प्रिय व्रत पारदर्शी बाबा एक प्रश्न उलझन की तरह दिमाग में बहुत वक्त से उसका हल नहीं मिल रहा महाभारत का प्रसंग है जब हम गौर से देखेंगे तो कसूर दुर्योधन का कसूर मामा शकुनी का क्योंकि दुर्योधन ने राज करना था मामा शकुनी दुर्योधन का मामा था लाक्षाग्रह की योजना बनाई तो दोनों ने बनाई पासा खेला गया इंद्र प्रस्त हार गए युधिष्ठिर वह भी शकुनी की ही चाल थी अगर सारे महाभारत को बड़े गौर से देखा जाए तो कसूर निकलता है दुर्योधन और शकुनी का जहां तक सवाल धृतराष्ट्र का वह तो वैसे भी अंधा था और मोह में भी अंधा था आप कृपया इस समस्या का मुझे समाधान
दीजिए कि कसूर दुर्योधन का और सकनी का सजा उन्हें मिलनी चाहिए थी सबसे ज्यादा लेकिन सबसे ज्यादा सजा मिली भीष्म पितामह को जिसका कोई कसूर नहीं था परम त्यागी था हस्तिनापुर का राज जिसने त्याग दिया था देश के लिए जो कुर्बान था देश प्रेमी था हस्तिनापुर की रक्षा की कसम खाई थी आजीवन ब्रह्मचर्य का व्रत लिया था देखने में भीष्म पितामह की कोई पाप जैसी कृत्य सामने नहीं आती इतना बड़ा परिणाम जो उसे भुगतना पड़ा क्या बाबा य उसके पिछले जन्मों का फल था कर्म था या कि इसी जन्म का बस यह बात उलझाती चली जाती है
इस बात के ऊपर आकर सारा फोकस हो जाता
है कर्म सिद्धांत का के भीष्म पितामह को इतनी खतरनाक सजा क्यों दी गई रोम रोम उसका बन दिया गया भगवान कृष्ण की मौजूदगी में शर शैया प उसको लिटा दिया इतना दर्द पीड़ा से कराता हुआ जीवन उसके जीवन में कहीं देखें तो इतना पाप थान है पिता के लिए त्याग किया राज सिंहासन का हस्तपुर की रक्षा का वचन लिया आजीवन आजीवन ब्रह्मचारी रहा निजी स्वार्थ जैसी कोई चीज लगती नहीं फिर महाभारत में भी कुछ नहीं ऐसा जो चाल चली हो जो कुछ इतना बड़ा षड्यंत्र रचा हो बेईमानी की हो सीधा सादा सरल व्यक्ति इतनी बड़ी सजा क्या आप इस कर्म सिद्धांत को व्याख्या
करने का कष्ट और कृपा करेंगे हम प्रश्न ठीक है तुम्हें परमात्मा अन्याय कारी मालूम पड़ता है यहां आके तो तुम्हारी बुद्धि ठीक सोचती है लेकिन ध्यान रखना बुद्धि गणित की परिभाषा जानती है और जीवन गणित नहीं जीवन गणित से कुछ पार है और यह बातें जीवन से संबंधित हैं विषम पितामह बाहर देखने में त्याग ही त्याग मालूम पड़ता है लेकिन जब उसको सजा देखते हैं तो रूह कांप जाती है क्या राष्ट्र प्रेमियों का त्याग करने वालों का आजीवन ब्रह्मचर्य का व्रत लेने वाले का ऐसा अंत होना चाहिए था उसको प्राण को त्यागने के लिए भी मकर
संक्रांति का इंतजार करना पड़ा देखने में ठीक लगता है मैंने तुम्हें कहा जिंदगी हिसाब नहीं है जिंदगी गणित से पार है और बुद्धि गणित की तरह सोचती है गणित बड़ा सरल है जिंदगी बड़ी जटिल है गणित बड़ा सरल है दो और दो चार ही होते हैं लेकिन जिंदगी बड़ी जटिल है जिंदगी बिल्कुल ऐसी जटिल है जैसे उपनिषद का यह वाक्य पूर्ण मदा पूर्ण मदम पूर्ण नाथ पूर्ण मते पूर्णस से पूर्ण मादाए पूर्ण मेवा शिते पूर्ण में से पूर्ण को निकाल दिया जाए तो पूर्ण ही शेष बचता है यह जिंदगी की परिभाषा है तुम समझ नहीं सके उपनिषद कर तुम्हे कहता है कि जिंदगी
गणित की तरह सरल नहीं गणित बड़ा सरल है गणित कहेगा 100 में से 100 निकाल दो शेष बचा शून्य कुछ नहीं बचा लेकिन जिंदगी उपनिषद का ऋषि कहता है तुम्हें समझाने की चेष्टा करता है भाषा बहुत शुद्र है सीमित है भाषा नहीं समझा पाती इसलिए इन चीजों का सहारा लेना पड़ता है अब ये जिंदगी का परिभाषा है जो उपनिषद के ऋषि देते हैं पूर्ण मद पूर्ण मदम पूर्णत पूर्ण मते पूर्णस पूर्ण मादा पूर्ण में से पूर्ण को निकाल लिया जाए पूर्ण मेवा विशेष्य ते पूर्ण ही शेष बचता है यह कोई गणित की परिभाषा नहीं जिंदगी की परिभाषा है जिंदगी बड़ी
जटिल है प्रथम बारगाह ऋषि तुम्हें समझाना चाहता है कि गणित को त्याग दो शब्दों को त्याग दो बुद्धि को त्याग दो बाहर की आंखों से देखने पर यह समझाएगा कि इतनी बेदर्दी से कोई भी नहीं मरा जितनी दर्दनाक मृत्यु भीष्म पितामह की हुई 58 दिन 58 डेज शर शैया पर पड़े रहे और उनका रोआ रोआ वनों से विद था कितनी पीड़ा रही होगी दिन भर रात सर्द रातें यह दर्द सहा कैसे होगा उसने और पास कोई भी नहीं सभी राजकुमार अपने अपने घरों में जाकर सो जाते हैं उसका अपना कोई भी नहीं था ना पांडव ना कौरव और ऊपर से इतनी बड़ी सजा उसके बावजूद
विषम पदा में कहते कि अभी नहीं मरूंगा जबकि उसे स्वय मृत्यु का स्वेच्छिक मृत्यु का वरदान था वह चाहती तो उसी वक्त प्राणों को त्याग सकते थे यहां बड़ी मजेदार बात आए बहुत से लोगों ने बहुत से ढंग से विचित किया है लेकिन मेरी दृष्टि में चक गया उसका त्याग गिना जाता है विषम पिता मा का स्वेच्छिक मृत्यु का वरदान रखने वाला विषम जब वानो की सैया पर पड़े थे घोर पीड़ा और दर्द से करा रहे थे तब उन्होंने वह शरीर त्याग केने दिया जब उनके पास वरदान था अब यहां एक बात समझ लेना बड़ी दुर्लभ है कर्मों का फल ईश्वर नहीं देता समझ लेना बात
