मैं ओशो का संन्यासी हूं, साक्षी की साधना करता हूं पर परिणाम शून्य है! कहाँ कमी आ रही है?






बाबा जी प्रणाम मैं साक्षी की साधना करता हूं पहले अनापानसती विपश्यना वगैरह का अभ्यास किया था एक बड़ी दिक्कत आती है मैं ओशो के द्वारा संयस्त हूं बहुत पुराना साधक हूं दिक्कत यह आती है कि श्वास को ठीक देख लेता हूं आती जाती स्वास पूर्ण साक्षी हो जाता हू स्वास ने पेट भर दिया पेट खाली हो गया बाहर चली गई स्वास भीतर आने लगी यह मैं परिपूर्ण तरीके से देख लेता हूं परंतु जब वेग आते हैं विकारों के वहां निष्फल हो जाता हूं हार जाता हूं विकार अपना काम करके गुजर जाते हैं मैं साक्षी बना रहता हूं लेकिन परिणाम शून्य भोग लेता


हूं कहां कमी आ रही है कमी सिर्फ आपको ही नहीं आ रही जो भी साक्षी का अभ्यास करता है उन सबको आ रही है यह सवाल सिर्फ तुम्हारा नहीं है जो भी साक्षी की साधना करते हैं उन सभी का सवाल है पहली बात आप इसे लिख लो क्योंकि यह बहुत जगह काम आएगी तुम जो भी क्रिया करते हो उसका परिणाम आना चाहिए उसके लक्षण आने चाहिए तो वह क्रिया सफल हुई अगर लक्षण नहीं आए परिणाम नहीं आए तो क्रिया सफल नहीं हुई तुमने कहा मैं साक्षी की साधना करता हूं स्वास को ठीक से देख लेता हूं स्वास को देखना कोई मुश्किल नहीं यह प्राकृतिक क्रिया है मुश्किल होता है प्राकृतिक


क्रिया जब विकारों में प्रवेश हो जाती है काम आता है क्रोध आता है लोभ मोह अहंकार आता है शराब पीने का दिल करता है मद मत सर तुम कहते हो वहां मैं चूक जाता हूं फिर साधना में चूक है कहां चूक है तुम देखना मैं तुम्हें सारी साधना की प्रोसेस बताता हूं मेरी दृष्टि से तुम जो कर रहे हो वो गलत कर र हो साक्षी की साधना ठीक से नहीं हो रही साक्षी की साधना क्या है शास्त्रों में कहानी आती है भगवान शिव को काम उठा ध्यान से सुनना भगवान शिव ने तीसरा नेत्र खोला और काम भसम हो गया तीसरा नेत्र खोला यह क्या है काम भसम हो गया परिणाम आ


गया तो उसी शब्द को याद करो मैंने कहा परिणाम आना चाहिए फिर तो दर्शक की तरह तुम फिल्म में पहले एंटेंगल होते थे अब साक्षी बन के देख रहे हो उससे कुछ फर्क नहीं पड़ेगा चूक हो रही है कहां हो रही है और अक्सर चूक होती है एक मजे की बात बताऊं आनंद बुद्ध से कहने लगे भगवान मैं आपका शिष्य तो बन जाऊंगा बड़ा भाई हूं लेकिन एक शर्त है 24 घंटे में आपके साथ रहूंगा वास्तव में आनंद के क्या था मन में अनंत समझता था कि बुद्ध चोरी छिपे काम में चले जाते हैं इस बात को वह समझ नहीं पा रहा था यह भ्रम उसके मन में समाया हुआ था कैसे एक व्यक्ति


अपने पूरे जीवन में ब्रह्मचारी रह सकता है लेकिन पतंजली कहते हैं महावीर कहते हैं बुद्ध भी कहते हैं सत्य अहिंसा अते ब्रह्मचर्य पग्र अगर ब्रह्मचर्य हो नहीं सकता तो महावीर ने पतंजली ने बुद्ध ने क्यों कहा क्या वह गलत कह गए नहीं गलत नहीं कहा यह सता है तभी कह दिया अन्यथा न भी कहते तो चलता अब तुमने कहा अगर प्राकृतिक रूप से काम चलता रहे क्रोध चलता रहे हम उसे देखते रहे तो क्या साक्षी की घटना घट गई नहीं घटी फिर वही परिणाम आना चाहिए परिणाम क्या आना चाहिए अगर तुम सही वास्तव में सही से साक्षी हो गए जिसे महावीर सम्यक रूप से साक्षी कहते


हैं तो क्या होगा त तक्षण काम नष्ट हो जाएगा काम का आवेग आवेगा तो वह नेचुरल प्रोसेस है अब ध्यान से ये बात आप ध्यान से समझ लेना काम का आवेग आएगा क्रोध भी आएगा लोभ भी आएगा मोह भी आएगा अहंकार भी आएगा मद भी आएगा मतसर भी आएगा सब आएंगे विकार लेकिन उन विकारों के आते ही तुम्हारे पास एक मंत्र है शिव के पास एक मंत्र है और शिव अपना तीसरा नेत्र खोल लेते हैं और वह विकार नष्ट हो जाता है कामदेव राख हो जाता है यह मंत्र क्या है साक्षी तो तुम होते हो तुमने कहा हम साक्षी होते हैं बराबर हमें शरीर की सारी क्रियाओं का पता


चलता है शरीर ऊपर गया शरीर नीचे आया शरीर ऊपर गया शरीर नीचे आया लेकिन साक्षी होने के बावजूद काम नहीं रुकता काम भोगने के बाद ही रुकता है तो परिणाम नहीं आया तुम बुद्ध को भी चूक गए महावीर को भी चूक गए पतंजलि को भी चूक गए यह तीसरा नित्र क्या है जैसे शंकर खोलते हैं और काम नष्ट हो जाता है काम ही नहीं क्रोध भी नष्ट हो जाता है एक बात और बता संत पुरुषों को जहां इन आवेग की जरूरत होती है वहां प्रयोग भी करते हैं राम को जब मार्ग नहीं देते समुद्र तो अग्निबान निकाल लेते हैं क्रोधित हो जाते हैं मैं तुम्हें बसम कर


दू जब नहीं समझता शिशुपाल स गालियां निकाल के तो कृष्ण उस क्रोध का उपयोग करते हैं बस यहां सिर्फ यह बात समझ लेना के विकार संतों के वश में होते हैं और तुम विकारों के वश में हो इतना ही फर्क है और यह बहुत बड़ा फर्क है विकार संतों के वश में होते हैं कठपुतली की तरह नचाते हैं विकारों जहां चाहते हैं काम लेते हैं जहां नहीं चाहते नहीं काम लेते लेकिन तुम चाहते हुए भी रोक नहीं सकते तुम्हें आवेग नचाते हैं संत वेगो को नचाते हैं देखिए कभी काम की भी जरूरत पड़ती है कृष्ण को काम की बड़ी जरूरत पड़ी इतने से बच्चे पैदा


