क्या परमात्मा है? अगर है तो दिखाई क्यों नहीं देता?
आंखों के बिना वो नजर नहीं आता अगर उसे देखना है तो आंखें पैदा करो तुम कहते हो वह है नहीं ठीक कहते हो सत्यवादी हो ईमानदार हो लेकिन मैं कहता हूं आंखें नहीं आंखें नहीं है तो वह दिखेगा भी नहीं और आंखें ये वो आंखें जो जन्म जात मिल जाती हैं वह आंखें नहीं यह आंखें तो पैदा करनी होती है बस यही तुम्हारी मशक्कत है इन आंखों के बिना कुछ दिखाई नहीं पड़ेगा दिखाई तो पड़ता है देखने केलिए आंखों का होना जरूरी है यही मजनू ने कहा शहनशाह आलम से शहंशाह बोले लैला को मैंने बुलाया था मजनू त गलत फहमी में है और मुझे तुझ पर तरस आता है ये सुंदर जवानी येय ऊंची काठी लंबा कद गोरा बदन सुडोल काया यह उसके योग्य नहीं राजा बोला मैंने वह लड़की देखी देखी है लैला काली कलूटी है ठगनी है कुछ भी तो नहीं तुझे गलत फहमी हो गई है मजनू त एक बार फिर से देख ले मैंने उसे देखा है मजनू अवश्य ही तूने गलती खाई है मजन बोला राजा तूने लैला को राजा की आंखों से देखा है लैला को देखने के लिए मजनू की आंखें चाहिए राजा की आंखों से लैला का सौंदर्य दिखाई नहीं पड़ता तुम कहती हो आबा मनो वहद दिखाई क्यों नहीं पड़ता आंखें नहीं आंखें पैदा करो और यह जन्म जात नहीं मिलती जन्म जात मिलती है लेकिन खुलती नहीं खोलनी तुम्हें पड़ती है मशक्कत करो इस आंख को जगा लो तो वह सब कहीं दिखाई पड़ेगा आज कहीं भी दिखाई नहीं पड़ता फिर सब जगह वही दिखाई पड़ेगा जिधर देखता हूं उधर तू ही तू हर जर्र में तू ही तो रूबरू है सोच ज रा सूरज रब बना ना अखिया सो िया नजर कुछ आदा ना तुम कहोगी कि आंख तो है मेरे पास सोच जरा जे सूरज रब बनदा ना अखिया सो िया नजर कुछ आंदा ना पर पगत निराले ने पर पगत निराले ने पथरा चल बलद ने जड़ अखिया वाले ने पथरा च लब लेने जड़े
अखिया वाले [संगीत] ने इन आंखों से दिखाई नहीं पड़ेगा तुम कहोगी आंखें तो हैं वो आंख पैदा करेगी तो दिखेगा मिलती तो है वो आंखें जन्म जात लेकिन जगानी तुम्ह पड़ेंगे पत्थर जो लव लेने जड़ अखिया वाले ने यह उस आंख की बात हो रही है जिससे परमात्मा दिख जाता है और जो कहते हैं कि होता नहीं परमात्मा और ठीक कहते हैं क्योंकि उनकी आंख जगी अंधे को जिस घड़ी आंख मिल जाएगी उस घड़ी वो इंकार ना कर सकेगा वह देखेगा सूरज की रोशनाई वह देखेगा सूरज की रोशनाई में चमकती हुई यह दुनिया इस संसार का सौंदर्य फूलों के रंग खिलती हुई धूप और छाया का खेल लेकिन तब तक ना दिखेगा जब तक आंख ना मिलेगी आंख पैदा करो अगर आंख पैदा हो गई तो पत्थरों में भी वही दिखाई पड़ेगा पथरा च लले देने जड़ अखिया वाले ने तुम परमा की फिक्र मत करो तुम संतों के वचनों पर यकीन करो वह है हमको किसी पागल कुत्ते ने काटा जो हम बेवजा रोज बोलते हैं ना ही बुद्ध को काटा था महावीर को ना ही शंकर को वो है और हमारी वाणी की मिठास जो लिब ति बड़ के आई उस परमात्मा के साथ वोह तुम्हें झूमने पर विवश नहीं करते वो तुम्हें मस्त नहीं बनाते और तुम्हारे भीतर कोई खलाव नहीं पैदा करते जिस एक बेहोशी के आलम में जाने के लिए तुम रोज सांझ शराब का सेवन करते हो हैरानी की बात है कि तुम खुद उसके सागर हो आ कितना कर गया है कितने निमन सत्र को छू लिया है आदमी की चेतना ने कितना गर क्या है उसे दिखाई नहीं पड़ता दो घड़ी की बेहोशी के लिए उसे बाहर की शराब का सहारा लेना पड़ता है और वो खुद शराब का दरिया है वोह खजाना है और चुकता फिरता है कंकड़ पत्थर हीरे मोतियों का मालिक है इसे क्या कहे अंधापन कहे या भाग्यहीन भाग्य हीनता कहे कब तुम भाग्यशाली हो जाओ कब तुम भगवान हो जाओ कब तुम्हारा भाग्य चमक जाए कब तुम्हें आंखें मिल जाए और उन आंखों से नेत्रों से तुम निहार लो उसकी सौंदर्य प्रतिमा को उसकी झरती झरती मूर्ति से करुणा रस को तुम अपनी आंखों से देख लो और उसके माधुरी को पी लो यही तो बाबा कहते हैं सुनिए दुख पाप का नाश तुम अपने पापों से दुखी हो पाप गलत मान्यताओं