ईश्वर हर इच्छा पूरी क्यों नहीं करता?अध्यात्म मार्ग में हम कहां गलती कर रहे है?गीता ज्ञान

 


दूसरे अध्याय का 50वा श्लोक बुद्धियुक्तो जहातीह उभे सुकृतदुष्कृते। तस्माद्योगाय युज्यस्व योगः कर्मसु कौशलम्॥ नमक पानी में घुल जाता है मिलता नहीं लेकिन अगर आप एक गिलास पानी में एक बूंद पानी की डाल दोगे वह घुले या मिलेगा मैंने आपको परिभाषा पहले बताई कि जो चीज घुलती है वह फिर से अलग की जा सकती है पानी में नमक को घोल दोगे वह अलग की जा सकती है लेकिन पानी में एक बूज पानी ही मिला दोगे तो फिर व बूंद ढूंढे से मिलेगी नहीं वो गई अज्ञात मेंक हो गई उसी बूंद को फिर से ना ढूंढा जाता है ना जा सकता है वह अाम हो गई तो समझिए यहां एक शब्द का प्रयोग कर रहे हैं


कृष्ण यो कर्म शु कौशलम कर्मों में कुशलता का नाम योग है योग कहा है योग योग का अर्थ है घुल जाना मिल जाना घोलने से शुरू करना होगा मिलने पर अंत हो जाएगा जैसे आप कोई भी कर्म करते हो कृष्ण कहते हैं इतनी लीनता से करो कि कर्म ही बचे तुम ना बचो ध्यान से समझना इन शब्दों को तुम कोई भी कर्म करो 100 प्रत अपनी शक्ति को इवॉल्व करके कर्म करो आज तुम जैसा कर्म करते हो उसमें तुम्हारी इन्वेस्टमेंट इवॉल्व होती नहीं 100 प्रतिशत आधा ध्यान इधर आधा ध्यान उधर तुम खाना भी खाते हो तो पता नहीं तुम्हारा ध्यान किधर किधर होता


है जरा देखना कभी ठहर के देखना खाना खाते खाते भी तुम्हारे मन में इतने विचार चलते हैं और जब इतने विचार चलते हैं तो तुम खाना खाने के कर्म में तली हुए कैसे अभी विचार बाकी है जब तल्लीनता आएगी तो उसकी निशानी समझ लो तल्लीनता का लक्षण है फिर तुम्हें विचार नहीं दिखेंगे दिखेंगे यानी आएंगे नहीं खाने खाने की प्रक्रिया में इतने तल्लीन तुम हो जाओगे कि तुम्हें पता नहीं चलेगा कि कौन सा विचार आया क्योंकि विचार आएगा ही नहीं इसे थोड़ी सी अन्य एक उदाहरण से समझने की कोशिश करेंगे हम मनुष्य डरता है दिन भर मृत्यु ना आ


जाए तुम इसी मृत्यु के मारे मार कंपतेलुगू मृत्यु ना आ जाए मृत्यु ना आ जाए एक पल के लिए भी अपने आप को असुरक्षित नहीं छोड़ते लेकिन क्या तुम यह जानते हो कि रोज तुम छ सात घंटे असुरक्षा में जीते हो जब तुम्हें मृत्यु की कोई परवाह नहीं रहती और सही जीने का आनंद उसी घड़ी में है तो कृष्ण की बात यहां सटीक यहां समझाए वह है नींद नींद में तुम अपने आप को पूरा पूरा छोड़ देते हो नींद में तुम अपने आप को पूर्णतया समर्पित कर देते हो विराट को कहीं मर ना जाऊं कोई चोरी ना कर ले कोई डाका ना पड़ जाए कोई लाभ हानि किसी तरह का कोई फिक्र नहीं होता


तनाव सोच चिंता कुछ नहीं होता तुम अपने आप को परिपूर्ण रूप से समर्पित कर कर देते हो उस विराट को बिना कहे और कई बार तो निद्रा इतनी गहरी आती है कि तुम्हें पता ही नहीं चलता कि तुम सो गए कृष्ण कहते हैं निद्रा की तरह समर्पण से भरा भरा अगर कर्म हो जाए तो वह तुम्हें निद्रा की भांति ही फ्रेश कर जाएगा इतने आनंद और स्फूर्ति से भरे तुम उठोगे कि तुमने कभी कल्पना नहीं की थी अभी तुम कर्म करते हो उस कर्म में तुम्हारी शक्ति वेस्ट होती है लगती है इसे करके देखना जिस दिन इस तरह से कर्म होने शुरू हो गए उस दिन कर्म एक योग बन


जाएगा योग यानी शक्ति का संचय उस दिन कर्म तुम्हारी शक्ति को खींचेगा नहीं तुम एनर्जी लेस नेस इसका एहसास नहीं करोगे तुम एनर्जी का एहसास करोगे जैसे निद्रा में जब तुम छोड़ देते हो तो निद्रा का आनंद भी चकते हो टाइमलेस नेस का आनंद भी चकते हो उस छ घंटे पाच घंटे सात घंटे 10 घंटे जो जितना सोता है उसमें सब फिक्र फाके खत्म कोई चिंता नहीं कोई तनाव नहीं कोई मृत्यु का भय नहीं इतने घंटे तुम बिना मृत्यु के भह के रहते हो भला कैसे होता होगा य और दिन में तुम ध्यान में जाते हो तो तुम कहते हो मृत्यु का भय हमें सताता है


छलांग मार के बाहर आ जाते हो अजीब विडंबना है दिन में अपने आप को छोड़ते हो तो भय लगता है बाहर आ जाते हो डरते हो हजार हजार सवाल मेरे पास आते हैं बाबा यहां थोड़ा सा ना खिंचाव हो रहा है तो इसको थोड़ा सा विस्तार से कहने का कष्ट करेंगे ये कपाल की जगह पर खुजली हो रही है यह क्या है थोड़ा सा बताएंगे हमारी बागड़ी में कहावत है बापू बापू कहा बड़ा सुख पाया बापू बापू कवाया बड़ा दुख पाया गुरु कहलाना आसान नहीं होता गुरु कहना बड़ा आसान होता है यह रात को मेरी बाई हथेली में खारिश होने लगी ऐसा सपना आया बाबा ये शुभ है कि अशुभ


