उमा शंकर यह कुंभ महापर्व क्या है बाबा क्यों मनाया जाता है यहां जाने के लाभ क्या है कृपा करके अपनी आध्यात्मिक वाणी से इस रहस्य को प्रकट करने का कष्ट करें कुंभ महापर्व होली दीपावली यह सब पर्व और कुंभ महापर्व पहले इसकी कहानी सुनिए जो शास्त्रों में वर्णित है है लेकिन स्मरण रहे कि यह कहानी है और कहानी तो कहानी ही हुआ करती थी है इसका रस निचोड़ लेना आखिर यह कहानी कहना क्या चाहती है हिमालय के पास रोध नामक का एक सागर है रोध नामक उस सागर के भीतर अमृत है देवता यानी अच्छे कर्म करने वाले राक्षस यानी बुरे कर्म करने वाले
उस अमृत को दोनों पीना चाहते हैं कौन नहीं पीना चाहता अमृत को सभी पीना चाहते हैं लेकिन उसमें से अमृत निकालना दो रू है बहुत मशक्कत करनी पड़ेगी और वह मशक्कत अकेले अच्छे कर्म करने वाले दे देवता नहीं कर सकते बुरे कर्म करने वाले राक्षसों को भी सहभागी होना पड़ेगा देवता भी चाहते हैं व अमर हो जाए राक्षस भी चाहते हैं वह अमर हो जाए जो बुरा कर्म करता है जो अच्छा कर्म करता है दोनों ही चाहते हैं कि हम अमर हो जाए इस चाहत ने दोनों को इकट्ठा कर दिया योजना बनी कि कैसे स शोध पर्वत में को मथा जाए और इसमें से अमृत निकाला
जाए राक्षस भी मान गए देवता भी मान गए मंदराचल पर्वत को मथनी बनाया गया वासुकी नाग को सर्प को रस्सी बनाया गया और कछप को कछुए को कर्म को नीचे रखा गया उसके ऊपर मंदराचल पर्वत और वासु की नाग की रस्सी एक तरफ राक्षस एक तरफ देवता दोनों मथें तो मथा जाएगा यह बिल्कुल ऐसा है ज हम दूध को बिलोते हैं दही को बिलोते हैं और उसमें से माखन निकलता है उसकी सुगंधी दूर दूर तक लुभा जाती है बिल्कुल ऐसा ही मथना था उसे एक तरफ राक्षस थे और एक तरफ देवता थे कछुए की पीठ पर रखा गया मंदराचल पर्वत और दोनों ने उस समुद्र को मथना शुरू कर दिया इधर से
राक्षस खींचते उधर से देवता खींचते मथा गया बड़ी मशक्कत हुई दोनों पसीना पसीना हुए देवता भी हुए राक्षस भी हुए कहानी कहती है कि उस मथने से 14 रत्न प्रकट हुए जब क्षी रोध सागर मथा जाता है तो जहर भी निकलता है और भी बहुत से रतन निकलते हैं काम धेनु गाय भी आती है कलप वृक्ष भी आता है जहर भी आता है अमृत भी आता है ये सभी कुछ निकले 14 प्रकार के रतन निकले दोनों की मशक्कत लगी थी इसमें दोनों ने पूर्ण परिश्रम किया था इसलिए दोनों का बराबर हक बनता था देवताओं का राक्षसों का लेकिन क्या हुआ देवताओं ने अमृत खुद पीने की चेष्टा
की और आखिर में भगवान धनवंतरी वह अमृत कलश लेकर प्रकट हो गए उससे पहले 13 रत्न निकल चुके थे चवा रतन आया अमृत कलश भगवान धनवंतरी के हाथ में जब वो प्रकट हुए मथने की प्रक्रिया समाप्त हो गई थी और दोनों दौड़े अमृत के लिए कौन नहीं दौड़ता राक्षस भी दौड़ता है देवता भी दौड़ता है जितनी जरूरत देवताओं को है अच्छा कर्म करने वालों को उतनी ही जरूरत बुरा कर्म करने वालों को कोई नहीं कहता मैं मर जाऊं और यही बाधा है अमृत के प्राप्त में मरना कोई नहीं चाहता अमर होना सभी चाहते हैं बेईमानी आ गई देवताओं के मन में और देवताओं के जो
भगवान है इंद्र स्वर्ग के बैठे हुए सिंहासन पर उनके मन में भी बेईमानी आ गई बेईमान लोग सिर्फ राक्षसी नहीं होते देवता भी बेईमान होते हैं और देवताओं के महा देवता जिन्ह परम सुख प्राप्त है सब कुछ मिल जाता है कल्प वृक्ष उनके पास काम देन उनके पास स्वर्ग सा सुख उनके पास लेकिन फिर भी बेईमानी कर जाते हैं तो देवताओं के राजा इंद्र ने भेजा अपने पुत्र जयंत को कहने लगे जा जयंत तोव अमृत कलश छीन के ले आ जंत गया अमृत कलश उसने ले लिया दोनों मशक्कत की थी दोनों ही पीना चाहते थे अमर कौन नहीं होना चाहता बस यहीं से कंप शुरू हो जाता है
लड़ाई होने लगी झगड़ा होने लगा छीना छपी होने लगी तो जयंत ने वह अमृत कलश अपने हाथ में ले लिया कहानी है 14 दिन क्षमा करना 12 दिन लगे स्वर्ग तक जाने के जंत को और उन 12 दिनों में इसी छीना छपकी के बीच में जो अमृत के लिए राक्षसों और देवताओं के भीतर हो रही थी चार जगहों के ऊपर तीन-तीन दिन के बाद एक एकद गरी अमृत के और उस एक बूंद के अमृत के गिरने के कारण य चारों स्थान तीर्थ हो गए कितनी महिमा है उस समृत के मैंने बहुत बार आपसे कहा काश काश आप उस अनंद की एक बूंद चख चखले तो ऐसा स्वाद मिलेगा सब छोड़ दोगे य पदार्थों को इकट्ठा
करना यह गद्दिया के लालच मान प्रतिष्ठा की जरूरत यह भीतर के उम्र उड़ते घुमते हुए बादल यह ले लू वो प्राप्त कर लूं जहाज पर उठ लू बड़ी कार ले आऊ बड़ा सा धन गोदाम भर लू सब मेरे हाथ में हो दूसरे विख मंगे बन जाए मैं डिक्टेटर हो जाऊं सारी शक्ति मेरे पास हो कौन नहीं चाहता देवता भी जाते हैं राक्षस भी जाते छीना चपटी होने लगी जंत लेकर भाग रहा है अमृत कलश को पृथ्वी से स्वर्ग तक पहुंचने में दिन लगे 12 है और प्रत्येक तीन दिन के बाद इस छीना चपटी के बीच में एक बूंद गिरी धरती पर और जहां जहां वो बूंद गरी चार स्थानों
प गरी उन चार स्थानों पर कुंभ महापर्व मनाया जाता है ये कहानी है और चार स्थान कौन से हैं नासिक है हरिद्वार है प्रयागराज है उज्जैन है नासिक हरिद्वार प्रयागराज उज्जैन तीन-तीन दिनों के बाद एकएक बूंद इन चारों स्थानों पर गिरी और जहां-जहां गिरी वह तीर्थ बन गए यह कहानी है और उस तीर्थ पर प्रत्येक स्थान पर एक 12 वर्ष के बाद मेला लगता है वहां कौन आते हैं मुमुक्षु भी आते हैं जिन्हें मुक्ति की लालसा है और गुरुजन भी आते हैं संबोधी और समाधि को प्राप्त लोग भी आते हैं समझाने के लिए आपको कि कैसे मुक्त हो सकते हो तुम इन
