जगदीश्वर प्रशाद योग वशिष्ट का एक शब्द निर् विषय हो जाओ इसका क्या अर्थ है
बाबा योग विशिष्ट श्री राम को समझाते हुए कहते हैं समाधि तक जाने का सूत्र है विषय शब्द के दो अर्थ होते हैं विषय सब्जेक्ट को भी कहते हैं और विषय वासनाओं को भी कहते हैं विषय वासना और जो हम सब्जेक्ट पढ़ते हैं जियोलॉजी बटनी फिजिक्स केमिस्ट्री स्विक्स हिस्ट्री यह भी विषय होते हैं दोनों ही अर्थ यहां पर समान रूप से डकते हैं ध्यान रखना अगर तुम विषयो में जाओगे काम क्रोध लोभ मोह अहंकार मध मत सर और [संगीत] भय तो बहर मुखी हो जाओगे और अगर आप विषयों को
पढ़ोगे केमिस्ट्री फिजिक्स जियोलॉजी बटने सिविक्स पैथोलॉजी साइकोलॉजी तो भी बहर मुखी हो जाओगे दोनों विषयों का अर्थ समान है विषय का अर्थ जो तुम्हें बहर मुखी करता है विषय का अर्थ जो तुम्हें स्वय से भटका दे अगर तुम कुछ पढ़ोगे तो भी बाहर भटको ग और अगर तुम कुछ भोगो ग तो भी बाहर भटको ग तो गुरु वशिष्ट भगवान श्री राम से कहते हैं अद्भुत सूत्र है योग विशिष्ट का अति उत्तम यह श्लोक निर्वेश हो जाओ यानी बाहर ना भटको इस संसार में कुछ भी ना त्यागने योग्य है ना भोगने योग्य है यहां कुछ इस पृथ्वी के ऊपर भोगने योग्य कुछ भी नहीं
है फिर भी तुम भोगते हो त्यागने योग्य भी कुछ नहीं है लेकिन फिर भी तुम त्याग हो लेकिन वशिष्ठ कहते हैं कि न तो कुछ त्यागने योग्य है ना कुछ भोगने योग्य है जो तुम्हें बाहर भटका है वह तुम्हें दुख देगा और तुम्हारे अंतस की पुकार है सुख बाहर भटको के मिलेगा दुख दुख कोई चाहता नहीं कौन है जो भरा दुख चाहता है तो विशिष्ट कहते हैं कि सुख की चाहत है प्रत्येक प्राणी को और बाहर भटकाव है बाहर स्थिरता नहीं है स्थिरता है भीतर और जहां भटकाव है वहां दुख है जहां स्थिरता है वहां शांति है तो राम से कहते हैं हे राम विषय में मत
उलझो विषय हीन हो जाओ बड़ा अद्भुत शब्द है तुम्हें दो चीजें भटकाती है एक तो तुम्हारे विकार य सी जो तुम विकार कहते हो ट विकार सात विकार भय मैंने और जोड़ दिया ना जाने क्यों चूक गया वह भी एक विकार है इस सब से ज्यादा तुम्हें बाहर निकालता है मुझे रोज मैसेज आते हैं बाबा भीतर जाता हूं भै हता है डर के मारे बाहर निकल आता हूं इस भय को गिना नहीं गया काम क्रोध लोभ मोह अहंकार मद मत सर भय भूल जबकि वह प्रमुख है हमारे अचेतन मन में 70 प्र तक वह है जिस प्रकार हमारे शरीर में 70 प्रतिशत जल होता है वैसे ही अचेतन मन में इतना ही
भय है भय ना होता तो तुम कब के पहुंच गए होते यह वही है जो तुम्हें भीतर नहीं जाने देता राम कृष्ण ने कहा विवेकानंद ने पूछा था परमात्मा है राम कृष्ण बड़े सरल व्यक्ति थे अध्यात्म में वही व्यक्ति प्रवेश कर सकता है जो सरल हो ओनली दे विल एंटर माय गॉड किंगडम विल बी इनोसेंट जस्ट लाइक अ चाइल्ड सरल होंगे मासूम हो निर्दोष होंगे सरल होना परमात्मा तक पहुंचने की कुंजी है इस गोल्डन वड्स ओनली दे विल एंटर इन माय गॉड किंगडम विल बी इनोसेंट जस्ट लाइक अ चाइड सरल हो जाओ लेकिन तुम चाहते हो सुख को परम सुख को और तुम रोज जटिल होते जाते
हो तो पतंजलि ने कहा कि इन 10 चीजों से व्यक्ति जटल हो जाता है कौन-कौन से दो भागों में विभक्त किया उसने पतंजलि कहते हैं यम और नियम इससे तुम जटिल हो जाते हो तुम झूठ बोलते हो जटिल हो जाते हो इसलिए उसने शुरुआत की सत्य से सत्य अहिंसा अस्ते ब्रह्मचर्य अपरिग्रह जो हिंसा करेगा याद रखना वह हिंसा होने से भी डरेगा जिसने किसी को मार दिया वह इस बात से भी डरेगा कि कोई मुझे ना मार दे इसलिए पतंजलि ने कहा कि तुम हिंसा बंद कर दो अहिंसक हो जाओ और जैन धर्म में तो मोटो ही यही है अहिंसा परमो धर्मा सत्य अहिंसा अस्त चोरी ना
करो किसी और लेवल की बात कर रहे हैं पतंजलि पतंजलि जानते हैं कि दूसरा कोई है नहीं फिर चोरी भी करोगे तो किससे खुद से ही तो कोई थोड़ा चोरी करनी होती है चोरी हमेशा दूसरे से होती है इसलिए बच्चा निर्दोष होता है बच्चा चोरी भी कर देता है तो बता देता है मैंने आपका रुपया चुराया ब्रह्मचर्य अपरिग्रह ब्रह्मचर्य आजकल इसके बहुत से अर्थ होने शुरू हो गए लेकिन असली अर्थ है इसका वीर्य की रक्षा यहां से शुरू करोगे तो ब्रह्म यानी विराट विराट जैसा आचरण तब करोगे जब विराट हो जाओगे सियाराम में सब जग जानी करू प्रणाम जोर जुग पानी
[संगीत] सियाराम में सब जग जाने सारा ब्रह्मांड उस ब्रह्मांड के भीतर सियाराम समाए हुए यह जानकर कण कण में वह मौजूद है प्रणाम करता है ज्ञानी जो जान लेता है वोह ब्रह्म हो गया उसका विस्तार असीम हो गया विराट हो गया बृहद हो गया लेकिन ब्रह्मचर्य का प्राथमिक मतलब वीर्य की रक्षा यह बात अलग है आज पाश्चात्य सभ्यता के भीतर गुम हुए हमारी सनातन संस्कृति के लोग अंधा धुंध र नाश कर एक क्षण की उत्तेजना और तुम इतनी शक्ति खराब कर देते हो और तुम्हें पता नहीं अभी तो डॉक्टर्स को भी पता नहीं अभी वैज्ञानिक भी इस चीज की सही सही