को तुम जानकर हैरान होगे जब भीतर जाओगे और कर्मों की फिलॉसफी को अपनी नगन आंखों से देखोगे प्रत्येक व्यक्ति के कर्मों का फल वह खुद देता है यह बड़ी अद्भुत बात है तुम्हारा मन कहेगा फिर तो हम बेईमानी कर जाएंगे हम जब अपने ही कर्मों के फल को निर्धारण करेंगे तो अपना ही पक्ष रख लेंगे अपराधी जब न्यायालय में पेश होता है तो अपना ही पक्ष रखा करता है हां न्यायालय की बात और है जिनके सामने वो बोलता है वह खुद झूठे हैं गद्दी पर बैठ गए हैं बिला शक लेकिन भीतर से वह सच्चे नहीं वोह खुद झूठे हैं और एक मजेदार बात तो मैं बताऊ सच्चे व्यक्ति के सामने झूठ
बोलना बड़ा मुश्किल हो जाता है क्योंकि उसके भीतर से निकलते हुए रोए रोए से आसानी तरंगे तुम आसानी से झूठ नहीं बोल पाओगे और जब तुम अपने अंदर जाओगे अपने भीतर जाओगे वहां इतने ईमानदार हो जाते हो तुम जब तुम अपने ही कर्मों का लेखा जोखा करोगे दूसरा कोई आके तुम्हारे लेखा जोखा करने वाला है नहीं क्योंकि अपने कर्मों का सटीक ऑब्जर्वर तुम्हारे सिवा और कुछ नहीं हो सकता कोई नहीं हो सकता तुम ही हो जो हर वक्त अपने कर्मों के साक्षी हो यह दो आंखें हर वक्त तुम्हारे कर्मों पर गड़ी रहती हैं तुम क्या करते हो क्या सोचते हो
दिमाग में क्या चलता है कर्म में क्या चलता है तुम अच्छी तरह से देखते हो और प्रत्येक व्यक्ति अपने कर्मों को खुद देखता है इसे दूसरे शब्दों में तुम कह सकते हो कि परमात्मा देखता है ये तो बाद में पता चलेगा कि जो देखता था वह परमात्मा ही था लेकिन अभी से तुम मत कहो क्योंकि जानते नहीं अभी से तो यह कहो कि तुम्हारे कर्मों का फल तुम स्वयं देते हो और तुम इतने ईमानदार हो भीतर से जिसका कोई हिसाब नहीं क्योंकि भीतर जाकर तुम इतने आनंद में मगन हो जाते हो कि पाप यह गलतियां यह त्रुटियां कितनी भी बड़ी क्यों ना हो संसार में वहां जाकर बड़ी छोटी मालूम
पड़ते हैं और तुम अपने पापों को स्वीकृत करने में हिचक नहीं करते मेरे पास रोज कन्फेशन आ जाते हैं दिमाग हल्का कर के लिए मैंने कहा था कोई तुम्हारा शुभ चिंतक होना चाहिए मित्र होना चाहिए जिसके सामने तुम बात कह सको जिसको तुम पाप समझते हो उसके सामने प्रकट कर दो तो तुम अलके हो जाओगे गांधी जी ने कहा था कन्फेशन ऑफ एरर्स इज लाइक अ ब्रम दैट स्वी डर्ट एंड मेक्स अ सरफेस क्लीनर देन बिफोर अपने गुनाहों को मान लेना ईसाइयत का यही संदेश है बेस में यही है ईसाइयत के वह कन्फेशन करते हैं अपने पापों को मान लेना अपने भूलों को
मान लेना कन्फेशन ऑ फर इ लाइक अरोम उस झाड़ू की तरह ट स्वी व तुम्हारी सभी धूल धवास को इकट्ठा कर देता है एंड मेक्स सरफेस क्लीनर देन बिफोर और फर्श को पहले से भी ज्यादा साफ सुथरा उजला बना देता है तो कन्फेशन के लिए ट रोज भर जाता है मैंने इस उम्र में यह किया मैंने इस उम्र में यह किया मैंने इस उम्र में यह किया और मैं सांझ सारी डिलीट कर देता हूं पढ़ता हूं कि नहीं पढ़ता हूं यह मैं नहीं बताऊंगा क्योंकि तुम्हें साइकोलॉजिकल इफेक्ट हो जाएगा बस तुम समझो कि मैंने सुन लिया तुमने कह दिया तुम बाहर मुक्त हो जाओ यही परंपरा ईसाइयत में थी तुमने गुनाह
किया वो तुम्हारे ऊपर बोझ है मैंने किया और यही बोझ है कि मैंने किया सनातन ने इसे सीधा-सीधा कह दिया भगवान कृष्ण ने ईसाइयत ने इसने हाथ घुमा के कान पकड़ लिया मैंने किया यह बोझ है तो कृष्ण कहते हैं कि तू कुछ नहीं करता करता मैं हूं इसलिए मुझ पर छोड़ कर्म वाधिकारस्ते मा फलेशु कदाच कर्मन वाधिकारस्ते मा फलेशु कदाचन सर्व धर्मा प्रत मामे कम शरणम मेरी शरण में आ जा तो करता नहीं रहेगा फिर जो करेगा मैं करूंगा करत में हो जाऊगा दोनों का मतलब एक ही था ईसाइयत का भी और कृष्ण का भी तीसरा बाबा नानक का भी वो कहते हैं कर्ता कर्ता
पुरख वो विराट है एक ओंकार सतनाम कर्ता पुरख वह विराट है वह करता है और अगर तुम कहते हो कि मैं करता हूं तो यही तुम्हारे ऊपर बोझ है और बोझ कहेगा एक ही बोझ है तुम्हारे ऊपर तुम जब कहते हो कि मैं करता तो तुम अपना वजूद नियत कर लेते हो कि मैं हूं तभी तो करोगे ना मैं हूं और मैं हूं बहुत बड़ा बोझ है इस मैं हूं को मिटाने के लिए सभी संत प्रतिबद्ध है अपने अपने तरीके से नानक अपने तरीके से कहते हैं कृष्ण अपने तरीके से क्राइस्ट अपने तरीके से जब यह कहता कि मैं करता तब यह गर्भ जूनी में पड़ता फिर आवागमन का चक्कर शुरू हो जाता
है तो शुरू कहां से हुआ मैं मैं करता हम प्रसंग पर वापस आ जाए विषम पता उसी वक्त शरीर छोड़ सकते थे लेकिन वरदान होने के बावजूद भी शरीर छोड़ा नहीं दुखों से मुक्त हुए नहीं कारण जा को मैं दारुण तुक देही ताकी मत पहले हर ले उसकी बेचारे की क्या औकात है उसने मकर संक्रांति का नाम ले दिया इतने दिन उसने कष्ट भोगना था पहले दिन कैसे छोड़ देता उसके पाप ही इतने थे तुम जो कहते हो वो निष्पाप था क्योंकि उसने त्याग किया हस्तिनापुर की गद्दी छोड़ी उसने ब्रह्मचर्य का पालन किया बच्चों को जन्म नहीं दिया जो वारिस बन जाते हस्तिनापुर का शादी तक भी नहीं
की और शादी करके भागा भी नहीं तुम ऐसा मत करो कुछ नहीं किया बिचारे ने बड़ा साफ सुथरा करैक्टर है इसका पिता के लिए राष्ट्र के लिए उसने जीवन कुर्बान कर दिया और निभाया भी आखिर तक हस्तिनापुर की रक्षा करता रहा जो जरूरत राजकुमारों को व छीन के मांग के खरीद के जैसे भी हुआ वह लाया विचित्र वीर्य और चित्रांग तो विचित्र वीर्य उसकी शादी के लिए राजकुमारियों का परण करके लग गया है ये हस्तिनापुर की रक्षा थी अपना वीरत्ता दिखा के अपने डोलों का प्रभाव दिखा के किसी की बच्चियों को छीन के ले आना दुराचार होता है कि सदाचार लेकिन क्या करें तुम