किए महावीर को भी जरूरत पड़ी बुद्ध को भी जरूरत पड़ी लेकिन तब तक वह ज्ञानी नहीं थे लेकिन कृष्ण तो ज्ञानी थे कबीर को नानक को सभी को जरूरत पड़ी तो उसका प्रयोग करते हैं बस यहां फर्क समझ ले बहुत से प्रश्न रोज आते हैं मेरे पास एक एक प्रश्न को काटता चला जाऊंगा संत के वश में होते हैं यह विकार चाहे तो उन्हें रोक सकता है लेकिन तुम चाहे तो रोक नहीं सकते देखो कहां रुकता है विकार है तो ऊर्जा का स्वरूप है शंकर की ये गाथा कामदेव आता है आता है शिव को भी आता है राम को भी आता है कृष्ण को भी आता है लेकिन शिव राम और कृष्ण नष्ट कर देते


हैं किसके द्वारा तीसरे नेत्र के द्वारा अब यहां चूक हो गए तुम साक्षी तो हो तुमने सारा दृश्य तो जा के देख लिया शरीर ने क्या-क्या हरकतें की शरीर में क्या-क्या उत्तेजना आई कैसे उसने अंतरंग क्षणों में प्रवेश किया और तुम उसको परिपूर्णता तक ले जाते हो फिर यह तो पशुता हो गई पशु भी ऐसा ही करता है पशु भोग के ही वापस आता है तुम लेवल लगा लेते हो साक्षी तो का लेकिन भोग के ही वापस आते हो क्रोध जब गुजर जाता है तो भी तुम्हें होश आता है काम जब भोग लेते हो तोही तुम्हें होश आता है तो फिर तुम में और स ार जन में क्या फर्क


है तुमने एक साक्षी का लेबल लगा दिया सिर्फ इतना ही श के द्वारा सस्त हो यह तो ठीक लेकिन इतने साल में तुमहे साक्षत साधना नहीं आया मैं कहता हूं परिणाम आना चाहिए जैसे शिव के प्रणाम आया शिव ने अपना तीसरा नेत्र खोला काम भस्म हो गया कामदेव भस्म हो गया रोने लगी उसके धर्म पत्नी यह गाथा है नेचुरल प्रक्रियाएं सबके भीतर चलती हैं वही भूख लगती है कृष्ण को वही कबीर नानक को वही भोजन खाते हैं वही भोजन पचता है उसी तरह पछता वैसे ही सारी क्रियाएं विकार के रूप में आती हैं यहां बहुत से मित्र सोचते हैं कि संतों को विकार नहीं आता तुम गलती


में नेचुरल प्रोसेसेस हैपन लवेज यह प्राकृतिक प्रक्रियाएं हैं सभी के शरीर पर घटती है लेकिन लेन संत जानता है इनसे निपटना दुश्मन तो संतों के भी होते हैं मित्र भी संतों के होते हैं लेकिन संत जानता है निपटना तुम निपटना नहीं जानते तुम बिखेर देते हो सारा मसला तुम धागे को उलझा देते हो गांठों में और संत गांठों को धीरे-धीरे खोल देता है सरल धागा सीधा धागा बना देता है तुम जल्दबाजी में गांठों को खोलने की चेष्टा में और गांठे दे लेते हो गोल गांठ हो जाती है अब हम मूल मुद्दे पर आ जाए यह तीसरा नेत्र जो खुला यह क्या


था मैं मुद्दे के आसपास ही रहूंगा कहीं चला जाऊं मुद्दे प आ जाऊंगा घबराना मत विकार शिव को भी आया उसके पास भी पार्वती है उसने भी शादी कर पाई है अगर बच्चों की आवश्यकता ना होती तो शिव भी शादी ना कराते देखिए शिव की शादी में क्या-क्या नहीं होता भूत प्रेत चंडाल राक्षस बैताल यक्ष दक्ष यक्षिणी दक्षिनी कितनी सुंदर बारात आपकी तरह बारात लेकर जाते हैं बच्चे भी पैदा करते हैं गणेश पैदा किए कार्तिक पैदा किए पर्वती लेकिन हम मुड़ों की जमात सनातन और हिंदू एक नहीं है समझ लेना बात को हिंदू बोल पंथी है सनातन से निकला है सनातन का दूसरा रूप


है लेकिन जिन्होंने यह भागवत सप्ता वगैरह की कहानियां लिखनी शुरू कर दी पुराण लिखने शुरू कर दिए व सब गोड़ पंथी हैं वो हिंदू कहलाए हिंदू जीने का एक तरीका है वे ऑफ लिविंग और सनातन धर्म है हिंदू धर्म नहीं हिंदू जीने का तरीका वे टू लिव लाइफ और सनातन सनातन धर्म यहां फर्क समझ लेना इस्लाम इस्लाम धर्म और मुस्लिम मुस्लिम संप्रदाय इन दोनों को आप बराबर समझ लेते हो और इस्लाम का शब्द वही जो सनातन का होता है शांत हमारा स्वभाव शांति शांत हमारा स्वभाव सदा है आद सच जुगा सच है भी सच नानक उस भी सच सनातन सदा से है था है रहेगा वह सनातन लेकिन


हिंदू हिंदू तरीका जीने का मुसलमान जीने का तरीका उनका धर्म इस्लाम यह तुम दोनों को बराबर कर लेते हो बराबर नहीं मुसलमान के अपने कुछ नियम जब धर्म नियमों में ढल जाता है तो वह हिंदू मुसलमान बनता है फिर नमाज करो फिर तीर्थ करो फिर जाप करो फिर यह करो वो करो जब करने में उतर जाता है वह इनर मोस्ट तत्व तो धर्म से संप्रदाय बन जाता है धर्म तो सनातन इस्लाम इनके एक ही अर्थ है तुम्हारा अंतस बड़ा शांति प्रय इसलिए तुम सदा क्रोध में नहीं रह सकते सदा प्रेम में रह सकते हो सदा शांति में रह सकते हो सदा क्रोध में नहीं रह सकते क्यों