गणना नहीं कर सके वो भी हंसते हैं क्या है दो दिन में फिर बन जाएगा बिल्कुल बन जाएगा लेकिन तुम्हे पता नहीं यह स्पर्म जितना पुराना होगा वह ज में परिवर्तित हो जाएगा उ में परिवर्तित होके देखिए इसका स्थान बिल्कुल कुंडलिनी के पास ओ में परिवर्तित हुआ और सुसुम के द्वारा सहसरा में चढ़ा सीधा सा मार्ग और बिल्कुल करीब लेकिन तुम नीचे के मार्ग से निकालना श्रेष्ठ समझते हो मेरे दंड के भीतर से निकलती हुई सुष मना के भीतर से निकाल के गुजार के इसे सहस में प्रवेश करना तो मैं आता नहीं हमारे पश्चात ऋषियों ने अद्भुत सिद्धांत दिया था आज नहीं
कल एक बात तो साफ है वीर्य की रक्षा अगर नहीं करोगे तो सपने में भी ब्रह्म जैसी चर्या की कामना ना करना क्योंकि यह सिर्फ सिर्फ उसी को उपलब्ध हो सकती है जो काम शक्ति को संग्रहित करता है अप ग्रह जोड़ता नहीं जो क्यों जोड़ेगा जिसका सब कुछ हो गया जो ओमनिपोटेंट ओमनीप्रेजेंट ओमनी सेंट हो गया सब कुछ वह है तो वह जोड़ेगा क्यों अगर कोई जोड़ेगा तो स्पष्ट है कि उसके पास कुछ कमी तभी तो जोड़ता है अपरिग्रह पर ग्रह मत करना तो जितने भी संत हुए जब भूख लगी बुद्ध ने मांग लिया इस सड़क के किनारे खड़े होकर परमात्मा से मांगने लगे भूख लगी है
मुझे भोजन दे दो भगवान तभी मांगा जब आवश्यकता थी यह तो आ गया यम की बात सत्य अहिंसा अस्त ब्रह्मचर्य अपरिग्रह इनसे शुरू करोगे तो तुम उस मुकाम पर पहुंच जाओगे जो निराला है जिससे तुम दूर छिटक गए हो उसी में मिल जाओगे और फिर वही हो जाओगे दूसरा उसने भाग किया नियम पतंजलि ने सोच संतोष तप स्वाध्याय ईश्वर प्राणी धान सोच सचिता सचिता कोई ईर्षा ना आए द्वेष ना आए मैला ना हो मन किसी के साथ वैर भाव ना हो कोई आगजनी ना हो कोई पत्थरबाजी ना प्रेम से रहे वसुदेव कुटुंबकम जैसे कुटुंब में परिवार में सभी जन मिलकर रहते हैं आज तो परिवार में भी झगड़े होते
हैं सोच सुचिता रहे तुम कुछ बोलो वो प्रमाणिक होना चाहिए किसने जो बोला वह प्रमाणिक है यह करुष नहीं बोलेगा यह मन में ईर्ष्या वैर भाव रख के नहीं बोलेगा भीतर कुछ और बाहर कुछ और ऐसा दिखावा नहीं करेगा इसे कहते हैं सोच तुम शरीर को साफ करने को सोच कह देते हो लेकिन इतना सा सोच नहीं होता यह भी है लेकिन मन की करुता भी दूर करो यह ज्यादा जरूरी है सो सुचिता रखो तन से मन से सोच संतोष तृप्त जितना मिल गया उतने में ही सबर करो देखिए अगर विराट आनंद को पाना है कहीं थोड़ा सा तालमेल बैठाना होगा तुम कहोगे नहीं हमने तो यह खाना है
हम तो यह खाए चाओ मिन चुग्गा खाएंगे खाओ भाई कौन रोकता है पिज्जा खा लो चमन चुग्गा खा लो जो चाहे खा लो लेकिन पतंजलि कहते हैं तालमेल बैठाना पड़ेगा संतोष संतोष रखना होगा जो मिल गया वही नसीब था जो मिल गया उसी को मुकद समझ लिया मुकद्दर समझ लिया जो खो गया मैं उसको बुलाता चला गया हर फिक्र को धुए में उड़ाता चला गया जो मिल गया उसी को मुकद्दर समझ लिया बस इतना ही था जो मिल गया उसी को मुकद्दर समझ लिया इसे सब करते हैं तुम इतनी जल्दबाजी में हो तुम इतने अधैर में हो जो मिल जाता है उसमें संतुष्ट नहीं होते जो खो गया मैं उसको भुला चला
गया जो खो जाता है उसे ढूंढते ही रहते हो अफसोस ही मनाते रहते हो लेकिन जीने का एक सलीका है इन अल्फाज में जीने का सलीका है सब सोच संतोष तप तब का अर्थ है जो भी कुछ करो दृष्टा भाव से करो तब तुम्हारा हाथ हिले तुम्हें पता चले हाथ हिला और यह हाथ हिला यह मैं नहीं हूं यहां से शुरू करना होगा यह मुंह हाल अल्फाज निकले कंठ में से हवा निकले जीवा आवाज दे उलट पुलट हो सब तुम्हें दिखाई पड़े ये तप है इससे बड़ा तप कोई नहीं तुम इस तपश्चार्य को नहीं करते लकड़ी का ठूंठ जला केर उसके सामने बैठ जाते हो भसम लगा के इसे तप समझ लेते
हो एक पांव पर खड़े हो जाते हो इसे तप समझ लेते हो सर्द दिनों में स घड़ा पानी से नहाते हो ठंडे से इससे तप समझते हो यह भी तप तो है लेकिन इसके भीतर अगर 100 घड़ा पानी का गिर है और तुम उस गिरते हुए ठंडे पानी को शरीर के ऊपर निहारते रहो साक्षी भाव से तो यह भी तो तप है अब आजकल कुंभ चल रहा है कुंभ का एक मतलब यह भी था कि संत लोग जो पहुंच गए हैं वो आपको विधियां बताते थे ऐसा करो ऐसा करो लेकिन अंत में निष्कर्ष होता था कि तुम शरीर हो नहीं मन नहीं हो बस इतना ही सीखने जाते थे तुम और इतना ही सिखाने आते थे और कोई कोई व्यक्ति अगर तैयार
