हद की बात है यह व्यक्ति मानने को तैयार नहीं कि हां मैंने देने यह बाजि है कि नहीं मैंने लेने हैं सबूत भी नहीं दे पाता इसका सगा भाई कहता है कि हां इसने देने हैं मेरे सामने यह मान रहा है इकट्ठे रहते हैं भाई अब क्या किया जाए कोई इलाज है कोई इलाज नहीं इलाज सिर्फ यह है कि इसके साथ मंडे हैं यह इलाज है जिसकी लाठी उसकी भैस लेकिन नहीं ऐसा होता नहीं यह तुम्हारे संसार में कभी कभार चल जाता है लेकिन उसकी उसके संसार में नहीं चलता एक शक्ति को हमेशा याद रखो दो आंखें हमेशा तुम्हें निहार रही तुम क्या कर रहे हो तुम क्या सोच रहे हो तुमने क्या प्लान की है दो आंखें तुम्हें हमेशा बाहर भीतर से झांक रहे हैं अगर तुम्हें नहीं पता तो यह गलती तुम्हारी जो जानते हैं वोह देखते हैं ऐसे ऐसे ढंग बनाए गए मैकाले हमारी शिक्षा पद्धति को विनाश कर गया कोई आके हमारे रंदा को आग लगा देता है महीनों तक वह आग जलती है और हमारे ऋषियों की खोजें विभूति बन जाती हैं हम प्रसंग पे जाए भगवान शंकर के लगी हुई विभूति आपको याद कराने के लिए है कि एक दिन यह तुम विभूति में तब्दील हो जाओगे राख बन जाओगे और यह आग का जलना धूने के सामने यह तुम्हें याद कराता है कि तुम्हारे सारे पदार्थ दूधू करके ऐसे जलेंगे कोई ना बच पाएगा राख बचेगी इसलिए भगवान शंकर राख लगा लेते हैं लेकिन तुम कुछ सीख नहीं सकते इन चीजों से तुम्हें सीख नहीं सकते तुम सीधी बातों से नहीं सीख सकते अलंकारों से कैसे सीख पाओगे प्रतीकों से कैसे सीख पाओगे आज प्रतीक व्यर्थ हो गए हैं इसलिए मैं कहता हूं प्रतीकों को आग लगा दो प्रतीक व्यर्थ है आज कोई सीधी बात सुनने को तैयार नहीं समझने को तैयार नहीं तुम्हारे प्रतीक कोई कैसे समझेगा इसलिए प्रतीकों को आग लगा दो प्रतीकों को मिटा दो और मैं यही काम कर रहा हूं तुम मुझे गालियां दो कोई बात नहीं तुम मुझे जो चाहे बोलो तो मुझे दंड दो तो मुझे मार दो कोई बात नहीं मैं तो सदा कहता हूं तुम ना मारोगे मौत मार देगी कौन बचा है कोई बचा है जिसको तुम कहते हो महावतार बाबा बच गया देखा है किसी ने क्यों पागल हुए हो कोई नहीं बचा यहां और कोई नहीं बचेगा भौतिक शरीर धारी कभी नहीं बचता थोड़ी सी लंबी उम्र हो सकती है बस इतना ही है और उसमें क्या करोगे अगर दुखद जिंदगी हो तो लंबी जिंदगी उतना ही नर्क बन जाएगी लंबी जिंदगी की उम्मीद मत करना सुंदर जिंदगी की मस्त जिंदगी की प्यार भरी जिंदगी की इच्छा करना कामना करना वो चाहे छोटी ही क्यों ना हो बड़ी जिंदगी नर्क से भरी हो मेरे पास लोग जाते हैं बाबा 20 साल से तड़प रही है मेरी मैया कोई इलाज कर दो कह तो सकते नहीं कि कह दो भगवान से इसे मार दे तो मैं पूछ लेता हूं मैं कह दूं कि इससे मार दे राम राम राम राम ये तो क्या कहना मैं और क्या कहूं बताओ ऐसे कह दो शब्दों का हेरफेर देखो ऐसे कह दो इसे कष्ट से मुक्ति दिला दो कहने का ढंग है तुम उल्टे पल्टे कह के यही कह रहे हो कि इसको मार दो और क्या कहूं मुझे तो सीधा ही कहना पड़ेगा कि भगवान उसको मार दो तुम शब्दों के खिलाड़ी हो शब्दों से चिपके पड़े हो महर्ष नाम प्रगर अमा जप यज्ञ अमा यज्ञों में जब यज्ञ अस्मा यज्ञ का मतलब है आहूत हो जाना और वह