बाबा जी प्रणाम जब से मैंने आपको सुनना शुरू किया है मैंने किसी दूसरे चैनल को नहीं
सुना काफी कुछ छोड़ दिया पर बाबा जी अपने अंदर कैसे जाऊं कुछ समझ नहीं आ रहा इतना
समझा आया कि बाहर से कुछ मिलने वाला नहीं है और आज तक कुछ मिला भी नहीं इसको सत्य
पाया कैसे अपने को जानूं अंदर उतरूं आप कुछ कृपा करें मेरे से नहीं हो रहा
प्रणाम
प्रश्न सिर्फ एक आदमी का नहीं है प्रश्न समस्त जगत का है विश्व प्राणियों का है
अपने भीतर कैसे उतर अपने भीतर उतरना नहीं है इसके एक एक शब्द को ध्यान से समझना अप
ने भीतर उतरना नहीं है तुम तो अपने ही भीतर कब से बैठे हो बाहर की पकड़ छोड़ देनी
है फिर समझिए सूत्र को इस सूत्र को आप लिख लेना कागज पर लिख लेना हृदय पर लिख लेना
अपने अंदर नहीं उतरना है अंदर तो तुम हो ही मात्र बाहर की पकड़ को छोड़ देना है
उससे क्या होगा जब तुम बाहर की पकड़ को छोड़ दोगे जो कि तुमने गलत पकड़े रखी थी
बाहर की पकड़ को पकड़ने के कारण ही तुम अपने अंतर में उतर नहीं रहे थे यह बाधा है
इसलिए बाधा को काटने की जरूरत है मार्ग को तय करने की जरूरत नहीं है फिर इस शब्द को
आप ध्यान से सुनिए बाधा को काटने की जरूरत है मार्ग को तय करने की जरूरत नहीं अब
भला तुमको किसने सिखा दिया ऐसा अविवेकी प्रश्न कौन पूछता है यह मूता भरा प्रश्न है
कि मैं अपने तक कैसे पहुंच जाऊं इससे ज्यादा मुड़ता भरा प्रश्न हो ही नहीं सकता और
तुम चल्ला रहे हो और संत कहते हैं कि चिल्लाओ मत तुम तो आनंद के सागर हो तुम तकलीफ
काहे झेल रहे हो और तुम कहते हो कि अपने अंदर जाऊं कैसे अब यह बड़ी मुसीबत है और आप
कहोगे यह प्रश्न मैंने क्यों उठा दिया क्योंकि यह प्रश्न एक व्यक्ति का नहीं यह
प्रश्न समस्त जगत का है सच पूछो तो तुम सभी यही प्रश्न पूछना चाहते हो इसलिए मुझको
यह प्रश्न अलग-अलग ढंग से आपको समझाना पड़ता है यह कोई पहला ढंग नहीं है जो मैं
आपको आज समझा रहा हूं इससे पहले मैंने अन्य अन्य ढंग से आपको बहुत समझाया अब इस ढंग
से समझ लीजिए अपने भीतर उतरना नहीं है सिर्फ बाहर की पकड़ को छोड़ देना जैसे आपके
शिवर लेने वाले लोग योग निद्रा की शीवर लगाते हैं वो क्या करते हैं सिर्फ आपको
रिलैक्स होने के लिए कहते हैं सिर को छोड़ दो हाथों को छोड़ दो हृदय को छोड़ दो पेट
को छोड़ दो जिगर को छोड़ दो किडनी को छोड़ दो पाव को छोड़ दो उंगलियों को छोड़ दो
छोड़ दो मतलब मतलब तुमने ये पकड़ रखी है और तुम्हें पता भी नहीं तुमने अपने शरीर के
प्रत्येक अंग को बुरी तरह से जकड़ रखा है और तुम्हें यह पता भी नहीं यही दुविधा है
तो योग निद्रा में ले जाने व्यक्ति वाले व्यक्ति आपसे कहते हैं कि यह पकड़ छोड़ दो
एक एक अंग को वह छोड़ने के लिए कहते हैं यही घटना जो आप शिवर में जाकर सीख के आते
हो मैंने आपको सरल ढंग से समझा क्रिया योग के द्वारा आप सहज भी गुढ़ योग निद्रा में
डूब जाते हो आपको किसी मास्टर की जरूरत नहीं पड़ती किसी व्यक्ति के हिप्नोसिस की
जरूरत नहीं पड़ती किसी दूसरे व्यक्ति का सहारा नहीं चाहिए कहां ढूंढोगे रोज यहां तो
रोज ही योग निद्रा में जाना होता है और ध्यान रखना प्रकृति आपको रोज योग निद्रा में
ले जाती है आपको बिना बताए कंप्लीट रिलैक्सेशन जब आप रात को सो जाते हो यह जो सांझ
ढले सूरज ढलता है और आपके भीतर एक हार्मोन क्रिएट हो शुरू हो जाता है जिसका नाम है
मेलाटोनिन यह मेलाटोनिन ऐसा पदार्थ है जो आपके अंगों को शिथल करने का काम करता है
और शरीरों को पड़ों से मुक्त करता है तो मेलाटोनिन जैसे ही पैदा हुआ ईश्वर को पता
है प्रकृति को पता है सारे दिन का थका मादा अब इसे विश्राम करना चाहिए तो भीतर वैसे
ही क्रिएशन शुरू कर देता है और उस मेलाटोनिन के कारण आप शिथल शिथल शिथल होना शुरू
हो जाते हो छोट चले जाते हो प्रत्येक अंग को वही योग निद्रा वाली कहानी फिर तुम
तुम्हारे तक पहुंचते नहीं तुम तुम्हारे तक तो पहुंचे ही हुए हो तुम तुम क्या हुए
अगर तुम तुमको छोड़ सके फिर समझना इन शब्दों को तुम तुम क्या हुए अगर तुम अपने आप
को छोड़ सके वह स्वभाव नहीं होता जो छोड़ दिया जाए अग्नि अपने स्वभाव को आग अपने
स्वभाव को गर माइश को कभी छोड़ नहीं सक यह उसका स्वभाव है ऐसे ही तुम तो तुम्हारे
भीतर ही हो तुम कब से अपने अंदर ही स्थित हो लेकिन तुम कहते हो मैं बाबा अपने अंदर
उतरू कैसे नहीं यह काम भी तुमने नहीं करना प्रकृति रोज खुद बखुदा अगर तुम्हारे सोने
की कोशिश तुम करोगे तो उस कोशिश में ही नींद गायब हो जाएगी तुम जब सभी कोशिशों को
