बाबा अगर मैं संबोधि के बाद भी संसार में वापिस आ गया तो? परमात्मा ने हमें बनाया ही क्यों?

बाबा अगर मैं संबोधि के बाद भी संसार में वापिस आ गया तो? परमात्मा ने हमें बनाया ही क्यों?

 

इंद्रजीत कुमार झारखंड से बाबा जी मैं क्षमा चाह मुझे यह सवाल समझ नहीं आता और बार-बार खटकता है मैं अस्तित्व में आने से पहले क्या था जब अस्तित्व से पहले मेरे कोई प्रारब्ध थे या नहीं जन्म लेने के लिए फिर प्रारब्ध में बचने के लिए ईश्वर ने मुझे जन्म क्यों दिया जब बूंद समुद्र में समाकर समुद्र हो जाएगी तब क्या उस बूंद का कोई अंश फिर से बूंद बनकर समुद्र र से बाहर नहीं आएगा आखिर ईश्वर की मौज क्या है इंद्रजीत कुमार झारखंड तो शुरू करें इसका जवाब तुमने तो पहले सना शुरू कर दिया सवाल बड़ा मजेदार है और जवाब उससे भी ज्यादा मजेदार


है बाबा मुझे एक बात सुनाया करते हैं बाबा कहते जो पहला आदमी बनाया भगवान ने आदमी उसने पूछा भगवान से भगवान तू यह जो बंदिश लगा रहा है य कनक मत खाना यह खजूर खा लेना यह व मत करना वह मत करना अगर मेरी अपनी कोई स्वतंत्र इच्छा नहीं है तो फिर तूने मुझे बनाया ही क्यों तो इतना कह के बाप ताली बजा के हसने लगे खूब हसे कहते हो प्रश्न सुन के भगवान गायब भी हो गया उसके बाद किसी ने कहीं देखे ही नहीं अब कृष्ण का जवाब भी क्या देता है प्रश्न ही ऐसा अटपटा है कहता तूने मुझे बनाया क्यों और बनाया े बंदिश क्यों कनक मत खाओ खजूर


खाओ यह करो वो करो तभी से भगवान गायब हैं और तभी से अंदाजे लग रहे हैं कोई कहता वह हनुमान जैसा है कोई कहता व ब्रह्मा जैसा है कोई विष्णु कोई शंकर कोई कहता नहीं नहीं अल्लाह है अरे नहीं वाहेगुरु सतनाम है अंदाजे लग रहे हैं अंदर मंदर मूरत [संगीत] तोरी फिर भी ना देखी सूरत तोरी मंदिर मंदर मरत [संगीत] तोरी फिर भी ना देखी सूरत तोरी युग बीते कब आए मिलन की युग बीते कब आए मिलन की पू मा शरे दर्शन दो घनश्याम नाथ मोरी पखिया प्यासी रे मन मंदिर में चत जला दे घट टवा [संगीत] सीरे क्यों बनाया उसने बड़ा पची सवाल है और सच


कहूं तो बड़ा वाजिब सवाल है कौन जाने मुक्त होने के बाद संबोधी प्राप्त होने के बाद कोई बूंद उछल के बाहर आ जाए और फिर संसार में आ जाए फिर फिर यही कबाड़ा वही 84 लाख यनि बड़ा भटकाव है क्या किया जाए गलती से एक बार मेरे पास आदमी आ गया मेरा शिष्य मुझे उस्ताद जी कहा करता था उस्ताद जी ये भगवान ने सृष्टि बनाई क्यों मैंने कहा तूने सृष्टि से क्या लेना चलो छोड़ो मुझे को जन्म दिया मैंने कहा अपने बाप से पूछा पूछा था उससे तो फिर उसने क्या कहा उसने उस्ताद जी जवाब टेढ़ा दे दिया क्या व कहते मैंने कब बनाया चोड़ चोड़ में


बन गया कक प्री प्लांट थोड़ी था अब बन गया तो बन गया बेचारा दुखी था दुखी व्यक्ति ही ऐसा प्र पूछा करते हैं अन्यथा मेज के ऊपर अंगूरों की बेटी पड़ी हो तो कोई एनालास थोड़ा किया करता है कहां से बनी कौन सी फैक्ट्री से बनी मेज के ऊपर पड़ी हो अंगूरों की बेटी तो कोई पूछता है कि कैसे बनी किसने बनाई कौन-कौन सी प्रोसेसिंग हुई बस गटक ली जाती है जिसको टकने का मजा पता है वह सवाल नहीं पूछा करता ईश्वर ने मुझे क्यों बनाया कता मैंने कहा देख बात सुन अच्छी लगी कहता नहीं मैंने कहा ऐसा कर पीछे से एक दरवाजा निकलता है हा वहां