मंजिल जिसकी तलाश आपको है आहूत हुए बिना मिलती नहीं और कृष्ण का एक एक अल्फाज आपको आहूत करने के लिए वचन बध है प्रतिबद्ध है कृष्ण आपको आहूत करना चाहते हैं कुछ भी बोल दे अनन्या शत तो माम जना पर इसमें आपको आहूत करने का ही विचार आएगा सर्व ध्र माण प्रत माम कम शरणम प्र शरण में आजा यानी आहत हो जा इसे यज्ञ कहते हैं जिसे आप बली कहते हो इसको कृष्ण यज्ञ कहते हैं जग में होता क्या है जरा सोच के बताओ जग में कुछ चीजों को हम आहूत करते हैं राख में तब्दील कर देते हैं मिट जाते हैं उन भौतिक पदार्थों को विनट करने का नाम यज्ञ है या कुछ और है तो बता दो यज्ञों में मैं जप यज्ञ हूं आहूत करना है अपने आप को कृष्ण का यह लक्ष्य है जिस कारण से तू डर रहा है दैट इज इल्यूजन वो भ्रम है और इस भ्रम को नष्ट करना है कृष्ण चोट करते हैं बुनियाद पर फाउंडेशन पर तुम्हें पता भी नहीं चलता तुम शब्दों से उल जाते हो मैं बार-बार कहता हूं यज्ञ नाम जपो यक्ष यज्ञों में आहूत होने में जप यज्ञ असमा मैं जप यज्ञ हूं तुम भस्म हो जाओ तुम मिटो कहां पहुंचो जब मिट जा तो वहां पहुंचो जहां जप हो रहा है तुम जप करने लग जाते हो यही तो मैं रोज कहता हूं कोई पांच नाम करने कोई दो नाम कर रहा कोई चार नाम कोई हजार नाम कोई एक नाम कर रहा भगवान कृष्ण के पीछे लग कि मैं तो एक अक्षर ओम हूं तोव ओम का जाप शुरू कर देते हैं तुमने हर जगह समझने में गलती खाई कृष्ण के शब्दों को ही पकड़ लिया और नहीं भाव देखो क्या कहते हैं कृष्ण कृष्ण कहते हैं अगर आहूत होना है अपनी विभूतियों को गिना रहे हैं वह आहूत होना है तो सबसे श्रेष्ठ क्या है मुझ में समा जाओ सम होके यज्ञ का अर्थ है समर्पित होना भस्मी भूत हो जाओ कहां पहुंच जाओगे वाजे नाद अनेक अंखा कीते वावन हार मस्जिद को जोड़ा डरिया जा ठाकर दे डेरे बढिया ठाकर को ठाकर जहां जिथे वदे नाद हजार नम नमी बर जहां पर हजारों प्रकार के वाद यंत्र बज रहे हैं मस्ती ही मस्ती है आनंद ही आनत खुमारी ही खुमारी है उसकी शोभा वर्ण ना जाए नहीं वर्णन में नहीं सकती वहां पहुंच जाओगे लेकिन पहुंचो कैसे यह भी तरीका है लेकिन कोई क्या करे अगर तुम तरीकों को अड़चनों की तरह बना लो तो तुम मार्गों की को अड़चनों की तरह बना लेते हो तो कोई क्या करे कृष्ण क्या करे कृष्ण आज तो है नहीं आज का कृष्ण ही तोड़ेगा तुम्हारे भ्रमों को और फिर नए नए कृष्ण पैदा हो जाते हैं आओ आचार्य का संग हो गीता के रंग हो भगवान कृष्ण की वाणी से जुड़ जाओ बस महीने के इतने पसे यह ऑनलाइन क्लासों वालों ने बेड़ा गर्क कर दिया किसी को पता नहीं चलता पैसे देने पड़ते हैं संतों के कानों में बात ना पड़ जाए इसलिए जो पीसे देगा वह सुनो और पैसे देने वाला बुद्धू होता है समदर तुम में पैसे क्यों देगा जो जानता ही है वो पैसे क्यों देगा मढ़ता तो अपने के लिए बस सुंदर अल्फाज हैं आचार्य का संग हो गीता के रंग हो भगवान कृष्ण का विभूति पात आइए आचार्य के संग समझे जीने का ढंग जीने का ढंग तो तुम्हें नहीं आता आचार्य जी पैसे इकट्ठे करने का का ढंग आता है जीने का ढंग किसे आया आपसे बड़े से बड़े महारथ सेठ को जीने का ढंग आया नहीं आया इसलिए तो इकट्ठा कर रहे हो नहीं आया