कर्ता और कर्म का अनोखा संगम! - Karm Theory क्या है सहकाम और निष्काम कर्म?



बाबा जी प्रणाम कौन करता और कौन भोगता इस प्रश्न का सह विस्तार उल्लेख करने का कष्ट करें रवि कौन करता कौन भोगता लगता है मैंने जितनी वीडियोस कर्म की थ्योरी प बनाई है वोह कोई कम नहीं है लेकिन फिर भी यह इतना गहन मैटर है कि इसको पर जितना बोला जाए उतना ही थोड़ा है अहम प्रश्न है बार-बार इसका उत्तर दूंगा जैसे ही तुम पूछोगे लेकिन उससे पहले तुम्हारा एक कर्तव्य बनता है कि आप सभी पुरानी वीडियोस को अच्छी तरह से सुन ले आपको समझ आ जाएगा ऐसा मैं मानता हूं तो लीजिए हम इस प्रश्न के गहरे में चलते हैं कौन करता है और कौन भोगता है जो करता है वही भोगता है सीधा सा सिंपल सा जवाब जो करता है वही भोगता है और इस बात का ध्यान रखना अक्सर ही दुनिया संतों के इस वचन पर भ्रमित हो जाती है क्यों क कि जो सत्य बोलते हैं संत उसको तुम मान लेते हो एक यूनिवर्सल ट्रुथ की तरह थोड़ा सा ध्यान से सुनिए तो समझ आ जाएगी जो करता है वही भोगता है मैंने थीम पहले बता दिया आपको और अक्सर प्रश्न पूछने वाला खुद ही करता है प्रश्नों से मैं पहचान जाता हूं कि व्यक्ति किस तल पर बैठकर प्रश्न पूछता है और प 9999 प्रत लोग कता भी है और जो करता है वह भोगता भी है लेकिन संत कुछ अलग भाषा का इस्तेमाल करते हैं इसका मतलब यह नहीं कि संत आपको यूनिवर्सल ट्रुथ बता रहा है यह गलती मत खा जाना संत अपनी स्थिति बता रहा है स्वय की स्थिति अगर लाउज कहता है और अगर कृष्ण कहते हैं अगर बाबा नानक कहते हैं कबीर कहते हैं कि जो करता है ईश्वर करता है और भले के लिए करता है तो यह बात एक सार्वभौमिक सत्य नहीं है क्योंकि ये आपके लिए सत्य नहीं है यह बाबा नानक के लिए सत्य है लज के लिए सत्य है जो करता है वो भगता है और लव से कहते हैं कि वह जो करता है अच्छा करता है और भले के लिए करता है यह दोनों बातें आपको विपरीत लगेंगी लेकिन विपरीत है नहीं अगर आपने कर्ता भाव से कर्म किया कोई भी कर्म किया तो पक्का मान के चलना के भोगता भाव से आपको उसका सुख या दुख भोगना पड़ेगा आओ हम एक उदाहरण से समझ एक महादानी व्यक्ति दान करता है गौर से समझना इस उदाहरण से आपको सब स्पष्ट हो जाएगा एक दानी व्यक्ति दान करता है वह जो दान करता है अब उसके दो तरीके हो सकते हैं दो तल हो सकते हैं और अक्सर कहा गया संतों के द्वारा कि गुप्त दान महा कल्याण क्यों कहा गया तो आइए हम इस बात को साफ करें बड़ा महत्व प्रश्न है सिर्फ दान के ऊपर ही नहीं समस्त प्राणियों के कर्म के ऊपर यह प्रश्न है जो बाव है तो किसी ने दान किया तो उसका फल क्या होगा अगर आपसे पूछा जाए तो आप कहोगे दान का फलित होगा द दुनिया स0 आखीर इस्लाम कहता है 10 गुना इस दुनिया में मिलेगा और 70 गुना उस दुनिया में मिलेगा इस दुनिया के पार की दुनिया यह हो गया जो कर्ता भाव से दान किया गया है उसका फल सुख की तरह मिलेगा बहुत बारीक बात है शांति से सुनने की चेष्टा करेंगे तो आपको सारी गांठ खुल जाएगी कता भाव से दान किया तो उसका फल आएगा सुख और अगर निष्काम भाव से दान किया तो उसका फल सुख नहीं आएगा तो क्या आएगा उसका फल आएगा आनंद मुक्ति तो लोग बड़े समझदार थे संत जिन्होंने कहा अगर सुख चाहिए तो दान कीजिए सकाम भाव से निष्फल तो होता नहीं फिर तो आपको सहस्र गुना सुख मिलेगा और अगर सुख नहीं चाहिए वह चाहिए जिसकी धारा अखंड है जिसकी धारा टूटती नहीं जिसकी धारा निरंतर है बनी रहती है और उसे हम आनंद कहते हैं अगर वह चाहिए तो फिर अगर आपका दाया हाथ दान करता है तो बाई को पता नहीं होना चाहिए बहुत सी कहावते हैं नेकी कर दरिया में डार इन सभी शब्दों का यही अर्थ था अगर दान करने के बाद आपके चित के ऊपर कोई लकीर नहीं रहती तो वह दान आपको फलीभूत होगा आनंद की
