पूछते हैं मैं जब ध्यान में गहरा जाता हूं तो सहसरार में पहुंच जाता हूं और मुझे बहुत डर लगता है विशेषकर इस बात से कि कहीं मैं सहस्रार से निकल ना जाऊं बाहर क्योंकि सहस से जो व्यक्ति निकल जाता है वह वापस नहीं आता खास तौर से जब मैं भांग खा लेता हूं
मर जाने का डर बहुत गहरा है मैंने अनेकों बार बोला है और यह भीतर भरा पड़ा है और जब तुम भांग खा लोगे तो भांग क्या करेगी कैथर सस करे यह जो आता है डर यह ंग के कैथर सस के कारण होता है तुम जो भी खाते हो एकरस स्टाइला वगैरा जो भी इसकी नस्ल खाते हो यह कैथर सिस करती है और कैथर सिस जो भीतर पड़ा होता
है वही बाहर आता है चेतन में तो मैंने आपसे पहले भी कहा 70 प्र तक मृत्यु का वय होता है तुम्हारे लेकिन जैसे तुमने काम वासना क्रोध वासना लोभ मोह के पीछे नहीं लगना है वैसे तुमने मृत्यु के पीछ नहीं लगना है और मन तो बड़ा चालाक है मन तो रोज नए प्रश्न करता है अब मैंने कोई बात बोल दी तो इसको भह का कारण बना लिया और मैंने तुम्हें क्या कहा ग क्या कहते हैं कबीर क्या कहते हैं अगर तुमने प्रेम की गली में कदम रख लिया है ये [संगीत] तो प्रेम मिलन की [संगीत] जा शीश तली धर घर मेरे आओ शीश तली धर घर मेरे आ जे तो प्रेम मिलन की
[संगीत] चा शीश तली धर घर में र पता है कबीर को अच्छा पलता है जानते हैं गोरख के मृत्यु सबसे बड़ी बाधा है रोड़ा हटकाए जगह जगह प आएगी बहाने बनाएगा अब और नहीं तो मेरा ही बहाना बनाया आशुतोष जी निकल गए तो मैं भी सहसरा से निकल जाऊंगा खाला जी का बाड़ा है सहसरा से निकलना लेकिन मन बड़ा चालाक है असली बात है मृत्यु से डरना और मन मरना नहीं चाहता बस बुनियादी बात तो यह है बहाने तुम कुछ भी बना लो मरोगे तो एक दिन सदा तो किसी ने रहना होता नहीं और जब एक दिन मरोगे तो शुभ होगा अगर ध्यान करते करते मर जाओ भोग करते करते मर जाओ यह अशुभ
है और ध्यान करते करते मर जाओ यह शोभ है क्योंकि अंत मति सोग अंत में ध्यान से मरोगे तो ध्यान से ही शुरुआत होगी और अंत में अगर तुम पदार्थों के मोह में मरोगे तो पदार्थों से ही शुरुआत होगी संचय से ही शुरुआत होगी बहुत से प्रश्न ऐसे आए हैं लोग डर जाते हैं क्या करें अब तो जाने का भी दिल नहीं करता सहस्रार में क्यों क्योंकि मौत दिखाई पड़ती है तो मैं समझा दूं यह भ्रम है और मन ऐसे भ्रमों को ढूंढता रहता है मन तो बहाने ढूंढना फिरता ही है आपको एक बहाना और मिल गया पहले मेरी वीडियो को अच्छी तरह सुनो मैंने क्या कहा क्या
है क्या तुम में इतना संकल्प आया कि तुम अपने शरीर से बाहर हो सको सहसरा से निकलने के लिए परम संकल्प की आवश्यकता होती है ऐसे कोई सहसरा से निकल भी नहीं सकता आशुतोष का तुम मुकाबला नहीं कर सकते व संत थे उसमें संकल्प शक्ति थी बस इस ज्ञान का अभाव था उसके भीतर इस सूचना का अभाव था अगर सच में शब्द ठीक प्रयोग करूं तो इस सूचना का भाव था कि अगर देही को साथ ले निकल गए कारण शरीर के साथ सहस्रार के द्वारा तो आपस नहीं आ पाओगे यह पता नहीं था लेकिन वह प्रबोध है अपने आप को जान लिया था कोई मामूली व्यक्ति नहीं थे वोह मैं अगर कुछ बोलता हूं तो आशुतोष के
बारे में नहीं बोलता कहां कह के गए कि मैं वापस आऊंगा ये इंतजार किए जाते हैं व्यर्थ में 68 साल की उम्र ठीक उम्र होती है यही उम्र है इंडिया में एवरेज शरीर छोड़ गए गलती से दो चार साल और जी लेते हैं लेकिन उनके भीतर संकल्प था उन्होंने अपना अपवा जान लिया था वह संकल्प वान थे इसलिए उस संकल्प के साथ उन्होंने शरीर को छोड़ दिया क्या तुम आशुतोष से स्वयं को बढ़ाते हो उतनी चेतना की जागृति तुम्हारे में हो गई बा मुश्किल अगर तुम आए हो विशुद्धि तक वो भी मैं घसीट के लिए आया हूं तो आए हो खुद के प्रयास से तो वहां तक भी नहीं
आया देखिए पहले सत्य को ठीक तरह से समझना आवश्यक होता है फिर समझने के बाद किंतु परंतु उठाना चाहिए यह बिल्कुल ठीक है कि जो विशुद्धि के ऊपर आ गया वह अपनी चेतना को कारण शरीर को साथ लेकर देही को साथ लेकर जा सकता है सहज सरार के द्वारा और आशुतोष इस मुकाम पर आ गए लेकिन तुम उस मुकाम पर नहीं हो तुमने खुद को देख लिया है क्या तो वह घटना तुम्हारे साथ घट जाएगी यह तुम सोच भी कैसे सकते हो परम संकल्प की आवश्यकता होती है शरीर से बाहर निकलना कोई काला जीी का बड़ है यहां नाभि चक्र से निकलने के लिए संकल्प की आवश्यकता पड़ती