इसलिए तो बड़ी गद्दिया ढूंढ रहे हो नहीं आया इसीलिए तो मान सम्मान ढूंढ रहे हो अगर जीने का ढंग तुम्हें जाता तो यह सब कूड़ा कचरा क्यों इकट्ठा करते कूड़ा कचरा इकट्ठे करने का कारण ही यह है कि तुम्हें जीने का ढंग नहीं आया सलीका आया ही नहीं कितने ही संत आए कितनों ने कितनी कितनी बातें की तुम समझे कहां तुम्हें जीने का ढंग नहीं आया तुम रोते के रोते ही रहे यज्ञों में में जब यज्ञ यज्ञ का मतलब आहूत होना अगर आहूत होने के जरिए बहुत से तरीके हैं उस तक पहुंचने के और बहुत से तरीकों से लोग वहां पहुंचे जैसे मैं हमेशा ही स्फीयर की बात करता हूं सर्कल में आपने देखा केंद्र से प्रकार लेकर हम सर्कल खींच दे एक गोला तो वह केंद्र परिधि से हर क्षेत्र से जुड़ा रहेगा अनेको डायमेंशन होंगे परिधि से केंद्र पर आने के और केंद्र से परिधि पर जाने के बहुत से तरीके हैं सबने अलग-अलग तरीके आजमाए और सभी के तरीके अलग अलग हैं लेकिन सभी पहुंचे केंद्र के पास यह जो लड़ाइयां हो रही हैं यह केंद्र पर पहुंचे हुए लोगों की नहीं है यह सफिर पर बैठे हुए लोगों की है ये जो मतभेद है ईश्वर अल्लाह रे नाम है कि नहीं है यह मतभेद स्फीयर पर बैठे हुए लोगों के हैं जो परिधि पर बैठे हैं केंद्र पर जो पहुंच गया तो मोहम्मद भी एक और राम भी एक और कृष्ण भी एक मीरा भी एक और रूबिया भी एक वहां कोई फर्क नहीं सब भेड़ जहा मिट वो केंद्र है सभी वेद जहां उजागर हो जाते हैं वह परिधि है तुम परिधि पर बैठे बैठे लड़ते हो केंद्र का तुम्हें कोई पता नहीं केंद्र का स्वाद तुमने कभी चखा नहीं केंद्र पर पहुंचो लफ्जों की गुफ्तगू गु में मत उलझो शास्त्रार्थ में मत उलझो चलो वक्त जाया मत करो चलना सीखो केंद्र की तरफ उन्मुख हो जाओ जहां भी बैठे हो मुझे लोग कहते हैं बाबा आपके पास आना चाहते हैं मैंने कहा क्यों आपके अल्फाज अच्छे लगते हैं मैंने कहा जहां बैठे हो वहां चुप कर एक व्यक्ति सारी धरती को मुक्त नहीं कर सकता और एक व्यक्ति की बात सभी धरती के मनुष्यों की प्रवृत्ति से मिलेगी नहीं सभी की प्रवृत्तियां रग लग है कैसे तादात में बना पाएगा एक व्यक्ति सभी के साथ कोई तो नास्तिक है उसने खोजा नहीं कोई तो छीन लेना चाहता है चारवा की तरह ऋणम कृत्वा गतम भसम भूत से देह से पुनर आगमनम कुत लो और घी पी लो मुकर जाओ और अदालत में कह दो मैंने लेने हैं यहां तो मांगने वाला कोई है ही नहीं वह कहते हैं शरीर जिसने लिया था मिट जाएगा बसम हो जाएगा और शरीर जिसने दिया वह भी मिट जाएगा ना ऋण लेने वाला बचेगा ना ऋण देने वाले बचेगा इसलिए उधार उठाओ ऋणम कृत्वा गतम पीवे घी पीलो शुक्र है उस वक्त दारू नहीं थी नहीं तो चार वाक्य यही लिखते ऋणम कवा दारू पीवे ठेके जावे मस्त होवे नाली पड़े हा यही बोलते है हद है तुम्हारे लोगों की क्योंकि ना ऋण देने वाला बचेगा यह तथ्य तो है सत्य तो है लेकिन सत्य का दुरुपयोग करने वाले लोग इस तरह करते हैं किस किस के साथ बगा तुम सभी आकर यहां बैठ जाओगे पहली बात तो यहां जगह नहीं यह संसार किस लिए बनाया इतना विशाल सभी अपनी जगहो पर टिके रहो जो जिसको मानता है मानते रहो लेकिन श्रावत होकर मानते रहो श्रद्धा पहुंचाएगी आपको गुरु नहीं पहुंचाएगा