क्या सिर्फ मानने से ही परमात्मा तक पहुँचा जा सकता है?अध्यात्म की शुरुआत कहाँ से करें?

 


अर्जुन कहते हैं हे भूते हे जगत पिता हे जगदीश हे भूत भवन हे देव देव हे पुरुषोत्तम आप अपने आप को अपने आप से ही जान सकते हैं दूसरा कोई आपको नहीं जान सकता हे देवाधि देव आप जो कुछ कह रहे हैं जो कुछ भी कह रहे हैं मैं उसे सत्य समझकर मानता हूं कृपा करके आप अपनी विभूतियों को सभी प्रकार की विभूतियों को पूर्ण व्याख्या करके बताने का कष्ट करें अर्जुन कहते हैं कि मैं आपको नहीं जान सकता अब खुद ही बताइए अपनी विशेषताओं को विभूतियों का अर्थ होता है विशेषताएं स्पेशलिटी अपनी विशेषताओं को आप स्वयं ही बताइए प्रकट कीजिए एक चित्रकार घर से निकला उसने एक ऐसी तस्वीर बनानी थी कि इस दुनिया में सबसे ज्यादा सुखी व्यक्ति कौन दो तीन साल तक उसने प्रयास किया आखिर में उसे सुखी व्यक्ति मिल गया वह जो जिसकी कोई इच्छा नहीं थी वह जो जिसके भीतर किसी तरह की कोई वासना नहीं थी उसका रुमा रुआ खुशी से नाच रहा था चित्रकार ने देखा कि यह उपयुक्त व्यक्ति है इसका चित्र बना लेना चाहिए उस चित्रकार ने उसका चित्र बनाया उसको सामने बैठा के उसका चित्र बनाया हूबहू उसका चित्र बनाया रुआ रुआ खींच दिया डाल दिया चित्र में और जब मूर्ति तैयार हुई तो जिसकी मूर्ति थी वह भी देखकर आश्चर्य चकित हुआ अचंभित हुआ इतनी सुंदर उसका रुआ रुआ महक रहा था चित्र के बीच में से हालांकि चेतना ना थी लेकिन चित्र भी महक रहा था चित्रकार बोला आज मेरी तमन्ना पूरी हुई मैं सबसे सुखी आदमी का चित्र बनाना चाहता था आज मुझे मिल गया तुम ही हो इस संसार के सबसे ज्यादा सुखी व्यक्ति जिस का चित्र था वह अपना ही चित्र देखकर हत प्रभ रह गया सेल्फ हिप्नोटाइज हो गया इतना सुंदर चित्र बा कमाल बनाया बड़ी प्रशंसा हुई बड़ी प्रतियां बिक सभी को सुंदर लगा और सभी ने अपनी घरों में लगा लिया वर्ष बीतते गए वक्त ढलता गया समय अपनी चाल चलता रहा वो चित्रकार फिर भी घूम रहा था किसी ने पूछा तुम्हारी तमन्ना पूरी हुई अब तुम क्यों भटक रहे हो चित्रकार बोला अब मुझे सबसे ज्यादा दुखी व्यक्ति की तलाश है इस संसार का सर्वश्रेष्ठ सुखी व्यक्ति मैंने खोज लिया और उसका चित्र बना दिया अब मुझे तलाश है जो सबसे ज्यादा दुखी व्यक्ति है इसी खोज में 30 वर्ष बीत गए जहां जाता सब व्यक्ति अपना दुखड़ा सुनाते हैं लेकिन उसके भीतर का कोई कोना कहता नहीं यह भी कुछ सुखी है सबसे ज्यादा दुखी तो यह नहीं है सबकी करुण गाथाएं उसने सुनी सबकी आत्म कथाएं उसने श्रवण की सबसे पूछा सभी ने कहा मैं दुखी हूं लेकिन चित्रकार को तसल्ली नहीं हुई चित्रकार बोला जब मेरी आत्मा पूर्ण मान जाएगी कि हां यह व्यक्ति सबसे ज्यादा दुखी तो मैं उसका चित्र बनाऊंगा तो किसी व्यक्ति ने उसे मशवरा दिया कि सबसे दुखी व्यक्ति तो आपको कारागृह में मिलेंगे क्योंकि उनके पास तो घूमने की आजादी तक भी नहीं वह तो बाहर भी नहीं निकल सकते इतनी भी आजादी नहीं और जिसकी आजादी हो गई हो उसके पास शेष कुछ भी हो वह बेकार हो जाता है आजादी सुख चैन सब छीन लेती है अगर चली जाए और आजादी अगर मिल जाए तो सुख चैन सब आ जाता है हमारे सनातन में इसी आजादी को मुक्ति कहा मुक्ति संबोध उन हथकड़ियों का टूट जाना उन बंधनों का नाश हो जाना जो हमारे ऊपर लद गए हैं और बड़े मजे की बात है यह बंधन किसी ने नहीं फेंके यह बंधन हमने खुद ही फेंके हैं अपने ऊपर हम खुद ही बंधे हैं अपने कारण बंधे हैं यहां अर्जुन वही बात कहता है हे प्रभु आपकी महिमा हे जगतपते हे विश्व देव हे भूत भावन हे भूते हे जगत पते हे जगता अधिपति आप स्वयं ही अपने स्वरूप को स्वयं से ही समझ सकते हैं कोई दूसरा नहीं इसलिए आप ही बताइए अपनी विभूतियों को कि आप में क्या श्रेष्ठता हैं आप में क्या विशेषताएं हैं क्या स्पेशलिटी है इस लोक में यही कुछ है तो मैं शायद यह श्लोक हल्का लगे लेकिन कृष्ण का कोई भी श्लोक हल्का नहीं किसी विशेष कारण से कृष्ण बोलते हैं अन्यथा चुप रह जाते हैं 30 वर्ष तक वह चित्रकार घूमा गली गली कूचा कूचा घर घर दरगाह मंदिर मस्जिद सब खंगाल दिए उसने कुष्ठ आश्रम सभी बुरी जगह है सभी अच्छी जगह है सबको दे कहीं नहीं मिला तो किसी ने कहा कि आप कार गृह में जाइए दुखी व्यक्ति तो वही मिलेंगे जिसकी आजादी छन गई वह सबसे ज्यादा दुखी चला गया एक एक से मिला एक कार्य गृह में एक कार्य ग्रह से दूसरे कार ग्रह में दूसरे से तीसरे कार ग्रह में अंत में एक कारागृह में एक व्यक्ति मिला उसे उसके चेहरे पर जाइयां थी जुया थी विकराल चेहरा था चेहरे से जैसे मवाद बह रहा हो कुरूपता निष्ठुर होता उसको देखकर ही घृणा आती थी बहुत से लोग ऐसे होते हैं जो कुछ ना भी कहे तो भी बड़े प्यारे लगते हैं पास से गुजर जाना ही काफी होता है एक सुगंधी फैला जाते हैं और बहुत से व्यक्ति ऐसे होते हैं जो कुछ ना कह और पास से गुजर जाए आपको दूषित कर जाते हैं भीतर से लासानी तरंगे निकल रही थी उस व्यक्ति के ये सब तरंगों का काम