दुखों के जंजाल से देखिए एक मजे की बात बता जो दुखी है वह तो दुख से नि चाहते ही हैं लेकिन जो सुखी हैं वह भी जब सुख को भोगते भोगते उब जाते हैं व भी थक जाते हैं आनंद की आवश्यकता उन्हें भी होती है आनंद की आवश्यकता देवताओं की भी होती है आनंद की आवश्यकता राक्षसों को भी होती है ऐसा कोई प्राणी नहीं धरती पर जिस को आनंद की आवश्यकता ना यह है थीम मोटो प्रत्येक प्राणी चाहता है आनंद जिसे सुख प्राप्त है वह देवता जिसे दुख प्राप्त है वह राक्षस राक्षस दुख से छूटना चाहता है तो अमृत चाहता है और देवता सुख से उब जाता
है इसलिए अमृत चाहता है चाहते दोनों है ये संसार अद्भुत खेल है जहां मिट्टी का एक जर्रा पानी की एक बूंद कोई भी नहीं बना सकता वहां तुम अपने अहंकार का मैं पाले हो मैं और फिर तुम कहते हो कि मैं दुखी हूं इस रस को समझ लेना मैं कभी सुखी नहीं हो सकता मैं रहेगा जब तक सुख नहीं आएगा तब तक दुखी रहोगे तब तक मैं रहेगा जब तक और बड़ी प्यारी बात है कि मैं अच्छे कर्म करने वालों में भी होता है और ज्यादा होता है तो देवताओं में मैं ज्यादा होता है क्योंकि वह कहेंगे हम दान करते हैं पुण्य करते हैं स्नान करते हैं हम तीर्थ
करते हैं हम हज करते हैं हम देवता हैं निश्चित ही उनमें मैं ज्यादा होगा राक्षसों में बुरे कर्म करने वालों में मैं तो होता है यानी मैंने किया लेकिन थोड़ा होता है वह उस करने से पश्चाताप करता है वह उस करने से दुखी होता है हत्या करके कौन सुखी रह सकता है छिपता ही तो फिगा झूठ बोलकर कौन सुखी रह सकता है वह झूठ तुम्हें कुरे देही जाएगी भीतर यह बात अलग है मुद्दतों तक तुम अपने भीतर ना उतरो तुम्हें पता ही ना चले कि मैं झूठा हूं मैं झूठ बोल रहा हूं यह बात अलग है अक्सर मनुष्य अपनी जिंदगी मूर्छा में गुजार देता है अपने भीतर उतर के चैतन्य
में वोह निहारता ही नहीं कि मैं झूठ बोलता हूं मैं सत्य बोलता हूं मैं जोड़ता हूं मैं दानी हूं मैं लूटता हूं मैं अभिमानी हूं और भीतर उतरे बिना तुम जान नहीं पाओगे कि तुम्हारे भीतर कचरा क्या क्या है एक अंधेरी कोठड़ी है जन्मों जन्मों से बंद पड़ी है उसके भीतर रोज जुड़ता जाता है रोज कचरा फेंक देते हो और द्वार बंद हो जाते हैं और तुम्हें पता नहीं क्या क्या फेंक दिया गया है वह तुम्हारा अचेतन मन इस अचेतन मन में तुम कभी उतरे नहीं इसलिए कोई हैरानी जनक बात नहीं कि तुम अगर मुझसे यह पूछते हो बाबा अपने कैसे उतरे बात हैरानी की
है तुम अपने ही घर में उतरने के लिए रास्ता दूसरों से पूछते हो घर तुम्हारा है रास्ता पूछते हो दूसरों से लेकिन क्या करें मजबूरी है तुम कभी उतरे नहीं वह अंधेरी कोठड़ी में तुमने कभी दिया जलाया नहीं रोशनाई वहां तक गए नहीं तुम्हें नहीं पता तुमने क्या क्या फेंक दिया है उस कचरे की कोठड़ी में व सभी विकार सभी तमन्ना सभी भविष्य की योजनाएं कल्पनाएं अपेक्षाएं अतीत की समृति कर्म सब बीच में संग्रहित है और तुम्हें पता भी नहीं यही बात हैरानी जनक है तुम्हारी ही कोठड़ी है तुम ही फेंकते हो और तुम ही जानते नहीं कि तुमने फेंका
क्या है संत कहते हैं आज नहीं कर या कोठड़ी भर जाएगी ऊपर तड़क भर जाएगी वहां फिर और कचरा फेंकने को बचेगा नहीं सब भर जाएगा इस अंधेरी कोठड़ी में और तुम कचरा फेंको जैसे कोई आदमी इतना खा ले कोई जगह ना बचे और खाने की लेकिन फिर भी खा ले तो क्या होगा फिर व मन होगा फिर उल्टी आएगी क्योंकि स्थान नहीं बचा लेकिन तुम टेस्ट बडस के कारण स्वाद के कारण खाते जाते हो इंद्रियां स्वाद देती हैं जीवा का अपना स्वाद है आंखों के दृश्यों का अपना स्वाद है सुनने का अपना स्वाद है सूंघने का अपना स्वाद है सभी इंद्रियों के अपने अपने स्वाद हैं और
तुम ही इन्हीं स्वाद के वशीभूत हुए स्वादु की गर्त में ही छिप जाते हो मर जाते हो लेकिन उस अमृत को प्राप्त नहीं करते अब हम थीम पे आए कुंभ महापर्व क्या है बाकी सभी पर्व है दीपावली पर्व है होली पर्व है शिवरात्रि पर्व है महापर्व तो एक है कुंभ और कुंभ कहते हैं गड़े को दज आर ल प्रतीक चन सिंबॉलिक रिप्रेजेंटेशन प्रतीकात्मक चिन्हों के रूप में सत्यों को कहा गया है कहानियां बिगड़ती जाती हैं सत्य नहीं बिगड़ता सत्य बदलता नहीं कहानियों में रोज जोड़ देते हो तुम सत्य में कुछ नहीं जोड़ सकते यह सत्य की परिभाषा है और सत्य का
गुण है उसमें तुम जोड़ नहीं सकते कुछ घटा भी नहीं सकते जोड़ भी नहीं सकते इसलिए उपनिषद में लिखा है कि उसमें से तुम पूर्ण में से पूर्ण को निकाल लिया तो पूर्ण ही शेष बचेगा तो तुम और नहीं जोड़ सकते जितना है बस उतना ही है और तुम उसमें से निकाल भी कुछ नहीं सकते उतना ही बचेगा जितना है कहानी है सारी यह तुमने अंधेरी कोठड़ी में अपनी ही अंधेरी कोठड़ी में जन्मों जन्मों से कचरा फेंका है वह क्रोध का हो वह काम का हो लोभ मोह अंगार क हो लेकर कुछ नहीं आए और हर जन्म में तुम यही मुड़ता दोहराते हो और कुंभ है शरीर शरीर मांगता है