होता या थोड़ा सा आराम से सुनना बात को जो व्यक्ति घर पर इतना कर चुका है इतना कर चुका है घर पे के बस करीब है एक छोटा सा झटका जैसे सखा पत्ता गिरे इतनी सी आवाज तुम्हें पहुंचा जाएगी बस इतनी सी कमी है वहां पारखी होते हैं कोई पारखी देखेगा बस थोड़ा सा शक्ति पात करेगा ना जाने कहां क से लोग आते हैं तो एक स्थान बना दिया गया सामूहिक का केंद्र बना दिया गया साधकों के लिए था पाप करने वालों को पाप धोने का यह मौका नहीं था जो अक्सर तुम करते हो वहां पाप नहीं तुलते पाप धुतेरेरे हो तुम कुछ और यह पाप है यह पाप धुल जाए
यह भ्रम टूट जाए यह भंग हो जाए मान्यता तुम्हारी तो पाप ल गए अगर यह टूट जाए तुम्हारी ब्रह्म की स्थिति तो तुम पाप मुक्त हुए भगवान कृष्ण यही कहते हैं अहम तवाम सर्व पापे मुम माच मैं तुम्हें सभी पापों से मुक्त कर दूंगा लेकिन एक शर्त पहले कहते हैं सर्व धर्मानना में कम शरणम बज ना तो हिंदू र ना तो मुसलमान है ना तोत सिख ईसाई और ना जाने कितने कितने और धर्म है कुछ भी ना रहे तो इंसान भी ना रहे सर्व धर्मा प्रत जमा में करने वालों ने तो बहुत अर्थ किए इसके लेकिन एक बात तो मैं पक्का कह दूं कि वो स्थल पर पहुंचे नहीं
थे तत्व की बात इसमें एक ही है वो शब्द है मान एकम मुझे एक की शरण में आ जा एक कौन है एक वही जो सभी संतों ने कहा एक अहम द्वितीय नास्ते एक को ब्रह्म द्वितीय नाथ जो बाबा नानक ने कहा एक ओंकार एक वह एक कौन है उसकी शरण में आ जाओ लेकिन तुम तो अनेकों की शरण में रहते हो तो मंदिर भी चले जाते हो गुरुद्वारा भी चले जाते हो हालांकि तुम्हारा माथा टेकना निकली होता है तुम चर्च भी हो आते हो तुम घर में अखंड पाठ भी खुला देते हो तुम तुलसी की रामायन भी खुला देते हो तुम सुंदर कांड भी खुला देते हो तुम सहज पाठ भी रखवा देते हो सुखमण
साहब तुम एकही चरण में नहीं अभी तुम्हें पता नहीं कि वह एक कौन है और बाबा सबसे पहला शब्द बोलते हैं समाधि के बाद जैसे ही बाहर आते हैं नदिया से पहला शब्द उनके मुख से निकलता है जप जी के रूप में एक ं का वह एक है जहां ओंकार की ध्वनि हो रही है यह लक्षण है यह पहचान वहां जाना है तुमने ओंकार ओंकार का जाप नहीं करना यह शरीर तुम्हें ओंकार का जाप करने के लिए नहीं मिला यह शरीर तो में अपने भीतर जाकर उस ओंकार की जहां ध्वनि गुंजायमान हो रही है जहां से यह ध्वनि उद्गम हो रही है वहां जाना है वाजे नाद अनेक अंखा किते बावन
हारे किते राग परिश कह किते गाव हार वह जहां राग असंख्य प्रकार के रागनिया बज रहे हैं मूल उद्गम से ओंकार की ध्वनि प्रकट हो रही है यह पहचान बताई तुमको वहां पहुंचना है और जब तक वहां ना पहुंचो तुम्हारी सब ड्रामे बाजी है तुम किसी कोने में किसी केंद्र में अध्यात्मिक केंद्र में बैठ के यह करते रहो कुछ ना होगा फिर तो गाने गा लो या गाले निकाल लो या ओंकार का जाप कर लो सब बराबर है कोई शब्द जीवा को पवित्र नहीं करता कोई शब्द जीवा को अपवित्र नहीं करता मन को पवित्र पवित्र कर जाता है क्योंकि तुमने शब्दों के साथ वस्तुओं को जोड़ रखा है
जब तुम शब्दों का नाम लेते हो तो वोह वस्तु सामने आ जाती है बस वह तुम्हारे मन में इमेज बन जाती है तुम कहोगे सेव तो सेव आ जाएगा तु मल मूत्र का नाम लिख लोगे तो वह आ जाएगा शब्द तुमने जो प्रयोग किया उसके साथ अटैचमेंट है तुम्हारी चीजों की वह प्रकट हो जाती हैं लेकिन अगर तुम किसी और शब्द के साथ उसे शुरू में अटैच कर लेते और किसी और चीज के साथ संस्कार बन जाता तुम्हारा उन शब्दों से तो आज तुम जब वह शब्द बोलते तो वह चीज सामने आ जाती तुमने कद्दू का नाम सेब रख लिया होता तो जब तुम सेब बोलते तो तुम्हारे सामने तस्वीर आती कद्दू
की तुमने सेब का नाम कद्दू रुख लिया होता तो जब तुम कद्दू बोलते तुम्हारे सामने तस्वीर आती सेव की ये तुम्हारे संस्कार हैं गहरे होते होते गहरे चले गए आज तुम्हारे मन में इनकी छवि आ जाती है शब्दों के साथ इनका घनिष्ठ समम संबंध तुमने जोड़ लिया है अन्यथा शब्द अपने आप में कोई अहमियत या अर्थ नहीं रखते सोच संतोष तप तप देखो यह धुना कौन ताप रहा है ऐसा ही कर लो धुने के सामने बैठ जाओ तो यह कुंभ की बात में कर रहा था कुंभ में तुम जाते हो वहां ऋषि गण आते हैं पहुंचे हुए लोग आते हैं जिन्होंने आपका जान लिया वो अंतर दृष्टि रखते हैं वो तुम्हारे
आभा मंडल को देख लेते हैं न जाने कहां कहा से विश्व भर से लोग आएंगे और संत भी आएंगे किसी संत का पता नहीं तुम्हे क्योंकि आंखें नहीं अंधे को ना तो सूरज दिखता है ना दिया जल दिखता है ना तारे दिखते हैं अंधे को कुछ भी नहीं दिखता तो ना तो तुहे संत दिखेगा ना ही तुम्हें पिपासु दिखेगा मुमुक्षु ये थोड़ी सी चोट से पहुंच जाएगा उसने अपनी धरा तैयार कर ली है उसने अपनी जमीन प्लो करके पानी देके खाद देके सब तैयार कर लिया है तो गुरु उसमें बीज डाल देगा अंकुरित हो जाएगा बीज जब वह संत देखेगा तुम कहीं से भी आए हो संत तुम्हारी वाणी से तुम्हें नहीं