है भला मैं तुम्हें हथेली में खारिश उसका फल बताऊं क्या होता है तुम उस मस्त हाथी की तरह हो जो जिधर चाहे उधर हो लेता है तुम्हारा मन बिल्कुल ऐसा ही है रात को वही तुम सो जाते हो आठ घंटे कोई मृत्यु का वय नहीं होता कहां जाता है मृत्यु का क्या करते हो ऐसा क्या कोई चमत्कारिक द्रव्य संजीवनी बूटी खाकर सोते हो कोई नफा नुकसान नहीं सोचते कोई चिंता तनाव नहीं सोचते और वही छोड़ते हो तुम दिन में अपने आप को ध्यान में तो झ छलांग मार के बाहर आ जाते हो अरे बाबा ये तो भीतर विकार ही विकार भरे हैं कैसे जाएं अपने भीतर तुमने कभी नहीं


पूछा कैसे जाएं नींद में नींद में बिल्कुल उसी तल पर पहुंच जाते हो तुम जिस तल पर तुम ध्यान में अंतरिम गहराई में पहुंचते हो बिल्कुल ऑन द सेम स्पॉट तुम कभी नहीं डरे कभी उठ के नहीं बैठे बहुत से सोते हो और सुबह स्फूर्ति से बरे तर होता जा खुश तबीयत प्रसन्न मुद्रा में उठते हो किया क्या तुमने सिर्फ छोड़ा समर्पण किया उस विराट के हाथों में वो भी किया नहीं हो गया प्रकृति तुम्हें एक सबक सिखाती है अगर तुम सीख सको तो प्रकृति तुम्हें सबक सिखाती है कि अगर तुम नींद की तरह जागते जागते भी इसी तरह मुझ पर छोड़ देगा तो उसी तल पर चला जाएगा जिस तल पर


नींद में गया और नींद में किस तल पर जाता है आदमी जिस तल पर ध्यान में जाता है ध्यान की गहराई में जिस तल पर पहुंचता है वह बिल्कुल वही होता है जो नींद की गहराई में तल होता है सुश में भी तुम वही होते हो और ध्यान में भी तुम समाधि में भी तुम वही होते हो यह बड़े मजे की बात है एक जगह जाने से तुम डरते हो एक जगह तुम मोज से चले जाते हो और यह दोनों घटनाएं तुम्हारे ऊपर रोज घटती हैं अब इसको क्या कहा जाए कृष्ण कहते हैं योग कर्मसु कौशलम कर्मों में कुशलता का नाम योग है आइए हम प्रसंग में गहरे चले दिन भर सभी तुम काम करते


हो जैसा भी किसी का बिजनेस है जैसा भी किसी का कोई उपार्जन का ढंग है घर परिवार चलाने का तुम उसमें काम करते हो लेकिन आज तक वो काम योग नहीं बना तुम पूछोगे मैं कैसे कह सकता हूं मैं ऐसे कह सकता हूं कि जिस दिन तुम्हारा कर्म की कुशलता योग बन गई उसके बाद तुम्हें आनंद के लिए अलग से ध्यान की आवश्यकता नहीं पड़ेगी यह अद्भुत सूत्र है कृष्ण का जिस दिन तुम कर्म करने में कुशल हो गए यही कुशलता नहीं आती तुम में बस बाकी सब तरह से कुशल हो तुम निंदा करने में चुगली करने में कुशल हो धन संग्रह में कुशल हो कूड़ा कबाड़ा इकट्ठा करने में


कुशल लेकिन कर्म करने में कुशल नहीं है कर्मों की कुशलता जिस दिन तुम्हारे भीतर आ गई उस दिन तुम योगी हुए योगी तुम घुल गए परमात्मा में परमात्मा में घुल गए और घुले हुए का अस्तित्व बाकी रहता है यह मैंने आपको पहले बता दिया तुम नमक जैसे हो जाओगे परमात्मा में तुम घुल सकोगे बिना बिना आनंद 24 घंटे उठोगे बैठोगे चलोगे फिरो काम करोगे बड़ी मस्ती जरूर रहेगा यह वह अवस्था है जिसे ब्रह्मानंद की अवस्था से पहले की अवस्था कहते हैं जैसे नमक घुल गया पानी में लेकिन पानी नहीं हुआ वैसे ही तुम ब्रह्म का स्वाद तो चखने लगे नमक पानी का स्वाद तो चकता है लेकिन


पानी होता नहीं बातों को गहराई से समझना उदाहरण हैं इशारे हैं शब्द हैं समझने की चेष्टा करना तो तुम्हें बराबर समझा आएगी नमक पानी में घुलता है पानी का स्वाद चकता है हर वक्त पानी में रहता है लेकिन पानी हो नहीं जाता यही तुम्हारी अवस्था अगर हो जाए तो तुम धन्य भागी होए क्या कहा मैंने तुम धन्य भागी हुए तुम भाग्यशाली नहीं हो गए भाग्यशाली कब होगे जब तुम पानी ही हो जाओगे जब तुम बूंद बन जाओगे पानी की तो फिर तुम समुद्र में समा जाओगे बूंद समानी संबंध में अभी तुम बूंद नहीं हुए हो अभी तुम नमक हो गुल सकते हो आनंद ले सकते हो जीवन का उस ब्रह्मा


का उस विराट का आनंद तुम मान सकते हो विराट में घुल सकते हो लेकिन ध्यान रखना घुलने में इतना आनंद आएगा तुम्हे बहुत से व्यक्ति इस गल्ले में ही ठहर जाते हैं उनको भगवान कृष्ण योग भ्रष्ट कहते हैं कितनी सुंदर अवस्था है भीनी भीनी महक उस बगीचे में हर वक्त बैठे रहना 2400 घंटे ब्रह्म के पास रहना लेकिन कृष्ण कहते हैं वह योग भ्रष्ट हुआ बस वह संतुष्ट हो गया ब्रह्म में घुलने से संतुष्ट हो गया लेकिन कृष्ण तुम्हें कोई और पड़ाव पर ले जाना चाहते हैं बस एक कदम और [संगीत] दूर कृष्ण कहते हैं नमक मत बने रहो नमक बनने से तुम ब्रह्म का स्वा तो चख