अमृत इसके भीतर बैठा हुआ कुछ पुकारता है वह कहता है मुझे अमृत चाहिए वह जो प्यास तुम्हें लगती है छटपटाहट जो होती है जो तुम भागते हो सारे दिन जो तुम्हारे भीतर क्षण का भी ठहराव नहीं है जो तुम्हें दौड़ाई चला जाता है तुम इधर से उधर पागलों की तरफ भागते हो और तुम्हें पता नहीं तुम्हें चाहिए क्या तुम क्यों भागते हो क्यों तुम आईएस करते हो क्यों तुम यूपीएससी का एग्जाम कंपटीशन रातों रातों जागते हो क्यों तुम धन इकट्ठा करते हो क्यों गद्दिया की लालसा है क्यों गद्दिया पर बैठने के लिए तुम अपने प्रतिद्वंदिता हो तंग करते
हो दुख देते हो उन्हें जेलो में बंद कर देते हो क्यों करते हो तुम ऐसा भीतर कुछ तत्व तुमसे कुछ मांग रहा है और तुम्हें पता नहीं वह तत्व क्या मांगता है बस इसी गड़बड़ी में में तुम अंधों की बाती अंट्या यह मूर्खता तुम्हें ना जाने कहां ले आई हैं आज तो अंधेरी कोठड़ी में तुम खुद ही चले गए हो ऊपर तलक भर गई है व और ऊपर तलक वहां पर कुछ और समा नहीं सकता फिर जो तुम फेंकते हो वह तत्क्षण बाहर वमन के रूप में आ जाता है यह जो तुम देखते हो सिर मारते हुए लोगों को यह वमन है वमन और नहीं समा इस अचेतन में तुम्हारे सारा अचेतन भर चुका है पूण ज
घड़ा भर चुका है इसमें और स्थान बचा फिर जो और कचरा तुम डालते हो वह पलट के वापस आ जाता है वमन के रूप में उल्टी हो जाती है तुम और फिर तुम कहते हो कि ऐसे नहीं मिला वो तो कहीं और मिल जाएगा तू नहीं और सही और नहीं और सही तू अगर है हर जाई तो अपना भी यही तोर सही अगर पदवी में नहीं मिला तो प्रतिष्ठा में मिल जाएगा फिर खुद को भगवान घोषित कर दो खुद को अवतार घोषित कर दो नहीं गद्दी में मिला तो भगवान बनने में मिल जाएगा मिलेगा भगवान बनने में भी नहीं मिलेगा तो होने में मिलेगा बनने में नहीं मिलेगा इस छोटे से अर्थ को गांठ बांध
लेना मिलेगा होने में जो है वह हो जाओ बनने में नहीं ब तुम बनना चाहते हो कोई पीएम सीएम बनना चाहता है प्रत्येक व्यक्ति की अपनी तमन्ना है कोई समाज सुधारक बनना चाहता है कोई इंजीनियर डॉक्टर बनना चाहता है प्रत्येक व्यक्ति कुछ और बनना चाहता है प्रत्येक व्यक्ति जो वो है वो बनना नहीं चाहता और कबीर बड़ा शानदार एक दोहा कह भलो भयो हरि वि सरो सर से टली बला माला जपते हैं नाम जप करते हैं एक दिन हाथ से तस्बीह गर जाती है माला फेरते फेरते माला गर जाती है हरि विसर जाता है नाम भूल जाता है कब तक रटो गया शब्दों को कब तक रटो ग लिपियों को
आखिर भूल ही जाओगे तुम्हें पता नहीं जो गुरु तुम्हें कहता है सोते जगते रात दिन 24 घंटे तुम यह करते रहो राम राम राधे राधे चार नाम पांच नाम हजार नाम तुम जपते हो लेकिन तुम्हें पता नहीं जो वचन देकर आए थे गुरु से निभा कहां पाते हो तुम वचन देते हो कि हां मैं जपूं रोए रोए से जपूं दिन भर रात जपूं लेकिन रात को सो जाते हो कहां जप पाते हो रात को तुम्हारा वायदा टूट जाता है ऐसे वायदे हैं तुम्हारे और ठीक किया कबीर कहते हैं येत हाथ से घर गई भरो भयो हरि वि सरो क्या प्यारा शब्द है और इस स्मरण ने इस नाम जपने जमाने ने
[प्रशंसा] मार जमा कैसे कैसे जमी खा गई आसमा कैसे [संगीत] कैसे जमाने ने मार जमा कैसे [संगीत] कैसे जमी खा गई आसमान कैसे [संगीत] कैसे जमाने ने मार जवा कैसे कैसे इस नाम जपने इस स्मरण ने इस पांच नाम ने सहस्त्र नाम ने ना जाने कैसे कैसे महाबली डेर कर दिए मिला कुछ वो अमृत ना मिला वो अमृत ना मिला जिसकी तलाश थी एक [संगीत] तू मिला एक तू ना मिला सारी दुनिया मिले भी तो क्या है मेरा मनना खिला मेरा दिल ना खिला सारी बगिया खिले भी तो क्या [संगीत] है एक तू ना मिला पूछो उनसे जो महत गद्दिया पर बैठे हैं चैन मिला नाक कटा के शर्म के मारे से कह सकते
हैं कहां मिल गया लेकिन नहीं मिला लक्षण बता देते हैं अगर मिल जाता तो फिर यह कटोरा मांगने का वोट मांगने का छूट जाता आज भी मांग रहे हैं इस बात का परिचायक है कि नहीं मिला तृप्ति नहीं हुई और कहते हैं संत कि तृप्ति संतोष धन ऐसा धन है बस जब वह मिलता है तो ही सच में कुछ मिलता है अन्यथा कहां कुछ मिलता है गद्दी मिली तो कहां कुछ मिला धन के अंबार मिले सुमेरु पर्वत जितना इकट्ठा किया कहां मिला कुछ नहीं मिला आत्मा रिक्त रहती गई बस यह भरेगी यह तृप्त होगी उस दिन इसको तृप्त करने का और कोई भोजन है ही नहीं इसको तृप्त करने का एक ही भोजन है
कोई पदार्थ नहीं कोई पदार्थ का सुख नहीं कोई सुख सुविधा के साधन नहीं तुम्हारे भीतर की उठती हुई इस आग को एक ही चीज चाहिए तृप्ति है और तृप्ति उस दिन होगी जिस दिन आनंद मिलेगा और आनंद कहां मिलेगा यह बताते हैं संत तो कुंभ महापर्व महापर्व इसलिए इसका नाम रखा गया और चीजें तो पदार्थों को जोड़ने के लिए है सुख सुविधाओं के साधन जोड़ने के लिए है लेकिन यह महापर्व क्यों यह मात्र एक अकेला पव है जो आनंद को जोड़ने का साधन है वह आनंद जो तुमने आज तक चखा नहीं और एक बूंद अगर तुम चख लो और इसी बूंद के कारण झगड़ा हुआ राक्षसों और दैतो का अमृत के कारण यह
अमृत की एक बूंद बड़ी आनंददायक है लहर आ जाती है हवाए ठहर जाता है तुम्हारा मन सिथ हो जाता है सुमेरु पर्वत की तरह हिमालय की तरह अडिग अडल निष्क भटकना छोड़ देता है मन क्योंकि सब मिल गया जिसकी तमन्ना थी जो भीतर काई पुकार रहा था कि मुझे ये चाहिए और किसी चीज से ना मिला जब आवे संतोख धन सब धन दड समान तो कुम महापर्व पर जरूर जाओ तुम्हे पता चले जो 12 वर्ष तुमने कमाया संसार में वह कूड़ा था कौन बताए तुम्हें जो इकट्ठा कर रहे हो वह कुड़ा करक है माटी के ढेले हैं जिन्हें तुम हीरे मोती समझे हो कौन बताए क्योंकि वह खुद इकट्ठा कर रहे