है तुम सहस्र से निकलने की बातें किया सहसरा से परम संकल्प वान व्यक्ति निकल सकता है सहसरा से सिर्फ संत निकल सकता है जो संकल्प से भरा पड़ा है व खोपड़ी को तोड़ेगा और निकल जाएगा लेकिन कहीं भूल हो गई नहीं पता चला हो जाती है वोल लेकिन तुम क्यों डरते हो तुम तो अभी विशुद्धि के ऊपर पहुंचे हो और भी स्वयं के प्रयास से नहीं पहुंचे वहां तक किसी तरह से मैं मूलाधार से खींच खूं के लाया हूं विशुद्धि तक और अगर तुम ऐसे ही कड़ो कबाड़ो में मेरे बात को समझ लेना मैं कहां से बोल रहा हूं अगर ऐसे ही तुम कड़ो कबाड़ में पड़े
रहे तो फिर वापस चले जाओगे मलाधर में फिर हमारी पंजाबी में कहावत है वो मां मरगी जड़ी दही नाल टुक द फिर यह मां मर जाएगी जिसने तुम्हें खींच खच के विशुद्धि के ऊपर ले आया और मां नहीं आएगी जल्दी जल्दी नहीं आया कितने आए अब तक बताओ बा मुश्किल आपको प्रत्यक्ष में एक दो उदाहरण मिलेंगे या शंकर मिलेंगे या राम कृष्ण परम मिलेंगे व विशुद्धि पहले आते हैं विवेकानंद को नरेंद्रनाथ को कितने मिले आपको हजारों साल नर्गस अपनी बेनूरी पर रोती है बड़ी मुश्किल से होता है चमन में दीदावर पैदा हम तो बुझते हुए दिए फफक कर कभी भी आंख मुध
लेंगे लेकिन तुम्हारा क्या होगा तुम अगर ऐसे ही प्रश्न उठाते रहे और प्रश्न क्यों उठते हैं तुम उस बेसिक डर को तो समाप्त नहीं करते वही प्रश्न वही प्रश्न घूम घूम के तुम मेरे से फर कर देते हो अरे मर ही जाओगे ना भाई इससे ज्यादा तो कुछ नहीं होगा वैसे भी तो मर ही जाओगे ना या तो यह कह दो कि मैं ध्यान नहीं करूंगा तो फिर कभी नहीं मरूंगा फिर तो ठीक तुम्हारी बात कि बाबा ध्यान करने से मर जाऊंगा और अगर ध्यान नहीं करूंगा तो फिर मैं कभी नहीं मरूंगा मरोगे तो 10 साल आगे 10 साल पीछे ग मरना तो एक दिन सभी को होता है लेकिन क्यों नहीं तुम्हारे खाने में
उतरती मेरी बात क्यों नहीं उतरती गुरु गोरखनाथ की बात क्यों कबीर तुम्हारा मुंह ताकते रह जाते हैं तुम्हारी हरकतों को देखकर क्यों नानक मुह बाय खड़े रह जाते हैं जो मैंने सिखाया वह तो किया नानक कहते हैं शिष्य बन सीखो सीख का अर्थ क्या है नानक कहते हैं शिष्य बनो और शिष्य बनने का पहला कदम है कि यह जान लो कि मैं अभी कुछ नहीं जानता तो ही शिष्य बन पाओगे फिर समझा दू हम पंजाब में हैं नानक की भूमि है नानक कहते हैं शिष्य शिष्य का अर्थ क्या होता है जैसा गुरु कहे वैसा मान लो यह शिष्य तोव ना हुआ शिष्यवृत्ती मैं मूर्ख
हूं और तुम तो अपने आप को समझदार समझते हो इसलिए पहले शब्दों में ही बाबा कह जाते हैं जब तक अपने आप को मूर्ख नहीं समझोगे और व भी मूर्ख सच्चाई को एक्सेप्ट करने में गुरेज क्यों करते हो तुम हो भी मूर्ख और स्वीकार करने में हर्ज क्या है बाबा कहते हैं स लख हो गए ना चले ना हजारों लाखों स्याने प हो तुम्हारी चतुराया कहां चलती चतुराई तो बहुत करते हो लेकिन बच कहां पाते तुम्हारा डर के कहीं मर ना जाऊं क्या तुम इसके कारण बच जाओगे नारायण जब अंत में आप पकड़ेंगे [संगीत] काम उनसे भी यो कह दियो हम को फुर्सत ना तुम इतने चालाक
हो जब नारायण आखिर में आके कान पकड़ लेगा उनसे भी कह देना हमें फुर्सत नहीं रोज वही स्वाल रोज वही सवाल वही बकवास वही गंदगी का फोड़ा मेरे सामने खोल देते हो डर लगता है बाबा डर लगता है कितनी बार समझाऊं तुम्हें डर तुमने दबाया है यह तुम्हारी ही गलती है इल्यूजन के कारण तुमने डर को दबाया है अब यह निकलेगा बाहर तो निकल जाने दो खाली हो जाओगे शुक्र मन हो फिर तुम इससे डरते हो तुम स्याने बनने की चेष्टा करते हो और बाबा कहते हैं तुम्हारी लाख स्यान प भी तुम्हारे साथ कम नहीं आएंगी वह जब आएगा मौत के रूप में तुम्हें ले ही जाएगा
तुम उससे ताकतवर नहीं उसके सामने तुम्हारी हैसियत क्या है उस विराट के आ अगर तुम्हें कहा जाए कि तुम कण मात्र हो तो यह भी मोड़ता है तुम कण भी तो नहीं हो तुम नेगलिजिबल हो तुम हो ही नहीं और हैरानी की बात है अपने आप को बचा के रखना चाहते हो और फिर अच्छी तरह से जानते हो यहां कोई नहीं रहा यहां कोई नहीं रहेगा लेकिन फिर उम्मीद पाते हो कहीं किसी कोने में अंतर तक बैठा हुआ यह बात भाव कि नहीं मैं तो नहीं मरूंगा और दुनिया मर जाएगी मैं सदा जीवित रहूंगा यह भ्रम कहीं ना कहीं तुम्हारे गहरे में तुम्हारे मन के किसी कोने में छुपा पड़ा रह जाता