है जिसको मैं अक्सर व्याख्या किया करता हूं जो व्यक्ति जितना गहरा अपने भीतर उतरा उतनी आसानी तरंगों से भरा होगा उतना खुशहाल होगा उतना उसका जीवन सरल होगा सहज होगा वह कठिन नहीं होगा उलझा हुआ नहीं होगा वह सहज हो आप तो आश्चर्य होते हो इतना बड़ा आदमी इतना सरल बगीची को खोद रहा है फूल लगा रहा है नने नने पौधों को पानी दे रहा है हाथ में खुरपी है साधारण कुर्ता पायजामा बाल बिखरे पड़े हैं यह संसार का सबसे बड़ा अमीर व्यक्ति होगा आप सोच भी नहीं सकते वह सरल होगा उसकी चाल बड़ी कोमल होगी इसलिए हमने बुद्ध जैसे प्रिय व्यक्ति को नाम दिया तथा गत जैसे आए वैसे चले गए बहुत से लोग ऐसे होते हैं जो अपने होने की प्रेजेंस की अनुभूति आपको करवाते हैं देखो मैं हूं फोटो खींचो दुखी व्यक्तियों का लक्षण है फोटो खिंचवाने का शौकीन व्यक्ति अक्सर दुखी होता है तो मैं भीतर की बात बताता हूं लेकिन बुद्ध नहीं चाहते मेरी कोई फोटो खींचे और बुद्धि यह भी नहीं चाहते कोई न खींचे उनके भीतर कोई कामना ही नहीं तथ आगत जैसे आए वैसे चले गए हवा के झके की तरह कोई अपनी प्रेजेंस से महसूस करा के नहीं गया कि मैं हूं देखो मैं हूं ऐसा ही होता है निर अहंकारी व्यक्ति जो अपनी मौजूदगी को पता ना लगने दे जरा भी ना पता लगे पास से गुजर जाए और उसकी वनक भी ना पड़े दुखी व्यक्ति की यह पह कि वह अपने होने को बताएगा कि मैं हूं देखो मैं हूं और मैं यह कर रहा हूं वह जो छुपाने योग्य है वह छुपाए वह जो बताने योग्य है वह बताएगा असहज वह व्यक्ति लेकिन बुध सहज है बुध सरल है बुद्ध की चाल ढाल उस हंस की तरह है जिसके पग ध्वनि का जरा भी पता नहीं चलता निर अहंकारी व्यक्ति की यही पहचान होती है वो आते हैं और चले जाते हैं मैं अक्सर एक शब्द गुनगुनाया करता हूं अंग्रेजी के कवि अलेक्जेंडर पोप ने सॉलिट्यूड के अंदर लिखा लेट मी लिव अनसीन अननोन लेट मी लिव अनसीन अननोन एंड अनली मेंटेड लेट मी डाय स्टील फ्रॉम द वर्ल्ड एंड नॉट स्टोन टेल वेर आई ला मुझे ऐसा जीने दो कि मुझे कोई जाने ना मैं कौन अनसीन अननोन एंड अनलिमिटेड लेट मी डाय और जब मैं मर जाऊं तो कोई शौक ना करे कोई अफसोस ना करे यहां तो जिन्हें हम गुरु माता ही कहते हैं वह कहती कि मेरे मरने पर कम से कम दो करोड़ व्यक्ति तो मजा आ मरने का अहंकारी व्यक्ति के लक्षण है जो भीड़ चाहता है वह अहंकारी है जो एकांत चाहता है वह निर अहंकारी है जैसे जैसे तुम निर अहंकार होगे वैसे वैसे तुम अपने भीतर उतरो ग जिसको भीड़ अच्छी नहीं लगती जिसको अकेलापन सुहाता है जिसको अकेलेपन का रस आ गया सॉलिट्यूड एंड नली मट लेट मी डाय स्टल फ्रॉम द वर्ड नट टनल वेर आई लाय इस संसार से मैं चुरा लिया जाऊं और कोई पत्थर शिलालेख ना बताए कि मैं यहां दफन हू मैं ऐसे ज यह होता है जीना और मैं ऐसे मरू यह होता है मरना य व्यक्ति कैसा भी रहा हो लेकिन दूसरा परमात्मा का रूप था मैंने जाना नहीं इसे मैंने देखा नहीं बहुत पहले ये विदा हो गया लेकिन अपने होने की सुगंध छोड़ गया अगर ऐसे लोग धरती पर आ जाए तो धरती को पता ही ना चले और सारी धरती खुशबू से भर जाए अहंकारी व्यक्तियों के कारण के मैं हूं यह दुख और दर्द की लासानी तरंगों से भरा पड़ा है वातावरण बुध और अलेक्जेंडर पोप की तरह अगर व्यक्ति जन्म लेने लगे इस धरा पर तो इस धरती को पता ही ना चले कि दुख भी होता है उस चित्रकार ने दुखी व्यक्ति की खोज की आखिर में एक कारागृह में खोज लिया उसने उसके शरीर का रोआ रोआ दुख की गाथाओं का वर्णन कर रहा था उसके शरीर का रुआ रुआ बता रहा था मुख मंडल का निराश उखड़ा उखड़ा टूटा टूटा विकृत चेहरा उसके शरीर की मनोदशा कोड़ से ग्रस्त वह व्यक्ति खुजला रहा था अपने आप को और अपनी गाथा भी कह रहा था चित्रकार को बड़ा दर्द आया सच में दर्द आया उसके भीतर आवाज उठी कि यही है सबसे ज्यादा दुखी व्यक्ति बना लो इसका च उसने कहा आप मेरे सामने बैठोगे हां बैठ जाऊंगा किसी तरह यद्यपि बैठा नहीं जाता सारा शरीर कोड़ ग्रस्त है जहां कहीं बैठता हूं लेटता हूं उठना पड़ता है सारा शरीर दर्द से ग्रस्त है मवाद चो रही दुर्गंध फैर रही है उसके पास बैठना भी मुश्किल था चित्रकार ने कहा कोई बात नहीं तुम मेरे सामने थोड़ी देर बैठ जाओ मैं तुम्हारा चित्र बनाना चाहता हूं आज मेरी इच्छा पूर्ण हुई सामने बैठ गया वो हिलता रहा टलता रहा बैठा ना जाए ठीक से करवट ले ले पासा पलट ले थोड़ा उठक देख ले बैठ के देख ले बड़े पोशर बदले उसने चेहरा मोहरा बनाता रहा चित्रकार और आखिर में घंटा लग गया उसने सब बना दिया उसका रोआ रोवा बोल रहा था चित्र अपनी भाषा बोलने लगा चित्र अपनी भाषा कहने लगा सर्वाधिक दुखी व्यक्ति यही है संसार का और जब चित्र गाथाएं कहने लगे मुख होते हुए बोलने लगे वही होती है करामाता चित्रकारी की उसने चित्र को पूर्ण किया संतुष्ट हुआ गहरी स्वांस भरी पानी का गिलास पिया और वहां पर प्रहरी से बोला इसका नाम बताना क्या है उस प्रहरी ने उसका नाम बताया ई थॉमसन जब लिखने लगा उसकी कलम