मुक्तेश्वरानंद नागार्जुन का शून्यवाद कल आप बोलने से शुरू हुए थे लेकिन बोले नहीं कृपया नागार्जुन का शून्यवाद इसके ऊपर अवश्य प्रवचन करें एक प्रश्न और आपके बोलने से लगता है कि आपने सभी ग्रंथों का अध्ययन किया इस पर कुछ प्रकाश डालेंगे संबोधि से पहले क्या आपने सभी शास्त्रों का अध्ययन कर लिया था इस मामले में मैं भाग्यशाली रहा बहुत भाग्यशाली रहा कि संबोधि से पहले मैंने कोई शास्त्र नहीं पढ़ा था कोई शास्त्र का मतलब कोई शास्त्र यहां तक कि मैं आरती भी नहीं जानता था अध्यात्म का का खा ग मुझे नहीं आता और तुम्हें भी एक बात समझाता
हं जितना पढ़ते जाओगे उतना खोते जाओगे क्योंकि जितना लिखा ब्लैक बोर्ड पर ध्यान रखना उसे डस्टर से मिटा देना होता है उसके दस्तखत सिर्फ खाली ब्लैक बोर्ड पर होते हैं कुछ भी लिखा कुछ भी लिखा तो वह सिग्नेचर नहीं करेगा थोड़े शब्दों को ज्यादा समझना इस मामले में मैं बहुत भाग्यशाली था नहीं पता था कुछ साइंस का स्टूडेंट था बस मेंडक चीरना आता था कोकरोच खरगोश अगर पता था तो इनके बारे में पता था अगर आप कहो योग विशिष्ट पतंजलि महावीर बुत मैं कुछ नहीं जानता था और तुम्हें भी कहूंगा तुम भी कुछ मत जानना अगर पहुंचना है
तो देखिए या तो सूचना संग्रहित कर लेना संसार की हूं या अध्यात्म की या खुशी प्लेजर आनंद मस्ती कुमारी [संगीत] अगर इसको चाहते हो तो सूचनाओं को डिलीट कर देना फॉर्मेट कर देना सरा ये करना ही पड़ेगा अगर तुम सोचो कि पदार्थ के बारे में जानकर पदार्थ के रचयिता के बारे में आसानी से जाना जा सकता है तो तुम गलती में हो य आर न मिस्टेक तुम्हारी सोच गलत दिशा में जा रही है और तुम्हें तुम्हारे मार्गदर्शक भटका हैं फिर तुमने पूछा है फिर इतनी बातें आप कैसे जानते हो देखिए एक बात समझना जो भाषा विध है जो भाषा का ज्ञान रखता
है जो लैंग्वेज का मास्टर है वह सभी किताबों को पढ़ लेगा कोई नावल हो कोई धार्मिक ग्रंथ हो कोई भी साहित्य हो सभी को पढ़ लिखा लैंग्वेज आनी चाहिए बस मैं लैंग्वेज का मास्टर हूं जिके बारे में शास्त्र कुछ बोलते हैं मैं उसके पास पहुंच गया हूं अब मैं कोई भी शास्त्र पढ़ सकता हूं और कोई भी शास्त्र पढ़कर उसका मतलब बता सकता हूं लेकिन अगर तुम कहो कि सभी शास्त्रों का ज्ञाता हूं मैं तो तुम गलत कहते हो सभी शास्त्र जिसके बारे में बोलते हैं मैं उसका ज्ञाता हूं एक बार फिर समझ लो काम की बात है बुनियादी बात है यह मत समझना कि मैं सभी शास्त्रों के
बारे में बोल लेता हूं तो सभी शास्त्रों का मैं ज्ञाता हूं नहीं सभी शास्त्र जिसके बारे में बोलते हैं मैं उसका ज्ञाता हूं मैं उसके पास पहुंच गया हूं ऐसे व्यक्ति को सर्वज्ञ कहा गया है तुम सर्वज्ञ की परिभाषा गलत ले लेते हो तुम सर्वज्ञ की परिभाषा ले लेते हो कि वह तो कंप्यूटर भी जानता होगा अब भना कबीर कबीर कंप्यूटर कैसे चला सकते हैं नानक एआई का प्रयोग कैसे कर सकते हैं नहीं यह तुम्हारी बाद की इजाद हैं और इजाद होती ही रहेंगी इजाद बाहर के तल पे हैं इजाद होती हैं स्फीयर पे और तुमने पहुंचना होता है केंद्र पर आज कुछ इजाद जो हैं वो कल और बढ़
जाएंगे लेकिन उससे जिसने वो तत्व जान लिया जिसके जानने से सब शस्त्र जान लिए जाते हैं वह सर्वज्ञ हो गया सारे शास्त्र पढ़ने से कोई सर्वज्ञ नहीं होता सर्व ज्ञाता नहीं हो जाता सर्व कलाओं का निष्णात नहीं हो जाता बस एक को जान लिया जिसके बारे में सभी शास्त्र बोलते हैं सभी किताबें बोलती हैं तो तुम सभी जान लोगे लज जरूरी बात नहीं कि सारी भाषाओं को जानते हैं भाषाओं तो रोज नई खड़ी होती हैं सभी भाषाओं को नहीं जानता सभी भाषाओं में जो लिखा गया है परमात्मा के प्रति उस तत्व को वह जानता है इसलिए वह है सर्वज्ञ है सर्वज्ञ के अर्थ
कि आप किसी भी शास्त्र का कोई भी शब्द निकालो उसका अनुवाद जो मैं भाषा जानता हूं उसमें आप कर दो उत्तर मेरे से लेलो अगर तुम कल को कहो मैं तो गाड़ी भी चलाना नहीं जानता जब सीखी ही नहीं साइकिल चलाना जानता हूं मोटरसाइकिल चलाना जानता हूं अगर कहो गाड़ी चला लो नहीं जानता तो गाड़ी चलाने का मास्टर मुझे बुद्धू कह सकता है कोई हर्ज नहीं लेकिन गाड़ी चलाने में बुद्ध हूं उस तत्व को जानने में वह बुद्धु है जो रोज ड्राइविंग करता है इधर से उधर लाखों यात्रियों को लेकर जाता है सांसारिक विद्याओं को एकत्रित करना उस एक के बारे में जानना नहीं
होता इसलिए मैं सदा से कहता हूं यह सर लोग जो तुम्हें स्वपन दिखाते हैं सुनहले यह बना देंगे वो बना देंगे बना देंगे डीसी लगा देंगे कलेक्टर लगा देंगे लगा देंगे बिला शक लेकिन बात तो यहां खत्म होती है कि कुछ भी लग जाओ चैन मिलता है बात कोलेक्टर लगने की कहां है बात चीफ मिनिस्टर या प्राइम मिनिस्टर बनने की कहां है अध्यात्म की सारी बात आनंद में खत्म होती है और संसार की सारी बात सूचनाओं पर खत्म होती है संसार में जीतना है तो सूचनाएं ज्यादा चाहिए आनंदित मस्त होना है खुमारी में झूमना है तो परमात्मा को जानना चाहिए ये दो रास्ते अलग हैं तुमने गड्ड