हैं कौन बताए तुम्हें यहां कोई नहीं बता पाता यहां सभी इकट्ठे करने वाले हैं कोई कुछ इकट्ठा कर रहा है कोई कुछ इकट्ठा कर रहा है इसी उम्मीद में उम्मीद एक ही है कि वह मिल जाएगा वह आनंद मिल जाएगा इसके कमाने से लेकिन मिलता नहीं और जब मिलता नहीं तो 12 साल तुम इंतजार करते हो नहीं मिलता तो फिर ऋषियों ने एक परंपरा बनाई यह कहानी है मैंने पहले भी कहा इसके सभी पात्र नकली है सभी पात्र काल्पनिक है इसमें चंद्र है इसमें सूर्य है इसमें ति य चंद्र सूर्य और बृहस्पति की आकाशीय स्थितियां तय करती हैं कि कब मनाया जाएगा लेकिन असलियत क्या है इस क्षण में
एक जगह पर सभी इकट्ठे होते हैं मुमुक्षु यानी जानने वाले जिन्हें वह शराब चाहिए जो पीकर तो दो घूंट पी के प्यास और पड़ती है जैसे जैसे पियोगे प्यास बढ़ती ही जाएगी दर्द बढ़ता ही गया जू जू दबा के दो कुट पिला दे सा किया [संगीत] दो कुट पिला दे साकिया बाकी मेरे ते रोड़ दे दो कुट फिला दे [संगीत] साकी बाकी मेरे ते रोड़ दे दो कुट पिला दे साख इस दो घूट के लिए तुम मारे मारे फिरते हो तुम अंधों को कोई बताता कि सूरज कैसा होता है इसीलिए यह कुंभ महापर्व का आयोजन किया गया सभी उन प्रबुद्ध आत्माओं को प्रार्थना की गई कि आप उस स्थान पर
एकत्रित होकर इन मयों को समझाओ कि वास्तविक अंका शा क्या है तुम्हारे भीतर चाहिए क्या इकट्ठा कर रहे हो तुम क्या बस यही है कुंभ महापर्व की कहानी यह तुम्हारी कहानी यह घड़ा कुंभ तुम हो इसको जरूरत है अमृत की इसी के लिए तुम मारे मारे फिरते हो और अष्टावक्र कहते हैं कि ये अमृत तुम्हारे भीतर ही है कुंभ में ही है जहां गिरी थी एक बूंद उसी पर इस कुंभ को ले जाना पड़ेगा यह घड़ा वही जाए जहां अमृत की बूंद गरी और वह जो कभी मुमुक्षु थे और आज मुक्त हो गए हैं आज समाधि से युक्त हो गए हैं संबोधि से युक्त हो गए हैं वह आते हैं
व बस वह गिनती चुनती के रोग है जो तुम्हें बताएंगे वास्तविक तुम्हारी अंका शा क्या है क्यों तुम भटकते हो क्यों तुम तड़पते हो मानवता क्यों इस विवस अग्नि की शिकार हो गई क्यों जल रही है पलपल मानवता क्या है जरूरत इसकी ढूंढ क्या रहे हो चाहिए क्या होता है तुम्हें कौन बताएगा जिसने वो बूंद पी ली दो घूंट पी लिया जिसने वो बताएगा तुम्हें ठहर जाओ उन दो घंटों को पी लो प्यास जगग और जब तक वह प्यास ना बुझेगी तब तक तुम तड़पते ही फिरो ग इस छोर से उस छोर तक पेंडुलम की तरह तुम ठहरो ग नहीं मध्य में कहानी कहती है कि चंद्र ने सूर्य
ने और बृहस्पति ने इस अमृत कलश की रक्षा की जो जंत के पास था और जंत इंद्र का बेटा था इंद्र स्वर्ग का स्वामी समझाने की चेष्टा है एक कहानी के द्वारा इन तीनों ने रक्षा की और चौथा शनि रक्षा तो शनि ने भी की लेकिन शनि ने इंद्र के डर के मारे के रक्षा नहीं की उसने उसने डर के कारण इसकी रक्षा की इन तीनों ने सहजता से रक्षा की अपना कर्तव्य समझ गए गहरे प्रतीक हैं खोलने लगूंगा तो बहुत से वीडियोस बनेंगे लेकिन मैं विस्तार में जाना नहीं चाहता यह प्रसंग बहुत बड़ा हो जाएगा और फिर हम मूल प्रश्न से चूक जाएंगे मूल प्रश्न के उत्तर से चूक जाएंगे
तुम यहीं से मोल्ड करें व्यक्ति की जरूरत है उस अमृत को पाना जो अमृत गिर गया जिसकी बूंद चार स्थानों पर गिरगी छीना छटी से तुम्हारे पास भी एक अमृत था कहां रखा है वह रख के तुम भूल गए हो व नासिक में रखा उज्जैन में रखा हरिद्वार में रखा कि प्रयागराज में रखा बस तुम भूल गए हो और संत कहते कि याद करो रिमेंबर कहां रखा है वो खत्म तो नहीं हुआ गुम भी नहीं हुआ भूले हो सिर्फ या फॉरगेट तो अगर भूले हो तो स्मरण करो याद करो रिमेंबर और तुमने रिमेंबर की जगह रिपीटेशन शुरू करते यही गलती खा गए तुम इंसान गलती का पुतला है लेकिन बात तो य अगर समझाने पर समझ जाए
तो फिर गलती का पुतला नहीं रहता मुश्किल यहां आती है कि समझाने से रिपीटेशन बंद ना करे और रिमेंबर ना करें तो वह मूढ़ पति मूर ऐसा ही आज है जानने वाला कहता है नहीं रिपीटेशन नहीं करना है य नट टू रिपीट य आ टू रिमेंबर ओनली तुमने सिर्फ याद करना है स्मरण करना है और स्मरण के शब्द को बिगाड़ लिया स्मरण शब्द को स्मरण में डाल दिया गया और सुम शब्द को रिपीटेशन में डाल दिया गया यहीं से गड़बड़ हो गई स्वाभाविक है आदमी गलती का पुतला है नरस लेकिन वो गलती गलती नहीं होती एक कहावत है अगर का भूला शाम घर आ जाए तो भूला होता
नहीं लेकिन बात तो यह है सुबह का भूला शाम देर और रसों बीत जाए घर ना फिर क्या होगा तुम ऊंचे ऊंचे चिल्लाते रहो कि बस राधे राधे हंसी आती है मुझको हरकत इंसान पर गलतियां तो खुद करे और दोष दे भगवान पर अरे भाई भगवान को भगवान ने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है जो तुम उसको याद करते हो गलतियां तो खुद करे यू हैव फॉरगॉटेन एंड यू आर टू रिमेंबर तुम भूले हो तुम्हें याद करना और तुम याद करते हो भगवान को पागल हुए हो इसी गलती में जमा कैसे कैसे जमी खा गई आसमा कैसे कैसे तुम वहां पहुंच सकते थे जहां यह अमृत कुंड पड़ा है और देखिए यह कहानी नहीं