को मैं पाप कहता हूं मान्यता सही हो तो कुछ भी पाप में बस तुम अपने आप को जानो मैं हूं कौन यही पुण्य है दूसरा कोई पुण्य इस संसार में है नहीं बाकी सभी पाप है खुद को जानना ही पुण्य है और खुद को जानना होता है खुद ही में आकर दूसरे का स्मन करने से खुद ही का स्म नहीं होता तुम खुद में उतर जाओ गहरे छलांग ले लो तो लुत्फ आ जाएगा आनंद की वह बहार तुम्हारे रोए रोए को घेर लेगे एक तूफान से घर जाओगे तुम आज जिस के लिए मारे मारे फिर रहे हो और बड़े अफसोस की बात है उसी अमृत का सागर हो तुम क्या कहे तुम्हे उस मधुवन में निकल जाओ जहां राधा नाचती है राधे राधे मत करो मधुवन में राधिका नाचे रे मधुबन में राधिका नाचे रे गिरिधर की मुरली आ बाजे रे गिरिधर की मुरलिया बाजे रे मधुवन में राधिका नाचे रे मधुवन में राधिका नाचे रे उसको नाचते हुए देखो चेतना कितनी प्रसन्न है खुशी के आलम से सरा बोर राधा नाचने प विवश हो जाती है ऐसे ही मीरा नाचती है क्यों नाचती है चैतन्य से जब भर जाती है तो राधा नाचती है राधा चेतना को कहते हैं और उसे जपना नहीं पड़ता उसे पीना पड़ता है शराब शराब शराब य जपने से तुम्हें मदहोशी नहीं आएगी ये तो घटक नहीं पड़ेगी गले से नीचे तभी आएगा सुरूर तभी आएगा आनंद तभी तुम झूमो ग तभी राधिका नाची मधुवन में रास रचा महारास र जाती है वह चेतना तुम कहां चूक गए हो किन मूर्खों के आलम में गिरे हो तुम कोई साथ नहीं तुम्हारी जिंदगी में भटके भटके तड़पे तड़पे तपत गर्मी की सुर्ख तप में तुम जी कैसे रहे हो हैरानी यह नहीं है कि वह दिखता नहीं हैरानी यह है कि तुम जी कैसे रहे हो उसके बिना तुम अपने बिना जी रहे हो संतों की नजर से देखो मजनू की नजर से देखो तो लैला नजर आएगी संतों की नजर से देखो तो सब जगह तुम ही तुम हो नजर तुम्हारे पास है नहीं जुबा है जुबा से तुम बोल देते हो वह तो है नहीं कितनी पेची दगी है तुम्हारी जिंदगी में बड़ी हैरानी होती है कभी-कभी हम भी उसी आलम से गुजरे हमने भी उन्हीं गलियों की खाक छानी हमने भी मुंह सिर लबेड़ा हम भी कभी मूर्ख थे लेकिन व सौभाग्यशाली क्षण आया वह बरसा और ऐसा बरसा मूसलाधार बन के बरसा और बरसा और फिर रुका ने रोज बरसता गया आज भी बरसा अब भी बरस रहाहै मुझे लोग कह देते हैं बाबा यहां लगातार बैठे बाहर जी नहीं करता पला इस बरसते हुए आलम में तुम्हारे रेगिस्तान का स्वाद कौन चखना चाहेगा यह भीगी भीगी सिरा है ये अमृत की बरसती हुई छलकती बूंदे इनको कौन छोड़ना चाहेगा या तो वृति नहीं होगी तुम कृतम उपाय कर लेते होगे अन्यथा कोई कारण नहीं इस अमृत को बरसते हुए छोड़ कोई बाहर जाकर हिल स्टेशन को देखे यह संभव कैसे कबीर कहते हैं अमृत जर रहा है नाचो भक्तो और खुद नाचते हैं भक्तों को कोई पता नहीं अमृत होता क्या है यह भी पता नहीं लेकिन नाचते हैं बस यही तुम्हारा हाल है तुम कहते वो दिखता नहीं संत कहते हैं वही तो है कहां तालमेल बैठेगा तुम दोनों में यही तालमेल बैठेगा आंख पैदा कर लो अगर आंख नहीं तो कुछ नहीं अगर आंख है तो सब कुछ है हमें तो दर्शाया बेबसी के उस आलम में हमें तो तर्ष आया अपने होने पे और उस बेबसी के आलम से बाहर निकलने का मन भी हुआ दृढ़ संकल्प भी हुआ नहीं रहेंगे हम इस आलम में बस पुकारते रहो एक दिन वो कृपा कर देगा बाबा ने कहा इस रस को पीते रहो सुनिए दुख पाप का नाश एक एक बूंद इकट्ठी होगी गड़ा भर जाएगा जैसी वैसी रंगत संगत संत की करोगे तो बूंद रेगी और बूंद रेगी बूंद बूंद से गड़ा भ जाएगा सुनने का यही तो मजा है जैसा सुनोगे वैसा संस्कार बनेगा संतों की वाणी का मिठास तुम्हारे भीतर जमा होता है ध्यान रखना इस बात का संतों की वाणी का मिठास भी जमा होता है और ईर्ष्या की आग भी जमा होती है भीतर घड़ा तब भी भरता है तब भी विस्फोट होता है और अमृत के भरा कुंड वह भी विस्फोट करता है चुनना है तुमने तुम क्या चुनो तेरी आंखों के सिवा दुनिया में रखा क्या [संगीत] है तेरी आंखों के सिवा