छोड़ देते हो सभी सोच सभी चिंताएं छोड़ देते हो तो प्रकृति तुम्हें निद्रा के गहन
तलों पर ले जाती है बस यही प्रोसेस तुम्हें करना होगा प्रकृति तुम्हें रोज सिखाती
है लेकिन तुम आज तक कुछ नहीं सीख पाए कुछ सीखा प्रकृति से प्रकृति के करीब आओ
प्रकृति से दूर हटते चले जाते हो रोज और एक बात को हृदय में बसा लेना प्रकृति से
जितने भी दूर हो जाओगे उतने ही दुखी हो जाओगे इसलिए मानव आज इतना दुखी है उसके दुखी
होने का कोई और अन्य दूसरा कारण नहीं है प्रकृति से दूर हो गया प्रकृति को काटना
पीटना शुरू कर दिया प्रकृति से दूर होना दुख का सबब बनता है प्रकृति की गोद में आ
जाओ प्रकृति की सानिध्य में आ जाओ उसकी सन्निधि का स्वाद चखो जैसे रात को प्रकृति
तुम्हें सुषुप्ति के उन गहरे अंधेरे कमरों में ले जाती है वहीं तुमने जाना है बस
सुषुप्ति में तुम जहां चले गए जिस प्रोसेस को अपना के गए प्रकृति ने तुम्हें रोज
सिखाया कि शिथल हो जाओ सोच को बंद कर दो बस अब कुछ नहीं करना है अब सुबह अगर
जागेंगे तो करेंगे अन्यथा राम नाम सत है बस यही फार्मूला अमाना पड़ेगा रोज सिखाती
है कुदरत तुम सीखते नहीं गुरु भी यही सिखाता है छोड़ दो उसके ऊपर छोड़ दो जैसे रात
को परमात्मा के ऊपर छोड़ देते हो आपको डर लगता है नहीं नींद में जाते वक्त आप
अज्ञात के हाथों में जब अपने आप को छोड़ देते हो तो क्या तुम डरते हो जरा भी नहीं
तुम्हें आनंद आता है हां क्यों आता है क्योंकि तुम्हें पता है कि सोने से जब मैं
उठूंगा तो अपने आप को तरो ताजा पाऊंगा तुम्हें परिणाम का पता है नींद के परिणाम का
तो तुम्हें पता है लेकिन मृत्यु का एक दूसरा नाम है वह भी नींद है चिर निद्रा सदा
के लिए सो गया तुम नींद से नहीं डरते चिर नींद से डरते हो अगर यह नींद लंबी हो जाए
सदा के लिए हो जाए तो तुम बड़े कापते हो तुम डरते हो बस यही संत तुम्हें समझाते हैं
यही गुरु की आवश्यकता पड़ती है गुरु कहता है जब तुम नींद में मरते नहीं सुबह ज्यादा
ताजा होकर उठते हो इसी तरह जब तुम अपने भीतर जाओगे तो अपने आप को छोड़ जाना होगा जो
आप अपने आप अब तक समझे बैठे हो तुम अपने आप को अब तक क्या समझे बैठे हो मैं शरीर
हूं मैं मन हूं मैं विचार हूं इसीलिए तो थोड़ी सी आपके विचारों की काट होते ही आप
फौरन अदालतों का दरवाजा कटक देते हो मान हानि का दावा कर देते हो इसमें कसूर आपका
है आपने यह मान्यताएं बनाई ही क्यों यह झूठी मान्यता ये आपने मनाई ही क्यों शिवलिंग
पत्थर की मूर्ति होता है उसके ऊपर दूध चढ़ाते हो अगर कोई कह देता है कि यह पत्थर के
ऊपर दूध क्यों चढ़ा रहे हो बाहर जो पिंजर लिए बैठा है जिसको खाना नसीब नहीं हुआ उसे
क्यों नहीं पिला तो आपकी भावनाएं आहत हो जाती आप अदालतों के दरवाजे खटखटा हो और
दूसरे व्यक्ति को सजा हो जाती है सजा देने वाले भी आप जैसे ही मूढ़ क्योंकि वह भी
वास्तविकता का ज्ञान नहीं रखते यहां तो खुद को आध्यात्मिक कहने वा लोगों का पता ही
नहीं कि उन्होंने साधना की किस वक्त जन्म लिया बड़े हुए पर वर्ष पाई पढ़े लिखे बड़े
हुए कंपटीशन लड़ा आईएएस बने फिर अचानक से आध्यात्मिकता के क्षेत्र में उतर के कृष्ण
की गीता और उपनिषदों की व्याख्या करनी शुरू कर द एक दिन भी इन्होंने अपने अंतस में
उतरने का प्रयास नहीं किया और फिर शब्दावली यह प्रयोग करते हैं कि एनलाइन मेंट होती
ही नहीं तो फिर मार्क्स में और इन आचार्यों में जरा सोचो बताओ फर्क क्या है समाज की
प्रणालियों के ऊपर आपको गाइड करते रहेंगे यह लोग लेकिन समाज की प्रणालियों के ऊपर
गाइड करने से आध्यात्मिकता का कोई संबंध नहीं क्योंकि सामाजिक प्रणालियां बुद्धि और
मन से जुड़ी हुई है और आध्यात्मिकता बुद्धि और मन से से पार की बात है दोनों में
संबंध जोड़ो भी तो कैसे जड़गे लेकिन नहीं यह आचार्य गण है और मैं रोज बोलता हूं भाई
तुम यह तो बता दो कि तुम कुर्सी पर बैठे बैठे अचानक कमंडल उठा लिए तुम अपने अंतस
में गए कब तो इनके पास कोई जवाब नहीं होता इनको देखकर संत पुरुषों को एकांत में
बताए हुए लम्हों को लज्जित होना पड़ता है और उन लोगों को यह गालियां निकालते हैं जो
आध्यात्मिकता की बात करते हैं तर्क की कसौटी पर बातें ठीक लगेंगी इन लोगों की
क्योंकि बुद्धि प्रखर है तर्क से ही तो जीते हैं यूपीएससी तर्क से ही तो बने हैं
आईएस सूचनाएं संग्रहित हैं इनके न्यूरॉन में बहुत ज्यादा मात्रा में और इन सूचनाओं