होगे ब्रह्म में ही रहोगे जैसे मीन जल में ही रहती है लेकिन किसी दिन जल से अलग हो जाती है और तड़पती है और मर जाती है तो तुम मीन की तरह पानी में रहोगे पानी का लुत उठाओगे पानी तुम्हारा जीवन होगा नमक की तरह घुल जाओगे पानी का स्वाद चक हो गए मीन भी पानी का स्वाद चकती है नमक भी पानी का स्वाद चक लेकिन ना तो मीन पानी हो सकती है ना नमक पानी हो सकता है दोनों से अलग रहता है जल दोनों से अलग रहता है मीन से भी और नमक से भी ब्रह्म का आनंद तो मिल जाएगा ब्रह्म के करीब आ जाओ सुषुप्ति में भी तुम ब्रह्म के आनंद में हो


जाते कोई पता नहीं होता और उसका लक्षण है बाबा नानक ने बताया उसका लक्षण है निर्प निरवैर जब तुम सुषुप्ति में होते हो तो तुम्हें कोई भय लगता है तुम्हारा कोई बैरी होता है नहीं होता यह लक्षण है ब्रह्मानंद का लेकिन नमक इसका स्वाद चक सकता है नमक जब घुलता है पानी में वह निरवैर होता है निर्भय भी होता है कोई भय नहीं होता उसे बस मिल गया पानी में मिल गया घुल गया पानी का स्वाद चक लिया तो बाबा कहते हैं निर्प निर्वैर अकाल मूरत अजुी सपम सपम जहां आकर मार खाएगा नमक बाबा कहते हैं भगवान परमात्मा आनंद खुद से ही प्रकाशित


है लेकिन नमक खुद से प्रकाशित नहीं नमक पानी से प्रकाशित है नमक पानी में घुल गया है पानी नहीं हो गया है तुम्हारा लक्ष्य है पानी हो जाना पानी में घुले रहना आनंददायक तो है पानी में घुले रहना ब्रह्मानंद को उठाना तो है भीना भीना आनंद खुमारी वोह खुशबू तुम्हारे प्राणों में आती रहगी तुम उस सुगंधी को पीते रहोगे मानते रहोगे हल्की हल्की सी खुशी तुम्हारी रोए रोए में छाई रहेगी ब्रह्म का लुत्फ तो तुम उठाते रहोगे लेकिन कृष्ण कहते हैं तुम सदा अलग ही बने रहोगे नमक कहां मिलता है पानी में नमक को जब चाहो तुम अलग कर सकते


हो पानी निकालो सूरज की धूप में रखो पानी उड़ जाएगा नमक रह जाएगा ताली में यही तो करते हैं यह टेबल साल्ट बनाने वाले पानी को ले आते हैं धूप में रख देते हैं पानी उठ जाता है वाष्प बन के थाली में नमक शेष रह जाता है वो आपको खाने के लिए परोस देते हैं जब चाहे अलग किया जा सकता है नमक लेकिन अगर तुम पानी ही हो जाओ बारिश बन के टपक पड़ो मूसलाधार बारिश बनकर समुद्र में टपक पड़ो तो क्या वह बूंदे समुद्र में अलग की जा सकती हैं कभी नहीं की जा सकती जब बूंद समुद्र में मिल जाती है किसी भी ढंग से उस बूंद को फिर से खोजा नहीं जा


सकता अलग करना तो बड़ी दूर की बात है यू कैन नॉट इवन सर्च दैट तुम यहां तक के उसे खोज भी नहीं सकते कहां गई वो समा जाती है बूंद समानी समध में फिर तुम्हें नहीं पता चलता वो कहां गई बस वह समुद्र ही हो जाती है मुझे लोग पूछ लेते हैं यह कबीर नानक कृष्ण राम मेराम जैसे लोग कहां जाते हैं मैंने कहा जाते तो ये सागर में है बूंद की तरह लेकिन समा जाते हैं अगर तुम कहो कि कबीर की बूंद को निकाल लिया जाए कृष्ण की बूंद को राम की बूंद को मीरा इनकी बूंदों को अलग फिर से कर दिया जाए तो असंभव है मुश्किल नहीं इट इज इंपॉसिबल


जब कृष्ण कृष्ण है तो वह जब कृष्ण समुद्र हो गए तो वह समष्टि हो गए इन दो शब्दों को याद रखना जब कृष्ण कृष्ण की तरह रहेंगे तो कृष्ण व्यष्टि में रहेंगे फिर उनका अपना चरित्र होगा अपने काम करने के ढंग बोलने के ढंग दुनिया में रहने सहने का ढंग उनका चरित्र उनका स्वभाव ये सब काउंट करेगा बहु व्यष्टि है लेकिन जब कृष्ण की बूंद समुद्र में समा गई और समुद्र हो गई बूंद समानी समुंद्र में तो समष्टि हो गए और जब व्यक्ति समष्टि हो जाता है तो उसका निजी चरित्र व्यष्टि समाप्त हो जाती है उसका निजी कुछ नहीं रहता सब समष्टि का हो जाता है सब उस विराट


का हो जाता है वह विराट में जो मिला तो विराट ही हो गया वष्टि जब समष्टि में समा जाता है बूंद जब समुद्र में समा जाती है तो समष्टि ही हो जाती है समुद्र ही हो जाती है फिर उसको खोजना असंभव लेकिन अगर तुम बूंद नहीं हो नमक हो रात्रि को सोते वक्त तुम बूंद नहीं होते यह कमी होती है योगी योग में नमक की तरह होता है जब चाहे अलग किया जा सकता है तुम रात को नींद में जाते हो सुबह बाहर आ जाते हो ना तुम अलग कर लिए गए ना तुम मिले तो नहीं तुम गुम तो नहीं हुए तुम फना तो नहीं हुए तुम विदा तो नहीं हुए लेकिन रात को उतनी देर तक तुम विदा


रहे उतनी देर तक तुम फना रहे जब तक तुम समष्टि में रहे मिले नहीं अलग बने रहे नमक सदा अलग रहता है तो नींद में सुषुप्ति में तुम ब्रह्मानंद में तो होते हो इसलिए सुबह इतने फ्रेश उठते हो ब्रह्मानंद के करीब होते हो और वही आनंद पीते हो जो नमक समुद्र में रहकर पीता है लेकिन नमक को अलग किया जा सकता है जब तुम भोर भई जगते हो तो फिर अलग हो जाते हो ऐसा जब तुम बूंद बन जाओगे तो फिर ऐसा नहीं हो सकेगा अगर तुम चाहोगे भी अलग होना तो हो नहीं सकोगे और समुद्र कभी चाहेगा भी नहीं बूंद होना ध्यान रख समष्टि कभी नहीं चाहेगी बूंद