दुनिया में रखा क्या है ये ये उठे सुबह चले ये ढले श्याम जले मेरा जीना मेरा मरना इन्हीं पलकों के तले तेरी आंखों के सिवा दुनिया में [संगीत] रखा क्या है ये उठे सुब चले ये झुके श्याम ढले मेरा जीना मेरा मरना इन्हीं पलकों के तले तेरी आंखों इन आंखों के सेवा दुनिया में रखा क्या है अपनी जिंदगी का यह दे बना लो इन आंखों को पैदा किए बगैर इस संसार से रोक्त होना नहीं और रखा भी क्या है बस ये आंखें ही है इनके सिवा और कुछ है भी नहीं य चर्म चक्षु से तुम्हें जो चीज दिखती नहीं वो उस आंख से दिख जाती है और उस आंख से वोह नजारे दिखते हैं तुमने कभी कल्पना में सोचे नहीं होते तुम जब देखोगे तो पाओगे अरे यह तो कल्पना की मूर्त में कभी आया नहीं ध्यान रखना कल्पना की मूर्त में सिर्फ वही चीजें आती हैं जो तुमने प्रत्यक्ष देखी होती तुमने किसी को प्राइम मिनिस्टर बनते देखा होगा फूलों की झड़ी लगती देखी होगी बरसात तो तुम भी यह कल्पना सजा लोगे काश मैं भी बन जाऊं जो तुमने देखा नहीं होता वह तुम कल्पना नहीं कर सकते कभी ना कभी तो देखा ही होगा अन्यथा कना नहीं होती लेकिन एक चक्षु वो भी है जिससे वह दिख जाता है जो तुमने कभी देखा नहीं किसी जीवन में नहीं देखा कितने जन्म हुए आज तक तुमने उसका रस एक बूंद का रस उसका स्वाद चखा नहीं और यह दुखद है सबसे दुखद घटना अगर कोई है जिंदगी में तो यही है तुम सागर हो अमृत का और सागर बूंद के लिए तरस रहा है यह विडंबना भी है यह दुखद भी बहुत है संत को यह सोच कर भी दया आती है करुणा आती है उसका हृदय व्यथित होता है मैं गोरी तू कंत [संगीत] हमारा मैं गोरी तू क हमारा मैं न दिया तम मेरा किनारा मैं गोरी तम कंत हमारा मैं गंगा तू मेरा [संगीत] किनारा अंग लगा लो प्यास बुझा दो अंग लगा दो प्यास बुझा दो गंगा होकर प्यासी हूं मैं मन की प्यास बुझाने आई मन की प्यास बुझाने आई नदिया बन कर प्यासी हूं तू है मेरा प्रेम देवता तू है मेरा प्रेम देवता नदिया होकर प्यासी हूं मैं अंग लगा लो प्यास बजा दो नदिया होकर प्यासी हूं मैं लोगों की प्यास बजाने वाली गंगा खुद पैसी है एक अजूबा हमने देखा जल में रहकर मीन है प्यासी कबीर ऐसे ही नहीं व्यतीत होते है कबीर कहते हैं यह अजूबा है ऐसा होना नहीं चाहिए लेकिन है इसलिए अजूबा है जल में रह के मीन है प्यासे और तुम तो समुद्र हो अमृत कहे और अमृत आनंद से भरा होता है और तुम आनंद की एक बूंद के पैसे हो यह हैरानी नहीं है विस्मय जनक बात नहीं है बिल्कुल है अगर कोई चमत्कार है इस संसार में तो यह चमत्कार है कि तुम अमृत के समुद्र हो और तुम एक बूंद के प्यासे हो इससे बड़ा कोई चमतकार य कबीर भी कह देते हैं कि ये अजूबा है जल में है मीन और प्यासी है अंग लगा दो प्यास बुझा दो अंग लगा दो प्यास बुझा दो गंगा होकर पसी हूं मैं मैं गंगा हूं पतित पावनी गंगा लोगों की प्यास हो जाती ह लेकिन खुद प्यासी बस यही हाल तुम्हारा है तुम अमृत के सागर हो और भीतर से धड़ी होती है एक बूंद के पसे कहां नहीं ढूंढा तुमने बड़े दुख की बात है गियों में ढूंढते हो काश गियों में मिल जाता धन के अंबार लगाते हो हिमालय बना देते हो काश धन में मिल जाता पांव पुजवा हो संसार का चक्कर लगाते हो लोग पांव धो धो के पीते हैं लेकिन चैन नहीं मिलता काश मान सम्मान में वह मिल जाता दुनिया भर के पदार्थ इकट्ठे कर लेते हो बेचैनी बनी ही रहती काश वो पदार्थों में मिल जाता कितनी दयानी दशा हो गई है तुम्हारी और तुम्हें तो र्स नहीं आता संत को तरस आता है संत तुम्हारी इस दैनी दशा को देखकर रोता है तुम सोचते होगे कि संत को क्या लालच है संत क्यों बोलता है और तुम तो बोलने के पैसे लेते हो तुम तो ब्लैक बोर्ड पर आने की फीस लेते हो यह तो गाए ही चला जाता है बेकरार दिल तू गाए जा बेकरार दिल तू गा जा खुशियों से भरे यह तराने जिसे सुन के दुनिया झूम उठे और झूम उठे दिल दीवाने बे करर दिल तू गाए जा वह गाता चला जाता है काश यह गाने की