के कारण ही ये आपको बुद्धु भी बनाते हैं और प्रभ भी करते हैं असल में देखा जाए तो
यह मार्कस हिटलर स्टालिन के दूसरे रूप है नकाब ढ लिया है आध्यात्मिकता का यह बात
जुदा आध्यात्मिकता की बात इनसे आपको सुनने को मिलेगी इस बात की उम्मीद कभी भी मत
करना क्योंकि जिसने एकांत के उन गरे परलो का उन गहरे स्थलों का अनुभव नहीं किया वह
आपको एकांत में है क्या य बताएगा कैसे वह बता नहीं पाएगा अगर वह बताएगा बिना अनुभव
किए तो ध्यान रखना बुद्धि के तल से बता पाएगा लेकिन अध्यात्म बुद्धि के तल से पार
है अध्यात्म मन और बुद्धि की पकड़ से परे इनका गीता का उपनिषद का व्याख्या आपको
सटीक मालूम पड़ेगा लेकिन बेईमानी है जब मैं गहरे से देखता हूं वर्णन को तो सरासर
बेईमानी प्रतीत होती है भला वहां पहुंचे बिना वहां के नजारों का व्याख्यान किया
कैसे जा सकता है नहीं किया जा सकता लेकिन यह लोग करते हैं करते हैं तो फिर अंदाजे
से करते खुद के अनुभव से नहीं करते और अंदाजे तो सदा गलत हो सकते हैं अंदाजे गलत ही
होते हैं अंदाज को ऐसा बोला जाएगा जैसे उनके भीतर कोरे थोथे शब्द है शब्दों के भीतर
अमृत की रसधार नहीं बहते इनके शब्द उस अमृत के सागर में लिब के नहीं आते लेकिन संत
के शब्द अपने अंतस के खुमारी के आनंद के सागर में लिपट कर आते हैं शब्द वही है
पहचानने वाला चाहिए संत के शब्द उस घुमारी से ओत प्रोत होते हैं देखने में आपको यक
सा लगेंगे शब्द दोनों बराबर है इसने भी तो वही कहा जो उसने कहा लेकिन एक बात चूक
जाओगे क्योंकि आपने उस कुमारी का कभी अनुभव नहीं किया के दोनों शब्द तो ठीक थे
बराबर लेकिन एक खुमारी के आनंद से सुगंधित था और एक रस विहीन था शब्द दोनों वही थे
लहजे में फर्क था बारीक फर्क था आपने समझा नहीं यह लोग आध्यात्मिकता के लाम पर कलंक
क्योंकि यह लोग इतने तथाकथित आस्तिक को पैदा कर जाएंगे जो वास्तव में नास्तिक होंगे
बस यही डर है अध्यात्मिकता को नास्तिकों से जरा भी डर नहीं आध्यात्मिकता को डर है
तो इन तथा कथित आको से डर है तथा कथित अध्यात्मिक केंद्रों के संचालकों से डर है
क्योंकि इनके पास आध्यात्मिकता के पास जाने का अनुभव नहीं शब्द बहुत है शब्द घने
हैं लैंग्वेजेस घनी है वोकैबुलरी बहुत है सूचनाएं अनंत है यह आपको भरमा लेंगे बड़े
आसानी से भरमा लेंगे इसलिए मैं कहता हूं मार्कस स्टोलिन हिटलर मानवता के लिए
आध्यात्मिकता के लिए कोई विशेष नुकसान नहीं करके जाते नुकसान करते हैं तो यह झूठे
प्रं लोग जो लबा उठ लेते हैं आध्यात्मिक होते हैं नास्तिक प्रकट करते हैं आस्तिक
यही मुश्किलात आ जाती है सत्य के अनुभवी व्यक्ति को संत इन्हीं से प्रताड़ित होता
है क्योंकि इनके शब्द सटीक मालूम पड़ेंगे लेकिन सब होगा पौष्टिकता ना होगी भोजन में
सब हो स्वाद हो पौष्टिकता ना हो तो भोजन का आपने करना क्या है जिसने आपको एनर्जी ना
दी वह भी कोई भोजन होता है स्वाद भले कितने ही हो बात तो एनर्जी की है भोजन हम जिस
नियत से जिस परपस से कर रहे हैं वो परपस तो हमारा हल नहीं हु तो पूछा है अपने भीतर
कैसे उतरू नहीं अपने भीतर नहीं उतरना है फिर से समझ लो शायद कोई क्षण ऐसा
सौभाग्यशाली आ जाए कि तुम्हें मेरी बात अंतस समय उतर जाए अपने भीतर नहीं उतरना है
अच्छी तरह से समझ लो बात को बाहर की पकड़ छोड़ते नहीं देखने में दोनों बातें यक सा
लगेंगी एक सार लगेंगी लेकिन है विरोधी अपने भीतर जाने का प्रयास परिश्रम है और बाहर
से पकड़ छोड़ना विश्रांति है फिर सुन अपने भीतर अपने भीतर जाने का प्रयास परिश्रम
है मेहनत है प्रयास है बाहर से पकड़ को छोड़ देना प्रयास नहीं बाहर से पकड़ को छोड़
देना अप प्रयास है विश्राम है जैसे ही बाहर से पकड़ को छोड़ते हो आप निद्रा में चले
जाते हो वैसे ही आप बाहर के प्रयासों को छोड़ोगे पकड़ो को छोड़ोगे तो ध्यान में भी
चले जाओगे प्रोसेस द [संगीत] सेम बट कंडीशन इज डिफरेंट एक कंडीशन में तुम थके हरे
होते हो उसमें प्रकृति तुम्हें अपनी गोद में ले जाती है और एक में तुम तर उता जा
होते हो अगर उस स्थिति में तुम वही प्रक्रिया अपनाते हो और छोड़ते हो अपने आप को तो
तुम वहां पहुंच जाते हो जहां मैं कह रहा हूं थके हारे व्यक्ति को प्रकृति नींद में
ले जाएगी और परम जागरूक एनर्जेटिक व्यक्ति को प्रकृति स्वभाव में ले जाएगा फिर से
सुनो इसको थक्का मांधा व्यक्ति जब छोड़ेगा अपने आपको को तो प्रकृति अपना काम करेगी
और तुमको अपनी गोद में ले जाएगी विश्रांति देगी और आप तरोताजा होकर उठ जाओगे यह दो