होना इतने आनंद को छोड़कर एक छोटी सी बूंद का आनंद हो जाना भला कौन चाहेगा इतने विराट आनंद की अस्तित्व को छोड़कर एक छोटी सी बूंद का आनंद हो जाना कौन चाहेगा ऐसा कोई मूर्ख ही होगा कृष्ण यह बात कहते हैं योग कर्मसु कौशलम योग की बात है लेकिन योग की बात अल्टीमेट नहीं है योग की बात तुम्हें सभी रोगों से छुटकारा दिला सकती है ऐसा नहीं एक रोग बाकी रह जाता है क्या समष्टि तुम बचे रहते हो क्षमा करना व्यष्टि का समष्टि होना बाकी रह जाता है नमक घुल जाता है मिल नहीं जाता जैसे सुबह तुम सुषुप्ति से निकल के बाहर आ जाते


हो वैसे बूंद समुद्र से निकल के बाहर नहीं आती सकते और वह आना भी नहीं चाहेगी नमक आना चाहेगा क्योंकि अलग है तो रात को तुम नमक की तरह होते हो और योग में भी तुम नमक की तरह होते हो योगा कर्मसु कौशलम कर्मों में कुशलता का नाम योग है कर्मों में कुशल कैसे हुआ जाए क्या है विधि 100% अपनी शक्ति को कर्मों में इन्वेस्ट कर दो जो कर्म करो पूरी तलिता से करो जरा भी ना बचे तुम जरा भी ना बचो करने वाले जब करने वाले ना बचोगे तो करता ना बचेगा जब करता ना बचेगा तो भोगता ना बचेगा बस यही समझाना चाहते हैं बहुत गहरा सूत्र महीन सूत्र है सूक्ष्म


है और कृष्ण तुम्हें यही समझाना चाहते हैं कि एक बार नमक की तरह तो हो जाओ अभी तक तो तुमने सोने चांदी का गद्दिया का मान मर्यादाओं का स्वाद लिया पदार्थों का स्वाद चखा था लेकिन पदार्थों से परे भी कुछ है और जो सच्चा आनंददायक है वह पदार्थों से परे ही है कृष्ण कहते हैं पहले योग का स्वाद ले ले वह है कैसे वो कैसा है अभी तक तो तुमने आनंद को चखा भी नहीं जब चखो के नहीं तो भीतर म मक्ष कैसे जगे गी कैसे दद के गी वो अग्नि बराह की ध्यान रखना विरह की अग्नि तब धधकती है जब प्रेमी प्रेमिका की आंखें चार होती है और एक


अदृश्य अमृत की बूंद उनके भीतर उतर जाती है दोनों फिर वह उस अमृत की फिर देखभाल करते हैं लेकिन मिलता नहीं तो नहीं मिलता वह क्षण होता है विरहा का विरहा के भीतर व्यक्ति जलता है क्योंकि बारबार तुम्हारा मन उधर खींचता है उस लमहे में इतना आनंद था इतना खिंचाव था इतनी कशिश थी वो था क्या वो दो नैना जो मिले दो नैनों से मिले बिजली सी चमकी कंद गया कुछ और एक मिठास सी हृदय में उतराई एक आनंद भीतर उतरा फिर आंखें आंखों से हट गई लेकिन दिल ढूंढता है फिर वही फुर्सत के रात [संगीत] दिन बैठे रहे तसव्वुर [संगीत] जाना किए


हुए दिल ढूंढता है फिर वही दिल वही ढूंढता है वही क्षण फिर आ जाए लेकिन वह क्षण आता नहीं जब वो क्षण नहीं आता उसे मीरा कहती है प्रेम दवानी री मैं तो प्रेम दीवानी मेरो दर्द ना जाने [प्रशंसा] को हेरी मैं तो प्रेम दीवानी मेरो दर्द ना जाने [प्रशंसा] [संगीत] को वो जो कसक भीतर उतर गई थी आनंद की भारों ने तुम्हारे रोए रोए को घेर लिया था क्षण भर के लिए वो बिजली चमके और खो अज्ञात में वह क्या था उसी लमहे को मन फिर ढूंढता है बस उसी लमहे को तुम्हारी आत्मा भी ढूंढती है जब तुम्हारी आत्मा एकाकार थी समुद्र से और विलग हो


गई बिरहा की आग जलती है तुम्हें याद आती है उस आनंद की जो आंखों से आंखें मिली थी और एक आनंद की लस्क आई थी लो भूली [संगीत] दास्तान लो फिर द गई वो भूली दासता लो फिर याद आ [संगीत] गई नजर के सामने घटा स छा गई [संगीत] वो भूली दास्ता लो फिर याद आ गई नजर के सामने घटा स छा गई याद आता है पुराना वह दास्तान याद आती है जब यह बूंद समुद्र में एकाकार थी नजर के सामने एक घटा सछ आ जाती वह क्या था काश मैं फिर उन्हीं लब हो में लौट जाऊं बूंद की ये चाहत इसे ही बरहा कहते हैं इसे ही प्रेम की अग्नि कहते हैं तुम्हारी भी यही चाहत


है लेकिन तुम ढूंढते हो मान मर्यादा में नाम अमर करना चाहते हो सुमेरू पर्वत जितना धन इकट्ठा करना चाहते हो सोने के अंबार लगा देने चाहते हो ग्रीस में कहावत कहानी प्रचलित है विडास नाम का एक व्यक्ति उसमें कोई अद्भुत शक्ति ने प्रवेश किया ग्रीस की प्रचलित कथाओं में से यह एक बड़ी सुंदर कथा है तुम चाहते हो सोने के महल खड़े कर देना हिमालय पर्वत सुमेरू पर्वत खड़े कर देना सोने के कर दो यह कहानी उसी सुमेरू पर्वत की तरफ इंग करती है मिडास नाम का व व्यक्ति ग्रीस में उसमें अचानक एक सद्धि आ ग अच्छा भला था आदमी चलते