है कल्पना भी नहीं यह सत्य है लेकिन तुम रिमेंबर करने के बजाय रिपीट कर रहे हो और संत तुम्हें कहते है डू नॉट रिपीट रिपीटेशन करने का मसला ही नहीं है यह मसला ही रिमेंबर करने का है लेकिन कहां मानते हो तुम इसलिए मैं कहता हूं भूला अगर शाम को घर वापस ना आए और जन्मो जन्मों तक ना पते तो उसे भूला नहीं कहते उसे मूढ़ कहते हैं और तुम मूड हो गए हो तुम खुद भी राधे राधे कर रहे हो और जो तुम्हारे पास आता है बस राधे राधे करते रहो कुछ हो जाए टांग टूट जाए तो राधे राधे कैंसर हो जाए तो राधे राधे बुखार हो जाए तो राधे राधे राम राम करो राधे राधे
करो अल्लाह अल्लाह करो वाहगुरु वाहगुरु करो सतनाम सतनाम करो तुम पागल हो गए हो सारी सभ्यता ने पागलपन की वो पानी पी लिया है जो इस कुए से निकला है सारी सभ्यता पागलों की तरह सर मार रही है क्यों तुमने रिपीटेशन का जहर पी लिया है और संत कहते हैं नॉट टू रिपीट ओनली टू रिमेंबर गुरु जव यही कहते हैं रिमेंबर योरसेल्फ हु आर यू यही कहते हैं रमन रिमेंबर योरसेल्फ हु आर यू यही कहते हैं जिन नो दाई सेल्फ हु आर यू लेकिन मूर्ख है कि मानता नहीं ना माने किसी का क्या लेखा दुखी रहेगा और जिनको बताएगा उनको दुखी करेगा और यह पाप का बोझा बढ़ता ही
जाएगा महावीर के जीवन के कहानी बड़ी सुंदर महावीर के जीवन की एक छोटी सी कहानी बड़ी सुंदर है महावीर अहिंसक थे परम अहिंसक थे लोग उनके कानों में खीले ठोक जाते कुछ ना बोलते बेकसूर थे बोले भी नहीं किसी को कुछ कहा भी नहीं अपनी मस्ती में खड़े हैं लेकिन बात तो यह है दूसरे को मस्त देकर तुम्हारा अहंकार खोलता है अरे मेरे होते हुए यह शांत कैसे हो गया मुझे तो नींद नहीं आती रात तुम्हारा मन सभी चीजों में कंपटीशन करता है तुम कहते हो मेरे होते दूसरा पहुंच गया बस यही दुखड़ा होता है अहंकार को अभी तो मैं हूं महावीर कैसे पहुंच गए वर्धमान कैसे
पहुंच गए अहंकार को ठेस लगती है फिर उसको छेड़ते हैं कानों में कीले ठोकते हैं क्या बिगाड़ा है तुम्हारा बुद्ध ने क्या बिगाड़ा है तुम्हारा ईसा ने षडयंत्र रचे जाते हैं धाराएं लगाई जाती हैं देशा द्रव की जैलो में नजरबंद रखा जाता है क्यों तुम्हारा अहंकार मानता ही नहीं के मुझसे पहले कोई प्रबुद्ध भी हो सकता है प्रबुद्ध का अर्थ मर जाना होता है लेकिन तुम यह भी स्वीकार नहीं कर पाते कि मुझसे पहले यह क्यों मर गया बड़े अफसोस की बात है कोई मरना भी चाहता है तो तुम उसके भी प्रतिद्वंदी हो जाते हो अरे मुझसे पहले ये
कैसे मर गया और प्रबुद्ध संबोधी समाधि खुद का मरना होता है वह इल्यूजन जो तुमने व्यर्थ में पाल लिया है उसके मरने को ही समाधि कहते हैं और तुम वो भी जर नहीं सकते उसे भी स्वीकृत नहीं कर सकते और तुम जैसी करते हो संतों से भी इसलिए टांग देते हो मनसूर के हाथ पाव काट देते हो बुध के पथर मारते हो महावीर का ल ठोकते हो मीरा अगर नाचती है तो मैं क्या कहते है तुम उसे नाचने में नहीं देते गीत गाते हैं नानक गीत गाते हैं कबीर तुम उसे भी काशी से उठा के चलो वहां चलो जहां मरने से नर्क मिलता है कमाल के व्यक्ति हो तुम तुम कुछ भी बर्दाश्त नहीं कर सकते
मानवता की बर्दाश्त शक्ति सहन शक्ति शून्य हो गई है और जब तक तुम सहन शक्ति को परम पर ना लेकर जाओगे सहन शक्ति का दूसरा नाम बढ़ना है किसका प्रबोध का उस तत्व का बढ़ जाना जिसको तुम चेतना कहते हो कॉन्शसनेस कहते हो जितनी मात्रा में तुम्हारी मूर्ता मरेगी उतनी मात्रा में तुम्हारी कॉन्शसनेस बढ़ेगी तुम्हारी चेतना बढ़ेगी तुम मरना भी नहीं चाहते और दूसरे को मरते हुए देखकर तुम बर्दाश्त भी नहीं कर पाते हैं यही कारण है बुद्धों को तुम पत्थर मारते हो यही कारण है अपने आनंद में झूमती हुई मीरा पग घुंघरू बांध के नाचती
है और तुम्हें बर्दास्त नहीं होते तुम समाज के नाम पर घुघट प्रथा के नाम पर न जाने क्याक बोल देते हो अट शंट बोल देते हो किसके कारण सिर्फ अपने ही कुछ निहित स्वार्थों के कारण तुम किसी को नहीं बख्ते और सीधी सी बात है कि तुम भी उस स्थिति में आ सकते हो मर जाओ सभी संत कहते हैं अगर कॉन्शसनेस के चर्म बिंदु को छूना है तो पूर्ण रूप से शीश काट के हथेली पर रख दो जेतु प्रेम मिलन की चाह शीश तली धर घर में रा लेकिन अगर कोई शीश तली पर रख लेता है तो तुम्हें यह भी बर्दाश्त नहीं होता यह भी तुम्हें चुभता है मानवता हद की नीचता तक पहुंच गई है
मानवता उस सतर पर पहुंच गई है जहां मानवता शर्मशार हो जाती है कुंभ पे तुम्हें बताने वाले लोग जिनका भ्रम मिट गया है जिनका इल्यूजन भंग हो गया है कि मैं हूं और मैं कुछ कर सकता हूं जिसका यह मिट गया कि मैं हूं और मैं कुछ कर सकता हूं यह बताने के लिए कुंभ में लोग आते हैं और तुम भी यही सीखने के लिए कुंभ में जाते हो क्यों तुम दुखी हो और दुख से तुम हो दुख तुम्हें जीने नहीं देता दिन भर रात दिन का चैन गया रात की नींद गई तुम इस दुख से मुक्ति भी चाहते हो और संत कहते हैं कि दुख से मुक्त होना है तो तुमने एक इल्यूजन पाल रखा है यू आर
ऑन मिस्टेक तुम एक गलती कर रहे हो जीवन में उस गलती को मिटा दो तुम सुखी हो जाओगे बस इसीलिए कुंभ बनाया गया था इस गड़े को वहां ले जाओ जहां बताने वाले हैं इस घड़े के भीतर ही वह अखंड धारा बह रही है आनंद के जिसके लिए तुम तरस रहे हो दिन भर रात जिसकी शीतल लहरों के लिए तुम्हारा मन उमंग रखता है बताने वाले वहां आते हैं हर एक कुम प आते हैं चारों स्थानों पर आते हैं और तुम वहां जाते हो लेकिन अफसोस तुम वहां जाते हो एक मेले की तरह और ध्यान रखना मेले में सिर्फ बताने वाले ही नहीं आते सीखने वाले भी जाते हैं और जेब कतरे