रुक गई यह तो नाम कुछ जाना पहचाना लगता है थॉमसन कुछ ऐसा लगता है जैसे इस व्यक्ति से मेरा परिचय हो उसके भाव बंग माओ को देखकर वह दुखी व्यक्ति बोला हां हां तुम जो सोच रहे हो वही है मैं वही सुखी व्यक्ति हूं जिसका तुमने चित्र बनाया था आज से 30 साल पहले संसार का सर्वोत्तम सुखी व और आज संसार का सर्वोत्तम दुखी व्यक्ति मैं ही हूं थॉमसन जिंदगी बड़ी जटिल है जितनी सरल समझते हो जिंदगी उतनी सरल है नहीं जीव से सहजता से जिंदगी है बड़ी जटिल लेकिन तुम इसे जटिलता से जिओ मत जियो तो सहजता से है ये जटल वही व्यक्ति जो परम सुखी होता है संसार का सबसे ज्यादा सुखी व्यक्ति 30 वर्ष में सबसे ज्यादा दुखी व्यक्ति हो जाता है उल्टा नाम जपे ते जाना वाल्मीक भय ब्रह्म समाना वह जो चोर वह डाकू वह हत्यारा व डटेरा एक क्षण में तब्दील होकर ब्रह्म ज्ञानी हो जाता है पलट जाता है सब कुछ यहां चीजें आपस में मिली हुई है तुम्हारी अलगाव बुद्धि तुम्हारी भेद बुद्धि उलट पुलट कर जाती है सब चीजों को यहां सब एक है सबसे दुखी व्यक्ति और सबसे सुखी व्यक्ति यही कृष्ण कहते हैं कि मैं ही हूं पाप भी मैं हूं पुण्य भी मैं हूं दुखी से दुखी भी मैं हूं सुखी से सुखी भी मैं हूं दुर्गंध भी में सुगंध भी में इतर की सुगंधी और मल मूत्र की दुर्गंधी दोनों ही में हूं लेकिन इन सबके बीच में एक संदेश दे जाते हैं जीने का कृष्ण कृष्ण कहते हूं तो मैं ही लेकिन तुम अपनी भेद बुद्धि से निर्णय करने की चेष्टा मत करना अपनी भेद बुद्धि को इस्तेमाल ना करना तुम सहज बने रहना तुम साक्षी बने रहना तुम्हें नहीं पता यहां चीजें कब बदल जाती हैं विपरीत में साधु कब असाधारण लगता है तुम्हें पता भी नहीं चलता लुटेरा कब ब्रह्म ज्ञानी हो जाता है कब हत्यारा अंगली माल ब्राह्मण हो जाता है ें पता नहीं चलता यहां सब संसार अनंत एजिस्ट हैंस आपस में गुथी हुई है यहां अलगाव है ही नहीं अलगाव दिखता है तुम्हारी बुद्धि को अलकाब है नहीं यहां एक दूसरे से गुता हुआ है सब कुछ यह अनंत ब्रह्मांड अगर गुता ना होता तो कब का विकीर्ण हो गया होता यह गुता हुआ है तभी ठहरा हुआ है जिस क्षण इसने गूथना छोड़ दिया उस क्षण यह विकीर्ण हो जाएगा ज खंड खंड हो जाएगा और फैल जाएगा नष्ट हो जाएगा ईश्वर की संरचना बड़ी विचित्र है यहां कब विपरीत में कन्वर्ट हो जाए कोई पता नहीं चलता इसलिए मान मत करना कि मैं सबसे सुखी हूं कौन जाने किस घड़ी वक्त का बदले मिजाज वक्त का मिजाज यहां देर नहीं लगती बदलते सब उलट पुलट हो जाता है वह जो राज कर रहा था वह भीख मांगने लगता है वह जो लोगों के ऊपर तानाशाह बनकर बैठा था आज जेल की दीवारों में बंद हो जाता है यहां कुछ नहीं पता होता जो लोगों को मारता है आज वह कल अपनी ही गोली से भस्मी भूत हो जाता है ऐसा ही हुआ हिटलर के साथ मुसोलिनी उसका गुरु था और मुसोलिनी भी यही कुछ करता था हिटलर से थोड़ा ज्यादा करता था वह आदमी को मारता बड़ा दर्द देता फिर मारता कई व्यक्तियों को दूसरों को दर्द देने में आनंद आता है कई व्यक्तियों को दूसरों को सुख देने में आनंद आता है बस इतना सा फर्क होता है कोई व्यक्ति सब होते हुए भी नम्रता से चलता है झुक के चलता है कोई व्यक्ति कुछ भी ना होते हुए अकड़ के चलता है य विडंबना है इस जगत की बड़ी से बड़ी विडंबना है गौर से देखें कृष्ण कहते हैं तुम्हारा यहां कुछ नहीं और तुम माने बैठे हो कि मेरा सब है और मृत्यु तुम्हारा भ्रम एक दिन तोड़ देती है को मान मत करना कि मैं सबसे दानी व्यक्ति हूं और दुखी भी मत होना कि मैं चोर हूं मैं डाकू हूं मैं लुटेरा पता नहीं वक्त का मजाज कब बदल जाएगा तुम उसकी सर्जना में क्षण भर के लिए आए हो उसका क्षण और तुम्हारे स साल बराबर बीत जाते हैं तुम्हें पता भी नहीं चलता टाइम का मेजरमेंट यहां कुछ और उसके घर कुछ और इसलिए जो अपने भीतर उतरे उन्होंने समय शून्यता पाई समय है नहीं ना वहां समय था ना वहां देह का अभ्यास था देह अध्यास खत्म और समय भी खत्म और जहां यह दोनों चीजें नहीं होती वहां जो होता है उसको आनंद कहते हैं सुख नहीं सुख का विपरीत तो दुख है जहां देह अध्यास नहीं और जहां समय का भान नहीं वहां आनंद होता है उस आनंद की तुम्हें तलाश है जन्मों जन्मों से बस वह आनंद नहीं मिलता तुम बटके भटके मारे मारे फिरते हो तुम्हे वो आनंद कोई दिखा नहीं सकता एक झलक मिल जाए उस आनंद की उसे ही सतोली कहते हैं सतोली की एक घटना मिल जाए बाबा नानक को मिली मोदी खाने में तोल रहे हैं 13 प आके उलज गए 12 तक सब ठीक चला लेकिन जब 13 आया तो अचानक ख्याल आया वह उतर गया तेरा तेरा तेरा तेरा मेरा कुछ नहीं तेरा ही तेरा और 131 में सारा मोदी खाना खत्म सतो की आज पहली जलक मिले सब लुट गया वहां से हटा दिया गया नौकरी छीन ली गई और बाबा नानक अपनी ही मौज में घूमते रहे साढ़े साल के बाद प्रबुद्ध हुए एलाइट वह दिया जिसकी तलाश थी वह मिल गया उसका दर्शन हो गया सब भ्रम खत्म हो गए सब संशय दूर हो गए इसलिए नानक कहते हैं तुम्हारा संशय