चलते उसने एक पात्र को छू दिया जैसे कहते हैं कि पारस पारस लोहे को टच कर दे तो सोना हो जाता है बस उसमें कुछ इस तरह की ही स्थिति आ गई थी ऐसी सिद्धियां होती हैं पारस मैंने खुद अपनी आंखों से देखा है मेरी जीवनी में तुम्हें पारस का वृतांत मिल जाएगा एक बहुत बुजुर्ग संत के पास य पारस तो उस मिडास में यह सिद्धि आ गई कि वह जिसको भी छू देता लोहे को नहीं जिसको भी छू देता वो सोने का हो जाता तुम सोने को इकट्ठा करने की तजवीज बनाई जाते हो क्या करें क्या विसात बठ भारत कभी सोने की चिड़िया थी फिर सोने की चिड़िया हो जाए क्या हो


जाएगा अगर जीने की कला ना हो तो सोने का क्या करोगे सोना तो ना खाया जाता है ना भूख मिटती है ना तन का ढपा जाता है सिर्फ दिखावे के लिए सोना होता है सोने का कोई उपयोग नहीं होता सोना का उपयोग सिर्फ यही है कि हमारी नजरों में कंपट है सोना लोहे के मुकाबले बस हमने उसे मान दे दिया और मनुष्य की नजरों में सोना मान रखता है तो सोना ऊचा है तो मिडास जिसको हाथ लगा देता वो सोना हो जाता कहानी दमदार है इस कहानी से सबक ले लेना खबर दूर दूर तक फैल गई कल तक जो उसको गले लगाने को बेताब थे बड़ा प्यारा व्यक्ति था बहुत से लोग बहुत सी स्त्रियां बहुत से


आदमी उसे गले लगाने को बताव रहते थे लेकिन एक स्त्री ने उसको गले लगाया वह सोने की हो गई स्टैचू बन के वहीं खड़ी हो गई सोने की स्त्री बाकी तो घबराए यह क्या हो गया अब मिडास दूसरे को छूना चाहे व भागे स्त्रिया दूर दूर भागने लगी पुरुष जो हाथ मिलाना चाहते थे भागने लगे छू मत्र हो जाते देख दौड़ लगा देते ये क्या हुआ तुम्हारे पास भी अगर ऐसे कर आ जाए तुम चाहते तो हो जिसे छू दू वह सोना हो जाए माटी को छू दू वह सोना हो जाए लेकिन इसका हाल देखना क्या हुआ घर गया उसकी घरवाली कांपने लगी हाथ जोड़ के खड़ी हो गई मुझे छूना


मत तब तक खबर उठ गई थी ज बच्चे उसके पाम हाथ लगाते वह भागने लगे वह बच्चों से प्यार करना चाहता चूमना चाहता बच्चे भागते हद हो गई सभी चीजें जो तुम सोचते हो तुम्हें पता नहीं अगर वह सच हो जाए तो उनका नतीजा क्या होगा तुम सोचते हो कि मैं मिट्टी को हाथ डालू सोना हो जाए तो इस आदमी का हाल देखो क्या होता है मिडास ने उस स्त्री को गले लगाया व स्टैचू हो ग जो आदमी उसके करीब आ रहे थे हाथ मिलाने को उन्होंने उस स्त्री की दशा देख के भाग गए क अरे यह तो खतरनाक काम है और बाकी तो छोड़ो घर वाले जिसको छू दे वह सोना धर्म पत्नी कांपने


लगी हाथ जोड़ के बैठ गई अर्जुन की तरह कांपने लगी देखिए मेरे मुझे छू मत देना और बच्चे तो भाग गए उसके करीब ना आए व बुलाए अरे टनू बनू आजा अब कौन आए बोले ही नहीं सांस ही ना भरे तुम सोच तो लेते हो परमात्मा समझदार बहुत है वह समझदार है इसलिए तुम बच जाते हो अगर वोह तुम्हारी हर इच्छा को पूरी करने लग जाए तो नर्क बनते हो जिंदगी को देर ना लगे तुम भूल जाते हो इसलिए परमात्मा को दयालु कहते तुम तो चाहते हो कि मैं माटी को हाथ लगाऊं सोना हो जाए लेकिन परमात्मा ही दयालु है वह तुम्हारी इस मूर्खता को अंजाम नहीं देता पूर्ण नहीं करता उसे पता है मूड


है अगर में मैंने इसकी इच्छा पूरी कर दी तो क्या होगा वह अच्छी तरह से जानता है फिर सोना जीवंत चीज सोना हो जाएगी तुम कहते हो मिट्टी सोना हो जाए लेकिन तुम्हें नहीं पता जिसको छुओ वह मिट्टी मिट्टी क्या मनुष्य होगा तो व भी सोना हो जाएगा जिंदा मुर्दा हो जाएगा यह भूल जाते हो तुम तुमने दूसरा पहलू कभी सोचा ही नहीं होता तुमने सिर्फ यह सोचा होता है कि मैं मिट्टी को हाथ लगाऊ सोना हो जाए तुमने कभी यह नहीं सोचा कि जीवंत आदमी को हाथ लगाऊंगा वो भी सोना हो जाएगा अगर यह सिद्धि कहीं आ गई तो ऐसी सिद्धियां होती हैं मैं नहीं


जानता लेकिन ऐसा हो गया मिडास के साथ ग्रीस में आदमी थाय उसको किसी ने संभाला नहीं ना खाने को रोटी ना पीने को पानी कुछ नहीं दिया किसी ने ना कोई मित्र रहा ना कोई शत्रु रहा शत्रु भी भागने लगे तुम यह मत सोचना कि शत्रु सामने आ जाएंगे शत्रुओं को तो पता है कि अरे यह तो खतरनाक हो गया यह तो बस सिर्फ हाथ ही लगाना है लड़ाई झगड़ा तो करना नहीं और हम तो गए काम से तुम्हारी सभी सोच तुम्हारी सभी वासना तुम्हारी सभी इच्छाएं परमात्मा दयालु है इसलिए पूरा नहीं करता अगर कहीं वह दयालुता पर उतर जाए सच में तुम्हारी जिंदगी नर्क बन जाए


तुम खाने के लिए रोटी को हाथ लगाओ और वह सोना हो जाए कैसे खाओगे सोने से पेट नहीं भरता और सोना चपाया भी नहीं जाता ध्यान रखना गले में अटक जाएगा तुम मूढ़ मती हो इसलिए मैं चिल्लाता हूं कि तुम मूर्ख हो तुम ऐसी ऐसी डिमांड कर देते हो परमात्मा के सामने वह तो परव दिग है वह तो कृपा का सागर है कृपा निधान वह तो रहमो करीम है रहीम है रहम करता है तो तुम्हारी इच्छा हर इच्छा पूरी नहीं करता और तुम बाजि द हो कि हमारी हर इच्छा पूरी नहीं होती मैं कहता हूं तुम बाजि होना छोड़ दो तुम मूढ़ हो बस तुम्हारी वही इच्छा पूरी हो इसलिए