पहचानता संत के पास एक और आंख है तुम्हें पहचानने की वह उस आंख से तुम्हारा और दिखता है तुम कुछ भी बोले जाओ तुम कहो मैं ज्ञानी से ज्ञान तुम्हारे शब्दों की तरफ व ख्याल नहीं करता इसलिए संत अक्सर बहरा होता है तुम्हारे शब्दों के प्रति व तुम्हारी सुनता नहीं क्योंकि सुनने से ज्यादा देखने पर विस करता है वह जानता है कि जब तुम देख सकते हो इसका ओरा मंडल तो यह क्या कहता है वो तो गलत भी हो सकता है इसकी मान्यता भी हो सकती है यह ब्रह्मी भी हो सकता है और अक्सर तो सारी दुनिया ब्रह्म में पड़ी है और अगर यह संत नहीं जानता तो फिर कौन
जानता है सारी दुनिया ब्रह्म में है संत यह बखूबी जानता है कि सारी दुनिया मैं शरीर हूं यह जानती है जानती बनती कुछ नहीं मैं मन हूं मेरे विचारों को इसने आघात पहुंचा दिया दावा कर देते हो तुम जाके 500 करोड़ का मेरी मान हानि कर दी तो 500 करोड़ और तुम्हारी कीमत कितनी है संत कहते हैं जब यह जलाया जाएगा तो इसके भीतर से पा रप छ आने का माल निकलेगा कितना कैल्शियम कितना फास्फोरस कितना कुछ बचेगा यह पाचर छ आने का माल है और तुमने डिमांड कर दिया 500 करोड़ का अक्सर ही तुम अपनी वैल्यू बढ़ चढ़ के लगा दिया करते हो यह स्वभाव है तुम्हारा
तो संत तुम्हारे पर शक्ति पात करेगा जब वो देखेगा यह तो पूछ पूछ और तुम वहां से तीर्थ स्नान करके आओगे समझ गए हा यह होता है तीर्थ स्नान तुम वहां जाओगे तुम्हें पता भी नहीं लेकिन हल्की हल्की मंद मंद खुशबू आती है क्योंकि वह जब करीब होता है तो उसकी करीबी का एहसास होने लग जाता है कमिंग इवेंट्स कास्ट देयर शैडोज बिफोर आने वाली घटनाएं अपनी परछाइयां पहले से फेंकना शुरू कर देती है मुझे पूछते हैं लोग क्या पता लगे कि हम पहुंचने वाले हैं मैंने कहा सुगंध आनंद की सुगंध आनंद की सुगंध आएगी मन खिला खिला रहेगा मन फूला फूला
रहेगा आनंद की खुशबू से सरार उसके रस को पीता और निर्लिप्त होगा फूल फूल फिरे जगत में कैसा नाता रे कोई नाता नहीं उसका फूला फूला फिरे जगत में कैसा नाता रे उसका कोई कुछ नहीं बाहर से सब निभाएगा अंदर से वो निर्लिप्त रहेगा भीतर की खुशबू उसे निर्लिप्त देती है काहे रे वन ढूंढ जाए वह जो घट घट का वास है वह तेरे संग ही समाया हुआ है सर्व निवासी सदा अलेपा सबके भीतर रमने वाला रोए रोए में रमने वाला वह सदा अलीपा सब में रम भी रहा है और निर्लिप्त भी है अब यह शब्दों में बात समझ नहीं आएगी जो तुम समझना चाहते हो मुझे अक्सर तुम कहते हो समझ नहीं आई बाबा
फिर समझाओ नहीं समझाए मैं फिर समझा देता हूं लेकिन बखूबी जानता हूं कि समझ में फिर भी नहीं आएगा सर्वव्यापी कण कण में मौजूद है सदा अलेपा फिर भी निर्लिप्त है तोहे संग समाई तेरे भीतर ही है कहां ढूंढता है मन में कहे रे बन ढूं न जा काहे रे बन ढूंढने जा सर्वव्यापी सदा अलेपा सर्वव्यापी सदा अलेपा तो है संग समा तो है संग समाज कहे रे रे बन ढूंढने जा सर्व निवासी सर्वव्यापी सदा अलेपा तोहे संग समाय कहीं जाने की आवश्यकता नहीं लेकिन क्या करें लोभी लालची तुम्हें कुछ शब्दों के भ्रम जाल में फैलाकर भ्रम देते हैं कि हां बता दिया
उपनिषद उपनिषद बताया तो यह अपने उस अंश के करीब पहुंचे क्यों नहीं क्यों नहीं गए अपने उस तल पर सारी गीता तुमने समझा दी लेकिन गीत तो नहीं गाया गया अष्टावक्र तो समझा देते हैं य लेकिन इनके भीतर वह आठ चक्र बने ही रहते हैं अज्ञान के मंतव्य कोई और है कितनी ही कोशिश कर ले बहस समझाना पाओगे अगर ये इन्हें पता चल जाता तो पहले हाथ जोड़ लेते कि भाई देखो समझा तो नहीं पाऊंगा इशारे करके कोशिश कर लेता हूं तुम पकड़ पाओ तो तो फिर बताता है वो रहा चंद्रमा लेकिन उन्हें पता है जब तुम कहोगे वो रहा चंद्रमा तुम इसके टॉप को पकड़
लोगे नहीं है यहां है नहीं पक्का है मेरी आंखें हैं मैं देखता हूं यहां चंद्रमा नहीं है अरे भाई यह तो समझाया भी नहीं था के उंगली के टॉप के ऊपर चंद्रमा है ये तो समझाया भी कहां था समझाया था कि इसकी स्टेट लाइन में देखो ऊपर आसमान में तो दिखेगा चंद्रमा तो तुम समझ नहीं पाते तुम कहते नहीं और तुम समझना चाहते हो जो समझ में आता नहीं संतों ने भी कहा आज तो वैज्ञानिक भी कहते हैं इज नट ओनली अननोन बट आल्सो अननोन एबल लेकिन क्या करें ये सदगुरु इनकी समझ में आ गया ये बड़े-बड़े व्याख्या का इनकी समझ में आ गया इन्होंने
जान लिया संत भी कहते हैं वह जाना नहीं जा सकता और आज तो एल्बर्ट आइंस्टीन भी बोल ग नहीं जाना जाएगा वो ऐसा नहीं कि वो जाना नहीं गया ऐसा है कि वो जाना नहीं जा सकता अनन एबल तो माथा कपाई करनी बंद कर दो भाई जब व जाना ही नहीं जा सकता फिर भी तुम्हारा मन कहता है शद शद यह बता दे यह कोई नई मिटटी का बना है क्या नहीं जाना जाएगा इसलिए तुम सूचनाओं को इकट्ठा करने की चे ना करो जो तुम्हें सूचनाएं देना शुरू करे उसके बाबत तो उसे कह दो भाई बी क्विट चुप हो जाओ हां ऐसे मिल जाएगा समझाने से नहीं मिलेगा समझ नहीं आएगा बोलने से उससे बोला नहीं जाएगा और वह