है मैंने तुम्हें बहुत बार कहा है अगर ऐसे ही तुम उलझे रहोगे कभी काम में उलझ गए कभी क्रोध में उलझ गए कभी मोह लोभ अहंकार में उलझ गए कभी भय में उलझ गए ये भय भी तो उलझन है कभी मद में उलझ गए नशे में कभी मत सर में उलझ गए है तो ये उलझन है और उलझन तो उलझन ही होती है देखि तुम्हारे रास्ते का जो बाधा है वह पत्थर हो या बड़ा सा हीरो क्या फर्क पड़ता है रास्ते की दीवार चाहे पत्थर से बनी हो चाहे हीरे से बनी हो तुम तो नहीं जा सकोगे तुम तो रुक गए ना अगर मैं सहसरा में चला गया तो क्या हो जाएगा प्रल आ जाएगी आसमान गर जाएगा
ग्रह तारे नक्षत्र आपस में टकरा जाएंगे विस्फोट हो जाएगा क हो जाएगा कुछ नहीं होगा तुम्हारे जाने से और ध्यान रखना किसी के जाने से भी कुछ नहीं होता जो कहते हैं मैं हूं तो मुमकिन है व भी चले जाएंगे और तुम देखोगे उनके जाने से कोई फर्क नहीं पड़ता किसी के जाने से कोई फर्क नहीं नेपोलियन कहता था इंपॉसिबल वर्ड इ नॉट फाउंड इन माय डिक्शनरी मेरे शब्द कोश में असंभव नाम का कोई शब्द नहीं लेकिन मृत्यु असंभव बन गई कि नहीं बन गई मृत्यु को रोकना संभव हुआ कि नहीं हुआ मर गया वो सनप मत करो यह रास्ते रिदान के रास्ते हैं
इसको प्रेम कहते हैं कितनी बार समझाते हैं कबीर प्रेम बलिदान का दूसरा नाम है जेतो प्रेम मिलन की चाह शीश तली धर घर में ये तुम्हें जीने का पैगाम देते हैं मृत्यु ही तो सिखा रहे हैं तुम्हें और चाब तुम्हारा है कमाल की बात तुम्हारा चाब है उस रस को पीने का और उस रस को पीने की जो बताते हैं जुगत उससे तुम डरते हो तो भाई मत चलो कौन कहता है रुक जाओ संसार में कुछ कर लो कोई पैसा कमा लो कोई काम का कर लो किसने कहा तुमसे कि तुम परमात्मा की तरफ चलो कोई पढ़ाई बढ़ाई कर लो य सर लोग आजकल बहुत एक्टिव है कोई आईएस पीसीएस वगैरह बन
जाओ इन मूर्खों के पास चले जाओ कौन रोकता है तु ये लोगों को को कितने मीठे मीठे सपने दिखाते हैं हालांकि जो नहीं बनता वो भी टूट जाता है और जब बन जाता है उन विचारों को भी नहीं पता आज नहीं कल व भी टूट जाएंगे क्यों क्योंकि जो पाया उसमें वो ना मिलेगा जो तुमने सोचा था तू ना मिला एक तू ना मिला सारी दुनिया मिले भी तो क्या [संगीत] है मेरा दिल ना [संगीत] [प्रशंसा] खिला मेरा दिल ना खिला सारी बगिया खिले भी तो क्या है नहीं मिलेगा वो यह लोग तुम्हें रस की जलक दिखाएंगे आईएस बन जाओ बन जाओ कौन रोकता है सीएम बन जाओ मिनिस्टर बन जाओ एमएलए एमपी
बन जाओ पीएम बन जाओ कुछ भी बन जाओ लेकिन ध्यान रखना कुछ भी बन जाओ हाथ खाली रहेंगे हाथ में भिक्षा पत्र सदा रहेगा मांगते रहोगे किसको उसको जो शुरू से मांग रहे हो जिसको पिए बिना तृप्ति नहीं आती जिसको बिना प चैन नहीं आता जिसको को बिना पिए रातों को तुम्हें तारे गिरने पड़ते हैं रात आंखों में गुजर जाती है चांद भी अब नजर नहीं नहीं आता अब सितारे भी [संगीत] कम निकलते हैं यही कुछ होगा सितारे भी कम निकलेंगे क्योंकि तुम गिनो ग चांद भी नजर नहीं आएगा अमावस्या में कहां चांद नजर आता है बाहर भी कुछ पाने को नहीं है बाहर के लोग भी तुम्हें पाने के सपने
दिखाते हैं बनावटी कागज की डिग्री भी तुम्हें देते हैं कुर्सियों के ऊपर भी तुम्हें बिठाते हैं पावर नाम का डंडा भी तुम्हारे हाथ में पकड़ता है यह लेकिन क्या तुम तृप्त हो पाते हो भिक्षा पात्र सदा तुम्हारे हाथ में मौजूद रहता है और अगर तृप्ति ना हुई तो फिर सारा जगत मिल जाए तो भी कुछ नहीं मिला अगर तू ना मिला तो सारी दुनिया भी मिल जाए तो कुछ ना मिला अगर तुम अब तक यह बात समझे नहीं तो फिर प्यास जगन फिर मेरी बातों को सुन के या किसी की शब्दावली को सुन के तुम्हारे भीतर एक छोटी सी कर्ण उठी होगी जिसे चंचलता कहते हैं तुम्हारा मन का