भी जाते हैं मैंने सुना है कुंभ के मेले में अकबर ने टैक्स लगा दिया था कुंभ के मेले में प्रवेश करने वालों से अकबर टैक्स लिया करता था खुद का मरना भी सीखना हो तो यहां शिब में फीस भरनी पड़ती है एंट्रेंस फीस देनी पड़ती है खुद का मरना सीखना हो तो हद हो गई ऐसा जमाना भी कभी आएगा सोचा तो ना था लेकिन आ गया देखना पड़ रहा है कुंभ महापर्व खत्म हो जाता उसके बाद सारा इल्यूजन भंग सारा खेल खत्म उसके बाद ना जियोगे ना मरोगे ना दुख भोगो ना सुख भोगो अपने आनंद की मस्ती में अठ खेरिया खाते हुए उस आनंद के सागर में झूमते रहोगे
सदा वही जो पीने का दिल चाहता है सदा और तुम संसार की चीजों में ढूंढते हो या संसार के मखान में ढूंढते हो असली मखाना तुम्हें अभी दिखा नहीं असली मखाना बताने वाला तुम्हें कोई मिला नहीं और जब कोई एक घूंट पिला देता है कुंभ इसलिए आयोजित किया गया था कि कोई एक घूंट तुम्हें पिला दे एक बूंद में कोई फैलाते फिर तुम्हारे भीतर की य भीषण अग्नि जागती है जो कहती है बझा दे अब अब देख लिया स्वाद मैंने अब तू इसे जला दे राख कर इस आनंद की एक बूंद पहली बूंद पीने ही मुश्किल है तुम्हारा मन अर्चन बनता है क्योंकि इसे पीते ही तुम्हारा मन मरता
है और जैसे ही मन मरना शुरू हुआ तुम हजार तरह के प्रश्न उठाते हो मुझे रोज प्रश्न आते हैं बाबा ये यहां से थोड़ा बारी हो जाता है ये नाक में खुजली होती है ये शरीर में किड़िया सी चढ़ती है कहीं मुझे कोड तो नहीं हो गया मन ऐसा तुम्हारी दुर्दशा कर देता है थोड़ी सी खुजली और मन उसको कोड़ बना देता है मन बड़ा शैतान है मन लोभी मन लालची मन चंचल मन चोर कबीर कहते हैं मन के मते ना लिए पलक पलक मन और तो बाबा फिर मैं वहां चला गया वह क्या था फिर मैं शरीर से बाहर निकल गया वह क्या था यह सब तुम्हारे प्रश्न मन के हैं कि प्रश्न करोगे उतनी देर तक के लिए
तुम मरने से बचे जाओगे तुम अपनी मृत्यु की देरी करना चाहते हो मैं कहता हूं जल्दी से उठा लो इस डोली को अब देर मत लगाओ पहले ही से बहुत देर हो चुकी है बहुत जन्म बीते मेरे माधव जन्म तुम्हारे लेखे और जल्दी से लेखे लगा दो और देर मत करो पहले ही से बहुत देर हो गई लेकिन तुम्हारा मन ऐसा कि बस और ठहर जा कुछ उठ जाएंगे अभी सुबह कहां हुई है अभी तो सूरज निकला नहीं है एक नंबर का बहाने बाज असल क्या है असल है कि मन मरने से डरता है मन का इल्यूजन भंग ना हो जाए सत्य का दर्शन ना हो जाए आंखें चौध जाएंगी आंखें उस रोशनी को स्वीकृत नहीं कर
पाएंगी झेल ना पाएंगी इसलिए हजार तरह के तरकीब में मन उठाता है ऋषियों ने यह परंपरा बनाई कि तुम तैयार होकर जाना वहां आज तो सी चले जाते हैं मुझे एक व्यक्ति कह रहा था कि मैं भी जा रहा हूं उसका काम क्या है वह जेव कतरा है तो जेव कतरे भी आपको वहां मिलेगा सिखाने वाले भी आएंगे लेकिन तुम पिपासु की तरह जाना तुम मुमुक्षु की तरह जाना तुम एक घूंट पीकर फिर और माग करना और जरा सी दे दे साकी और जरा सी और और जरा सी दे दे सा की और जरा सी और कैसे रहूं छुपके मैंने पी ही क्या है होश अभी तक है बाकी और जरा सी दे दे साकी और जरा सी और
कैसे रहूं चुप के मैंने पी ही क्या है होश अभी तक है बाकी जब तक होश बाकी रह जाए तब तक ही क्या है तो साखी थोड़ी सी और पिला दे अभी तो होश बाकी है जब तक तुम ऐसा ना हो जाओ भीतर से तब तक पीते ही रहना और एक दिन प्यास बज जाएगी य कुंभ महाप तुम्हारी जन्मों जन्मों की प्यास बुझाने के लिए आयोजित संतों का एक साधन था संतों ने एक ढंग निकाला था कैसे तुम जन्मों जन्मों से भटके जान लो उस तत्व को जो इस कुंभ के भीतर है और तुम्हें पता नहीं ऐसे घट में पीव है मूर्ख जाने ना तुम तो कुंभ में भी जेब काटने के लिए जाते हो तुम तो कुंभ में
भी ऐसे जाते हो जैसे हिल स्टेशन के दर्शन करने वहां की ठंडी हवाएं लहरा के आए मंत्र मुग्ध कर जाए तुम गंगा में छलांग लगाओ त्रिवेणी संगम में नहाओ और ठंडी ठंडी हवाएं तुम्हारे तन बदन को शीतल करते हैं लेकिन मन ना मरे बस तुम पाप मुक्त होना चाहते हो और पाप मुक्त वहां कोई होता नहीं जाके ध्यान रखना इस गलती में मत रहना कि तुम गंगा स्नान कर लोगे त्रिवेणी स्नान कर लोगे गंगा यमुना सरस्वती त्रिवेणी संगम पर स्नान कर लोगे पाप मुक्त हो जाओगे नहीं ऐसा कोई होता नहीं ऐसा कोई प्रावधान मैंने त्रिवेणी संगम के भीतर स्नान करने के
बाद घोर पाप से दुख भुगते हुए लोग देख मेरे जीजा जी अपने घर की ही बात बता द क्योंकि मैं अनुभव की बात ही बोल के खुश होता हूं रेलवे में थे और रेलवे वालों को पास मिलता है मस्त फर्स्ट क्लास के अंदर जहां चाहे चले जाओ और कुंभ में तो गाड़ियां जाती हैं जहां भी कोई तीर्थ यात्रा है वो चली जाते है बहन भी चली जाती सारे तीर्थ कर दिए और एक रह गया क्या सबसे बड़ा सारे तीर्थ बार-बार गंगा सागर एक बार तो गंगा सागर चले गए वहां भी स्नान कराए क्षमा चाहूंगा सड़ के मरे जीव का कैंसर हो गया टेस्ट ब जवाब दे गए कुछ खाते मैं पूछता जीजा कुछ पता लगा