मड्ड कर दिया है कोई क्या करे और तुम भो चक्के हो गए हो तुम रुद खुड़द हो गए हो सब बीच में चला जाता है संसार भी और परमात्मा भी तुमने संसार ठीक तरह से जाना और ना तुमने परमात्मा जाना एक खिचड़ी सी बन गई है सब चीजों की मैं कहूंगा खिचड़ी भी कहना ठीक नहीं अन्नकूट बन गया है अन्नकूट में चावल गरा दिया जाता है चल मोली चल बैंगन चल पालक जो कुछ आया पटक दिया बीच में जो मसाला आया बीच में पटक दिया वह अनकट बन जाता है और अनकट में कुछ भी मिला दो आलू मिला दो बैंगन मिला दो पालक मिला दो साग बना दो जो चाहे मिला दो तुम अनकट
हो अनकट स्वाद तो बहुत होता है तुम्हारे टेस्ट बर्ड्स को बड़ा स्वाद देता है हर वो चीज जो तुम्हारे टेस्ट वड्स को स्टिमुलेटिंग इसलिए कोई भी इंद्रिया जो तुम्हें स्टिमुलेशन देती है तुम कहते हो बड़ा मजा आया हसा मत करो स्टिमुलेशन को तुम मजा कहते हो और यहीं चूक जाते हो क्योंकि तुम्हें पता नहीं कि स्टिमुलेशन मजा नहीं नॉन स्टिमुलेशन स्टिमुलेशन खुशी देता है मजे की और नॉन स्टिमुलेशन आनंद की ठहरा देता है आनंद की शीतलता देता है वट वृक्ष की छाया की तरह इस संसार की तप्त गर्मी के प्रभाव से बचने के लिए तुम उसे छाया की शीतलता का आनंद मानते
हो आपके बोलने से लगता है कि आप सब शस्त्रों को पढ़े थे नहीं यह मेरा सौभाग्य रहा शस्त्र वस्त्र में बाद में पढ़े और अभी भी शास्त्र नहीं पढ़े अगर सही पूछो तो तुम्हारा प्रश्न मेरे लिए उत्तर बनक आता है तो मैं रोज ही कहता हूं तु एम जस्ट ए साइलेंट लेक पुट सम थो पुट सम स्टोन थ्रो सम स्टोन एंड द वेव्स विल अराइज ट वेव्स विल अराइज एंड दैट विल बी योर आंसर तुम इस शांत मन झील में कंकड़ या फेंको लहरें उठें और वह जो लहरें उठेंगी वह आपका जवाब होगा इसलिए मुझे कभी उलाना मत देना बहुत लोग मुझे उलाना देते बाबा आपने मेरी बस्ती करते मैंने
बेज तुमने कंकड़ ही इस दृष्टि से मारा होगा मैं उसके लिए जिम्मेदार नहीं जिस ढंग से कंकड़ मारा उस ढंग से वे उठी लहरें उठी और लहरें तुम्हारी कंकड़ या का प्रणाम थी इसमें मेरा कुछ नहीं मैं फिर मोन हो जाऊंगा जब तुम्हारी कंकड़ या का प्रभाव क्षीण हो जाएगा तो मैं फिर मोन हो जाऊंगा मैं सदा से मन जानता मानता में कुछ नहीं जिन्ह तुम शास्त्र कहते हो कल वो नहीं थे आज वो हैं बहुत सी पुस्तकें ऐसी हैं जो 10000 साल पहले नहीं थी आपको बता दूं यह गीता भी 10000 साल पहले नहीं थी ऋग्वेद भी 10000 साल पहले नहीं थी बहुत सी किताबें हैं जो नहीं
थी तब कौन क्या पढ़ता था मैं कुछ नहीं पढ़ा और यह मेरा परम सौभाग्य रहा अगर मैं कुछ पढ़ लेता तो मैं गायब हो जाता मैं इस मस्ती और इस आनंद के प्याले को चूम नहीं सकता था मैं वंचित रह जाता है इस मस्ती से फिर प्रकृति मुझे पहुंचाती लाखों जन्मों के बाद पहुंच तो हर व्यक्ति जाता है उसकी कॉन्शसनेस की तरक्की में प्रकृति बहुत धीरे-धीरे योगदान देती है तो तुम इस शंका में मत रहना कि कोई व्यक्ति सदा के लिए अज्ञानी रह जाएगा नहीं यह गलत है धीरे-धीरे प्रकृति जैसे पत्थर से तुम्हें आज मानव तक ले आईगी वैसे न से तुम्हें महामानव तक भी ले
जाएगी संबोधि तक भी ले जाएगी प्रकृति का दायित्व है प्रकृति का काम है पहुंच तो सभी जाएंगे सभी होने वाले परमात्मा है इसीलिए सभी को प्रणाम है आज नहीं कल परसों नरस सभी भगवान हो जाएंगे पत्थर भी भगवान हो जाएगा यही सनातन ने हमें सिखाया पत्थर के आगे भी नतमस्तक हो जड़ता की चर्म सीमा चैतन्य का नेगलिजिबल उसके आगे नतमस्तक हो जाओ क्यों यह होने वाला परमात्मा है यात्रा यहां से शुरू बेशक हुई हो लेकिन अंत इसका अंजाम इसका परमात्मा है आगाज इसका पत्थर है अंजाम इसका परमात्मा है तुमने पूछा के लगता है तुमने सारे शास्त्र पढ़ लिए
बाबा और फिर सारे शास्त्र पढ़ लिए तो परमात्मा उतर आया मैं बड़ा प्रसन्न हूं नहीं आई वास जस्ट ब्लैक बड बलक कोरा कागज हे मन [संगीत] मेरा लिख दिया नाम उस परे तेरा कोरा कागज था यह मन मेरा लिख दिया नाम उस तेरा अगर उसके सिग्नेचर चाहिए अगर तो ऐसे ही टक्कर खानी है संसार में तो देखिए तुम स्वतंत्र हो तुम भटक भी सकते हो तुम सीधा रास्ता भी पकड़ सकते हो तुम मालिक हो यही तुम्हारी महता है के ईश्वर ने तुम्हे इतना अधिमान दिया स्वतंत्रता का अधिमान तुम चाहे तो भटको कितना बड़ा मान है ये सृष्टि का आगाज करता सृष्टि का रचना