से निकल जाओ तुझे कौन कहता है अरे बना दिया जिसने उसका धन्यवाद नहीं देता और अच्छा नहीं लगता तो पिछले दरवाजे से खसक जा यह भी तो एक ऑप्शन है तो बाबा ये कुछ कुछ खींचती ई है अच्छी भी लगती है और बुरी भी लगती है जब कभी अच्छी लगती है तो जी करता है कि लाख साल जी लू और जब अच्छी नहीं लगती तो जी करता है कि जीव ना मैंने कहा यह तेरी सर धरती है अब तू फैसला करके आना मेरे पास और वो कभी नहीं आया झोम बराबर झोम शराबी झूम बराबर झूम झूम बराबर झूम शराबी झूम बराबर झूम काली घटा है मस्त मजा है काली घटा है मस्त मजा है उठाकर घूम घूम


घूम झूम बराबर झूम शराबी झूम बराबर झूम झूम बराबर झूम शराब काली घटा है मस्त मजा है काली घटा है मस्त मजा है जा उठाकर घूम घूम घूम झूम बराबर झूम शराबी एक पानी की बूंद पैदा करने की कैपेसिटी ना रखने वाला मानव ऐसे ऐसे प्रश्न क्या करता है जब इंद्रजीत कुमार कुछ बना नहीं सकता झारखंड से हैं झारखंड के लोग वैसे भी स्याने होते हैं और नहीं तो यह प्रसन मेरी खोपड़ी घूम गई हद हो गई ये तो नई बात ही सुनी कि संबोधि को भी चलो प्राप्त हो जाए और समुद्र में से न जाने कौन सी एक बूंद उचल के फिर संसार में आ जाए दुखी व्यक्ति ऐसे प्रश्न पूछा करते


हैं जो मस्त हवाओं में उतर गया जिसने वो मस्ती की शराप प ली ऐसे प्रश्न तो दूर तलक उसके जहन में नहीं आते अवश कोई दुखी व्यक्ति होगा जिसने यह प्रश्न किया अभी अभी मेरा चैनल जवाइन किया है मुझको ठीक से सुना भी शायद ना लेकिन सुनो तो गुना नहीं मैं कहता क्या हूं उसे गुना नहीं उसके भीतर उतरा नहीं मेरे शब्दों की रंगत उसके भीतर उतरी नहीं यह मस्त बोल यह शराब से ओत प्रोत लिप्त हुए हुए शब्द लिब जड़ के आते हुए यह वाणी के साथ अनंत का व शहद इसने पिया नहीं होगा अन्यथा कौन पूछता है क्यों बनाया बड़ा टेढ़ा सवाल है अति खोपड़ी धारी लोग ऐसा प्रश्न पूछ


सकते हैं और सुनिए मेरी बात अगर ऐसे प्रश्न तुम्हारे दिमाग में आने शुरू हो जाए तो समझ लेना कि तुम्हें जीने का सलीका ना आया जीने वाले तुझे जीने का नाया जीने वाले तुझे जीने का सलीका नाया जिंदगी जीने के लिए है ना कि थ्रने के लिए हर घड़ी तुम थरा रहते हो कहीं ऐसा ना हो जाए इरादे बांधता हूं सोचता हूं छोड़ देता हूं कहीं ऐसा ना हो जाए कहीं ऐसा ना हो जाए थर राती हुई यह दुनिया में चैन कहां जलती हुई इस दुनिया में चैन कहां और जलती हुई इस आग में तुम बैठे हुए लोग प्रश्न ऐसे ही पूछ सकते हैं य कोई विडंबना नहीं है तुम्हारे हृदय से ऐसे तूफान से युक्त


ज्वाला से युक्त प्रश्न आए तो कोई हैरानी जनक विषम जनक बात नहीं क्योंकि तुम्हें पीने का सलीका आया तुम शस्त्र पड़े होंगे तुम इन ग पड़ियो के पीछे लगे होगे तुम स्वर्ग और नरक की कल्पना से युक्त खोपड़ी से सुना होगा सबको इसलिए संत को भी तुमने खोपड़ी से सुना होगा मैंने कल ही के प्रवचन में बताया कि जीने का सलीका रहस्य में आता है और रहस्य खोपड़ी से पार तुम खोपड़ी में उलझे उलझे ऐसे प्रश्नों का जवाब प्रश्न से उत्तर उत्तर से प्रश्न प्रश्न से उत्तर उत्तर से प्रश्न खोपड़ी खुद का जंजाल है बिल्कुल मकड़ी के जाल की तरह अपने ही


इर्द गर्द जाल बन लेती है मकड़ी उसम फस जाती है बस ऐसे ही तुम्हारी खोपड़ी है य खोपड़ी के न्यूरॉन्स मकड़ी की तरह ज्यादा बुन लेते हैं और तुम उसमें फस के रह जाते हो निकल नहीं सकते पर मकड़ी उसके भीतर ही मर जाती है बस ऐसे ही तुम प्राण त्याग देते हो तुमने कभी उस अंगूर की बेटी का स्वाद नहीं चखा और ये बड़े दुखद बात है और तुम्हारे गुरुजन तो कहते हैं पी भी मत लेना अन्यथा डेरे में मताना एक व्यक्ति मेरे पास आ गया कहता मैं गुरु को छोड़ना चाहता हूं मैंने कहा कौन से संप्रदाय से हो य संप्रदाय बता दिया मैंने कहा सीधा सा रास्ता है क्या