खुद नहीं जानता क्योंकि उसने वह रस पिया नहीं बह रस है रस कभी बोला जा सकता है रस कभी समझाया जा सकता है कबीर कहते हैं जो गूंगा गुड़ खाई के कहे कौन मुख स्वाद गूंगा गुड़ को खा ले स्वाद कहे कैसे बस आंखों की चमक बताए तो बताए उसको तुम पकड़ पाओ तो पकड़ पाओ नहीं तो वह बताने में असमर्थ है क्योंकि जुबान नहीं है यानी शब्द नहीं है और यह शब्दों से ही तुम्हें समझाने की चेष्टा करते हैं ये कहते हैं शब्द ही सब कुछ है जो कहे कि शब्द ही सब कुछ है मैं समझा दूंगा तुम्हें वह अव्वल दर्जे का मूर्ख है इसलिए संत बोलता है खूब बोलता
है लेकिन यह भी कह देता है कि नहीं बोला क्या इच्छा थी बोलने की करुणा थी भीतर से कि सब बोल दूं लेकिन एक अंश भी नहीं बोला गया सब तो बहुत दूर तो क्षमा करना बोला नहीं गया बोला नहीं जा सकता सोच संतोष तब स्वाध्याय ईश्वर प्राण धान स्वाध्याय स्वय का अध्ययन आखिर तुम हो कौन हु आर यू स्वय का अध्ययन करो सर्च योरसेल्फ किताबें मत पढ़ो किताबें नहीं बताएंगे स्वय खुद का अध्ययन करो शास्त्रों का अध्ययन ना करो शास्त्र स्वय नहीं है शास्त्र पर है जब तुम शास्त्र पढ़ते हो और कहते हो स्वाध्याय कर रहा हूं तो तुम गलती खा रहे
हो शास्त्र को पढ़ना पराध है पर का अध्ययन है स्वाध्याय नहीं स्वाध्याय स्वय का अध्यन है स्वाध्याय के लिए स्वय के भीतर जाना होगा पराध के लिए शास्त्र पढ़ लो कोई बात नहीं लेकिन तुम कमाल की बात है शास्त्र पढ़ते हो और कहते हो स्वाध्याय कर रहा हूं शब्दों में उलझो मत शब्द तुम्हें उलझा हैं इसलिए मैं कहता हूं शब्दों को छोड़ दो शब्दों का इस्तेमाल सिर्फ ऐसे करो जैसे तुम्हारे पांव में कांटा चोगा और तुमने दूसरे कांटे से उस कांटे को निकाल दिया जैसे ही तुमने कांटा निकाला अपने पाम का दूसरे कांटे की सहायता से तो क्या तुम जिस कांटे से तुमने अपना
पैर का कांटा निकाला वह भी रख लेते हो नहीं उस कांटे को भी फेंक देते हो जो कांटा पाव में था उसको भी फेंक देते हो जिससे निका उसको भी फेंक देते हो बस उसका जितना काम था कर लिया अब यह बेकार है अब कांटा निकल गया अब यह भी बेकार है फोरस भी बेकार है जिससे वो कांटा खींचा वो भी बेकार है शब्दों का उपयोग इस तरह कर लो इसलिए संत कहते हैं मुझे सुन लो फोर सेप की तरह काम आऊंगा तुम्हारे शब्दों को कांटों को मेरे कांटे से काट दूंगा और फिर मेरे कांटे को भी फेंक देना और वह जो तुम्हारे शब्दों का कांटा था वह भी फेंका गया दोनों फेंक गए और
तुम्हारा दर्द खत्म हुआ मेरे भी शब्दों को हृदय में संभाल के मत रख लेना बहुत से लोग लिख लेते हैं बाबा ने यह बोला यह गलती मत करना क्योंकि तुमने अंतिम उस छोर पर जाना है जहां कोई शब्द बचता नहीं सिर्फ धुन बजती है जो बाबा ने कहा जो बुल्लेशाह ने कहा मस्जिद कोलो जोड़ा डर जीव डर गया मस्जिद के पास चार द्वारी के भीतर सास फूलने लगा रुकने लगा मैंने तो भागा मैं तो मस्जिद कोलो जोड़ा डरिया जा डक जा ठाकर दे डेरे बढ़या ठाकर के डेरे में चला गया जिथे वैदे नाद हजार ये लक्षण है जैसे तुम्हें बताए कि अगर तुम वहां जाओगे
ना ये माइल स्टोन मिलेगा तुम्हे ऐसा एक वृक्ष खड़ा होगा फला वृक्ष होगा गना होगा या यह ये लक्षण हो ग तो बस वही तुम रुक जाना वोह तुम्हारी मंजिल है तो सभी संत तुम्हें उस गंतव्य सथल के लक्षण बताते हैं यह लक्षण महा आनंद है व शांति ही शांति है कोमलता ही कोमलता है वहा मौन है कोई शोर नहीं जरा भी वहां उथल पुथल नहीं कोई लहर नहीं कोई विचार नहीं होता ना भावना होती है ना विचार हो होती है यह दोनों तरंगे हैं और तरंगे उथल पुथल होती हैं ना कोई विचार बचेगा ना कोई भावना बचेगी शुद्धतम रूप में तुम बचोगे वहां ठहर जाना वहां तुम ठहर ही
जाओगे क्योंकि जब रस मिल जाएगा प्यासी रूह को तो वह तो पीना शुरू कर देगा जन्मों जन्मों के तुम प्यासे तुम ऐसे पढोगे उसको जैसे भूखा खाने को पड़ता है तुम कहोगे थोड़ी सी और दे दे और जरा सी दे दे साकी और जरा सी और और जरा सी दे दे साकी और जरा सी और कैसे चुपके मैंने पी ही क्या है होश अभी तक है बाकी और जरा सी दे दे सा की और जरा सी और फिर तुम ऐसे पढ़ोगे जल्दी करो पैग डाल दो और गटक लोगे फिर साकी से कहोगे और डालो अभी तो होश बाकी है अभी तो शुद्ध खोई नहीं और ढाल दे तू डालता जा साखी मैं पीता जाऊंगा आज आज जागरण की रात