तुम भक्त हो भक्त हो भाई किसी की बच्चियों को जो स्वयंवर के लिए अपना उपयुक्त वर तराश रहे हैं हाथ में वरमाला हैय विलन की तरह जाते हैं और सबके मुकुट उड़ा देते हैं और वहां से राजा तो भाग खड़े होते हैं और उन तीनों को लेकर चल चलो हमारे हस्तिनापुर की रानिया बनो कोई व्यक्तिगत इच्छा भी तो व्यक्ति की होती है तो अंबा ने विद्रोह कर दिया नहीं ऐसा नहीं चलेगा उसने बेनती की महाराज मैं किसी अन्य पुरुष से प्रेम करती हूं तो मुझे गलत लेक आया इन दोनों को रख लो यह किसी से प्रेम नहीं करते इनको तो वैसे भी वर चाहिए था हस्तपुर का इतने बड़े साम्राज्य का
राजा मिल गया और क्या चाहिए लेकिन मैं तो पहले से ही किसी प्रे किसी पुरुष के प्रेम में हूं कोमल हृदय भी है तो उसने फौरन सिप सालार को बुलाया और कहा कि अंबा को सकुशल काशी पहुंचा जाए क्योंकि किसी और पर पुरुष के प्रेम में है और मैं गलती से छीन लाया हूं लेकिन छीन ले आए यही गलती हो गई जब अंबा वहां गई तो उस पुरुष ने उसके साथ शादी करने से इंकार कर दिया अंबा चेदी के राजा शाल्व से प्यार करते थे और स्वयंबर में शाल भी आया हुआ था अंबा ने शाल्व के गले में माला डालनी थी उसे पति स्वीकार कर चुके थ तो भीष्म ने कहा कि ठीक
है तुम्हें वापस छोड़ दिया जाता है यह मुझसे गलती हो गई लेकिन गलती नहीं हो ग कई बार देखने में छोटी गलती लगती है हम भूल सुधार लिख देते हैं लेकिन भूल सुधार नहीं होता इतना बड़ा पाप होता है तुम्हें पता भी नहीं होता उसका प्रयास किया ही नहीं जा सकता और इसी छोटी सी घटना का मूल्य विषम को शर सैया पर लेट के देना पड़ा जब अंबा घर आई तो शाल ने उसे अपनाने से इंकार कर दिया उसने बड़ी मेहनत खुशामद की कि देखिए मेरी कोई गलती नहीं मुझे यहां से भीष्म ले गए थे अपने बाहुबल के जोर पर लेकिन वो तुरंत वहां से वापस आ गई मैं
तुम से प्रेम करती हूं तुम से शादी करूंगी तो मैं अपना पति मान चुकी हूं किसी अन्य से मैं भी शादी नहीं करूंगी आजीवन कबरी रहूंगी लेकिन शाल्व ने मेहनत खुशामद करने के बावजूद भी इंकार कर दिया मैं तुमसे शादी नहीं करूंगा क्योंकि पर पुरुष ने तुम्हें स्पर्श किया अपने अपने समाज की मान्यताएं होती हैं और अपने अपने समाज की मान्यताओं को प्रत्येक व्यक्ति अधिमान देता है प्रत्येक भेला इस धरा प आई ऐसी भी बेलाए आई जब पर पुरुष का स्पर्श मात्र से शार्ब ने अंबा को पत्नी मानने से इंकार कर दिया सिर्फ स्पर्श हाथ का स्पर्श उन तीनों को हाथ से रस पर बैठाया
और कोई वक्त ऐसा भी है जब रथ सर एक वांक वंश के रथ सर अपनी भार्या को अंगरा ऋषि के पास नियोग करने के लिए ले जाते हैं किसके गर्भ ठहराते कक रथी सर में शुक्रण मुख कम नियोग के अलावा और कोई रास्ता नहीं था बच्चे उसे चाहिए उसमें स्पर्म काउंटिंग ठीक नहीं थी तो अंगकरा ऋषि के पास चले गए मैंने तुम्हें पहले भी कहा है यह आवारा सांड पाले हुए [संगीत] थे अपने अपने समाज की रिवाजों के अनुसार समाज उत्पन्न कर लेता है सभी चीजों को व्यवस्थाओं को अंबा आजीवन कबरी रही और शादी नहीं की सुंदर थी सुशील थी समझदार थी काशी नरेश की पुत्री थी
लेकिन उसने कसम खाई कि शादी करूंगी शल से करूंगी नहीं करूंगी यह भूल नहीं यह पाप हो गया मैंने एक शब्द पहले बोला था प्रत्येक प्रत्येक व्यक्ति जो भी कुछ करता है मुझे कह देते हैं लोग यह फला व्यक्ति ऐसा कर रहा है बड़ा पाप है मैंने कहा तुम क्यों चिंतित हो तुम क्यों चिंतित हो क्योंकि अगर कोई जहर पी रहा है तो मरेगा कौन और यह छल कपट शतरंज की विषत राजनीति की ईर्ष द्वेष फैलाना आग लगाना अगर कोई ऐसा कर रहा है संत व्यक्ति उसमें गुस्ता नहीं इंटल नहीं होता जो तो जान गया है कि प्रकृति की व्यवस्था परमात्मा की व्यवस्था इतनी
शानदार और महीन सूक्ष्म है कि उसे सोचने की कोई आवश्यकता जिसने बनाया संसार जिसने बनाई व्यवस्था वह खुद सुलट भी लेगा तुम चिंता मत करो औरों के घर के झगड़े नाहक ना छेड़ तू तुझको पराई क्या पड़ी अपनी न बेत लेकिन क्या करें यहां देशभक्त बहुत है जो भीतर की उन व्यवस्थाओं को नियमों को जानता नहीं वह ऐसे झगड़े ड़ किया करता है अनत इस बात में कोई तंत नहीं है जो भीतर चला गया वह नियमों को जब देखा देखेगा तो शांत हो जाएगा इतनी सुंदर व्यवस्था उसने बनाई और इतने महीन और सूक्ष्म और इतनी एक्यूरेट कि जब तुम नए नए खोजते हो तो
चकित होते हो लेकिन जिसने बनाया परमात्मा के बारे में व्याख्या करने वाले कहानियां सुनाने वाले लोग कभी-कभी मेरे संपर्क में आ जाते हैं परमात्मा के बारे में बताने लग जाते हैं ले मैं कोई जवाब नहीं देता मैं सिर्फ इतना कहता हूं देखो मेरे आगे बकवास मत करो तो कुपित हो जाते हैं क्रोधित हो मैं बवास कर रहा हूं भगवान का नाम ले रहा हूं तो यह नाम मत लो ना मेरे सामने तो फिर मैं क कर तुम परमात्मा के बारे में बात उस दिन करना बात उस दिन करना लायक भी उस हो ग जिस दिन तुम पानी की एक बूंद या रेत का एक कण पैदा करने के योग्य