रास्ता है ठेके पर जाओ पवा ले लो पी लो बस धर्म छूट गया जाओगे किस मुख से छोटी छोटी बास से सरे धर्म बंदे इन्हें तुम धर्म कहते हो ट ग तड़क करके लाई बे कतरा नाली आ बस इसे तुम सरा इतना सा नसा तुम बाहर बार ही काम चलाते रहते हो और कमाल की बात है मकान का मालिक मकान में कभी प्रवेश नहीं किया मकान का मालि मकान के भीतर जाकर देखता नहीं मकान भीतर से कैसा है क्या कुछ है इसमें बाहर के मकानों को तो आप 10 द बार खंगाल लेते हो लेकिन अपने ही मकान को भीतर से खंगाला नहीं तुमने और अगर खंगाल लिए होते तो तुम्हें तुम्हें तुम मिल जाते


सुकून आ जाता सुरूर आ जाता आनंद की वो मौज मस्ती बाहर व ठंडी मीठी पुलकित करने वाली हवाए तुम्हारी नासा फूटों से तुम्हारे प्राणों में प्रवेश कर जाती हं काश ऐसा हो सकता अवश्य ही तुमने इन टोपी धारियों को सुना होगा जो कहते हैं हम राष्ट्र बनाएंगे कमल की बात है राष्ट्र बनाने से क्या होगा सभी धर्मों ने अपने अपने राष्ट्र बना लिए क्या तुम भी इतने बुद्धु हो हमारे सनातन का वो संदेश वसु देव कुटुम मूर्खों ने तो तोड़ दिया क्या तुम भी तोड़ोगे अपने ही ऋषियों की बनाई हुई इस संपदा को सारी वसुधा एक परिवार है राष् बनाना है


या जीने का सीका सीखना है इन दोनों में से एक राह चुनना होगा राष्ट्र जिन्होंने बना लिया उनको जीने का सलीका ना आया आज भी वह लड़ रहे हैं मनुष्य को लड़ने के लिए कुछ ना कुछ चाहिए और कुछ ना मिलेगा तो मुसलमान मुसल मान से लड़ेगा शिया सुन्नी से लड़ेगा जैन धर्म के तथा कथित अहिंसक लोग श्वेतांबर दिगंबर से लड़ेंगे और हाथ में पटकी होगी अहिंसा परमो धर्मा कमाल का धर्म है य थोड़ी सी आहट से टूट जाता है आज तुमने ऐसा मानव बना दिया है जैसे रिपोर्ट होता है धीरे धीरे धीरे धीरे चलता है पता चल जाता है या कृतम है कहां मानव की वह मस्तानी


चाल और कहां रोबोट की वह बनाई हुई है प्रतिष्ठित कई हुई चाल बिल्कुल मुर्दे जैसी लगती है है भी मुर्दा जो किसी के हाथ की कुट पुतली बना के बनके नाचे व उसे जीमत थोड़ा कहते हैं वह मर्दा ही होता है तुम्हारे धर्मों ने तुम्हें अमेंडमेंट सिखाए तुम्हारे धर्मों ने कभी य नहीं सिखाया कि अपने मालिक खुद बनो कहीं बुद्ध आई तो प्रथम बार उन्होंने संदेश दिया अप दप भवा अपने मालिक खुद बनो दूसरों को अपना मालिक रब बनने दो ना किसी शास्त्र को ना किसी विद्युत जन को ना किसी शंकराचार्य को अपना मालिक ना बनने दो अप दीपो भवा लेकिन यहां दोगले लोग


है बाहर जाएंगे तो कहेंगे मैं बुद्ध के राष्ट्र से आया हूं और अपने राष्ट्र में आएंगे तो बुद्ध को गाली निकालेंगे ऐसे ऐसे प्रश्न पूछने वाले लोग मुझे बड़ी व्यथा होती है इनके जिगरे हालात देखकर हर बात पर रोना आता है तो मूर्ति पूजक तो हो लेकिन मूर्ति पूजा का भीतर की क्रोनोलॉजी तुम समझ नहीं सके आज तक बस यह वही क्रोनोलॉजी थी जो अष्टावक्र ने बताई अति में भोग लो और अति में भोगने से भोगने की इच्छा खत्म हो जाएगी बड़ी उलट बात लगेगी खोपड़ी को खोपड़ी कहेगी मैं तो एडिक्टेड हो जाऊंगा उसका तर्क ठीक है लेकिन जीवन में


तर्क कहां काम आते हैं जीवन में तर्क काम नहीं आते अष्टावक्र कहते हैं इतना भोगो कि भोगने से वृति आ जाए क्योंकि भोग में दुख है यही कहते हैं बुद्ध क्या नहीं था उनके पास भोगने को क्यों छोड़ के चले आए भोग से उ पैदा होती है तुम भोगने की तमन्ना अभी तक करते हो जब तक तुम्हें भोगने से उभ नहीं आते तुम स्वर्ग की तुमना भी तब तक करते हो एक दिन ऐसा आएगा जब तुम स्वर्ग से भी भागोगे मैंने सुना है एक संत मरक ऊपर चला गया लाइन में लगा उसकी डर नाई तो यमराज कहने लगे तुम तुम तो स्वर्ग में जाओ तुम्हारा खाता क्लोज हो गया तुम