है आज नींद नहीं आएगी आज तो पिला ही जा साखिया आज हमें नींद नहीं आएगी सुना है तेरी महफिल में रत जगा है सुना है तेरी महफिल में रत जगा है आंखों ही आंखों में रात कट जाएगी व दुखों की रात कट जाएगी बस ला दे अभी होश बाकी है सुना है तेरी महफिल में रत जग है सुना है तेरी महफिल में रत जग है तो कुंभ का यही मतलब था कोई तुम्हें पिला देगा वो होगा तीर्थ स्नान जाते हैं करोड़ों आ 40 करोड़ आदमी जाएंगे कोई सौभाग्यशाली वहां से तीर्थ स्नान करके लौटेगा बाकी बैरंग लौट जाएंगे जो अमृत को जानकर लौटा जो अमृत को पीकर लौटा वह भाग्यशाली
हुआ और ऐसा कोई एक होगा जो पीने के योग्य होंगे उन्हें पिला दी जाए वो प्यासे वापस नहीं आएंगे यह कुंभ भरा पड़ा है लेकिन प्यास भी तो आनी चाहिए प्यास जगे तो वहां जरूर जाना हिल स्टेशन देखने के लिए मत जाना त्रिवेणी संगम को देखने के लिए मत जाना वह तो एक दृश्य है वो तो तुम मूर्ति में भी देख सकते हो लेकिन तुम जाना तुम तब जाना जब प्यास लगी हो उस कुंभ में पानी पीने के लिए उस कुंभ में अमृत पीने के लिए वह अमृत का कुंभ है जिसे जयंत लेकर भागा था इंद्र का पुत्र कहानिया है कहा तो सब कुछ गया तुम समझने वाले भी तो होनी
चाहिए वह अमृत कुंड जो धनवंत श्र महाराज लेकर आए भीतर से कलश उसमें अमृत तो भरा है लेकिन तुम्हें प्यास लगी है अगर लगी है तो तुम्हारी प्यास भुज जाएगी अगर नहीं लगी तो जैसे गए वैसे ही सुने सुने आ जाओगा तो यहां से जाना प्यास जगा के जाना फिर कुंभ जाना फिर गुरु के पास जाना कहीं भी जाना प्यास बुझ जाएगी यह था कुंभ का अर्थ इस ठंडी में बर्फ के पानी में तुम खड़े रहोगे तो थोड़ी देर देखना ठर जाएगा सब कुछ जैसे सुकरा ने कहा कि मेरे पांव सुन्न हो गए हैं तुम भी देखना पाव सुन्न हो गए सुन्न हो गए तो मैं नहीं पाव मैं नहीं
हू मैं इन पावों को देखने वाला हूं पाव जब जागृत थे तब भी जागृत रूप में देख रहा था अब सुन हो गए तो सुन रूप में देख रहा हूं मैं दृष्टा हूं मैं साक्षी हूं मैं देखने वाला हूं विटनेस हूं बहुत तरीके से वहां मिलते थे आपको लक्ष्य है बड़ी झलके मिलती हैं आनंद की है लेकिन तुम योग्य भी तो होने चाहिए पीने के तरंगे तो गुजर रही हैं यहां से गीत भी चल रहे हैं लेकिन अगर तुम्हारे पास फ्रीक्वेंसी को पकड़ने वाला रेडियो नहीं है तो गीत कैसे निकलेगा कैसे प्रकट होगा गीत प्रकट होगा जब तुम्हारे पास वह यंत्र है जो यहां से गुजरते हुए
उस गीत को पकड़ सकता है फ्रीक्वेंसी के ऊपर आकर कमी है तुम्हारे यंत्र में गुजर तो रहा है यहां से तुम्हें क्या पता यहां से कितने चित्र गुजर तने चैनल चल रहे हैं इतने चैनल चल रहे हैं लेकिन तुम्हारे पास यंत्र कहां है इन चैनलों की तस्वीरों को यहां तक लाने के लिए त्र नहीं है तुम्हारे पास यंत्र हो तो यह तस्वीर प्रकट भी हो सकती हैं बिल्कुल ऐसा ही खुद को यंत्र बनाना होगा इसे ही मैं तैयारी कहता हूं खुद को इतना सेंसिटिव बना लो और यह द चीजें इनका सहारा लेके झूठ मत बोलो अगर राजनीति करनी है तो मजबूरी है वह तो बोलना
पड़ेगा ईमानदारी से राजनीति होती नहीं बेईमान और झूठे लोग राजनीति में जाते हैं उन्हें झूठ बोलना ही पड़ेगा जैसे तैसे बोले बोलेंगे मजबूर है क्या करें लेकिन पतंजलि कहते राजनीति की बात नहीं करते पतंजलि कहते हैं आनंद की तरफ जाना है उस खुशबू से गले मिलना है उसको आगोश में लेना है तो फिर तुम सत्य बोलो झूठ ना बोलो सत्य बोलने से व्यक्ति वन डाइमेंशनल होता है झूठ बोलने से व्यक्ति मल्टी डायमेंशन होता है और जैसे तुम वन डायमेंशन नहीं हो गए तो उस के पास नहीं पहुंचो ग एक होकर ही एक के पास पहुंचा जा सकता है पानी की बूंद
होकर ही समुद्र में समाया जा सकता है तुम अगर सोचो कि तुम हो तो नमक और समुद्र में समा जाओगे समा तो जाओगे लेकिन रहोगे अलग ही ए स एल ए2 के बीच में समाहित नहीं होता ध्यान रखना ए ए ए2 में घुल जाता है मिल नहीं जाता लेकिन h2o h2o में मिल जाता है पानी की बूंद समुद्र में मिल जाती है लेकिन नमक समुद्र में घुल जाता है तुम घुल तो सकते हो मिल नहीं सकते और बात तो मिलन की है जब तक मिलोगे नहीं शब्द और सुरति का मिलान नहीं होगा तुम्हारी चेतना परम चेतना से मिलेगी नहीं बूंद समुद्र में मिलेगी नहीं तो एकाकार कैसे होगी एकाकार यानी बूंद समुद्र बनेगी
कैसे मिले बिना बूंद समुद्र बन नहीं सकते इसलिए नमक सदा ही घुला घुला रह जाता है कभी नहीं आनंद नहीं मान सकता नमक समुद्र का आनंद नहीं मान सकता अलग रहेगा सदा अलग रहेगा तुम भी सदा अलग हो परमात्मा के बीच में ही विचर रहे हो सारा दिन रात हर घड़ी हर पल तुम्हारा परमात्मा के भीतर ही गुजर रहा है लेकिन फिर भी तुम दुखी हो क्यों क्योंकि मिले नहीं अगर तुम एएल की बजाय h2o हो जाओ फिर तुम मिल जाओगे मुझे इनलाइटनमेंट हुई और मैं घर आया सो गया सुबह जब मैं उठा 9 बजे के करीब तो मैं घर से दुकान की तरफ जाने लगा मुझे अद्भुत दृश्य दिखाई
