आनंद मूर्ति मेहता बाबा जी एक प्रश्न जो मुझे सनातन धर्म में विश्वास करने से रोकता है क्या आप उसका निराकरण कर पाएंगे जो सभी वासनाओं से मुक्त हो गया जिसकी इच्छाएं गिर गई तृष्णा कल्पनाएं गिर गई जिसे समझ आ गया कि मैं कौन हूं उसके बाद भी भगवान कृष्ण एक लाख इकसठ हजार बच्चे पैदा करते हैं मुझे यह समझ नहीं आता हमारे बड़े से बड़ा व्यभिचारी दुराचारी भी इतना अंतरंग क्षणों में नहीं जाता होगा जितना भगवान कृष्ण ग यह क्या है प्रभु अगर आप मेरी इस बात का जवाब देते तो मैं सनातन धर्म को मानना शुरू कर दूंगा अनंद मूर्ति मेहता
पहले आप इस फर्क को ठीक से समझ लो ज्ञानी और अज्ञानी में भेद क्या है एनलाइन एंड नॉन एनलाइन पर्सन व्ट द डिफरेंस ज्ञानी वह जिसने अपने आपको जान लिया मैं हूं कौन वास्तव में कौन शरीर हूं मन हू या उससे पर आनंद स्वरूप सत्य चित आनंद मैं हूं क्या वास्तव में और अज्ञानी व जो वास्तविकता को नहीं जानता अपने होने की सत्यता से प्रचित नहीं है जो मान्यताओं से परिचित है लोगों ने कह दिया लोगों ने जो नाम रख दिया वही उसका नाम हो गया हमने अपने नाम खुद नहीं रखे हमारे मां-बाप ने रखे अज्ञानी व्यक्ति नहीं जानता कि वह वास्तव में कौन
है ध्यान से समझना एक एक शब्द को और ज्ञानी व्यक्ति जानता है कि मैं वास्तव में कौन हूं और जो यह जानता है मैं वास्तव में कौन हूं वह यह भी जानता है कि मैं वास्तव में क्या नहीं हूं लेकिन अज्ञानी व्यक्ति ना तो यह जानता है कि मैं कौन हूं और ना ये जानता है कि मैं कौन नहीं हूं अज्ञानी अंधकार में है ज्ञानी रोशनाई में है उसका एक एक पल रोशनाई में गुजरता है प्रश्न आपका बहुत बढ़िया है शायद इन प्रश्नों की वजह से यह गुथ हल हो जाए जो कि सधा के लिए बनी रहती और मुझे आश्चर्य होता है आज तक कथावाचक तो बहुत हुए लेकिन इन गुथ को सुलझाने के
बजाय और और उलझा रहे कहानियो में रंग दिया गया उदाहरणों में रंग दिया गया सत्य से परिचित नहीं थे यह लोग जो सनातन की व्याख्या कर रहे थे तो ठीक किया तने प्रश्न कर लिया ऐसे खतरनाक तरह के प्रश्न मेरे बैठे-बैठे मुझसे पूछ लो मैं नहीं समझता क्योंकि अतीत में देख रहा हूं अतीत में किसी ने ऐसे प्रश्नों का निवारण किया नहीं कृष्ण को आ तो जन्म नहीं कृष्ण को जन्मे को 5000 साल से ज्यादा हो ग और 5000 साल से किसी ने इस प्रश्न को पूछा नहीं और किसी ने जवाब नहीं दिया अगर पूछा होगा तो टाल मटोल कर दिया होगा कोई कहानी गती
होगी सीधा सधा जवाब नहीं दिया गया जिससे के सनातन की सटीकता का पता लगे सनातन का प्रचार प्रसार हो सके यह लोग सनातन का कु प्रचार कर रहे हैं क्योंकि इनमें अपना अनुभव नहीं है बस स्वय अनुभव का अभाव अकार पैदा करता है जिसकी खुद की गुथ नहीं सुलझी दूसरों की कैसे सुलझाए का यही व्यथा है आज मानवता के तुमने प्रश्न बहुत स्टीक किया और ऐसे प्रश्न सिरे के प्रश्न होते हैं अब मैं तुमसे य कहता हूं आवाहन करता हूं ऐसे प्रश्न रे बैठे बैठे मुझसे पूछ लो अन्यथा मैं अंधकार ही अंधकार देख रहा हूं जब उन गोल्डन पीरियड में जिनको तुम अति शुभ कहते हो उनमें इन
बातों का जवाब नहीं मिला तो आगे तो घोर अंधकार अंधकार का साम्राज्य छाने को शेष है प्रश्न अति सूक्ष्म है गहरा है जटिल है और अगर आपकी सनातन के ऊपर श्रद्धा नहीं बन रही तो तुम बिल्कुल ठीक हो कम से कम तुम मूर्ख नहीं हो कम से कम तुम इन पांडियों के पीछे आंख मुद के नहीं लगे हो तो अ तो भक्त नहीं हो और मुझे खुशी है जितने अंध भक्त कम होंगे अंधा अनुसरण नहीं करेंगे बात को विचार करके देख के फिर फैसला करेंगे उतना ही प्रकाश होगा इस संसार में और प्रकाश का आनंद कुछ और होता है झूठ में वह आनंद नहीं होता जो सत्य में होता
है सत्य से गुथ यां खलती हैं और गुथ यों के खुलने से बंधन खुलते हैं और बंधन से बंधन के खुलने से मुक्ति आती है प्रश्न बिल्कुल सटीक किया अब इसका जवाब शुरू करें तो शांत होकर बैठ जाइए एकांत में बैठ जाइए कोलाहल हीन वातावरण में बैठ जाइए अपनी सारी शक्तियों को बाहर से समेट लीजिए जैसे आपने कुछ नहीं करना सिर्फ इस वीडियो को ही सुनना है आप कान ही बन जाओ सिर्फ सिर्फ सुन इसे ही श्रावक कहा महावीर ने मैं अंधानुकरण करने को नहीं कहता सुनना परखना मनन करना कसौटी पर अपने अनुभव के भीतर जाना और देखना यह ठीक है या गलत है क
सनातन इन्हें अवतार कहक बात खत्म कर देता है नहीं बात नहीं खत्म होते कृष्ण बच्चे पैदा करते हैं एंड ही इज एलाट बिला शक लीजिए हम इसको गहराई से विश्लेषण करते हैं एनलाइन एंड नोन एनलाइन पर्सन की व्याख्या मैंने कर दी जो खुद को वास्तविक रूप से जानता है मैं कौन वह एनलाइन यानी ज्ञानी जो खुद को जानता नहीं वास्तव में कि मैं हूं कौन और मैं कौन नहीं हूं वह अज्ञानी यह सीधी सधी परिभाषा आप ले लीजिए चलो आगे चले किसी व्यक्ति को ज्ञान हो गया और ध्यान रखना किसी भी व्यक्ति को किसी भी वक्त ज्ञान हो सकता है क्यों क्योंकि जो तुम