स्वर्ग में आनंद भोगो संत कहने लगा हाथ जोड़ केर महाराज कृपा करो क्यों स्वर्ग तो बड़ी ऊ है प्रत्येक व्यक्ति अपने अपने स्थान आसन पर बैठा है और प्रत्येक व्यक्ति के सर के ऊपर कल्पवृक्ष है हाथ में मला है राधे राधे जप रहा है बड़ी ओ पैदा होती है मैं तो उ गया बाढ़ में जाए तुम्हारा स्वर्ग ऐसा तो फिर बस एक बार नर्क भेज दो अरे नर्क भ दो हा वो भी तो देख लू जिसके तुम इतने गुणगान किए थे वहां यह है वहां यह है उर्वशी है रंबा है मेनका है नाचती हैं सब देख लिया सब देख लिया और उघड़ उघड़ के देख लिया और पाया कि दुर्गंध के सिवा और कुछ


नहीं इसलिए भागा अन्यथा स्वर्ग तो तुमने मेरी नीति में कब से लिख दिया था मैं जो मांगता आ जाता जो इच्छा होती खाने की आ जाता मांगते ही आ जाता कल्प वृक्ष यो था लेकिन मैं तो उ क्या रहा करने से यह भी क्या जीवन यह किस ने फसा दिया मुझे तुम हिंदुओं की फिलासफी को समझे सनातन की बड़ी शानदार फिलासफी है तुमने इसकी भीतरी करोन लजी को जाना नहीं इतना पूजो पत्थर को के पत्थर में भगवान नहीं यह पता चल जाए कि पत्थर में कुछ नहीं मिलता पत्थर जड़ है मूर्ति जड़ है और जिस दिन तुम्हें पता चल गया अब लोग कहते हैं धन्ना ने पत्थर में से पालिया बिल्कुल


पालिया बिल्कुल ऐसे ही पालिया जैसे तुम पड़ियो के ऊपर सीढ़ियों के ऊपर चढ़ते हो और छत पर पहुंचे जाते हो लेकिन छत पर पहुंचने के लिए सीढ़ियां काम तो आई लेकिन सीढ़ियों को त्यागना भी पड़ा सीढ़ियों पर पांव भी रखा और पाव रखकर उन्हें छोड़ना भी पड़ा अगली सीढ़ी पर पाव जमाना पड़ा फिर उसको भी छोड़ना पड़ा अंततः एकएक करके सभी पौड़ियां छूट गई और एक दिन छत आ गई जहां कोई पड़ी नहीं थी चढ़ने को सर्वोच्च ऊंचाई आ गई वह आ गया सहस्त्र दल कमल वो आ गया सच्च खंड अब इससे ऊपर जाने का कोई ना स्थान है ना रास्ता है पत्थर की मूर्तियां तुम्हें मुक्त तो


कराती हैं लेकिन सीढ़ियों की तरह कराती है पत्थर की मूर्तियों से शुरू करना लेकिन पत्थर की मूर्तियों में कुछ नहीं नहीं है यह जानकर उसे छोड़ भी देना राधे राधे करने से शुरू कर लेना राम राम करने से शुरू कर लेना लेकिन जाप में कुछ नहीं है रेपुटेशन में कुछ नहीं है बोरिंग है ओनली बोरिंग समय की बर्बादी शक्ति की बर्बादी और व्यर्थ समझ के उसको छोड़ भी देना अगर तुम्हें जाप की व्यर्थ अब तक सिद्ध नहीं हुई तो जपते जाना मैं सदा यही कहता हूं जहां हो टके रहो ऐसे नहीं कहता हूं रोज मेरे पास लोग आते हैं बाबा अंगूठा लगा दो लगा


दूंगा तुम दीक्षा दे दो नहीं यह मुश्किल है क्यों अपने पास बैठा लो तुम्हारे भीतर ही तो बैठो उतर के देखो अजी छोड़ कर अब कहां [संगीत] जाएगा जहां जाइएगा हमें पाएगा कहां जाओगे मेरी तरफ भागने वालो अपने भीतर भाग के देख लो मिल जाएगा मेरे पास आने में तो भागम भाग बहुत हो गई बड़ी मशक्कत करनी पड़ेगी बड़ी यात्रा करनी पड़ेगी बाहर भागने वालो थोड़ा भीतर भाग के देख लो एक बार भीतर कभी भाग के देखा नहीं तुमने मैं जानता हूं अगर एक बार भी बाहर भागने की कवायत को छोड़कर भीतर भागना शुरू कर दो तो मेरे पास आने की तमन्ना समाप्त हो जाएगी


अजी रठ कर अब कहां जाइएगा जहां जाइएगा हमें पाएगा अजर उठकर कहीं चले जाओ अपने भीतर जब तक नहीं उतरो मुझे नहीं पाओगे यहां आ जाओ बिल्कुल आ जाओ सीढ़ियों का इस्तेमाल करो लेकिन सीढ़िया छोड़नी पड़ती हैं यह भी मैंने पहले कहा आ जाओ देख लो मस्ताने कैसे हुआ करते हैं कोई चाहत होती है ना कोई राहत का ढंग होता बस पिए ही चले जाते हैं दिन भर रात मस्ताने कैसे होते हैं यह देख लो मस्ताने होते भी हैं कि नहीं होते तुम कहते हो परमात्मा है मैं तुम्हें कहता हूं थोड़ा मेरे पास आकर देख लो मेरे दायरे में थोड़ा आके देखो इस पहलू में थोड़ी देर इस दायरे में