करता सज्जन हारा तुम्हें इतना मान देता है कि तुम स्वतंत्र हो कुछ भी करने के लिए क्या ये मान कुछ कम है तुम चाहो तो भटक सकते हो लेकिन अगर उसके सिग्नेचर चाहिए तो योग्य होना पड़ेगा योग्यता क्या है कोरा कागज था ये मन मेरा लिख दिया नाम उसपे [संगीत] तेरा तुम कोरे कागज हो जाओ मैं रोज कहता हूं शास्त्रों को आग लगा दो यह गंगा किस लिए है यह पवित्र नदियां किस लिए हैं बहाद में आग बड़ी पवित्र होती है जला दो इनमें ये भार है तुम्हारे न्यूरॉन्स पहले खाली हो जाओ और तुम्हें एक बात बताऊं जो शस्त्र तुमने आज फूक दिए जब तुमने फूंक दिए कोरे हो गए तो अपने
सिग्नेचर कर देगा यह एक क्वालिफिकेशन है उसके दस्तखत होने के लिए यह एक अनवार योग्यता है डस्टर से मिटा दो जो लिखा है और वो दस्तखत कर देगा वो आता तो बहुत बार है लेकिन तुम्हारा मनुष पटल इतना भरा पड़ा है वह दस्तखत करे भी तो कहां करे वापस चला जाता है तुमने कोई स्थान खाली नहीं छोड़ा और शस्त्रों को आज फूक दो कोरे हो जाओ कोरे हो जाओगे तो व दस्तखत कर देगा और अब ध्यान से सुनो बात जब वह दस्तखत कर देगा तो इन सभी शास्त्रों को तुम लिखने के योग्य हो जाओगे जो फूके थे तुमने तुम स्वयं अपने हाथों से लिखो खुद अपने शास्त्र अपने हाथों से लिखो
बुद्ध का यही फरमान अप दीपो भवा अपने शस्त्र खुद लिखो दूसरों को लिखे शस्त्र क्यों पढ़ते हो वो बझ है दिमाग पर दिस आर फॉरेन मैटेरियल्स व विजातीय द्रव्य है वह फेंकने योग्य हैं विजातीय द्रव्य हमेशा ही फेंकने योग्य होता है देखिए हमारा शरीर अवांछित तत्वों को बाहर फेंक देता है पसीने के जरिए मल मूत्र के जरिए अवांछ के तत्वों को रखता नहीं तुमने पूछा कि सभी शास्त्र पढ़े नहीं भाषा आनी चाहिए फिर तुम कोई भी किताब पढ़ सकते हो उपन्यास भी पढ़ सकते हो धर्म ग्रंथ भी पढ़ सकते हो भाषा का ज्ञान आवश्यक है यह बेसिक है जिसके बारे में शास्त्र बोलते हैं वहां
पहुंच जाओ शास्त्र लिखने के योग्य हो जाओगे दूसरों के शास्त्रों पर निर्भर ना करो व तुम्हारे लिए वो जा है और सारी दुनिया दूसरों के लिखे शास्त्रों को ढो रही है और चल्ला रही है कि हम दुखी हैं और दुख का कारण यही है दूसरों के शास्त्रों के बोझ को लिए फिरना कोई बाइबल का बोझ उठाए फिरता है कोई वेदों का बोझ कोई गीता का कोई ग्रंथ साहब का कोई कुरान का कोई पुराणों का सभी बोझ अड हो रहे हैं असल में इनकी मंशा कुछ और है यह खुद भी अपनी मंशा को नहीं जानते और जानते हैं तो आपको नहीं बताते हैं इनका कुछ निहित स्वार्थ है वो कोई भी हो धन भी हो सकता है पदवी भी
हो सकती है कोई संपत्ति भी हो सकती है कोई मान सम्मान भी हो सकता है कोई प्रशंसा भी हो सकती है कुछ भी चाहत अगर तुमने की तो चाहत तुम्हारे लिए बैरियर बन जाएगी तुम आगे ना जा और बहुत से लोग धर्म का उपयोग इन चाहतों के लिए करते हैं अपनी निहित स्वार्थी के लिए भागवत की कथा कह देंगे 50 लाख रुप लगेगा अरे भाई ऐसा है क्या भागवत की कथा कुछ काम का है उसम कुछ का का नहीं वो फेंकने योग्य किताबें बहाने योग्य जलाने योग्य किताबें उनको पढ़ने का 50 लाख लेते हो यह तो तुम बुद्धू बन जाते हो और वोह तुम्हें बना लेते हैं जब तुम्हें टक्ट आ गया तो तुम खुद ही
लोगों को बुद्धू बनाना शुरू कर दोगे इसलिए तो आज य पर इतने बाबा है आप देखो सभी अपनी अपनी किस्मत आजमाते हैं कोई सुने ना सुने जानते बानते कुछ नहीं और कबीर को तो अगर कोई सुनने भी ना आएगा तो कबीर तो मस्ती में उस प्रभु की महिमा का गीत गुनगुना के बड़ा प्रसन्न हो गए कोई सुनने भी आ जाए तो भला कोई न भी सुनने आ जाए तो भला अकबर पूछने लगा न सेन तुम्हारे गुरु कौन है तो तान सेन बोला महाराज मेरे गुरु हैं हरिदास मैं उन्हें सुनना चाहता हूं क्या मुझे उनके पास ले चलोगे जब तुम इतना अच्छा गाते हो तुम्हारे गाने से मेघ बरस जाते हैं
दीपक जल जाते हैं गर्म हवाएं लुए ठंडी हवाओं में बदल जाते हैं बिरह के आंसू निकलने लगते हैं दीपक बुझ जाते हैं तो जिसे तुमने सीखा वह कैसा होगा वह कैसा गाता होगा नसन बोला क्षमा करना महाराज मेरी तरह वह बकाऊ नहीं है तब लोग ईमानदार थे सवी सेंचुरी के पूर्वार्ध में अकबर के जमाने की बात है हरिदास आध्यात्मिक मजीन था वह जब गाता था तो हवाएं लहर ठहर जाती थी आसमान आंसू बिखरता था रोता था आसमान बिरहा के गीत सुन के और अस्तित्व झूमता था उसके झूमर सुनकर तो क बोला कि मैंने आपके गुरु को सुनना है जब तुम इतना अच्छा गाते
हो तुम्हारा गुरु कैसा होगा एक बार मुझे मिला लो तानसेन बोला महाराज क्षमा करना लेकिन वह बिकाऊ नहीं वह चंद सिक्कों पर बिकने वाला नहीं है तुम ऐसा मत सोचना कि तुम उसके पास जाकर बैठ जाओगे और कहोगे हम गीत सुनना चाहते हैं और सुना देंगे ऐसा नहीं कबीर और नानक भी ऐसा नहीं है मीरा भी ऐसा नहीं है मीरा से कहो नाच के दिखा तो नहीं नाचेगी और जब नाचेगी तो स्वेच्छा से नाचेगी नाचेगी दिखावे से नहीं नाचेगी भीतर से वह लहर उठेगी और नाच आएगा भीतर से आनंद की वह मीठी लहरें उठेंगी नानक गाएगा भीतर से सुरति की वो लहर आएगी और कबीर