हो उसमें कब छला ंग लग जाए कोई पता नहीं लेकिन क्या होगा उन विकारों का क्या होगा अचेतन मन का जो भरा पड़ा है तो एक रास्ता तो मैंने बताया के चेतन को खाली करते जाओ खाली करते जाओ क्रियायोग के द्वारा खाली करते जाओ तो जब सब खाली हो जाएगा देर तो लगेगी बहुत लगेगी लेकिन जब सब खाली हो जाएगा तो जो रह जाएगा वो तुम हो प्रकाश स्वरूप आनंद स्वरूप सत्य चेतन और दूसरा तुम सहज भी जैसे अष्टावक्र कहते हैं जनक को जनक तो इस जीवन में मुक्ति की बात करता है मैं तुम्हें घोड़े के एक पायदान से दूसरे पायदान तक पांव रखने में जितना वक्त
लगता है इतने वक्त में ही प्रबुद्ध कर सकता हू कर सकते हैं बिला शक तुम जो हो वास्तव में जो हो उसमें किसी भी वक्त छलांग लग सकती है क्या हुआ अंगुली मार का क्या हुआ वाल्मीकि का कोई तप नहीं किया ना अंगली मारने किया ना रत्न ना करने किया उलटा [संगीत] नाम जपते जाना वाल्मीक भए ब्रह्म समान नाम भी उल्टा और कोई तप भी नहीं और कोई विधि भी नहीं और बाबा कहते हैं कि विधि की कोई आवश्यकता नहीं जोर न जुगती छूटे संसार इस संसार से मुक्त होने के लिए किसी भी जुगती में कोई जोर नहीं तो बाबा कहते हैं कोई जुक्ति मत करो छोड़ दो सब युक्तियों
को जो भी करते हो अपने आप को दंड देते हो अपने अहंकार की पुष्टि करते हो मैंने यह किया वो किया तप किया मैंने व्रत किए उपवास किया माला फेरी तीर्थ गया आज गया सब करना गना देते हो तुम उससे तुम्हारा अहंकार फूलता है बढ़ता है करता और अहंकार जड़ है ज्ञान अज्ञान के ज्ञान का दुश्मन है अहंकार तो तुम किसी भी वक्त भीतर छलांग ले सकते हो वाल्मीकि ले गए अंगली मार ले गए बुद्ध की मौजूदगी में ले गए अब जो बात कही नहीं जाती क्योंकि कोई उस वक्त साक्षी नहीं था हुआ क्या बुद्ध की मौजूदगी में अंगली माल ब्रह्मण हो जाता है यानी ब्रह्म का ज्ञाता हो जाता है
लेकिन होता है बुद्ध की मौजूदगी में अब तक उंगलियां काटी सिर काटे उनकी उंगलियां काटी और गले में डालनी और एक उंगली शेष रहती थी तो बुध उस रास्ते से जाने लगे सभी शिष्य रुक गए लोगों ने कहा ग्रामवासियों ने इधर से मत जाओ भाई क्योंकि यहां एक डाकू है उंगली मार व मार देता है सबको और उनकी उंगली गले में डाल देता है उसने प्रण लिया है और एक उंगली की कमी है उसके पास बस एक उंगली पूरी हो गई तो वह छोड़ देगा हत्या उसका प्रण है तुम मत जाओ शिष्य डर गए लेकिन बुद्ध नहीं डरे बु कहां डरते जो डर जाए वो बुद्ध नहीं होता बुद्ध कहने लगे कोई बात नहीं मैं
जाऊंगा शिष्य पाव पड़े हाथ जोड़ के खड़े हो गए रोने लग गए आंखों में आंसू बड़ा रोका ग्रामवासियों ने भी रोका मत जाओ प्रभ वह तुम्हें मार देगा उसे एक ही उंगली की आवश्यकता है बहुत दिनों से उस स्थान से किसी भी दिशा से कोई व्यक्ति आया नहीं सबको खबर लग गई कि एक अंगली की जरूरत है और कोई नहीं जाता तुम मत जाओ पांव पड़ गए जाने से रास्ता रोक लिया रास्ते में पछ गए लेकिन ब चलते चले गए शिष्य तो डर गए शिष्य तो पीछे आने से भी डर वह डरेगा जिसे स्वयं का सम्यक बोध नहीं हुआ डरना स्वाभाविक है सम्यक बोध होने के पश्चात डर नहीं
होगा यह एक लक्षण है चलते चले गए चलते चले गए दूर से देखा पतझड़ का मौसम सूखे पत्ते गिरे और आज कोई इन सूखे पत्तों पर चल रहा है अंगली माल के कान खड़े हो गए ले मेरा शिकार आ गया बड़े दिनों से इंतजार थे कोई नहीं आया आज एक शिकार आ गया सूखे पत्तों की चरमरा हट उसके ऊपर चलते हुए कदम और उसके पत्तों की झरझर करती आवाज अंगली माल के कानों में पड़ी अंगली माल बहुत खुश हुआ आज मेरी मुराद पूरी हो गई कोई तो है जो आ रहा है और बस आज मेरी सुगंध पूरी हो जाएगी कुछ देर में सामने से बुद्ध आती दिखाई पड़े पीत वस्त्र धारी एक व्यक्ति बड़े आराम से सहज भाव से
चला रहा है कोई भय नहीं है परम शांति है चेहरे प इसे खबर नहीं होगी मेरी किसीने बताया नहीं होगा किसीने डराया नहीं होगा यह ऐसे कैसे निर्भीक मुद्रा में चला रहा है लेकिन बुद्ध है बड़ी शांति से चले आ रहे हैं पत झड़ के सूखे पत्तों की चरमरा हट उसके कानों में लगातार सुनाई पड़ रही है हल्की हल्की हवाए और अंगली माल आंखें फाड़े देख रहा है अपने शिकार को यह कैसा व्यक्ति है अद्भुत छटा है इसके मुख पर कौन है ऐसे कैसे निर्भीकता से और किसी ने रोका नहीं बहुत लोग हैं सभी तरफ से रोकते हैं कितने दिनों से यहां से कोई नहीं गुजरा
इस व्यक्ति को किसीने रोका नहीं बुध धीरे-धीरे चलते चलते बस 20 कदम दूर और चलते आ रहे हैं बुध का शांत मुखड़ा देखकर अंगली माल भी एक बार तो कपा इतनी निर्भग इस व्यक्ति में लगा कि इसे वार्न कर देना चाहिए चेतावनी दे देनी चाहिए इसे अगर छोड़ भी दूं तो कोई हर्ज नहीं ना जाने क्यों तरस आता है इसको तो मारने को दिल नहीं करता यह कुछ अद्भुत तरह का व्यक्ति है वह चलाया आंतक रुक जाओ रुक जाओ मैं अगली मार हूं मैंने अपनी प्रतिज्ञा पूरी करनी एक व्यक्ति को और मारना और तुम मेरे आखरी शिकार हो मेरे शिकार मत बनो लेकिन बुद्ध है कि जैसे सुनाई नहीं
पड़ा धीरे धीरे पत झड़ के उन रे हुए पत्तों पर धीरे धीरे चलते आ रहे हैं सहज गति से ना मंद हुए ना तेज हुए उसी शांत मुद में धीमे-धीमे कदम आगे उठ रहे हैं एक बार तो अंगली माल जिंदगी में प्रथम बार डर और यह कैसा व्यक्ति है यह बहरा भी नहीं लगता अजीब सा मुखड़ा है इसका सुंदर सलोना शांत य कौन है य इसको तो मारने का भी दिल नहीं करता कैसे मारूंगा इसको उसने फिर चेताया आगन तक तू मत आ तू मेरा शिकार मत बन आखरी बस एक व्यक्ति की जरूरत है मुझे उस व्यक्ति को मार लेने दे फिर तू चाहे आ जाना स्वर में थोड़ी कोमलता थी लेकिन बुद्ध हैं कि चले आ रहे