तरह वह दान आपको फलीभूत होगा बंधन को काटने के हेतु आपके जन्मों जन्मों के पाप भी पुण्य भी कट सकते हैं पाप भी बांधता है पुण्य भी मांगता है अगर आप सकाम भाव से दान करोगे तो आप भोगो भी और अगर आप निष्काम भाव से दान करो तो आप भोगो ग नहीं बड़े मजे की बात तो फिर हमें फायदा क्या हुआ फायदा हुआ कि तुम भोगो नहीं तुम उस आनंद के सागर में लीन हो जाओगे जिसकी कोई कीमत नहीं जो किसी कीमत के द्वारा प्राप्त नहीं हो सकता वह आपके निष्काम भाव ने कर दिया तो दान दो तरह के अर्थ आपको दे सकता है एक अर्थ तो सहस्र गुणा फलीभूत होकर दे सकता है लेकिन उसका परिणाम आएगा सुख दान व्यर्थ तो होता नहीं लेकिन दो धारू तलवार है अगर आप उसका फल भोगना चाहते हो हो तो सकाम भाव से दान करना आपको सहस्त्र गुणा उसका फल मिलेगा हम अक्सर हमारे पास रोगी किसी तरह के सताए हुए दुखी व्यक्ति आ जाते हैं हम उन्हें सजेस्ट करते हैं दान क्यों पंछियों को प्राणियों को गौओं को चारा दाना डाल दो वह फलीभूत होकर आपके संसार कष्टों का निवारण करेगा अगर आपको कोई कष्ट है शारीरिक मानसिक यह रोग है आध्यात्मिक रोग तो होता नहीं ये दो ही तरह के रोग शरीर और मन अगर इसका कोई संताप है आपको तो उसका हर है दान सकाम भाव से किया हुआ दान आपको दुखों से मुक्ति दिलाएगा आप जो दुखी हो वो आपके दुख कट जाएंगे कष्ट कट जाएंगे और अगर आपके पास इतना है या आप संसार सुखों को नहीं चाहते तो फिर आप दान कीजिए निष्काम भाव से और उस दान को देने के बाद आपके चित पर कोई रेखा ने नी चाहिए नहीं तो वह दान ना हुआ वह व्यापार हुआ व्यापार का अर्थ हम इन्वेस्ट करते हैं किसी चीज में और वह इन्वेस्ट फलीभूत होकर हमारे पास आ जाता है बस ऐसे ही आपने दान को भी फलीभूत करने के लिए इन्वेस्ट किया मैंने पह भी कहा दान कभी व्यर्थ तो जाता नहीं दो ही फल होते हैं सकाम भाव से दान करोगे तो आपको सुख मिलेगा और अगर निष्काम भाव से दान करोगे तो आपको आनंद मिलेगा और आनंद आपकी बेड़ियों को काट देगा आनंद आपको मुक्ति देगा आप की जंजीरों को काट देगा या ऐसे कह लो कि आपकी जंजीरें कट जाएंगी और आपको आनंद मिल जाएगा दोनों एक ही बातें हैं सकाम भाव से जो काम करेगा वह करता और करता है तो भोगता भी मिलेगा जिसने कर्म किया उसने उस कर्म का फल भी चखा तो एवरी एक्शन देर एन इक्वल एंड अपोजिट रिशन अगर कोई तकलीफ है तो सकाम भाव से दान कीजिए और अगर सिर्फ तकलीफ बंधन की है सुख तो बहुत है लेकिन एक कांटा भीतर सदा ही चुभता रहता है वह कांटा क्या है तुम्हें खुद भी पता नहीं वह बंधन वह कांटा तुम्हारे हृदय में शूल बनकर सदा ही चुभता रहता है और तुम्हें मालूम नहीं होता कि कमी तो कोई भी नहीं सब है लेकिन फिर भी यह क्या है जो चुप रहा है यह वो बेड़ियां इल्यूजन की ब्रम की जो आपने जन्मों जन्मों से मैं भाव के कारण बना दी है जो आपने कर्ता बन बनकर वो बेड़ियां पैदा कर ली हैं और आज उसका संस्कार बन गया है और वह संस्कारित हुआ कर्म आपको बेड़ियों में बांध लेता है करता कौन भोगता कौन जो करता है वही भोगता है जो नहीं करता है वह भोगता भी नहीं यह आसान भाषा में मैंने सारी कर्म अवस्था का उत्तर दे दिया रवि पूछते हैं कि करता कौन है भोगता कौन है यह तुम्हारे पर डिपेंड करता है पहले तो तुम कर्ता भाव से ही कर्म करोगे तो कैसे कर्म करो अशुभ कर्मों को त्याग दो शुभ कर्म कर पहली सीढ़ी शुभ कर्मों की है शुभ कर्मों का फल आपको सुख मिलेगा और सुख सुख से आनंद में तब्दील हो जाएगा अगर आपकी वह बेड़ियां टूट जाएंगे कर्ता भाव से कर्म दुख देता है यानी बेड़ियां वो बेड़ियां चाहे सुख के रूप में है और चाहे दुख के रूप में भगवान कृष्ण कहते