पार्ट करलो इसके यह थी समाधि की अवस्था सोए अब जाग गए तरोताजा हो गए एनर्जेटिक हो
गए तो अब आपको छोड़ो जागे जागे सांझ ढले रात गए आपने छोड़ा था अपने आपको थके थके
हारे हारे और प्रकृति आपको सुलाने के अलावा कुछ कर भी नहीं सकती थी मजबूरी थी तो
प्रकृति आपको सुषुप्ति के गहरे तलों में ले गई और आपने रात भर विश्राम पाया आप
तरोताजा हो गए तरोताजा होकर जब तुम जागृत होकर वही प्रोसेस को दोहराते हो तो तुम
ध्यान में चले जाओगे अब शायद आपको बात समझ में आ गई हो जब तुम परम फ्रेश हो वो वक्त
है ध्यान करने का इसलिए संतों ने कहा अमृत वेला में जाकर ध्यान करना प्रभु स्मरण
करना कहने का ढंग था आज वो भाषा इस्तेमाल नहीं होती आज तर्क की कसौटी पर एकएक अक्षर
की मात्रा तक कसी जाती है संतों ने कहा मनीष ने कहा कि अमृत वेला का लाभ उठा लेना
उसका अर्थ क्या था कोई ऊपर से अमृत की बूंदे झरती हैं क्योंकि वही वेला है जब आप
सारी रात विश्रांति में से निकलकर भरपूर एनर्ज टिक होकर बाहर आया और जब तुम
एनर्जेटिक तरो ताजा होकर बाहर आए हो तो वही वक्त है ध्यान में जाने का रात उसी
प्रोसेस को दोहराने से आप जाते हो नींद में नींद आपको तरोताजा कर देती है लाद देती
है आपको ऊर्जा से ओत प्रोत कर देती है आपके अंग प्रत्यंग को ऊर्जा से और सुबह आप
ताजा होकर उठते हो आपका अंग अंग शक्ति संपन्न होता है तो फिर क्यों कहा के ब्रह्म
वेला में उठकर स्मरण करना याद करना क्या याद करना तुम हो हु आर यू सेल्फ रिमेंबरिंग
जी याद कर याद कैसा आएगा वही प्रोसेस जो आपने रात को नींद में जाते हुए छ की थी
अपने आप के सारे अंग प्रत्यंग को छोड़ दिया था यह छोड़ना शब्द बड़ा प्यारा है इस
छोड़ने शब्द से अगर आप कुछ सबक ले सको तो अति शुभ होगा जब आप छोड़ना जानते नहीं आप
पकड़ना जानते हो तो आपको संत सिखाते हैं कि छोड़ना कैसे है इसलिए न की इतनी महिमा
बताई गई शरीर की इंद्रियों के बाद आप अगर कहीं पकड़ रखते हो तो वह है धन मान इज्जत
इन चीजों से पकड़ को हटाओ किसीने गाली निकाल दी आप तो मन के भीतर गांठ बांध लेते हो
इससे जब तक बदला नहीं लेंगे चैन से नहीं सोएंगे आपने खुद ही अपनी रातों की नींदे
हराम कर क्योंकि अब बदला लेना होगा और बदला लेना होगा तो आप अपने भीतर जहर घलते चले
जाओगे तो उस व्यक्ति ने आपके जीवन को दूषित कर दिया ऐसा नहीं है वह व्यक्ति सिर्फ
कारण बना दूषित हुए तुम तुम्हारे कारण थूक तो बुद्ध के ऊपर भी रोक जाते हैं लेकिन
वह तो परम प्रसन्न रहते हैं क्यों क्योंकि वो नॉन रिएक्टिव है वह मन में ना तो गांठ
बांधते हैं ना ही आपसे तुरंत कोई रिएक्शन देते हैं वह शांत बैठे रह जाते हैं बल्कि
आपसे पूछते हैं कि यह तो ठीक है बनते कुछ और भी कहना है उनकी शांति को आपका थूकना
जरा भी कम ना कर सका बाधित ना कर सका लेकिन आप गांठ बांध लो इसने मेरे ऊपर थूका था
मैं इसका सर्व सत्यानाश कर दूंगा और उसका सर्व सत्यानाश हो ना हो तुम अपना सर्व
सत्यानाश अवश्य कर लेते क्योंकि दूसरे से बदला लेने की वृत्ति आपके भीतर कितने
जहरीले हार्मोन पैदा कर देती है दिन भर रात आप सोचते ही रहते हो इस आदमी से बदला
कैसे इस आदमी से बदला कैसे कैसे इसका कोई नुकसान कर दू आप तरह तरह के मार्ग खोजते
हो तरह तरह की खोजें करते हो और अपने भीतर आपको पता ही नहीं कि तुम निरंतर अपने खून
को जहरीला कर रहे हो तुम बदला उससे नहीं लेते तुम बदला स्वयं से लेते हो तुम नुकसान
उसका नहीं करते हो तुम नुकसान स्वयं का कर लेते हो इसे ही अज्ञानता कहते हैं संत
संत कहते हैं अगर किसी ने आपके ऊपर थूक दिया दुर्व चन कह दिए तो आप उनको इग्नोर कर
देना इसलिए मैंने आपको एक सूत्र दिया नॉन रिएक्टिव आपने प्रतिक्रिया नहीं कर और
तुमने अगर इसको अपने जीवन में उतार लिया तो तुम पाओगे कि तुम्हारी जिंदगी फूलों से
लद गई खुश दायक पु से ल 99 प्रतिशत दुखड़े आपके प्रतिक्रिया देने से होते हैं एक
प्रतिशत दुख होता है तुम्हारे कर्मों के कारण प्रारब्ध के कारण 99 प्रत तो तुम खुद
समय पर भी पैदा कर लेते हो अपने दुख को मैंने आपको एक सूत्र बड़ा शानदार समझाया था
कि जीवन में सिर्फ मात्र सुखी जीने के लिए एक ही फार्मूले को अजमा लेना इंप्लीमेंट
कर लेना अपने जीवन के आचरण को 10 कमांडमेंट्स को इंप्लीमेंट मत करना घरों में
रिश्तों में तनाव दृष्ट का जहरीला पन आने का मात्र एक ही कारण है रोज झगड़े देखते
हो आप क इसकी बुनियाद में कभी जागने की चेष्टा भी नहीं की और आपने किसी स्याने
