शून्य के पार क्या है ओंकार के नाद के पार क्या है प्रश्न पूछा है जैसे जैसे आप भीतर उतरो ग आपको शोरगुल सुनाई पड़ेगा विचारों का वासनाओं का कल्पनाओं का भविष्य की योजनाओं अतीत की दुखदाई और सुखदाई समृति इनसे सामना होगा और अगर आप टके रहे जैसे गंद ले पानी को अगर आपने विश्राम दिया गजोल नहीं मारी हाथ नहीं मारा तो धीरे धीरे सारी माटी नीचे बॉटम पर बैठ जाए जैसे ही विचार आए वासना आए कल्पनाएं योजनाए भविष्य की या चिंताएं या अतीत की समृति आपको निराश करें दुख में दग नहीं उदासीन बने रहना विदाउट एनी इफेक्ट विदाउट एनी
रिएक्शन ना पीछे दौड़ना ना उनको भगाना आप अपने स्थान में यथावत बने रहना सबसे पहला आपका सामना होगा अपने ही विचारों से अपने ही भीतर की वासनाओं से यह भीतर थीम आपको सुनाई नहीं पड़ रहा क्योंकि आप बाहर उलझे हुए थे और भीतर उतरो सबसे पहले सामना इसका होगा फिर झिंकु की आवाज उसकी आवाज के बाद धीरे धीरे धीरे धीरे आपको पूरी शांति नहीं मिलेगी इन अवस्थाओं में कुछ थोड़ी-थोड़ी जिसे हम रक कहते हैं रमक कहते व शेष रह जाएग इतनी उलझन तो नहीं होगी यह तो बहुत ज्यादा दुख की घड़ियों में आप विचरण कर रहे हो दुख घटता जाएगा तकलीफ घटती
जाएगी लेकिन रहेगी पूर्ण विश्रांति नहीं मिलेगी फिर आप और नीचे जाओगे और नीचे जाओगे तो आपका सामना होगा लालच से आपको पता चलेगा बिल्कुल स्पष्ट कि अब मैं इस स्थल पर आ गया हूं कि मैं जो कुछ कहूंगा वो ठीक हो जाए आपको पता चलेगा आपका मन नहीं कहेगा आपके भीतर का अस्तित्व बोलेगा आपसे कि इस वक्त आप इस तल पर हो जो भी आप सोचोगे वही हो जाएगा जो भी आप मांगोगे वही मिल जाएगा तो यह रिद्धि सिद्धियां इनकी मनोकामनाएं सदा से आपके भीतर रही यहां जग ना जाए यह बराबर डर बना रहता है इसलिए संत लोग सदा ही आपको सावधान करते हैं कि आपने अपनी मंजिल की तरफ जाना है
बिल्कुल नाक की सेध में इधर उधर नहीं झांकना कोई रिद्धि कोई सिद्धि कुछ नहीं कर सीधे चले जाना है सबको उपेक्षित भाव से वहीं भी आपने लड़ना नहीं है ना ही आपने स्वीकार करना उपेक्षित भाव से आप अपने ही भीतर गहरे उतरते जाओगे उतरने की चेष्टा नहीं करनी है स्वाभाविक होगा ईट को जब ऊपर से गिराया जाता है तो ईट गिरने की कोशिश नहीं करती फोर्स ऑफ ग्रेविटेशन उसको स्वत ही खींच लेता है ऐसा ही तुम्हारे साथ भी होगा तुम्हारा ध्यान खींचेगा अपने आप आपने कुछ करना नहीं कि जल्दी घर जाऊं जल्दी कूद जाऊ नहीं ऐसा कुछ नहीं ना ही अडॉप्ट करना
है ना ही उसके साथ झगड़ा करना जैसे जैसे आपकी सेंसिटिविटी बढ़ती जाएगी वैसे वैसे आप भीतर प्रवेश करते जाओगे और फिर सभी नाद को क्रॉस करके जिन्ह बुल्ले शाह कहते हैं वाजे नाद हजार जिन्ह बाबा नानक कहते हैं केते राग परीस क केते गावन हार कितनी राग रागनिया गा रही बड़ा सुंदर संगीत बज रहा है लेकिन आपने उलझना नहीं बेहोश करेगा मदहोश करेगा लालच खींचेगा अतीत की पुरानी आदत रही है इस लालच को पाने की इसमें उलझने की यह लालच ही तो है कि आज ग्राम के सबसे अमीर सबसे से बड़े उदे दार फिर स्टेट के सबसे बड़े अमीर सबसे बड़े उदे दार फिर देश के सबसे