आवेग थोड़ी तरह थोड़ी देर के लिए उठा होगा और उसी आवेग में तुम यहां मेरे पास पहुंच गए हो क्योंकि लक्षण तुम्हारे बताते हैं प्यास जगन मैंने अपना फर्ज पूरा कर दिया अब तुम यहां आकर भी डरो ग तो डर से मैं तुम्हें मुक्त नहीं कर सकता और डर से मैं जितना मुक्त कर सकता था मैं भयंकर रूप से तुम्हें मुक्त कर दिया ऐसे ऐसे खतरनाक शब्द मैंने बोले के डर तुम्हारे भीतर ना रहे लेकिन फिर भी तुम डरते हो तो फिर यह तो कलिंगन से है तुम्हारी जीवन के साथ जिंदगी के साथ तुम चमड़े रहना चाहते हो फिर य तो तुम्हे छोड़ना पड़ेगा यह मेरा
काम नहीं छिप हो तुम उखड़ना भी तुम्हें पड़ेगा क्लिंग नेस को हटाना भी तुम्हें पड़ेगा यह काम मेरा नहीं मैं तुम्हें ढंग बता सकता हूं वह बता दिया के इन चिपका को तोड़ो जिंदगी से इतना मोह अच्छा नहीं होता क्योंकि जिंदगी तुम हो नहीं जिसे तुम माने हो वह जिंदगी तुम नहीं हो जीवन तो तुम हो लेकिन वह परम स्रोत वह जीवन हो तुम यह नकली नकली नहीं हो जो आज है और कल नहीं रहेगा जिसे आज तुम बोलता हुआ स्वास लेता खाता पीता काम करता देख रहे हो तो तुम उसको जीवन समझे हो जो जीवन नहीं है तो जिंदगी बेकार हो गई इसको जाग के देखना
होगा मैंने कितनी बार कहा यह बोलता है देखो कौन बोलता है तुम विचारों को भली भाती देखते हो और तुम्हें इतना पता लगता है कि डर का विचार तुम्हें आता है तो तुम्हें इतना ख्यालात नहीं आता कि डर तुम नहीं हो जब तुम्हें डर दिखता है सिनेमा के अंदर स्क्रीन के ऊपर जैसे फिल्म दिखती है वैसे तुम्हें डर दिखता है अपने मनस्य पटल पे फिर डर तुम कहां हो जो चीज तुम्हें दिखाई पड़ती है वो तुम हो नहीं सीधा सा फार्मूला है ज्यादा सोचने की आवश्यकता नहीं तुम्हें डर दिखाई पड़ता है तो तुम क्यों कंपतेलुगू [संगीत] कि मृत्यु को तो स्वीकार तुम्हें ही करना
पड़ेगा क्योंकि संत कभी इतना अहिंसक हिंसक नहीं होता कि तुम्हें अपने हाथ से मार दे संत तुम्हें कह सकता है कि तुम मरोगे शुद्र जीवन को मारोगे तो विराट जीवन में उतरो इल्यूजन को मारोगे तो सत्य में उतरो ग ब्रह्म को तोड़ोगे तो असली में पहुंचो ग फिर भी अगर तुम नहीं तोड़ो तोय गुरु की कमी नहीं गुरु ने अपना काम कर दिया तुमने पूछा के सहसरा से कहीं मैं निकल ना जाऊं नहीं इतनी तुम औकात कहां है अगर तुम सहसरा से निकल गए ना मैं तुम्हें वापस ले आऊंगा तुम फिक्र मत करो क्योंकि मैं बखूबी जानता हूं इतनी संकल्प शक्ति तुम में
होती तो तुम सभी विकारों को रोक लेते बात क्या करते हो क्यों मूर्ख बनते हो और क्यों मजे बनाते हो अगर इतने ही संकल्प की शक्ति तुम्हे होती तो तुम इन उठते हुए विकारों को रोक ना लेते तुम जानते हो कि सहस्रार में से निकलने के लिए कितनी विराट शक्ति और संकल्प की आवश्यकता होती है विराट की बात करता हूं मैं विराट संकल्प और तुम्हारा संकल्प भी इतना नहीं कर तुम क्रोध को रोक स तुम्हारा संकल्प तो इतना नहीं तुम भय को रोक सको काम को रोक सको तुम्हें तो शुद्र चीजें भी प्रताड़ित कर जाती हैं तुम्हें तो साधारण वासना एं भी हिला जाती
हैं तुम बात करते हो संकल्प के नहीं इतने संकल्प तुम नहीं मैं अच्छी तरह से जानता हूं तुम्हें दिल के बहलाने को गालिब यह ख्याल अच्छा है हमने देखी है जन्नत की हकीकत लेकिन मैं अच्छी तरह से देख लेता हूं जो दीक्षा लेने आता है व्यक्ति वह कितना संकल्प वान है क्योंकि जोर वहां मेरा लगता है कहां किस तल से उठा के तुम्हें विशुद्धि तक लेकर आना पड़ता है वह मैं ही जानता हूं तुम नहीं जान सकते और विशुद्धि पर भी तुम अपने प्रयास से नहीं आए यहां तक भी तुम्हें जैसे तैसे करके घसीट के लाना पड़ा और कोई बड़ी बात नहीं अगर तुम ऐसे ही डरते
रहे तो काम क्रोध अगर नहीं तुम्हें डगा जाएगा तो बह डगा देगा यह भय भी एक विकार पता नहीं क्यों मैं कभी-कभी सोचा करता हूं विकारों को कहने वाले ने भय को क्यों नहीं विकार में शामिल किया जबकि सबसे बड़ा विकार ही भय है मृत्यु का भय इससे बड़ा विकार कोई है ही नहीं और इससे बड़ा झूठ कोई नहीं तो मुझे क बार हैरान कीी होती है पथ प्रदर्श कों के ऊपर मार्ग दर्शकों के ऊपर संतों के ऊपर विद्वत जनों के ऊपर के भय को विकार के अंदर क्यों नहीं डाला गया जबकि सबसे बड़ा भय ही विकार है तुम इस विकार को जीत नहीं सके इसका मतलब साफ है कि तुम्हारा संकल्प अति