खट्टी है मीठी है कड़वी है तो क्या बात तुम तो गंगा स्नान कराए थे गंगा सागर घुमाए थे फिर अब यह दर्द कैसे अब यह दुख कैसे अब यह कष्ट कैसे नहीं छोड़ के आए क्या गंगा सागर नि हरा नहीं क्या वो गंगा यमुना सरस्वती के त्रिवेणी संगम में उसने तुम्हारे पाप नहीं खत्म किए करते भी नहीं तुम इस गलतफहमी में मत रहना और सड़ के मरा वो जो पाप करेगा किसी जन्म में किया हूं तुम कह देते हो मैंने इसी जन्म में तो किया नहीं तो भाई किसी घर में जाकर तुमने पाप करके घर बदल लो तो आरोप तो नहीं बदलता हत्या का आरोप तो तुम्हारे ऊपर रहेगा ना कोई भी घर बदलो देश बदलो चाहे
तुम ग्रह भी बदल लो उसकी सृष्टि में लोग घर भी बदल देते हैं ग्रह भी बदल देते हैं किसी और ग्रह पर चल जाते हैं लेकिन दोष मुक्त नहीं होते परमात्मा की सृष्टि में किया हुआ कर्म बीज की तरह पनपता ही पनपता है और फल देता ही देता है इसलिए मैं कहता हूं लोगों को गुमराह करने वालों भोगना पड़ेगा यह बिल्कुल गुमराह है मैं पक्का पक्का जानता हूं राधे राधे कहने से नहीं अपना पता चलेगा दूसरे का स्मरण करने से अपना स्मरण स्व स्मरण कैसे हो जाएगा जरा सोचना दो घड़ी शांति के आलम में बैठे उन लम्हो में जब तुम फुर्सत में हो तुम्हारा
मन भारी ना हो बोझल ना हो शांत हो अकेला हो उन फुर्सत के लमहे में बैठे तुम सोचना कि दूसरों का नाम जपने से स्वय स्मरण कैसे हो जाएगा कोई ऐसा प्रावधान है क्या तुम फिजिक्स पढ़ते हो और तुम्हें अपना समम आ जाए ऐसा कोई प्रावधान है नहीं है बस एक ही प्रावधान है कुछ भी करते हुए साक्षी हो जाओ तो स्वयं को जान जाओगे फिर चाहे फिजिक्स पढ़ो केमिस्ट्री पढ़ो जियोलॉजी पढ़ो बटनी पढ़ो फिजियोलॉजी पढ़ो सिविक्स पढ़ो पॉलिटिकल साइंस पढ़ो कुछ भी पढ़ो लेकिन जागो भीतर से जा वे चैतन्य की जो भीतर बैठी है जो घड़े के भीतर वह चेतना बैठी है वो जागती रहे और देखती रहे
कि यह फिजिक्स पढ़ रहा है यह केमिस्ट्री पढ़ रहा है और वह चेतना मैं जागते हुए इसको फिजिक्स पढ़ते हुए देख रही हूं तो ही हो पाएगा यह इल्यूजन टूट पाएगा अन्यथा नहीं टूटेगा गंगा स्नान कर लो हज कर लो तीर्थ स्नान कर लो कहीं चले जाओ उसकी इच्छा के बिना बाबा ने कहा है तीर्थ नामा जे तिस [संगीत] पावे अगर तुमने उसको सद उसने तुमको सद्बुद्धि नहीं दी कि तीर्थ होता क्या है तो तुम ऐसे ही त्रिवेणी के अंदर नहा के वापस आ जाओगे और काल्पनिक रूप से तुम पापों से मुक्त हो जाओगे मैंने शब्द प्रयोग किया काल्पनिक लेकिन सत्य में जब बीज फूटता है फल
काल्पनिक नहीं लगते भाई फल असली होते हैं कड़वे हो मीठे हो सब खाने पड़ते हैं गुमराह करोगे आज या कोई तर्क दे दो जाहिद शराब पीने दे मस्जिद में बैठकर या वह जगह बता जहां खुदा का करना या तो बताओ के राम राम राधे राधे करने से पांच नाम लेने से कैसे तुम्हें स्व स्मरण हो पाएगा या फिर शराब पीने दे मस्जिद में बैठकर या फिर चुप हो जा दोनों में से एक बात ही चलेगी भाई अभी पीछे एक बयान आया महाराज जी का के मोन से भी मिल जाता है मैं कहां पीछे छोड़ने वाला था मैंने कहा फिर शोर से भी मिल जाता है मुझे जवाब चाहिए इस बात का कि शोर में
मिल जाता है जो तुम रातो रातो जागकर नकली जागरण करते हो जागरण के नाम पर जगाना था अपनी चेतना को साक्षी के रूप में जगाया तुमने अपनी आंखों को साक्षी तो बने ना वैसे नकली जागरण से तुम प्रबुद्ध हो पाओगे नहीं हो पाओगे साकिया आज हमें नींद नहीं आएगी सुना है तेरी महफिल में रथ जगा है सुना है तेरी महफिल में रथ जगा है साकिया आज हमें नींद नहीं आएगी सुना है तेरी महफिल में रथ जगा है सुना है तेरी महफिल में रथ जगा है आंखों ही आंखों में रात कट जाएगी सुना है तेरी महफिल में रथ जगा है सुना है तेरी महफिल में रथ जगा है जागे
कोई और नींद तुम्हें ना आए प्रबुद्ध कोई हो और तुम उसकी नकल करके प्रबुद्ध अपने आप को मानने लगो यह कैसे संभव हो सकता है रातो रातों तुम चलाते हो बड़े बड़े यूनिटस लगा के तुम माता को याद नहीं करते सही पोजीशन में अगर तुम्हारे भजनों को सुन लिया जाए तुम मातो को रोते हो जैसे वह मर गई हो मां मां देखना इनको य चिल्लाते हैं जैसे मां स्वर्गवास हो गई ऐसे ऐसे अजूबे मैंने इस धरा पर देखे वास्तविक अर्थ कोई जानता नहीं चले हैं जगराते करने धंधे हैं निहित स्वार्थ हैं सबके अपने अपने बाबा कहा करते हैं कि जो घोर पाप किया करते हैं तानाशाह
प्रवृति के लोग हुआ करते हैं अब मैं जैसे बोल रहा हूं उसे बोलने नहीं देंगे यह तानाशाही प्रवृत्ति है तो ऐसे तानाशाह लोग जैसे हिटलर अगले जन्म में सूरदास होते हैं उन्होंने तो शब्द अंधा भरता था चलो मैं थोड़ा सा शिष्टाचार वश सूरदास शब्द वर्त लेता हूं लेकिन लोग कहां मानते हैं परमात्मा दंड दिए हैं लोगों को आज एक है मंडलेश्वर है कि महामंडलेश्वर है मैं जानता नहीं उपाधियों को क्या जानू मैं व अपनी ही अलाप रहे हैं अरे भाई पिछले जन्म के तो भोग ले अपनी अपनी डफली अपना अपना राग तू जरा देख किस जन्म के कर्मों का तुझे फल मिला है आज फिर वही करने
चला लेकिन लोग कहां देखते हैं यही तो जीवन है फिर तुम कहते हो दुखी सारी मानवता दुखी है व मूर्ख तो है नहीं जिसने तुम्हें दंडित किया वह दंडाधिकारी पागल तो नहीं है जिसने तुम्हें जेल की कोठड़ हों के पीछे भेजा लेकिन तुम जेल की कोठड़ हों के पीछे भी जा कर फिर पैरोल लेकर बाहर आ जाती क्या कहे इस संसार में कहां है न्याय न्याय नाम की कोई चीज नहीं फैसले होते हैं न्याय तो एक ही शक्ति करती है वह जो संचालित कर रही है न्यायाधिकरण भी उसके हाथ में और दंडा धिक उसके हाथ में और जब तक तुम उसको जान नहीं लोगे तब तक तुम इस सर्जना को ठीक से समझ