व्यक्ति से पूछा भी नहीं आप अपने मन के अनुरूप चलते हो और मन तो मूर्ख है स्याने
व्यक्ति के कहने के अनुरूप नहीं चलते अगर आप किसी स्याने व्यक्ति के अनुभव के
अनुरूप चलो तो आप पाओगे कि अपनी जिंदगी में उजाड़ था खिजा थी गुलशन खिल गया बहार आ
गई फूल लग गए हवाएं जहां जहरीली थी वहां खुशबू बिखेरने लगी क्या है वह मंत्र बहुत
पहले आपको समझाया था प्रतिक्रिया मत करो नॉन रिएक्टिस किसी ने कुछ भी कर दिया आप
प्रतिक्रिया मत करो गहरी शांति में जाने का यह अद्भुत सूत्र है 99 प्रतित दुखड़े
तुम्हारे स्वयं के बनाए हुए होते हैं एक प्रतिशत दुखड़ा तुम्हारे प्रारब्ध से आता
है और तुम जानकर बड़े हैरान हो अगर तुम नॉन रिएक्टिव स को छोड़ दो तो घर में
खुशहाली हो जाएगी आज आज ही से आजमा कर अगर एक व्यक्ति भी इसकी शुरुआत कर दे तो यह
रोग छुआछूत का है उस एक व्यक्ति को देखकर दूसरा भी अपने जीवन को बदलेगा और एक दिन
ऐसा आएगा कि सारा घर उस वृति को अपना लेगा फिर पड़ोसी भी अपना लेंगे फिर शहर भी
अपना लेगा फिर सारा राज्य भी अपना लेगा और फिर सारा देश भी अपना लेगा ऐसे ही चलती
हैं व्यवस्थाएं लेकिन चलती हैं एक आदमी से समूह यहां काम नहीं करता शुरू होती है एक
आदमी से और आप वह व्यक्ति बन जाओ पहले व्यक्ति आप होने चाहिए आज ही से यह निश्चय कर
लो अगर आपको कोई गाली निकालता है आपका क्या ल शब्द है लिपियां है उस गाली का अर्थ
हमने अगर शब्दों में आशीर्वाद के रूप में बना दिया होता तो हम प्रसन्न होते जिस
गाली को हम आज गाली समझते हैं जब लिपियों की रिसर्च हुई तो इस गाली को हम आशीर्वाद
का रूप दे देते तो फिर यह आपको गाली लगती कि आशीर्वाद लगता आशीर्वाद लगता क्यों
क्योंकि हमने गाली बनाई उसकी जगह आशीर्वाद बना दिया और आशीर्वाद की जगह अगर हमने
गाली बना दी होती उलट पुलट कर दिया होता तो हम किसी को आशीर्वाद देते वह दुखी हो
जाता कि तुमने मुझे े गाली क्यों निका यह तुम्हारी लिपियों की खोजें थी और लिपियों
से ना तो संसार चलता है और परमात्मा तो बहुत दूर है परमात्मा तो शब्दात है परमात्मा
तो अखरा तो वकर है तो आज से ये शुरू कर अगर कोई तुम्हें गाली निकालता है अपशब्द
कहता है तुम्हारी बेइज्जती कर तो उसे कुछ मत कहो तुम पाओगे जो तो को काटो भवे तो ही
भवत फल जो तेरे लिए कांटे बोता है उसके लिए त फूल बो तोही फूल को फूल है बा को है
तर सूल तुम्हें फूल की जगह फूल मिलेगा उसको सूल की जगह त्रिशूल मिलेगा तीन कांटे
मिलेंगे और तुम उसकी फिक्र मत करो तुम अपने फूलों की श्रृंखला को टूटने मत दो बस
तुम अपना आप संभालो जब तुम्हें कोई तुम्हारे साथ अवद्र व्यवहार करता है जो शर से
पार है जो अशिष्ट है जो शिष्टाचार में कतई नहीं आता तो आप नाराज मत हो क्योंकि
नाराज होकर आप अपने ही भीतर जो रस प्रवाहित होता है उसको मार दोगे और जहर को फैलाना
शुरू कर दोगे तो नुकसान किसका हुआ आपका हुआ सहज बने रहो और उसको उसी वक्त क्षमा कर
दो दो बातें याद रखना उसी वक्त क्षमा कर दो बदला लेने की भावना ना रखो अगर आपने यह
दो काम कर दिया और यह दोनों काम हृदय से होने चाहिए जुबानी कला कागजी पैगाम नहीं
होने चाहिए हृदय से ही क्षमा हो और हृदय से ही बदला लेना की भावना समाप्त कर दो यह
दो काम अगर तुम कर सकते हो तो तुम पाओगे तुम्हारी जिंदगी में उपवन खेलने लगे खुशबू
ही खुशबू से ब हर तरफ से अच्छे-अच्छे पैगाम आते हैं तुम जो चाहते थे कि लोग मेरी
बुराई ना कर व तुम्हारा तरीका गलत था तरीका सही अपना लो तुम प्रतिक्रिया करनी बंद
कर दो तुम्हे लोग बहुत कुछ कहेंगे लेकिन तुमने उसके ऊपर अपने आप को दंडित नहीं करना
है कसूर उसका दंड तुम खुद को देते हो यह तुमने प्रतिक्रिया नहीं करनी और तुम पाओगे
आज कल वक्त आएगा जब तुम खुशी हो जाओगे और तुम्हें गाली देने वाला परम दुखी हो जाएगा
लेकिन तुम बदला लेने की भावना को त्याग दो और उसको तुरंत क्षमा कर दो जैन धर्म के
भीतर एक प्रशन परवा आता है हर साल उसका थीम क्या होता है उसका थीम यही होता है कि
सभी एकत्रित होते अब एक शहर के लोग आपस में कभी बातचीत हुई होगी कलह कलेश भी हुआ
होगा मतभेद भी हुए होंगे मन भेद भी हुए होंगे तो वह एक दिन पर्यूषण पर्व के ऊपर यह
सप्ताह भर चलता है बैठते हैं पाठ पूजा करते हैं जैसा भी विधान उन्हें सौंपा जाता है
गुरु के द्वारा वह करते हैं और एक काम बहुत बढ़िया करते हैं वह इकट्ठा होकर एक
दूसरे के पांव के हाथ लगाते हैं वर्ष भर में अगर मेरे से कोई गलती हो गई तो मुझे