हैं अच्छे कर्म सोने की बिड़िया बांधते वो भी है और बुरे कर्म लोहे की बेड़ियां है बांधती वो भी है अगर किसी को जेल हो जाती है और जेल की सलाखें लोहे की है वह बंधा तो हुआ है लेकिन दुखी भी है लोहे की सलाखों के पीछे लेकिन यही सलाख अगर सोने की हू तो आपको क्या फर्क पड़ेगा तुम बंधे तो हुए हो चाहे जेल की दीवारें सोन चाहे जेल की दीवारें लोहे की हो जरा भी तो फर्क नहीं तुम्हारे बंधन में जरा भी फर्क नहीं इसलिए जो कर्म तुम कर्ता भाव से करोगे उसका फल सुख आए या दुख आए दोनों बांधे तु शुभ कर्म भी तुम्हें बांधते हैं और अशुभ कर्म भी तुम्हें बांधते हैं फिर बांधता कौन नहीं कौन सा कर्म नहीं बांधता निष्काम कर्म नहीं बांधता स काम कर्म बांधता है वह शुभ हो या अशुभ निष्काम कर्म नहीं बांधता निष्काम कर्म तुम्हारी बेड़ियों को तोड़ देता है निष्काम कर्म तुम्हें तुम्हारे संस्कारों से मुक्त करता लेकिन इसको कैसे करोगे कैसे अभ्यास हो इसका सबसे पहला जिसे तुम बुरे कर्म कहते हो इनको छोड़ दो बुरे कर्मों को तब्दील करो अच्छे कर्म अच्छे कर्म क्या है वही जो मा महावीर ने कहा पतंजलि ने कहा सत्य अहिंसा अस्ते ब्रह्मचर्य अपरिग्रह सोच संतोष तप स्वाध्याय ईश्वर प्राणी धान ये अच्छे कर्म इनको करने से आपको सुख मिलेगा अगर हिंसा नहीं करोगे तो तुम सुखी रहोगे अगर झूठ नहीं बोलोगे तो तुम सुखी रहो अगर चोरी नहीं करोगे तो तुम सुखी रहोगे अगर ब्रह्मचर्य को स् कलित नहीं करोगे तो सुखी रहोगे और अगर कुछ जोड़ो के नहीं अपने जीवन का सारा भार उसके ऊपर छोड़ दोगे या लोग मैंने देखे कथावाचक जिनकी बड़े-बड़े अक्षरों में फीस लख होती है सप्ताह की कथा करवानी है तो इतना लाख रुपया और उपदेश करते हैं कि सकाम कर्म ना करो निष्काम कर्म करो सकाम कर्म तो यह खुद ही करते हैं अगर निष्काम कर्म तुम करोगे तो कथावाचक कभी नहीं कहेगा मैं तो 50 लाख रुप लू मैं तो 10 लाख लूंगी पा लाख नहीं वह कहेगी मैं अपना कर्म कर दूंगी मैं अपना कर्म कर दूंगा आपको कथा सुना दा फिर वो आपकी इच्छा है श्रद्धा पूर्वक आप मुझे कुछ दान करते जीवन यापन के लिए या ना भी करें कोई बात नहीं वह होता है सही कथावाचक अगर तुमने कुछ दे दिया तो उसे वह जीवन का सहारा बना लेगा और अगर तुमने कुछ नहीं दिया तो उसका एक सहारा सदा से मौजूद है वह सहारा कौन सा है वो सहारा है परमात्मा का तुम नहीं दोगे तो फिर परमात्मा बिखेरे उसके ऊपर और जिसको पता है कि परमात्मा बिखेर देगा वह मांगेगा नहीं तुम अपनी श्रद्धा से दे सकते हो लेकिन अगर नहीं दोगे तो वह उस तत्व को जानता है जिस तत्व की कथा कहता है और वह अच्छी तरह से जानता है कि सारे जीवों को पालने वाला सबना जिया का एक दाता वह मुझे प्रदान कर ही देगा युगों युगों तक वह तुम्हें लुटाता ही रहा है और तुम खाते ही रहे हो दाता दे लेंदा थक पा जुगा जुग खाई का जो सच्चा कथावाचक वह होता है जो पहले यह अनुभव करता है सबना जिया का एक दाता इसको ध्यान से समझ लेना वह फिर कथा करता है तो उसकी कथा में रस होता है उसकी कथा में ढोल की छने हार्मोनियम बेंजो वीणा की मधुर ध्वनि नहीं होती उसकी आवाज में उसकी कथा वाचन में उसके जो शब्द आते हैं वह वहां से आते हैं जहां से यह सारे वाद्य यंत्र बज रहे हैं वाज नाद अनेक असंख्या केते वावन हारे उस तल से टकरा के आती है आवाज उसकी कोई वीणा मुकाबला नहीं कर सकते तुम्हारा संगीत तो शोर है लेकिन भीतर से वह आई हुई आवाज शोर नहीं भीतर से वह आई हुई आवाज अपने साथ उस अमृत को लपेटे हुए है जो तुम्हें दिखाई तो नहीं पड़ता लेकिन महसूस तुम करते हो सच्चा कथावाचक वह है जो जिसने अनुभव कर लिया क्या सबना जिया का एक दाता तो जो यह लोग पटकाई लिखाए बैठे हैं कथावाचक सात दिन की