अति क्षीण है मुझे मूर्ख बनाने की चेष्टा ना करो य तुम्हारी मूर्खता मेरे आगे तो नहीं चलेंगी क्योंकि मैं अच्छी तरह से जानता संकल्प वान व्यक्ति अगर चाहे तो समुद्रों में आते हुए तूफानों को रोक देता है तुम एक मृत्यु के भय के तूफान को रोक नहीं सकते जो कि नकली है असली भी नहीं मृत्यु आई भी नहीं नकली है बस वह है सिर्फ विचार आया मृत्यु तो नहीं आई ना कै बनोगे तुम ईसा ईसा एक कश्ती पर जा रहे हैं रात होने को है सूरज ढल गया है आधे रास्ते आ गए मज धार में जिसे कहते हैं और बहुत से लोग उसमें 50 लोग बैठे हैं बड़ी सी किस्ती
तूफान आ गया और ईसा मस्त बैठे जो मस्ती के आशिक हैं वह बैठेंगे भी तो मस्ती में बैठेंगे व गाएंगे तो भी मस्ती में गाएंगे और बोलेंगे तो भी मस्ती में बोलेंगे वो मस्ती के आशिक है मस्ती उनका इश्क है तूफान आ गया भयंकर तूफान आ गया गड़गड़ाहट हुई चारों तरफ शोर शराबा मच गया नाव हिलने लगे थोड़ी-थोड़ी हिली फिर बहुत ज्यादा डोलने लगे और इतनी डोलने लगी कि समुद्र की लहरें उठ उठ के नाव के भीतर गिरने लगे और एक बार ग तो ऐसा लगा य तूफान की यह लहर किस्ती को पानी से भर देंगे और मजेदार में हम हैं बस बचने को कोई रास्ता नहीं आज प्रभु से प्रार्थना कर लो अंतिम
बेला आ गया थोड़ी थोड़ी हल्की हल्की काली माछा रही है सूरज ढल चुका है सभी ने देखा चिल्ला रहे हैं रो रहे हैं उछल कूद कर रहे हैं अपने अपने भगवानों से प्रार्थना कर रहे हैं बड़ा शोर शराबा है लेकिन इस शोर शराब के भीतर एक व्यक्ति बड़ा शांत मुद्रा में बैठा है उसके मुख मंडल पर आबो हवा कुछ ताजा नजर आती है कुछ मस् नी सी सुगंध उसके भीतर से प्रकट हुई लगती है ऐसा लगता है कि बाहर के कोलाहल से ये अभी अछूता है इसे पता नहीं कि बाहर तूफान आ गया है इतना मस्त और इतना अलगाव से बैठा है चीख पुकार हो रही रोवा धोई हो रही है
प्रार्थनाएं हो रही हैं लेकिन इस आदमी को जरा भी फर्क नहीं पड़ता ईसा मस्त हुए बैठे हैं आंखें बंद और मस्ती के भाव में उस मस्ती के सुरूर को पीते हुए तो एक व्यक्ति ने देखा उसने बाकियों को चेताया कि यह क्या है यह कोई पागल लगता है जो समझदार थे वो उठ गए उन्हें डर लगा ध्यान रखना डर समझदार को लगता है आशिकों को कभी डर नहीं लगता मस्तों को कभी डर नहीं लगता डर लगता है समझदार को जो समझदार थे वह जाग गए उन्हें डर लगा और जो आशिक थे वह नहीं डरे व मस्ती से बैठे रहे आंखें बंद किए उस सरूर को पतर किसी आदमी ने हिलाया जरा जगा तो दे मरेगा तो हम भी और
यह भी लेकिन जागता जागता तो मर जाए चलो इतना ही उपकार कर दो किसी ने सोचा उसको ज थड़ा उठ जा भाई देख बाहर क्या है तूफान चल रहा है ऊंची ऊंची लहरें इतनी ऊंची ऊंची लहरें और नाव तो भरने को है बस अब डूबी तब डूबी बेड़ा पार होने को है तुम भी आखिरी परि दृश्य देख लो आंखें खोली यसा मसीने देखा तूफान था बड़े वे का तूफान था शोर शराबा कुछ घना था आगे से भी तेज हो गया था तूफान फिर आंखें बंद कर ली उस आदमी ने फिर जगाया पागल हुए हो क्या सुना नहीं तुम कहता इससे कह दो शांत हो जाएगा तूफान से कह दो शांत हो जाएगा फिर तो वो हंसे सी
हसे इस मृत्यु के वेला में हंसी आई आनी नहीं चाहिए थी लेकिन इसके पागलपन की कहानी पर हंसी आई एक क्या कह रहा है कहने से कभी तूफान रुकते हैं उन्होंने फिर हिलाया थोड़ा से लोग चलो मरने तो चले हैं थोड़ा मजा ले ले उन्होंने फिर हिलाया कभी हमने तो कह दिया नहीं रुकता ये हम तो प्रार्थना भी किए हैं भगवान से अपने अपने भगवानों को सबने याद कर लिया और सभी धर्म के लोग बैठे थे उसम ईसा कहने लगे कि तुम कह दो रुक जाएगा तो वह व्यक्ति बोले सभी क्या हमसे तो नहीं रुका तुम ही कह दो ना रुक जाए अच्छा सभी की जान बच जाएगी नहीं तो हम
स्वीकार कर चुके हैं कि बस गए अब आखिरी वेला है अब नहीं मिल पाएंगे अपने घर वालों से अपने प्रेमी सज्जनों को अब नहीं मिल पाएंगे रात होने चली है कहीं गर्त में अंधेरे के डूब जाएंगे समुद्र गहरा है तुम ही कह दो हमारी बात तूफान नहीं मानता और तूफान भी कभी किसी की बात माना करता है ईसा उठे ईसा उठे उन्होंने हाथ सामने किया बोले रुक जा रुक जा बहुत हो गया रुक जा और तूफान रुक गया संकल्प वान व्यक्ति तूफानों को रोकने की क्षमता रखता है और एक बार कहा था सिर्फ तुमसे ना काम रुकता है ना क्रोध रुकता है ना लोभ ना मोह ना