महक तुम तक पहुंच जाए जहां से उठा यह संगीत उसकी थोड़ी सी लहर तुम्हारे कानों में पड़ जाए और तुम्हारे हृदय को छू जाए और तुम्हारा हृदय जाग जाए तुम सोया हुआ सुप्त हृदय लिए लिए फिरते हो तुम दुखी हो तुम्हारे दुख से संत दुखी होता है तुम नहीं तुम तो दुखी हो तुमने तो सभी कड़ी कचे तलाश लि कहीं नहीं मिला कहीं नजर नहीं आया और तुम्हारी दशा पर संत दुखी होता है संत हृदय नवनीत समाना व पिगल जाता है चिल्लाता है वह प्रयत्न भी करता है बस यह बोलना उस प्रयत्न का अंश है उस प्रयत्न का हिस्सा है कहीं आवास तुम्हारे कानों में पड़ जाए और तुम्हारा हृदय सुप्त जाग जाए और तुम्हारा सुप्त हृदय इस आंख को जगाने में लग जाए तो क्या मजा आएगा जब वोह आंख खुल जाएगी वो रस पियोगे तुम माधुर्य का जिसकी तुमने कभी कल्पना नहीं की थी ऐसे दृश्य तुमने सोचे ना थे तुम तो छोटे से दृश्यों से सांसारिक ल स्टेशनों से हिल जाते हो वैसे तो हिल स्टेशन हिलने के लिए ही होते हैं तुम्हारा मन हिला हिला रहता है चलो हिलस्टेशन चलो तुम इती सी बात से इन पत्थरों को देखकर हिल जाते हो जो हिलने की चीज है वहां पहुंचते हैं वह मनोरदृश्य वह आभा से भरा हुआ वह सुंदर वर्ण जब तुम निहारो ग तो मंत्र मुक्त हो जाओगे दो घड़ी के लिए तुम्हें पता नहीं लगेगा तुम कहां हो समय ऐसा व्यतीत हो जाएगा जैसे समय होता ही नहीं तेरे पास आके मेरा वक्त गुजर जाता है तेरे पास आके मेरा वक्त गुजर जाता है दो घड़ी के लिए गम जाने किधर जा ता है तेरे पास आके मेरा वक्त गुजर जाता है दो घड़ी के लिए गम जाने किधर जाता है तेरे पास आके वहां जाकर वक्त भी गुजर जाता है वहां जाकर अमृत की बूंदे भी पीने को मिलते हैं वहां जाकर ठहर जाता है सब रुक जाती है यह हवाएं जो जहां है स्टिल मूर्ति की तरह मंदिर की मूर्तियां हमने स्थापित की उनसे हमने कोई सबक नहीं सीखा य इस बात का इशारा था इंगित था सिंबॉलिक रिप्रेजेंटेशन एवरी वे देखो इसकी तरह तुमने सिथ होना है जैसे ये मूर्ति सिथ है ऐसे तुम अंतस में सिथ हो जाओ कितना मजा आएगा जब तुम उस स्थिति प्रज्ञ की अवस्था में ठहर जाओगे उस दिन तुम एक मात्र पुण्य कमाओगे उससे पहले तुम सभी पाप कर रहे हो राम राम जप रहे हो राधे राधे जप रहे हो अल्लाह अकबर कह रहे हो वाहेगुरु सतनाम कह रहे हो सब पाप है पुण्य तो उस दिन होगा जिस दिन तुम स्थिति प्रज्ञ में ठहर जाओगे तुम ठहर जाओगे और फिर सब ठहर जाएगा और फिर तुम जीवन का रस जीवन का लक्ष्य जीवन की मुग्ध वहां जाके पता चलेगा तुम संसार तो रुलाता है संसार भटकन है ठीक कहा बुद्ध ने संसार दुख है उसने यह कहा कि संसार से सुख ना मिलेगा और तुम्हारी चाहत सुख की है तु भारी चाहत उस स्टिल सिथरमपुरम का तुम्हें तुम्हारे से ही मिलेगा तुम ही हो धीरे-धीरे करके संत तुम्हें बाहर से खींचता है और धीरे-धीरे करके तुम्हें ही परमात्मा बना देता है यह अद्भुत चमत्कार है संत का कृष्ण कहते हैं मेरे अर्पण हो जा और आखिर में आके अहम तम सर्व पापे भ मोक्ष श्यामी मास च अष्टावक्र कहते हैं तू ही परमात्मा है विडंबना है हम परमात्मा है और भटक रहे हैं नदिया होकर प्यासे हो अंग लगा लो गले लगा लो प्या ब दो नदिया होकर प्यासी हूं दुखद बात है कि तुम प्यासे हो दुखद बात है आनंद के सागर होक तुम प्यासे हो नदिया होक कोई प्यासी रह जाए इससे बड़ी दुख की बात और क्या हो सकती है इससे बड़ा चलाव और क्या हो सकता है और तुम्हें छल लिया है लोग ने इन संतों ने इन प्रचारकों ने इन मूर्खों ने इन दुष्टों ने सब ज बाग दिखा के शब्दों में उलझा के यह शब्दों से तुम्हें परमात्मा दिखाना चाहते हैं हद हो गई हमें तो लूट लिया मिलके हुस्न वालों ने हमें तो लूट लिया मिलके हुस्न वालों ने काले काले वालों ने गोरे गोरे गालों ने हमें तो लूट लिया मिलके हुसन वालों ने काले काले वालों ने गुर गुर गालों ने राधे राध करते रहो राम राम करते रहो सब ठीक हो जाएगा उलू के पो कहां ठीक हो जाएगा