बड़े अमीर सबसे बड़े उ देदार यह लालची तो है यहां आपका लालच पूरा होगा और आपने संभल जाना है आपने सावधानी बरतनी सावधानी हटी दुर्घटना घ होशियार यार जानी यह रास्ता ठगों का यह ठग है आपको ठग लेंगे मुख्य स्रोत के पास पहुंचने से रोक लेंगे क्योंकि आपने ऐसा चाहा भी था सदा से चाहा था जन्मों जन्मों से ऐसा चाहा था आज मिल रहा है आज क्यों ना अडॉप्ट कर लेकिन धीरज रखना यहां गुरु की जरूरत पड़ती है यहां चेता आएगा ठहरो छोड़ दो इसे हसो मत आगे चलो पहले बताया था तुम्हें यह सभी चीजें आए वहा गुरु चेत आएगा आगे चलो ओंकार का नाद
आएगा ओंकार का नाद क्या आखिरी है उका का नाद भी आखरी धुन नहीं है जो भी एक धुन है और धुन शोर गल है चाहे मीठा ही क्यों ना वो शोरगुल कड़वा था यह शोरगुल मीठा है लेकिन उलझा है ये धिया सिद्धियां भी तो बड़ी मीठी थी आपको सब कुछ दे रही थी इनको भी ठुकराना है और ओम की आवाज आएगी बस वहां तक तो आप बचोगे भी नहीं ओंकार के आगे क्या है ओंकार को सुनते सुनते आप वहां कुछ कर नहीं सकते आपकी कोई पेश नहीं चलती यहां से आपका सर्कल समाप्त हुआ आप चाहते हुए भी कुछ नहीं कर सकते और चाहोगे भी नहीं इतना आनंद का स्रोत उसके पास बैठे प्रभु की
गुंजारी सुन रहे जाने का मन नहीं करेगा लेकिन उसके आगे भी कुछ है ये भी हल्की सी मीठी मठी एक तान है मीठा शोरगुल कहता हूं मैं इसे लेकिन आप यहां कुछ नहीं कर सकते यू आर हेल्पलेस हेयर यहां आप स्मत उससे आगे धीरे-धीरे धीरे-धीरे अब ईश्वर का काम शुरू हो चुका है व आपको ले जाएगा जहां लेकर जाना चाहता है ओंकार के नाद से आगे आएगा शून्य शून्य बस वहां कोई आवाज नहीं वहां कोई नाद नहीं वहां इतना सा भी वहां पिन ड्रॉप भी नहीं सुई भी नहीं गिरेगी और सुन से भी आगे है वो कहा नहीं जा सकता शब्द यहां तक पहुंच ही नहीं पाते सब तो बहुत
पीछे रह जाते तो सुनिए शब्द को कबीर क्या कहते हैं सुन मरे सबसे पहले आपका शरीर सुन होगा मन सुन होगा विचार उठने बंद होंगे पहले विचार आएंगे फिर विचार उठने बंद होंगे रुकेंगे फिर आप नीचे उतरो सुनन मरे अजपा मरे ये अजपा ये अजपा वही जाप है जो आपने किसी वत किसी वक्त किसी अज्ञानी गुरु के कहने से शुरू किया था जैसे हम पहाड़ियों में आप कभी गए हो तो देखना वहां पर आवाज लगाना अपना ही नाम लेना ऊंचे आवाज करना राम आवाज गूंजे गी आपकी तो वापस आएगी कितनी ही बार वापस आएगी वो एक बार की बोली गई आवाज राम राम राम राम ऐसे आएगी
आवाज शून्य में पहुंची गई आवाज वापस टकरा के आपके पास आएगी पहाड़ियों में यह वही जाप है जो आपने किसी व्यक्ति के पीछे लगकर जाप किया था किसी वक्त नाम चाहे कोई भी हो अल्लाह वाले को अल्लाह सुनेगा सतनाम वाले को सतनाम सुनेगा वाहेगुरु वाले को वाहेगुरु सुना क्योंकि यही नाम जपा है वही आएगा प्रतिध्वनि तो हो के इसको अजपा जाप कहते हैं इसको अजपा जाप सिद्धि कहते हैं लेकिन शोर यह भी मचाएगी राम हो या कोई भी आपकी लिपी से गणित जो नाम आपने जपा जो आपने बोला वो पहाड़ियों से टकरा के जैसे वापस आता है अनंत बार वैसे ही आपका