कथा इतने पैसे पांच दिन की कथा इतने पैसे तीन दिन की कथा के इतने पैसे इनको परमात्मा पर यकीन नहीं है बहुत गहरी बात बोल रहा हूं समझने का प्रयास करें क्योंकि इसने तुमसे मांग लिया परमात्मा पर भरोसा होता तो तुमसे ना मांगता जिसको परमात्मा पर भरोसा हो गया वह तुमसे नहीं मांगेगा फिर तुम्हारे द्वारा परमात्मा उसे प्रदान कर दे तो अहो भाग्य है अन्यथा परमात्मा किसी भी विधि से उसे प्रदान कर देगा जो मांगता है वह मंगता है जो मांगता है वह फकीर नहीं फकीर तो मिलता है मांगने वाले से कहीं ज्यादा और मांगने वालों को सही मायने में भीख भी नहीं मिलती कबीर कहते हैं बिन मांगे मोती मिले उन मोतियों की बात कर रहा है जो उस अलौकिक तल पर पड़े हैं वो मिलते हैं उसे जब तुम नहीं मांगोगे तो तुम उस तल पर निकल जाओगे जहां हीरे मोती जवाहरात गहरे तलों पर पड़े और अगर मांगोगे तो जो मिलेगा वह बेकार होगा उसका कोई मूल्य नहीं मिट्टी के ढेल का क्या मूल्य होता है मूल्य होता है माणिक मोती मनिया हिरे जवाहरा जो करता है वही भोगता है जो करता ही नहीं वह भोगता भी नहीं तो पूछा है संत जब करता नहीं तो करता हुआ मालूम कैसे पड़ता है बस यही है बात अर्थ की संत भी तुम्हें लगेगा कि कर रहा है कुछ लेकिन संत कर रहा है नहीं रहा संत वैसे ही करता है जैसे कठ पुतरी नाचती है भला मुझे जवाब दो कठ पुतली खुद से नाचती है कठ पुतली जब नाचती है तो क्या वह खुद के प्रयास से नाचती है नहीं वह किसी के इशारों से नाचती है वह किसी के हाथों की उंगलियां ऊपर जाती हैं नीचे आती हैं और उसी के इशारों से कठपुतली नाचती है लेकिन तुम्हें दिखाई पड़ेगा कि संत करता है नहीं संत नहीं करता है तुम्हे ब्रम है संत उस कठपुतली की भांती है उस पपेट की भांति है इसको चलाने वाले धागे किसी विशाल अज्ञात के हाथ से बंधे संत भी करता हुआ दिखाई पड़ेगा संसार भी करता हुआ दिखाई पड़ेगा लेकिन आप वेद नहीं कर सकोगे क्यों क्योंकि आपको दोनों ही करते हुए दिखाई पड़ेंगे दोनों ही करता मालूम पड़ेंगे लेकिन यही गलती हो गई तुमसे संत करता हुआ दिखाई पड़ेगा करेगा संत के जीवन की डोर तुम तो सिर्फ गुण गते हो छोड़ी कहां है नैया अपने जीवन की नैया तुमने छोड़ी कहां है उस बृहद के हाथ में तुम सिर्फ भजन कुनकुना देते हो और भजन गुनगुनाने से आपने अपने जीवन की नैया उसके हाथों में सौंप दी यह सिद्ध नहीं करता है तुम कह देते हो मेरा आपकी कृपा से सब काम हो रहा है मेरा आपकी कृपा से सब काम हो रहा है करते हो तुम कन्हैया करते हो तुम कन्हैया मेरा नाम हो रहा है मेरा आपकी कृपा से सब काम हो रहा है अब यहां समझिए क्या फर्क है ध्यान से समझोगे सुनोगे गहरे से सुनोगे बात साफ हो जाएगी आपकी कृपा से सब काम हो रहा है लेकिन जरा सोचो अगर आपका काम ना हो तो क्या आप फिर भी गुनगुनाओगे नहीं कथावाचक फिर नहीं गुनगुना आएगा कथावाचक को कह दो कथा कर दो दक्षिणा श्रद्धा अनुसार देंगे नहीं भी देंगे कोई बात नहीं अगर यह शर्त है तो कथा कह दो वह आपको कहानी सुनाने से इंकार कर देंगे तो यहां भेद पड़ जाएगा आपको संसार और फकीर का भेद यहां पता चल जाएगा फकीर का अगर काम ना भी हो तो वह धनवाद करेगा लेकिन कथावाचक का काम अगर ना हो तो वह शिकायत करेगा अगर आप कहो कि हम तो दक्षिणा नहीं देंगे तो कहेगा हम फिर कथा भी नहीं करेंगे यह जो 20 लोग हमने ले रखे हैं के परिवार पालन होते हैं कथावाचक से किसने कहा कि तुम 20 लोगों को साथ र किसने कहा कि तुम वादी यंत्रों के सहित अपनी कथाओं को कहो आवास में इतनी मिठास आवास उस वेत्री तलों को छू के आती नहीं तो बाहरी वाद्य यंत्रों का सा आवश्यक हो जाता है जिसकी आवाज य बीना की मधुर तरंगों से बढ़िया उच्चारण करती हो उसको भला ना की