कुछ भी तो ठीक नहीं है दुनिया रोज बिगड़ती जाती है दुनिया बद से बदतर होती जाती है लेकिन तुमने चिल्लाना बंद नहीं किया अफसोस बस इन्होंने तुम्हें लूट लिया मिलके हुस्न वालों ने काले काले बालों ने गोरे गोरे गालो ने शब्दों में तुम्हें उलझा के मार देना चाहते हैं इन्होंने तुम्हारी आत्मा को मार दिया वह आत्मा जो आनंद की मूर्ति है आनंद के सागर हो तुम पहचानना है जपना नहीं है नट टू रिपीट टू रगना इस शब्द को नोट कर लेना यू आर नॉट टू रिपीट य आर टू रगना पहचानना है दोहराना नहीं है तभी मिलेगी शांति तभी टूटेगा अज्ञान वो मस्ती का आल अभी तो तुम हंसे हुए हो निकलो बाहर और ध्यान रखना रिकॉग्नाइज किए बिना शांति ना मिलेगी रंग लो मुंह को उससे शांति ना मिलेगी रंग लो माथे को रंग लो दाढ़ी को नहीं शांति मिलेगी ये ड्रामे बंद करो बहुत हो लिया ड्रामे बाजी बंद मेरा भाई यहां दुकान करता था स्टील एंड ब्रास मर्चेंट के बर्तनों की दुकान करता था उसके बिल्कुल सामने एक और बर्तनों की दुकान थ दोनों दोस्त थे आपस में उसका नाम था देवी तो भाई का वीजा लगाया यूएसए चला गया ध्यान से सुनना इस कहानी को बड़ी असर सच कहानी है जीवन कहानी है मेरे भाई की कहानी यहां से चला गया यूएस चला गया लेकिन याद है कि आ रही है वह देबी देबी बर्तनों वाला वहां अजूबे अजूबे जर जर्ज पता नहीं कौन-कौन स्टैनफोर्ड लाइट वहां जुब से चेहरे अब भीतर शांति ना पड़े शांति पड़े देव भी देखे तो देव भी बर्तनों वाला दिखे तो शांति पड़े आगे रोज दर्शन हो जाते हैं अब तड़प रहा है वहां से उठ के यहां गया यहां कर सीधा देबी के दुकान प अरे दे आगोश में ले लिया बाहो में ले लिया अरे तेरे बिना तो अमरीका भी बेकार है यही दशा तुम्हारी है सात समुद्र पार चले गए हो दिल ढूंढता है फिर वही फुर्सत के रात दिन बैठे रहे तसव्वुर जाना किए हुए उसी आनंद के क्षण को ढूंढता है मन बहुत दूर निकल आया खुद से खुद ही से दूर छोड़ दिया अपना मुकाम और तुम्हें पता भी नहीं कि अपना मुकाम छोड़ दिया इसलिए दुखी हो अपने मुकाम पर वापस लौट जाओगे तो परम सुखी हो जाओगे क्यों सुखी हो जाओगे तुम अमृत के समुद्र हो बाहर अमृत है नहीं भीतर अमृत है और यह दुष्ट तुम्हें बाहर भटका हैं इनकी सारी शिक्षा बहर मुखी होने की शिक्षा है संत तुम्हें अंतरमुखी करना चाहता है संत तुम्हारी व्यथा को देखकर रोता है संत का हृदय रोता है क्योंकि माखन की तरह कोमल होता है तुम दुखी हो और तुम्हारा दुख तुम्हारे चेहरे मोरे पर साफ दिखाई पड़ता है यह भटका भटका से चेहरा यह लटका लटका सा चेहरा मुंह के ऊपर तो 12 बज पौ मिनट है अब मुझे कल ही एक ब्रह्म कुमारी की बात सुना रहा था वह मरी तो जाकर उसने दर्शन किए नर्क के स्वर्ग के मैंने कहा नर्क के दर्शन किया हां देख लिया होगा नर्क के योग ही है नर्क के योग है तो नर्क देख लिया होगा क्या बात है तो सुना रही के मैंने क्या कुछ देख अब इन हरामियों की मैं बात क्या करू खंग लिया सारा विश्व ना कोई नर्क है ना को स्वर्ग है और यहां बोलने वाले बोले चले जाते हैं चित्रगुप्त है यम यमराज है हिसाब किताब है दंडा अधिकारी है दंड दिया जाता है स्वर्ग नर्क में पटका जाता है तो भाई अगर स्वर्ग नर्क में सुख दुख भोगने होते हैं तो यहां हॉस्पिटल क्यों भरे पड़े हैं राजशाही सुख क्यों है और छोड़ो राजशाही राजशाही सुख तो कुछ भी नहीं होता यह जो एक बिखरी से दाढ़ी वाला परम आनंद में झूमता तुम्हारे स्वर्ग को मात देता है तुम्हारे स्वर्ग यहां आकर पश मान हो जाता है संत के सामने स्वर्ग भी बड़ा शर्मिंदा होता है क्योंकि स्वर्ग का सुख संत के सुख के सामने कुछ भी नहीं ठीक कहते तुलसी तात स्वर्ग अपवर्ग सुख रिय तुला एक अंग तात स्वर्ग अपवर्ग सुख रिय तुला एक अंग तुलन ताही सकल मिली जो सुख लभ सतसंग वह जिसने सत्संग में जाकर अपने उस सत्य स्वरूप में जाक अमृत को पी लिया है तुम सारे पदार्थों के सुखों को गियों को धन को पदार्थों