मानने से दूर नहीं होगा तुम्हारा संशय दर्शन से दूर होगा मानने से शुरुआत तो हो जाती है आगाज तो अच्छा है अंजान अंजाम जानने से होता है मानना आगाज के लिए अच्छा शुरुआत के लिए अच्छा अंजाम के लिए अच्छा नहीं अंजाम के लिए दर्शन कृष्ण कहते हैं घोड़ों में मुझे समुद्र से निकले हुए उच्चय शरवा घोड़ा जान हाथियों में रावत जान वृक्षों में पीपल जान क्या कहना चाहते कृष्ण ऐसा क्यों कहते हैं कृष्ण कहते हैं अगर तुम अपने आप को शुद्र समझते हो तो इस गलतफहमी में मत रहो इस मेंटालिटी में मत रहो क्योंकि तुम्हारे भीतर मेरा विभूति का अंश भी है उसको तुम भूल गए तुमने चमड़ा देखा जो निकृष्ट है तुमने भावनाएं देखी जो थोड़ी सी उत्कृष्ट है लेकिन तुमने वह चेतना नहीं देखी जो सर्व उत्कृष्ट है कृष्ण का कुल मतलब इन चीजों में से कुछ अर्थ नहीं निकलेगा जहां जहां विभूतियों का जिक्र कर रहे हैं वहां वहां तुम्हें समझ कुछ नहीं आएगा इशारों से कभी कुछ समझ नहीं आया करता लेकिन इशारे बहुत कुछ समझा जाते हैं अगर इशारों की स्ट्रेट लाइन में देखा जाए तो इंद्रियों में श्रेष्ठ त मुझे मन जान और प्राणियों में श्रेष्ठ तो मुझे चेतना जान ये कृष्ण कहना चाहते हैं तुम्हें अपने को चमड़े की तरह मत जान अपने को शरीर के चमड़े की तरह मत जान इस चमड़े के भीतर भी एक चेतना है तो मुझे उसकी तरह जाना कृष्ण की प्रबल कक्षा है कि तुम निकृष्ट में ना ठहरो और हमारे तथाकथित पंडितों परो हितो ने पूरा जोर लगा लिया वे तुम्हें विश्वास दिला दे किसी तरह कि तुम नीच हो तुम शुद्र हो तुम स्त्री हो इसलिए त्याज हो ढोल गंवार शुद्र पशु नारी सकल ताड़ना के अधिकारी मूर्ख के शब्दों से मूर्खता का पता चल जाता है तुम कितने भी मेकअप कर लो लेकिन तुम्हारे कृत्यों से तुम्हारे मेकअप का पता चल जाएगा कि चेहरा सही नहीं मैं अक्सर किसी पार्टी में कभी जाया करता हूं तो गर्मी का वक्त मैं वहां देखता हमें तो पसीना आ गया हम तो पूरा तोलिया लेके पूछ लेंगे तोलिया उठाएंगे चल हो गया साफ मैंने देखा बड़े घर घरों की लड़कियां स्त्रियां रुमाल होता है उनके पास रुमाल से यह क्या कर रही पूछ क्यों नहीं लेती मुझे समझ नहीं आया एक दिन मैंने साथ वाले व्यक्ति से पूछा ये जो स्त्रियां बैठी हैं ये पसीन को ऐसे कैसे साफ करती हैं तो हसने लगा कहता है ये बाहर जाकर बताऊंगा यहां भीड़ सुन लेगी बाहर आकर मुझे कहने लगा कि यह लीपा पोती है अगर इस रमाल को इन्होने थोड़ा सा फेर दिया जोर से तो भीतर का वो लीपापोती जाएगा और पता चल जाएगा कि इसके भीतर की रंगत कैसी अभी तो अच्छी लगती है क्योंकि ढंग से लगाया सब कुछ अभी तो इतनी लेयर चिपका इन्होंने देखने में सुंदर लगे यह दिखावा तुम्हें मार डालेगा ऑथेंटिक बनने की चेष्टा करो अध्यात्म यही कहता है और अगर नकली नकली बने रहे तो नकली तो तुम हो तुम शरीर हो यह नकली है तुम मन हो यह नकली है कृष्ण कहते हैं तुम ऑथेंटिक बनो और ऑथेंटिक क्या है विभूति मेरा सर्वश्रेष्ठ रूप ऑथेंटिक है इंद्रियों में मैं मन हूं और प्राणियों में मैं चेतना हूं जीवों में मैं चेतना हूं कृष्ण का इशारा बड़ा अद्भुत है वह स्फीयर पर बैठे लोगों को प्रत्येक स्फीयर के प्रत्येक बिंदु से समझा देते हैं तुम केंद्र की तरफ जा सकते हो प्रत्येक बिंदु से तुम केंद्र की तरफ यात्रा कर सकते हो यहां कोई ऐसा नहीं है जो केंद्र की तरफ यात्रा ना कर सके जो परमात्मा तक ना पहुंच सके यहां कोई शूद्र नहीं है कृष्ण कहते हैं लेकिन सनातनी तुम्हारे तथा कथ टोपी वाले य क सूत्र है मनुस्मृति को लागू करो यह जलाने योग्य पुस्तक है और ये कहते हैं इसकी पूजा करो संविधान की जगह हम मनुस्मृति को लेके आएंगे आजादी से तुम्हें हथकड़ियां पहना आएंगे बस यही कृष्ण कहते हैं यह मत होने देना निकृष्ट को मत अपनाना उत्कृष्ट की तरफ हर तरफ चलते रहना तुम्हारा हर कदम चरे वैती चरे वैती आगे बढ़ने के लिए हो आगे बढ़ने के लिए हो उच्च उच्च तुम प्रतिपल चलते जाओ और उस छोर पर पहुंच जाओ कृष्ण कहते हैं कि ऊंची चोटियों के लिए मैं सुमेरू हूं बड़ा प्यारा शब्द है स्थिर रहने के लिए मैं हिमालय हूं और अपनी ऊंची चोटियों के लिए मैं सुमेरू हूं आपने देखा माला के ऊपर 109 वा मन का सुमर होता है और सुमेरू के ऊपर जब हम पहुंच जाते हैं तो यह विधान है कि उस मालक को पलटना पड़ता है फिर उस माला को पलट के उल्टी माला से जाप करना होता है बस सुमेरू अंतिम है कृष्ण कहते हैं उस सुमेरू तक जाना है जिस दिन तुम सुमेरू तक पहुंच गए सुमेरू क्या है अपनी चेतना को सच्च खंड में ले जाना अपनी चेतना को उस अमृत खंड में ले जाना है अपनी चेतना को सह सरार में प्रतिस्थापित कर देना ब्रह्म र में प्रतिस्थापित कर देना उच्च से उच्च सुमेरू तुम निमन र्जे हुए हो कोई मूलाधार मणिपुर स्वाधिष्ठान अनाहत विशुद्धि यह सब नीचे के केंद्र है कृष्ण कहते हैं तुम सुमेरू की तरह ऊंचे हो माला के उच्च मनकी की तरह हो जाओ ऊंची चोटियों में मैं सुमेरू कृष्ण के इन विभूतियों