क्योंकि तुम्हारा स्वभाव नहीं है सनातन प्रेम है इस्लाम शांति है प्रेम प्रेम में शांति है और शांति में प्रेम है ये दोनों का अर्थ एक ही है शब्दों का फर्क है लैंग्वेजेस का फर्क है लेकिन इसके आगे जब संप्रदाय में आ जाती है चीज जैसे शिष्य सिख सिख धर्म है शिष्य धर्म है और जब शिष्य से आगे उनके संप्रदाय आ जाते हैं तो बिगड़ जाता है शिष्य का अर्थ है जो कहता है मैं कुछ नहीं जानता मैंने सीखना है जानता मैं कुछ नहीं समझना इस बात को शिष्य का अर्थ है मैं जानता कुछ नहीं सीखने आया हूं तुम भी तो सीखने जाते हो ना विश्वविद्यालय


में और तुम्हारे संत शिष्य नहीं है तुम्हारे संत कहते हैं मैं सब जानता हूं पहले से ही जानता हूं वह सूचनाओं को ज्ञान समझ लेते हैं इसलिए कपोर बोलते हैं फिर पुराणों की रचना होती है और पुराणों में कहानियां गोड़ सं लेकिन सनातन में कहानी नहीं है इस्लाम में कोई कहानी नहीं है कहानियां बाद में बनी इस्लाम तो भीतर के उस तत्व को कहते हैं जो शांति प्रिय है जो शांति में झूमता है जो नाचता है शांति से जब इस्लाम बदलता है संप्रदाय में तो कबाड़ा हो जाता है जब सनातन बदलता है संप्रदाय में तो कबाड़ा हो जाता है जब सीखने की नम्रता


की बात आती है धर्म में धर्म से संप्रदाय में तो फिर तुम बजल हो जाते हो फिर तुम कहते हो मैं सब जानता हूं वो शिष्य ना रहा जो जानता है वह शेष थोड़ा है जो जानने की क्षमता रखता है और जानना चाहता है पोटेंशियल्टी टू नो उसमें संभावना है जानने के जानने के लिए आया है विश्वविद्यालय में तुम अगर सब जानते होते तो विश्वविद्यालय में क्यों जाते क्यों जाते स्कूल में तु जानने की इच्छा से जाते हो तो सिख का मतलब है मैं कुछ नहीं जानता प्रभु मैं अज्ञानी हूं मैं अनजान हूं मैं सीखने के लिए आया हूं उसे शिष्य धर्म कहते हैं शिष्य धर्म का अर्थ जानने की इच्छा से


जो भर गया वह सिख हो गया लेकिन जब वो संप्रदाय में बात आती है तो फिर वल ण में पहचानी जाती है हिंदू भी मुसलमान भी सिख भी बस लक्षणों से पहचान लो यह क्या है भीतर जानने की इच्छा हो ना हो लेकिन बाहर यह पांच कक्के नजर आने चाहि बस फिर तुम सिख हो गए नहीं सिख नहीं हो सिखों के लक्षण तुमने थोप लिए शिष्य बहुत भीतरी बात है जानने की इच्छा प्रबल इच्छा मैं अज्ञानी हूं जानना चाहता हूं लेकिन तुम पांच कक्कों को अपना के ज्ञानी होने का नाटक करते हो बाहर के वेष भूषण को बदल के वो ड्रामेबाजी है वो सरकस है कर लो केस रख लो


कृपानो कंघी रख लो कच्छा कड़ा य पांच कके रख लो क्या सीखने की क्षमता से भर जाओगे नहीं भरोगे यह तो सिर्फ एक साधन थे देखने के कि व्यक्ति किस धर्म से बिलोंग करता है लेकिन तुम सिर्फ उन नाटकों को बाहर के आडंबर को अपनाकर धार्मिक हो जाना चाहते हो धर्म इतनी सस्ती नहीं बात धर्म तो आप फूकना होता है धर्म तो आग लगानी होती है अपने ही घर को जो घर बार आपना चले हमारे साथ यह इतनी सस्ती बात नहीं कि पांच कक्के डाल और तुम सिख हो गए ना शिष्य जानने की क्षमता मैं अज्ञानी हूं मैं कुछ जानता नहीं प्रभु मित नि नान कात गुण संगत यह नीवा पण


है मैं कुछ नहीं जानता यह है मैं अज्ञानी हूं तुम मुझे सिखाओ तुम मुझे वहां ले जाओ जहां सब कुछ जान लिया जाता है जानता में कुछ नहीं यह शिशवर्ल्ड जानता है जो नमाज करनी जानता है वह मुसलमान वह इस्लाम क्योंकि जो झुक जाएगा वह शांति प्रय है उसने हार मान ली तुम्हारे सामने भी कोई झुकता है उसने हार मार ली जो छाती चोड़ी करता है उसने हार नहीं मानी मिठ नीमी नानका गुण त तुम नमाज पढ़ते हो लेकिन नमन कहां होते हो अहंकार तो अकड़ रहता है तुम शिष्य बनते हो लेकिन कहां सीखते हो शब्द सीख लेते हो मेरे पास रोज ग्रंथियों के फोन आते बाबा हम तो 28


मिनट में जप जी पढ़ लेते हैं मैंने कहा ठीक है पढ़ते और आप तो एक छोटे से प्रवचन के ऊपर पूरा दिन गुजार देते हो य तुमने पढ़ना होता है मैंने समझना होता है कहीं तो कोई फर्क है ना तुम पढ़ते जाओ मैं समझाता चला जाऊंगा अपने अपने काम पर निकल जाओ धर्म जब बिगड़ता है बाहर आकर संप्रदाय बन जाता है और संप्रदाय खून खराबा करते हैं इसलिए मैं कहता हूं संप्रदायों से बाहर आ जाओ अगर भगवान कृष्ण भी कहते हैं सर्व ध्र माण प्रत माम कम शरणम ब और यह कहते सभी संप्रदायों को छोड़ दो ना हिंदू रहो ना मुसलमान ना सिख ना ईसाई इंसान बन


जाओ इंसान बनना काफी है परमात्मा ने इंसान पैदा किया अगर सिख पैदा किया होता तो केस कड़ा कच्छा कृपाण देकर पैदा करता उसके घर कोई कमी है क्या और फिर जब वह बाल छीन लेता है तो केस का क्या करते हो तुम कैसे बनाओगे केस तुम नहीं यह तुम्हारी सोच करता है यह सब भीतर की बात हैं तुम बाहर से थोप लिए हो और समझते हो कि हम धार्मिक हो गए यह धर्म नहीं तुम संप्रदायिक हो यह ठीक है शिष्व का अर्थ तुम सीखना चाहते हो स्वीकार करना कि मैं कुछ नहीं जानता प्रभु यह नमाना होना है और नमाज का अर्थ भी नमाना होना है और हिंदू का धर्म में नमाना होना है