अहंकार ना ही यह भय रुकता है यह तुम्हारे जी का जंजाल बन गया तुम खाक संकल्प जिसको मृत्यु का भय डगा दे कोई भी वासना डगा दे वह पंथ पर चल पड़ेगा यह पंथ उसके लिए नहीं है मैंने पहले दिन ही कहा था अगर को हाथ पर रखने की जरूरत ना हो तो घर बैठे रहना भाई कोई काम धाम कर लेना व्यापार कर लेना कोई नौकरी पैशा कर कोई छोटी मोटी नौकरी ढूंढ लेना इन पंग में मत पढ़ना यह जिंदगी के साथ खिलवाड़ करने का रास्ते हैं तुम ढूंढते हो इसमें मस्त मस्ती तो आएगी लेकिन जिंदगी से खिलवाड़ पहले करना पड़ेगा क्योंकि जिसे तुम जिंदगी कहते
हो वह जिंदगी का धोखा है वह जिंदगी है नहीं तुम्हारी मानी हुई जिंदगी तुम्हारी जानी हुई जिंदगी तो तुमने अब तक जानी ही नहीं तुम जो जीवन हो वो तो तुमने अपने जीवन को कभी देखा ही नहीं तुमने तो सिर्फ माना हुआ जीवन उसको जीवन समझ लिया और उसी के मरने का भय है तुम्हारे भीतर अब कितनी बार बोलू भाई 2000 से ऊपर की वीडियोस में बोल चुका हूं और हर एक वीडियो में यही बात होती है एक ही बात होती है और कमाल की बात है तुम्हारे गरे से नीचे उतरती तुम आत्महत्या तो कर सकते हो अहंकार की हत्या नहीं कर सकते और मैं तुमसे कहता हूं आत्महत्या
करना बड़ा आसान है बच्चों का खेल क्या मुश्किल मुश्किल तो है अपने इल्यूजन को मार देना अपने भ्रम को खत्म करना उस पर नंगी तलवार फेर देना उसका शीश काट लेना जैसे राम कृष्ण परमहंस ने सदा से मानी हुई अपनी मां काली का सिर काट दिया था वो वीर कहलाया तुम कायर नकली है रोज बोलता हूं शस्त्र बोलते हैं संत बोलते हैं सारे बोलते हैं कबीर कहते हैं सभी संतों की बातें जक सा होती हैं मूर्ख अपनो अपनी सभी स्याने एक मत सभी स्याने एक बात कहते हैं जिसे तुम जिंदगी समझते हो वो जिंदगी है नहीं वह नकली जिंदगी है प्लास्टिक के फूल है तुमने
माने हुए हैं असली फूल नहीं है यहां से सुगंध नहीं उठेगा और उठती भी नहीं रोज लोग मुझे कहते हैं आ बाबा दुखी है मैंने कहा नकली फूलों से कभी सुगंध आती है तुम जिस जीवन को पकड़े हो जीवन करके उससे कभी सुगंध मस्ती नहीं आएगी क्योंकि वह असली जीवन है नहीं वह असली फूल नहीं है वह धरती की छाती को पाड़ के नहीं आया और तुम उसको जीवन समझे बैठे हो मान लिया है तुमने काश तुमने जाना होता और जानने की प्रक्रिया तुम्हे कोई समझाता है तो यह भय की बाधा बीच में फस जाती है ये तुम्हें आगे नहीं चलने देता कितने कितने उदाहरण तो मैं रोज देता
हूं रोज कहते हैं गोरख मरो हे जोगी मरो मरो मरण है मीठा ऐसी मरनी मरो जिस मरनी मर गोरख अपना वह असली फूल देखो जो तुम्हारे भीतर खिला प्लास्टिक के फूलों में मत उलझो इनको मार दो तुम खाक संकल्प वान इन माने हुए नकली फूलों को तुम असली फूल समझे बैठे हो और तुम इन भ्रमों को भी नहीं तोड़ पाते तो तुम पहुंचो के कैसे तो रास्ता बड़ा दुष्कर अज्ञात राहे हैं साथी ना कोई मंजिल दिया है ना कोई महफिल चला मुझे लेके है दिल अकेले कहां साथी ना कोई मंजिल दिया है ना कोई महफिल चला मुझे लेके है दिल केले [संगीत] कहां अज्ञात रहे अंधेरी
रात आसमान पर बादल रात भी अमावस्या की रात तारा भी तो नहीं दिखता चांद भी तो गायब [संगीत] है गने बादल छाए हैं काले मेघ हाथ को हाथ नहीं दिख रहा तुम कहां खड़े हो इसकी कोई खबर नहीं और तुम्हारे साथ भी कोई नहीं तुम अकेले हो और इन अज्ञात राहों पर तुमने चलना है तो सोचिए कितना साहस चाहिए और साहस तुम में इतना भी नहीं कि तुम विचारों को साक्षी रूप से देख लो विचार मृत्यु नहीं है मृत्यु के विचार है विचार मृत्यु नहीं है समझना बात को मृत्यु के विचार हैं और तुम इन नकली विचारों से डरते हो कांपने लग जाते हो वैसे तो संसार सारा
कायर कायरों की भाषा में उलझा उलझा कोई वृक्षों को मान रहा है वृक्षों से डर रहा है लोग झंडों की पूजा करते हैं लोग खेतर बाल की पूजा करते हैं कभी देखा नहीं कभी सोचा नहीं यह पेड़ है तुम इससे भी डरते हो कितना संकल्प होगा तुम में तुम उनकी पूजा करते हो जो है ही नहीं तुम उनके चिराग लगाते हो जो तुमने देखे हैं यह लाला वाला यह पीर यह खीर देखे हैं तुमने और फिर बोलता मैं हूं टांगे तुम्हारी कते हैं य बड़े मजे की बात है मैं बोला करता था मेरे साथ खड़ा हुआ आदमी कंपा करता था मैंने कहा तुम को कप रहे हो बोलता तो मैं