हो जाओगे उस दिन भगवान का नाम लेना उससे पहले और इससे योग्य तुम कभी नहीं हो पाओगे यू कैन इन्वेंट एवरीथिंग बट नॉट क्रिएट इवन सिंगल पार्टिकल शायद तुम्हें सब पता चल जाए शायद लगेगा तो नहीं लेकिन तुम कभी भी कुछ पैदा करने के योग कभी भी नहीं होगे क्रिएट नहीं कर सकोगे कुछ भी तो मैं कहा करता हूं जिस दिन तुम क्रिएट करने के योग हो जाओ एक रेत का छोटा सा कण भी पानी की एक छोटी सी बूंद भी जब पानी के दो तत्वों में से एटम में से हाइड्रोजन ऑक्सीजन का एक छोटा सा एटम बनाने के योग हो जाओ बनाने के योग हो जाओ उस न परमात्मा का नाम लेना मेरे सामने
आके उससे पहले परमात्मा की बात मत करना झूठ है बकवास है तुम्हें पता ही नहीं वह क्या है उसके बारे में इतना तो कहा जा सकता है जितना कहा है ऋषियों ने बस और वहां जाकर चुप भी हो गए ऋषियों ने यही बातें कही हैं वह सत है वह चित है वह आनंद है खत्म सत चित आनंद परमात्मा के बारे में इतना ही कहा जा सकता है इससे ज्यादा कहने वाला उसको मैं तो मूर्ख कहता हूं कम से कम बस उसका लक्षण बताया जा सकता है कि जब तुम परमात्मा में प्रविष्ट हो जाओगे मिल जाओगे ज परमात्मा के करीब होगे आनंद घना हो जाएगा जिसे तुम सुख कहते हो इतना हो
जाएगा कि तुम्हारी आंखें तंद्र जैसे हो जाएंगी तो तुम्हारी वाणी लड़ खड़ाने लग जाएगी एक पांव तुम उधर रखोगे पड़ेगा उधर शराबियों की तरह यह उस मद मस्ती का लक्षण है लेकिन परमात्मा क्या है इसके बारे में बात मत करना परमात्मा के बारे में बात करोगे वह क्या है इसके अलावा उसके लक्षण क्या है ये तो ठीक लेकिन वह क्या है तो तुम लोगों को मूढ़ बना रहे हो उसके बारे में कुछ नहीं बताया जा सकता है और व्यक्ति कितना भी खोज कर ले मेरी इन बातों को रिकॉर्ड में रहेंगे भी रखना भी व्यक्ति कभी भी इतना समर्थवादी कल बना सके एक कण पना
पानी की एक बूंद बना सके इवेंट सब कुछ कर लेगा खोज लेगा सब कुछ कर्मों की ये अनूठी परंपरा कोई दंडाधिकारी यहां है ही नहीं ये ज्योतिषी जी महाराज डंड मुंड कई बार आ जाते हैं न्याय के देवता आगे न्याय करेंगे शनि तु बड़ा हसता हू ऐसी मुड़ बातें कहीं और जाकर किया करो मेरे सामने तुम्हारी जो बकवास चलने वाली है नहीं जो जानता है वह मानता नहीं वह मानता है तो जानने से मानता है तुम सिर्फ मानते हो शनि की साड़ी साथ आ गई यह कुंभ के तीन ग्रह आ गए यह कुंभ का प्रथम स्नान आ गया सब बकवास तुम्हें कुछ पता नहीं और भरे पड़े हैं
शस्त्र तभी मैं कहता हूं इनको लगा दो जितनी शक्ति तुम यहां खपा हो अगर वही शक्ति राष्ट्र के उत्थान में ख पाई जाए या अपने भीतर जाने में खर्च की जाए तो पॉजिटिव परिणाम निकलेंगे ये सारे तुम्हारे काम नेगेटिविटी फैलाने के क्योंकि आगे के आगे शाखाएं बढ़ती जाएंगी शाखाओं पर शाखाएं निकलती जाएंगी झूठ की और बुनियाद जब झूट है तो आगे होगा भी झूट फूल पत्तियां लगेंगे वो भी झूठ फल फूल लगेंगे वो भी झूठ मर तो उसी दिन जाते देखिए वरदान लेकिन उसकी ही आत्मा ने फैसला किया भीतर जा के अपने कर्मों को देखकर तुम्हें नहीं पता होता जब व्यक्ति शरीर छोड़ता है तो भीतर
अपने सारे गुणा भाग कर लेता है खुद ही अपने कर्मों का लेखा जोखा व्यक्ति करता है इसे तुम मान ना पाओगे बईमान लोग इसे कभी नहीं मान पाते सिर्फ वही मान पाते हैं जो जान जाते हैं कोई एकाध व्यक्ति जानता है और वही मानता है और वही आचरण भी वैसा ही करता है महावीर आचरण नहीं करते महावीर के भीतर से यह चीज प्रकट हुई कि तुम ही हो तुम्हारे कर्मों के फलों को देने वाले अगर कृष्ण कहते हैं तो कृष्ण शब्दों का थोड़ा सा उल्ट पल्ट कर देते हैं जो तुम्हारी समझ में आ जाए कर् मन्य अधिकार से मा फलेश कदाचन फल को मेरे ऊपर छोड़ते क्योंकि वह जानते हैं अच्छी तरह से
प्रत्येक व्यक्ति के भीतर एक साक्षी विद्यमान है जो सोता नहीं जिसका दिया कभी बुझता नहीं रोशनी कम ज्यादा होती नहीं प्रत्येक अवस्था में वह साक्षी रहता है यह शरीर सो जाए घनी निद्रा में चला जाए सुषुप्ति में चला जाए या क्रोध की अवस्था में हो काम की अवस्था में हो तुम किसी चिंता में डूबे हुए हो भय की अवस्था में हो तुम किसी भी अवस्था में हो एक साक्षी बराबर अडोलूर कोई देखने वाला है तो तुम्हें पता चलता है कि कोई कांप रहा है कोई डर रहा है किसी के भीतर आवेग उठा काम का क्रोध का लोभ मोह का अहंकार का अगर देखने वाला कोई ना
होता तो फिर यह रिकॉर्ड भी नहीं होता कोई है साक्षी कोई है सीसीटीवी जिसके भीतर रिकॉर्ड होता है अगर तुम साक्षी ना होते तो तुम्हारे कर्मों को रिकॉर्ड करने वाला कोई भी नहीं होता फिर ये कहानियां रह जाती हैं स्वामी जी प्रेमानंद जी जैसे यहां चित्रगुप्त बैठे हैं अरे भाई एक आदमी के ऊपर दो बंदे बैठा दोगे वो बिचारे की जिंदगी पहले ही नर्क बन गई फिर वो लिखेंगे साब कोई पेंसिल में शाही मुक जाए कोई उसका मोमना खत्म हो जाए क्या करेंगे वो फिर वो आगे जाकर हिसाब देंगे कितना दुष्कर प्रक्रिया बनानी पड़ती है कर्मों की फिर