तुम नमस्कार करते हो नमन करते हो झुकते हो मूर्ति के आगे यह प्रथम पड़ाव है तुम्हें सिखाया जाता है सबसे पहले क्योंकि यह बुनियाद है अगर नीमा होने ना सीखो ग झुकना ना सीखो ग और दंडवत पूरे के पूरे झुकना तो फिर वह ना बरसेगा अकड़ी हुई रीड छाती चोड़ी परमात्मा नहीं बरसता उस पर ध्यान रख लेना परमात्मा बरसता है झुके हुए नमन किए हुए दंडवत प्रणाम किए हुए नमाज में तुम पूरे झुक जाते हो यह अकड़ी हुई रीढ की हड्डी पूरी झुका लेते हो बेंड कर देते हो भीतर की बात है बाहर झुकना सरकस है सरकस ऐसा करते हैं आसन करने वाले ऐसा करते हैं


हलासन में सब मोड़ लेते हैं लेकिन ये सरकस है यह शरीर के लिए है भीतर तक पहुंचने का कोई साधन नहीं है जो भीतर से शांति भीतर से प्रेम भीतर से आनंद भीतर से नमन जिसके आ जाता है उसका चलने का पुसर भी बदल जाता है समझ ले ना बात बाहर के चलने के पोचर से तुम पता ले सकते हो कि यह व्यक्ति कितना अहंकारी है या कितना नमन कितना झुका तुम जब चलते हो बिल्कुल पहचान लिए जाओगे बॉड़ी लैंग्वेज भी होती है तुम पहचान लिए जाओगे सहज भाव से तुम चलो कोई भी पहचान लेगा जानने वाला कि तुम कितने निर अहंकारी हो कितने अहंकारी हो यह पहचान


है अब हम मुद्दे पर आ जाए तुमने पूछा पुत्र कि मैं अपने शरीर को सब हरकतें करता हुआ देखता हूं बिल्कुल ठीक है साक्षी बना रहता हूं बिल्कुल ठीक फिर भी मैं काम वासना के अंतरिम छोर पर क्यों पहुंच जाता हूं यहां गलती हो ग यहां समझने में गलती हो गई समझाने वाले में तो गलती नहीं होती क्योंकि समझाने वाला शब्दों से समझाता है और शब्द सीमित है हो सकता है समझाने वाला जिन शब्दों का अंत में प्रयोग किया वह उससे आगे जाते ही ना हो उसकी तो मजबूरी है लेकिन आप उन शब्दों को पकड़ के इशारे की सीध में नहीं देख पाओगे स्ट्रेट लाइन में दिखता है वोह रहा


चंद्रमा तो चंद्रमा उंगली के टॉप पर नहीं होता चंद्रमा उंगली के सीध में होता है टॉप पर नहीं होता और जो लोग टॉप के ऊपर उंगली के टॉप के ऊपर चंद्रमा को देखेंगे वह नहीं पा सकेंगे कभी नहीं मिलेगा ऐसा ही धर्मों के साथ आज हो रहा है तुमने शब्द पकड़ लिए हैं इशारों की स्ट्रेट लाइन में तुम गए नहीं इसलिए तुम दुखी हो इसलिए तुम काम वासना से ग्रसित हो क्रोध से ग्रसित हो अहंकार से ग्रसित हो सभी विकार तुम्हें घेर लेते हैं विकारों से तुम मुक्त नहीं हो पाते तो बुत ने कहा ठीक आनंद तुम मेरे साथ रहो 24 घंटे साथ रहो अब उसकी नियत तो बद नियत


थ उसे तो शक हो गया था कैसे हो सकता है यह व्यक्ति ब्रह्मचारी रहे व्यक्ति में काम आई ना और वह जीवंत सब कुछ खाता है आता है भाई काम आता है लेकिन तुम्हें भीतरी प्रोसेस का नहीं पता कि बुद्ध करते क्या है तुम्हें भीतरी प्रोसेस का नहीं पड़ता कि शिव करते क्या है राम और कृष्ण क्या करते हैं जब रोकना होता है काम नहीं क्रोध लोभ मोह अहंकार मत बहुत कुछ रोकना होता है विकार एक नहीं है विकार बहुत है और मैंने एक विकार और जोड़ा था पिछले दिनों में वह था भय जो सबसे ज्यादा है तुम्हारे भीतर मृत्यु का इसको संत लोग पता नहीं क्यों भूल गए सबसे


बड़ा विकार यही है भीतर जाने में अगर कोई रोकता है विकार तो 70 प्रत मृत्यु का भय होता है मेरे पास जितने भी आते हैं कमेंट्स उसमें कुछ एक को छोड़कर बाकी सभी मृत्यु का भ होते हैं को विरला विरला कहता है मुझे क्रोध आता है कोई विरला विरला कहता है मुझे काम आता है ऐसा नहीं कि उन्हें काम आता नहीं आता है भोग लेते हैं वो अब हम काम की बात पर आ जाए अगर तुम प्रकृति के रूप से चलोगे तो मैंने पहले भी तुम्हें बताया मुक्त तो तुम फिर भी हो जाओगे वन डे यू विल बी लिबरे लेकिन लाखों जन्म लग जाएंगे तो प्राकृतिक रूप से चलते


रहो काम आए तुम साक्षी बनो लेकिन अगर सखत हो गए तो तुमने भोग लिया फिर तुम साक्षी ना हुए कहीं कोई गड़बड़ है वो गड़बड़ कहां है बताऊंगा क्रोध आया तुम क्रोध में चले गए क्रोध सब खंड खंड कर गया बाद में तुम पश्चाताप किए भय आया लोभ आया भय अपना काम कर गया भय आया तुम बाहर आ गए डर के कहीं मर ना जाऊ भय अपना काम कर गया सभी विकार अपना काम कर जाते हैं तुम्हे बाद में होश जा है माजरा क्या है और वह क्या है शिव का तीसरा नेत्र जिसे शिव खोलते हैं और उससे सिर्फ काम ही नहीं सभी विकार नष्ट हो जाते हैं शिव की वह तकनीक मेरी दृष्टि में तुम समझ नहीं


पाए बताने वाले ने तो बताया होगा खैर मैंने पढ़ा नहीं इतना ज्यादा सुना है थोड़ा ऐसी तो बात भी नहीं होती लेकिन तुम कहो कि परिपूर्ण नहीं पढ़ा है तो अपने को पढ़ा है मैंने सिर्फ अपने को पढ़ा है और अपने को पढ़कर मैंने सब जान लिया जिसको एक को जानने से एक साध सब सध सब सद जाते हैं सब जान लिया जाता है मैंने उसको जान लिया फिर ज्यादा जानने की जरूरत भी नहीं फिर दूसरों को तो मैं तो पढ़ता हूं कि बताने के लिए सरल भाषा में और ज्यादा व्याख्या इत कर सक और आगे आगे दुनिया और सरलता मांगेगी तुमसे समझना बात को पहले संस्कृत चलता था कृष्ण के वक्त