को सारे संसार के क्षेत्रों को इकट्ठा कर एक तराजू में और दूसरे तराजू में सत्संग का एक लेश मात्र कण क्षण धरिए तुला एक अंग तुलन ता ही सकल मिले जो सुख लव सत्संग सत्संग का एक क्ण तुम्हारे सारे स्वर्ग को फीका कर देता है मैंने कहा स्वर्ग आके शर्मिंदा होता है संत के आनंद के बहते हुए जरने के पास स्वर्ग दंडवत हो जाता है स्वर्ग धरा को चूमता है कि शुक्र शुक्र इस धरा के ऊपर संत विराजमान है और तुम स्वर्ग और नरक की बात आज भी करते हो तुम्हें शर्म नहीं आती अगर किसी ने पाप किया तो यहां भी भोगे नर्क में भी भोगे कहीं एक कर्म का फल दो बार मिलता है अगर किसी ने पुण्य किया यहां भी भोगे का स्वर्ग में भी भोगे का एक पुण्य फल का कर्म का फल दो बार मिलता है फय बकवास कहां से लेकर आया ये तुम्हें लने की तरकीब हैं योजनाए इन पाखंड हों के बीच में मत लजना लूट लिया मिलके हुस्न वालों ने काले काले वालों ने गोरे गोरे गालों ने हमें तो लूट लिया मिलके हुस्न वालों ने काले काले वालों ने गोरे गोरे गालो [संगीत] ने ये ऐसे मेकअप करके बैठते हैं जिससे तुम लुभाई मान हो जाओ और ऐसे सुंदर सुंदर शब्द कहेंगे तुम्हें ये सब लुभाने के चक्कर है आनंद का कुछ इनको पता भी तो मैं सच कहता हूं तुम्हारी आंखों से भरे ना जाने कितने लोग मुझे अपनी थाएं सुनाते हैं और तुम्हारे समान सामने प्रवचन सुनाते हैं तुम्हारे सामने प्रवचन मेरे सामने व्यथा मैं वहीं से देखकर अनुभव पाकर तुम्हे बोल रहा हूं और सत्य बोल रहा हं मुझे कुछ नहीं चाहिए मुझसे तुम अमृत लेलो तुम अमृत कुंड हो तुम अमृत के सरोवर हो अमृत की एक बूंद के प्यासे हो बड़ी बी दुखद बात है और फिर यह दुष्ट तुमहे भटका हैं राधे राधे कर लो नहीं मिलेगा भाई कितना ही जप लो रोज मेरे पास इसी इश्क के मरी जाते हैं कोई कहता है 35 कोई कहता है 40 कोई कहता है उम्र गुजर गई नहीं मिला और बुध को छ साल में मिल जाता है महावीर को 12 साल में मिल जाता है कोई जाप नहीं करता कोई राधे राधे नहीं करते कोई राम राम नहीं करते बुद्ध उस अमृत कुंड में उतर जाते हैं महावीर भी उस अमृत कुंड में जाकर स्नान करते हैं जिस तीर्थ की बात बाबा नानक करते हैं सभी संत उसी की बात करते हैं ना जाने यह असंत कहां आ गए सभी संत उसकी बात करते हैं उस अमृत कुंड के तीर्थ नामा जेते स पावे बिन पाने की नाई करे जब उसकी इच्छा नहीं होगी तो मैं गंगा में गोता लगा के कुंभ में गोता लगा के आ जाऊंगा लेकिन कोई पाप ना मिटेगा कोई दुखड़ा ना मिटेगा वही है चाल ढंगी जो पहले थी वह अब भी है ऐसे ही दुखी रहोगे कुंभ प नहा के आने वालों के चेहरे देख लेना यह हज यात्रियों के चेहरे देख लेना यह भी तुम अस्पताल में तड़पते हुए पाओगे फिर क्या हुआ तुम्हारे कुंभ का क्या हुआ तुम्हारे हज यात्रियों का क्या हुआ तुम्हारे मक्के मदीने का तुम्हारे तीर्थों का ये कोरी बकवास थी कोरी कल्पना थी कोई गंगा का नान तुम्हें दुखों से मुक्त नहीं कर सकता एक गंगा स्नान है वो जो भीतर तुम्हारी गंगा बहती है उसमें स्नान कहीं कर लो और उसी की बात नानक करते हैं तीर्थ नामा जेते स पावे बाहर का स्नान तो जब चाहे करले गंगा तो यह खड़ी उसमें जाके जो गंगा के किनारे बसते हैं और रोज गोता लगाते हैं लेकिन दुख कहां उठता है भरम मिटा देते हो तुम कोशिश करते हो भरम मिटाने की लेकिन भी नहीं मिटता क्योंकि जब दुख आता है तो तुम्हारा भ्रम टूट जाता है तुम लाख लपेटने की कोशिश करते हो कि मैं अमृत हूं अहम ब्रह्म स्मा शिवो हम शिवो हम गंगा तीर पर काशी किनारे तुम चलाते हो हाथ में माला लिए मैं शिव स्वरूप हूं सत चित आनंद हूं लेकिन सब आनंद धरा रह जाता है जब तुम्हारा पेट दुखता है फिर तो डॉक्टर ही भगवान होता है जब कैंसराइजेशन जाने का कोई अर्थ मैंने पिछले ही प्रवचन में बोला था वो जाए कुंभ में जो मुमुक्षु और जो किनारे पर पहुंच गया हो और जिसे सिर्फ कृपा की आवश्यकता हो और अगर देसी घी में सवर की चर्बी