हैं और बु तो अब चार कदम दूर रह गए बुध को देखते ही उसके प्रभाव में आते ही उसके हाथ में पकड़ा हुआ कापा हाथ से छूट गया कपने लग गया उसका शरीर जिस कापे से वह काटा करता था गर्दन वो कापा धरती पर जागर एक आवाज हुई और मूर्ति वत खड़ा अंगली मार लगातार बुद्ध को निहारे ही जा रहा है बुध उसके करीब आ र है अब बोलने की साहस भी नहीं ना जाने क्यों जुबान को किसी ने पकड़ लिया है जुबान को किसी ने बांध लिया है आवाज है कि निकलती नहीं बुध और आगे बस करीब आ गए एक कदम दूर और अंगली माल को पता भी ना चला कब वह बुध के चरणों में जा
पड़ा भूल गया कापा भूल गया गल में डाली हुई वह उंगलियां जिनका वध किया था भूल गया वैर भाव यह व्यक्ति की अपूर्व अलौकिक प्रतिभा उसे भी तब्दील करके जर जर आंखों में आंसू और सिर बुध के चरणों में इतना रोया इतना रोया बुध के पांव धुल गए बुद्ध ने उठाया अंगली माल को गले से लगा लिया बोले अंगली माल तू आज ब्राह्मण हुआ तेरे सभी पाप प्रश्चित के रूप में डल गए आंसू बनकर मेरे पांव धो गए अब तू दुखी मत हो बहुत प्रशित हुआ इतनी देर रोया तेरे सभी पाप दुल गए अब चल मेरे साथ क्या हुआ एक पल में जब तब्दीली होती है तुम अपने स्वयं
में तुम अपने घर में जब चाहे छलांग ले सकते हो कितने भी पापी हो हत्यारे हो कितने दानी हो लुटेरे हो दुखी हो या सुखी हो बाहर से क्या हो इससे कोई फर्क नहीं पड़ता देखिए अपने घर जिसने कत्ल किया वह भी अपने घर आकर सो जाता है जिसने बेईमानी की ठग्गू की कुछ भी किया अपने घर तो वह भी आकर सो जाता है तुम्हें अपने घर आने से कोई नहीं रोक सकता तुम अपने घर में जब चाहे आ सकते हो कुछ भी करके आ सकते हो पाप भी पुण्य भी लेकिन अपने घर में तुम्हें कोई नहीं रोकेगा अन से और जो अपने घर को जान गया वह ज्ञान जो अपने घर में प्रतिष्ठित हो गया
जिसे कृष्ण भगवान ने कहा तू स्थिति प्रज्ञ हो जा अर्जुन वह अमृत त्व को प्राप्त हो गया खुल गई आंखें और अपने घर में जैसे ही विराजमान होता है अर्जुन तत्क्षण यह दो शब्द बोलता है नष्ट मोहा समृति लब धा याद आया मेरा घर कौन सा है मेरा मोह नष्ट हुआ मैं और घरों को अपने घर समझ रहा था स्वय का सच्चा घर मिल गया असली घर में आगमन हुआ मैं अपने घर में प्रतिष्ठित हुआ नष्ट मोहा मेरा व्यर्थ का चिपका हट टूट गई समृत लब धा मुझे मेरा घर याद आ गया याद आ गई वह दीवारें अपने घर में कोई कभी भी आ सकता है कोई रुकावट अंगली माल रत्नाकर अपने घर में पहुंच गए और अर्जुन
भी अपने घर में पहुंच ग उसका मोह नष्ट हो गया उसे याद आया यह पुती पुती सी दीवारें वही हैं यह मेरा घर है य जहां का वातावरण बनावट हां इसे ही छोड़ के गया था बिल्कुल याद आया कोई सूक्ष्म लोक में किसी का प्रश्न हो तो मुझे बता दो नहीं मैं आगे चलू वो भूली दासता [संगीत] लो फिर याद आ गई वो भूली दास्ता लो फिर याद आ गई नजर के सामने घटा स छा गई [संगीत] नजर के सामने घटा सी छा [संगीत] गई वो भूली दासता लो फिर याद आ गई याद आ गई व भूली दास्ता वही दीवार हैं वही रंग है जिससे दीवारें पूती थी वही फर्श है वही कालीन है वही सब है हां यह
मेरा है बस यही याद आता है इसे ही ज्ञान कहते हैं तुम्हें तुम्हारा घर याद आ जाए तुम अपने घर में प्रतिष्ठित हो जाओ इसे ही स्थिति प्रज्ञ कहा है अपनी प्रज्ञा में ठहर जा अर्जुन अंगली मार्ग भी यहां पहुंच गया रत्नाकर भी यहां पहुंच गया एक अध्याय समाप्त हुआ अब तुम्हारा प्रश्न उठता है फिर जब यह पहुंच गए इन्होंने स्वयं को जान लिया तो कृष्ण भोग क्यों करते हैं क्यों करते हैं इनलाइटें पर्सन के सब विकार खत्म हो जाते हैं इस दुविधा के अंदर मैं सनातन को एक्सेप्ट नहीं कर पाता सही है तुम्हारी तुता लेकिन कसूर तुम्हारा
नहीं कसूर उनका है जो इस गांठ को खोलना पाए वर यह गांठ रास्ते में अड़ती न सनातन तो बिल्कुल सरल है बिल्कुल सीधा है धर्म कभी असहज नहीं होता धर्म सदा ही सरल होता है धर्म सदा ही सहज होता है इसलिए कबीर ने कहा सहज समाधि बली अरे साधु सहज समाधि बली जब व्यक्ति पहुंच जाता है अपने घर में तो एक बात याद करो मैंने तुम्हें कहा था जब देही जाता है नए शरीर में तो साथ में एक पोटली लेकर सुपर कंप्यूटर क दो पोटली कह दो आधुनिक भाषा में सुपर सेंसिटिव कंप्यूटर कह दो पुरानी भाषा में पटली कह दो कर्मों की बात वही है उसमें फीड है सारा
कुछ तुम्हारे प्रारब्ध और तुम्हारे संस्कार फ है उसमें तुम्हें स्वयं का पता चल गया अब यह दुविधा वाली बात है लेकिन खोपड़ी केलिए जो खोपड़ी से बैठे बैठे सोचेगा वह दबदा में रहेगा इसलिए तो मैं कहता हूं इन खोपड़ी वालों से अगर आईएस करना आईपीएस करना तो जाना अगर अपने भीतर उतरना तो इनके पास मत जाना ज उलझा द मुश्किल तब नहीं होती जब यह तुम्हें आईएस बनने का फार्मूला बताते हैं वो तो बड़े साफ लोग वह तो तुम्हें सीधा तुम्हारे से कोई चल नहीं करता वो कहते देखो भाई तुम पढ़ोगे यह सिलेबस है हम पढ़ा देते हैं यह फार्मूला है ये गणित का हिसाब है