आपको श्रद्धा पहुंचाएगी श्रद्धा विश्वास रूप या ब्याम बिना ना पसंती आपकी श्रद्धा गुरु महत्व कर देता है बस गुरु और कोई काम नहीं करता गुरु का एक ही काम है तुम्हारी श्रद्धा को महत कर दे बृहत कर दे बढ़ा दे उस तल तक ले जाए जहां से बस एक कदम आपने जंपिंग की और अब वहां पहुंच तो जहां है टिके रहो कोई और भी धर्म पैदा हो जाए 10050 तो वहां भी टिके रहना क्योंकि पुराने सब चले जाते हैं नए नए जाते हैं लेकिन घबराना मत जो नए नए जाए वहां भी टके रहना वह झूठ बोले वोह सत्य बोले लेकिन तुम्हें अगर श्रद्धा है तो धन्ना भी पहुंच जाते उस पत्थर से जिसमें जीवन नहीं होता बात धन्य की काबिलियत की है बात यह नहीं कि पत्थर जड़ है चेतन नहीं है बात यह है कि धन्ना परिपूर्ण समर्पित है बरा बच्ची थी कृष्ण की मूर्ति लेकर सोती थी समर्पित और अगर सपने में भी रात को सोए पड़े भी उसके कृष्ण भगवान की मूर्ति को छीन लेता तो उसके जाग जाती फौरन सिर लाने लगती लाओ मेरे भगवान लाओ मेरे पति बचपन में ही अपना पति उसने कृष्ण को मान लिया था उस छोटे से गुड्डे को साथ लेकर सोती और तुम उसे छीन नहीं सकते थे यह मान्यता बड़ी जाकर रंग खिला गई श्रद्धा बढ़ती ही गई बढ़ती ही गई बढ़ती गई और एक वक्त ऐसा गया जब श्रद्धा इतनी महत हो गई कि छलांग लग गए लेकिन बात तो यह है कि तुम श्रद्धा को नहीं बढ़ाते तुम तर्क को बढ़ाते हो साइंस ने एक नुकसान भी किया है एक फायदा भी किया है फायदा यह किया है कि आपके शरीर को आराम नुकसान यह किया कि आपकी श्रद्धा को विलीन किया श्रद्धा कमजोर हो गई तर्क को बढ़ावा दिया सुविधा को और सुख को भी बढ़ावा दिया और तर्क को और तार्किक शक्ति को भी बढ़ावा दिया यह नुकसान कर गई इसलिए पहले आराम से व्यक्ति बैठता और अपने भीतर उतर जाता है जब जरा गर्दन झुकाई देख ले इतना आसान था उस आनंद में खो जाना जब जरा गर्दन झुकाई देख ली दिल के आईने में थी तस्वीरे यार वह भी जमाना था आज यह भी जमाना है कि तुम खोज रहे हो निर्जीव शस्त्रों में जो शास्त्र बोलते नहीं उनको सिर पर उठाए जाते हो वो खुद बोल नहीं सते खुद चल नहीं सकते तुम्हें ढोने पड़ते हैं और तुम उनसे जवाब मांगते हो जीवन के निर्जीव से तुम जीवन के सवाल मांगते हो जवाब मांगते हो कैसे देगा वह जवाब हा एक ढंग है तुम्हारी श्रद्धा रोज बढ़ती जाए और एक दिन वो तुम्हारी जी जान बन जाए बढ़ती जाए बढ़ती जाए बढ़ती जाए और श्रद्धा आपको उसके करीब लेती जाएगी करीब और करीब आप तो नजदीक से नजदीक तर आते गए आप तो नजदीक से नजदीक तर आते गए पहले दिल फिर दिल रुबा फिर दिल के मेहमा हो गए रफता रफता वो मेरी हस्ती का सामा हो पहले दिल फिर दिल रोबा फिर दिल के महमा हो गए एक दिन एकाकार हो जाओगे यह श्रद्धा आपको ऐसे लेकर जाएगी श्रद्धा विश्वास रूपन जा ब्याम बिना ना पश्ते लेकिन श्रद्धा की बजाय आजकल तर्क ज्यादा है मुझे रोज बेचारे प्रश्न जाते हैं बेचारे प्रश्न कहता हूं उनको कैवल की प्राप्ति के बाद बाबा फिर समझाइए का जरा पूर्ण विश्लेषण से कि क्या कुछ होता है इन्होंने एक वीडियो भी नहीं सुनी होगी मेरी आज ही आए हैं चैनल के ऊपर और पहला प्रवचन सुना होगा और जाने कितना कूड़ा कबाड़ा चल रहा है