तरंगों की जरूरत क्या है तो यह 20 साथ में जो लंगोट तुमने ले रखे हैं यह क्यों ले किसने कहा लेकिन यह तो कहेंगे हमारा इतना खर्चा आने का खर्चा जाने का खर्चा यह निष्काम कर्म नहीं यह सकाम कर्म है इनको सुख तो देंगे लेकिन यह बंधे हुए ही रह जाएंगे अंत में कबीर कहते हैं एक सिंघासन चढ़ चले कौन चढ़ेगा सिंघासन जो निष्काम कर्म करेगा एक बंधे जात जंजीर कौन जंजीर से बंदे बंदे जाएगा जिसने सकाम कर्म किया और कर्म निष्काम भी हो सकते हैं तुम अपनी कथा कहो लेकिन तुमने ऐसा प्रयोग किया तुम जरा एक बार निष्काम कथा वाचन करके तो देखो धन चाहे कम मिल जाए और धन चाहे ना भी मिले लेकिन वो दाता तुम्हें एक अमूल्य उपहार से अलंकृत कर देगा वह अमूल्य उपहार क्या है बंधन रहित ता का तुम्हारी सब बेड़ियों को वो काट देगा और सब बेड़ियों को काटने का निष्काम कर्म सबसे बढ़िया रास्ता है निष्काम कर्म सिर्फ वही कर सकता है जिसके भीतर का मैं समाप्त हो गया कठ पुतली निष्काम कर्म कर सकती है क्योंकि कठ पुतली स्वयं कर्म नहीं करती कठपुतली को कोई कर्म करवाता है कोई नचाता है जैसा जैसा नचाता है हूबहू उसी तरह से कठपुतली नाचती तो जब यह कथावाचक लोग आपको यह मार्गदर्शक कहलाते हैं तुम्हारे समाज के यह भजन गाना शुरू कर दे मेरा आपकी कृपा से सब काम हो रहा है तो उनको गिना देना कि आपकी कृपा से नहीं हो रहा है य उन 15 20 50 लाख से हो रहा है तुम्हारा काम जो तुमने बाहर बोर्ड के ऊपर अपनी फीस लगा रखी है उसको हटाओ तो एक संत हुए ऐसे जो कथावाचक थे भागवत की कथा बोलते थे लेकिन मांगते जो मांगता नहीं उसे मोती मिल जाते हैं जो जिसने कथा करवाई अपने घर में वह तुम्हें चाहे कुछ दे या ना दे लेकिन एक इस सारे विश्व को चलाने वाली शक्ति है वह तुम्हें कोई कमी नहीं होने देगी वह तुम्हारे बंधनों को काट देगी और बंधनों को काटने का कोई मूल्य नहीं होता तुम करोड़ों अरबों खरबों के स्वामी हो सकते हो लेकिन अगर तुम वही अरबों खरबों रुपए देकर किसी से कहो मेरे बंधन काट दे नहीं काटेगा बंधन के कट जाने की कोई मूल्य नहीं होती बंधन काटती है उसकी कृपा और उसकी कृपा वस्ती कब है जब तु निष्काम भाव से सच्चे निष्काम भाव से कर्म करते यही भगवान कृष्ण ने कहा तू समर्पण भाव से कर्म कर मैं तो तुम्हे सभी पापों से मुक्त कर दूंगा पाप क्या है पाप वो जो तुम्हें बंधन में बांध दे और बंधन में तुम तभी बंध होगे जब तुम सकाम कर्म करोगे अगर तुम निष्काम कर्म करोगे सिर्फ कर्म करोगे और उसके फल की तरफ क्या नहीं करोगे तो तुम्हें वो फल मिलेगा वो मीठे फल मिलेंगे जिसकी तुम कभी अपेक्षा भी नहीं किए थे सकाम कर्म करोगे सुख मिलेंगे बिल्कुल ठीक लेकिन निष्काम कर्म करोगे तो बंधन हीनता मिलेगी आपके बंधन कट जाए फिर आपको जिससे आप बिछड़ के आए हो उससे मिलना हो जाएगा आपको बाबा कहते हैं कह नानक गुरु बंधन काटे कह नानक गुरु बंधन काटे बछर आन मिलायो बिछु करत आन मिलायो जहां से बिछड़ के आए थे उसको मिला देता है गुरु तुम्हारे सारे बंधन हर लेता है तुम बंधन में हो इसलिए तुम उसमें मिल नहीं सकते जहां से बिछड़ के आए थे लेकिन गुरु ये काम कर देता है गुरु जहां से तुम बिछड़ के आए थे उसी में तुम्हें डुबकी लगा देता है ये लो यह तुम्हारा मुकाम है और तुम परम आनंद में सदा सदा के लिए खो जाते हो लेकिन सकाम कर्म करोगे तो फिर तुम्हें यह दशा कभी भी नसीब नहीं होगी निष्काम कर्म एक कीमिया है यह वह रसायन है जो आपको बंधन हीनता की अवस्था में ले जाएगा और जिसके बंधन कट गए वह धम से अपने आपे में करेगा वह अपने स्वय में ग जाएगा अ प्रयास बिना प्रयास के और जब उसे फल मिलेगा जब वह अपने आप में पहुंच जाएगा अपने ही भीतर बैठे हुए स्वय के भीतर छलांग लगा देगा