नहीं सकोगे सर्जना को ठीक से समझने के लिए जिसकी व्यवस्था है उस सर्जन हारे को देखना पड़ेगा अनुभव करना पड़ेगा यह आवश्यक है लाजमी है उसके बिना तुम्हें पता नहीं चलेगा कुंभ य चंद्रमा यह बृहस्पति यह ग्रहों के स्थान यह एस्ट्रोलॉजिकल विषय है यह अलग से पड़ता है कभी इसके बारे में बात हुई तो फिर मैं बताऊंगा तुम्हें लेकिन प्रसंग तो अभी बहुत लंबे हो गए हैं एक घंटे से ज्यादा की वीडियो हो गई हमें शांति चाहिए इस तड़पती हुई जलती हुई रूह को शांत शीतल छाया चाहिए जो तुम्हें धूप से आग से बचा दे जलती हुई तप्त दोपहरी के भीतर जो वट वृक्ष
की तरह तुम्हें थोड़ी देर के लिए घने सुख का स्वाद दे तुम्हारी रक्षा करे और वह तुम्हारे कुंभ के भीतर ही घट के भीतर राम जपना नहीं जानना है रिमेंबर नॉट टू रिपीट फिर बता दूं तुम्हें बोरा तो बहुत बार लेकिन बोलता ही रहूंगा और बोलता ही रहूंगा तुम ईशा की तरह टांग दोगे तुम मंसूर की तरह काट दोगे तु मेरा की तरह जहर पिला दोगे तुम्हारा काम है तुम्हारा काम है य मेरा काम है सिर्फ अंध बातों को अंध विश्वासों को तोड़ना मैं अपना काम करता ही रहूंगा तुम चाहे तो अपना काम कर सकते हो तुम भी स्वतंत्र हो कुंभ को इस घड़े को वहां लेकर
जैसे घट में पीव है मूर्ख जाने ना कबीर तुम्हें मूर्ख कहते और मैं तुम्हें कहता हूं कि इस घट को वहां ले जाओ है तो भीतर ही प्रयाग राज में भी तुम उसे भीतर पाओगे घर में भी तुम उसे भीतर पाओगे घोर जंगलों में चल जाओ या तुम कंदरा में चले जाओ जाएगा तो वह भीतर तुम्हारे भीतर से ही मिलेगा तुम्हें बाहर से नहीं मिलेगा भीतर से ही मिलेगा भीतर से ही प्रकट होगा झरना सदा भीतर से प्रकट हुआ करता है बाहर से तो फवा प्रकट हुआ करते हैं और तुम फरों को काल्पनिक फरों को झरने समझे बैठे हो तो ये गलती तुम्हारी है जरों की गलती नहीं है गलती तुम्हारी
है तुमने बाहर से सब आयोजित कर लिया है लेकिन यह सत्य नहीं है यह सब असत्य है इसे कुंभ कहते हैं यह महापर्व है जो तुम्हें तुम्हारी पहचान बता दे त्रिवेणी में नहाने से पाप नहीं कटते पाप कटते हैं अपना स्वय जानने से स्वय विस्मरण हो गया है स्व स्मरण करना है बस कुल बात यह है और इस कुंभ को इस घड़े को क्योंकि इस घड़े के भीतर ही है जैसे घट में पीवे इसको वहां ले जाओ वहां हवाएं कुछ नशेली है वहां रोशनाई थोड़ी घनी वहां की हवाएं तब्दील है वहां ऐसे लोग हैं जो अपना आप जानते हैं और कौन जाने कोई शुभ घड़ी मुहूर्त में तुम उनके संपर्क में आ जाओ हवाएं तो
वहां बहती हैं जानने वाले लोग तो हैं आसानी तरंगों से भरा वो माहौल शायद तुम्हें भी कोई झोका साथ बहा के ले जाए उसी स्थान पर ले जाए जहां वह बैठे हैं इसलिए कुंभ में जरूर जाना लेकिन यह मान्यता लेकर मत जाना और यह मान्यता लेकर वापस ई माता ना हम त्रिवेणी के भीतर स्नान करेंगे और पाप मुक्त हो जाएंगे त्रिवेणी में संग त्रिवेणी में स्नान करेंगे संगम में और अपना स्व स्मरण कर लेंगे वहां की हवाएं आज बदली हुई है क्योंकि वहां बड़े संत बैठे हैं जो खुद को जानते हैं जलते हुए दियों की रोशनी में शायद तुम्हें भी अपनी रोशनाई याद आ जाए
संगत का यही प्रभाव होता है सत्संग की इसलिए इतनी महिमा कही गई है और वहां सत्संग इस वक्त घना है यही वेला है इस वेला का लाभ उठालो उस नशीली हवाओं में तुम भी थोड़ा सा उस आनंद का स्वाद चख लो कहां बह के बह के फिरते हो मिल तो यहां भी जाएगा लेकिन यह कुंभ 12 वर्ष बाद आएगा जब सारे जले हुए दीपक यक सा एक स्थान पर इकट्ठे होते हैं वहां कुछ माहौल और होगा निश्चित है वहां तरंगे कुछ और होंगी उन तरंगों में नहाने का मौका 12 वर्ष बाद फिर मिलेगा इसलिए जरूर जाना लेकिन यह कल्पना लेकर वापस मत आ जाना कि मैंने गंगा में गोता
लगाया संगम में गोता लगाया और मैं पापों से मुक्त हो गया नहीं हो पाओगे पापों से मुक्त हो होता है वह व्यक्ति जो उन हवाओं में साथ ही बह जाता है जिनका दिया उन दे दियों को देखकर रोशन दियों को देखकर खुद भी रोशन हो जाता है ईश्वर करे वो सौभाग्यशाली क्षण आए और तुम इन मूढ़ भ्रमों को त्याग कर उन तूफानों में बह जाओ कि तुम्हारी पूरी कल्पनाएं सब धूल धूसर हो जाए खंडहर बन जाए तुम्हें सत्य का दर्शन हो जाए अपने ही भीतर बैठे उस परमपिता परमात्मा का स्मरण हो जाए इस निय से जाना है उस शराब को पीने के लिए जाना है जो घट घट में बह रही
है प्रज्ञा बानों के सिद्धों के समाधि स्त संबोधि व्यक्तियों के उनके संपर्क में जाने का नाम कुंभ कुंभ तब साकार होगा अगर तुम उन नशीली हवाओ में खुद को उड़ाने के योग्य हो जाओगे तो तुम्हारा कुम में जाना सार्थिक हुआ अन्यथा यह तो 12 वर्ष के बाद आते ही रहेंगे जाते ही रहेंगे जिंदगियां बती र और तुम वहीं की वहीं रहोगे वक्त का लाभ उठाओ मौका है चले जाओ धन्यवाद श्री कृष्ण गोविंद हरे मुरारी हे नाथ नारायण [संगीत] वासुदेवा श्री कृष्ण गोविंद हरे [संगीत] मुरारी हे नाथ नारायण वासुदेवा पितु मात स्वामी सखा हमारे पितु
मात स्वामी सखा हमारे हे नाथ नारायण वासुदेवा श्री कृष्ण गोविंद हरे मुरारी हे नाथ नारायण वासुदेवा [संगीत]
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