आगे धर्म राज करेगा धर्मराज उसका फल देगा तो मैं कह देता हूं तुम्हारे दिमाग में फर्क है चुडो तुम्हारे दिमाग में फर्क है जो व्यवस्था को समझता नहीं अपनी आंखों से जिसने देखा नहीं ऐसी ल जलूल बा बातें किया करता है जो जानता है बस वह तो यह जानता है कि मैं साक्षी हूं और मेरे द्वारा किए गए प्रत्येक कर्म को भीतर मेरा रिकॉर्डर साक्षी बराबर रिकॉर्ड कर रहे हैं यह सोता है तो इसका सोना भी रिकॉर्ड यह जागता है तो इसका जागना भी रिकर्ड यह स्वपन देखता है तो इसका स्वपन देखना भी रिकॉर्ड यह संसार में जागते जागते कोई कर्म करता है तो वह भी रिकॉर्ड यह पुण्य
करता है वह भी रिकॉर्ड यह पाप करता है वह भी रिकॉर्ड हर चीज रिकॉर्ड होती है इसलिए एक शब्द लिखा है देना होगा तिल तिल का लेखा देखने वालों ने देखकर कहा तुम सिर्फ धुए को देख लेते हो भीतर जलती हुई आग को नहीं देखते और उस उठते हुए धुए से अंदाज लगा लेते हो कि यहां आग होगी लेकिन अंदाजे कभी सत्य नहीं हुआ करते अंदाजे गलत भी हो जाते हैं देखने वालों ने देखा है धुआ देखने वालों ने देखा है धुआ जिसने देखा दिल मेरा जलता [संगीत] हुआ कल चमन था आज एक सहरा हुआ देखते ही देखते यह क्या हुआ कल चमन था तो भीष्म अपने भीतर गए और यह जो शब्द कहे गए यहां डूबते
हैं जा को मैं दारुण दुख देही ताकी मति पहले हर मति हरी जाती है खुद के शरीर को कष्ट देना था 58 दिन तक कैसे छोड़ देते देखिए सब है तुम तो कहोगे बुद्धि से काम नहीं लिया नहीं बुद्धि व काम करती काम क्या खाक लेगा वह बुद्धि वहां जाकर थक जाती है हथियार डाल देती है उससे बहुत पहले जब उसका क्षेत्र शुरू होता है उससे बहुत पहले बुद्धि हथियार छोड़ देती है भीष्म ने इतने पाप किए थे भीष्म के सिवा कोई नहीं जानता था इसलिए सबसे ज्यादा सजा भीष्म को मिले तुम्हारी नगन आंखें कई बार सत्य को निहार नहीं पाती कई बार नहीं अक्सर निहार नहीं
पाती क्योंकि सत्य थोड़ा सा अदृश्य रहता है भीष्म ने क्या किया यह तुम्हें मालूम नहीं तुम्हें तो दिखेगा कि राष्ट्र के लिए बलिदान किया बच्चों को जन्म नहीं दिया उसका खुद का कोई लोभ नहीं था सिंहासन को त्याग दिया बल्कि सिंहासन की रखवाली की बाहर के दुश्मनों से बचाव किया सब योजनाएं बनाई बुद्धिमान था बलशाली था और इसी बुद्धि और बल के सहारे उसने पाप कर दिया ने बुद्धि दी है बल दी है इसका मतलब यह नहीं कि तुम दूसरों के ऊपर तानाशाही थोप दूसरों की बहन बेटियों को अपहित करके ले जाओ यह गुंडा गर्ती नहीं है तुम ऐसे व्यक्ति को वीर कह सकते हो मैं
तो गुंडा करता हूं तुम्हारी अपनी अपनी व्याख्या लेकिन मेरी व्याख्या जो किसी को उसकी इच्छा के विपरीत जीने देता है या बाध्य करता है वह डिक्टेटर है और डिक्टेटर गुंडा होता है महावरी ने भगवान महावीर ने एक बड़ा सुंदर शब्द कहा है मानवता को जीवन का सुंदर से सुंदर सबक सिखाने वाला महावीर वर्धमान इन शब्दों को अपने हृदय पर लिख लेना बड़े कीमती शब्द है बहुत बार सुने होंगे भीतर उतरे ना होंगे व शब्द है जीयो और जीने दो तुम अपनी शक्तियों को दूसरे के जीने में बाधा बनने के लिए प्रयोग ना करो साधक बनने के लिए प्रयोग करो तो
शुभ कोई गिरा पड़ा उसको अपनी शक्ति से उठा दो और तुम अपनी शक्ति से किसी की बहन बेटियों को अपत भी कर सकते हो विषम पिता ने यही किया बाहर से देखने में बड़ा त्यागी लगता है यह व्यक्ति लेकिन परिणाम बता देता है किसने किया क्या था इस विराट सृष्टि का मालिक कोई डू खडू नाथ नहीं है यह समझ लेना मैं तुम्हें एक बात कही कि जिस दिन एक जर्रा बनाने के योग्य कोई हो जाए उस दिन भगवान का नाम ले उस दिन वो योग्य होता है उस दिन उसमें थोड़ी सी प्रतिभा आती है कि भगवान का नाम ले उससे पहले तो अगर कोई कहे कि भगवान नहीं है तो वह ठीक कहता है वो योग्य भी
नहीं है भगवान का नाम लेने का यहां आचार्य ग इनलाइटनमेंट होती नहीं और एनलाइन व्यक्तियों के भजन गाते हैं एन लाइटन सिद्ध पुरुषों के संत पुरुषों की व्याख्या बदलती हैं भाषाएं बदल द है परिभाषाएं बदल दी है क्योंकि कंपीटीटर दिमाग है और दिमाग से हर चीज को सॉल्व करना चाहते हैं और मैंने तुम्हें पहले ही कहा कि जीवन गणित नहीं है जो बुद्धि से हल किया जा सके इसलिए संत कहता है अगर जीवन को देखना है जीवन को जानना है जीवन को छूना है तो बुद्धि को एक तरफ रख लो जैसे हम मंदिर में जाने से पहले जतियो को ड़ी के बाहर निकाल के आते
हैं ऐसे ही उस अपने भीतर के मंदिर में प्रवेश करने से पहले बुद्धि रूपी जतियो को बाहर निकाल दो एक तरफ रख लो यह बाधा फिर क्या हम बुद्धिहीन होकर जाएं नहीं बुद्धि शून्य हो के जाओ बुद्धि से लगाव तोड़ दो जब भीतर जाना हो हम मंदिर में प्रवेश करते हैं जूतियां को डोली के बाहर निकाल के आते हैं जब संसार में वापस जाते हैं क्या जतियो को वही छोड़ जाते हैं नहीं ना जब संसार में जाते हैं तो उन जतियो को फिर पहन लेते हैं क्योंकि संसार में कंकड़ है पत्थर हैं शीशा है टूटा फूटा पाव में छुप जाएगा यहां जरूरत है बुद्धि की यहां जूतियां
चाहिए लेकिन मंदिर में जूतिया नहीं चा मुश्किल तब खड़ी होती है और तुम कहते हो हाथ तो कुछ लगा नहीं बिल्कुल नहीं लगेगा क्योंकि अगर तुम जूतियां डाले डाले मंदिर में प्रवेश करोगे तो गंदगी खिलार ग बिखे हो ग और बुद्धि सब दूषित कर देती है जहां जाती है बुद्धि सरल नहीं है जिंदगी अति सरल है जहां तुमने जाना है इस दृष्टि से जहां तुमने जाना है और बड़ा सरल है बुद्धि बड़ी कॉम्प्लिकेटेड है बाहर के हिसाब से गणित बड़ा सरल है बुद्धि के लिए जीवन बड़ा जटल है जीवन के लिए बुद्धि जटिल है ये दोनों वा वर्ष हस्तपुर की रक्षा का वचन लेने वाले विश्व