का दर्शन जब करोगे पढ़ते पढ़ते तुम्हें कोई चीज समझ नहीं आएगी य कृष्ण क्या कहते हैं य तो पार्शल कर रहे बिल्कुल लगेगा तुम्हें मेरे पास भी लोग कह देते हैं भगवान की य कृष्ण की य गीता पार्शियल्टी सिखाती है अपने इन शब्दों में दसव अध्याय में पार्टी सती मैं पीपल हूं तो बबूल कहां जाएगा बबूल को कंडेम क्यों किया नहीं कंडेम नहीं किया कृष्ण कहते हैं कि नीचे से नीचा भी मैं हूं मल मूत्र भी मैं हूं अमृत भी मैं हूं विष भी मैं हूं और इन दोनों के मध्य में भी मैं हूं लेकिन तू यह प्रेरणा उस वक्त यह उस वक्त की बात है जब अर्जुन लड़क रहा है कांप रहा है और वो कहता भगवान कायरता के वश में हुआ मैं अब कायरता निमत तुम्हारे मन की निमन तम दशा कायरता है जहां तुम्हारा रुआ रुआ कप है वह निमत दशा है तुम्हारी तुम मृत्यु के भै से कंपतेलुगू जो है नहीं कृष्ण की दृष्टि में मृत्यु है नहीं कृष्ण की दृष्टि में मृत्यु उसकी है जो है ही नहीं यह पंच तत्त्वों का एक समूह इकट्ठा किया गया बिखर जाता है स्कैटर हो जाता है इसे तो मृत्यु कहते हो लेकिन कृष्ण कहते हैं वह जो सदा से है सनातन है सदा रहेगा सदा था अब है तुम वो हो तुम उसमें आसीन हो जाओ स्थिति प्र तुम निमंत्रण की ओ मत जाओ तुम खाई की ओ मत जाओ तुम सुमेरू की उच्च चोटियों को छू लो यह पाश नहीं है कृष्ण दोनों में अपने को बताते हैं कृष्ण कहते दोनों में दोनों तो मैं हूं ही शुरू में ही कहते हैं आदि मध्य अंत यह तीनों में ही मैं हूं लेकिन मैं विभूतियों का जिक्र करूंगा मैं अपनी विशेषताओं का जिक्र करूंगा निमन भी क्या जिक्र करना निमन के भीतर तो तुम खुद ही हो तुम्हारी शक्ति स्वभाव ही नीचे की तरफ बहती है उसकी तो मैं बात ही क्या करू स्वभाव त्या ही तुम्हारी शक्ति निमन तलों पर बहती है निमन चक्रों पर बहती है कौन है जिसकी शक्ति लाधार से ऊपर बहती है ज्यादा से ज्यादा स्वाधिष्ठान तक होगी इससे ऊपर कौन जाता है कृष्ण कहते हैं उनकी तो बात ही ना करो उनके तो तुम अभ्यस्त हो वह तो तुमने बहुत जी लिया और जन्मों जन्मों से तुम उसी को जीते आए हो और उसकी तो बात छोड़ो उसके तो संस्कार तुम्हारे भीतर बहुत गहरे हैं पहले से ही अब मैं बात वो करूं जिसको तुम जानते नहीं कि कुछ उच्च भी है तो इन विभूतियों से तुम्हें समझाने की चेष्टा करते हैं कि उच्च में आसीन होने की कोशिश करो सारी साधना उच्च में आसीन होने की साधनाए है इसलिए सारी विभूतियों का जिक्र करते हैं पेड़ों में पीपल हाथियों में ऐरावत घोड़ों में उच्चे श्रवण प्राणियों में चेतना इंद्रियों में मन सब में बस इशारा है अगर तुम समझने लगे तो समझ ना पाओगे कृष्ण की बात खास तौर से कृष्ण की यह अध्याय समझना बड़ा कठिन है बिल्कुल साफ लगेगा कृष्ण भेदवाद है नहीं कृष्ण भेदवाद नहीं है कृष्ण कहते हैं नीच हूं तो मैं भी लेकिन उच्च भी मैं तुम मेरा नीच स्वरूप मत देखो ऐसे संस्कार तो तुम्हारे पहले से ही है और नीच क्या बनोगे और निमन क्या जाओगे तुम मेरी उच्च विभूतियों को देखो और वहां तक पहुंचने का प्रयास करो मैं चेतना भी हूं मैं जड़ भी हूं मैं भटकने वाला मन भी हूं लेकिन तुम चेतना में उतरो चेतना की उच्च दिशाओं को तुम छूलो यही कहना चाहते हैं क जितने भी कंपैरिजन किए एक एक को खंगाल लेना कहीं भी निमंत्रण का वर्णन नहीं आएगा कृष्ण तुम्हें निमंत्रण बात कहते ही उस क्षण में जब पहले से ही अर्जुन गड़ बड़ाया हुआ है निम्नतम बात कहना पाप है बड़े जबरदस्त मनोवैज्ञानिक हैं साइकोलोजिस्ट निमंत्रण की बात करना इसके कपत मन को और क पाएगा यह पहले से ही कह रहा है कार्पन दोषों प सभाव पछाम तम धर्म समम जता यर नितन में शिष्य अहद माम प्रप मैं तुम कुछ सीखना चाहता हूं मुझे मार्ग दर्शन कीजिए मुझे सिखाइए कि मुझे क्या करना चाहिए इस क्रिटिकल जंक्चर प यह पूछ रहे हैं कंपतेलुगू [संगीत] शब्दों से लेकिन फिर भी जब अर्जुन नहीं समझेंगे मैंने सुन लिया प्रभु और मैंने सत्य करके मान लिया मैं आपकी प्रत्येक बात को सत्य करके मानता हूं अब यहां मानना शब्द बड़ा प्यारा है अर्जुन कहते हैं मैं आपके प्रत्येक वचन को मानता हूं सत्य कहक सत्य समझ कर अब यह मानने का अभिप्राय क्या है क्यों कहते हैं अर्जुन अर्जुन गलत शब्द नहीं बोलते फालतू शब्द नहीं बोलते एक भी शब्द फालतू नहीं बोलते मैं आपके प्रत्येक वचन को सत्य समझकर मानता हूं और मुझे आपके वचनों को सुनकर बड़ी शांति मिल रही है मैं बड़ा प्रसन्न हो रहा हूं आप कृपा करके बोलते ही चले जाइए मुझे अच्छे लगते हैं कापते हुए व्यक्ति को इस प्रकार से बोलता हुआ व्यक्ति बड़ा अच्छा लगता है जो उसकी भावनाओं को ऊपर लेकर जाए कंपन को रोक दे ठहरा दे उसे कते हुए मन को अर्जुन क्यों कहते हैं हे प्रभु आपके वचन बड़े मीठे हैं मैं आपके वचनों को सत्य मानकर ग्रहण करता हूं यह मानना शब्द बड़ा प्यारा है इस मान्य शब्द के ऊपर बहुत बहस बाजी होती है अर्थ किसी को पता नहीं कोषों की तुलना किशोरियों से होती है किसी की तुलना किसी से