थोड़ी देर रुक के देखो लेकिन यहां रुक मत जाना यह सिर्फ तुम्हें सिखाने के लिए मूर्तियों की तरह अंतत तो अपने ही भीतर उतरना पड़ेगा सीढ़ियों का सहारा तो ले लो लेकिन सीढ़ियों से पार होने के लिए सभी सीढ़ियों का सहारा दो इसलिए अष्टावक्र कहते हैं भोग भोगो और भोग छूट जाएंगे एक दिन स्वर्ग में भी ऊ होती है बोला जरा सोचो अगर ऐसा हो जाए तो तुम भागो नहीं तो और क्या करोगे जो मांगो वही मिल जाएगा तो फिर क्या करोगे यह तो तुम्हें मिलता नहीं इतनी मुशक्कल बहुत है भारी मुकाबला है अगर जन्मते ही तुम्हें आईएएस बना दिया जाए तो इतनी क्लासे लगेंगी


फिर दृष्टि नहीं चलेगी अगर सब कुछ तुम्हें मिल जाए बैठे बटाए वह व्यर्थ हो जाता है बेकार हो जाता है स्वाद आता है लड़ने में तूफानों से तूफानों से टकराने में आनंद रस आता है और जितना टकरा के तूफानों से तुम चीज को पाते हो उतना ही रस आता है ऐसे ही नहीं पाया है मुफ्त नहीं पाया है तूफानों से टकरा के पाया तो ठीक किया परमात्मा ने कि सृष्टि बना दी लेकिन अगर सृष्टि ना बनाता तो तुम भीतर उतरते और उस कल्प वृक्ष के पास चले जाते फिर जो मांगते मिल जाता तो जरा सोचो कितनी देर जीता जीने की इच्छा कितने दिन रहती तुरंत भाग जाते तुम


कहते बाज आए इस मोहब्बत से उठा लो पान तान अपना सनातन ने बड़ी शानदार खोज की थी जिस चीज को पाना है उसके विरोधी चीज को अच्छी तरह से भोग लो उसको अच्छी तरह से देख लो देखा जब अच्छी तरह से तुम देख लोगे तो मुक्त हो जाओगे तुम्हे भोगने से ड लगता है फिर कभी ऐसा नहीं होगा क्या कि समुद्र में से एक बूंद उड़कर फिर संसार में आ जाए बड़ी घबराहट होती है तुमने ठीक से पी नहीं पुत्र तुमने ठीक से पी नहीं या तुम्हें ठीक से पिलाने वाला कोई मिला नहीं अन्यथा तुम ऐसे प्रश्न पूछने के बजाय तुम हाथ में जाम लेकर घूम रहे होते हैं झूम बराबर झूम शराबी झूम बराबर


झूम झूम बराबर झूम शराबी झूम बराबर झूम काली घटा है मस्त फजा है काली घटा है मस्त फजा है जाम उठा के झूम झूम झूम झूम बराबर झूम शराबी झूम बराबर [संगीत] जो जिंदगी तर्क के लिए नहीं है इसलिए संत रोज कहते हैं तुमसे बुद्धि अड़चन बुद्धि गागर में सागर को समा लेना चाहती है और देखिए मैं भी तुम्हें रोज कहता हूं तुम में इतनी हैसियत नहीं कि तुम एक पानी की बूंद बना सको एक जर्रा रीत का बना सको जिसे तुम घटिया से घटिया कहते हो माटी हो गया माटी का जर्र बना सको य तुम में शक्ति नहीं है और तुम तर्क इतने बड़े करते हो य किस दुष्ट ने सिखाया


तुम्हे जिन्होंने तुम्हें जीने नहीं दिया जिन्होंने तुम्हें जीने का बल नहीं सिखाया उन दुष्टों ने तुम्ह खोपड़ी में उलज दिया ये पुराण और यह पुराण पंथिया ने जीने का तरीका सलीका छीन लिया तुमसे यह कोई तरीका नहीं ऐसी बातें तो पागल खाने में बंद पागल किया करते हैं किसी दुष्ट ने सनातन को नजर लगाती तो इतना शानदार सनातन का मर्म छीन दिया उसने विकृत कर दिया सब कुछ आए थे सवाल पर सवाल लागने लगे जिंदगी मिली थी जीने के लिए है अंगूर की बेटी पीने के लिए और तुमने उसके एनालास करने शुरू कर दिया ये सिर्फ दुष्टों की बात