यह भूल जाते हैं कि अगर कौरव हस्तिनापुर के अंग हैं तो पांडव भी हस्तपुर के अंग है यहां पाप हो जाता है लाक्षा ग्र में उनको जलाने का षड्यंत्र होता है कुंती समेत लेकिन भीष्म कुछ नहीं बोलते विदुर को पता होता है विदुर सबसे पहली खबर भीष्म को देते हैं इसलिए विदुर परम सुखी रहे आखिर तक क्योंकि वो दासी पुत्र थे और उन्होंने सत्य का सहारा लिया उन्होंने ऐसा कर्म ही नहीं किया लफड़े में पढ़ने का कि हम त्याग करेंगे हम राष्ट्र का निर्माण करेंगे हम राष्ट्र की रक्षा करेंगे राष्ट्र की रक्षा तो भाई यह सैनिक करते हैं यह
हैं जो सही दुश्मनों को हमारे क्षेत्र में प्रवेश नहीं करने देते तुम तो सिर्फ नाम कमाने वाले हो तो भीष्म पिता मैंने यह नहीं सोचा कि कौरव भी इंद्र प्रस्त है और पांडव भी इंद्र प्रस्त है और दोनों की रक्षा का सामूहिक दायित्व मेरे पर है मैंने वचन लिया है तो क्या बात कौरवों के लिए काम क्यों किया युद्ध की वेला जब आई तो कृष्ण इसी ताक में थे कि भीष्म फैसला लेंगे क्या क्योंकि भीष्म प्रतिज्ञा गत है कि मैं हस्तिनापुर की रक्षा करूंगा तो हस्तिनापुर की रक्षा का मतलब गौरव और पांडव दोनों है बस यही देखना चाहते थे कृष्ण क्योंकि सब डिपेंड था भीष्म पिता मा
प ना गुरु द्रोण इतने बली थे ना ही कोई और योद्धा इतना बली था इसलिए सबसे ज्यादा युद्ध लड़ा भीष्म ने वह महारथ गिराने में बड़ा वक्त और शक्ति खराब करनी पड़ अगर वह एक आदमी हथियार गरा देता कि नहीं देखो मैं वचनबद्ध हूं दोनों के लिए जिस वक्त मैंने रक्षा का प्रण लिया उस वक्त कोरव भी थे पांडव भी थे तमाम हस्तिनापुर की रक्षा का मैंने वचन लिया था अब कौरवों के पक्ष में अकेला क्यों खड़ा हो गया यही देखना चाहते थे कृष्ण जब कृष्ण को बंदी बनाने की घोषणा उस अदने से दुर्योधन ने की के बंदी बना लो इस ग्वाले को अहंकार सदा ही ऐसा करता है अहंकार सदा ही अपनी
औकात कभी नहीं देखता अकार सदा कहता है कि मैं हूं जहां वहीं है सब समृद्धि जहां मैं नहीं हूंगा मुर्गा जहां नहीं होगा वह सूरज नहीं निकलेगा क्योंकि मुर्गा बांग नहीं देगा सूरज निकला कैसे मुर्गे की बांग से निकलता है सूरज उसे पता नहीं कि मुर्गे की बांग से सूरज नहीं निकलता सूरज को मुर्गे की बांग से कुछ लेना देना नहीं सूरज बह रहा है सूरज को सुना ही नहीं पड़ता वह तो अपने वक्त पर उगता है और वक्त प जाता है लेकिन मुर्गा य भ्रम पा लेता है मेरे बाग देने से उगता है सूरज ऐसा ही अहंकारी व्यक्ति होता है मैं हूं तो मुमकिन है अहंकारी व्यक्ति परम
अहंकारी व्यक्ति का लक्ष और ऐसे ही व्यक्ति वक्त की गर्त में वक्त ही छुपा देता है गिरा देता है कहां है नेपोलियन बोनापार्ट जो कहता था इंपॉसिबल वर्ड इज नॉट फाउंड इन माय डिक्शनरी असंभव शब्द मेरे शब्द कोष में है नहीं कहां है वो अब देखिए क्या हुआ कैसे फल मिला भीष्म को जब भीषण भीतर अपने भीतर उतरे भीष्म तो सत्य सामने प्रकट हो जाता है क्योंकि जिस तल पर जाकर हिसाब होता है वो तल निष्पक्ष है जहां लेखा जोखा होता है कर्मों का वहां वातावरण निष्पक्षता का होता है न्याल में आपने देखा कितनी निष्पक्षता होती है कितनी
शांति कुहल जरा भी नहीं होता शोर बोल नहीं होता क्योंकि फैसला लेने वाला सन्नाटे में बैठा हो वहां कोई शोर शराबा नहीं होना चाहिए बस ऐसा ही तुम्हारे भीतर है जहां जाकर तुम तुम अपने ही जीवन के हिसाब किताब का आकन करते हो वहां परम सन्नाटा है वहीं से उद्गम होता है य तुम्हारा अनत नाथ वहीं जाकर तुम्हें हिसाब किताब करना होता है कितनी शांति है व तुम कैसे झूठ बोलोगे होगा जब परलोक में तेरा हिसाब लोक बदल जाता है जब बाहर लोक है वह अंतर का लोक है वहां हिसाब होता है जहां परम सन्नाटा है होगा जब परलोक में तेरा हिसाब
कैसे मुक रोगे बता दो ऐ जना जब वही जब वही तेरी निकाली जाएगे जब तेरी डोली निकाली जाएगी बे महूरत के उठा ली जाएगी बस यही है गाथा मनुष्य के बिछा दो शतरंज की चाले कर लो इकट्ठा दुनिया भर का कूड़ा होगा जब परलोक में तेरा हिसाब कैसे मुक रोगे बता दो ए जनाब जब तेरी जब वही तेरी निकाली जाएगी उस वही को कैसे हम कर सकोगे जनाब तुम साक्षी हो तुम साक्षी हो अपने कर्मों के तुम कैसे से मुक ग और वहां जाकर जहां मुक मुकरा जा नहीं सकता वहां वातावरण ही ऐसा है वहां जाकर व्यक्ति झूठ नहीं बोल सकता वहां जाते हैं भीष्म देखते हैं मैंने
क्या कुछ किया प्रतिज्ञा की थी हस्तिनापुर की रक्षा के लिए हस्तिनापुर के प्रत्येक जीव जंतु के लिए और इतने कत्ल गारत का जिम्मेवार सिर्फ मैं और सिर्फ मैं हूं अगर पहले दिन भीष्म कह देते कि मैं नहीं लडूंगा किसी की तरफ से ना कोरव ना पांडव मेरे लिए तो पहले पांडव राजा था अब धृतराष्ट्र राजा है मैंने दोनों की रक्षा का वचन दिया है मैं पक्षपात नहीं करूंगा मैं नहीं लडूंगा और वैसे भी ू सबसे बुजुर्ग हूं सबका रखवाला हूं उम्र का भी तकाजा है पदे का भी तकाजा है और प्रतिबद्ध भी हूं मैं अपने वचनों में इसलिए ना कर्व की