होती है तुलनात्मक अध्ययन स्वय अध्ययन कुछ नहीं खुद कुछ नहीं जाना सिर्फ कबीर कह सकते हैं मैं कहता आंखन देखी तुम कहते कागद की लिखी मानना और जानना इन दोनों सदा से कंफ्यूजन रहा है और हैरानी की बात है यह कंफ्यूजन आपका दूर नहीं अब आइए इस बात को समझ ले यह मुख्य बात है अर्जुन कहते हैं मैं प्रभु आपकी बातें बड़ी मीठी मैं आपकी प्रत्येक बात को सत्य मानकर ग्रहण करता हूं कि यह सत्य है जिस भी व्यक्ति ने उच्चतम शिखर छूने होते हैं उन्हें सत्य को मानना पड़ेगा पहला मानना पड़ेगा अ अनार होता है होता भी है लेकिन यह भी मत भूल जाना ए अनार होता है ऐ सिर्फ अनार का होता है इस कायदों को भी मत चिपकाना छाती से ए सिर्फ अनार का नहीं होता ए और भी सभी का होता है जो ऐसे शुरू होते हैं अपयश का भी उतना ही है जितना अनार का है तो अर्जुन कहते हैं मानने से ही शुरू होगा अगर मानोगे नहीं तो ठहर जाओगे गति के लिए मानना आवश्यक है रोज बहस होती है मान लो के मोरनी मोर के आंसू पी के गर्भवती होती है मान लो यह गलत बात को मत मानो हम यही चीज कहते हैं तुमसे ठीक को मान लो मैं तो अक्सर ही कहा करता हूं कि इस किशोरी से कोई शादी ना करे जो बच की तलाश में हो जिसे बच्चा चाहिए कि बचिया चाहिए मुझे व इससे शादी में मत करना बचय वगैरा की कामना ये आपकी पूरी नहीं करेगी क्यों क्योंकि ये आपके आंसू पिए ऐसा मत करो और आंसुओं से कभी बच्चा पैदा हुआ फिर तो बचिया खिला दिया आपने फिर बचिया दौड़ेगा नहीं ना ही आपको मोह पाएगा ना ही आपकी इच्छाएं पूरी होंगी अगर बचिया चाहिए तो इससे तो शादी मत करना कम से क अब सुनिए अर्जुन क्यों कहते हैं मैं मानकर अर्जुन का प्रत्येक शब्द बड़ा कसौटी पर कसा हुआ है अर्जुन जैसा शिष्य ना होता तो कृष्ण जैसी प्रतिभा आपके पास ना पती यह अर्जुन ही था जिसने कृष्ण की प्रतिभा को बाहर खींच लाया इसलिए कई बार ऐसे प्रश्न मेरे पास आ जाते हैं जो मुझे भी ख्याल नहीं होता कि यह प्रश्न कर देंगे लेकिन बड़ा आनंदित होता हूं क्योंकि वह प्रश्न भीतर तक जाकर उस सत्य को खींच लेता है प्रश्न ही खींच लेता है मुझे कुछ नहीं करना होता अगर मानोगे नहीं अब एक बात को को समझ लो हम आगे चले वक्त थोड़ा रह गया क्या करें वक्त की अपनी सीमा है मार्क्स कभी नहीं पहुंच पाएगा उस उच्चतम तल पर जिसकी बात कृष्ण कह रहे हैं प्राणियों में मैं चेतना हूं कभी नहीं पहुंच पाएगा मार्कस चार वाक निच से उस उच्चतम शिखर पर नहीं पहुंच पाएगा जिसको सुमेरू कहते हैं कृष्ण अपनी उस प्रज्ञा में स्थित नहीं हो पाएगा कभी और इसलिए यह दुखी ही रहेगा तुम देख लेना मार्क सवादी हमेशा दुखी ही रहेगा दुखी उस अर्थ में कामनाएं कभी पूरी नहीं होती आनंद इन्हें मिलेगा नहीं क्योंकि आनंद मानने से शुरुआत होती है बड़ी हैरानी की बात है आज मैं कुछ विपरीत बोलता हुआ दिखाई पड़ूंगा हैरानी मत करना मैं अक्सर कहता हूं मेरे विरोधी शब्दों से हतप्रभ मत हो जाना विरोधी शब्दों से ही समझाया जाता है रात और दिन दोनों मिलते हैं तो एक दिन बनता है ये 244 घंटों में रात की कालिमा होनी जरूरी और दिन का उजाला होना भी जरूरी अगर मानोगे नहीं तो आगे ना बढ़ो कदम आगे नहीं बढ़ेंगे इसलिए मार्कस मर जाते हैं अध्यात्म की ओर कदम नहीं बढ़ाते क्योंकि मान लेते हैं मान लेते हैं असत्य को वह है नहीं और अगर तुमने यह मान लिया कि वोह है नहीं तो तुम खोज भी ना पाओगे किसे खोजो जो है ही नहीं आगे कैसे बढ़ो तो कृष्ण बड़ा प्यारा शब्द बोलते हैं कि तू मान ले जो मैं कहता हूं उसको सत्य मानकर जान फिर जान ले मानने से कदम उठेंगे मानने से चाल चलेगी ठहराव नहीं आएगा और उसके बाद जानना भी आ जाएगा अगर तू चलेगा खोजे तो पा भी लेगा खोजा ही नहीं तो पाएगा क्या खा यह मानना शब्द बड़ा प्यारा है मार्क्स कभी नहीं पहुंच पाएंगे मैं स्टेंप लगाता हूं इस बात इन अर्थों में मैं आस्तिक जो मानते हैं किसी भी रूप में मानते हैं वह तोड़ दिए जाएंगे किसी वक्त कोई दुर्गा के रूप में कोई काली के रूप में कोई हनुमान के रूप में कोई राम के रूप में कोई कृष्ण के रूप में किसी रूप में मानता है कोई अल्लाह कोई ईसा कोई हजरत जो मानते हैं वो पहुंच किसी को भी मानते हैं कोई फर्क नहीं पड़ता लेकिन मानते हैं जो मानता है वह यात्रा भी शुरू कर देगा क्योंकि उसने माना और माना सत्य को इसलिए मैं सदा ही कहता हूं सत्य को मान लेना कोई गलत नहीं होता असत्य को मान लेना गलत होता है चार वाक ने माना यहां लेना देना कुछ नहीं पड़ता भसम भूत देहस पुनर आगमनम कुतः यदा जीवेत सुखी जीवेत ऋणम कृत्वा गतम भीत कोई लेने देने का संबंध नहीं किसी को वापस नहीं करना पड़ता तर्क बड़ा अच्छा है जो मर गया लेने वाला देने वाला कौन मोड़े किसको मोड़े तर्क सुंदर है और अक्सर आप तर्को से ही सहमत होते हो क्योंकि आप बुद्धि हो आप अपने आप को बुद्धि माने बैठे हो जो गलत है तो कृष्ण कहते हैं मानना ही है तो आत्मा को मानो बुद्धि को क्यों मानते हो निकृष्ट को मानोगे तो उत्कृष्ट तक