है जो भीतर नहीं गए उन्हें जवाब नहीं पता वो तुम्हें कोरे शब्दों में लफा जीी में उलझा देना चाहते ह बात तो सीधी साफ सरल है यह मक्का मदीना यह तीर्थ यात्रा है यह कुंभ ज प्रयाग या हरिद्वार सब बकवास है मेरे पास सभी जगह से लोग आते हैं और सही बताऊं तो इन तीर्थों से ज्यादा आते हैं और आने भी चाहिए क्यों क्योंकि जिसने मजा चख लिया वो तो नहीं आएगा और जिसने तर्क ल के रस निकाल लिया कि नहीं है तीर्थों में तीर्थों में रहने वाले अक्सर लोग आनंद की तलाश में भागते हैं कहीं और तू नहीं और सही और नहीं और सही तू अगर है हरजाई तो अपना भी यही तोर सही हम भी


बदलेंगे स्थान को वो भी तीर्थ से मैदानों में आ जाते हैं कभी किसी को तीर्थों पर मिला है तीर्थों प नहीं मिलता क्योंकि तीर्थ तुम्हारे बनाए हुए नकली है तीर्थ नामा जे तिस पावे बिन पाने की नाई करी तीर्थ प जाना चाहते हो तो उसके बाने में रह लो नहा लोगे बाहर भीतर दोनों से निर्मल हो जाओगे उसके बाने में रहो उसकी मर्जी में रहो यही कहते थे लव से लव से कहते हैं वह जो करता है ठीक करता है और भले के लिए करता है ल सेने जी के देख लिया है सब पद्धतियां बेकार और बाबा ने भी सब पद्धतियां देख ली हैं जोर न जुगती छुटे संसार कोई भी जुगत


कर लो तुम संसार के बंधन से छूट नहीं सकोगे और संसार वास्तव में बंधन है ही नहीं यही झगड़ा है तुम्हारे दिमाग में संसार बंधन है कहां जहां पियो और जियो कहां बंधन है कहीं बंधन देखा तुमने कोई आचार्य कहते हैं शादी बंधन कहां बंधन है बताओ तुम्हारी सामाजिक रचना में बंधन है शादी में बंधन नहीं शादी तो कबीर भी करते हैं नानक भी करते हैं कोई बंधन नहीं होता लोई और कबीर ऐसे रहते हैं जैसे हीर राजा जैसे लैला शरी फरयाद तुम वैसे रह नहीं पाते तुम्हें जीने का सलीका जिसने अपने मैं को छोड़ना सीख उस दिन कोई भी चीज तुम्हारे लिए बंधन नहीं


होगी ना शादी ना मृत्यु जिनसे तुम इतना डरते हो शादी बंधन है मृत्यु से भय भी तो कारण कारण तुम्हारा मैं बंधन मैं में है शादी में नहीं बंधन में में है मृत्यु में नहीं मृत्यु की तरफ उन्मुख होने को तो गोरख कहते हैं मरो मरो हे जोगी मरो मरो मरण है मीठा देखिए एक छोटी सी बात आपकी समझने आ रोज प्रश्न पर प्रश्न उठा देते हो ऐसे कौन से शास्त्र पढ़ते हो तुम किस मूर्ख की रचनाएं तुमने पढ़ ली है कौन से कुए का जल तुमने पी लिया है जो तुम पागल हो ग हो बात तो बिल्कुल सीधी साफ है अष्टावक्र कहते हैं अपने पास पहुंचना है क्या करोगे


अपने पास पहुंचने के लिए कोई यात्रा थोड़ी करनी पड़ती है हम मेरे पास लोग आ जाते हैं मैं क आगे से मत आया कर क्यों बाबा आने का पुण्य मिलता रहेगा मैं उन्हें क्या समझाऊ मैंने कहीं जाकर पाया नहीं जहां गया था वहां से बाबा ने वापस भेज दिया जाओ यहां नहीं मिलेगा यहां तो दुष्ट बैठे हैं हरिद्वार क्या था आगे ऋषिकेश जाना था मेरी बायोग्राफी में पढ़ो बाबा बोले वापस चले जाओ नहीं मिलेगा तुम्हें यहां सब लुटेरे बैठे हैं तुम्हें जो वास्तव में जिज्ञासु लगते हो छोटी सी उम्र मात्र 20 वर्ष का 1973 का वह दिन 3 जनवरी भयानक


ठंड रात्रि का वेला शरीर पर पोशाक कोई नहीं दो पेंट पेंट से ऊपर पेंट सर्दी ना लगे और बनयान और शर्ट सिर पर गोली बंथा पैरों में बूट यह कुल सामान यह कुल संपत्ति मेरी थी और लस्कर जंक्शन पर बाबा ने मुझे कहा वापस चले जाओ व गाड़ी सामने खड़े तो मैं टिकट ले देता हूं तुम जाओ वापस नहीं मिलेगा यहां मैं रोज जा हूं रोज जाता हूं मेरा मेरा काम ही यह है यहां लुटेरे बैठे हैं ठग बैठे हैं तो तुम भोले हो मासूम दिखते हो चले जाओ यहां से लेकिन मैं बाजत रहा बाजत रहा तो उनकी लीला काम कर गई तीन गाड़ियां मेरे सामने से चली गई और