कैसे सॉल्व करना तो बता देते हैं तेरे का लेकिन मुश्किल तब पैदा होती है कोई आईएएस का अधिकारी लोभ खा जाता है अब लोग भी मेरे चरणों में पड़े सलूट ना मारे सिर्फ तब मुश्किल खड़ी होती है वासना जगती है वासना प्रगड़ होती हैं ब्रॉड होती हैं फैलती हैं कल तक सपना था आईएस अधिकारी बनो आज सपना हो गया लोगों को अपने पांव में करम क्योंकि कंपीटेटिव माइंड तो है बोल भी अच्छा सकता हूं बुला र है आए जो कर गया उसमें सूचनाओं की भीड़ भरी पड़ी है न्यूरॉन जो सारे भरे पड़े हैं खाली कभी बैठे नहीं मोन में कभी उतरे नहीं उन लहो का आनंद कभी उठाया
नहीं जिनके उठाने से अपने स्वभाव तक पहुंचा जाता है अपने घर को तलाशा जाता है अचानक से घोषणा कर देते हैं अहम ब्रह्मस अचानक से उपनिषद की व्याख्या करनी शुरू कर देते हैं अचानक से गीता पकड़ लेते हैं हाथ में बस यहां दुविधा होती है मुझे सर लोगों से कोई तकलीफ नहीं यह बड़े ईमानदार है लेकिन तकलीफ है उन आचार्यों से जो आयस होकर अपना दायित्व नहीं निभाते ये बेईमान है जो अपनी इस तार्किक बुद्धि से गीता की विवेचना करेंगे अष्टावक्र गीता की विवेचना करेंगे उपनिषद की विवेचना करेंगे सांसारिक प्रश्नों का जवाब दें कोई आपत्ति नहीं आपत्ति तब होती है जब अनुभव
की बातें खोपड़ी से व्याख्यान करनी शुरू हो जाती हैं उसे मैं पाप कहता हूं जिसका काम उसी को साज और करे तो ठेंगा बाज यह उल्टे मुह गिरेंगे बतीसी तुड़वा लेंगे निश्चित क्योंकि अधजल गगरी छलकत जाए गगरी भरी है आधी सूचना से आनंद से खाली है और मुमुक्षु मांगता है आनंद ज्ञान तो उसके पास भी बहुत है शास्त्र तो उसने भी बहुत बड़े हैं गुरुओं के पास तो उसने भी बड़े चक्कर लगाए हैं बड़ी सेवाएं की की है उसने लंगर बहुत भगताई हैं उसने भी कमी है आनंद की कमी है और सिर्फ मात्र दिखावा करने से आंखें बंद करके ऊपर ध्यान लगाने से दो मिनट के
लिए ये ज्ञानी नहीं हो जाते ज्ञानी तो अतल गहराइयों में जाकर स्वय को जानने का नाम अपने घर को जिसने जान लिया और जिस घर को जानकर कृष्ण की मौजूदगी में जिस घर को जानकर अर्जुन कहते हैं नष्ट मोहा समृत था मेरा मोह नष्ट हो गया मुझे याद आ गया मैं कौन मेरा घर कौन क्षमा करो आपकी शक्ति और समय मेन व्यर्थ में बर्बाद किया लेकिन कृष्ण है कृष्ण बड़े दयालु है करुणा अवतार करुणा के अवतार है सभी सूचनाओं का जवाब दे देते हैं यह लेकिन यहां आके फस जाते हैं बड़े टेढ़े सवाल है इसका जवाब नहीं दे पाएंगे यहां आके अड़ जाते हैं कौन जवाब दे इसलिए तो कोई जवाब नहीं
मिला आज तक रास रचाते हैं कृष्ण महारास रचाते हैं रास छोड़ो तुम रास रचाते हो दो चार बच्चे होते हैं 10 20 होते होंगे इसके तो 161000 81 बचे हैं महारास रचाते हैं और बहुत से सामाजिक प्राणी आंख बंद कर लेते हैं यहां तो तुम खजुरा की मूर्तियां देख के आंखें बंद कर लेते हो भीतर कुछ भी चल रहा हो बाहर इन मूर्तियों को देखकर चित्रकारी को देखकर आंखें बंद कर लेते हो राम राम राम राम राम राधे राधे राधे क्या राधे राधे भाई यही कुछ तो होता है राम राम राधे राधे क्या कर र नहीं मिला होगा जवाब इसलिए दिया नहीं होगा किसी शास्त्र में यह जवाब
बा कहानियां है व्याख्यान है बड़ी रस का अंदाज में बोले गए हैं और कहानियां सुनाने वालों को इसके भीतर का तथ्य नहीं पता अब आगे की बात शुरू करें सूक्ष्म से कोई प्रश्न नहीं आया आपके ही प्रश्न को आगे बढ़ाता हूं यहां तक ठीक हो गया आदमी ने जान लिया व्यक्ति ने जान लिया मैं हूं कौन शरीर हूं भावनाएं हूं इमोशंस हूं ज सबसे परे वो हू जो हिलता नहीं डलता नहीं कंप नहीं लिप्त नहीं होता मैं कौन यह जानने के बाद अब यहां पर समझने वाली बात है गौर से समझना अगर ना समझाए तो बार-बार इस वीडियो को सुनना यह आपके क्लेश काट देगे बहुत गहरे क्लेश
जो जन्मों जन्मों से कटे नहीं आज कटेंगे मैंने एक शब्द कहा कोई भी जा सकता है मंदिर मस्जिद जाने वाला पांच वक्त की नमाज पढ़ने वाला रोज मंदिर में जाने वाला रोज माला फेरने वाला ईमानदारी से काम करने वाला या पाप करने वाला सदना कसाई अनिका गणिका वसाई तुम समझ नहीं सके सनातन को य तरफा हो के तुमने सोचा लेकिन भूल गए सिक्के के पहलू दो होते हैं दिखता एक है बस एक सिक्के का पहलू देखकर तुमने दूसरा समझा कि होता ही नहीं लेकिन दूसरा भी होता है प्रश्न बिल्कुल जायज है हम भीतर तो चले गए लेकिन जो व गठ बांध के लेकर आए थे कर्मों के उनका क्या होगा
उनको भोग यहां भी बात खत्म हो गई मैंने कर्म फिलोसोफी में बताया कि जब कोई व्यक्ति प्रबुद्ध हो जाता है तो भोगता तो वह भी है लेकिन प्रबुद्ध होने से पहले वह स्फीयर पर बैठा होता है अब इस बात को ध्यान से समझ लेना तोत समझ में आएगी अन्यथा सिर के ऊपर से गुजर जाएगी जब तक तुम अज्ञानी हो तब तक परिधि पर बैठे हो गोले की परिधि पर ऊपर किसी भी स्थान पर तुम बैठे हो लेकिन यू आर ऑन स्फेयर और जो सफीर पर बैठा है उसको अपने कर्मों का फल स्वयं भोगना पड़ेगा समझना बात को बार-बार सुन लेना इसको सिफिर पर बैठा हुआ व्यक्ति जो कर्म