की गीता आज आचार्य फीस ले लेकर समझाते हैं जुड़ जाओ भाई इतने लोग हो गए हैं तुम भी जुड़ जाओ व जो भिखारी होता है ना भिखारी क्षमा करना तुमसा मत करो व जब घर से चलता है तो एक घर में पहले जब जाता है तो घर से ही कुछ डाल के जाता है कुछ पैसे टके कुछ अन वन और पहले घर में जाएगा वो खड़का जाएगा उसे खड़का जाएगा खड़का नहीं का अर्थ क्या है कि किसी और ने भी उसे कुछ दिया है इसका यह मतलब है तो 5 हज लोग जुड़ गए इसका मतलब तुम भी जुड़ जाओ सिर्फ बहका के लिए है देखिए गीता कृष्ण बोल सकता है सिर्फ फिर सुनना मेरी इस बात को गीता को सिर्फ कृष्ण बोल सकता है


आचार्य नहीं बोल सकता आचार्य तब बोल सकता है जब व उस तल पर पहुंच जाए और उस तल पर पहुंचने के लिए जिस चीज की आवश्यकता पड़ती है वह इनमें नजर नहीं आता फिर वही बात लक्षण आना चाहिए परिणाम आना चाहिए परिणाम दिखाई नहीं पड़ता ना मिठास है ना प्रेम की पलका हट है ना मृदु होता है ना अभय मुद्रा है वैसे ग्रस्त है अगर मैंने ये बोल दिया तो मुझको मार देंगे कुछ भी नहीं है और मैंने वही शब्द जब मैं वही कहूं तो याद कर लिया करो परिणाम आना चाहिए कोई आनंद की मुद्रा में झूमता नहीं झूमते हैं और झूमते हुए को देखना बड़े बद्दे


लगेंगे पेट आगे कृष्ण का पेट आगे नहीं मिलेगा राम का पेठ आगे नहीं मिलेगा तुम्हें बड़े सुडोल सदे हुए शरीर संत का कभी पेट आगे नहीं मिलेगा जो जैन मुनि इनके पेट देखना बस पेट से समझा जा सकता है सिर्फ मात्र एक पेट और चाल यह बता देती है कि व्यक्ति कैसा है यह दो चीजों का अवलोकन कर लेना तुम समझ जाओगे पेट बड़ा है और चाल थोड़ी सी रीढ़ सीधी है तो लक्षण नहीं आए बाहर की बातें हैं 99 प्र सही होंगी एक प्रतिशत में स्पेयर कर देता हूं उन लोगों के लिए कि चलो अपने आप को समझा ले के हम उन्हीं में से ही हैं तो 99 प्र मैं कहता हूं क्योंकि तुम


बच जाओ जो बचना चाहते हो यह आचार्य इस एक प्रतिशत में बच जाए मैं स्पेयर कर देता हूं इसलिए और मैं जानता हूं कि नहीं वह पुल काहट नहीं है वह मद मस्ती और बच्चों जैसे खिलखिला हट व निर्दोष का व अभय मुद्रा नहीं है बच्चे को सर्व के पास छोड़ दो वह खेलेगा उसे तुम डरो ग बच्चा खेलेगा बच्चा आनंद लेगा किलकार मारेगा उसको चलते हुए देखकर रोमांचित होगा आश्चर्य चकित होगा और यह आश्चर्य तुम्हे पहुंचा देगा आश्चर्य भी एक सीडी है अगर तुम विषम से भर जाते हो तुम विषम से से कहां भरे विसम तो तुम्हारे भीतर आता ही नहीं अन्यथा एक


जर्रा रेत का ना बनाने की समर्थ रखने वाले व्यक्ति इतना विराट संसार देखकर कोई विस्मय नहीं आता उनमें हैरानी की बात है संत विस्मय से भर जाता है और संत विस्मय के साथ-साथ श्रद्धा से भर जाता है संत के भीतर से निकलती है शिकायत नहीं धन्यवाद वह धन्यवाद देता है वह शुक्र गुजार होता है एक संत ऐसा था जब वह दरवाजे के भीतर से निकलता और दरवाजे को शाबाश देकर जाता धन्यवाद तुम्हारा तुम्हारे तुमने भीतर जाने का रास्ता छोड़ दिया संत बड़ा पुलकित होता है विस्मय का जन्म होता है आश्चर्य से भर जाता है बच्चे की तरह इसलिए बच्चा इतने


प्रश्न पूछता है बाबा यह क्या है यह कहां है यह क्या है यह चिड़िया है हजार प्रश्न पूछता है तुम थक जाते हो बताते बताते लेकिन बचा नहीं थकता क्योंकि बच्चे में हर चीज विष में पैदा करती है विष में बड़ा लंबा चौड़ा सब्जेक्ट है इसके बाद बारे में बाद में बोलूंगा अब हम मूल मुद्दे पर आ जाए तुम भोग लेते हो साक्षी हो तो फिर पशुओं की तरह भोग लेना या साक्षी में होकर भोग लेना उसमें क्या फर्क है तुम्हारी तकनीक कहीं फेल हो गई काम नहीं कर रही बुद्ध भोगते ही नहीं बुध प्रथम पड़ाव पर ही उसे खत्म कर देते हैं महावीर प्रथम पड़ाव पर खत्म कर देते


हैं पतंजलि और जिन्होंने प्रथम पड़ाव पर खत्म किया उन्होंने संदेश दिया ब्रह्मचार्य का बुद्ध पतंजली महावीर क्या क्या करते हैं ऐसा क्या हुनर है इनके पास जो इन विकारों को तुमने कहा हम स्वास को तो देख लेते हैं आते जाते ये तो महज आसान सी बात है श्वास आ रहा है जा रहा है देखना इससे कोई ज्यादा क्रांति भी नहीं होती ज्यादा क्रांति हुई होगी इस बात से शंका है इसमें लोग विपस्सना के शिवर लेकर आते हैं लेकिन मैं देखता हूं कि कोई किसी प्रकार का परिणाम नहीं आता बदलाव नहीं आता बस सिर्फ सीख जाते हैं न्यूरॉन और भर जाते