हूं वह तो ठीक है बाबा लेकिन तुम्हें तो वह कुछ कह नहीं पाएगा मेरे घोटना जरूर मार देगा ऐसे ऐसे विचार हैं तुम्हारे डर के जिन में संदेह ही संदेह भरा पड़ा है संकल्प है और जहां संदेह है वहां संकल्प नहीं इसलिए कृष्ण ने कहा संश आत्मा बनते जिसके भीतर संदेह होता है वह मर ही जाता है एक दिन उसका विनाश हो ही जाता है और संदेह तुम्हारे भीतर से जाता नहीं रोज तुम संदेह उठाते हो शब्द नए नए घड़ लेते हो डायमेंशन नए नए खड़े कर लेते हो उनके भीतर छिपी मौत में साफ देखता हूं तो मैं ना जाने क्यों नजर नहीं आती वो हद हो गई भला अगर किसी का तुम चिराग ना
चलाओगे वो तुमको घोटना कैसे मार देगा भाई उसके बाप कुछ देना है हमने कोई कमिटमेंट करके आया उसकी क्या औकात तुम्हें दिया जलाने को वह मजबूर करते लेकिन तुम डरते हो तुम परछाइयों से डर जाते हो तुम ऐसे कायर हो पेड़ों से डर जाते हो दो ईट लगी हो कहीं उससे डर जाते हो मजारों से डर जाते हो तुम्हारी कायरता की कोई सीमा नहीं और कोई कितना ही तुम्हें विश्वास दिला दे लेकिन तुम्हारी कायरता है कि वह टूटने का नाम नहीं लेती सब डर के फरमान है किसी तरह से पेश करो कोई चेहरा बना के आ जाओ कोई मेकअप करके आ जाओ कोई पोशाक डाल के आ
जाओ लेकिन मैं अच्छी तरह से जान लूंगा मैं धरती के बीच की खबर रखता हूं मैं आसमान के ऊपर की खबर रखता हूं मैं चारों दिशाओं की खबर रखता हूं मुझसे तुम कुछ नहीं छुपा सकते जरा सोचो तो मेरी ही सृष्टि में मुझसे कुछ छुपा रह सकता है सोचो मेरी ही सर्जना में कुछ ऐसा हो सकता है जो मुझसे ही छि पाओ और मैंने ही तुम्हें 100 बार कह दिया मत डरो मत डरो तुम्हारा डर गलत है यह सिर्फ ब्रम है यह सत्य नहीं है यह फूल पृष्ट के हैं य धरती का गर्भ पाड़ के आए हुए फूल डरो मत ये परछाइयां है लेकिन तुम कहां छोड़ते हो तुम इस डर को छोड़ते ही
नहीं दिल है के मानता नहीं दिल है के मानता नहीं बेकरा क्यों हो रही है यह जानता ही नहीं दिल है की मानता नहीं यह बेकरारी क्यों हो रही है यह जानता ही नहीं बस यही तुम्हारा हाल है तुम नहीं मानोगे और जलते रहोगे भीतर से और तुम बुलाते रहोगे पुकारते रहोगे संतों को हम दुखी हैं दुखी रहोगे यह बेकरारी किसलिए है यह जानता ही नहीं दिल है के मानता नहीं संतों की बात को य दिल मानता कितना ही बोले जाए बस बोले जाए कोई फर्क नहीं पड़ता तुम्हारी बेकरारी क्यों है क्यों रात भर नींद नहीं आती क दिन भर बेचैनी रहती है ये जानता ही नहीं
बेकरारी है किस लिए उसका कारण तुमने कभी नहीं जाना यह भय है जो तुम्हें बेकरार रखता है मृत्यु का भय और भय है सिर्फ भय विचार है भावना है सत्य नहीं है जब सत्य में व आ जाएगी तो क्या हो हाल होगा जनाब अभी तो सिर्फ वैसे ही काप ले तो मैं आखिरी बात बता दूं प्रबल प्रबल संकल्प चाहिए ईसा जैसा संकल्प जक बच्चों का खेल नहीं है सहसरा से निकल जाना आशुतोष निकल गया तो वह कोई बच्चा नहीं था वह जानता था स्वयं को बस ये सूचना का भाव था उसके भीतर कि अगर यहां से निकला तो बापस नहीं आ पा कारण को साथ ले गया देही को साथ ले गया
वापस आ नहीं सका क्योंकि जब भी निकलेगा कोई देही सहस्रार से तो कारण साथ जाएगा जब भी निकलेगा देही नाभी चक्कर से तो कारण साथ नहीं जाएगा कारण सिर्फ जाता है जब देही मात्र सहसरा से निकलता है क्योंकि वह अंतिम यात्रा होती है और जब यह देही गल जाएगा तो मैंने आपको बताया है फिर देही तो होगा नहीं फिर यात्रा इसकी कारण शरीर की सहसरा से हो ग उससे पहले मैंने तुम्हें कहा बाहर एस्टल ट्रेवलिंग करनी हो बाहर जाना हो घूमना फिरना हो शौक हो घूमो फिरो बड़े रास्ते हैं परमात्मा की सृष्टि बड़ी प्यारी है तुम्हारे लिए ही बनाई
है इसे देखो निहारो और इतने संकल्प तुम्हारे में है भी नहीं कि तुम इस सृष्टि को देखने के लिए भी सहसरा से निकल जाओ यह गलती कभी सोच के भी मत करना ऐसा सोचना मत तुम निकल नहीं सकते इतना नहीं है संकल्प तुम्हारे पतर आम व्यक्ति में इतना संकल्प नहीं होता बिल्कुल बेफिक्र हो जाओ तुम जो व्यक्ति अपने रोजमर्रा की काम क्रोध लोभ मोह अहंकार इन छोटी-छोटी कमजोरियों को नहीं जीत सकता उसके भीतर कितना संकल्प होगा तुम समझ ही सकते हो जो ईसा मात्र कह देता है रुक जा तूफान रुक जाता है और तुम इतना भी नहीं क सकते हो काम के तूफान को नहीं कह सकते रुक