किया जिसने करता भाव से कर्म किया उसे भोगता भाव से भोगना पड़ेगा सरल शब्दों में मैंने यह बताया जो परिधि पर बैठा है व्यक्ति आम इंसान अर्जुन जो अपने घर पर जाने ने से पहले था कंप रहा था उस अर्जुन की बात करता हूं मैं वेन ही वाज ऑन स्फेयर जब तक कोई भी व्यक्ति स्फीयर पर बैठा है परिधि पर बैठा है गोले की तब तक उसने जो कर्म किए वह उसे भोगने पड़ेंगे एक्शन आएंगे और रिएक्शन उसके पास से गुजर जाएंगे वह भोगे का दुखी होएगा रोएगा अगर व भीतर छलांग लगा गया अपने होने में इसी की चर्चा कर रहा हूं ध्यान रखना परिधि से आ गया केंद्र पे अब केंद्र
पे और परिधि पे बड़ा अंतराल है बड़ा फासला है केंद्र प बैठा हुआ व्यक्ति परिधि पर घटनाओं को देखता है भोगता नहीं फिर सुन लो मेरी बात को कई बार एक बात एक बार की कही हुई समझ नहीं आती परिधि पर लगी आग केंद्र पर बैठा व्यक्ति आग को देखता है आग में चलता नहीं लेकिन परिधि पर बैठा हुआ व्यक्ति परिधि पर लगी आग में जलेगा आग को देखेगा नहीं यही फर्क है उस अर्जुन में जो परिधि पर बैठा था और उस अर्जुन में जो आज केंद्र पर आ गया है वह अर्जुन जिसने अपना गाडी धनुष्य फेंक दिया है युद्ध नहीं करूंगा मैं अपने गुरु को नहीं मार सकता
अपने पितामह को नहीं मार सकता अपने भाइयों को नहीं मार सकता मैं युद्ध नहीं करूंगा भगवान कहकर मध्य भाग में बैठ गया रथ के और कृष्ण ने अपना उपदेश शुरू रखा यह परिधि पर बैठा हुआ अर्जुन है जिसने धनुष फेंक दिया जो कहता मैं युद्ध नहीं करूंगा और जब कृष्ण करते हैं शक्ति पात कृष्ण जानते हैं यह ब्रह्म में है लिप्त है सत्य से वंचित है असत्य का बोल बाला है असत्य से चिमटा हुआ है आखिरी हथियार होता है ऐसे व्यक्ति के पास अर्जुन जैसा व्यक्ति तैयार है उसकी भूमि बिल्कुल तैयार है उसमें बीज बोया जा सकता है तुम भी जब तैयार हो
जाओगे तुम्हारी जमीन जब तैयार हो जाएगी तुम में भी अंकुर फूटने की संभावना हो जाएगी अर्जुन में संभावना है शक्ति पात सहने की और कृष्ण शक्ति बात कर देते हैं तुम जान कि तू है कौन बस इतनी सी बात ज्यादा देर नहीं लग ये 700 लोक कैसे बोले गए ये समय का अंतराल होता है ध्यान से सुनना 700 श्लोकों को पढ़ने में बड़ी देर लगेगी लेकिन अंतराल होता है जैसे ब्रह्मा का एक दिन और आपका एक दिन कितना फर्क है ब्रह्मा का एक दिन आपके एक चार युगों के बराबर और उसका एक दिन बीता है वहां बड़ा स्लो चलता है यहां आकर वाट हो जाता है तो कृष्ण
फेंकते हैं उस तल से जिस तल से टाइम लेसनेस है वहा समय नेगलिजिबल गति से चलता है वहां से फेंकते हैं यह सासु स्लोक जो जवाब देते हैं बाहर आकर गीता 700 श्लोकों में विभक्त हो जाती है यह गीता बोली कैसे गई यह आपको अभी तक समझ नहीं आया होगा लेकिन डायमेंशन डिफरेंस देर जहां से बोले गई वहां समय जैसे चलता है और जहां पर बोली गई वहां समय जिस गति से चलता है देर इ लट ऑफ डिफरेंस बिटवीन द टू दोनों डायमेंशन में बड़ा फर्क है कृष्ण जिस ल से बोलते हैं वह सेंटर है व केंद्र अर्जुन जिस तल से सुनता है वह स्फीयर है वह पर तुम जिस तल पर सुनते हो वह
परिधि इसलिए तुम्हें 700 शलोक पढ़ने में बड़ा वक्त लगेगा कृष्ण को यह सारे श्लोक बोलने में कोई वक्त नहीं लगा सात मिनट में सारी गीता समाप्त हो गई सब कुछ आ गया बीच में शंख नाथ से लेकर आखर जब उसने कहा हुकम कीजिए मैं क्या करू नष्ट मोहास मृत लब मुझे बताइए हुकम कीजिए मैं क्या करूं यह सारा कुछ होने तक उठाने तक सात मिनट का वक्त लगा लेकिन तुम कहोगे गीता तो पढ़ी नहीं जाती ठीक कहते हो क्योंकि गीता उस तल पर नहीं पढ़ी जाती जिस तल पर बोली गई मेरे ख्याल में तुम समझ गए होगे यही एक छोटा सा प्रश्न था सूक्ष्म से आया हुआ इसका जवाब
मैंने आपको भी दे दिया केंद्र पर जब पहुंच जाता है अपना आप जान लेता है भोग चलते हैं परि एक्शन रिएक्शन होता है परि और तुम बैठ गए केंद्र पर तुम देखते हो अपने कर्मों और कर्म के फल को तुम जानते भी हो यह कर्म मैंने किए और मेरे किए हुए कर्मों का फल य आया लेकिन तुम भगते नहीं तुम कहोगे बड़े अन्याय की बात है तो तुम आ जाओ केंद्र पर भाई तुम न्याय कर लो तुम्हें कौन रोकता है लोग कह देते हैं यह तो भगवान की सृष्टि में अन्याय है मैं कहता हूं अन्याय नहीं है विधान अन्याय और विधान में बड़ा फर्क है तुम परिधि पर बैठे क्यों
हो सारे संत दिन भर रात लगे हैं कहां समझते हो तुम तुम अन्याय होने क्यों देते हो तुम भी परिधि से चलांग लगाओ केंद्र में आ जाओ फिर दूसरे बप करेंगे यह तो अन्याय हमने तो भोगा उसने तो देखा तो भाई तुम भी देखने वाले हो जाओ तुम्हें कौन रोकता है तुम भी दृष्टा बन जाओ तुम भी साक्षी हो जाओ तुम भी ऑब्जर्वर बन जाओ तुम्हें कोई नहीं रोकता तुम्हें तुम्हारे घर में आने से कोई नहीं रोकता रोक नहीं सकता कृष्ण केंद्र पर आ गए और जो करते हैं परिधि पर करते हैं केंत्र पर कुछ किया नहीं जाता केंद्र तो निर्लिप्त है केंद्र तो आनंद से भरा हुआ सुगंधि से