सारा फेंकें मेरे ऊपर तो मैंने लिख दिया कि ईज वयो आप उनको सुनो आपकी हर बात का जवाब मिलेगा अगर कुछ रह गया हो तो फिर पूछ लो दो बार एक बात को अब नहीं बोलूंगा पहले बार बोल चुका पहले बार बोलने से आप उब गए अब फिर बोलू वही बातें बोलू नहीं आप सुनिए उनको जाके सुनोगे तो समझ जाएगा यह उठे हुए तर्क मेरे शब्दों के वाण नों को काट देंगे तुम्हारे तर्कों को और श्रद्धा उपजे गी श्रद्धा रोज बढ़ती जाए श्रद्धा रोज बढ़ती जाए और आप जैसे जैसे श्रद्धा यह पैमाना है जैसे जैसे श्रद्धा बढ़ेगी आप उसके करीब आते जाओगे आप तो नजदीक से नजदीक तर आते गए नजदीक से नजदीक तर आते गए पहले दिल फिर दिल रुपा फिर दिल के मेहमा हो गए फिर एक दिन तुम उसके मेहमान हो जाओगे वही हो जाओगे जहां कह सको अनल हक अनल हक अहम ब्रह्मस यह कहने का जिगरा शब्दों से नहीं होता शब्दों में इतनी जान कहां अनुभव में इतनी जान होती है अनुभव ललकार सकता है शब्द नहीं ललकार सकते हैं अनुभव कीजिए जैसे जैसे आप श्रद्धा वित होंगे जहां है बैठे रहे मत आइए मेरे पास इतने सालों की मेहनत बेकार करके मेरे पास आओगे जरा देखिए तो जहां बैठे हो वहां क्या रिजल्ट आता है परिणाम देखिए फिर उसके बागे निपटें क्या होगा जब से मिलता है जो तुम रेप करते हो इससे मिलता है एक अनुभव तो पक्का कर लीजिए भोग लीजिए देखिए भोग के मिलता है धन इकट्ठा कीजिए देखिए धन इकट्ठा करने से मिलता है सर्वोच्च पदवी पर बैठे रहिए और देखिए भोग केवन हुकम करने वाली पद वियों को इनसे मिलता है सूचनाओं को एकत्रित करने से मिलता है सारे जहान की सूचनाओं को एकत्रित कर लीजिए और देखिए इनसे सुख मिला उसके करीब आए अगर आइए अगर गए तो ठीक लेकिन नहीं आओगे संत जानता है इसलिए संत कहता है कि अगर थोड़ा सा कच्चा रास्ता रह गया तो उसको कच्चा मत रखना अच्छी तरह से भोग लेना भोगने मुक्त हो जागे तु क्योंकि भोग में दुख हैं दुख से वैराग्य उत्पन्न होता है वैराग से मुमुक्षा मुक्त होने की कैसे इन बियो कोड़ दू और मुमुक्षा से मुक्ति हो जाती है फि तुम एक दिन मुक्त हो जाओगे ऐसे चीनवा चलो तो मुक्त हो जाओगे जब जरा गर्दन झुकाई देख ले गर्दन झुकाना यानी श्रद्धा समर्पण कच्चा कच्चा समर्पण मत करो नकली नकली समर्पण ना करो यह प्लास्टिक के फूल तुम्हें कहीं नहीं लेकर जाएंगे महर्षि नाम रघु रहम महर्षि हों में मैं मघु हूं शब्दों में मैं एक अक्षर प्रणव हूं यज्ञों में मैं जब भी यज्ञ हूं खाक हो जाए राख हो जाए राख होकर देखिए जहां पहुंचो वहां जप हो रहा है तुम्हें करने की आवश्यकता नहीं जा ठक कर दे रे बड़ जिथे बते नाद हजार इश्क दे नम नम बहार जाप हो रहा है इसलिए भगवान कृष्ण ने कहा आसान से आसान रास्ता है जप यज्ञ यज्ञों में आहूत होने का सबसे सरल उपाय उसकी मर्जी पर छोड़ दो जो करता है करो हमारा यहां कुछ नहीं है और वास्तव तुम्हारा कुछ ना खंगाल के देख लो तुमने क्या बनाया तुमने सिर्फ कमाया और कमाया हुआ अपना नहीं होता बनाया हुआ अपना होता है जा करता सृष्टि को साझ आप जाने सोई जिसने सृजन किया है इस सृजना का सृष्टि का वही मालिक है असली तुमने कमाया कमाने का अर्थ छीना छुटी अमीर गरीबों की जेब में से छीन लेते हैं अमीर हो जा