मूर्ख जानकर क्षमा करते कहीं बदला लेने की भावना तुम्हारी रह गई तो उसे मन से निकाल
देना मैंने गलती में कह दिया मुझे क्षमा कर दो और वह व्यक्ति उसको माफ कर देता हृदय
से जब पाव ही छू लिए हृदय से माफ कर देना ऊपर ऊपर से नहीं बदला लेने की भावना जो
रखता है वह नुकसान अपना ही करता है क्योंकि यह भावना जहरीली है यह भावना आपको ही
दुख देगी इस प्रण पर्व में जैन धर्म के अंदर बड़ी अद्भुत यह प्रथा और वह आदमियों को
छोड़ो वह तो जीवों से माफी मांगते हे छोटे छोटे जीवो गलती से आपके ऊपर पांव पड़गा
होगा मेरा भार ज्यादा है शरीर का और आपको मृत होना पड़ा होगा आपकी हत्या हो गई होगी
आपको कष्ट हुआ होगा अंग भंग हो गया होगा इसलिए मुझे क्षमा कर देना क्योंकि मैंने यह
जानबूझ के नहीं किया उस दिन वर्ष भर का सारा कचरा वो साफ कर देते है यह प्रथा एक
व्यक्ति शुरू करे आज ही से तुम शुरू कर दो और तुम पाओगे 10 20 50 साल में पूरी
सृष्टि ही प्रेममय हो जाएगी पूरी सृष्टि को यक सा यक दम प्रेम पूर्वक बनाने की
चेष्टा का पागलपन कभी मत करना जो भी क्रांति होती है एक व्यक्ति से ही शुरू होती है
मार्कस अकेला था माओ अकेला था उसने क्रांति की शुरुआत की तो तुम इस क्रांति की
शुरुआत करो तुम पहले व्यक्ति हो जो नौन प्रतिक्रिया का आगाज करो और फिर ये फैलते
फैलते ईश्वर कृपा करे कि ये पैगाम सारी सृष्टि में फैल जाए और सारी सृष्टि प्रेम और
आनंद में मगन हो जाए अपने भीतर जाने के लिए मैं क्या करूं अब तो आप ही कुछ करो कैसे
अपने को जानू अपने अंदर उतरू बाबा आप ही कुछ कृपा करो मेरे से तो नहीं हो आप सदा
दूसरों से सहायता मांगते हो मन की पुरानी आदत है सहारा लेना और परमात्मा मैंने बहुत
बार कहा है उस अवस्था में आता है जब आप असहाय होते हो जब आप सहारे की अपेक्षा ही
नहीं रखते गुरु का एक ही काम है और वह काम में किए देता हूं अगर आपने मेरा सहारा
मांगा तो आप गलती खा जाओगे अगर आपने मेरा मार्गदर्शन मांगा तो आप सही हो मुझे मार्ग
दर्शन की तरह लोगे तो सही एक दिन पहुंच जाओगे अगर आपने मेरा सहारा मांगा तो चूक
जाओगे बात यद्यपि एक ही है बाबा अपने भीतर कैसे उतरू अपने भीतर नहीं उतरना है अपने
भीतर तो तुम सदा से हो वह स्वभाव ही क्या जो छोड़ दिया जाए या जो छोड़ा जा सके रात
की गहन सुषुप्ति के भीतर भी आपको पता नहीं होता कहां हो लेकिन फिर सुबह चंगे भले
उठते हो तुम अपने आप को कभी खो नहीं सकते तुम तुम्हारा स्वभाव कभी खो नहीं सकते वह
स्वभाव ही क्या जो खो दिया जाए फिर तो वो पराभव है वह स्व भाव नहीं खोया जा सकता है
पदार्थ क्योंकि वह पराभव है खोई जाती है डिग्रियां क्योंकि वो पराभव है खोया जाता
है धन पदविका खोने का कोई उपाय ना हो उसको कहते हैं स्वभाव और तुमने जाना है स्वभाव
के भीतर और तुम्हारे मन की आदत है कि दूसरे का सहारा लेकर मैं खुद के पास जाऊ यही
गलती खा जाता फिर दूसरे तुम्हें बहका देते हैं यही मन की गलती तुम्हें भटका देती है
जन्मों तक अगर तुम भटक रहे हो आज इस धरा पर बैठे हो तो इसका और कोई कारण नहीं इसका
मात्र एक ही कारण है कि आपने सदा दूसरे से सहारा मांगा और संत कहते हैं कि सहारा
मांगना बंद करो मांगनी शुरू करो सहारा मत मांगो फिर ये गुरु जन आपको सहारा देते हैं
यह माला पकड़ो राधे राधे करो राम बनेगे सहारा राधे राधे का नाम बनेगा सहारा गलती खा
जाते हो अगर गलती खाए हो तभी तो बाबा नानक के यह शब्द सही हो रहे हैं कोटिन में कोई
एक चलत है सच्ची मुमुक्षा करोड़ों में से एक व्यक्ति में जगती है कोटिन चलत एक पचत
है और जो करोड़ों आदमी चलते हैं वह रास्ते में बहक जाते हैं एक पहुंचता है कारण आप
कहीं ना कहीं सहारा मांगोगे दूसरों का और सूत्र यह कहता है के बेसहारा हो जाओ जिस
घड़ी तुमने सभी बलों को छोड़ दिया निर्बल हो गए वह अज्ञात शक्ति जिसका आपने कभी
दर्शन नहीं किया वह आपकी बांह पकड़ लेगा वह आपको गृह अंध कूप गहरे गहरे अंधेरे
समुद्र कुए में से निकाल लेगा बाह पकड़ के लेकिन आप बेसहारा होकर पुकारो तो बेसहारा
होना बहुत बड़ा क्वालिफिकेशन है यह है परम योग्यता देखिए जज बनने के लिए डिग्रीज की
योग्यता होती है और भी रतमा पाने के लिए कागजों की डिग्रीज की जरूरत होती है लेकिन
अपने अंतस में उतरने के लिए किसी प्रकार की डिग्री की आवश्यकता नहीं यहां तो जो बल
इकट्ठे किए हैं वह भी छोड़ देने होते हैं निर्बल हो जाना होता है निर अवलंब हो जाना