बोला गया नाम यहां पर अजपा नाथ आप नहीं जपोगे आपने तो बोल दिया आपने एक बार बोल दिया हजार बार बोल दिया करोड़ बार बोल दिया वो उतनी ही बार आपके पास वापस आएगा आप यहां पर वक्त लग सकता है वो सारा मिटेगा स्वतः मिटेगा डिलीट होगा उतना ही वक्त लगेगा जितना आपने जपा होगा इसलिए मैं कहा करता हूं जप मत करो यह बाद में आपको डिलीट करना पड़ेगा आपके भीतर को अंतस को डिलीट करना होगा देरी हो जाओगी आपके पहुंचने में वक्त ज्यादा लगेगा अपा सुनन मरे अजपा मरे फिर अनत अब अजपा तो आपने जपा था अनत तो आपने नहीं जपा था अनत तो दो चीजों के टकराव से
बिना जो ध्वनि पैदा हुई थी तो वो ध्वनि लेकिन हल्का सा शोर था उसम अन आहत सुन मरे अजपा मरे यह दोनों खत्म उससे आगे चलो अनहद भी मर जाए ये अनाहत नाद जो स्वत से गूंज रहा है बाहर के सन्नाटे की रात्रि के सन्नाटे की तरह वह भी मरेगा अनहद भी मर जाए जिस अनाहत की नाद की मैं बात करता हूं बारबार यह भी मरेगा सुन मरे अजपा मरे अजपा जो आपने जपा था वह सिद्ध हो गया अब आप नहीं जपोगे अब वह आप सुनोगे लेकिन जपा हुआ आपका प्रति ध्वनित ही हो रहा है अनहद भी मर जाए अब यह आपने जपा भी नहीं ये अन आहत जो दो चीजों के बिना टकराए से उत्पन्न हुआ रात के सन्नाटे की
तरह जैसे झिंगर दो चीजों के टकरा से पैदा नहीं हो यह अन आहत यह भी मर सुन मरे अजपा मरे अनहद भी मर जाए यह अनाहत नाथ भी मरेगा उससे आगे मरने का मतलब उससे आगे निकल रहे हो आप यू आर गोइंग ऑन द वे राइट वे अपने आप जा रहे हो य आपका प्रयास नहीं काम करेगा बस आपको छोड़ना होगा सिर्फ आपको छोड़ना होगा उस ईश्वर पर समर्पित करना होगा मेरी तो यही अर्जी कर वही जो तेरी मर्जी बस समर्पण भाव से बैठे रहना खुद करेगा वो सारा काम सुन जाएगा अजपा मर जाएगा अनहद भी मर जाएगा उससे आगे शून्य आ वहां ओंकार का नाद भी नहीं होगा क्योंकि ओंकार के अनत नाद के भीतर भी
थोड़ी सी प इतनी हल्की सी रमक रह जाएगी शोर की उसका कोई परिमाण नहीं परिमाप नहीं है उसका बियोंड मेजरमेंट है वह शोर शोर नहीं है है तो मीठा लेकिन जिसको हम कह देते हैं एक वक्त आएगा जब वह भी चला जाएगा और बिल्कुल परम मौ और आकाश में आप उतर जाओगे उस महा आकाश आकाश का नाम है शून्य आप बाहर के आकाश को आकाश कहते हैं वह आकाश वो तो तत्व है जिसमें आपके चार एलिमेंट्स बंधे हुए हैं चार तत्व पृथ्वी जल वायु अग्नि यह चारों बंधे हैं आकाश में और पांचवा तत्व जैसे हम चार चीजें बाजार से लेने जाए और एक पोटली में बांधने पांचवी पोटली
आकाश कहलाती है व आकाश वो नहीं जो लोग कहते हैं नैनम छिंदंति शस्त्राणि ऐसे सुंदर सुंदर हाथ पिलाते हैं जिन्होंने तुम्हें मूर्ख बनाया है यह वोह आकाश नहीं यह आकाश तत्व और है ऐसे तो ओंकार का जाप भी आप करते हो वोह नकली है ओंकार का जाप भीतर च वहां तक पहुंचना है क्यों कहते ऋषि क्योंकि उससे आगे सारा काम उसका हो जाता है यहां तक आप खींच सकते हो यहां तक आप थोड़ा सा कसर बाकी रह जाती है किसी चीज के साथ उर जाते हो रिद्धि सिद्धि को एक्सेप्ट कर लेते हो हां खतरा है खतरा खत्म कहां होता है अनहद भी मर जाए जहां आनंद मर जाता