झूमें अमृत बरस रहा है भक्तो नाचो वह बिकाऊ नहीं है महाराज क्षमा करना अकबर तो हट गया राजा था राज हट बाल हट त्रिया हट यह तीनों मशहूर हैं तान से ने बोला ठीक है लेकिन देखिए वह गाता है लेकिन जब उसकी इच्छा होती है तब गाता है तुम्हारे कहने से नहीं गाएगा विराट के कहने से गाएगा विराट जब लहरें उत्पन्न करेगा तो वह गाएगा और सही पूछो तो वह नहीं गाएगा हरिदास नहीं गाएगा भगवान गाएगा हरिदास के मुख से गाएगा तो इंतजार करना होगा कब उसके गाने की इच्छा हो राट के और कब वो हरिदास के गले का का उपयोग करें क्या ठहर पाओगे दिन लग सकते हैं
प्रभु कोई बात नहीं अकबर बोला हम इंतजार कर लेंगे बाहर हमारी साजू सामान ले चलो सारा सामान उठाया घोड़े हाथी वगैरह खाने की सामग्री पूरी फौज डेरा डाल लिया दूर और जब वह गाएगा तो शहंशाह आलम हवाएं तुम्हें बताएंगे कि हरिदास गा रहे हैं क्योंकि हरिदास के भीतर वह विराट गाएगा और विराट के गाने की खबर तुम्हें पहुंच जाएगी हवाए रसीली हो जाएंगी हवाओं में लचक आ जाएगी चलो चल पड़े जाकर डेरा डाल लिया इंतजार किया दो तीन दिन बत गए नहीं गाया बैठे रहे इंतजार करो वह जब गाएगा तो गाएगा उसको मजबूर नहीं किया जा सकता ना उसको खरीदा जा सकता
है वह बिकाऊ माल नहीं है वह वक्त का पाबंद भी नहीं है कि इतने बजकर इतने मिनट पर ही गाएगा नहीं वह तो मौज का पाबंद है मोज जब गाने की होगी तो गाएगा अन्यथा नहीं गाएगा पांच सात दिन बीत गए बैठे रहे अचानक आधी रात और एक स्वर ब्रह अलाप लगा अलाप लगा और हवाएं महक उठी चारों तरफ सुगंधी बकर गई आसमान की लहरें ठहर गई आसमान रो पड़ा धरती ने खुशबू खेरनी शुरू कर दी वृक्ष के पत्ते ठहर गए हिलना बंद कर दिया पत्ते भी सुनने लगे बा मुश्किल ऐसी बेला आती है कि हरिदास गाए और व किसी को दिखाने के लिए नहीं गाते यही फर्क है राजनीतिक
में और आध्यात्मिक व्यक्ति में राजनीति के दिखावे के लिए करता है आध्यात्मिक व्यक्ति दिखावे के लिए नहीं करता आनंद के लिए करता है जब आनंद का सरूर गले से ऊपर आ जाता है तो गायन निकलता है तो वह विराट गाता है एक अलाप लगा और अलाप चलता ही गया फिर गायन उभरा स्वर उभरे और न जाने कितना वक्त बीत गया पूरी रात हरिदास गाते रहे पूरी रात गुजर गई सुबह का सूरज निकल आया हरिदास अब भी गा रहे थे वक्त का कोई पता ना चला समय ठहर जाता है सब उहा पह ठहर जाती है मन बोलता नहीं मन सुनता है बस यही बात महावीर ने कहा कि श्रावक बन जाओ जब श्रावक बनोगे तो
बनोगे तो मन ठहर जाएगा ठहरा हुआ मन सुन सकता है भागता हुआ मन सुन नहीं सकता एक छोटा सा चुटकला आता है सबसे बढ़िया अजूबी बात जो कहेगा असंभव बात जो कहेगा उसको प्रथम पुरस्कार मिलेगा बच्चों को कहा गया सबसे अजूबी बात सबसे नाम बात इंपॉसिबल बात जो कहेगा उसको प्रथम पुरस्कार मिलेगा सभी ने अपनी अपनी बातें क और प्रथम कौन आया प्रथम आया जिस बच्चे ने लिखा कि मैं जा रहा था बाहर ड्यूटी में एक चारपाई पर चार औरतें बैठी थी और चारों बोल रही थी सुन कोई भी नहीं रहा था अक्सर ऐसा ही होता है देखना औरतो को तुम भी तो ऐसे ही हो दूसरा भी बोल रहा है तुम भी बोलना शुरू
कर देते हो दोनों शोर मचा रहे हैं सुन कौन रहा है सुन कोई भी नहीं रहा यही भगवान महावीर कहते हैं कि श्रावक बन जाओ सम्यक श्रवण की कला सीख लो और सम्यक श्रवण की कला वही सीख सकता है जो ठहर गया हो ठहरा हुआ मन सुन सकता है वह सुनने की काबिलियत से भर जाता है सीखने की कला से भर जाता है शिष्य सुनने की कला से भर जाता है श्रावक और यह दोनों एक ही बात है तुम उससे सीखना चाहते हो जो आनंद का खजाना है और तुम उसे सुनना चाहते हो जो आनंद का खजाना है और यह संभव हो पाएगा जब तुम ठहरो ग तुम्हारा मन ठहरेगा लेकिन बात तो यही है झगड़ा तो यही
होता है मन ठहरता नहीं हरिदास गाते रहे मन ठहरा और जब मन तो वक्त का नहीं पता चलता वक्त कहते किसे हैं अब यहां एक बात समझ लेना तुम्हारा एक कल्प ब्रह्म का एक दिन क्यों वह ठहरा ही हुआ है तुम एक कल्प तक बोलोगे एक कल्प तक जखाई मारोगे तो पूरा कल्प बीत जाएगा लेकिन ब्रह्म बोलेगा नहीं ब्रह्म का एक दिन होगा और मैं कहता हूं बनाने वालों ने यह भी गलत बना दिया ब्रह्म का एक दिन भी कहां होगा ब्रह्म का तो एक क्षण भी नहीं बीतेगा क्योंकि वह सदा ठहरा है वह सदा सित्र है तुम्हारा एक दिन और देवताओं का एक वर्ष तुम्हारा एक वर्ष और देवताओं का एक
दिन मतलब देवताओं का मन तुमसे ज्यादा ठहरा है जिसका मन जितना ठहरा उतना वक्त ठहर गया ब्रह्म का मन बिल्कुल ठहरा ब्रह्म का मन ही नहीं है तो तुम्हारा कल्प भी बीत जाए तुम्हारे सहस्र कल्प भी बीत जाए ब्रह्म का तो एक क्षण भी नहीं बीतेगा वह सदा से मौन है और सदा मौन रहेगा इसलिए शास्त्रों में लिखा कि तुम्हारे इतने कल्प बीत गए और ब्रह्म के इतने दिन बीत गए गलत ब्रह्म का कुछ भी नहीं बीता ब्रह्म सदा मोन है जो परम मोन की अवस्था में है सदा से है आद सच जुगा सच है भी सच नानक उस भी सच वह सदा मोन ही रहेगा सच यही है जो बोलता है बोलना तो बकवास