जहां से वह कभी बिछड़ के आया था तो उसके आनंद का कोई और छोर ठिकाना पैमाना मापदंड नहीं होगा करता कौन भोगता कौन कि मैंने पूर्ण उदाहरण से आपको व्याख्या द अक्सर धरती पर लोग प्राणी मनुष्य सकाम कर्म ही करते हैं और भोगते भी खुद ही क्योंकि उन्हो ने किया उनके भीतर करने का करता भाव बना और जिसके भीतर कर्मों का कर्ता भाव बना वह फिर भोगे उसको भोगना ही पड़ेगा लेकिन जो उसके चरणों में नु छावर होकर समर्पण भाव से एक पट की तरह जैसे वो चला है वैसे तुम चलते हो तो कर्ता की जरा भी छाया नहीं पड़ेगी तुम करते हुए दिखो ग तो लेकिन उस कर्ता पन की लकीर आपके भीतर नहीं आपको छू भी ना पाएगा वह कर्म कता भाव आपसे अलग हो जा क्यों क्योंकि आपने किया नहीं जिसने किया जिसने उस कठपुतली को नचाया उसने किया तो ईश्वर ही करता हो जाता है उसके लिए इसलिए भगवान कृष्ण बहुत गहरी बात कहते हैं वह कहते हैं सभी कर्मों को छोड़ दे सभी धर्मों को छोड़ दे सर्व धर्मा प्रत माम कम शरण तु मेरी शरण में आ जा ऐसा नहीं कि तुम अक्रमण हो जाएगा फिर तू कर्म करने को त्याग देगा नहीं अब तू कता भाव से कर्म करता है अब जो करता है तू करता है फिर जो करवाऊंगी मैं करवाऊंगी लेकिन कर्म तो तू करता ही रहेगा इसलिए भगवान कृष्ण ने कहा कोई भी प्राणी कर्म किए बिना तो एक बल भी नहीं रह सकता लेकिन कर्म करता कैसे है कर्म खुद की खुदी से करता है या परमात्मा की खुदी से करता है जो खुद की खुदी से कर्म करेगा वह भोगे भी उस कर्म के फल को भोगे का भी और जो उसकी खुदी से काम कर पट की तरह जैसा वो नचाता है वैसे नाचता है तो फिर वह आनंदित रहेगा कक अगर उसने दास बना दिया तो वह खुश है अगर राजा बना दिया तो भी खुश है दास बना दिया तो भी खुश है उसने बेज्जती करवा दी उसने मान सम्मान दिला दिया उसने नुकसान कर दिया उसने नफा कर दिया लेकिन तुम्हें मालूम है कि जहां मेरा कुछ है ही नहीं सच में आप कहते हो कि हमारा नुकसान हो गया आप कहते हो कि हमारा मुनाफा हो गया लेकिन अगर आप सत्य को देखोगे जिस दिन तो आपको पता चलेगा ना तो आपका कुछ घटता है ना आपका कुछ बढ़ता है क्योंकि आप ही नहीं अगर आप होते तो आपका कुछ बढ़ता आपका कुछ घटता यह सब माल मालिक का तुमने कुछ बनाया ध्यान से सोचना शरीर का वह कौन सा अंग है जो आपने बनाया मन का वह कौन सा अंग है जो आपने बनाया बुद्धि का वो कौन सा यंत्र है जो आपने बनाया आपने कुछ भी तो नहीं बनाया सब बनाया उस सर्जन हार फिर तुम्हारा बीच में क्या है तुम्हारा सिर्फ मैं है तुम करते धरते कुछ भी नहीं हो तुम कर सकते कुछ भी नहीं हो सिर्फ फोकी में मैं करता हूं जिसको बड़ी गद्दी मिल जाती है वह छाती फुला लेता है जिसको छोटी पीन की पोस्ट मिल जाती है वह दुखी होता है लेकिन ना तो यहां दुखी होने का कोई कारण है ना ही यहां सुखी होने होने का कोई कारण है क्योंकि यहां तुम्हारा कुछ नहीं तुम्हारा यहां कुछ घटता नहीं तुम्हारा यहां कुछ बढ़ता नहीं तुम्हें कभी कोई नुकसान हुआ ही नहीं और तुम्हें कभी कोई फायदा हुआ ही नहीं यह आंतरिक असत्य है जो संतों ने अपनी नगन आंखों से निहारा और जैसे ही उन्होंने निहारा उनका मेंट उट गया फिर उनका तुम कभी उनको लूट नहीं पाओगे फिर उनको तुम कभी कुछ दे ना पाओगे ना उनके हर्ष होगा ना उनको शोक होगा यही कृष्ण समझाते हैं अर्जुन को हे अर्जुन जिनके लिए शोक नहीं करना चाहिए उनके लिए तुम शोक कर रहे हो इसे ही अज्ञान कहते हैं कृष्ण तुम्हें पता नहीं तुम्हारा कुछ कभी कटा नहीं तुम्हारा कुछ कभी बड़ा नहीं क्योंकि तुमने यहां कुछ सृजन किया ही नहीं जिसने सृजन किया उसका ही घटता बढ़ता है तुम्हारा यहां कुछ है नहीं और आखिर में यही बात समझ में आती है आदमी को देखने के उपरांत मेरा यहां