भरा हुआ मुस्कुराता हुआ खेल खिलाता हुआ नाचता गाता हुआ कुछ नहीं करता तुम्हारे संग समाया हुआ है सर्वव्यापी सदा अलेपा सर्वव्यापी सदा अलेपा तोहे संग समा तोहे संग समा कहे रे बन न जाए वह तो निर्लिप्त है सदा तुम्हारे संग है तुम उसे खोजने जाते हो वन में वह तुम्हारे भीतर है बस परिधि से चलांग लगानी है केंद्र तक जाना और यह सारी घटना भीतर घटती है बाहर नहीं तुम ढूंढते हो बाहर सभी संत तुम्हें बहर मुखी से अंतर्मुखी करने पर जोर दे रहे हैं लेकिन तुम हो के जाते नहीं तुम बाहर ही शोर मचाना चाहते हो बस इस शोर को बचाने वाले लोग मूर्ख होते
हैं शोर मचाओ यह कहने वाले लोग मुड़ होते हैं तुम्हें अपने घर में आने से कोई नहीं रोक सकता तुम्हें दूसरे के घर में जाने से रोक सकता है अपने घर में आने से तुम्हें कोई नहीं रोक सकता अपने घर के तुम मालिक हो जब चाहे जा सकते हो जब चाहे आ सकते हो आ गए तुम अपनी मर्जी से आ गए छोड़ के दूर निकल गए घर तो वही है दादू दूजा कोने दूजी मन की दो दौड़ मिटी संशय गया वस्तु ठोर की ठोर जिस घर को छोड़ के आए थे ना वो उसी ठोर ठिकाने बैठी वो नहीं हिली तुम्हें तुम्हारे घर पर जाने से कोई नहीं रोक सकता वह तुम्हारी संपत्ति है निजी संपत्ति
है तुम्हारा निजी अधिकार है उस पर तुम्हारे घर पर तुम्हारा निजी अधिकार है दूसरे के घर पर तुम्हारा कोई अधिकार नहीं दूसरे के घर में जाने से तुम्हें कोई रोक सकता है राधा अपने घर में तुम्हें क्यों आने दे जूती उठा लेगी कुंडी की नाक वाली जरा राधा के घर में बढ़ के दिखाओ उल्लू के पो क्या मजाक बना रखा है अपने घर में जाओ कोई नहीं रोकेगा बिल्कुल नहीं रोकेगा यह कोई मजाक हुआ राधे के घर में चले जाओ ऐसे कैसे चले जाओ वो तिल्ली वाली जूती है उसके पास कृष्ण क्यों नहीं भोगते है अब देखिए जहां तक बात साफ हो गई दो पड़ाव हमने पार कर लिए तीसरा पड़ाव
आ गया तीसरा पड़ाव आ कि हमारे अचेतन मन में संस्कार भी है प्रबुद्ध तो तुम हो गए अपने आप को जान लिया बिल्कुल ठीक तो फिर तुम कहते हो अपने आप को जिसने जान लिया बहुत तरह के लोग हो सकते हैं जिनकी वासना कम है जिनकी वासना कम से थोड़ी ज्यादा है जिनकी वासना बहुत ज्यादा है कई तरह के लोग हो सकते हैं जैसे केंद्र तक जाने के लिए परिधि से बड़े रास्ते हैं किसी भी रास्ते से तुम जा सकते हो वैसे ही प्रत्येक व्यक्ति के अचेतन मन में अलग-अलग चीजें भरी होती हैं अपने घर तक तो वो छलांग लगा गया रह गया उसका अचेतन जिस गठरी को वह साथ लेकर चला
था आज उसे समझ आ गई कि मैं हूं कौन तो इन कर्मों का क्या होगा तो मैंने कहा ये कर्म भक्त के जाने पड़ेंगे अगर कोई प्रबुद्ध हो गया है उसे भी भुगत के जाने पड़ेंगे अगर कोई प्रबुद्ध नहीं हुआ है तो उसके तो और जुड़ते जाएंगे जो प्रबुद्ध हो गया उसके नए बनने बंद हो जाएंगे क्रिया माण बंद हो जाएगा प्रारब्ध उसे भुगत कर जाना होगा अब हम थोड़ा सा और आगे चले अगर तुम यहां तक समझ गए हो तो तो प्रत्येक व्यक्ति के भीतर अलग-अलग तरह की कामनाएं भरी पड़ी कबीर नहीं चाहता कि मेरे पास रोल्स रइस हो नहीं चाहता या समझ लो कि उस वक्त थी
नहीं लेकिन ओो चाहते हैं 93 रोस रास कार्य हैं लेकिन फिर भी चालते हैं क्या सर में मारना है भाई लेकिन इच्छा है उनकी अब उनके अचेतन मन में जब भरा पड़ा है संस्कार उस संस्कारों के हिसाब से जीवन जिएगा बात समझना ज्ञानी हो गया रस्सी जल गई बल नहीं गया समझाती है बात ज्ञानी हो गया लेकिन संस्कार कर्म भी भोग लेगा बिल्कुल ठीक जो करता भाव से की है वह भोगता भाव से भोग लेगा लेकिन मैं कहता हूं रस्सी चल गई जो बाध सकती थी लेकिन बल कहां गया उस जली हुई रस्सी में देखना बल वैसे ही लगेंगे आपको दिखे इन बलों को मैं कहता हूं
संस्कार यह संस्कार उसको घसीटेंगे उन संस्कारों के कारण कोई तो वैरागी जीवन जिएगा कोई पकोड़े से कोड़े कचौड़ी सकड़ी खाएगा समोसे चाव मुन चुग्गा ये सब चलेगा यह संस्कार काम करेंगे थोड़ी सी गहरी बात है बहुत गहरी बात है इसको फिर से समझ लेना बंधन टूट गए रस्सी जल गई लेकिन रस्सी के बल ना गए रसी के बल क्या है संस्कार बात तो बड़ी गहरी है लेकिन समझ आ जाएगी इसको बार-बार सुनना रस्सी को जला के देख लेना देखोगे रस्सी बांध नहीं सकती अब पहले रस्सी बांध सकती थी जब तक जली नहीं थी अब रस्सी बांध नहीं सकती क्योंकि रस्सी ही जल गई है लेकिन तुम कहोगे जब रस्सी ही
जल गई है तो तो देखना उसमें बल मिलेगा तुम्हें जली हुई रस्सी में काली पड़ गई होगी लेकिन बल साफ दिखेंगे वो बल संस्कार कहलाते हैं व्यक्ति उन्हीं दिशाओं में जीता है जिन दिशाओं में उसने प्रबुद्ध से पहले जीवन जिया होता है धीरे-धीरे बातें आपकी समझ में उतरेंगी कृष्ण मस्ती में जीते हैं शुरू से ही रास रचाते हैं महारास रचाते हैं ये बल है बल जो रस्सी के भीतर है लेकिन यह विकार नहीं है समझ लो बात को रस का ओरिजिनल होना और रस्सी का जलने के बाद उसके भीतर के जो बल होते हैं इन दोनों में बड़ा फर्क है व रस्सी बांध सकती है बिना जले जो थी जो जल गई व
रसी बांध नहीं सकती उसको तो थोड़ा सा हाथ लगाओगे भुर जाएगी बस ऐसे ही रह जाते हैं तुम्हारे संस्कार लेकिन व्यक्ति जिसने प्रभु बुता से पहले का जन्म जिया बाद का जीवन करीब करीब वैसा ही जीता है बंदा फिर भी नहीं है व चाहे तो बदल सकता है लेकिन आमतौर से जीता वैसे ही है कृष्ण को नहीं बांधते ये आचार्य लोग तुम्हें सिखाएंगे कि इन बंधनों से सावधान र लिव इन में र लो ऐसा कर लो वैसा कर लो सब बकवास बात तो यह है रस्सी के अस्तित्व को मिटा दो बंधन के अस्तित्व को मिटा दो बल तो फिर भी रहेगा लेकिन उन बलों में कोई जान नहीं