जाते उन्होंने बनाया थोड़ी उन्होंने कमाया है और कमाना तो गलत तरीकों से भी हो सकता है इसलिए मैंने बहुत कहा पहले भी अमावस्या की रात को लक्ष्मी आती है काले काले दं से आती है उल्लू की सवारी आती है उल्लू के पास होती है समझदार के पास तो सरस्वती आती है उल्लू के पास लक्ष्मी आती है इसलिए धनपति सारे उल्लू हैं ऐसा मत करो धनपति सारे उल्लू है क्योंकि उल्लू वाहनी की पूजा करते हैं उल्लू के ऊपर सवार लक्ष्मी की चाहत इनको भी उल्लू बना देती है यज्ञों में मैं जप यज्ञ हूं अगर आहूत ही होना है आहूत होने के जरि ही मिलेगा सभी रास्ते आहूत होने के हैं सभी रास्ते मैं कहता हूं जितने भी सफीर से केंद्र की तरफ जाते हैं सभी रास्ते तुम्हें मिटाने के हैं मिटा दे अपनी हस्ती को अगर कुछ मर्तबा चाहे कि दाना खाक में मिलकर गले गुलजार होता है नहीं उगेगा पेड़ नहीं लगेंगे फल अगर दाना अपने आप को खाक नहीं करेगा तो कृष्ण कहते हैं कि आह होने में यह सभी मार्ग आहुतियां के हैं 112 की 112 विद्या विज्ञान भैरव तंत्र की कैसे तुम आहूत हो जाओ कैसे तुम अपना वजूद खो दो और देखो बूंद को समुद्र होने के लिए अपना वजूद बूंद को अपना वजूद खोना होता है फिर ही समुद्र होती है एक तो खोना ही पड़ेगा एक होने के लिए बूंद खोना पड़ेगा समुद्र होने के लिए अब यह जिगरा तुम जुटा पाते हो या नहीं यह तुम्हारे पर डिपेंड करता है यह सहस तुम में है या नहीं यह तुम पर निर्भर करता है आहूत होनो में वह जो जप हो रहा है तुम्हारे भीतर सबसे श्रेष्ठ उपाय जय बताते हैं और बाबा नानक भी यही कहते छोड़ दे उसकी मर्जी तेरी खुद की कुछ मर्जी काम भी नहीं आएगी यह सरकम सेंसे बदलते चले जाएंगे तू कागजों के महल कागजों की किस्त से भव सागर पार करना चाहता है ना इन महलों में रह पाएगा ना इन कश्तियों से भव सागर पार कर पाएगा छोड़ दे असली कश्तियां ले असली महल बना ले जो तूफान में डोले नहीं और वह क्या है आहूत हो जा आहूत हो जा तो वहां चला जाएगा जहां लगातार जप हो रहा है यह ओंकार का नाज जो तुम्हें यहां भी सुनाई पड़ता है जिंगुर की तरह आवाज अलग अलग थोड़ी सी फर्क पड़ सकता है सन्नाटे की आवाज तुम खेतो कल्यान में चले जाओ हर वक्त होती पाओगी रात को गहरी हो जाती है स्थर चीजों में मैं हिमालय हूं हिमालय बिल्कुल सत है जरा भी कंपन नहीं इशारा इशारों इशारों में बात करते हैं कृष्ण उसे हिमालय की बात करते हैं जो तुम्हारे भीतर डोलता नहीं एक अंश ऐसा भी है एक तत्व ऐसा भी है जो हिलता नहीं जो डोलता नहीं जो अकंपदम दंती शस्त्राणि मालय की बात करते हैं जहां तुम अड़ी खड़े रहते हो अन चेंज बिना परिवर्तन किए तुम में कोई परिवर्तन नहीं होता परिवर्तन पदार्थ में हो जाता है पानी कभी वाष्प बन जाएगा कभी ठोस बन जाएगा लेकिन तुम वैसे के वैसे रहोगे साक्षी तुम्हारे भीतर का वो आनंद कभी डोलता नहीं उसको कोई आग नहीं मि तुम्हारा आनंद नहीं जलाया जा सकता शरीर जलाया जा सकता है भावनाएं जलाई जा सकती हैं और तुम भावनाओं के जलने से खुद जल जाते हो क्योंकि तुमने गलतफहमी पा ली है कि भावनाए मैं हूं तुमने गलतफहमी पा ली के शरीर में हूं इसलिए तुम भी जल जाते हो लेकिन जब शरीर मुर्दा हो होता