है नाम चाहे राम हो नाम चाहे कृष्ण हो नाम चाहे राधा हो नाम चाहे सीता हो कुछ भी बोलो बकवास बोलना ही बकवास है ठहरना ही सुख का सागर है अगर सुख का सागर चाहते हो तो ठहरना सीखो बोलना बंद करो और बोल चाहे कुछ भी रहे हो गाली निकाल लेना राधे राधे कर लेना बराबर ठहरना सीखो आज नहीं कल तुम बेला पछताओ ग इन सरकस हों के आगे क्या सीखो ग तुम ये बेचारे खुद ही नहीं सीखे यह तुम्हें बोलना सिखाएंगे और अफसोस की बात है कि तुम्हारा मन पहले से ही बोल रहा है तुम मन के बोलने से ही दुखित हो पहले से ही तुम्हारा मन बड़ा उहापोह कर रहा है ऊपर से ये तुम्हें और
बोलना सिखा देते हैं य तुम्हारे मित्र नहीं है तुम्हारे दुश्मन है ये तुम्हें शांति में आनंद की नींद सोने नहीं देंगे तुम्हारी नींदों को बेकार कर देंगे कभी दर्शन करो इनके कभी इनका कहा हुआ नाम जपो और तुम वासनाओं से भरे हुए हो तुम्हें कुछ ना कुछ चाहिए और कुछ ना कुछ चाहिए तो यह व्यक्ति यह मूर्ख तुम्हें लूट लेते हैं कोई मंत्र देकर लूट लेता है कोई नाम देकर लूट लेता है बस तुम जाते हो तुम लुट जाते हो तुम विराट नहीं हो पाते तुम जितने कहो अदने से वह भी लूट लिए जाते हो इसलिए मैं सदा पुकारता हूं मेरे जाने के बाद मेरी बातों को याद
करोगे आज इनकी कोई कीमत नहीं इंसान सदा से ऐसा रहा है इंसान ने कीमत पाई मर्तों की जब व्यक्ति चला गया तो उसके इतिहास खंगाले गए जब व्यक्ति जीवंत था तो उसके पास भी नहीं फटके कारण कारण अगर जीवंत व्यक्ति के पास जाओगे तो वह तो आग है बहुत से लोग मुझे कहते हैं बाबा देखो हिम्मत तो कर रहे हैं लेकिन ब्लॉक मत कर देना हिम्मत तो कर रहे हैं लेकिन उस तरह मत बोलना हिम्मत तो कर रहे हैं लेकिन उस तरह मत बोलना ब्लॉक मत कर देना पूछ तो रहे हैं हम नहीं मेरा कोई भेजा थोड़ी खराब है मैं ब्लॉक इसलिए करता हूं कि यहीं ठहर जाओ बस आगे मत चलो यह जो पूछ रहे हो यह
पूछने योग्य है नहीं पूछने योग्य तो सिर्फ एक बात है पर मोन में उतरे कैसे पहले ही से तुम इस बोलते हुए मन के सताए हुए हो पहले ही से तुम इस शोरगुल मचाने वाले मन के सताए हुए हो ऊपर से ये कोई किस्ती न पर टोपी डाल के कोई काली पीली दाढ़ी करके तुम्हें बोलना सिखा रहे हैं तुम पहले से ही बोलने के खिलाड़ी हो मन के बोलने से पहले ही बड़े तंग हो ये दौड़ते हुए को भगा देते हैं जोर से जैसे घोड़ा चल रहा है छाट मार और तेज हो जाओ और तेज हो जाओ थोड़ा सा तेजी से जपा करो तो सब इच्छाएं पूरी हो जाएंगी और तुम इच्छाओं के गुलाम बस यह तुम्हारी कमजोरी है और ये लोग
तुम्हारी कमजोरी का लाभ उठा लेते हैं इन्हें पता है कि तुम इच्छाओं के गुलाम पता हो ना पता हो कई बार ना भी पता हो तो फिर ऐसे मढ़ आनंद को बोलना भी नहीं चाहिए जब नहीं पता है तो चुप हो जाओ खुद आनंद ले लो चुपी का मौन का स्वाद बड़ा निराला होता है लेकिन फिर कहते हैं हमें उपकार भी करना है क्या खाक उपकार करना है बोलते हु को और बुलाओगे भागते हु को और दौड़ा होगे यह पुण्य है कि पाप क्यों इतना पाप कमा रहे हो कहां दोगे पहले ही से कुछ पाप करके आए हो जो आज ऐसी दशाएं हो गई हैं धन होगा धन तो उनके पास भी बहुत होता है आप समझे
जाओ मान होगा मान तो मिट्टियों को भी आज मिलता है यह देखो पत्थरों को मान मिलता है पत्थरों को मान मिलता है मंदिरों में और है क्या पत्थर हैं और क्या है तुम्हारे मंदिरों में और क्या है शास्त्र पड़े हैं इनके आगे नतमस्तक हो जाते हो इनमें जीवन भी नहीं है फिर भी नतमस्तक हो जाते तो मूर्ता की तो पहले ही बहुत अति हो चुकी है कोई इन शास्त्रों को सिरप डो रहा है सुबह सुबह लाउड स्पीकर लगा लिए जाते हैं एक ग्रंथी मेरे पास आ मैंने कहा तुम रोज पढ़ते हो जप जी पढ़ते ही हो या गुण से भी हो क्योंकि तुम्हारी चाल चरित्र से तो
नहीं पता लगता कि तुम गुण भी हो तुम सदा भटकाव की स्थिति में रहते हो बस इतने रूमाले आ गए इतने इकट्ठे कर लो और क्या होता है और प्रधान बन जाओ मैंने एक दृश्य देखा एक औरत आई गुरुद्वारा के प्रधान पर 00 र का नोट पाव में रख दिया प्रधान कहने लगा देवी 00 मेरे पांव में क्यों रख रही हो यह धन गुरु ग्रंथ साहब जी के अर्पण करो व स्त्री बोली महाराज प्रधान जी घूम फिर के आ तो आपके ही पास जाएंगे मैंने कहा इतनी भी मशक्कत क्यों करनी सीधा आपके ही चरणों में चढ़ा आ तो जाएंगे आपके ही पास बस यह लोग ऐसा ही काम करते हैं तुम्हें पता नहीं होता तुम्हा आस्था