होगी तो बल तुम्हें बांध नहीं सकेंगे उन्हें संस्कार कहते हैं संस्कार सिर्फ मात्र लकीरें होती हैं जो पानी के गुजरने के बाद बन गई होती हैं ऐसे ही तुम्हारी संस्कार है अब हम फिर से लौट चले सारी चीज को स्पष्ट कर दें ज्ञानी और अज्ञानी अज्ञानी तो वैसे ही रहेगा उसको तो हम छोड़ देते हैं ज्ञानी जब अपने घर में लौट आएगा स्थित हो जाएगा पक्का पक्का अर्जुन अगर तुम यह कहो कि अर्जुन स्थ हो गया एक बार उसका भ्रम तो मिट गया लेकिन उसने बंधन नहीं काटे रस्सी नहीं चली उसकी एक बार कृष्ण ने दिखा दिया कि देखो तुम हो कौन कंप क्यों रहे
हो बस इता सा और उसने धनुस उठा दिया गहरी बातें हैं गहराई से ही सुनने पड़ेंगे उसने धनुष उठा लिया और युद्ध किया युद्ध करके कितना खून खराबा हुआ 18 शोनी सेना मरे गई सारे बलवान मरे गए थोड़े से बचे पांडवों में कौरवों का एक बचा य यूसुफ धृतराष्ट्र का बेटा था लेकिन गंधारी का नहीं था दासी का पुत्र था लेकिन अर्जुन सदा के लिए मुक्त नहीं हुआ अभी परिधि पर है क्षणिक रूप से उसे केंद्र पर लाया गया था घसीट के जैसे रामकृष्ण परमहंस विवेकानंद को क्षणिक रूप से लेकर गए थे उस तल जहां जाकर वह कप गया था डर गया था बोला मेरे मां बाप
है प्रक्रिया अधूरी रह गई प्रश्न तो बड़े वेग से कि था लेकिन आगे बाप मिल जाएगा यह उसे पता नहीं था विवेकानंद चूक गए आगे सही गुरु मिल गया उसने हाथ रख दिया कि ये शक्ति पात किया बर्दास्त नहीं कर सका कपा तो रामकृष्ण ने हाथ उठा लिया ठीक रे मां बाप तो आ जा मैं हिंसक नहीं हूं अहिंसक रूप से अगर तू जाना चाहता तो मैं तुम्हें ले जाता नहीं जाना चाहता कंपन तो सभी को होता है आज ही प्रश्न आया था मैं कहीं सहसरा से ना निकल जाऊ भाई इतना संकल्प तेरे में कहां पहले अपने भीतर उतनी शक्ति तो उत्पन्न कर ले संकल्प तो पैदा कर
ले के कपाल को पाड़ के निकल जाए लेकिन नहीं बस शब्दों के भय से कपना है सिर्फ यह अहंकार के तरीके हैं बचने के यह नहीं जानते मैं जानता हूं मैं इसलिए जानता हूं कि मैं इन्हीं गलियों में रेत उड़ाता हुआ गुजरा हूं मैं इन्हीं गलियों में खेला हूं इन्हीं गलियों में मेरे वस्त्र लिब हैं इन्हीं गलियों में मेरा होलिया बिगड़ा है इसलिए मैं अच्छी तरह से जानता हूं बखूबी इन गलियों को जानता हूं तुम मुझसे कुछ छुपा ना सकोगे मैं इन गलियों का पक्का खिलाड़ी ह इसलिए तुम लाख चाहे बहानेबाजी कर लो मेरे तुम्हारी बहानेबाजी चलेगी मरना पड़ेगा अगर उस आनंद में जाना
है रोज कहता हूं मैं रोज गा के सुनाता हूं ज तो प्रेम मिलन की [संगीत] चा जे तो प्रेम मिलन की [संगीत] चा शीस तली धर घर मेरे [संगीत] आ शीश तली धर घर मेरे आओ घर मेरे आओ घर मेरे आ त प्रेम मिलन [संगीत] कीचा अहंकार को काट सिर को नहीं काटना है मेरे शब्दों को सुनकर मुझे कमेंट आता है बाबा अभी लेके आऊ सिर यह सिर नहीं चाहिए तुम्हारा सिर वो चाहिए जो तुम्हें भी नहीं पता जिससे तुम भी अज्ञात हो लेकिन मैं उसे बखूबी देखता हूं वो भ्रम का सिर चाहिए तुम्हारा वह इल्यूजन का सिर चाहिए तुम्हारा और जो तुमसे गलती हुई है जो तुम इस ब्रम में उलझे हो इल्यूजन
में हो कि मैं हूं कौन यह सिर चाहिए मुझे तुम्हारा यह सिर नहीं चाहिए तो पदार्थ है यह तो तुम्हारा है भी नहीं यह तो पदार्थों का है तुम इसके कौन लगते हो तुम मालिक थोड़े हो तुम्हें तो मिला है एक घर की तरह तुम इसका उपयोग कर रहे हो इसको मत काटना और उसको काटने से कुछ नहीं होगा बहुत से मूर्ख लोग जीभ चढ़ा देते हैं काली के चढ़ाए जाओ काली प्रसन्न हो जाएगी काली है ही नहीं प्रसन्न क्या होग क्यों मूर्ख बने हो दिस आर ऑल सिंबॉलिक रिप्रेजेंट सभी प्रीति [संगीत] कात्मे की सवारी वाली सिंघ वाहनी दुर्गा है ना कोई काली है ना कोई शीतला है गधे के
ऊपर बैठी हुई ना कोई उल्लू के ऊपर बैठी हुई लक्ष्मी य सब तुम्हारे बनाए हुए व्यापारियों के लूटने के ढंग है ना शंकर है ना पार्वती है ना गणेश है ना हनुमान है खैर अब बात आ गई मुझसे पूछ लेते हैं फिर आप कौन से शंकर के पास जाते हो बिल्कुल जाता हूं अब थोड़ा सा भ्रम निवृत कर दू इसके लिए बहुत बड़े टॉपिक की जरूरत पड़ेगी फिर विस्तार से बताऊंगा शुरुआत में जब चली ये सृजना कहां से चली कोई नहीं जानता जा करता सृष्ठी को साजा आप जाने सोई उसे पता है कब चली लेकिन जिस शंकर के पास मैं जाता हूं ही वास द फर्स्ट पर्सन टू बी एनलाइन न दिस
अथ इस धरती का प्रथम ज्ञानी व्यक्ति वह था वह है अभी भी है फर्स्ट पर्सन टू बी एनलाइन पहला व्यक्ति था जो एनलाइन हुआ उसने राह दिखाई दुनिया को के एक और तत्व है जो तुम्हारे भीतर है वहां तक जाओ आनंद में खो जाओ मस्ती में झूम उठो नाचो ये तांडव वगैरह तो तुम्हारे सब बनाए हुए हैं वो नाचते हैं मस्ती में उस ज्ञान उस ज्ञान को पीकर प्रथम व्यक्ति जो पहुंचा ज्ञान तक जो ज्ञानी हुआ वह शंकर है और तुम देख ना विज्ञान भैरव तंत्र में किसने बोला यह विधियां किसने बताई ऑल द वेज आर ओरिजनेटेड बाय शिवा शंकर ही बताते हैं तुम्हें मुक्ति का