है तो तुम उफ भी नहीं करते तुम्हारे अपने ही उठाकर तुम्हें पटक देते हैं आग में और तुम उफ भी नहीं करते तुम नहीं कहते तुम मेरे दुश्मन हो तो सिथिर रहने वालों में हिमालय में हूं सर्वोच्च को गना रहे हैं कृष्ण उस तक पहुंच जा सर्वोच्च का सहारा लेकर पहुंच जा भावनाओं में सर्वोच्च क्या है समर्पण मिट जाना खाक हो जाना राख हो जाना विभूति हो जाना इसलिए कृष्ण इसलिए शंकर ने विभूति लगाई इसका मतलब यही था यह जो लकड़ी का खुंड जल रहा है इसमें जलो और यह जो धुने के अंदर बनी पड़ी है राख यह हो जाओगे यह तुम्हारा आश्चर्य है लेकिन तुम इन प्रतीकों से समझ नहीं पाते और शंकर इसको अंग पर लेपन करते हैं ताकि सबसे पहले तुम्हें यही दिखे सबसे पहले मृत्यु दिखे तुम्हें और इसलिए मृत्यु के देवता कहलाते हैं तुम एक दिन यह सत्य भी है सभी भस्म हो जाते हैं सभी हो जाएंगे जो आज है कल नहीं रहेंगे कल यही भसम हो जाएंगे बिना जाने भसम का लेपन करना मूर्खता है शंकर जानते हैं शिव जानते हैं के अंत में इस शरीर ने भसम हो जाना है कोई थोड़ी उम्र कोई ज्यादा उम्र कोई फर्क नहीं पड़ता सिथ रहने वालों में मैं हिमालय हूं खाक हो जाने में मैं समर्पण हूं आस्था हूं श्रद्धा हूं उस जप तक पहुंचने के लिए श्रद्धा काम करती है इसके अर्थ बड़े गलत लिए गए राधे राधे करते रहो करते रहो करते रहो कुछ मिल जाए तो हमें भी महर्षि हों में बरगु शब्दों में एक ओंकार बाबा नानक ने कहा एक ओंकार सतनाम प्रणव हूं ओंकार हूं सर्वश्रेष्ठ की बात करते हैं कृष्ण इसका मतलब यह नहीं कि वो निकृष्ट नहीं है निकृष्ट है प्रश्न जाते हैं निकृष्ट भी वो और बीच सबसे पहले जब शुरू करते हैं दशम अध्याय तो कृष्ण कहते ही यह बात हैं सभी अवस्थाओं में आदि भी मैं हूं मध्य भी मैं हूं और अंत भी मैं हूं तीनों चीजों का जिक्र करते हैं जब एक धागा पकड़ लिया तो मध्य कहां से अलग रह गया देखिए धागा इसके दो छोर है दोनों विपरीत है यह उत्तर में जाता यह दक्षिण में जाता लेकिन विरोधी हैं यह छोर और यह छोर विरोधी है नहीं अगर इनको सामूहिक रूप से डिफाइन किया जाए तो हम क्या कहेंगे एक धागा है उत्तर दक्षिण नहीं कहेंगे हम हम कहेंगे एक धागा है और बीच का जो मध्य का है वह इस उत्तर दक्षिण को जोड़ने वाला पुल है साधन मात्र है लेकिन तुम्हारी बुद्धि सबको भेद कर लेती है कृष्ण कहते हैं सब मिला हुआ है सारा अस्तित्व आसम में आपस में गुथ गुता है एक तंतु दूसरे के साथ जुड़ा हुआ है अगर जुड़ा ना होता तो तुम्हारे अंगूठे के चोट लगती और पता ना चलता चोट लगती है तुम्हारी आखिरी नीचे से नीचे अंगूठे पर और नींद सारे शरीर को नहीं आती क्या मसला है मसला है कि तुम भीतर से जुड़े हुए हो तो इस शरीर की बात छोड़ो कृष्ण अनंत अस्तित्व की बात करते हैं वह कहते हैं अस्तित्व ही जुड़ा हुआ है जब तुम पाप करते हो तो अस्तित्व दुखी होता है एक व्यक्ति दुखी नहीं होता समष्टि दुखी होती है इसलिए पाप करो भी मत पाप फैलाने वालों को प्रेरित करो कि पाप ना करो संति इसी लिए होते हैं पाप तुम तो रोक ही दो आज से ही क्योंकि पाप का फल दुख होता है और दुख तुम भुगतना नहीं चाहते भीतर से सब जुड़ा हुआ है चोट लगेगी पांव के अंगूठे