मुझे दिखी नहीं इतनी बड़ी गाड़ी कई घंटे बीत गए मैंने कुली से पूछा भैया ऋषि केश को गाड़ी कब आएगी आपने कहां जाना बहुत देर के बैठे मैं देख रहा हूं वहां पर कुली का काम करता था बा ढ होने का मैंने कहा मैंने ऋषि केश शना गाड़ी नहीं आ रही गाड़ी तो जब से मैं बैठा देखता हूं तुम्हें गाड़ियां तो तीन चली गई तुम्हें दिखी नहीं मैंने कहा गाड़ी कोई आई नहीं मेरी नजर बड़ी तेज है मैं एक किलोमीटर से देख लेता हूं गध जैसी नजर है बड़ी जवानी अच्छी खुराक और अच्छा वया 7 किलोमीटर की दौड़ तीन चार किलो दूध रोज का देसी घी खाने को कोई कमी नहीं


बरिष्ठ शरीर और आंखें इतनी तेज दूर से देख लेते हैं आज तो करीब से भी नहीं दिखता तीन गाड़ियां चली गई तुम्हें दिखी नहीं मैंने कहा नहीं गाड़ियां चल गई ही नहीं मैं यही तो बैठा हूं इतने में गाड़ी ओ आ रही थी कहता वो सामने से गाड़ी आ र है उस पर बैठ जाओ तुम चले जाओगे पता नहीं कौन था मैंने जीवन में ऐसे बड़े अजूबे देखे मेरी धर्म पत्नी के 110 बुखार बच्चे छोटे दो मैंने जाना है राम लीला में आखिरी दिन है राज्याभिषेक होना है 110 बकार एक टेंपू वाला बिल्कुल नया टेंपू आके खड़ा हो गया रुका शर्मा जी आपने मुझे बुलाया बुलाया तो नहीं था मुझे मैंने कहा


मैंने सोचा मन में लेकिन फिर उसकी लीला मैंने बच्चों से कहा कि जल्दी करो टेंपू में बैठा लेटा ले जाओ समझ गया किसकी लीला है य नहर में गिर गया रस्सी नहीं है तैरना कोई जानता नहीं और आज लोग श्रेय लेने को फिर रहे हैं जिस रस्सी के बिना मुझे निकाल नहीं सकते थे रसी बाबा कहते मैंने भेज और वो कहते हैं श्रेय हमें मिलना चाहिए अगर ना गिरता तो क्या होता श्रे किसे मिलता तुम पुण्य को भी श्रेय लेने का आधार बना लेते हो इसलिए दुनिया आज इतनी दुखी है फिर तुम परमात्मा को ढूंढते हो तुम ना जाने किस जहां में खो ग तुम ना जाने किस जहां में खो


गए हम भरी दुनिया में तनहा हो गए तुम ना जाने किस जहां में खो हम भरी दुनिया में तनहा हो गए तुम न जाने किस जहां में खो किस जहा में खो गए हमें बनाकर हम भरी दुनिया में तन्हा हो गया कहीं नहीं गया व उपनिषद चिल्ला चिल्ला के कहते हैं इा बस मदम सर्वम यत किंच जगत आम जगत जर्रे जर्रे में वह है उसका वजूद है वही ही है दूसरा कोई नहीं एक को ब्रह्म दत नास्ते और तुम कहते हो तुम कहां खो गए कहीं नहीं खोया वो तुम ही खोए फिरते होगे तुम शास्त्रों में खो गए तुम वेदव्यास के लिखे शास्त्रों में खो गए एक कसूर तुम्हारा है परमात्मा का नहीं


परमात्मा तो सब स्थानों में है सब जगह है बस तुम्हें ढूंढने की सरीका नहीं आया वह कहीं जाता नहीं वह कहीं गया नहीं उसी ठोर पर है वह कहते हैं दादू दूजा को नहीं कोई दूसरा नहीं है एक ओंकार सत्य नाम दादू दूजा को नहीं दूजी मन की दौड़ तुम्हारा मन दौड़ा है तुम्ह यह कल्पना के कारण तुम पटक रहे हो अन्यथा वोह तो कभी कहीं जन नहीं जिसकी तलाश में तुम फिर रहे हो तीर्थों में हज में मक्का मदीना दादू दूजा को नहीं दूजी मन की दौड़ तुम्हारा मन दौड़े तो को क्या करे दादू कहते हैं अगर तुम उस आनंद में प्रतिष्ठित होना चाहते हो


जिसे कृष्ण ने कहा स्थिति प्रग हो जा अर्जुन तो क्या करो दो गई संशय मिटा मन का दौड़ धूप बंद कर दो कहीं मत जाओ ल स्ट्रेशन देखने के लिए कुं जाओ बिल्कुल ठीक उसका नजारा देखो चखो मम बराबर झूम शराब पियो और झूमो यह बात अलग है लेकिन परमात्मा नहीं है वहा परमा कहीं नहीं मिलेगा तुम्हें अपने भीतर के सिवा कहीं नहीं एक ही रास्ता है आज चुन लो हजार जन्मों के बाद चुन लेना लाख जन्मों के बाद चुन लेना रास्ता एक है दौड़ मिटी संशय गया जैसे ही तुम्हारी दौड़ मिट गई मन ठहर गया मन के ठहरते ही तुम पाओगे जैसे ढूंढ रहे तो वो मिल