हैं कि साक्षी कैसे होना है शरीर से अलग कैसे होना है दो तत्व हैं एक शरीर जो जड़ है एक साक्षी जो चैतन्य है बस इतना सा सीख के और शिवर वाले इतना सा ही सिखाते हैं और क्षमा करना इतना सा ही जानते हैं इससे आगे वो जानते भी नहीं अगर पूछोगे तो चुप हो जाएंगे उनके पास कोई जवाब नहीं सीखे सिखाई सिद्धांत और नियम है उनके पास वो तुम्हें बता देंगे साक्षी कैसे होना है लेकिन यह तकनीक गलत [संगीत] है तकनीक गलत है इसलिए कारगर नहीं होती इसलिए परिणाम नहीं आता इसीलिए लक्षण नहीं आते क्यों क्योंकि विपसिना की यह तकनीक गलता है तुम


सीखो यह धंधे हैं बुद्ध के लिए धंधा नहीं था इनके लिए धंधे हैं शिवर लगाने वालों के लिए ऑनलाइन सिलेबस बेचने वालों के लिए सब धंधा है करुणा होती तो जाकर बांटते मंच लगाते परमात्मा तक जाने की विधियां भी बिकती हैं मैंने कल ही एक महंगे कवि का जिक्र किया था बस आगे आगे ऐसा अंधकार में युग आने वाला है जब कोई तथाकथित संत बोलने के भी पैसे लेगा और फिर तुम हैरान होगे कि कबीर इतना बोले उसो इतना बोले साहित्य रच गए बुद्ध महावीर इतना बोले और उन्होंने तुमसे कोई पीसा नहीं मांगा मांगा नहीं तुमने दिया ठीक तुमने रोल्स राइस दी ठीक लेकिन उसने


मांगा कहां वह तो हजारों एकड़ जमीन अमेरिका के भीतर छोड़कर ऐसे आ गए जैसे व्यक्ति मलम का त्याग कर देता है यहां से लक्षण पहचान में आते हैं इन्हें मैं कहता हूं लक्षण इन्हें मैं कहता हूं परिणाम जरा भी शिकन नहीं आया चेहरे पर शायद 64000 एकड़ जमीन थी अगर मैं गलती में नहीं हूं तो लेकिन एक इंच के लिए यहां सिर कट जाते हैं एक इंच जमीन के लिए भाई भाई का सर काट देता है और महाभारत इसका प्रमाण है जमीन के लिए सिर कटे 40 लाख लोग मरे जमीन के लिए लेकिन उस है कि रजनीश पुरम को छोड़ के आ जाते और कोई शिकवा नहीं कोई शिकायत कोई


शिक नहीं लोग मुझे कहते हैं आपको यह गालियां देते थे आप इनकी प्रशंसा क्यों करते हैं भाई प्रशंसा का योग्य प्रशंसा के योग्य हैं प्रशंसा के नहीं ये किसी दिन पूजा के भी योग्य हो जाएंगे उस जो दे के गया है लोगों को वो कम मूल्यवान नहीं है यह बात ठीक कि तुम नहीं समझ सके बुध को तुम नहीं समझ सके तुम समझे किसको तुम किसी को नहीं समझे तुम अपने को समझते हो जहां भी जाते हो अभी पिछले दिनों किसी सिख परिवार के किसी व्यक्ति ने मु एक प्रश्न पूछ लिया मैंने उस प्रश्न में भंग वगैरह का जिक्र कर दिया ये बिल्कुल ठीक है भंग खाने से


व्यक्ति एक बार काल्पनिक रूप से उप स्थान पर पहुंच जाता है वो तो उछल पड़ा मेरा नाम क्यों लिया आपने काट दो मत प्रकाशित करो मैं कहता हूं तुम मुझे कब कहां सुनते हो संतों को तुम नहीं सुनते भ्रम है तुम्हारा इसलिए अगर तुम नहीं पहुंचो ग तो मुझे कोई अफसोस नहीं होगा मुझे कोई विस्मय नहीं होगा मैं जानता हूं तुमने मुझे सुना नहीं तुम स्वयं को ही सुनते हो और स्वयं को सुनते हो तो कमेंट करते हो अन्यथा कमेंट कहां आएगा जब मेरी बोली हुई चीज तुम्हारे भीतर रम जाएगी रस जाएगी तो उल्टी कैसे आएगी यह कमेंट उल्टी होते हैं समझाती


है मनीष हसरा है ये तुम कमेंट करते हो यह उल्टी है यह वमन है मैं बोलता हूं तुम कमेंट करते हो इसका अर्थ तुम मुझसे ज्यादा जानते हो फिर मुझको कैसे सुनोगे जिस शिष्य के भीतर यह भ्रम हो गया कि मैं गुरु से ज्यादा जानता हूं वह शिष्य ना रहा वह सिख ना रहा और यही मैंने जिक्र किया था तुम इसी भ्रम के बीच में तुम गलतियां निकालने आते हो गुरु को सुनने नहीं आते गुरु में क्या गलती है यह देखने के लिए आते हो एक एक शब्द को देखते हो बाबा तुमने ये कहा था ट्रेन इंसीडेंट में यह हुआ अरे भाई 50 साल पुरानी बात वक्ति कुछ शब्द भूल भी गया होगा मिट जाते हैं


न्यूरोस के भीतर फीड कुछ थोड़ा बहुत उल्ट पल्ट हो गया होगा तो मुझे नहीं सुनने आते ये ब्रह्म तवाला और एक बात और बताता जिस दिन तुम मुझे सुनने आ गए उस दिन तब्दीली भी आ जाएगा तुम मुझे सुनने नहीं आते तुम खुद को ही सुनने आते हो तभी तो याद रह जाता है मैं सिख परिवार से हूं और तुमने भंग का नाम ले दिया मेरे परिवार वाले सुनेंगे तो मैं रह गया ना मैं बदलने की चेष्ठ से कैसे आया तुम सीखने आए कहां तुम बदलने आए कहां सीखने का मतलब बदलना बदलने की तैयारी रेडी टू ट्रांसफॉर्म और अगर बदलने की तैयारी नहीं तो फिर सीखने की भी तैयारी


नहीं सीखने की तैयारी का मतलब है अगर तुम गलत जानते हो तो वह टूट जाए जो गुरु आज सिखा रहा है वो फीड कर लो और बाकी का तुम मिटा दो डिलीट कर दो इसे कहते हैं सिख जो गुरु आज बोल रहा है उसे फीड कर लो जो तुमने पहले से फीड कर रखा है उसको मिटा दो इसे सिख कहते हैं वह सीखने की इच्छा से आया और सिख सीखने की प्रोसेस में अगर कुछ डिलीट करना पड़ गया तो डिलीट भी करेगा फिर तुम कहते हो हम पहुंचे नहीं गुरु जितना कर सकता है करती है मैं तुम्हें विशुद्धि तक ले आ सकता था क्योंकि बिना तुम अपनी धरा को सही प्लो किए पानी दिए खाद दिए तुम योग्य ना हो सकोगे