आपकी यात्रा ना होगी तुम मन को मानते हो मेरे विचार इसने खंडित कर दिए मेरी भावनाओं का हनन कर दिया तुमने भाई भावनाएं बनाई क्यों थी ये गलत भावनाएं तुमने बनाई ही क्यों थी दंड देने के अधिकारी तो तुम हो जिसने गलत भावनाए मानी क माने किसने कहा था मानो मार्कस को किसी ने कहा था कि परमात्मा नहीं है यह मान लो नहीं उसके खुद की पैदाइश थी तो फिर भुगतना भी तो उसे पड़ा क्या वो आनंद में मरा नहीं बड़ा दुखी होकर मरा निच से कैसे मरा बड़ा दुखी होकर मरा कैसे मरा जुदा रहता था ईसा के पास लेकिन नास्तिक था और नास्तिक बस हाथ धोता ही मर गया जब हाथ धो के आता तो उसे लगता यह लहू से लिपटे हुए है इस इन पर ईसा का लघु लगा हुआ है फिर धोने चला जाता फिर वापस आता है चारपाई पर बैठता फिर हाथों को देखता अरे ये तो खून लगा हुआ है दिन भर रात यही काम और 24 घंटे के बीच-बीच में ईसा विदा हुए और जदास भी विदा हो गया लेकिन तड़पता हुआ विदा हुआ ईसा मजे से विदा हुए ईसा क्षमा करते हु विदा हुए ा मरते दम पर कहे ओ गॉड फॉरगिव देम बिकॉज दे डोंट नो ट दे आर डूंग लेकिन तड़पता हुआ मरा जदास उसने गलत माना मानने का यहां बड़ा लाभ है मानने से गति मिलती है सही दिशा में सही चीज को मानना आपको शुभ की तरफ ऊंचाई की तरफ ले जाएगा जो बच्चा अ अनार होता है बी बॉल होती है सी कैट होता है इसको मानेगा नहीं फिर आगे नहीं बढ़ पाएगा वह डॉक्टरेट करने के सपने ना देखे मानना के जानना इस पर बहस मत करना सीधी सी तुम्हें मैं डेफिनेशन दे देता हूं सत्य को मानना जो संत कह के गए हैं असत्य को मत मानना जो नास्तिक कह के गए हैं उनको मत मानना और भरा पड़ा है हमारा साहित्य अध्यात्म में खासकर जिन्होंने माना और जाना जिन्होंने नहीं माना कहां जान के गए व वह तड़पते तड़पते भटकते भटकते अंधे अंधे आए और अंधे अंधे चले गए उन्होंने सत्य को खुली आंख से निहारा ही नहीं तो मानने और जानने के बीच में कोई बहस का विषय नहीं होता बस सिर्फ एक ही मैं तुम्हें डेफिनेशन आज दे रहा हूं जो सत्य है उसे मान लेना और सत्य हमारे प्रबुद्ध महर्षि हों ने शस्त्र भरे पड़े हैं उसको मान लेना तुम शिव स्वरूप हो इसे मान लेना तुम परमात्मा स्वरूप हो तुम आत्म स्वरूप हो इससे मान लेना अष्ट वक्र कहते हैं तुम शरीर नहीं हो इसे मान लेना तुम मन नहीं हो इसे मान लेना चमड़ा नहीं हो इसे मान लेना लेकिन मानने से तुम्हारी गति होगी उस तरफ की यात्रा शुरू होगी और यह पहला पड़ाव भी अगर चूक गए तो अंतिम पड़ाव कभी नहीं आएगा य बड़ा हितकर है और अनिवार्य है मानना बड़ा शुभ है बड़ा जरूरी है आवश्यक कदम है पहला कदम है लेकिन आवश्यक है मानने से शुरू करना मानने से यात्रा शुरू होगी न मानने से तो यात्रा ही शुरू नहीं होग जो लोग किसी चीज को जानते नहीं बड़ा आसान है कह देना कि होता ही नहीं अब कुछ आचार्य कह देते हैं एलाइनमेंट होता ही नहीं यह पहुंचेंगे कैसे जो कहे प्रेम होता ही नहीं वह नफरत फैलाए उसको कभी प्रेम के दर्शन नहीं हुए पूछो मजनू से पूछो हीर से जो प्रेम में तड़पे ती दोनी मेन आखो रांजा ती दोनी मेन आखो रांजा हीर ना आखे कोए रंजन रंजन करती मेता आप रंजन होई प्रेम में ऐसा हो जाता है बदल जाता है सब ये प्रेम का परिणाम है जिसने माना ही नहीं कि प्रेम होता है वह नफरत ही फैलाए क्योंकि और कुछ होता ही नहीं प्रेम का प्रत नफरत होता है नफरत ही फैलाए का और जो नफरत फैलाई समझ लेना उसको प्रेम की अनुभूति कभी हुई ही नहीं जिसको एक बारगी प्रेम की वह मीठी झलक मिल गई वह नफरत नहीं फैलाए का यह पक्का मानने से शुरू करना और मानना सत्य को मानना कसौटी पर खरा सभी शास्त्रों में लिखा तुम शरीर नहीं देख लेना स्य स्यान एक मत मूर्ख अपनो अपन सभी स्यान ने कहा अष्टावक्र ने कहा यू आर नॉट बॉडी नॉट माइंड सभी सनों ने कहा अध्यात्म वादियों ने कहा तुम शरीर नहीं हो इसलिए तुम मान के चलना के नहीं है और यह सत्य भी है सत्य को मान लेना शुभ होता है तभी यात्रा शुरू होगी मानने का यह है फायदा और मानना एक आवश्यक कदम है अध्यात्म के मार्ग पर पहला कदम मानना ही होना चाहिए अन्यथा कदम ना उठेंगे जितनी मान्यता गहरी होगी गहरी होगी उतनी चाल तेज होगी कल मैंने बोला श्रद्धा को बढ़ा लेना एक दिन मान्यता श्रद्धा में तब्दील हो जाएगी तुम मानते मानते झुगे अपने भीतर जाओगे और चमत्कार तुम्हारे जीवन में घटित होंगे वह सच में ही परिवर्तित कर देंगे तुम्हारे जीवन को खेल खेल में तुमने माना था और सत्य सत्य में तुमने देख लिया हसीब गायब खेली वो धरी वो न गाओ हसो खेलो मानो और उससे ध्यान हो जाएगा एक दिन लेकिन शुरुआत मानने से करो मानने से शुरुआत करोगे एक दिन गंतव्य के ऊपर पहुंच जाओगे भगवान कहते हैं भय भी मैं हूं जो अर्जुन कहता है कार्पन दोष ब सभाव कायरता के स्वभाव के कारण मेरा शरीर रोम रोम कप रहा है प्राम ताम धर्म सम चता य निचित ही तन में शिष्य झुक जाता है और जो झुक जाता व पा लेता है शादी माम तोम प्रपन्नतिहरे मानना पड़ता है सत्य को