होता है निश्चित ही यह जो आचार्य लोग आपको सिखा रहे हैं यह धन कमाना सिखाएंगे आपको
जचगी भी बात जचती है क्योंकि बिना इसके काम चलेगा कैसे लेकिन ये भी कहना नहीं चाहते
और आप भूल जाते हो पूछना कि जब जरूरत पूरी हो जाए और इतना ज्यादा हो जाए तो क्या
मैं छोड़ दूं इकट्ठा करना यह आप पूछते और खुद से समझते नहीं कि बस काफी हो गया अब
छोड़ दो अब मिलिनेयर बन गए अब फिर तुम्हारे यह गुरुजन सिखाएंगे कि बिलिनियर कैसे हो
जाओ फिर महंगाई बढ़ेगी तो फिर यह कहेंगे कि ट्रिलिनियर कैसे हो जा और यह भागदौड़
सारा जीवन भर चलती रहेगी और तुम्हारा जीवन आपाधापी के अंदर दुखी रहेगा क्योंकि
ठहराव ना आएगा और जब तक ठहराव ना आएगा तब तक सुख की तो आप कल्पना ही कर सकते हो
ठहराव के बिना सुख कहां ठहराव के बिना तो मृग तृष्णा है और कुछ भी जोड़ने की तमन्ना
व बल हो वो धन हो बाहु बल हो व्यक्ति बल हो पदवी का बल हो या कोई भी बल हो इन बलों
को इकट्ठा करना उसमें आप दौड़ते हो दौड़ने के कारण आप कुछ पाते हो निश्चित और कुछ
बड़ा है जो चूक जाते हो पाते हो बहुत थोड़ा और चूक जाते हो बहुत बड़ा वह अनंत
समुद्र आनंद का वह खुमारी का चूक जाता छोटे छोटे आनंद की झलको के कारण आप खोज लेते
हो इकट्ठा कर लेते हो पदार्थों को आप इकट्ठा कर लेते हो रुतबो को आप इकट्ठा कर लेते
हो लोग आपको मान सम्मान दे ये इकट्ठा कर लेते हो लेकिन कहां इकट्ठा करते हो आप आनंद
को कहां उस आनंद को उस परम सुख को उस चर्म सुख को उस अखंड आनंद को तुम इकट्ठा कर
पाते हो जो एक बार आ जाए और फिर टूटे ना उसकी लड़ी नहीं कर पाते क्यों नहीं कर पाते
क्योंकि तुम बाहर के बलों को इकट्ठा करते हो और इसमें कोई बुराई भी नहीं लेकिन एक
वक्त आने पर उन्हें छोड़ भी तो देना चाहिए य तुम भूल जाते हो तुम इस पागलपन को जीवन
का एक अटूट हिस्सा समझ लेते हो लेकिन हमारे ऋषियों ने बड़ी सुंदर व्यवस्था बनाई
पहले इकट्ठा कर ब्रह्म फिर उस इकट्ठा करके अपनी जीवन निर्वाह को करो अपनी संतति को
बढ़ाओ उनका पालन पोषण करो गृहस्थ फिर वाण प्रस्थ अपने बच्चों को दिशा निर्देश भी
देते रहो आधे और आधे जहां अब आपने आगे जाना है सस्त में वनों में उसकी तरफ भी आपका
ध्यान रहे आधा तो दो तरफ र हो इधर संसार को भी सहारा दो उधर परमात्मा की तरफ भी
उन्मुख हो जाओ और फिर एक वक्त आएगा इसको सालों में मत लो ये मानसिक अवस्थाए है जब
आप सारे फर्ज निभा दो और बिल्कुल निश्चिंत हो जाओ तो आपकी उम्र कुछ भी हो तुरंत आप
सन्य हो जाना सन्य का मतलब सस्त का मतलब छोड़ देना संसार के सभी प्रकार के जोड़ने
की परंपराओं को वह रिश्तों को जोड़ना हो वह सगे संबंधियों के साथ प्रेम प्यार को
बढ़ाना यह भी जोड़ना हो गया बाकी तो रोज मर्रा की बातें धन वैभव संपत्ति पदवी इनको
जोड़ना एक वक्त आने के बाद जब आपके फर्ज पूरे हो जाए तो छोड़ देना क्योंकि एक वहित
काम आपका बाकी है यह जो अब तक आपने किया यह महज एक ट्रेलर था असली फिल्म तो अब
चलेगी आगाज तो फिल्म का कहानी तो फिल्म की अब शुरू हो इसलिए मैं कहता हूं कि फिल्म
की कहानी शुरू होती है आखिरी पड़ाव जिसको हम सनसत कहते हैं उस सन्य ही वह अवस्था है
जो आपको चर्म सुख देती है अगर सन्य में आप पूरा पूरा डूब गए उतर गए तो दुनिया की
कोई ताकत आपको उस परम आनंद के खजाने तक पहुंचने से रोक नहीं सक ब शर्त कि आप अपना
सारा कार्य ईमानदारी से करो छोड़ देना तो छोड़ देना जियो तो ऐसे जियो जिस जैसे सब
तुम्हारा है मरो तो ऐसे मरो जैसे तुम्हारा कुछ भी नहीं बस ऐसे मर जाना मानसिक रूप
से तृष्णा के रूप में कि मेरा कुछ नहीं और अंत में मेरा कुछ नहीं इसकी भावना प्रबल
होते होते जब आपको अंतिम जिसके साथ मोह था जिसे हम शरीर का अपनत्व कहते हैं वह
छोड़ने में कष्ट नहीं होता यही छोड़ना दान के द्वारा हमारे ऋषियों ने समझाया दान
करने में कोई पुण्य वाली बात नहीं होती दान करने का मतलब था कि हम अपनी पकड़ की आदत
को छोड़े कैसे शुरू कहां से करें तो दान धन को छोड़ने की पकड़ को शुरू कर दो यहां
से शुरू कर दो वस्तुओं को बांटना शुरू कर दो इसलिए अलग-अलग हमने मुहूर्त बनाई यह
सोमवती अमावस्या है यह भोमवती अमावस्या है यह कुंभ का मेला है यह ग्रहण लगा है तो
बांटो बांटने का महज एक ही प्रयोजन था कि आपको छोड़ने की आदत पड़ जाए अगर छोड़ने की
आदत आपको पड़ गई और यह आदत अपनी चर्म सीमा तक पहुंच गई तो फिर आप अपनी भ्रांति को
भी छोड़ दोगे जो सबसे बड़ी भ्रांति है जिस दिन आपने उस भ्रांति को छोड़ दिया आपने