से खिलवाड़ करते हैं और जगह जगह तुम्हारी आस्था चिपकी हुई है और आस्थाओं से खेलना इनका काम है यह धार्मिक नहीं है राजनीतिक लोग राजनीतिक लोग आस्थाओं से खिलवाड़ करते हैं आस्थाओं का व्यापार बनाते हैं यह धार्मिक नहीं है धार्मिकता का लेवल लगा है सिर्फ धार्मिक होना और धार्मिकता का लेवल लगा लेना बिल्कुल अलग बात है पूछा है क्या आपने सारे शास्त्र पढ़े थे कबीर ने कहा एक साध है सब सद है जिसके बारे में शास्त्र बोलते हैं वहां चले जाओ दिस ऑथेंटिक यह प्रमाणिक है शास्त्र के बारे में बोलते हैं तुम वहीं चले जाओ बस फिर तुम जो बोलोगे वो शास्त्र बन
जाएगा और जीवंत शस्त्र के पास जो होता है वह मुर्दा शस्त्रों में नहीं होता मुर्दा शास्त्र तो सिर्फ य मैं बोल रहा हूं मैं बोल रहा हूं तुम्हारे लिए नहीं बोल रहा हूं याद रखना तुम सुन रहे हो तुम्हारी इच्छा है लेकिन तुम्हारे लिए बोल नहीं रहा हूं मुझे लोग कह देते हैं बाबा आपको थोड़े से कम लोग सुनते हैं मैंने कहा इतने भी सुन ले तो ठीक है चलेगा इससे कम भी सुनले तो भी चलेगा तो फिर बाबा बोलते किसलिए मैं बोलता हूं उस अंधकार में युग के बच्चों के लिए उन भावी पीढ़ियों के लिए जब घोर अंधकार होगा और कोई व्यक्ति एक
शब्द बोलने का फीस लिया करेगा तब य मेरी बातें उनके लिए स्वर्णम सिद्ध होंगे उनके लिए बोल रहा हूं मैं बेचार के लिए अपनी ही भावी पीढ़ियों के लिए कि उनको दाम ना चुकाने पड़े झूठ के और होंगे भी झूठे क्योंकि सच्चा व्यक्ति परमात्मा का नाम बेचा थोड़ी करता है परमात्मा का नाम तो बेचा करते हैं महंगे कवि वो लेते हैं 10 मिनट का 20 लाख रुपया और तुम मजे से दे देते हो महंगे कवि वो परमात्मा के नाम को बेचते हैं ध्यान रखना गुरु नानक ने कभी परमात्मा का नाम नहीं भेजा कबीर ने परमात्मा का नाम नहीं बेचा मीरा ने नाम नहीं बेचा कबीर को जो सुनने
आता जब प्रवचन समाप्त हो जाता गरीब थे जो लाहे थे झीनी झीनी चदरिया बुनकर अपना परिवार फलते थे प्रवचन समाप्त हो जाता तो कबीर बड़े प्यार से कहते हैं नम्रता से भक्त जनों भोजन करके जाना खाली पेट ना जाना भूख लग गई होगी और इतनी सहजता से और इतने भीतरी अंतरंग प्राणों से आवाज निकलती कि चाहे राजा भी क्यों ना हो उन शब्दों से मोहित हो जाता बैठ जाता भोजन करके जाना प्रभु समग्री होती नहीं लोही अपना काम निष्ठा पूर्व करती पुत्र कमाल कहता पिता श्री आप सभी को कह देते हो इतना भोजन की सामग्री मैं कहां से लेकर आऊ मैं दिहाड़ी दपा करके कुछ कमाई करता
हूं कुछ आप कमा लेते हो सभी का भोजन पूरा आता नहीं क्या किया जाए क्या मैं चोरी करूं कबीर ने कहा बिल्कुल करो क्या है कबीर जानते हैं कबीर जानते हैं कबीर अपनी विराटता को जानते हैं कबीर के लिए चोरी नाम की कोई चीज नहीं होती कबीर कहते हैं ठीक चोरी कर लो देखो आए हुए भक्तों को खिलाना तो है कुछ भी कर लो कमाल तो चक चोरी करो भक्तों के लिए चोरी करो इससे अच्छा कहा मत करो कि काके जाना कुछ यह तो मैं मजबूर हूं मैं नहीं बोलता य तो मेरे अंतस प्राण बोलते हैं मैं मजबूर हूं कमाल हां चोरी कर लेंगे तो तुम कोई गुलाम देख लो दिन में उस गुदामैथुन
फरवरी का महीना कमाल कहता ठीक थोड़ा भीतर से गणित अंदाज में बोला कई बार पुत्र पिता को पहचान नहीं पाते और कई बार पिता पुत्र को पहचान नहीं पाते यह अजीब माया है संसार के तो पुत्र पिता को पहचान नहीं सका उसने कहा ठीक फिर मैं ले आऊं सामान ले आओ ले आया कहीं ले आया छण थोड़ी ले आया सारा सामान ले आया जसे पाड़ लग सकता था कबीर कहने लगे मुझे रात को जगा लेना भाई नींद गहरी आती है घोड़े बेच के सोता कोई बात नहीं मैं जगा लूंगा कमाल कहने लगा आधी रात भई कमाल ने जगाया पिता श्री उठो क्यों सब ठीक है हां सब ठीक है चलो चोरी करने नहीं जाने हां हां
चल चल पड़े कोई जानते हो गुलाम देखा दिन में हां देखा किसी सेठ का गुलाम था और वह सेठ कबीर को सुनने आता था उनके मीठे प्रवचन हृदय की गहराइयों में उतर जाते थे कमाल ने कहा ये गु दम रहा लो यहां पर पाड़ लगा लेते हैं थोड़ा सा तुम मेहनत करो मैं ईट तोड़ता हूं कच्चा स्थान तोड़ता हूं तुम कस्सी से उसे बाहर निकालना रल मिल के पार निकाल दिया तो कबीर ने कहा देखो बेटा तुम जवान हो मैं वृद्ध हूं यह कनक की इतनी भरी मुझसे खींची नहीं जाएगी आओ हम दोनों लक्के से खींच लेते हैं एक बोरी बाहर खींच ले गई तो कमाल से बोले ऐसा कर पुत्र तेरी पीठ
पर लगा देता हूं तू घर ले जा मैं इसको ठीक करके आता हूं कहीं कोई जानवर कोई सूअर कोई गाय सारा खराब ना करते उसने कहा ठीक है कबीर ने लगा दिया पीठ कमाल चले लेक धीरे धीरे गली लंबी थी और ईटों को ज जाने लग गए ऊपर नीचे कबीर पार बंद कर दिया तो कमाल देखता रहा कि कब पिताजी आए तो साथ साथ चलेंगे वृद्ध है थोड़ा दिखना भी कम हो गया है रास्ता ना भटक जाए रात गहरी है अंधेरी है पाठ बंद कर दिया कहते ऐसा कर बस तू एक क्षण के लिए ठहर जा मैं थोड़ा बता दू किसको बता द इस मालक को बता दू उसने आवाज लगाई सेठ जी जाग रहे हो सेठ सोते तो है