पड़ा दो तरह के दृश्य दिखा पड़ मैं चल रहा हूं एक तरफ तो मैं चल रहा हूं और कोई विशाल अस्तित्व खड़ा है उसको चीर कर चल रहा और दूसरी तरफ मैं विशाल अस्तित्व हूं और यह शरीर चला जा रहा है य कसा दो चीज कभी वो कभी वो कभी वो सारे ट्रक ये सारी बस ये सारे आदमी मुझ में चल रहे हैं हैरान हो गया मैं उस दिन समझ में आया कि यह अस्तित्व अलग नहीं देखने का ढंग बदल जाता है कभी मैं अस्तित्व में चल रहा हूं कभी अस्तित्व मेरे में चल रहा है इधर हो जाता हूं तो अस्तित्व मेरे में चलता है उधर हो जाता हूं तो मैं अस्तित्व में चलता
हूं इसे ही माया कहा शंकराचार्य ने बदल जाता है जो थोड़ा सा नजरिया बदलो तुम अभी पहुंच सकते हो इसी क्षण पहुंच सकते हो देर नहीं है बस नजरिया बदलना होगा तुम्हें ट्रांसफार्म होना पड़ेगा तुम जब तक नमक हो तब तक गुले रहोगे बन जाओ पानी की बूंद मिल जाओगे नमक रहोगे तो घुले रहोगे रहोगे समुद्र में आनंदित नहीं होगे दुखी रहोगे नमक कभी सुखी नहीं होता नमक कभी आनंदित नहीं होता क्यों अलग रहता है सदा तुम्हारा अस्तित्व समुद्र के अस्तित्व से अलग बना रहेगा नमक की तरह बहुत से लोग समझते नहीं मुझे प्रश्न किया मैं जवाब दे रहा हूं ध्यान से
सुनने तुम कहते हो हम संसार में रहते हैं तो फिर संसार से अलग क्यों रहते हैं हम परमात्मा में रहते हैं चारों तरफ परमात्मा है फिर परमात्मा से अलग क्यों बस तुम एएल की तरह रह रहे हो तुम नमक की तरह हो गल तो गए हो मिल नहीं गए तो यू विल हैव टू ट्रांसफॉर्म फ्रॉम ए टू ए2 तुम्हें नमक से ढलना होगा पानी में फिर पानी होकर तुम मिल जाओगे इसे ही प्रेम कहते हैं जिसे कबीर कहते हैं अगर चाव है ना तुम्हें तो अपना अस्तित्व खो दे नमक अपना अस्तित्व खोएगा तो फिर पानी बनेगा लेकिन अपना अस्तित्व तो खोएगा ना तुम चाहते हो मैं तुम्हारी इच्छा को
बड़ी अच्छी तरह से समझता हूं इन गलियों में मैं ल के ही निकला हुआ हूं इसलिए गुरु से कुछ छुपा ना सकोगे तुम क्योंकि गुरु पक्का खिलाड़ी है वह भी इन गलियों की धूं में बहुत राख छने इन्हीं गलियों से गुजर के गया हुआ खिलाड़ी है वो उसको धोखा ना दे पाओगे गुरु इन्हीं गलियों में खेला गुरु भी कभी अलग था दुखी था और जैसे ही ट्रांसफार्म हुआ नमक से पानी में झट से मिल गया घुला था पहले ट्रांसफार्म हुआ पानी में जट से मिल गया बस इति बात है यही तो बुल्लेशाह कहते हैं रबदा की पना उधर पटना ए सल से पुट लो ते धर लाना और h2o हो
जाओ नमक हो नमक से पानी बन जाओ इतना सा ट्रांसफार्म तो करना पड़ेगा और तुम तुम्हें इतने से तकलीफ होती है तुम कहते हो यह तो ना हो सकेगा बाबा फिर अगर यह ना हो सकेगा तो वो भी ना हो सकेगा यही तो शर्त पूरी करनी होती है हर चीज का विधान है विधान को पूरे किए बिना व प्रोसेस कंप्लीट नहीं होती तुम्हें पानी बनना होगा पानी की बूंद ही मिल सकती है समुद्र में समुद्र होना चाहते हो महा आनंद होना चाहते हो तो अपना स्वरूप चेंज करो इस अहंकार रूपी नमक को गला दो और पानी रूपी बूंद हो जाओ मिल जाओ समुद्र में मिल जाओगे पानी होकर मिल जाओगे नमक होक नहीं
मिल सकोगे नमक होके तो घुले रहोगे तो विशिष्ट कहते हैं भगवान राम को निर् विषय हो जाओ सब्जेक्ट्स को कलेक्ट करना बंद करो सूचनाओं को संग्रहित करना बंद करो यह तुमसे हो ना सकेगा क्यों क्योंकि यूपीएससी करना आईएएस बनना है पीसीएस बनना है डॉक्टर बनना है इंजीनियर बनना है ये तुम्हारी मजबूरी फिर वशिष्ठ कहते हैं कि अगर तुमने कुछ बनना है तो फिर होने की फिक्र ना करो बनना है तो बन का ही स्वाद देख लो पहले चक लो आईएस बन जाओ पीसीएस बन जाओ कोलेक्टर बन के देख लो भाई कौन कहता है तो राम से कहते हैं गुरु विशिष्ट कि विषयों का त्याग करो विषय
सब्जेक्ट और विषय विकार अब उलझो मत सूचना ये विषम की सूचनाएं होती है सूचनाओं को इकट्ठा करनी बंद कर दो और क्या बताते हैं तुम्हारे सदगुरु देखिए अध्यात्मिक है क्या खाक अध्यात्म जो तुम्हें रोज कशन से मुक्त कराने के लिए दवा बताते हैं वह वैद्य है या अध्यात्मिक हकीम है या अध्यात्मिक सारे दिन यही काम क्या कहे इनसे और कर को देख लेना कोई व्यापार शुरू कर द कर ही लिया है मैंने सुना मन लोभी मन लालची मन चंचल मन चोर और तुम इनके पीछे लग जाते हो यह व्यापार करते हैं तुम्हें ऑफलाइन सिखाएंगे ऑनलाइन सिखाएंगे यहां आ जाओ शर मंड