मिला ही जाना है पाप मुक्त होने के लिए तो मत जाना नहीं होगे पाप मुक्त ब्रह्म बना रहेगा और यह भ्रम दुख देगा और तुम उसकी कचहरी से बच नहीं सकते हमारे पंजाबी में गाना आया रब नाल ठगिया को मारे बंद गया मैंने उस गायक से पूछा बात सुनो क्या परमात्मा से ठगी बज सकती है तुम कहते हो रब नाल ठगिया क्यों मारे बंदिया क्या परमात्मा से ठगी चल सकती है पहले यह बताओ अगर चल सकती है तो फिर चला सकते हैं तो दो घड़ी के लिए मौन हो गया जैसे उसके सिर के ऊपर हथोड़ा लगाओ कहता नहीं बाबा उससे तो ठगी नहीं चलती तो फिर तुमने गीत क्यों बनाया जब उससे ठगी चलती ही नहीं तो तुमने गाना क्यों गाया कहता मूर्खों को सुनाने के लिए बस मूर्खों को सुनाने के लिए राधे राधे करते रहो पता है नहीं यह बेचारे हैं पहले ही इनको और मार देते हैं यह लोग ये संत नहीं है क्योंकि इनका हृदय भलता नहीं और तुलसी कहते हैं संत हृदय नवनीत समान पिगल जाता है वह वह तुमसे टग नहीं मारेगा तुम्हें देखकर दया आती है संत को दया आती है तो वह अपना अनुभव कहता है अपना अनुभव कहता है और अपना अनुभव अमृत दाई है क्योंकि उसने उस अमृत को छुआ है पिया है अट खेलियां की है नाचा है खेला है उस अमृत में नहाया है इसलिए वह अमृत का बखान कर सकता है जिन्होंने अमृत देखा ही ना हो अमृत का बोतल छुआ ही ना हो तुमहे क्या खाक ब बताएगा मैं कोई तानाशाह नहीं हूं संत कभी तानाशाह हो भी नहीं सकता अहिंसा परमो धर्म संत अहिंसक होता है मैं तुम्हें तब्दील नहीं करना चाहता हूं लेकिन इतनी इच्छा तो जरूर है कि तुम्हारा यह लटका हुआ चेहरा इस पर लावण्य की झलक आ जाए तो क्या बुरा है जो चीज तुमने खोई ही नहीं भूल गए हो वह याद आ जाए तो क्या बुरा है नहीं ऐसा नहीं है आबा वह दिखता नहीं ऐसा नहीं है वह दिखता का वह तो प्राणों को तृप्त कर जाता है वह तो पिया भी जाता है तुम दिखने की बात करते हो वह तो अलमस्त भी बना देता है तुम कहीं भूल में हो आंख नहीं रब तेरे तो वख नहीं पर खन वाली अक नहीं आंख भी तो चाहिए आंखों से ही तो दिखेगा और आंखें नहीं तो कुछ भी नहीं इसलिए मेरे इन अंतिम शब्दों को ध्यान से सुन लेना य आर नॉट टू रिपीट य टू रगना सभी संत कहते हैं तुम आनंद के समुद्र हो तुम जरने हो झर झर रहा है अमृत और तुम बूंद के प्यासे हो एक शुक के लावण्य के क्षण के लिए तुम जिंदगी तक लुटा देते हो कितना सस्ता है तुम्हारा जीवन तुम हो तो नदिया और कहते हो मैं प्यासा हूं बस संत तुम्हें यही कहता है रिकॉग्नाइजर सर खुद को पहचानो स्वयं को पहचानो यह दुख असली दुख नहीं है यह दुख नकली दुख है कृतम दुख है तुम दुख हो नहीं अफसोस यही होता है संत को वो कुछ बदलना नहीं चाहता सिर्फ तुम्हारी दिशा बदलना चाहता है उसमें कोई मशक्कत नहीं लगती है तुम अमृत के समुद्र हो और तुम दुखी भी हो तो संत यह कहता है जब तुम आनंद के सागर हो तो दुखी कैसे हो सकते हो क्योंकि जब उस अमृत को मैंने पिया सब दुख रोहित हो गए समाधि लग गई समाधान हो गया दुख गर ग उसी अमृत के समुद्र तुम हो यह नीच ऊच तो व्यापारियों ने बनाए व्याख्या जो चाहे कर दो लेकिन बात तो लोभ और लालच की है कहीं कुछ व्यक्तियों ने षड्यंत्र किया है जैसे सारे धन को लूटने का षड्यंत्र है का वैसे ही कुछ लोगों ने अपने ज्ञान का लाभ उठा के अपनी सूचनाओं का लाभ उठा के तुम्हें गुमराह किया है नहीं दुख तुम्हारे पास फटक भी नहीं सकता तुम अमृत के कुंड हो तुम अमृत के समुद्र हो झरना झर रहा है हर वक्त हर कड़ी यह देखिए अनत नाथ की आवाज उस गिरते हुए जरनी की आवाज य तो है कौन गिर रहा है यह आवाज कहां से आ रही है यह अनटक्ड साउंड फम वेर इटस कमिंग य सन्नाटे की आवाज यह वह अमृत के झरने की आवाज है तो मैं नहीं सुन सुही पड़ता बिल्कुल सुना पड़ेगा खेतों लियानो में निकल जाओ रात के घने सन्नाटे में तुम्हें साफ सुनाई पड़ेगा रात के घने सन्नाटे में अपनी छत पर निकल जाओ तुम्हे यह झरता हुआ सबफ मालूम पड़ेगा ज कोई