कुछ नहीं हम आरती में गा देते हैं तेरा तुझको अर्पण क्या लागे मेरा सिर्फ शब्द हैं और आप इन शब्दों से अपने आप को संतुष्ट कर लेते हो काश यह हकीकत तुमने अपनी नगन आंखों से देखी होती कि सब उसका है मेरा कुछ नहीं है लेकिन जाना तो तुमने कुछ भी नहीं भीतर तो तुम्हारे मैं भाव बना रहता है भीतर तो तुम मालिक भी हो और भीतर तुम दास भी हो गुलाम भी हो लेकिन सच में ना तो तुम मालिक हो ना तुम गुलाम हो तुम हो ही नहीं यही कृष्ण कहते हैं ये तुम्हारी फोकी अहंकार की बातें हैं महत्वहीन है इनका कोई मूल्य नहीं है अर्जुन किसको मारेगा कौन मरेगा जहां कोई मरता नहीं यहां जलता गलता सूखता नहीं फिर किसको मारोगे कृष्ण के कहने का यही मतलब है तुम हो ही नहीं एक ही है नुकसान है तो उसका है फायदा है तो उसका है और ध्यान रखो उसका ना फायदा होता है ना नुकसान होता है तुम्हारा तो कुछ फायदा नुकसान होता ही नहीं उसका भी कोई फायदा और नुकसान नहीं होता क्योंकि सबका मालिक वही है और उसने जो बना दिया उसमें घटाने वाला कोई है ही नहीं और उसमें बढ़ाने वाला भी कोई है ही नहीं मैं फिजिक्स पढ़ता था सबसे पहले बाहर बाहर चैप्टर पर आता था मैटर कैन नीदर बी क्रिएटेडटेड तुम पदार्थ को ना तो मार सकते हो ना ही पैदा कर सकते हो फिर तुम कर क्या सकते हो सच पू पूछो तो फिजिक्स उपनिषदों का सार है फिजिक्स का यह शब्द आपके सब धर्म ग्रंथों का सार है यद्यपि तुम समझ नहीं पाते मैं चका मैटर कैन नीदर बी क्रिएट नर कन बी डिस्ट्रॉयड तो प्रोफेसर साहब फिर आदमी के हाथ में क्या आदमी के हाथ में कुछ भी नहीं सिर्फ उपनिषदों को ही मत पढ़ लेना विज्ञान को की खोजी इस फिजिक्स को भी पढ़ लेना यह भी उपनिषदों से कम मूल्यवान नहीं है यह शब्द वेद वाक्य फिजिक्स के यह चार शब्द उपनिषदों का सार है निचोड़ है मैटर के निदर भी क्रिएटेडटेड तो फिर यह बनाया किसने तुम तो बना ही नहीं सकते यह विज्ञान कहता है और तुम समाप्त भी नहीं कर सकते फिर तुम कर क्या सकते हो एक अर्थ में विज्ञान को ने विज्ञान को शुरू करने से पहले प्रारंभ में ही मस्तक नवा दिया कि हम कुछ नहीं कर सकते हम उपजा तो सकते ही नहीं हम समाप्त भी नहीं कर सकते हम पावरलेस है यानी हम है ही नहीं व कैन डू नथिंग हम कुछ भी नहीं कर सकते यही है सार होगा तो फिर भी वही जो वो चाहेगा लेकिन अगर आप कता भाव से कर्म करोगे तो उसका भोगता होने का रिएक्शन आएगा अगर आप कर्ता भाव से काम नहीं करोगे उसकी रजा में काम करोगे जो कि सत्य है होता है वही जो मंजूरे खुदा होता है कता वही है एक्शन और रिएक्शन उसके संसार में होता है तुम उसके जिम्मेदार नहीं तुम तो सिर्फ सेहरा संझा लेते हो कि मैं हूं तो मुमकिन है नेपोलियन न पयाग ये कहा था इंपॉसिबल वर्ड इज नॉट फाउंड इन माय डिक्शनरी असंभव शब्द मेरी डिक्शनरी में शब्दकोश में है ही नहीं लेकिन सब कुछ असंभव ही है मृत्यु को कहां रोक पाया संभव हो गई ना मृत्यु को रोकना असंभव हो गया ना और वह तो सारी जिंदगी भर चिल्लाता रहा कि मेरी डिक्शनरी में संभव नाम का शब्द है ही नहीं लेकिन अंत में वह मौत को रोक नहीं सका असंभव हो गया ऐसे बुद्धु और मूर्ख और मूढ़ और पागल लोग संसार में भरे पड़े उनके पीछे मत लग जाना वह दंभ भरेंगे कि हम ज्ञानी हैं य भांती भांती के दंब भरेंगे लेकिन वह परम मूड है उन्हें पता नहीं कि सत्य क्या है सत्य सिर्फ जानता है संत सत्य जानता है सिर्फ फकीर और इससे अलावा कोई नहीं जानता है और अगर यह जानना है कि कौन करता सत्य में कौन करता और कौन भोगता तो फकीर के तल पर चले जाओ तो तुम्हें पता चल जाएगा कि सत्य क्या है और नियम के हिसाब से जो करेगा वह बरेगा लेकिन अगर तुम फकीर के तल पर चले जाओ तो तुम यह पाओगे ना तुम