जा नहीं कह सकता और काम क्रोध लोभ मोह अहंकार तुम्हें अपने परिवेश में घर लेता है इसलिए तुम गुलाम तुम गुलामों की तरह जिंदगी जीते हो तुम कभी नहीं बने तुम इंद्रियों के मालिक कभी हुए नहीं सदा इंद्रियों ने तुम्हें भटका है बहका है इंद्रियों ने अपने पीछे लगाया है तुमहे धोखा दिया है इंद्रियों ने क्यों संकल्प की कमी के कारण दृढ़ संकल्प है ही नहीं तुम्हारे पतर फिर फिर वही प्रश्न जो कल उठा था वही आज फिर तुम कहते हो बाबा तुम रो रोज वही बात बोल देते हो अरे भाई तुम प्रश्न रोज वही कर देते हो भीतर तो वही कुनीन होती है मैं अच्छी
तरह से जानता हूं बाहर क्या लगाते हो यह तुमने देखना है ऐसी मड़ता है बंद करो ये मेरी जिम्मेवारी जब उस तल पर तुम आओगे तो योग्य होगे सहस्र से निकलने के और जल्दी जल्दी कोई व्यक्ति योग्य नहीं होता तुम इतने काबिल नहीं हो अभी कैसे है सरा से तुम निकल पाओ तुम कितनी ही कोशिश कर लो कोशिश करके भी नहीं निकल पाओगे पहले खुद को जानना होता है खुद के जानने से संकल्प गना हो जाता है प्रबल हो जाता है फिर उस संकल्प के साथ जाया जा सकता है फिर चाहे नाभी चक्र के द्वारा जाओ चाहे सहसरा से जाओ यह तुम्हारी मर्जी लेकिन अभी जो काम हो ही नहीं सकता
उसको भी तुम्हारा मृत्यु का भय डराता है यह कोई प्रश्न नहीं था लेकिन मैंने तो उठा लिया कि यह सबका प्रश्न है कहीं ना कहीं मन के किसी भीतरी कोने में यह प्रश्न पड़ा होगा और जब तुम ध्यान में गहरे उतरते होगे तो यह प्रश्न आड़े आता होगा कि कहीं ऐसा ना हो सहस्रार में से निकल जाऊं और फिर वापस ना आ पाऊ तुम अगर निकल भी जाओगे सहसरा से तो कारण तो नहीं जाएगा समझा कारण संकल्प है वह चेतना की बूंद है और मैं तुम्हें कहता हूं अकेला देही निकल नहीं सकता अकेले देही के लिए मार्ग क्या है ना भी चक्कर कितनी बार समझाया तुम समझे
हो अकेले देही को अगर छोड़नी हो यह काया तो नाभी के द्वारा ही छोड़नी पड़ेगी उसे और अकेले कारण शरीर को छोड़ना हो अगर यह काया तो सबसे बढ़िया चक्कर उसके लिए छोड़ तो किसी भी चक्कर से सकता है कारण श तो मालिक है लेकिन उसके लिए विशेष द्वार है सहस्त्र गलती मत खाओ मैंने ठीक से तुम्हें समझा दिया है तुम नहीं निकल पाओगे चाहते हुए भी नहीं निकल पाओगे कितना ही जोर लगालो तुम इतने संकल्प वान नहीं हो यह हो तो नहीं सकता लेकिन मैं तुम्हें कहता हूं अगर अकेला देही निकल भी जाए इट इ इंपॉसिबल लेकिन मैं तुम्हें कहता हूं कि तुम मान लो
अलजेब्रा की तरह सुपो तो भी देही वापस आ जाएगा क्योंकि कारण नहीं जाएगा साथ में कारण संकल्प है वह संकल्प के साथ ले जाया जाता है यही गलती खा गया उसने कारण को साथ घसीट लिया और उसी मार्ग से निकल गए जिसे उसके गुरु ने बताया था जो भी गुरु था के कारण शरीर को लेकर सहसरा से निकला जाता है वह कारण को देही के साथ लेकर निकल गए उलज गया अब बात समझ में आ गई तुम नहीं निकल सकोगे यह नियमों के विरुद्ध है यह प्रकृति के ईश्वर के नियमों के बिल्कुल विरुद्ध है तुम जा ही नहीं सकते इसलिए ध्यान करो मजे से इल्यूजन तो मरेगा इसको तो मरना ही
पड़ेगा और कोई रास्ता नहीं लेकिन तुम नहीं मरोगे ये मैं गारंटी देता हूं मैं ना मरू मरे संसारा कबीर ने कहा तो मैं ना मरू मरे संसारा संसार मरेगा संसार यानी जो झूठा है जो फेक है जो इल्यूजन है जो भ्रम है जो आइडेंटिटी है सिर्फ व मरेगा और ब्रम को मरना भी चाहिए मोहे मिला जलावन हारा मुझे वो तत्व मिल गया जो कभी मरता नैनम चद शस्त्र नैनम दहति पाव का नम कदंत नते मारुता श्री कृष्ण गोविंद हरे मुरारी हे नाथ नारायण वासुदेव श्री कृष्ण गोविंद हरे [संगीत] मुरारी हे नाथ नारायण वासुदेवा पितु मात स्वामी सखा हमारे पितु
मात स्वामी सखा हमारे हे नाथ नारायण वासुदेवा श्री कृष्ण गोविंद हरे मुरारी हे नाथ नारायण वासुदेव देवर [संगीत]
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