वालो हमारे कोर्स को ले लो हमारे से संपर्क में आ जाओ सीख लो गीता ऐसे बड़े खिलाड़ी तुम्हें मिल जाएंगे लेकिन धोखा है बड़े धोखे हैं बड़े धोखे हैं इस राह में बाबू जी धीरे चलना प्यार में जरा मचलना संभलना बड़े धोखे हैं बड़े धोखे हैं इस राह में बाबू जी धीरे चलना प्यार में जरा [संगीत] संभलना तुम कहां जा रहे हो जनाब इधर से सूचना इकट्ठी कर ली उधर से सूचना इकट्ठी कर ली कर लो अगर तुमने लेक्चर और बनना है तो सूचना इक करलो इंजीनियर बनना है डॉक्टर बनना है आईएस करना है आईपीएस करना है पीसीएस करना है सूचना इकट्ठी करो करनी
पड़ेगी लेकिन वो ख्वाहिश हैं और यह सर लोग आपकी ख्वाहिशों को पूर्ण कर रहे हैं अच्छा कर रहे हैं कुछ तो कर गुजरो किसी का स्वाद तो चखो बैठे ना रहो कहीं तो पता लगे कुछ भोगो ग तो वैराग्य होगा या तो भोग लो या ठहर जाओ कोई मार्ग तो चुनो ना भाई लेजी नेस तो अच्छे नहीं होते या तो भोग लो भोग से दुख मिलेगा यह पक्का है दुख मिलेगा क्योंकि संत जो देख लेता है वह बड़ी खुली आंखों से देखता है और बैठ जाता है देख लेता है भोग में दुख दुख से वैराग्य और वैराग से मुमुक्षा और मुमुक्षा से मुक्ति हो जाती है य सीधी सी सीढ़ है जो अष्टावक्र ने
बताई तुम ना तो भोगते हो ना तुम्हें भोगने देते हैं यह राजनीति खुद ही भोग लेते हैं या तो भोग लो और भोग के इन भोगों से मुक्त हो जाओगे क्यों क्योंकि भोगों में दुख मिलेगा या ठहर जाओ ठहरने से क्या होगा ठहरने से तुम अपने भीतर उतरो ग और अंत तह वो पा लोगे जिथे वद नाद हजार इश्क द नम नमी बाहर एक ओंकार जहां ओंकार की ध्वनि का गुंजारी है अनद ज अनद नाथ ये वहां से उद्गम होता है जहां ओंकार का नाद है वहां से आती आती आवाज तुम्हें सुनाई पड़ती है य कोई कपोल कल्पना नहीं है यह सत्य का दर्शन है लेकिन तुम कुछ तो चुनो भोग से वैराग्य होकर उस तरफ जाओ या
सीधे-सीधे अपने भीतर उतर जाओ तुम्हारी इच्छा है मर्जी तुम्हारी क्योंकि तुम स्वतंत्र हो तुम चाहो तो भोगने की तरफ चलो तुम चाहो तो अपने भीतर उतरने की तरफ चलो तो विशिष्ट कहते हैं निर्वेश हो जाओ किसे कहते हैं राम से कहते हैं और राम पक्के खिलाड़ी राम ने सब देख लिया राजघराने में जन्मे इतनी कॉन्शसनेस की ऊंचाई के अवतार की श्रेणी तक आ गए कुछ भोगना बाकी ना बचा सब है उनके पास और जैसे ही उन्हें राज तिलक का इंकार हो के वनवास की घोषणा होती है बड़े प्रसन्न होते हो क्योंकि राज तिलक तो फिर वही भोग हो गया मैं तो संतों के दर्शन करना चाहता
हूं उनके दर्शन करना चाहता हूं जो आनंद में मगन आसानी तरंगों से भरे हुए हैं अपनी मस्ती में झूमे झूमे बैठे हैं उनकी करीबी उनके सानिध्य में मैं भी बैठना चाहता दो घड़ी बड़े खुश होते हैं व निर्वेश हो जाओ अच्छी तरह से समझ लिया होगा अगर तो कुछ बनना चाहते हो दो हर्फी बात बताता कुछ भी बनना चाहते हो डॉक्टर इंजीनियर कलेक्टर पीएम सीएम तो फिर कर फिर विषयों को पकड़ो सब्जेक्ट को पढ़ो राजनीति को पढ़ो इंजीनियर डॉक्टर इलेक्शन लड़ो या कंपटीशन लड़ो लेकिन लड़ो लड़ना पड़ेगा यह तो एक लड़ाई का पासा है यहां लड़ के जीतना होता
या हारना भी होता है तो कहते हैं विशिष्ट निर् विषय हो जाओ क्योंकि वशिष्ठ जानते हैं कि भोग में कुछ नहीं मिलेगा तुम कुछ भी बन गए कुछ भी बन गए चपड़ा स बन गए के पीएम बन गए जो भी तुम्हें मिलेगा वह तृप्ति दायक नहीं होगा यह वशिष्ठ जानते हैं यह राम भी जानते हैं और वह सम्मुख हैं राम के वह कहते हैं विश्व से दूर हो जाओ कुछ याद मत करो इन न्यूरॉन्स को खाली करो यह खाली हैं और राम का न्यूरॉन अगर खाली नहीं होगा तो फिर किसका होगा राम के निरन कोरे कागज है बस ऐसा ही व्यक्ति उसकी इबारत को लिखवा सकता है जब फरमाए तब तब पा बाबा नानक ने कहा है
जिस लिख्या तिस सरना मैंने कुछ नहीं लिखा इसके ऊपर जब फरमाए तेव तव पा जैसे उसने लिखना था लिख दिया य कोरा कागज ही कह सकता है और भगवान राम कोरे कागज विशिष्ट समझाते हैं के विश्व में इन न्यूरॉन को कपाओ मत कोरा कागज है कोरा कागज ही रहने दो विशों को चिपका मत निरो में इनको खाली रहने दो लेट ट बी एमटी निर् विषय हो जाओ कुछ ना इसमें जमा करो और आखिर में विशिष्ट कहते हैं कि मेरी बातों को भी जमा ना कर दो इ फेंक दो यह कूड़ा है क्योंकि जब पड़ियो पर चढ़ दिया जाता है ना जब छत पर चला जाता है आदमी तो सभी पड़ियो का त्याग कर दिया जाता
है इसलिए सभी शास्त्रों को त्यागना और जिस गुरु के वचन से तुम सीढ़ियां चढ़े हो और छत पर पहुंचते ही उन सीढ़ियों को भी त्याग देना गुरु के वचनों को भी त्याग देना अन्यथा यह भी कांटों की तरह चुप श्री कृष्ण गोविंद हरे [संगीत] मुरारी हे नाथ नारायण वासुदेवा श्री कृष्ण गोविंद हरे मुरारी हे नाथ नारायन वासुदेवा श्री कृष्ण हो गोविंद हरे मुरारी हे नाथ नारायण वासुदेवा पितु मात स्वामी सखा हमारे पितु मात स्वामी सखा हमारे हे नाथ नारायण [संगीत] वासुदेवा श्री कृष्ण गोविंद हरे [संगीत] मुरारी हे नाथ नारायण वासुदेवा हे नाथ
नारायण वासुदेव धन्यवाद
0 Comments