मार्ग क्योंकि वह पहले व्यक्ति हैं सब विधियों को जानते हैं तो इस ब्रह्म में मत्र है ना जो आपको ब्रह्म के हाथ में तसोल होगा डमरू होगा और ऐसा बगर लपेटे होंगे देखिए यह तो उनकी सतिया है आपके पास भी हो सकती है मैंने भी बहुत देर तक यह सिद्धियों को रखा है चाहूं तो अ भी प्राप्त कर सकता हूं लेकिन जब जीने का ही मन ना रहा जी वेसना ही मर गई जैसे महावीर की जी बशना मर गई तो फिर सिद्धियों का कौन क्या करेगा सब फानी है मिटेगा तो पाकर भी क्या करेंगे मूर्खों की बातें शंकर के पास यह सभी सिद्धियां है अनीमा लघिमा महमा
मा और चाहे अपने शरीर को जैसा बना सकते हैं और इन देवताओं को जिनका हम देवता कहते हैं देवियां कहते हैं इनके पास य स्थितियां है जैसा वि रूप चाहे बना लेते हैं अणिमा लघिमा गरिमा महमा य सभी सिद्धियों के आपना आठ सिद्धियां और नौ निधिया आपने ये सुनी होंगे इनका विस्तार से कभी हो सका वर्णन करूंगा इसकी जरूरत नहीं और तुम्हारे बहुत से शास्त्रों में लिखा है नारद वहां चले गए य नारद कोई है तो है नहीं इंद्र कोई है तो है नहीं समझाने के लिए कुछ बना दिया गए थे जैसे तुम अलजेब्रा के सवाल सुलझाने के लिए कह देते हो ए इ से बी इवल
टूटू अब ना तो ए का मतलब कोई सास है ना का मतलब कोई दो से है समझाने के लिए ये फार्मूला है ऐसे ही दज आर और इलेक्ट्रिसिटी यह पावर है बस समझाने के लिए बना दिए है शेर की सवारी है उल्लू वाहनी है अब क्यों बैठेगी भाई इतनी नखरे वाली लक्ष्मी उल्लू प क्यों बैठे यहां मंत्रालय ठीक से नहीं लेते गृह मंत्रालय ना मिले तो अकड़ जाते हैं और लक्ष्मी जो समृद्धि की बालिका है वह उल्लू प क्यों बैठेगी भाई वह कोई बढ़िया सा अपना वाहन चुगी कोई मोर चुने गी कोई बढ़िया सा पंछी सुनेगी उल्लू के ऊपर क्यों बैठेगी लेकिन ये आपने बना दिया मूड़ों के बनाए
हुए आप मान लेते हो क्योंकि आप भी मूड हो अब हम अगले पोशन पर चले कर्म भोग लेगा संस्कार संस्कारों के कारण जैसे उसने जीवन जिया वैसा जीवन व्यक्ति जिएगा मैंने अपने जीवन में खाना बहुत कम खाया राम जी का रोल करता रहा एक वक्त खाना खाता था वैसे ही संस्कार पढ़ गए अब मैं भोजन लेता ही नहीं इसमें कोई त्याग ब्याग की कोई बात नहीं बैठा हूं कहीं जाने का दिल नहीं करता इतना घूमा इतना घूमा नहीं जी करता और फिर भीतर इतना आनंद है जाए तो जाए कहां यही है सब कुछ वहां क्या मिलेगा वहां कोई भी नहीं अपने भीतर जाने में जो मजा व बाहर की
किसी वस्तु में नहीं जो सुख छज्जू दे चवारे ना बल्क ना बुखारे इसका गहरा म मतलब निकलता था आध्यात्मिक आपने इसका गहरा मतलब आध्यात्मिक कभी निकाला नहीं जो सुख छज्जू दे चुबे ना बलख ना बुखारे क्यों जाएंगे हम बार संस्कारों से व्यक्ति जिएगा ज्ञानी होने के बाद भी अज्ञानी तो जिएगा उसको तो छोड़ दो उसके तो मैं बात भी नहीं कि है आज ज्ञानी की बात ही की है ज्ञानी जिएगा संस्कारों से तो कृष्ण बच्चे पैदा करेगा लेकिन जानता है कि शरीर की काम शक्ति बच्चे को पैदा करती है बच्चे उसके नहीं ध्यान रखना इसलिए सारा कुल नष्ट हो
जाता है युध वंश उसकी आंखों के सामने गांधारी उसे कह देती है मैं तुझे श्राप देतीं ज मैंने अपनी आंखों से अपने कुल का नाश होते देखा वैसे हे कृष्ण वासुदेव तू अपने कुल को नाश होते हुए अपनी आंखों से देख कृष्ण क्या कहते हैं एव मस्तु माते तथास्तु ऐसा ही होगा कृष्ण को कोई फर्क नहीं पड़ता उसके बच्चे राज कर उसके बच्चे आपस में लड़ के मर जाए माटी है माटी का खेल है माटी को पुतलो कैसा नचत है य बातें अगर समझ में आ जाए तो सौभाग्यशाली हो ना समझ में आए तो फिर से कोशिश करना प्रश्न था रल्स रइस कारों में घूमे वही बन गए उनके
संस्कार 93 से भी नहीं 193 भी आ जाए तो भी नहीं इनको चैन नहीं पड़ेगा भीतर से इनके संस्कार मांगते ही रहेंगे अन्यथा एक की ही जरूरत बस एक से ही काम चल जाता दूसरे की भी क्या जरूरत हम पुराने मॉडल लेके पुराने जूते लेकर दो दो साल घुमा लेते हैं नए मॉडल की जरूरत नहीं पड़ती जूतों की और यहां ो को एक रसरा से चलता नहीं क्या माजरा है फिर तुम कहते हो एलाट एलाइट है बिल्कुल है उसने जान लिया खुद को कैसे कहे नहीं है जो जाना वह कहना पड़ेगा जो हुआ वह कहना पड़ेगा गलत हुआ तुम्हारी नजरों में या ठीक हुआ तुम्हारी नजरों में हमारी नजरों में जो हुआ सो
हुआ ना ठीक हुआ ना गलत हु तुम औरों के घर के झगड़े ना हक ना छेड़ तम तुझको पराई क्या पड़ी अपनी न बेट हे मानव तू खुद दुखी है और दुखी है स्वयं की अज्ञान के कारण और इस अज्ञान को तू ही मटा पाएगा दूसरा अतः जितना शीघ्र हो सके अपने अज्ञान को मिटा के उस सत चित आनंद के पास बैठ जा स्थिति प्रज्ञ हो जा मेरी दृष्टि में शायद पूरे प्रश्नों का जवाब मैंने दे दिया है वक्त भी घना हो चला है लेकिन क्या क जाए जवाब तो पूरा ही देना पड़ता है श्री कृष्ण गोविंद हरे मुरारी हे नाथ नारायण वासुदेवा श्री कृष्ण गोविंद हरे मुरारी हे नाथ
नारायण वासुदेवा पितु मात स्वामी सखा हमा पितु मात स्वामी सखा हमारे हे नाथ नारायण वासुदेवा श्री कृष्ण गोविंद हरे मुरारी हे नाथ नारायण वासुदेव श्री कृष्ण गोविंद [संगीत] हरे मुरारी हे नाथ नारायण वासुदेवा [संगीत]
0 Comments