वह आत्यंतिक मंजिल पाली छोड़ तो अपने आप तक पहुंचने के लिए छोड़ दो बाहर की पकड़
छोड़ दो अपने अंत तक पहुंचने का प्रयास मूर्खता के अलावा और कुछ भी नहीं क्योंकि
तुम अपने आप को कभी छोड़े थे ही नहीं तुम सदा ही अपने पास रहे हो जगते हो या सोते
हो अपने स्वभाव को छोड़ सकते ही नहीं इसलिए यह परिकल्पना कभी मत करना कि हम अपने आप
को छोड़ दिए हैं नहीं नहीं जब तुम रात को सोए थे तब भी तुम तुम्हारा आप नहीं छोड़
पाए चाहते हुए भी जो छोड़ा ना जा सके वह होता है अपना आप तो इसको तो तुम छोड़ नहीं
पाते और तुम पूछते हो यह बात बार-बार और क्योंकि यह प्रश्न सभी का है फिर तुम बाहर
की पकड़ के कारण ही अपने आपे को याद नहीं रख पाते यही समस्या है इसी को गुरु जीफ ने
कहा रिमेंबर्स अभी आप नोन रिमेंबरेबल से फिर रहे हो भूला भूला फिर जगत में कैसा
नाता र यह भूलने को यादाश्त में बदलो सेल्फ रिमेंबरिंग में बदलो कैसे बदलो ग यह जो
पकड़े आपको जाने नहीं देती इन पकड़ को छोड़ खुद तक पहुंचने का इच्छा मत करो क्योंकि
खुद को तो तुम कभी त्याग सकते ही नहीं इट इज इंपॉसिबल लेकिन बाहर की पकड़ को आप
छोड़ सकते हो आपके हाथ में वह तो असंभव है अपने आप को छोड़ा तो कभी जाता नहीं बाहर
से जो पकड़ा था उसको तुम छोड़ सकते हो तो जहां जहां भी आपकी पकड़ है आपको पता है
देखो परखो उसको छोड़ो एकएक करके छोड़ो इन सभी पकड़ को छोड़ देने से क्या होगा एक
दिन धर्म से तुम अपने स्वभाव में पटक दिए जाओगे जब आखिरी पकड़ छोड़ दी गई तो तुम
पाओगे आ क्या आनंद है क्या खुमारी है क्या सुगंधी से भरा हुआ यह गुलशन है बहार ही
बहार है अमृत ही बरस रहा है कबीर कहते हैं नाचो नाचो शिष्य नाचो अमृत बरस रहा है और
शिष्य नाचते हैं लेकिन नाचते हैं सिर्फ नाचते हैं सिर्फ एक्टिंग करते हैं कबीर के
भीतर अमृत बरस रहा है वह कोई नाटक नहीं करता शिष्य नाटक करते हैं क्योंकि अमृत नहीं
बरसा मीरा के अमृत बरसा नानक के अमृत वरसा कबीर के अमृत वरसा और तीनों ने अमृत को
आपके ऊपर बरसाया जरा बताना तो मीरा ने नाचने का आप से कुछ दाम लिया कबीर अपने घर से
खाना खिलाकर वापस भेजते हैं लेते आपसे कुछ नहीं तो कबीर ने उस प्रभु का गुणगान आपको
सिखाया तो आपसे कुछ दाम वसूला नानक ने मधुर स्वर में अपने वाणी के शब्द आपके हृदय
के भीतर जंकृत किए उसने आपकी कोई फीस मांगी तो इस बात को आप कसौटी पर कस लेना अभी
एक नए भगवान जन्मे वह कहते हैं कि मैंने सारा सृष्टि का निर्माण किया है मैं हूं
ब्रह्म और मुझे आश्रम बनाने के लिए तुम्हारे पास जो है हजार दो हजार करोड़ रुपया वो
दे दो पाच सात हज भी चलेगा तो मैंने कहा भाई जब सारी सृष्टि का निर्माण कर दिया तो
फिर आश्रम का भी निर्माण करलो वो आश्रम का निर्माण लोगों की जेब में खाली करा के
करो जब तुम सृष्ट करता हो जबतुम ब्रह्म हो तो सार सृजना तुमने रच दी तो आश्रम भी तो
रच दो विश्वामित्र ने स्वर्ग का निर्माण कर लिया था तो अगर तुम भगवान हो तो अपने
लिए आश्रम का निर्माण दूसरों से मांग के क्यों करते हो दूसरों की जेबों को खाली
करता यहां से पोल पट्टियां खुलती है जो आपको प्रभु गीत सुनाने का राम कथा सुनाने का
मुआवजा वसूल करता है समझ लेना वो ढोंगी है पाखंडी है शास्त्र पढ़कर आपको सुनाए
होंगे वोकैबुलरी बहुत है समझ बहुत है बुद्धि बड़ी तीक्षण है कवि है माना लेकिन संत
ऋषि में और कवि में यही फर्क है ऋषि बांटता है बेशर्त और बांटकर खुश होता है और कभी
कभी बांटता है श सर्त और बांटकर खुश नहीं होता खुश यह होता है कि आपसे मुआवजा बसोया
इतनी संगोष्ठी हों को संबोधित कर दिया इस बात पर होता है हमने इतने प्रोग्राम तय की
दि यह किशोरिया ऐसा ही करती हैं यह शिवर लगाने वाले ऐसा ही कुछ करते हैं किस किसकी
बात को उगा बर्बाद गुलक करने को बर्बाद गलता करने को बस एक ही लो काफी था हर शाख प
उल्लू बैठा है हर शाख प उल्लू बैठा है अंजाम गस्ता क्या होगा बच सकते हो तो बच जाओ
वक्त है जब जागो तभी सवेरा यह कसौट मैंने बदला जो तृप्त हो गया वो मांगता नहीं इसको
हृदय में लिखले जो तृप्त हो गया वह मांगता नहीं और जो मांगता है वह अभी अतृप्त है
इन दो शब्दों को हृदय में उतारे उतारे आप जगत में सभी कामों को करते रहना जो तृप्त
हो गया वह मांगता नहीं उसकी मांग खत्म हो गई और जो अभी मांग रहा है वह तृप्त नहीं
हुआ वह अतृप्त है इन दो शब्दों को अपने हृदय में उतार लेना और मुझे आज्ञा देना
धन्यवाद
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