करते हो ना तुम भोगते हो यह सार है फिर सुन लीजिए सार को संसार बनकर अगर कर्म करोगे तो उसका फल भोगना पड़ेगा लेकिन यह झूठ है क्योंकि तुम कर्म करते ही नहीं हो कर्म करता है वह जिसने सर्जना की है वही चला रहा है और तुम सिर्फ गा रहे हो जिसने जन्म दिया सृष्टि को वही चला भी रहा है लेकिन यह गाने के लिए है यह समझे बमझेंम क्या तुम करता हो क्या तुम हो यही रमण ने कहा यही कहा गुरुजी ने यही कहा सभी संतों ने तुम जरा देखो तो जरा खोजो तो तुम हो भी कि नहीं हो और हो तो कौन हो और यह खोज लेना अंतिम खोज है इससे आगे कोई खोज नहीं तुम लाख खोजते जाना संसार के नियमों के पदार्थ के नियमों को लाख खोजते जाना तुम्हारी खोज कभी खत्म नहीं होगी तुम्हारी खोज खत्म होगी जब तुमने खुद को खोजना शुरू दिया और तुम जान गए कि वास्तव में तुम हो कौन उस दिन तुम्हारी खोज समाप्त हो जाएगी बस तुम्हें वह मुकाम मिल गया जिसके ना मिलने से तुम भटक रहे थे जिसके ना मिलने से तुम तड़प रहे थे बिरहा की अग्नि में इसलिए कबीर कहते हैं जरा खोजो डरो मत कंपो मत तुम्हारा घटने वाला मरने वाला यहां कुछ भी नहीं जिन खोजा तन पाया गहरे पानी बैठ उतर जाओ उस समुद्र की अतल गहराइयों में मैं वुरा बोडन डर डर गया किनारे बैठ बस तुम ऐसे ही लोग गंगा के किनारे बैठे बैठे राम राम जपते रहते बारा नसी के घाट पर अपने भीतर की गंगा में कभी उतरते नहीं सब तीर्थ तुम कर लेते हो बस एक तीर्थ तुम्हारा बाकी रह जाता है सब हज तुम कर लेते हो बस एक हज तुम्हारा बाकी रह जाता है वो क्या हज है बस अपने भीतर नहीं उतरते वो तीर्थ नहीं नहाते वो यात्रा अपने भीतर की नहीं करते बाहर की यात्राएं चाहे तुम लाख बार कर लो बाहर के तीर्थ चाहे तुम लाख बार चले जाओ कुछ नहीं होने को है ये नकली है ये तुम्हारे बनाए हुए हैं ईश्वर के बनाए हुए तीर्थों में प्रवेश करो तीर्थों ईश्वर के बनाए हुए तीर्थों में यात्रा कर फिर तुम सत्य को एक दिन पा जाओगे और जिसने सत्य को पाया उसने यह जाना कि मैं करता नहीं हूं और मैं भोगता भी नहीं हूं यह दोनों ही बातें सत्य हैं क्योंकि जो करता है वह भोगता है और मैं करता नहीं मैं भोगता भी नहीं हूं जिसने कुछ बनाया इस संसार को वही करवा रहा है सब कुछ इसलिए हमने कृष्ण की जीवनी को लीला कहा भगवान राम के जीवनी को हमने लीला कहा उसको हमने जीवन नहीं कहा उसको हमने बायोग्राफी नहीं कही हमने उसे कहा लीला व जानते हैं कि मैं करता नहीं हूं मैं भोगता भी नहीं हूं और जिसने ये जान लिया वो परम प्रसन्न हो गया भीतर के तल पर परम प्रसन्न हो गया परम आनंदित हो गया वो ड्रामा है उनके लिए जैसे एक एक्टर अभिनेता पर्दे के ऊपर ड्रामा खेलता है रोता है प्रसन्न होता है लड़ाई झगड़े करता है लेकिन वह सत्य नहीं है वो ड्रम है तुम भी सभी ड्रामा कर रहे हो सत्य को तुम जानते नहीं और तुमने इस ड्रामे को ही जीवन समझ लिया है यही तुम गलती खाए हो इसलिए तुम दुखी हो इसीलिए तुम सुखी हो अगर सुख और दुख के पार होना चाहते हो उस आनंद में उतरना चाहते हो तो नो दय सेल्फ अपने आप को जानो कि तुम कौन हो तुम हो भी कि नहीं और जिस दिन तुमने यह जान लिया कि तुम हो भी कि नहीं और हो तो कौन हो उस दिन तुम उस अथाह के भीतर प्रवेश कर जाओगे उस दिन तुम उस स्थिति प्रज्ञ अवस्था में हो जाओगे उस दिन तुम कैवल की अवस्था में निर्वाण की अवस्था में चले जाओगे धन्यवाद श्री कृष्ण गोविंद हरे मुरारी हे नाथ नारायण वासुदेवा श्री कृष्ण गोविंद हरे मुरारी हे नाथ नारायण वासुदेवा पितु मात स्वामी सखा हमारे पितु मात स्वामी सखा हमारे हे नाथ नारायण वासुदेवा श्री कृष्ण गोविंद हरे मुरारी हे नाथ नारायण वासुदेवा

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