नहीं सेठों को नींद नहीं आती सेठों को गोली खाकर भी नींद नहीं आती क्योंकि वह जो हराम का माल इकट्ठा किया वह सोने नहीं देता लोगों को कोई नींदों को छीनने वालो तुम नींदों की तमन्ना करते हो दूसरों को दुख देने वाला खुद सुखी होने की कामना ना करे तो नींद तो आती नहीं सेठ तो जाग ही रहा था उसने कहा हां जी बाहर आया देखा कबीर पहली मंजिल पे था भाग के आया नीचे पांव पकड़ लिए गुरु जी आप हां आप किसलिए कते मैं ये तुम्हारे गोदाम में से एक बोरी कनक चोरी करके ले जा रहा हूं वह सेठ तो रोने लगा आंसुओ से पाम धुल गए इतना रोया इतना
रोया अपने मुंह पर चपत लगाई कहता गुरुदेव मुझे पहले समझना आई हम इतने लोग रोज वहां खाके आते हैं कहां से आएगा बेईमानी यह नहीं करता काला बाजारी यह नहीं करता राजनीति यह नहीं करता बिकाऊ माल यह नहीं पार्टी इसने नहीं बदली कहां से आएगा हमारा फर्ज बनता है गुलाम में भरा पड़ा हम आपके घर पहुंचा देते आप जाइए इस बोरी को यहीं छोड़ दे मैं खुद बंदोबस्त कर दूंगा और इसके बाद आप इसका फिक्र भी मत करना सारी जिम्मेदारी मेरी अगर ईसा ने कहा ओनली दे विल एंटर इन माय गॉड्स किंगडम हु विल बी इन जस्ट लाइक चाइल्ड बच्चा कह देता है मैंने चोरी की पिताजी एक
रुप की चोरी बिल्कुल बाल मन ऐसा ही व्यक्ति निर्मल मल जन सोई मोहि भावा निर्मल मन जन सोई मोही मोह कपट छल छिद्र न भावा मुझे कपट छल छिद्र हीरा पेरी य अच्छी नहीं लगती और वह व्यक्ति मेरे पास आता भी नहीं गुफाओ में बैठकर समाधि स्त होने का ड्रामा मत करो हम जा जानते हैं राजनीतिक लोग अपने भीतर नहीं जा सकते कूड़ा भरा है कचरा भरा है हेरा फेरिया बेईमानी झूठी सब भीतर भरा पड़ा है कैसे जाओगे तुम्हें खुद डर लगेगा खुद से ड्रामे बाजी पंत झूठ बोलने वाला पतंजलि ने सबसे पहला नियम बनाया सत्य उससे आगे चले परमात्मा तक पहुंचने का सबसे पहला
पहला पहला अष्टांग योग में यम का पहला सूत्र सत्य जो झूठ बोलता है वह तो आशा न करे सत्य से शुरू करना होगा और झूठ बोलने वाले खुद को अवतार मनाने पर उतारू हो जाते हैं ये बात अल है बात चलती नहीं नींद नहीं आती दूसरों का खून चूसने वाले दूसरों की नींदों को हराम करने वाले खुद चैन से कैसे सोएंगे तुम भी अपने आप को थोड़ा सा जाती मार के देख लेना भीतर तुम भी इस रोग से ग्रसित तो नहीं हो तो अवश्य ही कहीं ना कहीं तुमने दूसरों की नींदे हराम की हो तो तुम भी नींद नहीं आती दूसरों की महफिलों में रत जगह करने वाले तुम्हारे भी रत जगह ही होगा यह रत
जगह तुम्हारे लिए विशाल आयोजन है मेरे लिए दुख के परिणामों का फल है पाप है साथिया आज हमें नींद नहीं आएगी सुना है तेरी महफिल में रत जगाह है सुना है तेरी महफिल में रत जगा है आंखों ही आंखों में रैन कट जाएगी सुना है तेरी महफिल में रत जगा सुना है तेरी महफिल में रत जगा है यह रत जगा कराने वाले परमात्मा इनकी बुद्धि फेर देता है यह धार्मिक अनुष्ठान करके रात को जागते हैं अवश्य ही लोगों की रातों को छीना होगा नींदों को छीना होगा रातें सोने के लिए होती हैं जागने के लिए नहीं होती जागने का तो सिर्फ श्राप कुछ ही लोगों को को मिला है
उल्लू और उल्लू सही चुना लक्ष्मी के वाहन के रूप में जो दूसरों की लक्ष्मी का हरण करते हैं उनकी सवारी उल्लू ही होनी चाहिए लक्ष्मी भी खुद रात को जागती है उलो भी रात को जागता है यह तालमेल तुम्हें बिठाना आता नहीं तुम अगर जागरण का आयोजन करते हो बड़ा भ आयोजन होता है बड़ा एक एक चौक के भीतर बड़े-बड़े यूनिट्स लगते हैं फिर पाप कर रहे हो पाप के कारण जागरण का आयोजन किया और फिर पाप कर रहे हो जाग करो लोगों को जगाने तुम कहते हो भगवान का नाम कानों में पड़ जाएगा अरे नाम कुछ कानों में पड़ जाएगा उससे क्या होता है नींद हराम हो
जाएगी मेरे पास रोज लोग आ जाते बाबा नींद नहीं आती तुमने वो वहां से आए थे ना वहां से मध्य प्रदेश से उन्हें दवाई बताई थी हमें भी बता दो मैंने कहा फिर ये जागरण वगैरह बंद कर दोगे बस यही है पाप का कारण लोगों की नींदों को हराम मत करो सबक सीखो कुछ बातों से परमात्मा तुम्हें किसी ना किसी तरह जैसे भीष्म पितामह की बुद्धि खत्म करती वरदान था स्वेच्छा से मृत्यु का वर्ण कर सकता था पहले ही दिन रो रो बद गया था और चाहता तो वरदान था लेकिन वरदान क्या करेगा जा को मैं दारुण दुख देही ता की मति पहले हर भीष्म पितामह की तथा कति
तथा कथित पितामह की महारथ की उसके आगे कोई जोर चलता है उसने मति हर हम तो उत्तरायण में जब सूर आएगा तब त्याग प्राणों को बर्दाश्त कर लेंगे कष्ट क्लेश दर्द सब बर्दास्त कर लेंगे लेकिन सूर्य जब तक उतरण में नहीं प्राण नहीं ता म ऐसे ही मति हर लेते हैं हम तो जागन [संगीत] करवा दूसरों की नींदों को हरण करोगे खुद भी जागोगे खुद को कष्ट देने वालो तुम उस अमृत की लालसा करते हो लोग मुझे कृष्ण का व वचन सुना देते हैं जब सारा संसार जागता है तो मेरा योग सोता है जब सारा संसार सोता है तो मेरा योगी जागता है हां लिखा है लेकिन इसका अर्थ तुम्हें