बाबा नानक कहते हैं कर वही जो तेरी मर्जी मेरी तो यही अर्जी पलटू यही कहते हैं जो तुध पावे सोई पली का तू सदा सलामत निरंकार समझदार व्यक्ति ही यह बात कह सकता है बाबा जैसा नानक ही इस बात को कह सकता है क्योंकि नानक जानते हैं मन तो मूर्ख है मन तो ना जाना क्या-क्या उपरा करता है मन तो ना जाना क्या क्या सोचता है क्या सिर में मरेगा सोना जाती तो एक सुई का नोक भी नहीं साथ में तो सुमेरू पर्वत खड़े करके सोने के लेगा कहां क्या करेगा मारकर गोली करा ली जाएगी बे महूरत के उठा ली जाएगी जब तेरी डोली निकाली जाएगी बहुत लोग मुझे पूछ लेते हैं कि


परमात्मा दयालु कैसे हुआ बलत्कार होते हैं हत्या होती हैं चोरिया डाके होते हैं मैं कहता हूं वो दयालु है बस तुम नहीं समझ सकते इतनी ही दया है उसने तुम्हारी इच्छा पूरी नहीं की बहुत लोग रोते हैं हमारी यह इच्छा थी बाबा पूरी नहीं ई मैंने कहा अगर परमात्मा ने पूरी नहीं ना की तो व रहमो करीम है व बड़ा रहम करने वाला है वह कृपा करता है तुम पर जो इच्छा नहीं पूरी करता अवश्य इसमें कोई ना कोई तुम्हारा बुरा होगा तो उसने तुम्हारी इच्छा पूरी नहीं की लेकिन कहीं सोचा होगा और उसकी इच्छा पूरी हो गई पूरी हो गई है तो संकट में


पड़ा अब करे क्या ना दोस्त रहा दोस्त दोस्त ना रहा प्यार प्यार ना रहा [संगीत] जिंदगी हमें तेरा तबार ना रहा तबार ना र दोस्त दोस्त ना रहा प्यार प्यार ना रहा य जिंदगी हमें तेरा ऐतबार ना रहा अगर तुम्हारी कोई इच्छा पूरी नहीं होती तो बाबा नानक का यह शब्द याद रखना तेरा पाना मीठा लागे और पूरे हृदय से कहना अगर तूने नहीं पूरी की ये इच्छा तो अवश्य ही तू तू विराट है और तेरी बुद्धि भी विराट है तेरी कारीगरी भी विराट है तेरी संरचना भी विराट है तेरी कला कृति भी विराट है तू भी विराट है तेरी सर्जना भी विराट है सर्जन हार भी


विराट है अवश्य ही तेरे दिमाग विराट है मेरा दिमाग अक्षद है मेरे सोचने में कहीं कोई गलती हो गई जो तूने नदर नहीं की अन्यथा अगर नदर कर देता तो फिर मिडास जैसी हालत तुम्हारी भी होती सोने के पहाड़ तो खड़े कर दोगे जिसको हाथ लगाओगे सोने का हो जाएगा लेकिन याद रखो रोटी भी सोने की हो जाएगी खाओगे क्या मर जाओगे भूख से पानी पियोगे हाथ लगाओगे छुओ ग सब सोना दूसरा पहलू तुम कभी सोचते नहीं इसलिए तुम दुखी हो संत दूसरा पहलू सोच लेता है अगर उसने मेरी इच्छा पूरी नहीं की तो इसमें अवश्य ही मेरा निहित सुख होगा अगर वह पूरी कर देता तो फिर मिडास की


तरह मुझे भी रोना पड़ता मैं भी चिल्लाता हे प्रभु फिर तुम कहते मैं तो बुद्धिहीन था मेरी तो बुद्धि शुद्र थी तूने तो सोच लिया होता फिर तुम वैसे ही उला फिर तुम उलाने इस प्रकार शिकायते करोगे तू तो सोच लेता तू तो बड़ा था बृहत था विराट था सर्जन हारा था सब तूने बनाया था तू जानता था मेरा क्या नुकसान होगा फिर भी तूने पूरा कर दिया मुझे चीफ जज बना दिया मुझे पीएम बना दिया पता था जूते पड़ेंगे क्यों बनाया परमात्मा तुम्हारी इच्छा अगर पूरी नहीं करता तो सबर लेना व रहमो करीम है कृपा निधान है कृपा का सागर है और वह है बस संत से अगर सीखनी हो तो एक


बात सीख लेना चमत्कार मत सीखना सं से चमत्कार देख केर प्रभावित मत होना सीखनी हो तो एक बात सीख लेना और इसके आगे तुम्हारे लाखों चमत्कार फ है एक बात सीख लेना वह जो करता है ठीक करता है और वह है ही इज ही एजिस्ट वह विद्यमान है अगर उसकी आंखों में झांक के तुम देख सको गहराई से तो सबूत मिल जाएगा कि वह है अगर उसकी आवाज को गहरे से सुन सको गहरे तलों से आती हुई उस पुकार को सुन सको तो तुम्हें एहसास होने लगेगा कि वह है और सत्संग का यही महत्व था कि तुम्हें किसी ना किसी तरह सत्य पर यकीन हो जाए और यह सत्य है कि वह है मार्क सत्य नहीं है मार्कस ने खोजा


नहीं मार्कस ने के अहंकार की बलि नहीं दी बचा के रख लिया और स्वयं के अहंकार की बलि दिए बिना उसके दर्शन नहीं होते और मार्कस बिना अहंकार की बलि दिए कहता है कि वह नहीं है तो ठीक कहता है अहंकार की बलि नहीं चढ़ाई तो वह दिखेगा भी नहीं उसका होना और उसके होने का सबूत ना मिले सिर्फ जच जाए विश्वास हो जाए श्रद्धा हो जाए श्रद्धा विश्वास रूपनो या ब्याम बिना ना पश ना दिखे ना अनुभव हो ना प्रत्यक्ष हो सिर्फ हृदय में जच जाए कि वह है और कैसे जचे संत के संग से जचे संत की मीठी वाणी को सुनक जगा संत की बा बातों से समझा आएगा संत के