सत्य को मानो फिर सत्य तक पहुंच जाओगे मैं अकेला ही चला था जाने में मंजिल मगर मैं अकेला ही चला था जानि मेंे मंजिल मगर लोग साथ आते गए और कारवा बनता गया तुम अकेले चलना मान के चलना प्रमाण जुटते जाएंगे उसके होने के और तुम्हारी श्रद्धा बढ़ती जाएगी मैं अकेला ही चला था जाने मेंे मंजिल मगर लोग साथ आते गए और कारवा बनता चमत्कार हो ग ऐसी घटनाएं होंगी जो तुम्हारी श्रद्धा को बढ़ा देंगे यही कृष्ण कहते हैं जो नास्तिक है मैं उनको ज्यादा नास्तिक बना देता हूं ऐसे ही प्रमाण जुटा देता हूं और जो आस्तिक है उनको मैं ज्यादा आस्तिक बना देता हूं वैसे ही प्रमाण जुटा देता हूं बस मैं तो तुम्हारी इच्छाओं को पूर्ति करने हेतु मैं तुम्हारी सभी इच्छाओं को पूर्ण करता हूं फल तुम चखो ग तुम्हारी इच्छाओं को बढ़ावा मैं दे देता हूं तुम जिस देवता में श्रद्धा को रखे हो मैं उसी देवता में तुम्हारी श्रद्धा को बढ़ा देता हूं मानने से शुरू करना सत्य को मानने से शुरू करना करना असत्य को मानने से शुरू मत करना यह है असली फार्मूला मानने जानने के अंदर बहस मत करना मानना बिल्कुल मानना जानना तो कभी शुरू होता ही नहीं मानने से ही शुरू होता है सदा लेकिन सत्य को मानना मानने में दो चीजें हैं सत्य असत्य सत्य जानो क्या है अगर अध्यात्म में चलना है तो अध्यात्म की पुस्तकों में देखो भरे पड़े हैं उनको मानो और फिर चलो पहुंच जाओगे मैं अकेला ही चला था जानिबे मंजिल बगर लोग साधते गए और कारवा बनता गया चमत्कार होते रहेंगे तुम्हारे पक्ष में परमात्मा चलेगा तुम्हें दृष्टांत देता रहेगा और तुम्हारी श्रद्धा बढ़ती रहेगी क्यों गुरु के द्रोही हो जाते हैं लोग जब तक मानते हैं कि गुरु ठीक है तब तक ईश्वर उनकी श्रद्धा को बढ़ाता रहता है जरा सी अश्राथ है तो परमात्मा उसकी श्रद्धा को कृष्ण कहते हैं मैं उसकी अ श्रद्धा को बढ़ाना शुरू कर देता हूं वह तुम्हारी वृत्तियों को बढ़ाएगा तुम काम ग्रस्त हो तुम्हें काम ग्रस्त कर देगा ज्यादा तुम ब्रह्मचारी हो तुम्हें ज्यादा ब्रह्मचारी कर देगा वह तुम्हारी सहायता करेगा सिर्फ उसका अपना कुछ नहीं जो तुम चाहते हो जिस देवता की पूजा तुम करते हो उस देवता में तुम्हारा विश्वास बड़ा देगा यह परमात्मा का काम है इसलिए सत्य को मानकर चलना अगर असत्य को पाना चाहते हो तो असत्य को मानकर चलना अगर दुखी होना चाहते हो तो असत्य को मान के चलना दुख मिल जाएगा अगर सुखी होना चाहते हो तो सत्य को मान के चलना सत्य तुम्हें सुख तक पहुंचा देगा आनंद तक पहुंचा देगा यही है थीम विभूतियों का और कृष्ण के सारे दसव अध्याय के मैं यह हूं मैं यह हूं मैं यह हूं जलाशयों में मैं सागर हूं अपनी विभूतियों का वर्णन करना इसमें तुम पाओगे कृष्ण कहते हैं मैं सर्वश्रेष्ठ में हूं तो निकृष्ट भी मैं तो व भी हूं इसलिए तू भयभीत मत हो क्योंकि मैं साहस भी हूं तू साहसी बन साहसी बन तू अपना धनुष जो फेंक दिया वो उठा ले और इनकी छातियों को छलनी कर दे तो रण भूमि में वीर ही जीता करते हैं कायर नहीं भगोड़े कभी नहीं जीता करते तू युद्ध कर मामनु स्मर युद्ध जो ऐसा उपदेश किसीने दिया ऐसा उपदेश देने वाले को तुम भगवान मान भी नहीं सकते लेकिन भगवान है मानने से शुरू करो वह भी हूं मैं अर्जुन कहता है मैं व भीत हूं कृष्ण कहते कोई बात नहीं वह भी मैं ही हूं लेकिन त तू इस भह से कप मत साहस भी तो मैं हूं तू साहस को अडॉप्ट कर और उठा अपने गाड़ी धनुष को और कसले प्रत्यंचा को और वाण की सया प सुला दे विषम को और सुला देता है जीत जाता है ये सब मेरे मारे हुए लोग हैं मैं मार चुका हूं इन्ह इनके कर्म ही ऐसे थे मैंने सामूहिक रूप से एक स्थान पर इकट्ठे करने की व्यवस्था बनाकर इन सबको मार दिया अब तू श्रे ले ले उठ जा जीत तेरी होगी कृष्ण पहले ही कहते हैं विजय श्री तेरे पांव चूमेगी तोत उठ ये मुकुट अपने शीश पर धारण कर ले अर्जुन श्री कृष्ण गोविंद हरे मुरारी [संगीत] हे नाथ नारायण वासुदेवा पूछो ना कैसे मैंने र [संगीत] विता पूछो ना कैसे मैंने रन विता एक फल दे से एक जुग बीता एक फल जैसे एक युग बीता युग भीते मोहे नी ना आई पूछो ना कैसे मैंने रन [संगीत] बता उत जल [संगीत] दीपक इत मन मेरा उत जल [संगीत] दीपक हित मन मेरा फिर भी ना जाए मेरे घर का [संगीत] अंधेरा उत जले दीपक इत मन में मेरा मन मेरा मेरा उत जल दीपक इत मन मेरा फिर भी ना जाए मेरे घर का अंधेरा [संगीत] तड़पत तरसत अमर गवा पूछो ना कैसे मैंने र [संगीत] बता पूछो ना कैसे मैंने रह [संगीत] भता पितु मात स्वामी सखा हमारे पितु मा स्वामी सखा हमारे हे नाथ नारायण वासुदेवा [संगीत] श्री कृष्ण गोविंद हरे मुरारी हे नाथ [संगीत] नारायन [संगीत] वासुदेवा श्री कृष्ण गोविंद हरे मुरारी हे नाथ [संगीत] नारायण वासुदेवा पितु मात स्वामी सखा हमार पितु मात स्वामी सखा हमारे हे नाथ नारायण वासु देवा श्री कृष्ण गोविंद हरे मुरारी हे नाथ नारायण वासु देवा ओ धन्यवाद


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