शक्ति पात के इतना मैं बखूबी जानता हूं तुम विवेकानंद होने कि मैं राम कृष्ण बन के हाथ रख दूं तुम्हारे वो जिस दिन हो जाओगे हाथ रखा ही जाएगा उसकी चिंता ना करो तुम्हारे कहने से कुछ नहीं होगा गंदा नाला अगर कहे कि ये घी मेरे में डाल दो ना तो जान घी डालने वाला घी भी बेकार हो जाएगा गंदे नाले में मिलकर गंदा नाला ही हो जाएगा तो वह ज्यादा स्याने है जिसके पास अमृत है या घी है तुम कहते हो हम सीखना चाहते हैं नहीं सीखना चाहते तुम तुम्हारी करतूतें बताती है तुम सीखना नहीं चाहते तुम ट्रांसफार्म को राजी नहीं हो थोड़ा सा इधर उधर और तुम्हारी आंखें


लाल हो जाती है तुम शेक हो जाते हो तोमरे पूरे प्राण कंप जाते हैं क्योंकि पुराना मरेगा जरजर मरेगा तो नया जन्मे का और शुद्ध जन्मे का लेकिन शुद्ध जन्मता नहीं क्यों क्योंकि तुम जरजर जो पुराना हो गया उसको मिटने पर तैयार नहीं प्रश्न पूछा इन्होंने कि मैं साक्षी हो जाता हूं हर चीज में साक्षी बन के सारी शक्ति को एकत्रित करके होती हुई क्रियाओं को देखता हूं बिल्कुल ठीक फिर परिणाम क्यों नहीं आता यही मैं पूछता हूं तुमसे मैं कहता हूं परिणाम आना चाहिए बदला हट होनी चाहिए मेरे पास यहां मैसेजेस आते हैं और मैसेज के नीचे लिखना लिखा होता है


कि बाबा मेरा नाम मत लेना मैं बहुत हसता हूं अकेला बैठा और यह लोग गांधी को गाली निकालते और इतनी छोटी सी बात के बताने में कोई हर्ज भी नहीं है और गांधी को गाल निकालते जो गांधी सरे राह लिख देता है के आई वास न कस्तू बेड और माय फादर वास ऑन द डेथ बेड मेरे पिता मृत्यु शया प थे और मैं कस्तूरबा की शया प था सत्य के प्रयोग करते हैं तो लोगों के सामने आते हैं मनु और आभ उनके दोनों तरफ होते हैं और तुम छोटी सी बात लिख देते हो नीचे लिख देते हो बाबा नाम मत लेना तुम्हें यही सिखाया महावीर ने तुम्हें यही सिखाया गांधी ने तुम्हें यही सिखाया बुद्ध ने


तुम्हें यही सिखाया नहीं तुम ठग्गू इन लोगों से महावीर खुद नगन होते हैं जो छोटा सा चादरा बंधा होता है ना वो भी उतार देते खुद नगन होते हैं वह यह नहीं कहते बताना मत के नगन हुआ व नगन हो ही जाते हैं कि नग्नता को पूर्ण खुली आंखों से देख लो संदेह मिट जाएगा और महात्मा गांधी को निकलते है इन्होंने हमारे अचेतन में इतना जहर भर दिया है तुम जहर से मुक्त होने में कितने जन्म लगा दोगे यह मैं जानता हूं तो मैंने पता तुम सिर्फ इनसे संपर्क बनाए रखो और तुम अपने भीतर भी तलाशते रहो कि तुम रोज दुखी हो रहे नफरत फैलाने वाला दुखी नहीं होता


सिर्फ नफरत अपनाने वाला भी दुखी होता है ज्यादा दुखी होता है सुखी कोई नहीं होता ना नफरत फैलाने वाला ना नफरत अपनाने वाला दोनों दुखी हो जाते हैं इसलिए बुद्ध ने क्या कहा कि दूसरे की बात को मत मानो और तुम तो मानते हु के हो फसबुक के हो तुम अप दीपो भव के ऊपर कब चले तुम कब महावीर की इस बात को समझ सके जो इशारों में कही गई थी जो नगन हो गए थे वह तुम्हें बहुत बड़ा संकेत दे गए थे कि तुम नाम को छुपाते हो उसने तो स्वयं को ही नहीं छुपाया खुल गए नगन हो गए मुझे मेरी नगन में तुम देख लो अपनी नगन आंखों से सत्य के प्रयोग में क्या है जो गांधी


ने नहीं लिखा और तुम्हारा आज का मीडिया क्या है जो छुपा नहीं रहा सब छुपा दिया भला छुपाने से कोई दबता है तुमने कितना कुछ छुपाया कितना दबाया काम क्रोध लोभ मोह अहंकार मद मत्सर सब दबाए तुमने सुप्रेस किया आज क्या हालत हो गई एक दिन भरेगा अचेतन फिर जो आज दुनिया की हालत है उस पर रोना आएगा क्योंकि वह वमन बनकर उल्टे का बाहर और तुम सिर मारोगे तुम वह हरकतें करोगे जो पागल करते हैं फिर किसी ओज को लेकर आओ किसी शक्ति पुंज को लेकर आओ किसी व नाम उसका भूल जाता हूं बारबार उसको लेकर आओ वह तो हुकम देता है ले जाओ इसको हुकम चल नहीं सका हुकम करना चाहता था


हुक्मरान बन नहीं सका तो हुक्मरान ऐसे बन गया कल्पना में और लोग उसके पीछे लग गए इस जिन को उधर ले जाओ मेरे पास भी जिन भ दो एक दो कितनी बार कहा तुम्हें कोई एक आदि भ दो यह हरामखोर होते ही नहीं तो भेजोगे कहां से सबने व्यापार धंधा बना रखा है कोई किसी को मान रहा है कोई किसी को मान रहा है सभी अपनी अपनी पेड़ा से ग्रसित हिंदू देवी देवताओं से ग्रसित हैं मुसलमान पीर पैगंबरों से ग्रसित हैं सिख अपनी त्रास दियों से त्रस्त है ईसाई अपने पोस्टर से ग्रस्त है सबके अपने अपने दुख है कभी खुद पे कभी हालात रोना [संगीत] आया कभी खुद