लक्षणों से कृत्यों से समझाएगा व क्या करता है वह क्या खाता है वह क्या बोलता है कैसे जीवन यापन करता है और क्यों करता है इसलिए संत के जीवन को गहराई से देखना और जितने गहराई से तुम देखते जाओगे उतने ही तुम आस्तिक होते जाओगे तुम एक चीज का भरोसा हो जाएगा इसलिए भगवान कृष्ण ने कहा संत का संग करना संत के दायरे में रहना तो तुम बिना कुछ किए बिना कोई प्रयास के तुम भी संत हो जाओगे अमानम दमित हिंसा राजम आचार्य उपासना शचम स्म आत्म विन ग्र आचार्य पासना संत के संग बैठ जाना संत के दायरे में बैठ जाना संत के कहीं आसपास बैठ


जाना इसलिए सत्संग का इतना महत्व था सतयुग से कलयुग आया बात बिगड़ती चली गई सतयुग निर्भग था सत्य था सत्य का बोल वाला था बिगड़ता गया बिगड़ता गया कहते कि सतयुग में चार धर्म के पां थे त्रेता में दो र तीन रह गए द्वापर में दो रह गए सतयुग में चार थे त्रेता में तीन रह गए द्वापर में दो रह गए कलयुग में धर्म का एक पाव रह गया बस उस एक पाम से दुनिया चल धर्म का एक पांव बचा है बाकी उने चरण चूम लिए हैं पाप के अधर्म के सतयुग में चार पाप थे बड़ी ईमानदार थी व्यक्ति भीतर ही रहता था बहर मुखी कम ही होता था उन मुनि मद्रा में रहता था हर


वक्त सतयुग की यह महिमा थी हर व्यक्ति अंतर्मुखी रहता था और जो जितना अंतर्मुखी होगा उतना सुखी होगा जो जितना अंतर्मुखी उतना ही सुख है उसके बाद भगवान राम आए त्रेता आया तो पाव चार से घट के तीन रह गए और फिर द्वापर आया तो पाव दो रह गए अब कलियुग आ गया धर्म का एक पाव है बाकी सब चरण चुंबक बन गए तो इन्हें मिडास की कहानी अवश्य सुननी चाहिए जोड़ो ग लेकिन जो जोड़ो ग वो खा भी सकोगे माटी को छू दूं सोना हो जाए हो जाए लेकिन कभी सोचा कि रोटी खाऊंगा तो व सोने की हो जाएगी फिर क्या करूंगा सोने से तो पेट नहीं भरता सोना तो


चबाए भी नहीं जाता सोना तो भूख भी नहीं मिटाता फिर क्या करोगे यह भूल जाते हो तुम दूसरा पहलू सिक्के का तुम देखते नहीं परमात्मा बड़ा दयालु है जो तुम्हारी हर इच्छा पूरी नहीं करता वह दयालु इसीलिए है कि तुम कमतर बुद्धि हो कमतर कहा भी तो क्या कहा नेगलिजिबल भी कहा तो क्या कहा तुम हो ही नहीं इस विराट को देखो पूछो विज्ञान कों से कि इस विराट में मेरा कितना प्रतिशत है वैज्ञानिक ताली मार के हंसेगा क्या बताएं जीरो लगाते थक जाएंगे पॉइंट के आगे तुम्हारी कोई आका नहीं यू आर नेगलिजिबल और तुम कहते हो बस मैं हूं मैं


हूं तो मुमकिन है इसे ही अहंकार कहते हैं और बिना इसको खोए अगर मार्क्स कहता है वह नहीं है तो बिल्कुल ठीक कहता है सटीक ईमानदार लेकिन ईमानदार व्यक्ति सुखी होगा यह मुश्किल ही नहीं असंभव है अगर ईमानदार अहंकारी है सुखी नहीं लाख ईमानदार हो मार्क्स लेकिन अहंकारी हो सुख उसके पास नहीं भट केगा दुखी ही रहेगा अहंकार का होना दुख का होना है जिस दिन अहंकार हो जाएगा उस दिन सुख की आहट होगी फिर धीरे-धीरे सुख आएगा अभी तुम सुखी नहीं हो बुद्धि युक्त जहा तीह उभे सुकृत ते अपने जीते जी जब तक प्राण है शरीर में जीते जी सुकृत और दुष्कृतम्


दूर हो जा जीते जी हो जा मर कर तो सभी हो जाते हैं मर कर तो ना पुण्य होता है ना पाप होता है कर ही नहीं सकता ति मरकर तुम दान भी नहीं कर सकोगे और मरकर तुम हत्या भी नहीं कर सकोगे मरकर तुम श्रेष्ठ वाणी भी नहीं बोल सकोगे और मरकर तुम गाली भी नहीं निकाल सकोगे ध्यान रखना दूसरे ही बोलेंगे राम नाम सत्य है तुम नहीं बोल पाओगे बुद्धि युक्त जती उभे सुकृत दुष्कृतम् चज स्व होता है कर्मेश कौशलम योग कर्मों में कुशलता को कहते हैं भगवान कृष्ण कर्मों की कुशलता क्या है तुम्हारी 100 प्रतिशत शक्ति कर्म में इन्वेस्ट हो जाए कर्म ही बचे करता ना


बचे कर लीन हो जाए और लीन हो जाए तो उसका स्वाद चखेगा फिर कर्म करना तुम्हारे लिए सुखद होगा तुम कभी देखना कोई भी कर्म करो कंप्यूटर पर बैठे हो पूरी तली होता से काम करो फिर देखना कितनी ताजगी आती है अगर तुम आधा ध्यान उधर होगा आधा उधर होगा तुम्हारा ध्यान तो ब सर्व होता है माला तो कर में फिरे जिब फिरे मुख माह माला हाथ में फिरती है जीव मुख राम राम राधे राधे माला तोत कर में फिरे जीव फिरे मुख मा मनि राम चह दिस फिरे मनि राम बच्चों में उलज पत्नी में उलझा है माता-पिता में उलझा है दोस्तों में उलझा है दुश्मनों में उलझा