झूठ नहीं मुश्किल तो तब होता है जब तुम्हारी तथा डॉक्टर कह देते हैं इट इ टिनिटस मैंने कहा फिर सारे अस्तित्व को टस हो गया है पूरा अस्तित्व टिनिटस के रोग से ग्रस्त है यह तो सारा ही चूचू कर रहा है तो चुप हो जाते हैं तुम्हें बहका की चेष्टा करेंगे बस इससे एक ही बात साबित होती है कि ये मोन में गए परम मोन का रस इन्होंने चखा नहीं दिन में सर्कस में उलझे रहते हैं रात को जागते रहते हैं उस आनंद को पिया कब इन्होने यह बात मेरे गले से उतरती नहीं दिन में सरकस करते रहते हैं वो झुक गया यह झुक गया वोह झुक गया और रात को रात को फिर ही गाते हैं तो उस रस को क पीते हैं झूठे लोग है यह जो तुम्हें सिखाते हैं उससे तुम्हें मिलेगा नहीं आज सुन लो फिर सुन लो रोज कहता हूं कब से कहता हूं मुद्दतें बीत गई नॉट टू रिपीट बट टू रिकॉग्नाइज जिसकी तलाश है तुम्हें व तुम हो जिसकी तलाश है तुम्हें वह तुम हो अमृत की तलाश हैतुम्हें कौन नहीं चाहता मैं अमर हो जाऊं सभी चाहते हैं लेकिन जिसे अमर करना चाहते हो वह तुम हो नहीं और परमात्मा इतना मूर्ख नहीं तुम्हारी इच्छा को शरीर फिर सुनना इस बात को कौन नहीं चाहता मैं अमर प्रत्येक चाहता है और तुम परमात्मा से यह इच्छा करते हो कि वह तुम्हारी इच्छा को पूरी करे कि मैं अमर हो जाऊ तो परमात्मा इतना बेवकूफ नहीं कि तुम्हारी इच्छा को पूर्ण कर दे और शरीर को अमर कर दे वह तो जानता है ना कि तुम शरीर नहीं हो तुम खुद अमर होना चाहते हो जाकर देखो भीतर उतर के देखो तुम अमर हो मनुष्य जितनी उहा पोह करता है अमर होनेके लिए मेरा नाम बना रहे इतिहास में मुझे लोग याद रखें और इच्छा भी करता है मैं अमर हो जाऊं और क्या कुछ नहीं कवाड़े करता होल्डिंग लगाता है अपना चेहरा मोरा दिखाने के लिए लेकिन परमात्मा कहता है अरे पगले तू अमर होना चाहता है ना तो फिर यह जो डिंग तूने लगाई यह तो है नहीं मैं इन्ह अमर कर दूं तो तेरी इच्छा पूरी नहीं होगी तेरी इच्छा पूरी करनी है तो तू भीतर जाकर देख अगर तू अमर नहीं है तो मैं तुम्हें अमर कर दूंगा यह शरीर तो तू है नहीं जिसका होल्डिंग तूने लगा रखा तू अपने आप को समझे है मूर्खता के कारण तो मैं तो मूर्ख नहीं हूं मैं तो समझदार हूं मैं तो रचयिता हूं आम कंस्ट्रक्टर एम बिल्डर एम क्रिएटर तेरा दिमाग खराब हो गया है त मेरा थोड़ा ही है तुम्हारी इच्छा को पूरी करम तो सही तो करू जब तुम हो ही नहीं शरीर तो इसको अमर करके तुम्हें अमर कैसे कर पाऊंगा अंत में तुम यही जानते हो कि मैं शरीर नहीं हूं मैं अमर ही हूं मैं दुख नहीं हूं मैं आनंद ही हूं मैं वह झर झर करता हुआ आनंद का जरना ही तो हूं श्री कृष्ण [संगीत] गोविंद हरे मुरारी हे नाथ नारायण [संगीत] वासुदेव ठोकर जहां मैंने खाई इन्होंने पुकारा [संगीत] हमें यह हम सफर है तो काफी है इनका सहारा मुझे ठोकर जहां मैंने खाई इन्होंने पुकारा मुझे [संगीत] ठोकर जहां मैंने खाई इन्होंने पुकारा मुझे यह हम सफर है तो काफी है इनका सहारा मुझे यह उठे सुबह चले ये झुके शाम ढले मेरा जीना मेरा मरना इन्हीं पलकों के तले श्री कृष्ण गोविंद हरे मुरारी हे नाथ नारायण वासुदेव श्री कृष्ण गोविंद हरे मुरारी हे नाथ नारायण वासुदेव श्री कृष्ण गोविंद हरे मुरारी हे नाथ नारायण वासुदेवा पितु मात स्वामी सखा हमारे पित मात स्वामी सखा हमारे हे नाथ नारायण वासुदेवा श्री कृष्ण गोविंद हरे मुरारी हे नाथ नारायण [संगीत] वासुदेव धन्यवाद
ये चैनल बनाने का उद्देश्य लोगो को सही रास्ता दिखाना है जो उनके मन मैं हर घडी बहुत से प्रश्न उठते रहते हैं, हमारा पूर्ण प्रयास है की उनमें से कुछ प्रश्नों का उत्तर उन्हें यहाँ मिल जाए. यहाँ जो भी ऑडियो आप सुन रहें हैं वह किसी व्यक्ति, धर्म, सम्प्रदाय की भावनाओं को आहत करने का कोई मकसद नहीं है. इसीलिए हमारे प्रयास से अगर किसी के मन को ठेस लगे तो हम अग्रिम क्षमा प्रार्थी है.
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