को जो हाथ के अंगूठे को नींद सारे शरीर को नहीं आएगी क्योंकि भीतर से तुम जुड़े हुए हो अस्तित्व एक शरीर है इसका प्रत्येक प्रत्येक अंग जुड़ा हुआ है कृष्ण कहते हैं कि तुम खुद भी पाप करना छोड़ो सबसे पहले मैंने भी कहा घरों में शांति नहीं होती अक्सर प्रश्न जाते हैं मैंने कहा तुम आहूत हो जाओ सबसे पहले यू विल हैव टू सैक्रिफाइस फर्स्ट सबसे पहले तुम्हें त्याग करना होगा तुम तुम इच्छा रखते हो कि दूसरा झुके नहीं तुम झुको दूसरा झुक ही जाएगा जब तुम चरण पकड़ लोगे दूसरा अपनी गर्दन को ऊंचे ना रख पाएगा उसकी गर्दन का गुल्ला तुरंत गिर जाएगा तुम झुको तुम्हारे से शुरुआत होनी चाहिए दूसरा तो झुका ही हुआ है कृष्ण कहते हैं सब जुड़ा हुआ है आपस में यह अनंत सब जुड़ा हुआ है भीतर से सृष्टि में दुख मत फैलाओ सबसे पहले तुम पाप करना छोड़ो फिर दूसरे को प्रेरित करो दुखी उसकी सहायता करो उसको सुखी करो और प्रेरित करो पाप ना करे इसलिए मैंने कल भी कहा कि जेलों में जाकर जो गलती से किसी कारण से पाप कर बैठे और नियम के अधु अधीन आज जेलों में बंद है उनको प्रेरित करो कि आगे से ये काम मत करना अब जहां बैठे हो वहां कम से कम टिके रहो वहां शांति फैलाओ और जब बाहर जाओ तो भी शांति फलो यह गलती हो गई हो जाती है नस्ट वार लेकिन जब तुम बाहर जाओ फिर गलती मत करना और यहां बैठकर भी गलती मत करना तो जेलों में जाना चाहिए उन्हें बदलना चाहिए यह सुधार ग्र है कोई बिगड़ गया है किसी कारण वष वो अंग तो हमारा है कृष्ण कहते हैं सारा अखंड ब्रह्मांड मैं ही [संगीत] हूं वह तुम ही हो सब तुम हो अगर तुम्हारे पांच बच्चे हैं तो पांच में से एक बिगड़ गया उसको ठीक करो उसको ठीक करना तुम्हारी जिम्मेदारी है ना कि उसके साथ ले जाओ नहीं उसको ठीक करो इतना कोई भी विकृत नहीं होता कि ठीक करने से हो ना सब ठीक हो जाते हैं प्रेम के आगे अंगुली माल भी नतमस्तक हो जाता है जिसने 999999 उंगलियां काटी 999 सिर काटे एक सिर नहीं काट पाता वह सिर्फ बुद्ध के कारण बुद्ध उसे बदल देते हैं अगर कोई विकृत हो गया है तो तुम उसे मनाओ तुम देखो कि वह विकृत हुआ क्यों है उसका कारण खोजो और उसको ठीक करो हम किसी कारीगर के पास किसी मिस्त्री के पास जाते हैं तो वह देखता है इस कार का कौन सा पुर्जा खराब है जो सारी कार ने काम करना बंद कर दिया सारी गाड़ी चल नहीं रही वो उस पर्ज को बदल देता है हटा देता है और गाड़ी चलने लग जाती है फिर से सभी ठीक हैं कोई गलती कर बैठता है उसे क्षमा करना सीखो क्षमा वीरस भूषणम वीरों का आभूषण है क्षमा श्री कृष्ण गोविंद हरे मुरारी हे नाथ नारायण वासुदेवा श्री कृष्ण गो गोविंद हरे मुरारी हे नाथ नारायण वासुदेवा पितु मात स्वामी सखा हमारे पितु मात स्वामी सखा हमारे हे नाथ नारायण वासुदेवा श्री कृष्ण गोविंद हरे मुरारी हे नाथ नारायण वासुदेव मात [संगीत] स्वामी सखा हमारे पितु मात स्वामी सखा हमारे हमारे हमारे पितु मात स्वामी सखा हमार हे नाथ नारायण वासुदेव श्री कृष्ण गोविंद हरे मुरारी हे नाथ नारायण वासुदेवा श्री कृष्ण गोविंद हरे मुरारी हे नाथ नारायण वासुदेवा [संगीत] ओम धन्यवाद


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