है मनी राम चह दिस फिरे ये तो स्मरण ना तो कबीर कहते हैं यह नहीं है योग योग किसे कहते हैं योगा कर्मसु कौशलम कर्मों में कुशल कुशलता से तल्लीनता से कर्म कर जो भी कर 99 प्रतित शक्ति भी अगर तूने वह कर दी एक प्रतिशत भी रख ली तो व योग ना हुआ तुमने देखा 99 प्रतित पर भी पानी उबलता नहीं उबलता है स पर आकर एक डिग्री भी कम हुआ ट्रांसफॉर्मेशन विल नॉट हैपन वह लिक्विड वाष्प ना बनेगा कमी क्या सिर्फ एक प्रतिशत 9 के ऊपर लिक्विड सो केप वा ट्रांसफार्म हो गया स्वरूप ही बदल गया कहां तरल था बह सकता था अब वो उड़ सकता है वाष्प


बनकर बादलों में झूम सकता है बरस सकता है ऊंचाइयों को छू सकता है अठखेलिया कर सकता है आसमान में तारों को छू सकता है ट्रांसफॉर्मेशन होती नहीं तुम अक्सर रोते हो दुख से सुख आता नहीं तुम अक्सर रोते हो कृष्ण के इस सूत्र से सीख लो क्योंकि नियम कभी बदलता नहीं अगर तुम में ट्रांसफॉर्मेशन नहीं हुई कहीं तुम में गलती है कहीं एक प्रतिशत छोड़ो पॉट एक प्रत भी कम है तो ट्रांसफॉर्मेशन विल नॉट हैपन करता भाव अगर बिल्कुल क्षणिक जरा सा भी बना रहा तो भी पूर्ण रूप से तुम वास् पने बनोगे बड़ा सुंदर श्लोक है और संसार में दक्षता प्राप्त करने वाला है तो मैं


उस परम तत्व तक ले जाना संसार में झूमना नाचना गाना ऊंचाइयों को छूना तुम तो सिर्फ अमीर बनना चाहते हो यह तुम्हें अमीर छोड़ तुम्हें आनंदित भी कर देता है यह तुम्हें वह भी दे देता है जो तुमने सोचा नहीं था और अगर तुम उसकी इच्छा के विपरीत चलोगे उसकी इच्छा के उसके विधान के विपरीत चलोगे तो याद रखना फिर दशा उसी की होगी जैसे मेटास की हुई फिर सब सोने का बन जाएगा क्या सिर में मारोगे सोना भूख लगी रह जाएगी और तुम भूख से ही मर जाओगे ना दोस्त रहेगा ना दुश्मन रहेगा ना पत्नी रहेगी ना बच्चे सभी डरेंगे तुमसे और आज तुम यही हो तुम्हें पता नहीं


सब तुमसे डरते हैं जिसको तुम कहते हो प्रीतमा व भी डरती है तुम तुम थोड़ा हिप्नोटाइज करके देखना मैंने देखा है हिप्नोटाइज करके जो लोग कहते हैं बस हम ना जी सकेंगे एक दूसरे के बिना जब उन्हें हिप्नोटाइज किया जाता है वह कहते छितर उठा लूंगी जूती है नोक वाली ये बाहर से कुछ चेतन कुछ सोचता है अब चेतन में कुछ और भरा होता है और अब चेतन के पार अचेतन में कुछ और भरा होता है तुम सिर्फ चेतन को ही अपना मैं मानते हो यह सब कुछ नहीं है यह ऑथेंटिक नहीं है चेतन चेतन के भीतर भी बहुत कुछ है और भी राहते हैं बसल की राहत के


सिवा कर्मों में कुशलता 100 प्रतिशत कर्मों में इन्वेस्ट हो जा फिर देख तमाशा इन्वेस्ट कर अपने आप को फिर देख तमाशा आनंद का आता है के नहीं आता है सुख दुख में दुख सुख में बदलते देर नहीं लगती बस यह कारीगरी तुम्हारी कर्मों में कुशलता की है तुम कर्मों में अकुशल हो तो तुम्हारे सुख तुम सोने को हाथ लगाते मा हो जाता है और जब तुम कर्मों में कुशल हो जाओगे तो तुम जो मांगते हो वह तो मिलेगा उससे अलग भी मिलेगा क्योंकि जब तुम उस फेंक दोगे तुम्हारे तो हाथ छोटे हैं तुम्हारी मांग तुम्हारी छोटी सी खोपड़ी करती है और जब वह देने पर आएगा दाता दे लेंदा थ


कपा जुगा जुग खाई खा सच्चा दाता लना तमा है उसके भीतर तमा नहीं है उसके भीतर लालच नहीं है बिना मांगे वह तुम्हें मोती दे देगा लेकिन तुम मांगते हो क्या मांगते हो माटी मांगते हो खाक मांगते हो आखिर में तुम भी माटी हो जाते हो तुम्हारा कमाया भी माटी हो जाता है श्री कृष्ण गोविंद हरे [संगीत] मुरारी हे नाथ नारायण वासुदेवा श्री कृष्ण गोविंद हरे मुरारी हे नाथ नारायण वासुदेवा सोच जरा जे सूरज रब बनदा [संगीत] ना अखिया सो िया नजर कुछ जांदा ना सोच जरा जे सूरज रब बनदा ना अखिया सो िया नजर कुछ आदा ना पर फगत निराले ने पर पगत


निराले ने पथरा च लब लद ने जड़ अखिया वाले ने श्री कृष्ण गोविंद हरे [संगीत] मुरारी हे नाथ नारायण वासुदेवा श्री कृष्ण गोविंद हरे मुरारी हे नाथ नारायण वासुदेव [संगीत] पितु मात स्वामी सखा हमारे पितु मात स्वामी सखा हमारे हे नाथ नारायण वासुदेवा श्री कृष्ण गोविंद रे मुरारी हे नाथ नारायण वासुदेवा श्री कृष्ण गोविंद हरे मुरारी हे नाथ नारायण वासुदेवा यार की मर्जी के आगे यार की मर्जी के आगे यार का दम भर के देख यार की मर्जी के आगे यार का दम भर के दे यार का दम भर के दे ये तो उल्फत कर चुका है यह भी उल्फत करके दे श्री कृष्ण गोविंद हरे


मुरारी हे नाथ नारायण वासु देवा श्री कृष्ण गोविंद हरे मुरारी हे नाथ नारायण वासुदेवा [संगीत] [प्रशंसा] [संगीत] आओ धन्यवाद


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