है वहां खतरा समाप्त फिर तो आप कुछ कर भी नहीं सकते फिर तो आपकी सोचन की शक्ति करने की शक्ति समपत हो जाती है ऐसे दीनानाथ को फिर आगे शून्य और महा शून्य उसके आगे महा शून्य तो कबीर कहते हैं ऐसे दीना नाथ को किस विध कहू बखा असमर्थ हो जाते हैं कबीर असमर्थ हो जाते हैं संत कि मैं इसका व्याख्यान अब कैसे कर सुन मरे अजपा मरे अनद भी मर जाए उससे आगे अब जो शून्य महा शून्य आएगा दीना नाथ को ऐसे दिनों के सहारे को ऐसे दीन दुखियों दरिद्र के सहारे को मैं किस विधि कहूं खाय कैसे व्याख्यान करू मैं उसका कोई शब्द वहां काम नहीं आता शब्दों से परे हो जाता
है शब्दा अतीत हो जाता है शब्द परे रह जाते हैं तुम ऐसे घोर अनंत आकाश में विलीन हो जाते हो जहां तुम खुद ही नहीं बचते उसका बखान तुम कैसे करोगे नहीं होता कबीर कहते हैं ऐसे दीनानाथ को किस विद कहू बखाई जो चीज मर जाती है जो चीज पीछे छूट जाती है उसका बखान कर दिया कबीर सन मर जाए सुन मरे अजपा मरे अनहद भी मर जाए आपका अनाहत नाथ भी मरेगा आगे आगे वो शुरू होता है क्षेत्र जिसको हम विराट अस्तित्व कहते हैं वहां कोई ध्वनि भी नहीं आपको सुनाई पड़ती जब आप फैलो ग तो यह ओंकार की ध्वनि आपको नहीं सु प जैसे ही आप एनलाइन होगे फैलो समस्त अस्तित्व में
एकाकार हो जाओगे आप ही आप रह जाओगे तो ओंकार की ध्वनि नहीं सुनेगी उस वक्त महा आकाश महा शून्य वहां तुम पहुंच जाते हो जहां तुम्हारे सिवा और कुछ नहीं तुम्हारा अपना ही विराट अस्तित्व बाकी बचता है और कुछ कुछ बाकी नहीं बचता और कुछ बाकी नहीं सब खो जाता है सब विलीन हो जाता है महा आकाश परम मोन मोन के आगे भी परम मोन मोन में भी कुछ थोड़ी सी हलचल होती है स्सों का चलना ये हृदयं का धड़कना कुछ बाकी होता है लेकिन वहां कुछ नहीं बाकी होता और जब बाकी ही नहीं होता तो वह शब्दों में आएगा कैसे कबीर कहते हैं ऐसे दीनानाथ को किस विद कह
बखा है वो मेरी समर्था से पर वो तो मैं नहीं बोल पाऊंगा वो आपके शब्द बड़े सीमित है आपकी लिपियां बहुत कमजोर है पीछे छूट जाते सब कुछ जब ओंकार की ध्वनि पीछे छूटी शून्य और महा शून्य शुरू हुआ आकाश और महा आकाश शुरू हुआ वहां तो मेरे बस की बात भी नहीं मैं असमर्थ हूं ऐसे दीनानाथ को किस विध कहू बखा कोई विधि नहीं है उसको बोलने की आपकी कोई भी लिपि कितनी भी श्रेष्ठ क्यों ना हो लेकिन किसी भी भाषा में व मैं बोलना पाऊंगा कोई भी इशारा उस तक पहुंचा ना पाऊंगा इशारा करने वाला ही गया तो इशारा करेगा कौन इशारा करने वाला कोई
बचाना शून्य क्या है ओंकार के नाद के परे क्या है ओंकार के नाद के परे क्या है मैंने आपको बता दिया लेकिन जहां तक बोल सकते थे बोल गए संत उससे आगे तो बोला ही नहीं जा सकता क्योंकि बोलने वाला ही समाप्त हो जाता है धन्यवाद
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