पे कभी हालात पे रोना [संगीत] आया बात निकली तो हर एक बात पे रोना आया कभी खुद पे कभी हालात पे रोना आया कभी खुद पे कभी हालात पे रोना आया जिस तरफ देखता हूं तुम्हारा दुखड़ा देख के रोना आता और बेबस हूं कुछ नहीं कर सकता अगर कुछ करता हूं तो तुम्हारी मान्यताएं आड़े आती नाम मत लेना बाबा कह दो ना विष्णु होते हैं क्या फर्क पड़ता है कह दूंगा लेकिन तुम्हारा दुखड़ा तुम्हारा लटका हो हुआ यह चेहरा जो का तू बना रहेगा यही दुख है मेरा दुख तो कब का खत्म हो चुका स्वयं का कोई दुख नहीं रहा अब तो तुम्हें जब देखता हूं आंख भर


के बात निकली तो हर एक बात पर रोना आया प्रत्येक इंसान भरा पड़ा है दुखों से क्यों दबाया है सुप्रेस किया है इसलिए पतंजली ने कहा सबसे पहला सत्य और तुम्हारे तथाकथित सुप्रीमो झूठ बोलते हैं झूठ की राजनीति झूठ का डंडा भय और लोभ का डंडा तुम्हें दिखाते हैं राज करते हैं बाबा के यह शब्द जब जी के सुन लो फिर प्रसंग को आगे बढ़ाऊ वक्त बहुत हो गया है वक्त है कि बीत जाता है असंख्य मूर्ख अंध कोर असंख्य मूर्ख अंध कोर असंख्य चोर हरामखोर या रामकोर है कुछ नहीं किया बस पार्टी बदली लेनदेन हुआ है और राज करे हैं इन्हें कहते हैं बाबा इन्हें हा ध्यान


से सुन लो असंख्य मूर्ख अंध कोर घोर कलयुग आ गया अंधा युग आ गया असंख्य चोर हरामखोर अंख अमर कर चाही चोर असंख्य गलब हत्या कमा गर्दों को काटते हैं हत्या करते हैं ये बाबा कहते हैं जब जी में असंख्य पापी पाप कर जा पापी पाप करके चले जाते हैं लेकिन यह भुगतान कहां भुगत कर्म तो तुमने कर दिया कल को देना पड़ेगा यह ने पता नहीं बेचार को यह बेचारे लोग हैं असंख्य कूड़िया कूड़े फरा असंख्य मले मल पख का बताओ जो मल खाता व कौन होता है सूअर होता है वरा होता है य जब जीी की वाणी है यह किसी असंत की वाणी नहीं यह परम संत की वाणी


है असंख्य मल पख खा मल खाते हैं मूत्र खाते हैं असंख्य निंदक सिर करही पार कड़े मुर्दे उखाड़ हैं तुम्हे बैठाया था विकास के लिए तुम उखाड़ने लगे गड़े मुर्द इन्हीं की बात करते हैं बाबा नानक नीच कहे विचार इससे ज्यादा बाबा नहीं बोल सकते हैं नानक कहते हैं ऐसे लोग नीच होते हैं नीच का जिक्र किया बाबा ने और महावीर धोती खोल देते हैं नगन हो जाते हैं और आज का मीडिया सब दबाता है लेकिन दबाने से सुप्रेस करने से बीमारियां ज्यादा बढ़ती हैं भीतर बैक्टीरिया रहेगा ना वह फलेगांव लेते हैं व अपनी औलाद भीतर ही पढ़ाते हैं वह उनकी


संख्या घटती नहीं बढ़ती जाती है तीसरा नेत्र क्या है जिसके खुलने से यह आया हुआ विकार खत्म हो जाता है साक्षी तो काम ना आया साक्षी काम आएगा भी नहीं देखो साक्षी यहां तक ले आई बहुत है उससे आगे कुछ और करना पड़ेगा साक्षी सिर्फ तुम्हें बता देगा कि भोग कौन रहा है शरीर भोग रहा है शरीर को भोग रहा है शरीर भोग रहा है भोजन को भोग रहा है शरीर भोग रहा है सुंदर शब्दों को भोग रहे हैं कान शरीर भोग रहा है सुंदर दृश्यों को भोग रही है आंखें शरीर भोग रहा सुंदर सुगंध को भोग रही नासा फटा यह सब भोग हैं किसी से गले मिल जाना मधुर


स्पर्श चमड़ी भोग रही है यह तुमने जान लिया बिल्कुल ठीक लेकिन जानने से परिवर्तित नहीं होता तुम रोज जानते हो देखते हो मेरे पास रोज आ जाते हैं इससे आगे इससे आगे हमें औ नहीं ब बस कहते हैं ऐसे ही चले जाओ साक्षी बने रहो नहीं होगा भाई ऐसा नहीं होगा ऐसे तो खुद ओशो भी कहां काम से मुक्त होते हैं अगर यही रुक गए तो फिर कोई भी काम से मुक्त नहीं होगा भोगे और भोगता तो पशु भी है न पशुता के भीतर आनंद की वह सुगंध नहीं होते तो फिर कहां चूक हो गई चूक बड़ी गहरी हुई है आइए इसका विश्लेषण करते हैं चूक कहां हुई प्रसंग लंबा


जाएगा और वीडियो करीब सवा घंटे की हो गई है क्या हम इसको दो भागों में विभक्त कर दें ऐसा ही शुभ रहेगा क्योंकि इतनी लंबी वीडियो आप देख नहीं पाते इसको दो भागों में प्रसारित कर देंगे इसका बाकी अंश शाम को प्रसारित कर देंगे ऐसा कर लो चूक हुई बुद्ध के चेहरे पर शांति है उस के चेहरे पर शांति है संत के चेहरे पर शांति स्वाभाविक है कृष्ण बड़े मनमोहक है और परम भोगी हैं लेकिन कहां चूक हुई बुध से कहां चूक हुई उ से अब हम इस बात के ऊपर आएंगे इसका विश्लेषण करेंगे चूक तो हुई है हुई है तो कहां हुई है इसका खुलासा मैं


अगली वीडियो में कर दूंगा इसका दूसरा पार्ट है इसी को मैं तो बोलना कंटिन्यू रखूंगा लेकिन प्रकाशित आपको दो भागों में हम कर देंगे श्री कृष्ण गोविंद हरे मुरारी [संगीत] हे नाथ नारायण वासुदेवा श्री कृष्ण गोविंद हरे मुरारी हे नाथ नारायण वासुदेवा पितु मात स्वामी सखा हमारे पितु मात स्वामी सखा [संगीत] हमारे हमा [संगीत] हमारे पित मात स्वामी सखा हमारे हे नाथ नारायण वासुदेवा श्री कृष्ण गोविंद हरे मुरारी हे नाथ नारायण वासुदेवा [संगीत] हो धन्यवाद


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