तरफ से ना पांडव की तरफ से मैं नहीं लडूंगा तुम्हारा क्या ख्याल है गुरु द्रोण के बल के ऊपर अश्वथामा के बल के ऊपर दुर्योधन यह जुरत कर सकता था कि शंखनाद कर दे नहीं शंखनाद किया भीष्म पता मने किया उसने सब काम भीष्म से करवाए फस गया बेचारा भीष्म इसलिए तुम्हें शिक्षा दे तुम्हारा राजा अगर तुमसे गलत काम करवाता है देना तुम्हें पड़ेगा राजा के रुतबे का डर मत मानना डर मानना अपने कर्मों के लेखे जोखे का हिसाब तुम्हें देना पड़ेगा राजा खिसक जाएगा राजा के पास सब कुछ है लेकिन कैसे मुगे वहां पर जनाब जब वही तेरी निकाली
जाएगी तुम नहीं मुक सकते वहां जाकर बिल्कुल नहीं मुक सकते प्रतिज्ञा ली थी अपने बाप के लिए इसको ज्यादा तूल या रबड़ की तरह खींचने की आवश्यकता नहीं थी बैसे यही गलती खा गए विषम तुमने पूछा सबसे बड़ी सजा विषम को क्यों कारण ही भीष्म भीष्म को निकाल दो इस सारी महाभारत में से भीष्म को निकाल दो युद्ध नहीं होगा फिर कृष्ण भी नहीं आएंगे भीष्म को भीष्म को न्यूट्रलाइज करने के लिए कृष्ण को आना पड़ क्योंकि महारथ है आत्म ज्ञानी है कुछ थोड़े से लोग आत्मज्ञानी थे महाभारत में वेदव्यास जो संजय को दिव्य दृष्टि दे गए विश्व पितामह थ कृपा
जा कुछ थोड़े से लोग थे जो प्रबुद्ध थे वो जानते थे विदुर विदुर थे इसलिए तो कृष्ण की पटी विदुर के साथ कृष्ण ने दुर्योधन के मेवे त्याग दिए विदुर के घर का साग खा लिया उसके साथ तरंगे जती थी दुर्योधन के पास तो बैठने से आसानी और लासानी तरंगे आपस में बढ़ते थ वो तो एक सभागार में बैठ भी नहीं सकते थे अहंकार सदा ही चेष्टा करता है कि जिस सभागार में कृष्ण बैठे वहां मैं भी बैठूं और दुर्योधन सभी जगह मौजूद रहा मुंह की खाके आना पड़ा शिशुपाल के वक्त भी वो था लेकिन जब कृष्ण ने उसकी गर्दन काट दी पर दुर्योधन के पास तो रथ तैयार होते
हैं भागने के लिए दुर्योधन एक मिनट नहीं रुकते क्योंकि कायर है और कायर की परिभाषा मेरी सुन लो जो मृत्यु से डरता वो कायर जो अपने साथ फोज लेकर चलता सात सात दीवारों के साथ बैकार जो अपने सुरक्षा कबज के घरे में चलता वो कायल निडर तो अकेले चला करते हैं शेरों की तरह शेरों ने कभी सुरक्षा बंदोबस्त किया मर भी जाएगा तो क्या है मरना तो एक दिन है वैसे भी जनाब तुम कहीं छिप जाना मृत्यु ऐसी शानदार शय है वह तुम्हें सात प्रकट के भीतर से भी ढूंढ लेगी अभी मैंने सुना वैज्ञानिकों ने एक कपड़ा तैयार किया कि उसके भीतर पड़ी हुई चीज दिखाई नहीं देती लेकिन
मृत्यु को दिख जाएगी तुम लाख उड़े फिरो वह देख लेगी तुम कहां छपे यह ईश्वर की सृष्टि का विधान बड़ा गजब का है भीष्म को क्यों मिला दंड क्योंकि तुम्हारी सारी व्याख्या गलत है तुम दूसरों को न्यायाधीशों की तरह दंडाधिकारी समझते हो जबकि दूसरे दंडाधिकारी नहीं तुम ही हो दंडाधिकारी स्वयं के कर्मों का कैसे मु करोगे जनाब दूसरा तो फैसला सुना सकता है न्याय नहीं कर सकता इसलिए मैं रोज कहता हूं तुम्हारे में फैसले होते हैं न्याय नहीं होता क्योंकि जिसके बलबूते पर न्यायधीश फैसला लेता है वह होते हैं गवाह या सबूत और गवाह खरीदे भी जा सकते हैं मुकरा
भी जा सकते हैं गहा मारे भी जा सकते हैं गहा का वजूद भी खत्म किया जा सकता है गहा डराए भी जा सकते हैं गवाह गलत है लेकिन तुम्हारे पास और कोई तरीका भी नहीं लेकिन परमात्मा के पास तो बड़ा शानदार तरीका है और उसका तरीका कभी फेल नहीं होगा उसका तरीका सदा कामयाब दंडाधिकारी तुम ही तुम्हारे ही कर्मों के यह समझ लेना बात को होगा जब परलोक में तेरा हिसाब कौन करेगा तू ही करेगा कैसे मु करोगे बता जनाब जब वही तेरी निकाली जाएगी तुम ही खोलोगे तुम्हारी ही कंप्यूटर को लोगे तुमने ही देख हैं सभी कर्म तु मुक नहीं सकते तुम साक्षी हो
साक्षी कैसे मुक सकता है वह खरीदा नहीं जाता वह बिकता नहीं वह लोभ नहीं ता इसलिए तो बाबा ने कहा निर् निर्वैर अकाल मूरत अजूनी सेपम गुर प्रसाद ना डराया जा सकता है य माटी का पुतला डराया जा सकता है यह माटी का पुतला लोभ दिखाई जा सकता है खरीदा जा सकता है खरीद लो पहले दिन डर दिखा दो इतना गपला किया है भी तुमने और चक्की पीसिंग पीसिंग अगले दिन वो तुम्हारे पास आ ऐसा म सीधी सी विसात है राजनीति की लेकिन एक बात तुम्हें बता दूं लाख तरले मारकर तुम राज कर लो बात राज की कहां है बात तृप्ति की है वह जो एक झोपड़े में बैठा हुआ
फकीर एक पल में तृप्ति का का आनंद ले लेता है जनाब तुम हजारों साल राज करके नहीं ले सकते उतना आनंद एक पल के भीतर टूटे हुए झोपड़े के भीतर बैठा हुआ वो अलमस्त फकीर एक पल में जितना आनंद और लुत्फ उठा लेता है तुम हजारों सालों के राज के बाद उसका तुल नता ही सकल मिली जो सुख लभ सत्संग तुम्हें उसके एक क्षण का खाश भी नहीं मिलेगा कितना हीराज करलो कर लो कौन रोकता है संत तुम्हें सिर्फ राह बता सकता है संत तुम्हारी बाह पकड़ के खींचेगा नहीं संत इतना हिंसक नहीं है संत इतना अहिंसक है कि तुम्हें मार्ग बताएगा देखो आगे कुआ