पहले पड़ा अर्थ का अनर्थ करने वालों कभी भीतर जाकर देखा जहां जागरण होता है हर घड़ी जागरण चलता है हर घड़ी महारास होता है हर रास चेतना राधा निन चाती है हर वक्त वहां तुम कभी पहुंचे उस निधि वन में कभी गए के बाहर बाहर के ड्रामे बज य बंद कर दो जिन्होंने लोगों के चैन छीने होते हैं रातों की नींद छीनी होती है वो जगराते कराते हैं महामाई के मेरी बातों को गौर से समझ लेना ना मुझे पागल कुत्ते ने काटा है ना मैं पागल हूं मैं बिल्कुल चैतन्य हूं मैं बिल्कुल साक्षी हूं दृष्ट लोगों के खूनो को बचोगे लोगों के धन को अपनी जेबों में
डालकर तुम्हें नींद ज्यादा नहीं आएगी ध्यान रखना नींद खोए क्योंकि यह पैसा कमाया लोगों की नींदों को हराम करके और एवरी एक्शन देर इन एंड अपोजिट तुम्हें भी वही कुछ मिलने को है आज लोगों को अपने इशारों पर ओगे कल को लोगों के इशारों पर नाचने के लिए तैयार भी हो जाओ भागो के फिर खुद के ही से मरना पड़ता है हिटलर को लेकिन मूर्ख इन बातों से इतिहास से इतिहास का फायदा भी है और नुकसान भी है नुकसान तो यह के व्यर्थ में फूला फरी रहती है और फायदा यह कि उससे कुछ लाभ उठा लो उसने ऐसा किया था उसे ऐसा परिणाम भोगना पड़ा मैंने कुछ नहीं पढ़ा था और ये मेरा
भाग रहा कोरा कागज था बड़े आराम से आकर उसने दस्तखत कर दिया तुम तरसते हो मैंने कल के प्रवचन में कहा था अगर कुछ मांगना है परमात्मा से तो परमात्मा के दर्शन मत मांगो दर्शन तो हो जाएंगे परमात्मा पर विश्वास मांग लो ऐसी कृपा कर दो प्रभु कि मुझे तेरे पर अटू विश्वास हो जाए उसे श्रद्धा कहते हैं अखंड विश्वास उसी का नाम है श्रद्धा जिसे तुलसीदास ने कहा श्रद्धा विश्वास पन या भम बिना पसंते आज फिर रहेगा नागार्जुन का शून्यवाद कल कोई बात नहीं कहीं कोई कुछ भागता नहीं नागार्जुन का शून्यवाद बड़ा प्यारा है वह कई प्रवचन मांगेगा लेकिन उससे पहले बीच
में तुम प्रश्न और अड़ा देते हो यह 10 मिनट का 20 लाख रुपए लेने वाले तुम्हें सत्य नहीं बता सकते हैं क्योंकि जिसे सत्य का पता चल गया उसकी मांग खत्म हो जाती है इन शब्दों को आप एक एक शब्द को अच्छी तरह से सुन लिया करो न जाने फिर यह शब्द सुनने को मिले ना मिले यह महंगे कवियों की बातें यह बिकाऊ माल है तानसेन की तरह हरिदास की तरह नहीं हरिदास तो तब गाता है जब वह विराट चाहता है इनकी तमन्ना कुछ और है कुछ राज्यसभा की टिकट इनको मिलती नहीं बेरों को कोई भरा कर दो मैं भी फरयाद कर देता कि कोई पार्टी भला कर दे इनको
राज्यसभा की टिकट दे दे विचारों को बूढ़े हुए जाते हैं बिकाऊ माल है तुम चाहे कोई लेवल लगालो लेकिन हमारी दृष्टि में तुम बिकाऊ माल ही रहोगे तोय कोठ बैज देती है अपने शरीर को और तुम रंग मंचों पर बैज देते हो अपनी प्रतिभा को दोनों बिक धन्यवाद श्री कृष्ण गोविंद हरे [संगीत] मुरारी हे नाथ नारायण वासुदेव श्री कृष्ण गोविंद हरे मुरारी हे नाथ नारायण वासुदेवा श्री कृष्ण गोविंद हरे मुरारी हे नाथ नारायण वासुदेवा ऐ मुसाफिर क्यों पसरता है यहां ऐ मुसाफिर क्यों पसरता है यहां यह किराए पे मिला तुझको मकान यह किराए पर मिला तुझको मकान
[संगीत] कोठड़ी कोठड़ी खाली करा ली जाएगी जब तेरी जब तेरी डोली निकाली जाएगी बे महूरत के उठा ली जाएगी जब तेरी श्री कृष्ण गोविंद हरे [संगीत] मुरारी हे नाथ नारायण वासुदेवा श्री कृष्ण गोविंद हरे मुरारी हे नाथ नारायण वासुदेवा सर्व धर्मा प्रत्य माम एकम शरणम ब्रज सर्व धर्मा प्रत मामे कम शरणम ब्रज शरणम [संगीत] ब्रज अहम ताम सर्व पपयो मोक्ष श्याम मा सुच पितु मात स्वामी सखा हम पितु मात स्वामी सखा हमारे हे नाथ नारायण वासुदेवा श्री कृष्ण गोविंद हरे मुरारी हे नाथ नारायण वासुदेवा श्री कृष्ण गोविंद हरे मुरारी हे नाथ
नारायण वासुदेवा महे [प्रशंसा] पख लग [संगीत] गई ए दर वख लग गई धर वख लग गई लगी वाले ना कदे भी सुंदे लगी वाले ना कदे भी सुंदे तेरी किव अख लग गई एक शब्द भीतर की तरफ इशारा करते हैं वह तत्व जो कभी सोता नहीं जिसकी लग जाती है उस तत्व तक पहुंच जाता है जो कभी सोता नहीं लगी वाले ना कदे भी सुंदे तेरी कि अख लग गई तू कैसे मर्ष हो गया जाक जाक बी अवे अख लग गई दोहे पख लग गई दोनों तरफ लग गए संसार में भी लग गई परमात्मा भी लग ग धर वख लग गई उधर वख लग गई श्री कृष्ण गोविंद हरे मुरारी हे नाथ नारायण वासुदेवा श्री कृष्ण
गोविंद हरे मुरारी हे नाथ नारायण वासुदेवा पितु मात स्वामी सखा हमारे पितु मात स्वामी सखा हमारे नाथ नारायण वासुदेवा श्री कृष्ण गोविंद हरे मुरारी हे नाथ नारायण वासु देवा [संगीत] हो धन्यवाद i
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