गया जिसकी तलाश जन्मों जन्मों से थी वह मिल गया तो फिर इतने जन्मों तक क्यों भटका तुम्हारा मन भटका तुम कहां भट गए वस्तु ठोर की ठोर तुम तो वही हो आद सच जगादेवी सच अर्थ कुछ और कर लेते हो तुम वो कहीं गया नहीं कहीं जाएगा नहीं यही है यहीं पर है यही रहेगा सदा तुम चले जाते हो तुम भटक जाते हो वह नहीं भटकता वस्तु ठोर की ठोर व वही रहता है बस तुम भागते हो कल्पना में तुम कहते हो गद्दिया ले ले मैं पहुंच जाऊंगा वहां जिसकी तलाश है धन के अंबार लगा ले सारी दुनिया पाव पूजने लग जाए आरती उतारने लग जाए मेरे मंदर बन जाए जीते जी बन जाएंगे


बना लो लेकिन आज सुन लो फिर सुन लो संत सदा से कहते रहे और कहते रहेंगे ना रब मक्के ना रब तीरथ कहीं नहीं मिलता मिलेगा तो तुम्हारे भीतर से मिलेगा और तुम्हारे भीतर से ही तुम उसे छोड़ के आए हो जहां छोड़ के आए हो वहीं पर मिल जाएगा वो तो जरा भी नहीं मिलता निर्लिप्त है अ कंप है उसकी लो हिलता ही नहीं वही जमा बैठा है क्योंकि सभी जगह समाया हुआ है जरा सोचो जो चीज सभी जगह समाई हुई है व कहां हिलेगी और हिलेगी तो जाएगी कहां जब है ही वह कहां जाएगी और कहां से हिलेगी कहीं नहीं जा सकती कहीं से नहीं हिल सकती वस्तु ठोर की ठोर वस्तु वहीं पर रहती है


जिसे तुम ढूंढ रहे हो व कभी चली नहीं कभी चलेगी नहीं वह सच है व ठहरा हुआ है बस तुम दौड़ रहे हो तुम्हारा ठहरना बाकी है वह तो ठहरा हुआ है जिसको पाना है मंजिल सदा वही है यात्री ही भटक जाती है जिसे छोड़ के जहां आए थे उसे वहीं पाओगे बड़े शोक से सुन रहा था जमाना बड़े शोक से सुन रहा था जमाना हम ही सो गए दास्ता कहते कहते बड़े शोक से सुन रहा था जमाना हम ही सो गए दास्ता कहते कहते तुम ही सो जाते हो दास्ता कहते कहते जमाना तो बड़े शोक से सुनता है वह तो तुम्हारा इंतजार कर रहा है आगोश अपनी बाहें फैलाई तुम्हें आगोश मिलेन को


तत् पर हर कड़ी तुम्हारी ही इंतजार है तुम कब जाओगे कोई कहीं नहीं जाता आता बस तुम्हारी कल्पनाएं ही आती जाती हैं उन्होंने ही इतना परिश्रम किया है और यह सब दुख तुम्हारे परिश्रम का फल है तुम्हें हैरानी होगी जानकर सब दुख तुम्हारी क्रिएटेडटेड किसी ने नहीं बनाए कोई तुम्हें दुख नहीं देता मानव निर्मित है दुख तु मिस हो जाते हो दास्ता कहते कहते वह तो सदा से मौजूद है वह तो कभी सो सकता भी नहीं उसका स्वभाव नहीं है सोना वह तो जागता ही रहता है वह सो नहीं कभी इसलिए भगवान कृष्ण ने कहा तुम्हारा संसार जब सो जाता है रात को मेरा


योगी रात को जागता रहता है बस यही इशारा था तुम समझ नहीं पाए तुम शब्दों के अर्थ करने में जुट गए और तुमने भटका दिया शब्दों के अर्थ करने वालों ने दुनिया को भटका दिया है अपने से दूर बहुत दूर निकल गई दुनिया से होके मजबूर चला मैं बहुत दूर बहुत दूर बहुत दूर चला तेरी दुनिया से होके मजबूर [संगीत] चला मैं बहुत द बहुत दूर बहुत दूर चला दूर निकलते निकलते इतनी दूर आ गया आंखें बंद हैं सपना दिख रहा कल्पना में खोए हो और गुरु तुमहे जड़ता है आंखें खोलो तुम ही हो तत्व मसी स्वेत केतो तुम ही हो आंखें खोलो सो क्यों ग हम ही सो गए दास्तान कहते


कहते श्री कृष्ण गोविंद हरे मुरारी हे नाथ [संगीत] नारायन वासुदेवा श्री कृष्ण गोविंद हरे मुरारी हे नाथ [संगीत] नारायण वासुदेव श्री कृष्ण गोविंद हरे मुरारी [संगीत] हे नाथ नारायण वासुदेव पितु मात स्वामी सखा हमारे पितु मात स्वामी सका हमारे हे नाथ नारायण वासुदेवा श्री कृष्ण ग विंद हरे मुरारी हे नाथ नारायण वासुदेवा श्री कृष्ण गोविंद हरे मुरारी हे नाथ नारायण [संगीत] वासुदेव धन्यवाद


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