है डूबना है डूब जाओ नहीं डूबना रुक जाओ मर्जी तुम्हारी लेकिन आगे कुआ जिस सीध में तुम जा रहे हो अंधे हो मुझे पता है हाथ में में लटिया है लेकिन मैं आंखों से देखता हूं सामने कुआ है जिस स्ट्रेट लाइन में तुम चल रहे हो और तुम गिरो कुए में गिरोगे डूबना है डूब जाओ रुकना है रुक जाओ मर्जी तुम्हारी बताना मेरा काम मार्गदर्शन करना संतों का काम और यह मार्गदर्शन ही तुम्हारे लिए वरदान बन जाएगा क्योंकि अगर मार्ग से ही पकड़ लिया तुमने तो चल तो तुम लोगे ही चलना कोई मुश्किल नहीं गलत रास्तों पर भी दुनिया चलती है सही रास्तों पर भी दुनिया चलती
है अगर तुम्हें मार्गदर्शन सही मिल जाए तो तुम्हारी बहुत मशक्कत और शक्ति बच जाएगी और तुम वह आनंद जो लाखों सालों बाद प्राकृतिक रूप से पाते व अभी अभी अभी इसी घड़ी पागे बहुत मुश्किल है नहीं जनाब इतना तुम समझते हो इतनी विसात क्यों ये इतनी माथा कपाई क्यों बेवजा कुछ नहीं निकलेगा लेकिन संत तुम्हें करने से रोकता नहीं संत कहता है तुम जो कर रहे हो करो तुम्हें आनंद आता होगा लेकिन अब आनंद आता है करने में आनंद आता है कर्म होगा जब पर रोक में तेरा हिसाब और तुम खुद ही करोगे हिसाब विषम खुद ही हिसाब करते हैं और भीष्म के पाप इतने ज्यादा थे के
वरदान होते हुए भी पहले दिन वो शरीर छोड़ सकता था लेकिन उसने छोड़ा नहीं क्यों जा को मैं दारुण दुख देही ताकि मत पहले हर उसकी मति हरली नहीं तो मकर संक्रांति के बाद जरा सूर्य उत्तरायण में आ जाए वह काल की वेला जानबूझकर लेट कर दी गई प्रकृति तुम्हारा विवेक हरण कर लेती है अगर तुम्हें दुख देना होता है बाद में तुम सोचते हो का है कोई उत्तरायण के अंदर और लोगों ने तो पकड़ लिया उत्तरायण के अंदर सूर्य आ जाए तो क्या बदल जाता है तुमने कुछ बदला देखा अभी कल ही उत्तरायण में आया सूर्य 855 में कुछ बदला कुछ नहीं बदला हर बार आता
है चारों स्थानों पर आता है लेकिन कुछ बदलता तुमने कभी देखा कुछ नहीं बदलता सिर्फ लोभी लोगों की मोज लग जाती है वो भी मोज कहनों को होती है किसी के साथ ठगी मारना किसी का धन लूट लेना किसी को मूर्ख बना लेना व उसको मौज कहते हो कि तुम तुम्हारी परिभाषाएं गलत है इसलिए तुम दुखी हो संत लेश मात्र वक्त के लिए भी दुखी नहीं होता तुम उसे दर्द दे सकते हो ध्यान रखना तुम उसको दर्द दे सकते हो दुख नहीं दे सकते दुखी तो व कभी होगा ही नहीं क्योंकि वह उस स्थान पर बैठ गया है जहां दुख की आंख पचती नहीं जहां सुख ही सुख है आनंद का परम बगीचा सुगंध
मान मस्ती की खुमारी मद मस्ती खुमार सदा चढ़ा रहता है आनंद सदा छाया रहता है और तुम उस समुद्र के भीतर अठ के लिया करते हो लेकिन बात तुम परमात्मा की करते हो और मैंने तुम्हें आज एक शब्द कहा जिस दिन तुम इस जहान का सृष्टि का एक जर्रा रेत का जिसे तुम घटिया से घटिया समझते हो हम कहते हैं सब मिट्टी हो गया मिट्टी का जिस दिन धूल का एक कन बनाने के योग हो जाओ या पानी की एक बूंद का एक एटम बनाने के योग हो जाओ उसन भगवान का नाम लेना उससे पहले नहीं ऐसे ही लोग कह देते हैं कि नहीं है परमात्मा मार्कस जैसे वह अपनी जगह ठीक है सामाजिक वितरण प्रणाली
को ठीक करने की कवायत है वह समझते हैं कि इससे सब ठीक हो जाएगा ठीक वगैरा कुछ नहीं होता जिसको बना के गए थे मार्कस आज वह क्या है बात तो शांति की होती है ना आज बमब के गोले फट रहे हैं तुम्हें शांति मिलती है जिसको बना के गए थे किसके लिए बना के गए थे बस यह भूल जाते हो तुम संत इस चीज को पहचानता है जानता है तुम जो भी कर्म करो उसमें लक्ष्य रखो तृप्ति का तो तुम कभी डूबो ग नहीं लक्ष्य रखोगे संग्रहण का तो तुम डूबो ग ही डूबो ग लक्ष्य रखोगे राज करने का तो डूबे हुए ही हो लक्ष्य रखोगे तृप्ति का फिर तुम्हें समझा जाएग तृप्ति को तुम मप दंड बना लेना
तराज की तृप्ति की तराजू पर कसना हर कर्म को जो तृप्ति देता हो व पुण्य जो तृप्ति ना देता हो आग लगा देता हो भीतर व पाप ये मेरी परिभाषा याद कर लेना जो कर्म तुम्हें तृप्ति देता है वह पुण्य जो तुम्हारा रोवा रोवा तृप्त कर जाता है वह पुण्य जो तुम्हारा रोवा रोवा आग लगा देता है वो पाप इसको एक मापदंड की तरह ले लेना एक तराजू की तरह ले लेना एक मेजरमेंट की तरह ले लेना फिर तुम कर्म करना मौज से करना कभी खता नहीं खाओगे होगा जब परलोक में ते तेरा हिसाब कैसे मुख रो ग बता दो ऐ जना जब वही तेरी निकाली जाएगी जब तेरी डोली
निकाली जाएगी बे महूरत के उठा ली जाएगी जब [संगीत] तेरी श्री कृष्ण गोविंद हरे [संगीत] मुरारी हे नाथ नाराय यन वासुदेवा श्री कृष्ण गोविंद हरे मुरारी हे नाथ नारायण वासुदेवा श्री कृष्ण गोविंद कृष्णा कृष्णा कृष्णा हरे हरे हरे कृष्ण गोविंद हरे मुरारी हे नाथ नारा यन वासुदेव श्री कृष्ण गोविंद हरे मुरा हे नाथ [संगीत] नारायण वासुदेवा कृष्णा कृष्णा हरे हरे श्री कृष्ण गोविंद हरे [संगीत] मुरारी हे नाथ [संगीत] नारायण वासुदेवा मात [संगीत] स्वामी सखा हमारे वितु मात स्वामी सखा हमारे हमारे हमारे हमा [संगीत] रे पित मात
स्वामी सखा हमारे हे नाथ नारायण वासुदेवा श्री कृष्ण गोविंद हरे हरे मुरा [प्रशंसा] मुरारी हे नाथ नारायण वासुदेवा पितु मात स्वामी स्वामी स्वामी स्वामी स्वामी पितु मात स्वामी सखा हमारे हे नाथ नारायण वासुदेव श्री कृष्ण गोविंद हरे हरे मुरारी हे नाथ नारायण वासुदेवा धन्यवाद
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